SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ होते हैं । मैंने भी गुस्सा किया है और उसके दुष्परिणाम देखे हैं। आपने भी अपने गुस्से के दुष्परिणाम ज़रूर ही देखे होंगे। हम सभी प्रॉफिट वाला बिजनेस करना चाहते हैं, कोई मुझे बता सकता है कि क्रोध करने के क्याक्या लाभ हैं ? क्या बिल्डर, क्या व्यापारी, क्या अफसर, क्या चपरासी, क्या विद्यार्थी, क्या गृहस्थी, बच्चा या बूढ़ा, ज़वान या मज़दूर कोई नहीं कह सकता कि क्रोध करने के अमुक-अमुक लाभ हैं। फिर भी क्रोध किए चले जाते हैं। क्यों? अगर आप अपने-आप को शांति के रास्ते पर ले आते हैं तो जीवन के संत कहलाएँगे और अशांति आपको जीते-जी नरक में ढकेल देगी। वेश बदलकर संत तो बना जा सकता है, पर शांत होना वास्तविक संतत्व का प्राण है। महाराज तो बन सकते हैं, पर संत होना महान् बात है। आप घर में रहकर शांत रह सके तो यह किसी संत होने से कम नहीं है। हम केवल अरिहंत की पूजा न करते रहें। ख़ुद अरिहंत होने की पहल करें । अरिहंत यानी शत्रु का हनन करने वाला। क्रोध हमारा शत्रु है। हम शत्रु पर विजय प्राप्त करें। क्रोध पर विजय प्राप्त करना सबसे बडी विजय है। याद कीजिए अतीत की वह घटना जिसमें भगवान महावीर किसी जंगल से जा रहे होते हैं और उनका सामना चंडकौशिक नामक सर्प से होता है। चंडकोशिक उन्हें डंक मारता है। अपने साढ़े बारह वर्ष के साधना काल में महावीर ने एक ही शब्द कहा था – हे जीव! शांत रह, शांत बन । कब तक यूँ क्रोध से लोगों को डंसता रहेगा। अपने अतीत का स्मरण कर कि तम क्या थे और अपने क्रोध के कारण क्या बन गये? कहते हैं चंडकोशिक ने अपना पूर्व जन्म देखा और पाया कि वह भी एक संत था। उस समय उसके शिष्यों ने कहा था कि गुरुजी आपके पाँव के नीचे मेंढक आ गया था। आप प्रायश्चित कर लीजिए। गुरु ने ध्यान नहीं दिया तो शिष्य ने तीन-चार बार बात दोहरा दी, बस गुरुजी आ गया। वे उसे मारने के लिए दौड़े। शिष्य भाग निकला और गुरुजी अंधेरे में कुटिया के खंभे से टकरा गए, गिर पड़े वे। वहीं उनके प्राण-पखेरू उड़ गए। मरने के उपरांत वे नागयोनि में चंडकौशिक बन गए। एक संत मरकर साँप बना। अब आप धैर्यपूर्वक सोचें कि अगर हम गुस्सा करते रहे तो मरकर क्या बनेंगे? आश्चर्य है कि एक संत मरकर साँप बना, पर जब वही साँप शांत होकर मरा तो देव बना। हम देखें कि हमें चंडकौशिक बनना है या भद्रकौशिक? साँप बनना है या संत? ___मैं नहीं जानता कि स्वर्ग और नरक की कल्पनाएँ किसने की हैं, लेकिन मैं तो इसी पृथ्वी पर स्वर्ग और नरक देखा करता हूँ। मैं तो अपने वर्तमान जीवन को ही स्वर्ग बनाने में आस्था रखता हूँ। अगर ज़िंदगी भर गुस्सा करते रहे तो नरक में ही जाओगे और सभी से मोहब्बत करते रहे, सबके प्रति मंगल मैत्री-भाव रखा तो वर्तमान जीवन ही स्वर्ग हो जाएगा। जिसका वर्तमान जीवन ही नरक है वह किसी स्वर्ग में कैसे जा सकता है। सास अगर बहू पर टोंट कसती रहे, जेठानी अगर देवरानी के साथ ओछा व्यवहार करती है, तो वह को CIFE Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy