SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सीख ले जाइए कि जैसे काग़ज के बिखरे टुकड़ों को वापस समेटना कठिन है, ऐसे ही मुँह से निकले शब्दों को वापस लेना मुमकिन नहीं है । इसीलिए कहता हूँ जब भी बोलें- शब्दों का चयन सावधानी से करें । किसी का उपहास न उड़ाएँ। किसी की मज़ाक न करें, किसी की आलोचना, निंदा, टिप्पणी न करें । अगर ग़लती हो जाए तो 'सॉरी' कह दें। बाहर के ही नहीं घर के लोगों से भी सम्मान से बोलिये। कुछ बातें और : तर्क ज़रूर कीजिए, पर तकरार मत कीजिए । तर्क रोशनी है, पर तकरार आग है। सुअर से अगर कुश्ती लड़ेंगे तो कपड़े तो गंदे होंगे ही। मूर्खों से सरपच्ची करने की बज़ाय समझदार लोगों से ही वार्ता कीजिए। सुबह उठकर सबको प्रणाम कीजिए, सबसे मीठा बोलिए, घर आए अतिथि का सत्कार कीजिए। अपना व्यवहार सरल और मृदु बनाएँ, आपका व्यवहार आपके गुणों का आईना है । हल्का मत बोलिए। आपका व्यवहार ही ग्राहक के दिल को जीतता है, माता-पिता को अपना बनाता है, सास-ससुर के आशीर्वाद लेता है, समाज में इज़्ज़त और सम्मान दिलाता है। औरों की प्रशंसा करने की आदत डालें। तारीफ़ सुनकर तो चींटी भी पहाड़ लांघ जाया करती है । आलोचना सुनकर तो घरवाली भी मुँह सूजाकर बैठ जाएगी। आख़िरी बात और निवेदन कर दूँ कि अपनी नज़रों को हमेशा संयमित रखिए। ग़लत नज़र आपकी सोच, व्यवहार, वाणी सबको ग़लत बनाती जाएगी, वहीं अच्छी नज़र सोच, वाणी और व्यवहार को अच्छा रखेगी। रावण के बीस आँखें थी पर नज़र सिर्फ़ एक औरत पर थी, जबकि आपके दो आँखे हैं, पर नज़र हर औरत पर है तो सोचो कि असली रावण कौन ? स्मरण रखिए, आपका व्यवहार ही आपकी पहचान है। भगवान महावीर ने कहा था लिए चाहते हो वही तुम दूसरों के लिए चाहो । जो तुम अपने लिए नहीं चाहते वह कभी चाहो । यही धर्म का सार है और यही आज का संदेश भी । Jain Education International - - जो तुम अपने दूसरे के लिए मत For Personal & Private Use Only LIFE 107 www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy