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________________ किया, बुरी भाषा बोली, बुरा आचरण किया। क्या कोई भी समझदार आदमी भला किसी को टेढ़ी भाषा क्यों बोलेगा? किसी के द्वारा गाली निकालने का मतलब ही यही है कि उसमें इतनी अक्ल नहीं है कि वह सही शब्दों का चयन कर पाए । गाली-गलौच-गुस्सा – ये सब नासमझी की निशानी हैं । मूर्ख लोग गुस्सा करते हैं और समझदार लोग परिस्थिति पर विजय प्राप्त करते हैं। __ आप स्वयं को पोज़िटिव बनाएँ। नेगेटिविटी ही अशांति को बढ़ावा देती है, ईर्ष्या और बुरा व्यवहार करवाती है, गुस्सा और आवेश दिलाती है। वहीं पोजिटिविटी शांति को जन्म देती है, प्रेम और मुस्कानभरा व्यवहार करवाती है, परिस्थितियों पर विजय दिलवाती है। जीवन की बाज़ी को जीतने का पहला हथियार ही है – पोजिटिविटी। सकारात्मकता हर समस्या का समाधान है, हर समस्या का तोड़ है। मेरे लिए तो सारा जीवन ही एक तप है। विपरीत हालातों पर विजय प्राप्त करते हए जीवन को जीना अपने आप में एक तपस्या ही है। दुश्मन को भी सम्मान देना, अपमान देने वालों को भी मुस्कान लौटाना, नुकसान हो जाने पर भी समता और मस्ती को जीना किसी तपस्या से कम नहीं है। इसलिए किसी के ग़लती कर जाने पर गुस्सा मत कीजिए। ग़लती होना पहली ग़लती है, पर ग़लती पर गुस्सा करना दूसरी ग़लती है। क्या हम ग़लतियों का ही इतिहास दोहराते रहेंगे या अच्छाई और भलाई के भी बीज बोएँगे? __लोग क्या कहेंगे, इसकी भी ज़्यादा परवाह मत कीजिए। यह जो एल.के.के.' वाला मामला है न, कि 'लोग क्या कहेंगे' यह न किसी को जीने देता और न ही मरने देता है। बिल्कुल लिक्विड ऑक्सीजन वाली डालता है। लिक्विड हमें जीने नहीं देता और ऑक्सीजन हमें मरने नहीं देता। आप तो वह करें जिसे करना आप उचित समझते हों। लोगों के कहे-कहे चलोगे तो बंदे न इधर के रहोगे न उधर के। अपनी हालत त्रिशंकु की तरह मत बनाओ कि न आकाश के रहे न ज़मीन के। चाँद-तारों पर नज़र भले ही रखो. पर पाँव सदा ज़मीन पर टिकाए रखो। अपनी नज़रों को सदा सूरज पर केन्द्रित रखो ताकि हमें अपनी परछाई दिखाई न दे। सदा आगे बढ़ो, पीछे की मत सोचो। जो हो गया सो हो गया।होए का और खोए का क्या रोना? जो अभी तक आया ही नहीं उसके बारे में क्या सोचना? जो है, उसका आनंद लीजिए। जो है, उसमें संतुष्टि का अनुभव कीजिए। अब यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि अपन लोगों के पास पैसा भी है और सम्मान भी, फिर भी संतुष्टि नहीं है। अब जब संतोष ही नहीं है तो शांति कहाँ से होगी। कृपया प्रेक्टिकल बनिए। केवल शांति के सपने मत देखते रहिए, केवल शांति की बातें मत करते रहिए, केवल शांति के कबूतर मत उड़ाते रहिए। शांति चाहिए तो शांत रहने की आदत डालिए, शांतिप्रिय भाषा बोलिए। जिंदगी चार दिन की है, व्यर्थ में क्यों इतनी हाय-तौबा करते हैं ? सब यहीं छोड़-छुड़ाकर चला जाना है। अपने ‘माईत' भी अपना सब कुछ यहीं छोड़कर गए। हम सब भी यहीं छोड़कर जाएँगे। जैसे हम छोड़कर जाएँगे वैसे ही हमारे बच्चे भी अपने साथ कुछ नहीं ले जाएँगे। भले ही हम सब मुट्ठी बाँध कर CIFE 54 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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