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________________ हो सकता है एक ही हो। अगर ऐसा है तो निश्चय ही आप शीलवती हैं । जो भी हो, तुम्हारी बैलगाड़ी तुम्हें खींचनी है, पर कम-से-कम झगड़े, शिकायत, शिकवे और टोंटबाजी करके अपनी छोटी-सी जिंदगी को अशांत और नरक तो मत बनाओ। प्रेम करने के लिए भी जीवन छोटा पड़ा रहा है। तुम झगड़ा कर-करके जीवन को ख़तम कर रहे हो! उस गधे से मोह रखने का क्या मतलब जिसकी दुलत्ती हम बार-बार खाते चले जा रहे हैं । हम पीड़ित होते चले जा रहे हैं, लेकिन फिर भी हम उसकी दुलत्ती खाने को मज़बूर हो रहे हैं। अगर चित्त में शांति है तो हमारे थोड़े से सुख-साधन भी बड़े सुकून देते हैं और चित्त में ही अगर शांति नहीं तो कोई आदमी भले ही जॉर्ज बुश भी क्यों न बन जाए, मगर वह वहाँ बैठा-बैठा भी किसी सद्दाम हुसैन को फाँसी लगाने का जज़्बा पालता रहेगा; वहीं यदि कोई लादेन हो जाएगा तो वह जंगलों में छिपा हुआ रहकर भी जॉर्ज बुश को उड़ाने का जाल बुनता रहेगा। क' से ही कृष्ण होता है और 'क' से ही कंस। 'ह' से हरिश्चन्द्र होता है और 'ह' से ही हिटलर। दोनों के अक्षर एक हैं, दोनों की राशि एक है, पर दोनों के जीवन के परिणाम अलग-अलग हैं। यदि आप कृष्ण होना चाहते हैं तो अपने मन को वैसी दिशा दीजिए। हरिश्चन्द्र होना चाहते हैं तो मन को शांति और सत्य का स्वाद दीजिए। किसी ने मुझसे पूछा, 'कृष्ण होने का रास्ता तो आपने बता दिया। कंस होना हो तो?' मैंने कहा, 'कंस बनने के लिए रास्ता बताने की ज़रूरत नहीं है । वह तो अपन किसी-न-किसी रूप में अभी हैं ही।' मेरे लिए शांति मूल्यवान है । कोई अगर मुझसे पूछे कि मैंने अपनी साधना का, अपने जीवन का पहला लक्ष्य कौन-सा बनाया? मैंने शास्त्र पढ़े, मुझे शास्त्रों में पढ़ने को मिला कि परमात्मा होना या परमात्मा को पाना तुम्हारा लक्ष्य हो। मैंने शास्त्रों में यह भी पढ़ा कि आत्मा को पाना या देखना तुम्हारा लक्ष्य हो, लेकिन मैंने जब अपने आपको पढ़ा तो उससे जो बात सार रूप में निकल कर आई वह यह थी कि अंतरमन की शांति को पाना ही तुम्हारा पहला लक्ष्य हो । सच्ची शांति वही है जिसे कोई भी बाधा खंडित न कर पाए। मैंने सुना है : एक बार किसी गृहस्थ के घर पर एक संत आया जिसने काले कपड़े पहन रखे थे। गृहस्थ ने पूछा, 'आपने काले कपड़े क्यों पहन रखे हैं?' संत ने जवाब दिया, 'मेरे काम, क्रोध आदि की मृत्यु हो गई है, उन्हीं के शोक में मैंने ये काले वस्त्र धारण किए हैं।' यह सुनते ही गृहस्थ ने अपने नौकर को आदेश दिया कि इस संत को घर से बाहर निकाल दो। नौकर ने हुकुम की तालीम की। संत अभी दस क़दम ही आगे चला होगा कि गृहस्थ ने उसे वापस बुलवाया। जैसे ही वह घर पहुँचा कि फिर उसे धक्के देकर वापस बाहर निकलवा दिया। कहते हैं इस तरह गृहस्थ ने उसे सतरह बार अपमान करके घर से बाहर निकलवाया। लेकिन इसके बावजूद संत के चेहरे पर न गुस्सा आया, न खीझ । आख़िर गृहस्थ ने संत की वंदना करते हुए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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