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________________ का उद्घाटन करता है । सौ-सौ आयोजन करके व्यक्ति अपने जीवन में खुशहाली का संचार करता रहता है, पर यह सब बहुत थोड़े से समय के लिए ही हुआ करता है । शादियों के आयोजन आपने देखे हैं । जिस दिन उत्सव जैसा माहोल था, नाच-गाना हो रहा, दूल्हा-दुल्हन और बाराती सजे-धजे थे, तरह-तरह के पकवानों से पार्टी मनाई जा रही थी; उस दिन सब बड़े खुश-खुश थे। दूसरे दिन वहाँ जाकर देखें कि क्या हालत होती है? चारों ओर गंदगी का साया होता है, अजीब-सी खामोशी, अजीब-सा सन्नाटा पसरा रहता है। सारे लोग थके-हारे पस्त से नज़र आते हैं । बनठन कर जो खुशियाँ प्राप्त करने की कोशिश की जाती हैं, निमित्तों के आधार पर जो खुशियाँ चाहेंगे तो कब तक खुश रह पाएँगे? दिन में चार निमित्त खुशियों के मिलते हैं और बारह निमित्त चिड़चिड़ेपन के हाज़िर हो जाते हैं। सुख और दुःख मानसिक अवस्था के परिणाम हैं । जो चीज़ सुख का आधार होती है वही दुःख का भी आधार बन जाती है। पत्नी बड़े प्यार से खाना बनाती है। उसने आपके लिए सभी मनपसंद व्यंजन बनाए। आप खाना खाने बैठे। पत्नी ने करीने से थाली सजाई, आपको देखकर अच्छा तोलगा, पर मन किसी उधेड़बुन में लगा हुआ था।खाना खाना शुरू किया कि सब्जी में नमक ही नहीं था।दूसरा कौर दूसरी सब्जी से लिया ओह, उसमें तो दुगुना नमक है, एकदम खारी। सिर तो पहले ही गरम था, पत्नी को खरी-खोटी सुनाई और थाली को ठोकर मारकर आप अपने काम-धंधे पर निकल गये। इधर पत्नी रुआंसी हो गई। उसकी छोटी-सी गलती ने सारे अरमानों पर पानी फेर दिया। उसकी खुशी का सैलाब दुःख में बदल गया।अब इस भोजन की थाली का वह क्या करे? तभी किसी भिखारी की आवाज़ सुनाई दी – 'माँजी, खाने को कुछ मिलेगा? दो दिन से भूखा हूँ।'महिला ने ठुकराई गई थाली उठाई और उसे दे दी।खानादेखकर वह तो ख़ुश हो गया।वाह, आज तो सुबह-सुबह किसी अच्छे इन्सान का मुंह देखा होगा! खीर, पूड़ी, दो सब्जियाँ, लापसी आज तो मज़ा ही आ गया। वह खाना खाने बैठा। एक सब्जी चखी, वह खारी थी, दूसरी चखी, वह फीकी थी। उसने दोनों सब्जियों को मिला दिया, नमक बराबर हो गया । मस्ती से खाना खाकर वह चला गया। एक आदमी के लिए वही भोजन शांति का कारक हो गया और दूसरे के लिए अशांति का निमित्त बन गया। ___ हमारे उद्वेलित मन के द्वारा ही जीवन की शांति और अशांति निर्धारित होती है। सुख और दुःख सदा एक जैसे भी नहीं रहते। कोई आज करोड़पति है तो वह सदा ही करोड़पति नहीं रहने वाला और जो रोड़पति है वह भी रोड़पति नहीं रहने वाला। रोड़पति और करोड़पति में 'क' की कमी या 'क' की अधिकता है । 'क' यानी करो, मेहनत करो। मेहनत करोगे तो रोड़पति से करोड़पति हो जाओगे । और करने से जी चुराओगे तो करोड़पति का 'क' माइनस हो जाएगा। सुख और दुःख तो साइकिल के पहिए जैसे हैं। कभी ऊपर, कभी नीचे, कभी सर्दी, कभी गर्मी, कभी धूप, कभी छाँव। जहाँ हानि है वहाँ लाभ भी है, जहाँ संयोग है तो वियोग भी है, खिलना है, तो मुरझाना भी है, जन्म है तो मरण भी है, दोस्ती है तो दुश्मनी भी है - यह प्रकृति की व्यवस्था है जो बदलती चलती है। 61 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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