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एक घटना के साथ अपनी बात समाप्त करता हूँ। देश के भावी कर्णधार मंच पर एकत्रित थे। गाँधी जी उस सभा की अध्यक्षता कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि सामने जनता के बीच उनके बचपन के गुरुजी बैठे हुए हैं । वे मंच से उतरकर नीचे जनता के बीच अपने गुरु जी के पास आए, उन्हें प्रणाम किया और उन्हीं के पास बैठ गए। गुरुजी ने सोचा - यह तो बहुत महानता है कि इतना लोकप्रिय व्यक्ति मंच छोड़कर अपने गुरु के पास आ बैठा। दस-पंद्रह मिनट बाद गुरुजी ने गांधी जी से कहा, 'जाओ बेटा, बहुत हो गया, अब जाकर मंच का संचालन करो, वहाँ अध्यक्षता करो।'
गांधीजी ने कहा – 'गुरुजी, आप मंच की चिंता छोड़ें। आपने गांधी को इतना सुयोग्य बना दिया है कि वह ज़मीन पर बैठकर भी देश का संचालन कर सकता है।'
अरे, चाहे नीचे बैठे या ऊपर, पर गुरु के प्रति यह जो विनम्रता और आदर की भावना है - यही व्यक्ति की सकारात्मकता और महानता है। आप विनम्र बनें और खुशमिज़ाज रहें, मुस्कान से भरे रहें और मधुर भाषा बोलें। आपके धन्य जीवन के लिए इतना ही पर्याप्त है।
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