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________________ एक ओर उसने अपने जूते डाले और धड़ाम से दरवाज़ा खोलते हुए झेन गुरु के पास पहुँचा। उसने झेन गुरु को जाकर प्रणाम किया और कहा कि 'मैं आत्मज्ञान का रहस्य जानना चाहता हूँ'। झेन गुरु ने उस युवक पर नज़र केन्द्रित की और कहा, 'क्या तुम्हें पता है कि मेरी कुटिया के बाहर बारिश हो रही है या नहीं? उसने कहा, 'जी हाँ, मुझे पता है।' गुरु ने कहा कि तुम्हारे सूखे वस्त्रों को देखकर लगता है कि तुम छतरी अपने साथ लेकर आए हो। उसने कहा, 'हाँ साहब, मैं छतरी का उपयोग करते हुए आप तक पहुँचा हूँ।' झेन गुरु ने कहा कि 'क्या आत्मज्ञान का रहस्य जानने से पहले तुम मुझे यह बताओगे कि तुमने छतरी दरवाज़े के दायीं तरफ़ रखी है कि बायीं तरफ़?' वह युवक चौंका । स्मरण करने लगा कि मैंने छतरी दायीं तरफ़ रखी या बायीं तरफ! झेन गुरु ने उससे कहा कि तुम मुझसे आत्मज्ञान की शिक्षा पाओ उससे पहले दरवाज़े के पास जाओ और अपने जूतों से क्षमा माँगो।' युवक ने कहा, 'आत्मज्ञान की शिक्षा पाने के साथ जूतों का कहाँ सम्बन्ध बैठता है ?' आप मुझे यह कहें कि मैं आपके सामने झुक कर अपने पापों और अपराधों की क्षमा माँगू, तो बात समझ में आती है पर आप कह रहे हैं कि जाकर जूतों से क्षमा माँगो। झेन गुरु ने कहा, 'जिस दरवाज़े से तुम अन्दर आए हो उसी दरवाज़े से मैं भी अन्दर आया हूँ। लेकिन जिस आदमी को अभी तक अपने जूते और दरवाज़ा भी सलीके से खोलने नहीं आते, वह आत्मज्ञान की नसीहतों को सीखने का अभी पात्र नहीं बन पाया है।' __यह कहानी हम लोगों को 'लाइफ मैनेजमेंट' की प्रेरणा देती है। यह बताती है कि आत्मज्ञान और साधना की तरफ अपने कदम बढ़ाने से पहले अपने जूतों को भी सलीक़े से खोलना जीवन की पहली साधना है। जो व्यक्ति सुव्यवस्थित तरीके से अपने कार्यों को सम्पादित नहीं करता वह अन्धेरा छा जाने पर अपने सामानों को वैसे ही टटोलता है जैसे कि दिन का उजाला होने पर उल्लू अपने घोंसले और घर को ढूँढा करता है। ___ जो व्यक्ति अपने साजो-सामान को बहुत व्यवस्थित रखेगा वही व्यक्ति अन्धेरे में अगर सुई भी ढूँढ़ना चाहेगा तो उसे बिल्कुल व्यवस्थित जगह पर अन्धेरे में भी सूई मिल जाएगी। लापरवाही के साथ अगर मटका भी कहीं रख दिया तो अंधेरे में उसे भी ढूँढ़ने जाओगे तो वह नहीं मिलेगा। अंधेरे की क्या बात, कई दफा तो हम दिन में भी अपने रखे हुए सामानों को ढूँढ़ते रहते हैं। कहते हैं, भाई, रखा तो था मगर याद नहीं आ रहा है कि कहाँ रखा?' ऐसे लोगों के लिए ही यह कहावत मशहूर है कि 'घड़े में ऊँट ढूँढ़ना।' यदि ढंग से अपना सामान भी नहीं रखते तो तुम ऊँट खो जाने पर यह सोचकर घड़े में भी ढूँढ़ना चाहते हो कि शायद वह उसमें मिल जाए। जिस आदमी के भीतर-बाहर की अभी तक यह सजगता भी न सध पाई कि जिस सामान को जहाँ से लिया, वापस वहीं पर ही व्यवस्थित रख दिया जाए, वह अपनी वाणी, विचार में, भावों के प्रति सजग नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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