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कोई परमानेंट क़िस्मत नहीं है । जो आता है सो जाता है, जो उगता है सो अस्त होता है तब फिर बाधाएँ और मुश्किलें कौन-सी हर वक़्त रहेंगी ? वे भी बदलेंगी।
मुश्किलें तो कसौटी होती हैं । स्वयं के धैर्य की कसौटी, दोस्तों की कसौटी। इस बहाने ही सही, पता चल जाएगा कि कौन कितना हमारा है। हरे में तो हर कोई साथ होता है, पर सूखे में सब किनारा कर लेते हैं । ऐसे चापलूसों से मुक्त हो जाना ही बेहतर है ।
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सफलता के रास्ते का छठा चरण है – अपने दिलोदिमाग़ पर चढ़े बोझ को हटा लें। बोझिल दिमाग़ निराशा का कारण बनता है, वहीं उतत्साहपूर्ण दिमाग़ सफलता के सेतु का काम करता है। हम अपने दिमाग़ को साफ करें। दिमाग़ के आले में जमे हुए जाले अच्छे नहीं होते। जैसे मकान में जमे हुए जाले ठीक नहीं होते, वैसे ही दिमाग़ में जमे हुए जाले भी हमें कैद कर लेते हैं ।
अपने में देख लीजिए कि कहीं किसी के प्रति वैर-विरोध के, क्रोध- आवेश के आशंका- आग्रह के जाले तो हमारे मन में जमे हुए नहीं हैं ? हो सकता है कि किसी ने आपके प्रति कोई कटु शब्द कहा हो। अपमान कर डाला हो और आप उसके प्रति प्रति शोक की भावना संजोए हुए हो। घाव तो हर किसी के मन को लग ही जाते हैं, बेवफाई के घाव, अपमान के घाव, निन्दा के घाव ! घावों को दूर करें। वह कैसी सफलता जो आदमी को ऊँचे पद पर तो पहुँचा दे, धन-समृद्धि दिला दे, पर मन को खिन्नता, उद्विग्ग्रता दूर न कर पाए। सफलता का मतलब है चित्त की प्रसन्नता, मन की शांति, हृदय की सौम्यता, अपमानित हो जाने पर भी शांति और उदारता ।
जीवन को सफल-सार्थक बनाने के लिए यह निहायत ज़रूरी है कि व्यक्ति अपने दिमाग़ को स्वर्ग बनाए। दिमाग़ में कचरा काम का नहीं है। अपमान के जालों को अपने दिमाग़ के आले में न रखें। लोग घर का अटाला मकान की छत पर रखते हैं और जीवन का अटाला सर की छत पर । आप अपनी टोपी पर तो ध्यान दे रहे हैं, कृपया उस पर भी ध्यान दीजिए जो टोपी के नीचे है। याद रखो जिस व्यक्ति के उदार विचार होते हैं, उनके उसी आत्म-त्याग से ही महानता के मील के पत्थर स्थापित होते हैं। वे स्वयं तो सफल होते ही हैं, औरों के लिए भी सफलता का आदर्श बना जाते हैं । व्यक्ति की सफलता उस चिराग़ की तरह हो जो स्वयं भी रोशन हो और दूसरों को भी अपनी रोशनी का सुख - सुकून - आनंद प्रदान करे।
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