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कुछ करना ही पड़ेगा। हम एक चिड़िया को देखें कि वह अण्डे देने के लिए घोंसला बनाने में कितनी मेहनत करती है। वह एक-एक तिनके को सहेजकर संभाल कर गूंथती है ताकि तूफान भी उसे तोड़ न पाए।
परिवार में रहने वाले लोग भी तभी तक साथ रह पाएँगे जब तक एक दूसरे के प्रति उनकी मानसिकता बेहतर होगी। जिस दिन आदमी का मन टूटा, आदमी टूट जाएगा। इसीलिए तो कहा गया है कि 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' मन डूबा कि आदमी डूबा, आदमी डूबा तो जिंदगी डूबी। आदमी की ताक़त उसके हाथ-पैर या उसका बलिष्ठ शरीर नहीं है। उसकी बेहतरीन मानसिकता ही उसकी असली ताक़त है। हर व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति को पहचाने और उसके प्रति आस्था जगाए। मानसिक शक्ति के प्रति अपनी आस्था जगाना मानो ईश्वर के प्रति अपनी आस्था को मज़बूती देना है।
जीवन की शक्ति, जीवन का देवता भीतर विराजमान है। जीवन के प्रति उत्साह रखें। हमने मरने के लिए जीवन नहीं पाया है। मरना हमारी मज़बूरी हो सकता है, पर जीवन को शान से जीना हमारा हक़ है। जिसे जीना हमारा हक़ है उसका परिणाम मौत नहीं होना चाहिए। जिंदगी का परिणाम केवल जिंदगी ही होनी चाहिए। मौत मज़बूरी हो सकती है पर जिंदगी हमारी मज़बूरी नहीं है। यह तो कुदरत के घर से मिली हुई अनुपम सौगात है। अपनी जिंदगी को बड़े उत्साह से जीएँ। ज़िंदगी तो एक उत्सव है। जो व्यक्ति ज़िंदगी को उत्सव बनाकर जीता है, उसकी मौत, मौत नहीं होती बल्कि उसकी मौत भी जिंदगी का महोत्सव बना करती है।
मेरा विश्वास जीवन के प्रति है। मैं मानता हूँ कि जिंदगी को अंतिम क्षण तक भरपूर जिया जाना चाहिए। प्रेम, परिवार और सामाजिक सम्बन्ध जीवन के लिए हैं। यदि जीवन अखण्ड है तो पृथ्वी भर की सारी सम्पदाएँ उसके आगे तुच्छ और नगण्य हैं।
मैंने देखा है कि एक स्कूल में एक प्यारी-सी बच्ची पढ़ने के लिए आती थी। उसके मम्मी-पापा रोज़ाना उसे पहुँचाने के लिए आया करते थे। छोटी-नन्हीं बच्ची माँ-बाप के बिना स्कूल में कैसे रहेगी, यह एक समस्या-सी थी क्योंकि उसके माँ-बाप भी दोनों नौकरी-पेशे वाले थे। दिन भर बच्ची को स्कूल के बालगृह में ही रहना पड़ता था। बच्ची जब पढ़ रही होती और पढ़ते-पढ़ते ही उसे अपने मम्मी-पापा की याद आती तो वह झट से अपनी जेब में हाथ डालती, मुट्ठी भरकर जेब से हाथ बाहर निकालती, उन्हें होठों के पास ले जाती, कुछ चूमती और हाथ को नीचे कर लेती। अध्यापिका रोजाना यह दृश्य देखा करती। उसे आश्चर्य होता कि बच्ची न जाने रोज़ाना अपने मुँह के पास हाथ ले जाकर क्या करती है ? यह हर घंटे-डेढ़ घंटे में ऐसा कर लिया करती है। आख़िर अध्यापिका ने बच्ची को
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