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मैं चिंतामुक्त होने के कुछ सूत्र सुझाव के रूप में दे रहा हूँ, जिन्हें अपनाकर आप और हम अवश्य ही चिंतामुक्त हो सकते हैं
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पहली बात कहूँगा • सहज जीवन जियें । न तो कुटिल, न कृत्रिम और न आरोपित जीवन जीने का प्रयास करें -
सहज मिले सो दूध सम, माँगा मिले सो पानी, कह कबीर वह रक्त सम, जामे खींचातानी ।
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जो सहज में मिलता है वह दूध के समान श्रेष्ठ है । माँगने से अगर दूध मिले तो वह पानी के समान है, पर जो कलह करके, मनमुटाव करके, ज़बरदस्ती हासिल किया जाए वह तो रक्त के समान ही है। सहज में जो मिल गया वह आनन्द भाव से प्रेमपूर्वक स्वीकार कर लें। मुझे कोई बता रहा था कि उनकी दुकान के सामने ही एक अन्य दुकानदार है जिसकी किसी दिन कम ग्राहकी होती है तो उस दिन बहुत खीजता हुआ रात में शटर गिराता है । मैं सोचता हूँ जिस दिन अधिक कमाया उस दिन तो प्रसन्न नहीं होता। बस कम कमाया उसकी चिंता में नींद ज़रूर ख़राब कर लेता है । अरे भाई, हानि का ही सोचते रहोगे तो लाभ का आनन्द नहीं उठा सकोगे। जो लाभ का आनन्द उठा सकता है वह होने वाली हानि के लिए अधिक चिंता नहीं करता । वह सोचेगा घाटा लग गया, तो क्या कमाई भी तो इसी से हो रही है। ऐसा व्यक्ति सहज जीवन जी सकेगा ।
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प्रकृति- प्रदत्त देह को अनावश्यक कृत्रिम रूप से शृंगारित न करें। इससे आपकी त्वचा, नख, बाल, चेहरा ख़राब होता है सहज रहें। खानपान पर भी ध्यान रखें। समय से खायें - पियें। यह क्या कि देर रात तक खा रहे हैं, मटर गश्ती कर रहे हैं। ऐसा करके आप स्वयं को नुकसान पहुँचा रहे हैं । दिन-रात भागमभाग में न लगे रहें। आप अधिक जमा कर भी लेंगे तो क्या ? भाग्य से अधिक आपके पास टिकेगा नहीं ।
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अपना सहज
दशरथ के भाग्य में संतान नहीं थी । लेकिन ज़िद पकड़ ली कि यज्ञ करके ही सही, संतान अवश्य प्राप्त करूँगा। यज्ञ किया, संतान भी हो गई, लेकिन उन्हें कभी भी संतान का सुख प्राप्त न हो सका । हमारे परिचय में एक सुश्राविका है। हमसे स्नेह रखती हैं, आदर भी करती हैं। उन्हें विवाह के पश्चात् सुदीर्घ समय तक संतान-प्राप्ति नहीं हुई। वे हमसे बस एक ही बात कहतीं कि उन्हें संतान हो जाए ऐसा ही आशीर्वाद चाहिए।उन्हें अन्तत: पुत्र हुआ और वह बड़ा होने लगा। चौदह वर्ष का हो गया और उसे डेगूं बुखार हो गया। तबियत ज्यादा बिगड़ी, उसे दिल्ली ले जाया गया और कुछ समय बाद समाचार आया कि अस्पताल में उसका देहान्त हो गया। मुझे उस समय केवल एक ही विचार आया कि जिस चीज़ को भगवान नहीं देना चाहता उसे तुम किसी तरह प्राप्त भी कर लो तो भी उसका सुख तुम्हें नहीं मिल सकता। इसलिए सहज में जो
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