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________________ अच्छी बात बोलिए। ऐसा हुआ एक सज्जन की आदत थी कि कोई उनके यहाँ आता तो कहते, खाना खा लीजिए। अब सामने वाला एकदम तो हाँ नहीं कहता, कभी-कभार कोई “हाँ' कह देता तो वे उसे खाना खिलाते और आदतन कहते, 'अच्छा हुआ आपने खा लिया, नहीं तो फिजूल में कुत्तों को डालना पड़ता।' खाने वाले का क्या हाल होता, आप समझ सकते हैं । यह वाकय एक दफ़ा उनके जंवाई के साथ ही हो गया। जंवाई ऐसा रूठा कि फिर लौटकर उनके यहाँ नहीं गया। इसीलिए दूसरे का दिल दुखाने वाली बातें न बोलिए। हिम्मत ना हारिये, प्रभु ना बिसारिये, हँसते-मुस्कुराते हुए ज़िंदगी गुज़ारिये। जिसको इस तरह जीना आ गया है वह देवत्व की ओर अपने क़दम बढ़ा रहा है। ऐसा लगे कि व्यक्ति बोल नहीं रहा बल्कि उसके मुँह से फूल झर रहे हैं। सूरज की किरण से जैसे गुलाब खिल रहे हैं । मीठा बोलने में आपका कुछ लगता नहीं है। अरे, वचने किं दरिद्रता ! बोलने में कैसी दरिद्रता। जब भी बोलें सुन्दर शब्दों का चयन करके सलीके से बोलें । बुद्धिमान सोचकर बोलते हैं और बुद्धू बोलने के बाद सोचते हैं । जो शब्द मुंह से निकल गए वे वापस लौटने वाले नहीं हैं। काश पहले ही सोचकर बोला होता। सोचिये वही जिसे बोला जा सके। और बोलिये वही जिसके नीचे अपने दस्तख़त किये जा सकें। मुँह से निकले शब्द वचन बन जाया करते हैं, और वचन का मतलब होता है : प्राण जाय पर वचन न जाहि। हमारी ज़बान कोई कैंची नहीं है। इसे सुई की तरह बनाएँ जो टूटे हुओं को आपस में जोड़ सके। __ शब्द बहुत क़ीमती होते हैं। इसका प्रयोग सावधानी से कीजिए। वाणी ही लोकप्रिय बनाती है और शिखर पर पहुँचाती है और यही वाणी बेइज़्ज़त भी करवाती है। शायद इसीलिए भगवान ने जुबान में हड्डी नहीं दी है और इसकी रक्षा के लिए बत्तीस पहरेदारों के रूप में दाँत दिए हैं। अगर जीभ का ढंग से उपयोग करते रहे तो दाँत अंगरक्षकों का काम करेंगे वरना जीभ ने ढंग से काम न किया तो सारे दाँत बाहर आ जाएँगे। ___याद रखिए, हर बात सोचने की तो होती है, पर हर बात बोलने की नहीं होती। बोलते समय शब्दों का चयन सावधानी से करें। बुद्धिमान सोचकर बोलते हैं जबकि बुढू बोलकर सोचते हैं । जो बोला जा चुका है, उसे वापस नहीं लौटाया जा सकता। एक व्यक्ति ने किसी की निंदा की। बाद में जब उसे फिलिंग हुई कि उसने ग़लत किया। वह व्यक्ति हमारे पास आया। उसने कहा, 'मैं अपने कहे हुए शब्द वापस कैसे लूँ?' मैंने देखा, मेरे पास काग़ज के कटे हुए कई टुकड़े पड़े थे। मैंने निवेदन किया, मैं आपको ज़वाब दूं, उससे पहले आप काग़ज के इन टुकड़ों को चौराहे पर रख आइए। वे गए टुकड़े चौराहे के बीच में रख आए। वापस लौटे, तो मैंने कहा, ग़लती हो गई। ज़रा वापस उन टुकड़ों को ले आइए। वे वापस गए, पर खाली हाथ लौटकर आए। मैंने पूछा, काग़ज के टुकड़े नहीं लाए? बोले, वे तो हवा के झोंको से सारे इधर-उधर उड़ गए। मेंने कहा, जीवन भर के लिए 106 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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