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यक्षराज, तुम मुझसे मेरी जान ले सकते हो, लेकिन मुझसे मेरा धर्म नहीं छीन सकते । तुम्हीं बताओ, क्या धर्म कोई चोला है, जिसे जब चाहें तब पहन लिया जाए और जब चाहें तब उतार फेंकें? धर्म तो मेरी आत्मा का स्वभाव है। धर्म कोई दमड़ी है, जिसे खरीदा जा सके और न ही धर्म कोई पगड़ी है जिसे जब चाहें तब उतारा
और पहना जा सके। धर्म तो चमड़ी है जो जब तक हम जिएँगे हमारे साथ ही जिएगी और मरेगी। अरहन्नक ने कहा, यक्षराज तुम्हीं बताओ कि मैं धर्म को अपने जीवन से कैसे अलग करूँ? अरहन्नक के उत्तर से यक्षराज प्रभावित हुआ और तूफ़ान अनायास थम गया।
ऊपर के जनेऊ और तिलक-छापों को तो अलग किया जा सकता है, पर अपने स्वभावजन्य प्रेम, शांति, करुणा और आनंद जैसे धर्म को कैसे अलग कर सकोगे। धर्म तुम खुद हो। धर्म तुम्हारी परछाई है। धर्म तुम्हारी ज्योति है। धर्म है तो तुम हो और तुम हो तो धर्म है। तौर-तरीकों का त्याग तो संभव है, मगर धर्म का त्याग संभव नहीं है। हमारा स्वभाव, हमारी दृष्टि, हमारी मर्यादा, हमारा मांगल्य-भाव ही धर्म है। विश्वप्रेम और विश्वशांति में ही धर्म की आत्मा समायी है। आपका खाना, पीना, उठना, बैठना- सभी धर्म से जुड़े हुए हों । अस्पताल से गुजरते हुए पान की पीक दीवार पर गिराई है या पीकदान में थूकी है, यह भी तुम्हारे लिए धर्म और अधर्म की कसौटी हो सकती है। सड़क पर चलते समय किसी राहगीर को बचाने या उससे टकराने में भी धर्म और अधर्म की समीक्षा की जा सकती है। मैं आपको धर्म के बारे में प्रेक्टिकल होने का अनुरोध कर रहा हूँ। मेरी समझ से धर्म और जीवन दोनों अलग-अलग पहलू नहीं है। धर्म और जीवन दोनों एक ही सिक्के के पहलू हैं। अब फिर से धर्म का मूल्यांकन हो, धर्म हमारे रोजमर्रा के जीवन से जुड़ जाना चाहिए।
आप बस से यात्रा करते हैं और आपको सिगरेट पीने की तलब होती है। आप झट से सिगरेट सुलगा लेते हैं, बिना यह सोचे-विचारे कि आपकी इस एक सिगरेट का धुआँ कितने लोगों के लिए परेशानी का सबब बनेगा? दूसरों को धुआँ निगलने के लिए मज़बूर करना अधर्म का आचरण है, वहीं किनारे जाकर सिगरेट को फूंकना विवेकपूर्वक धर्म को जीना है। अगर आप सुबह खड़े होकर अपने माता-पिता को प्रणाम करते हैं, उनके दुःख-दर्दो को दूर करने का प्रयास करते हैं तो यह आपकी ओर से धर्म का आचरण है। मरने के बाद उन पर सैंकड़ों रुपयों के फूल चढ़ाना और जीते-जी उन्हें दुत्कारना या सताना, आप स्वयं सोचिए कि क्या वह धर्म है या अधर्म?
अभी हाल ही जयपुर का एक किस्सा पढ़ने को मिला। पढ़ने को क्या मिला, पूरे देश ने ही टी.वी. पर उसके हाल देखे कि किस तरह एक बहू के द्वारा बूढ़ी-बुज़ुर्ग सास को प्रताड़ित किया। किसी प्रतिष्ठित परिवार के द्वारा इस तरह का काम किया जाना सचमुच रोने जैसा काम है। बहू के द्वारा सास को बंगले से बाहर निकाल कर कार-गैरेज में रखना, पौंछा लगे पानी से नहलाना और बीते कल की बची रसोई को खाने
CLIFEN 140.
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