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________________ पैदा ही न होने दो। थोड़ा मौन रहने की आदत भी डालिये। सबसे भली और सबसे मीठी चुप। देते गाली एक हैं, उलटे गाली अनेक, जो तू गाली दे नहीं, तो रहे एक-की-एक। दूसरे के क्रोध को स्वीकार मत कीजिए। वह स्वभाव से क्रोधी है तो क्या, आप तो नहीं? उसकी नाराज़गी को अस्वीकार कर दीजिए। उसका क्रोध उन्हें ही मुबारक हो। अगर आपने उसके क्रोध को स्वीकार कर लिया तो आप पर भी क्रोध हावी हो जाएगा। एकमात्र क्रोध ऐसा कषाय है जिससे हमारी आत्मा भी गिरती है, मन में संत्रास पैदा होता है, हमारे संबंध भी कटते हैं। पर यह सब केवल कहने-सुनने से क्रोध कम नहीं होगा। क्रोध तब कम होगा जब हम क्रोध के दुष्परिणामों को समझेंगे, इससे बचने का संकल्प लेंगे, होश और बोधपूर्वक जिएँगे, हे जीव ! शांत रह' - इस संदेश को जीने का प्रयत्न करेंगे। सबके साथ विनम्रता से पेश आइये, गुस्से का वातावरण नहीं बनेगा। हर समय प्रसन्न रहने की आदत डालिये। जैसे ही सुबह आँख खुले एक मिनट तक भरपूर मुस्कुराइये। ऐसे मुस्कुराइये कि आपका रोम-रोम खिल उठे। प्रत्येक कार्य को करने के पहले मुस्कुराइये। माता-पिता को प्रणाम करना हो या किसी से मिल रहे हों, ऑफिस पहुँचे हों या दुकान, अतिथि-सत्कार करना हो या किसी से बात करना हो, पहले मुस्कुराइये। आप पाएँगे कि परिस्थितियाँ आपके अनुकूल होती जा रही हैं। विपरीत वातावरण में भी मुस्कुराने की आदत डालिये। जिंदगी में सदा मुस्कुराते रहें, फासले कम करें और प्रेम करना सीखें। ताने मारना छोड़ें और प्रेम करना सीखें। याद रखें माचिस की तीली के सिर होता है, पर दिमाग़ नहीं । अत: वह थोड़े से घर्षण से जल उठती है, पर हमारे पास तो सिर भी है और दिमाग़ भी, फिर हम क्यों ज़रा-ज़रा सी बात पर सुलग उठते हैं। हमें तो अपनी बुद्धि का उपयोग करना है और विवेकपूर्वक अपने गुस्से पर नियंत्रण रखना है। मै एक ख़ास कहानी का उपयोग कर रहा हूँ। कहते हैं : बादशाह हारूँ रशीद के बेटे ने अपने पिता से आकर राजसभा में ही कहा – अमुक सेनापति के लड़के ने आज मुझे माँ-बहिन की ग़ाली दी है। इस पर मंत्रियों में से किसी ने कहा – सेनापति के लड़के को देश-निकाला दे देना चाहिए। कोई बोला – उसकी ज़बान खिंचवा देनी चाहिए, जिसने राजकुमार को ग़ाली दी हो। किसी ने सलाह दी – उसे फ़ौरन सूली पर चढ़ा देना चाहिए। आख़िर बादशाह ने बेटे को समझाते हुए कहा – बेटा, अगर तुम अपराधी को माफ़ कर सको, तो यह सबसे अच्छी बात होगी। और, अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो तुम भी उसे ग़ाली दे सकते हो, लेकिन ऐसा करने से पहले ज़रा इतना सोच लो कि ग़ाली देना तुम्हें शोभा देगा? UFE 29 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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