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________________ शख्सियत की ज़रूरत होती है वो है कार्य के प्रति लगन। ___ईश्वर ने हमें दो हाथ दिए हैं। माना पेट का सवाल है । पेट भरने के लिए सौ-सौ तरह के पाप-पुण्य करने पड़ते हैं ।मगर कुदरत की व्यवस्था देखिए कि कुदरत पेट एक देती है मगर उसे भरने के लिए हाथदो-दो देती है। कंधे-कंधे मिले हुए हैं, क़दम-क़दम के साथ है, पेट करोड़ों भरने हैं, पर उनसे दुगुने हाथ हैं। यानी पेट एक, हाथ दो। अब आप सोच सकते हैं कि हाथ किसके लिए हैं ? पहले 'क' आता है, फिर 'ख'। पहले करो फिर खाओ। मेहनत से जी मत चुराओ। लगन से अगर मेहनत करोगे तो मेहनत अपना परिणाम देगी। गुरु के पास शिष्य सौ-सौ आते हैं, मगर अर्जुन उनमें कोई एक-आध बनता है। व्यापार सौ लोग शुरू करते हैं, उनमें से सफल कोई-कोई ही होते हैं ? इसका कारण यह न समझें कि जो व्यापार में सफल हुआ, वह कोई बड़ी क़िस्मत वाला है। हक़ीकत तो यह है कि अर्जुन और अर्जुन के साथ आने वाले सौ-सौ राजकुमार भी क़िस्मत वाले और पुण्यशाली ही रहे होंगे पर फिर भी उनमें यदि कोई व्यक्ति अर्जुन बना तो सोचो कि सफलता का राज़ क्या है ? सफलता का एक मात्र राज़ है : व्यक्ति की लगन । व्यक्ति के मन में पलने वाली यह लगन कि मैं अपनी जिंदगी में कुछ बनकर रहूँगा – यह संकल्प और लगन ही उसे सफलता के शिखर की ओर ले जाने वाला रास्ता देगी। जब तक मन में यह लगन पैदा न होगी कि मैं कुछ बनकर रहूँगा तब तक मानकर चलें कि वह बाप-कमाई पर जीता रहेगा। वह अपनी कमाई पर, अपने पाँव पर खड़ा न हो पाएगा। बाप की कमाई पर ऐश करना है तो अलग बात है, साल दो साल कर लोगे। अगर बेटा कपूत निकल गया तो बाप की कमाई कितनी भी क्यों न हो, झोलियाँ और तिजोरियाँ खाली करते देर नहीं लगाएगा। अगर लगन पक्की है तो ऐसा नहीं है कि आदमी को बनने के लिए किसी द्रोणाचार्य की ज़रूरत पड़ती है। लगन लग जाए और जीवन में कुछ कर गुज़रने का दृढ़ संकल्प जग जाए, तो आदमी द्रोणाचार्य तो क्या, द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति से भी अपने जीवन में विकास के रास्ते खोज लेता है। मिट्टी के द्रोणाचार्य भी उसके लिए प्रेरक बन जाते हैं । अर्जुन तो द्रोण से अर्जुन बना होगा, पर एकलव्य तो द्रोण की मिट्टी की मूर्ति से भी सीख गया। विद्यार्थियों के लिए यह अत्यन्त प्रेरक बात है। लोग एकलव्य की, 'अर्जुन की आँख' वाली घटना को जीवन में हर क़दम पर याद रखें। मेरे देखे. बस व्यक्ति के मन में बनने की दिली चाहत होनी चाहिए, बनने की लगन होनी चाहिए, बनने का जज़्बा होना चाहिए। याद रखिए, माँ के पेट से केवल शरीर का निर्माण होता है, पर बाद में क्या बनना है यह तो आपकी कड़ी मेहनत और आपकी लगन पर ही निर्भर JUEE 112 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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