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________________ तब वो वैसा होना होता है, तभी ऐसा हुआ करता है। इसलिए न तो किसी को श्रेय दीजिए, न ही उपालंभ दीजिए। बड़े-बड़े पंडित-पुरोहितों से जन्म-पत्री मिलवाकर आपने अपने लड़की की शादी की थी, लेकिन ढाई वर्ष के अनंतर वह विधवा हो गई। आप क्या कर सकते हैं ? क्योंकि ऐसा होना था, हुआ। एक बात और स्मरण रखें, जब कोई कार्य अपने किए पूरा नहीं हो पा रहा है तो उसे भी ईश्वर पर, वक़्त पर छोड़ दें। आपने अपनी ओर से पूरी कोशिश कर ली, अब उसे भगवान पर छोड़ दें। वह अपनी व्यवस्था के अनुरूप सब कुछ करेगा। एक वृद्ध महिला को ज्ञात हुआ कि उसे कैंसर हो गया है। डॉक्टरों ने कहा कि चार दिन बाद ऑपरेशन किया जाएगा। उसने अपने दोनों बच्चों को बुलाया। अपनी वसीयत तैयार की और बच्चों को बता दिया कि इतना धन बैंक में है और अमुक-अमुक स्थान पर मकान वगैरह हैं। बच्चों ने पूछा, 'मम्मी, आज अचानक आपको क्या हो गया?' उसने कहा, 'बेटा, जिंदगी का क्या भरोसा, कब तक रहूँ, इसलिए सारे काग़जात तैयार कर दिए।' बच्चों ने सोचा, जैसी मम्मी की मर्जी । वे लोग एक दिन रुके और वापस चले गए। चार दिन बाद वह महिला अस्पताल पहँच गई और डॉक्टर से कहा- ऑपरेशन कर दीजिए। डॉक्टर चकित हुआ। इतना बड़ा ऑपरेशन और परिवार का कोई व्यक्ति साथ नहीं। डॉक्टर ने कहा - आप अपने परिवार के सगे-संबंधी किसी को तो बुलवा लीजिए। उस महिला ने कहा - बुला लिया। डॉक्टर ने पूछा – किसे? उसने बताया-ऊपरवाले को। उसने कहा – डॉक्टर साहब, आप मेरे बेटे की तरह ही हैं, आप मेरे साथ हैं न ! आप ऑपरेशन कीजिए। डॉक्टर ने सोचा शायद इसका कोई रिश्तेदार नहीं है सो उसने अपने ऊपर ऑपरेशन की सारी जिम्मेदारी ले ली। महिला जब ऑपरेश थियेटर में जाने लगी तो उसने हाथ जोड़े, ईश्वर को याद किया और कहा – 'हे प्रभु! मैं अपने आपको तुम्हें समर्पित कर रही हूँ।' बताते हैं महिला का ऑपरेशन सफल रहा। पन्द्रह दिन बाद जब उसे अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी तो डॉक्टर ने कहा-तम्हारा कोई दर का रिश्तेदार भी हो तो बता दो. उसे बलवा लेते हैं. वह आकर ले जाएगा। महिला ने कहा, दूर के रिश्तेदार की ज़रूरत नहीं है। मेरा अपना लड़का और लड़की हैं। डॉक्टर चौंका - तो तुमने ऑपरेशन से पहले उन्हें क्यों नहीं बुलाया। महिला ने कहा – उसकी ज़रूरत नहीं थी। खैर, दोनों बच्चों को बुलाया गया। जब उन्हें मालूम पड़ा कि माँ के स्तन कैंसर का ऑपरेशन हो चुका है, दोनों बहुत नाराज़ भी हुए। पर माँ ने कहा – बेटा, मैंने स्वयं को; तुम लोगों को नहीं, प्रभु को सुपुर्द किया था। तुम लोग मुझे बहुत प्रिय हो, लेकिन सचाई यह है कि तीस साल पहले जब तुम्हारा जन्म होने वाला था, मेरी हालत बहुत बिगड़ गई थी।डॉक्टर ने तुम्हारे पिता से कहा- माँ या बच्चा दोनों में से किसी एक को ही बचाया जा सकता है। तब तुम्हारे पिता ने काग़ज़ों की खानापूर्ति करते हुए कहा था जिसे भी बचा सकते हों बचा लें। और मैं ऑपरेशन थियेटर में ले जाई जा रही थी। बेटा, मुझे लगा अब भी एक सहारा बचा है और तब मैंने ईश्वर को याद किया और कहा – हे प्रभु! मैं स्वयं को तुम्हें समर्पित कर रही हूँ। मैं भी बच जाऊँ और मेरा बच्चा भी बच जाए। बेटा, तब ऊपर वाले के भरोसे तू भी बचा और मैं भी बची। तब भी ऊपरवाले LIFE 16 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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