SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरकर स्वर्ग कैसे जा सकती है ? काम करो नरक के और पाना चाहो स्वर्ग, यह कैसे मुमकिन है ! स्वर्ग पाने के लिए हमें सबके साथ स्वर्गिक व्यवहार भी तो करना होगा। मिठास पाने के लिए मिठास भरे बीज भी तो बोने होंगे। मैंने अनेक बहुओं के मुँह से सुना है कि उनके सास-ससुरजी देव-तुल्य हैं। वे इतने मधुर और मिलनसार होते हैं कि बहू उनसे अलग होने की सोच भी नहीं सकती। बहू के दिल में जगह बनाने के लिए सास बनने से नहीं, माँ बनने से काम होता है। वैसे भी अब ससुर बनने का ज़माना नहीं, पिता बनने का समय है। पिता की भूमिका अदा करने की आवश्यकता है। जैसे मैंने सास-ससुर के लिए कहा, वैसे ही, कुछ बहुएँ भी इतनी सेवामूर्तियां होती हैं कि वे घर की बेटियों की याद भी भुला देती हैं । वे अपने स्नेहपूर्ण व्यवहार से सास-ससुर का, जेठ-जेठानी का दिल जीत लेती हैं। ऐसा होने में ही सार्थकता है। आपस में प्रेम से रहो, तो साथ रहने-जीने का मज़ा आता है। दिनभर अगर थूक-फ़ज़ीती, छातीकूटा चलता रहता है, तो वह साथ रहना थोड़े ही हुआ। यों तो गली में कुत्ते (इस शब्द-प्रयोग के लिए माफ़ करें) भी रहते हैं, पर वे कब लड़ पड़ेंगे, कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। मैं प्रेम का पथिक हूँ, प्रेम से जीता हूँ, प्रेम को जीता हूँ। प्रेम में, शांति में ही जीवन का स्वर्ग और जीवन का सुख नज़र आता है। भाई, सबका चार दिन का जीना है और कब किसको चला जाना है, कहा नहीं जा सकता। याद वे ही रखे जाएँगे जो याद रखे जाने जैसा कर्म और व्यवहार करेंगे। प्रेम, शांति, सम्मान और विनम्रता का परिणाम है स्वर्ग । क्रोध, घमंड, ईर्ष्या, नफ़रत का परिणाम है नरक। ख़ुद ही ख़ुद का मूल्यांकन कर लो कि हमारे जीवन का परिणाम स्वर्ग है या नरक! मुझे यह कहानी बहुत प्रीतिकर लगती है – चीन के संत हुए हैं नानू सीची। उनके पास यूनान के सेनापति पहुँचे और कहा – 'महात्मन्, मैंने आपका बहुत नाम सुना है और मन में एक प्रश्न उठा है, मैं उसका उत्तर पाना चाहता हूँ।' नानू सीची ने कहा – 'अपनी जिज्ञासा व्यक्त करो।' 'महात्मन्, मैं जानना चाहता हूँ कि स्वर्ग क्या है और नरक क्या है ? धार्मिक पुस्तकों में इन शब्दों को पढ़ा है, लेकिन नहीं जान पाया कि स्वर्ग और नरक क्या है।' नानू सीची ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और कहा, 'तुम मुझे अपना परिचय तो दो।' 'मैं, अरे मैं तो यूनान का सेनापति हूँ।' 'क्या तुम यूनान के सेनापति हो? पर चेहरे से तो ऐसा नहीं लगता। चेहरा तो किसी भिखारी जैसा नज़र आ रहा है।' 'महाराज ! यह तुम क्या और किससे कह रहे हो, जानते हो? तुमने यूनान के सेनापति को भिखारी UFE 22 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy