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________________ हो पाएगा। जब तक स्थूल तत्त्व के प्रति हम सजग न हो पाएँ तो हम सूक्ष्म के प्रति सजग कैसे होंगे? इसलिए स्थूल के प्रति जाग्रत होना सूक्ष्म के प्रति जाग्रत होने का पहला पगोथिया' पार करना है। जब मैं कहता हूँ खुद को व्यवस्थित करना तो इसका मतलब यह हुआ कि व्यक्ति ठण्डे मिज़ाज़ से यह सोचे कि उसे कब उठना है, क्या खाना है, कैसे खाना है ? खुद को व्यवस्थित करने के लिए अपनी जीवनशैली को व्यवस्थित करना होगा। जीवनशैली को व्यवस्थित करने के लिए अपने हर दिन की शुरुआत को व्यवस्थित करना होगा। जो व्यक्ति जितने स्वस्थ मन के साथ अपने दिन की शुरुआत करता है उसका पूरा दिन उसकी अपनी स्वस्थता के साथ गुज़रता है। जो सुबह आँख खुलते ही निराशा या हताशा से घिर जाता है या चीखना, चिल्लाना शुरू कर देता है, तो आप यही मानकर चलें कि वह आदमी पूरे दिन भर ऐसे ही रोग, शोक, दुःख, दारिद्र्य से घिरा हुआ रहेगा। जो अपने हर दिन की शुरुआत बड़े स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर चित्त के साथ करता है, उसका पूरा दिन भी स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर बीता करता है। जैसे ही सुबह हमारी आँख खुले, आँख खुलने के साथ ही हम परमात्मा को भी बाद में याद करें। मातापिता के पास जाकर उनकी दुआएँ भी बाद में लें, किंतु सबसे पहले जैसे ही उठकर बैठें, अपने चेहरे पर मुस्कान ले आएँ और वही चेहरे की मुस्कान अपने अन्तरमन तक उतरने दें और उसी मुस्कान को अपने पैरों और हाथों तक, अंग-अंग तक विस्तार लेने दें। केवल एक से दो मिनट का यह प्रयोग किसी भी इंसान के लिए किसी संजीवनी बूटी का काम करेगा। यह दो मिनट की मुस्कान रोम-रोम में अमृत का संचार करेगी। जैसे रुग्ण आदमी सुबह विटामिन की गोली खाता है, सांझ को भी ऐसी ही विटामिन की गोली खाता है और विटामिन की एक गोली दिनभर अपना प्रभाव दिखाती है, वैसे ही दो मिनट की मुस्कान की विटामिन की गोली भी परे दिनभर हमें मस्कान से भरे हए रखेगी। न केवल दो मिनट तक हम मस्कराएँवरन दिनभर में जब-जब भी हमें सुबह की मुस्कान याद हो आए, हम प्यार मुस्कान याद हो आए, हम प्यार से अपने तन-मन में अपनी प्रसन्नता का संचार कर लें, ख़ास तौर पर उस समय जब कोई व्यक्ति हम पर झल्ला रहा हो, तो हम अपनी मुस्कान को याद कर लें। एक बूढ़े आदमी से मैंने पूछा, 'आप हर समय इतने ख़ुशमिजाज़ क्यों नज़र आते हैं ?' उन्होंने कहा, 'मैं इसलिए खुशमिजाज़ हूँ कि मैंने आपके जीवन को थोड़ा पढ़ा है। मैंने आपके जीवन से थोड़ी-सी शिक्षा ली है, और उसी शिक्षा के कारण मैं इतना ख़ुशमिजाज़ हूँ।' मैंने पूछा, 'कौनसी शिक्षा ली भाई, आपने मुझसे?' बोले, 'गुरुवर, एक दफ़ा आपने एक बात कही थी और वह बात मेरे गले उतर गई। अब जब सुबह जैसे ही मेरी आँख खुलती है, मैं अपने आपसे पूछता हूँ, 'बोल बन्दे, तुझे क्या चाहिए – ख़ुशी या नाख़ुशी?' मानता हूँ कि दुनिया मुझे बेवकूफ़ तो मानती है पर मैं उतना बेवकूफ़ भी नहीं हूँ जितना लोग मुझे समझते हैं। 88 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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