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जीवन में जितना उसे जी सकते हो, अधिकाधिक जीने की कोशिश करो।
अपनी दृष्टि को सदा विराट रखो। महावीर से अनेकान्त की बात सीखो और हर किसी परम्परा से, धर्म से, संस्कृति से, महापुरुष से, संस्कृति से अच्छाई ग्रहण करने की कोशिश करो। जो बातें हमारे जीवन को
और अधिक सरल-सहज-सहृदय बनाए, उन्हें ग्रहण करने के लिए प्यार से चातक की तरह प्रयत्नशील रहो। अपने आपको किसी गुरुडम या परम्परा विशेष से जोड़ने की बजाय अपने आपको धार्मिक बनाने के प्रयास ही दमदार होते हैं।
सबका सम्मान करो, सबके जीवन का सम्मान करो। धर्म का पहला सूत्र है : सत्यनिष्ठ जीवन जीओ। धर्म का दूसरा मंगलकारी सूत्र है : ज़रूरत से ज्यादा संग्रह मत करो और वक़्त-बेवक़्त औरों के काम आने की भावना रखो। धर्म का तीसरा सूत्र है : अपने शील, चरित्र और प्रामाणिकता पर दृढ़ता से कायम रहो। धर्म का चौथा सूत्र है : अपने विचारो को किसी पर थोपो मत । यदि कोई बुरा व्यवहार कर भी दे, तब भी अपनी ओर से सकारात्मक व्यवहार करो।
बड़े छोटे-छोटे सूत्र हैं जो धर्म को आपके, मेरे, सबके जीवन को प्रकाशित कर सकते हैं । सबके श्रेय और सुख को साध सकते हैं । मेरा अनुरोध यही है कि धर्म के नाम पर जीवन में ऊपर की लीपापोती करने की बजाय उसे अपने वास्तविक जीवन में आत्मसात् होने दो। फिर देखो धर्म किस तरह हमें हमारे भीतर के नरक से मुक्त करता है और किस तरह हमें अपने वास्तविक स्वर्ग का सख प्रदान करता है। धर्म से मैंने जीवन का सुख और स्वर्ग पाया है। आप या हर कोई इसे पा सकता है। स्वर्ग आपके इर्द-गिर्द ही है। उसकी ओर ध्यान दो तो वह हमारा हो जाएगा, हमें उसके साथ आत्मसात् हो जाना चाहिए।
LIFE 143
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