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शक्तियाँ जाग्रत होंगी, आप भी अपनी ज़िंदगी का किला फ़तह कर लेंगे ।
कहते हैं, अर्जुन हताश हो चुका था । उसने अपना गांडीव धनुष एक तरफ़ रख दिया और कह दिया कि ‘हे कृष्ण! मेरे लिए अपने बन्धु-बांधवों पर हथियार चलाना मुमकिन नहीं है।' उसके हाथ कमज़ोर हो गए, पाँव काँपने लगे । कृष्ण ने तब अर्जुन के सोए हुए आत्म-विश्वास को जाग्रत किया । जब-जब भी किसी का मन दुर्बल हो जाए तब-तब वह व्यक्ति गीता का पाठ करे। गीता व्यक्ति के दुर्बल मन को सबल बनाने का शास्त्र है। रामायण धर्म सिखाती है, मगर गीता कर्म सिखाती है । यही कर्म कि व्यक्ति अपने दुर्बल मन को पहचाने और उसे सबल बनाए । ज़िंदगी के मैदान में हिम्मत और मनोबल के बगैर नहीं जिया जा सकता ।
गीता कहती है : ओ मेरे पार्थ, तू अपने मन की नपुंसकता का त्याग कर । हृदय की तुच्छ दुर्बलताओं को किनारे कर । तू अपने कर्त्तव्यमार्ग के लिए आगे तो आ, मैं तेरे साथ हूँ। अर्थात् तुम्हारा विश्वास अगर तुम्हारे साथ है तो फिर कोई दिक्कत नहीं है। आत्म-विश्वास में ही वह शक्ति है जिसके बलबूते पर कभी पियरे ने उत्तरी ध्रुव की खोज की थी, कोलम्बस ने भारत को ढूँढ़ निकालने के लिए एक कठिन यात्रा की थी, गेलिलियो ने झूमते लेम्पों तथा थोमस अल्वा एडिसन ने चमचमाती सफेद दूधिया रोशनी वाले बल्बों का आविष्कार किया और मुहम्मद अली ने तीन बार विश्व हैवीवेट का खिताब जीता था। आख़िर यह सब किसके बलबूते पर ? एकमात्र विश्वास और हिम्मत के बलबूते पर। जिनके मन में विश्वास है वे निश्चय ही जीतेंगे। जिन्हें पहले से ही डर व संदेह है कि कहीं हार गए तो, तो निश्चय ही उन्हें हार से गुज़रना पड़ता है।
मुझे पता है एक ऐसे व्यक्ति का कि जिसके दोनों हाथ कटे हुए हैं । वह शख्स हैं- डॉ. रघुवंश सहाय। उस व्यक्ति ने अपने पाँव के अँगूठे और अंगुलियों का उपयोग करके अब तक बत्तीस किताबें लिख डालीं। कोई आदमी कुछ करना चाहे और न कर पाए, यह कैसे मुमकिन है ? अगर करना चाहे तो कमजोर से कमजोर विद्यार्थी भी मेरिट लिस्ट में अपना नाम ला सकता है । केवल अपने मनोबल को, अपनी मानसिक शक्तियों को जगाने की ज़रूरत है। आग तो निश्चय ही सबके भीतर है, ज़रूरत है तो बस उसे जगाने की ।
डेमोस्थनीज के लिए प्रसिद्ध है कि वे बचपन में अटक - अटक कर बोलते थे । वे हकलाते थे। जब बोलते तो उनका चेहरा विकृत हो जाता था। अपने शारीरिक दोषों को दूर करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। उन्होंने शीशे में देखकर बोलने और हकलाहट दूर करने के लिए मुँह में पत्थर रखकर बोलने का अभ्यास किया। उनकी मेहनत रंग लाई और वे अपने वक़्त के महानतम वक्ता बने ।
हम लोग अपनी आत्मशक्तियों को पहचानें । धैर्य और कठिन परिश्रम के साथ कामयाबी की
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