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________________ मुस्कुराओ, पर किसी की मज़ाक मत उड़ाओ। हँसो अवश्य, पर किसी दूसरे पर मत हँसो वह उपहास हो जाएगा। राम की तरह मुस्कुराओ। राजमहल में हैं तब भी मस्त और वनवास की वेला है तब भी प्रसन्न। कोई सम्मान दे दे, तब भी प्रसन्न और कोई टेढ़ी टिप्पणी कर दे, तब भी सहज। उतार-चढ़ाव, हानि-लाभ, मान-अपमान – दोनों ही परिस्थितियों ने सहज और प्रसन्न रह लेना यही तो है जीवन जीने की कला। ___ तीसरी बात, सभी के साथ सभ्यता, शिष्टता और नम्रता से पेश आएँ । सम्मान लेने की नहीं, देने की ख्वाहिश रखें । फूलों के हार दूसरों को पहनाओ। ख़ुद पहनने की इच्छा मत रखो। फूलों की माला पहनने वाला नहीं अपितु पहनाने वाला बड़ा होता है। दूसरों को सम्मान देकर प्रसन्न होइए। जो सम्मान पाकर प्रसन्न होते हैं वे अहंकारी और घमंडी किस्म के लोग होते हैं। लोग हमसे कहते हैं आप तो संत हैं फिर प्रणाम क्यों करते हैं। अरे भाई, आप इतनी विनम्रता से हमें प्रणाम करते हैं क्या हम इतने गये-गुज़रे हैं कि आपके प्रणाम का ज़वाब प्रणाम से न दें। कोई साधु बन गया है तो वह गृहस्थ से दोगुना अच्छा है और गृहस्थ उसे झुक-झुककर प्रणाम कर रहा है तो क्या साधु का यह फ़र्ज़ नहीं है कि वह पुनः गृहस्थ को प्रणाम करे। क्योंकि साधु तो गृहस्थ से दोगुना श्रेष्ठ है । मैं देखा करता हूँ कि एक परम्परा के संत को दूसरी परम्परा के संत से मिलने पर प्रणाम करने में तकलीफ़ होती है। किसी भी परम्परा के संत का आपके द्वार पर आना सौभाग्य की बात है इसलिए उनकी चरण-रज ज़रूर अपने माथे पर लेनी चाहिए। अगर एक संत दसरी परम्परा के संत को प्रणाम न कर पाए तो समझना अभी उसमें संतत्व आया नहीं है। अरे भाई, धोबी-धोबी भी आपस में मिलते हैं तो एक-दूसरे को प्रणाम करते हैं, राम-राम करते हैं, हम क्या धोबी से भी हल्के हो गए जो एक-दूसरे को प्रणाम न करें। यह व्यवस्था या परम्परा ग़लत है कि एक परम्परा के संत दूसरी परंपरा के संत को प्रणाम नहीं करेगा। अरे भाई, धर्म की तो शुरुआत ही विनय से होती है। अगर आपने प्रणाम किया तो समझ लेना अभी धर्म की एल.के.जी. भी पास न कर पाए। इसलिए सबको सम्मान दीजिये, सम्मान पाइये। कहते हैं : फ्रांस का राजा हेनरी अपने सैनिकों के साथ सड़क पर से गुज़र रहा था कि रास्ते में एक भिखारी ने उसे देखकर टोप उतारकर तीन बार झुककर अभिवादन किया। जब हेनरी ने उसे ऐसा करते देखा तो सम्राट ने भी अपना टोप उतारा उसे सलाम किया और आगे बढ़ गया। उनके प्रधानमंत्री ने कहा, 'राजन्, यह कैसा शिष्टाचार है. एक भिखारी ने आपको प्रणाम किया और आपने भी उसे प्रणाम किया यह तो राजा के स्टैण्डर्ड के विपरीत बात है।' हेनरी ने कहा, 'एक उम्रदराज भिखारी ने मुझे प्रणाम किया तो क्या मैं इतना अशिष्ट बनूँ कि उसके प्रणाम का ज़वाब भी न दूँ। मैं दुनिया में यह संदेश नहीं देना चाहता कि एक भिखारी इतना महान् है कि उसने राजा को प्रणाम किया और राजा इतना गर्वीला है कि उसने ज़वाब तक नहीं दिया।' प्रणाम का ज़वाब प्रणाम से दीजिए, सम्मान का ज़वाब सम्मान से दीजिए। अच्छा व्यवहार कीजिए, MEE 105 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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