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________________ करनी चाहिए कि जैसे प्रकृति सब चीज़ों को व्यवस्थित रखती है, वैसे ही हम सब लोगों को भी खुद को व्यवस्थित करना चाहिए। ख़ुद को व्यवस्थित करना अपने आप में एक बहुत बड़ी साधना है। कोई भी व्यक्ति किसी और को अव्यवस्थित देखना नहीं चाहता। हर पिता की अपेक्षा रहती है कि उसका पुत्र व्यवस्थित जीवन जीए । हर पति की मंशा रहती है कि उसकी पत्नी बहुत व्यवस्थित रहे। हर मालिक की यह ख्वाहिश होती है कि उसका कर्मचारी हर कार्य, हर चीज़ बहुत व्यवस्थित ढंग से सम्पादित करे। पर जब यही बात स्वयं अपने आप पर लागू होती है तो ख़ुद के सामने ही प्रश्नचिह्न लग जाता है। क्या हम ख़ुद को व्यवस्थित कर पाए हैं ? नौकर के द्वारा होने वाली थोड़ी-सी अव्यवस्था हमें झल्लाहट दे देती है और हमारी अपनी अव्यवस्था? पत्नी के द्वारा की जाने वाली थोड़ी-सी उपेक्षा भी हमें आगबबूला कर बैठती है और हमारे स्वयं के द्वारा उसे दी गई उपेक्षा? ख़ुद तो कुछ भी करो, सारे गुनाह माफ़, पर दूसरा कुछ भी कर बैठे, तो गुस्सा आसमान पर चढ़ जाता है। व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रकृति की व्यवस्था को समझे और ख़ुद की प्रकृति को सहज-शांतिमय बनाए।दूसरों की गलती को माफ़ करने का बड़प्पन भी तो दिखाया जाना चाहिए। गुस्सा तो उस ड्रिंक की तरह है, जिसे अगर ठंडा और कूल-कूल करके पिया जाए और परोसा जाए तो ही वह जायका दे सकता है। कृपया अपने आपको खुले दिमाग़ का बनाइए। खुले बटुए की बजाय खुला दिमाग़ ज्यादा लाभकारी है। __खुद को व्यवस्थित करना अपने आप में ही एक साधना है। धर्म की दहलीज़ पर क़दम बढ़ाने से पहले व्यक्ति को चाहिए कि वह पहले अपने आपको व्यवस्थित करे। जो शिक्षा और संस्कार हमें सुव्यवस्थित रहना सिखाए, वही सही शिक्षा है। लोग एम.बी.ए. होने को लालायित हैं। मेरा अनुरोध है हर व्यक्ति एल.एम.ए. ज़रूर हो जाए। एम.बी.ए. के लिए पढ़ना होगा और एल.एम.ए. के लिए सावधान होना होगा। एल.एम.ए. यानी लाइफ़ मैनेजमेंट करना आसान है, पर उसी के लिए अपने जीवन और रिश्तेदारों के साथ प्रेमपूर्ण प्रबंधन बैठाना किसी तपस्या से कम नहीं है। अनजान अपरिचित लोगों के साथ हँस-खिलकर बोलने वाला इंसान अपनी भाभी, बड़े भाई, भतीजों के साथ हँस-खिलकर क्यों नहीं पेश आता? __ अपने आपको व्यवस्थित करने का मायना है कि व्यक्ति अपने जूते -चप्पल तक सलीके से पहने और रखे। साफ-सुथरे वस्त्र पहने, अपने घर का सारा साजोसामान ढंग से और तहज़ीब से रखे। अपने आपको व्यवस्थित रखने का अर्थ यह है कि व्यक्ति अपनी वाणी, अपनी कार्यशैली के साथ-साथ अपने पारिवारिक संबंधों को भी बहुत व्यवस्थित रखे। झेन कहानियों में कुछ विशेष घटनाओं का ज़िक्र हुआ है। उनमें से एक मुझे सदा याद रहती है। किसी झेन गुरु के पास एक व्यक्ति आत्मज्ञान की शिक्षा पाने के लिए आया। वह तेजी से आश्रम में प्रविष्ट हुआ। LIFE 86 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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