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________________ लोगों की ज़रूरत होती हैं। कुछ सार्थक पैदा करें, बाँझ बनकर न जीएँ। यह सृजनात्मकता आएगी आत्मविश्वास और मनोबल से, एक बेहतर मानसिकता से, उत्साहपूर्ण रवैया अपनाने से। परिस्थितियों का सामना करने का सामर्थ्य हमारे भीतर आत्मविश्वास से ही जगेगा। परिस्थितियाँ किसके सामने विपरीत नहीं होती? राम को भी विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था। महावीर और मोहम्मद को, कृष्ण और कबीर को, नानक और नरसैया को भी विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था, पर विपरीत परिस्थितियों को पाकर हम अपने आपको उनका गुलाम न बना बैठें। आत्मविश्वास जगाते हुए उन परिस्थितियों का सामना करें। अपनी बुद्धि का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करें, तो विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में भी हम सबल और सफल हो सकते हैं। हम अगर अपनी जिंदगी में उत्साहभाव का संचार करते हैं, हीन भावनाओं को अपने दिमाग से निकाल देते हैं, भय-डर और दब्बूपन के भाव को दिमाग़ से निकाल फेंकते हैं तो हम जिंदगी को ज़रूर सफलता के नये आयाम दे सकेंगे। जिंदगी में डरे नहीं, रुके नहीं, हालातों के आगे झुके नहीं। संघर्ष करें। संघर्ष ही फलदायी होता है। संघर्ष ही कसौटी होता है। संघर्ष से ही हमारे आत्मबल और मनोबल की परीक्षा होती हैं। ज़िंदगी में दब्बूपन काम का नहीं होता। गब्बरसिंह का वह डायलोग हमेशा याद रखें - 'जो डर गया सो मर गया।' आपने और मैंने, अपन सभी ने बचपन में शोले फिल्म देखी है। शोले वास्तव में फिल्म नहीं वरन् संघर्ष की दास्तान है। जीवन में जूझना कैसे चाहिए यह हमें शोले से सीखने को मिलता है। मौत ज़िंदगी में दो बार नहीं आती। मौत केवल एक बार आती है और वक़्त से पहले आना मौत के भाग्य में नहीं है। फिर हम किस बात को लेकर डरें? सामना करें, चाहे जैसी स्थितियाँ बने । अंतत: हम उन स्थितियों का सामना करने में खुद सफल हो जाएँगे। कछुए और खरगोश की कहानी को हमेशा याद रखें। यह वह कहानी है जो कि हमें चुनौतियों का सामना करने का संबल देती है। खरगोश जीते, इसमें कोई नई बात नहीं है, पर कछुआ जीत जाए यह बड़ी बात है । आँख वाला पहुँच जाए, तो बड़ी बात नहीं है, पर अंधा भी पहुँच जाए यह उल्लेखनीय बात हुई। क्या आपने कभी सोचा कि कछुआ क्यों जीता? हालांकि कछुआ अपनी औकात जानता था, पर इसके बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी और खरगोश की शर्त उसने स्वीकार कर ली। वह निरंतर चलता रहा। खरगोश उससे काफी आगे बढ़ गया तब भी वह न रुका। वह चलता रहा, चलता रहा और जो निरंतर चलता रहेगा, प्रयत्न करता रहेगा वह अपनी मंज़िल पा ही लेगा। आप भी निरंतर कोशिश करते रहिए। निरंतरता को अपने जीवन की नींव बनाइए । जहाँ निरंतरता का तानाबाना गूंथा जाता है, वहाँ नये इंद्रधनुष ज़रूर दिखाई देते हैं। मन में अगर हीनभावना है तो उसे निकाल फेंको।अपनी योग्यतााओं को कभी भी कम मत आँको । न अपनी क्षमताओं को कभी कमजोर समझो। अपने मन में गलत मान्यताएँ और धारणाएँ स्वीकार न करें। अगर TEE 81 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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