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________________ श्रेष्ठ कर्म खुद से ही कीजिए धर्म की शुरुआत Jain Education International पहला धर्म दुनिया में इस समय लगभग उतने ही धर्म हैं, जितने वर्ष में दिन हुआ करते हैं। उन धर्मों के हज़ारों, लाखों और करोड़ों अनुयायी हैं। इन सभी धर्मों की मंगल प्रेरणाएँ समग्र मानवजाति के कल्याण से जुड़ी हुई हैं । इस सृष्टि के लिए अगर सबसे बड़ा कोई वरदान है, तो वह स्वयं धर्म ही है । धर्म मानवता की मुंडेर पर मोहब्बत का जलता हुआ चिराग़ है। धर्म, अहिंसा और प्रेम का अमृत अनुष्ठान है। धर्म गति है, शरण है, प्रतिष्ठा है, इंसानियत की इबादत है । winto धर्म इंसान को इंसान के काम आने की प्रेरणा प्रदान करता है । धर्म आदमी को जीने की कला देता है कि वह स्वयं भी सुख से जीये और औरों को भी सुख से जीने दे । दुनिया के हर धर्म के मूल संदेश, मूल भावनाएँ और मूल प्रेरणाएँ एक ही हैं, उनमें कोई भेद नहीं हैं। भेद सारे दीयों में होते हैं, ज्योतिर्मयता में कोई For Personal & Private Use Only LIFE 131 www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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