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जीवन की 'सनलाइट' देखे। जब नया वर्ष लगे, तब पटाखे न छोड़ें, आधे घंटा धीरज से बैठकर सालभर में क्या करना है, उसे डायरी में नोट कर लें। साल में बारह महीने होते हैं, हम दस बिंदु ही नोट कर लें और मानसिकता बना लें कि इस वर्ष मैं ये दस काम करूँगा। हम दस में से आठ संकल्प भी पूरे करने में सफल हो गए तो हम कमल के फूल हैं। छह संकल्प भी पूरे कर चुके तो गुलाब के फूल की तरह हैं। पाँच संकल्प पूरे कर चुके तो गुडहल के फूल हैं, पर अगर हम तीन संकल्प भी पूरे न कर पाए तो हम केक्टस के कांटे हैं। तब हमारी औकात शेखचिल्ली के अलावा और कुछ नहीं है।
यदि आप सालभर का संकल्प निर्धारित न कर पाएँ तो एक महीने का ही संकल्प निर्धारित कर लें। हमारा कोई भी महीना ऐसा न बीते जिससे हम संतुष्ट न हो पाएँ। हर महीने का परिणाम हमारे सामने होना चाहिए। ज़िंदगी इसलिए न जीएँ कि मौत नहीं आई। ज़िंदगी इसलिए जीएँ कि जिंदगी को जीना हमारा हक और अधिकार है।
महीने का संकल्प न बना पाएँ तो सप्ताह का संकल्प बना लें। सप्ताह का भी संकल्प और लक्ष्य न बना पाओ तो हर सुबह उठते ही हर दिन का लक्ष्य निर्धारित कर लें। बगैर लक्ष्य और बगैर संकल्प की क्रियान्विति के हमारा दिन अर्थहीन है। हममें से हर किसी के जीवन का परिणाम अवश्य निकलना चाहिए। जिनके हाथ में परिणाम हैं वे प्रणाम के योग्य हैं। परिणाम ही यह तय करते हैं कि हम जीवन की परीक्षा में पास हुए या फेल।
हो गई है पीर पर्वत-सी, पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। निष्क्रियता की जिंदगी बहुत जी ली। अब तो जिंदगी के हिमालय से कोई-न-कोई गंगा ज़रूर निकलनी चाहिए। मुँह लटकाए बहुत जी लिए। अब तो सूरत बदलनी चाहिए। आग केवल दिल में छुपाने के लिए नहीं होती। अब तो आग का शम्मा जलना चाहिए। हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए। कुछ ऐसा हो की जीवन का रंग निखर कर आए, जीवन बदरंग न हो।
समाज में, दुनिया में वे लोग जीएँ जिनके भीतर उत्साह है, ताकि वे सफलता और आनंद के पुष्प हर जगह खिला सकें । कैक्टस के कांटे खिलाने के लिए न तो भगवान ने हमें जन्म दिया है न ही समाज को ऐसे
अब तो
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