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करता है । मिट्टी बनाना कुदरत का काम है, पर उस मिट्टी से दीये और मंगल कलश बनाना तो इंसान पर निर्भर है। आप इस तरह मेहनत को अपनाएँ कि मानो इसी पर ही जीवन आधारित हो।
कहते हैं जब द्रोणाचार्य अर्जुन और अन्य शिष्यों को लेकर साथ चल रहे होते हैं तो द्रोणाचार्य अर्जुन से कहते हैं कि अर्जुन, इस पूरी दुनिया में तुम्हारी तुलना में और कोई धनुर्धारी नहीं है। गुरु द्रोण अपने शिष्य की तारीफ़ के पुल बाँध रहे होते हैं कि तभी देखते हैं कि एक कुत्ता गुरु द्रोणाचार्य को देखकर जोर-जोर से भौंकने लगा। द्रोणाचार्य के इस अपमान को देखकर अर्जुन ने अपने गांडीव को अपने हाथ में लिया, मगर वह यह देखकर चौंक पड़ा कि अभी तक उसने अपनी कमान पर तीर चढ़ाया ही नहीं था कि तभी एक अनजान दिशा से तीर आया और आकर कुत्ते के मुँह में चला गया। देखकर वो चौंक पड़ा कि कौन है वो व्यक्ति जो इतना जबरदस्त तीर संधान कर सके। उसे यह सोचने के लिए वक़्त ही नहीं मिल पाया कि तभी तीर पर तीर चले कि कुत्ता अपना मुँह बन्द न कर पाया। अर्जुन चौंक पड़ा। गुरु द्रोण भी चौंक पड़े कि ऐसा धनुर्धारी तो मेरा यह शिष्य अर्जुन भी नहीं है। वह कौन है जिसने इस तरह लक्ष्य-संधान किया। कहते हैं तब अर्जुन, द्रोण उसी दिशा की तरफ़ बढ़ते हैं। वहाँ कोई राजकुमार नहीं होता है। वहाँ होता है एक आदिवासी युवक एकलव्य । इतिहास का एक अमर नाम, अमर हस्ताक्षर।
जब द्रोण ने उससे पूछा कि किस गुरु से तुमने यह विद्या सीखी है तो उसने कहा कि मेरा गुरु मेरे सामने बैठा है । द्रोण और अर्जुन सामने जाते हैं, देखते हैं कि मिट्टी की चौपाल पर, मिट्टी की एक चौकी पर कोई व्यक्ति बैठा है जिसके ऊपर कपड़ा ढका हुआ है। द्रोण पास जाते हैं और जैसे ही कपड़े को उघाड़ते हैं तो चौंक पड़ते हैं क्योंकि अंदर कोई व्यक्ति नहीं, अंदर गुरु द्रोणाचार्य की ही प्रतिमा स्थापित होती है और तब संसार के सामने यह सत्य स्थापित होता है कि अगर किसी भी व्यक्ति में कुछ बनने की लगन हो तो व्यक्ति के लिए मिट्टी के द्रोण भी वही काम करते हैं जो कोई जीवित गुरु किया करता है। गुरु-कृपा से भी बड़ी चीज़ है लगन।
व्यक्ति के भीतर कुछ बनने का जज़्बा हो, लगन हो तो कौन व्यक्ति है जो अपने-आप को ग़रीब कहता है, अनपढ़, अज्ञानी, मूर्ख या गँवार कहता है । हम मूर्ख या गँवार रहे तो इसलिए क्योंकि हमने अपने-आपको कभी गंभीरता से नहीं लिया। ज्ञान न चढ़ पाया तो इसका एकमात्र कारण है आप अपने आपके प्रति गंभीर हुए ही नहीं। गंभीर होकर देखो, लगन लगाकर देखो, फिर देखो कि किस तरह से ज्ञान चढ़ता है कि धन और धर्म का अर्जन होता है, साधना सफल होती है।
सफलता के रास्ते पर चलने का पहला आधार है कड़ी मेहनत । दूसरा आधार है जो कुछ भी करें पूरे मन से, पूरी तबीयत से कीजिए। दुष्यन्त ने ठीक ही कहा था कि कौन कहता है आसमान में छेद नहीं हो सकता, एक पत्थर तुम तबियत से उछाल कर तो देखो। तुम पाओगे आसमान में भी छेद हो गया। यानी
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