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संत युसुफ़ मुस्कुराए और अपने रहस्यमयी अंदाज़ में कहा, 'मेरे पास पानी के लिए बर्तन नहीं था। मुझे नदिया के किनारे यह बोतल और प्याला ऐसे ही पड़े हुए मिल गए। मैंने उन्हें धोया और अपने पानी पीने के लिए इस बोतल और प्याले को रख लिया।' सौदागार ने कहा, 'महाराज, बदनामी तो इसी कारण हो रही है।' संत युसुफ़ दुबारा उसी रहस्यमयी हँसी को दोहराते हुए कहने लगे, 'अरे भाई, इसीलिए तो मैंने यह बोतल और यह प्याला अपने पास रखा हुआ है। बदनामी के कारण ज़्यादा लोग मेरे पास नहीं आते । मैं खुद भी यही चाहता हूँ कि मेरे पास लोग कम आएँ, ताकि मैं अधिक-से-अधिक समय ईश्वर की इबादत में लगा रहूँ। सौदागर ज़रा सोचो कि अगर मेरी बदनामी न होती तो तुम अपनी सुन्दर दासी मेरे पास न छोड़ जाते? देखा, मैं कितने फ़ायदे में हूँ जो हर झंझट से बचा हुआ हूँ।'
कितनी ग़ज़ब की अलमस्ती है यह। फ़क़ीरी और इबादत को जीने के लिए बदनामी भी मंजूर है। दुनिया की तो फ़ितरत ही यही है कि यहाँ इज्ज़त कम और बेइज्जती ज़्यादा मिलती है। यहाँ सम्मान कम, अपमान ज़्यादा मिलता है। सफलता के अवसर कम, विफलता के अवसर ज़्यादा मिलते हैं। हर किसी सफलता के पीछे विफलताओं की कहानी समाई हुई रहती है। आख़िर दुनिया में कोई भी इंसान ऐसा नहीं है जिसे हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश और सफलता-विफलता का सामना न करना पड़ा हो । यदि हम प्रकृति और नियति की व्यवस्थाओं को अपने दिलोदिमाग़ में जगह नहीं देंगे, उसके प्रति विश्वास नहीं करेंगे तो हर कोई आदमी अपने एक जीवन में दस दफ़ा नहीं, सौ दफ़ा आत्महत्या करने को प्रेरित हो उठेगा। आत्महत्या पाप है, अपराध है। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। आत्महत्या से तो और सत्तर समस्याएँ खड़ी होती हैं । समस्या का समाधान है - आप अपनी मानसिकता को बदलें।
जब मौसम और हवाएँ एक-सी नहीं रहतीं, पौधे सदा हरे-भरे नहीं रहते, खिले हुए फूलों को भी कभी-न-कभी बिखरना और मुरझाना पड़ता है, तो फिर हम और हमारी परिस्थितियाँ भी सदा एक जैसी कैसे रह पाएँगी! परिवर्तन ही प्रकृति का धर्म है । यह धर्म मेरे साथ भी लागू होगा और आपके साथ भी। अपन सभी प्रकृति के एक हिस्से हैं । दुनिया का कोई भी तत्त्व प्रकृति की व्यवस्था से ऊपर नहीं है। प्रकृति की व्यवस्था सब पर लागू होती है। भगवान महावीर को पूजने वाले भी काफी मिले होंगे, तो कानों में कीलें ठोकने वाले भी अवश्य मिले। जीसस को चर्च में लाखों अनुयायी मिले, तो सलीब पर चढ़ाने वाले लोग भी ज़रूर मिले। ज़रा भगवान राम के जीवन पर विचार करके तो देखें कि उन्हें अपने जीवन में लगातार दुःख, पीड़ा, विरह और संकटों का ही सामना करते रहना पड़ा। राम को अपने जीवन में इतनी पीड़ाएँ झेलनी पड़ी कि उनका अवतार-जीवन केवल एक तपस्या बनकर रह गया। पर प्रश्न है कि राम फिर भी क्या हारे? जो हार में भी जीत का रास्ता निकालता रहे, पीड़ा में भी क्रीड़ा का गेम खेल ले, उसी का नाम ही तो राम है।
___ आदमी की वीरता महावीर नाम रख लेने से नहीं होती, संकटों का सामना करने में ही महावीर की
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