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बहार चली जाती है ? वह है शांति और आनन्द।
जिसके पास जाने से आपको शांति और आनन्द मिलता है वह व्यक्ति आपके लिए उपयोगी है। जिससे आपको अशांति और पीड़ा मिलती हो, वह व्यक्ति त्याज्य है। आनन्द पाने के लिए कहीं बाहर जाने की ज़रूरत नहीं है। जहाँ वह है वहीं के अवसरों से, निमित्तों से वह आनन्द पा सकता है। कुछ न हो तो नीले आसमान को देखकर आनन्द लिया जा सकता है। बगीचे में खिले फूलों को निहारकर आनन्द ले सकते हैं। घर में जो छोटा-सा बच्चा है, उसकी किलकारी को सुनकर भी आनन्द ले सकते हैं । सड़क पर जाती कारों से, उमड़ते बादलों से, बरसते हुए पानी से, क्षितिज पर निकले हुए इन्द्रधनुष से भी आनन्द पाया जा सकता है। किसी सरोवर के किनारे बैठकर, नदी या समुद्र के किनारे आती-जाती लहरों को देखकर भी हम आनन्द ले सकते हैं। घर में टॅगी खूबसूरत-सी तस्वीर को देखकर भी आनन्द लिया जा सकता है । आनन्द तो आपके आसपास बिखरा पड़ा है। बस, मन की दशा को आनंदमय बनाने की ज़रूरत है।
जो अपने दिन का प्रारम्भ और समापन आनन्द-भाव के साथ करता है उसके सामने कोई भी झल्लाता रहे, चिढ़ता रहे, गुस्सा करे, तब भी वह तो हर हाल में मुस्कुराता ही रहेगा। वह अपनी मुस्कान खोएगा नहीं। मुझे तो लगता है कि हमारे देश के लोग हँसना-हँसाना भूल ही गए हैं। सब लोग किसी-न-किसी प्रकार रोते हुए ही नज़र आते हैं। हँसने-हँसाने की कला विलुप्त होती जा रही है। हँसना-मुस्कुराना जीवन जीने की एक बेहतरीन कला है। जो दिल से हँसते हैं, उन्हें दिल का दौरा नहीं पड़ता। हँसना ख़ुद ही एक श्रेष्ठ टॉनिक है चाहे आपको टेंशन रहता हो या डिप्रेशन, मिर्गी की बीमारी हो या हार्ट की, आप हँसने की आदत डालें। आप चमत्कारिक रूप से टेंशन-फ्री हो जाएँगे, हार्ट और किडनी पर भी हँसने-हँसाने के अच्छे प्रभाव पड़ेंगे।
आप अपने घर में ऐसा चिराग जलाएँ, जिसकी रोशनी में मुस्कान बिखरे । ऐसे फूल खिलाएँ जिससे मुस्कान की खुशबू बिखरे । ऐसा पेड़ लगाएँ जिसकी छाया में पंछी भी शांति का सुकून पा सकें। जलती डाल पर कोई चिड़िया नहीं बैठती। शांति के कबूतर वहीं आते हैं जहाँ सदा खुशहाली रहा करती है। जो भी व्यक्ति प्रतिदिन दो सामायिक करने का नियम लेता है पर वह स्वयं को तनाव में रखता है, छोटी-सी बात पर भी गरम हो जाता है तो मैं पूलूंगा कि आप अभ्यास के रूप में तो सामायिक कर रहे हैं लेकिन जीवन में समता
और समरसता न ला सके तो उस सामायिक की सार्थकता क्या हुई ? मंदिर में जाकर प्रभु की प्रतिमा देखकर दिल में आनन्द-दशा का संचार न हुआ तो मंदिर जाना और मार्केट जाना एक बराबर ही हुआ।
अगर बाहरी निमित्तों पर आश्रित रहकर मुस्कुराहट का संचार करोगे तो याद रखिए कि प्रकृति परिवर्तनशील है और उसके परिवर्तनशील होने के कारण सदा एक जैसी परिस्थितियाँ नहीं रहतीं। हम लोग जीवन में सुखों और खुशियों को पाने के लिए कितने-कितने इन्तजाम करते हैं! कोई जन्मदिवस का कार्यक्रम करता है, तो कोई शादी की पच्चीसवीं सालगिरह मनाता है, तो कोई कभी दुकान और कभी मकान
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