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________________ फाइल में रखे हुए कुछ पुराने व्यर्थ के बिल को निकालकर रद्दी की टोकरी में फेंक देते हैं तब हमें बड़ा हल्कापन महसूस होता है। मैं कहूँगा कि जब हम अपने घर पहुँचे तो घर के भीतर बाद में प्रवेश करें पहले घर के बाहर कचरा डालने का जो डिब्बा हमने रखा है, दो मिनिट के लिए उसके पास जाएँ। हम यह देख लें कि जेबों में कहाँ-कहाँ, कौन-सा रद्दी कागज पड़ा है ? हम उसे निकालें और उन्हें वहीं फेंक दें। जब आप रद्दी कागज फैंकें तो मेहरबानी करके एक काम और करें। आपके पास कुछ ऐसी चीजें भी हैं जिन्हें कि आपको रद्दी कागजों के साथ निकालकर फेंक देना चाहिए और वह है आपके दिमाग की जेब में भरी हुई कुछ-कुछ बातें, कुछ-कुछ चिड़िचिड़ापन, कुछ-कुछ उत्तेजना, कुछ-कुछ गुस्सा, कुछ-कुछ तनाव और चिंता जो आप अपनी दुकान से अपने साथ ले आए हैं। दिमाग की जेब में ऐसी ये जो कुछ-कुछ चीजें भरी रहती हैं, उन्हें निकालकर फेंक दें। क्योंकि वे भी रद्दी कागज की तरह हैं, व्यर्थ के पाउच हैं। सावधान ! व्यवसाय के तनाव कहीं आपके घर को तनावग्रस्त न बना दें। अपने दफ्तर, दुकान के तनाव आपके घर में न पहुँच जाए और उन तनावों का बोझा कहीं आपकी पत्नी को, आपके बच्चों को न झेलना पड़े। अमूमन ऐसा ही होता है कि आदमी अपनी दुकान का गुस्सा बीबी पर निकालता है, बीबी तब अपना गुस्सा बच्चों पर निकाला करती है। कुछ-कुछ व्यर्थ की चीजें हमारे दिमाग में भरी पड़ी हैं। इन 'कुछ-कुछ' चीजों को अपने माथे की जेब से निकालकर कचरा-पेटी में फेंक दें। जब घर में प्रवेश करें तो लगना चाहिए कि घर में वह व्यक्ति पहुँचा है जिसकी प्रतीक्षा में घरवालों ने पूरे आठ-दस घंटे बिताए हैं। तुम जब घर पहुँचो तो तुम्हारी पत्नी को इतना सुकून मिल जाए कि उसे महसूस हो कि तुम घर पहुंचे हो। वहीं अगर तनाव, घुटन, चिंता, अवसाद जैसी बीमारियों को लेकर घर पहुंचे तो पत्नी के मन में भी अवसाद की छाया घर करने लगेगी। आपकी झुंझलाहट और चिड़चिड़ेपन के चलते आपकी पत्नी सोचेगी, 'अच्छा होता, मेरे पति और दो घंटे बाहर ही रहते।' __ आप कोई त्याग करना चाहते हैं, कोई व्रत और अनुष्ठान करना चाहते हैं, कोई पूजन और महापूजन करना चाहते हैं तो मैं कहूँगा पूजा अपने आप की कर लें। पहला, अनुष्ठान यह कर लें कि जो कचरा भीतर है उसे बाहर निकाल दें। संभव है, आप गुटका खाने के आदी हों और गुटका न छोड़ पाएँ। यह भी संभव है आप पान खाने के आदी हों और पान न छोड़ पाएँ। हो सकता है आप चाय पीने के शौकीन हों और चाय न छोड़ पाएँ, पर तनावों को पालने के आदी होने का तो कोई अर्थ ही नहीं है। चिंताओं को अपने दिमाग में धरे रखने का कोई औचित्य नहीं है। यह आपके जीवन की जरूरत कतई नहीं है। तनाव आपकी विफलता का कारण है। हम सिगरेट को छोड़ने की कोशिश बाद में करेंगे। पहले अपने दिमाग में जो व्यर्थ का कचरा AATEE 33 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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