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________________ कसौटी होती है। यह तो तय है जो आज़ादी के आंदोलन में कूदेंगे उन्हें शहीद भगतसिंह होना होगा। जो छात्र । पढ़ाई करेंगे उन्हें कभी फेल भी होना पड़ेगा। जो लोग व्यापार करेंगे उन्हें कभी नुकसान भी झेलना होगा। जो लोग रिश्ते बनाएँगे उन्हें रिश्तों की मिठास के साथ उसकी खटास भी झेलनी होगी। आप सोचो कि पति सदा प्रियतम बना रहे और पत्नी प्रियतमा तो प्रकृति की व्यवस्थाओं में ऐसा संभव नहीं है। व्यक्ति कभी उखड़ता भी है, कभी ऊबता भी है, कभी खीझता भी है। अब यह इंसान का मूड है, कब किस रास्ते पर मुड़ जाए कोई पता नहीं है। मुझे जल्दी से कभी कोई बात बुरी नहीं लगती, विपरीत हालात मुझ पर हावी नहीं होते क्योंकि मुझे जीवन का यह रहस्य भली-भाँति ज्ञात है कि संसार में सब कुछ परिवर्तनशील है। यहाँ कोई भी चीज़, कोई भी परिस्थिति और कोई भी व्यक्ति, उसका कोई भी व्यवहार स्थाई नहीं है। जो लोग यहाँ सम्मान देते हुए दिखाई देते हैं वे ही कभी अपमान का ज़हर पिला देते हैं । जो लोग कभी आलोचना करते थे आज वे ही जन्म-जन्म के मीत बन जाते हैं। किसके जीवन में कल क्या होगा, इसे कोई नहीं जानता। दुनिया यूँ ही चलती रहेगी। तुम साथ चलो तो अच्छा और न चलो तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला। बचपन में सुना हुआ वह गीत जीवन में कई दफ़ा काम आता है – 'समझौता ग़मों से कर लो, ज़िंदगी में ग़म भी मिलते हैं। पतझड़ आते ही रहते हैं, मधुबन फिर भी खिलते हैं।' कभी सरोवर या सागर के किनारे बैठकर प्रकृति की व्यवस्थाओं को समझने की कोशिश करो। देखो कि सागर में किस तरह लहरें उठती और विलीन होती हैं। शांत सरोवर भी कई दफ़ा लहरों से आंदोलित हो जाता है। मैं कहूँगा कि कभी आप लहरों को देखिए और कभी अपने आप को। जैसे लहरें उठती और गिरती नज़र आती हैं ऐसे ही लोग भी, लाभ भी, हालात भी, रिश्ते भी उठते और गिरते नज़र आएँगे। यदि आपको इस दौरान प्रकृति का मर्म समझ में आ गया तो आप हर हालात से ऊपर उठ जाएँगे। मेरी भाषा में यही आपका मोक्ष है। मैं नियतिवादी नहीं हूँ, मैं पुरुषार्थवादी हूँ, पर मैं नियति की व्यवस्थाओं को स्वीकार अवश्य करता हूँ। नियति और प्रकृति की व्यवस्थाओं को समझ लेने के कारण ही मैं दु:ख और पीड़ाओं से बचा हुआ रहता हूँ। आप भी पुरुषार्थ करें, पर पुरुषार्थ करते हुए जब हार खा बैठे तो उसे नियति की सहज व्यवस्था मानकर ख़ुद को फिर से सहज कर लें। ध्यान रखें सहजता में ही शांति की आत्मा समाई हुई है। मैं सहज जीवन जीता हूँ, सहज मार्गी हूँ। आरोपित, दिखाऊ या बनावटी जीवन अंतत: दुःख का ही कारण बनता है। प्रकृति सहज है, सूरज और चाँद सहज हैं, फूल और काँटे सहज हैं, हम भी सहज हों। सहजता ही शांति है, सहजता ही दिव्यता है, सहजता ही मुक्ति है। यदि किसी के द्वारा हमारे प्रति बुरा व्यवहार हो जाए तो कृपया आप उसका बुरा न मानें । उसके पास शांति का बोध नहीं है, उसका अपने आप पर नियंत्रण नहीं है, इसी वजह से उसने हमारे प्रति बुरा व्यवहार ATER 53 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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