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मनुष्य तो शक्ति का अतुल भंडार है। जिसने अपनी जितनी शक्ति लगाई, वह अपने जीवन में उतना ही सफल हुआ। जो लोग अपनी ओर से अपनी ऊर्जा और क्षमता का केवल 25% उपयोग करते हैं अक्सर वही असफल हुआ करते हैं। जो अपनी क्षमता का 50% उपयोग करते हैं, वे अवश्य सफल हो जाते हैं, किन्तु वे लोग महान्, समृद्ध, सफल और आसमानी ऊँचाइयों को छू लेते हैं जो 100 के 100% अपनी शक्ति और क्षमता को लगा दिया करते हैं। आधे मन से किया गया काम आधा परिणाम देता है। चौथाई मन से किया गया काम चौथाई परिणाम देता है और पूरे मन से किया गया काम हमेशा अपना पूरा परिणाम देता है ।
चाहे महावीर हो या मुहम्मद, कृष्ण हो या कबीर, राम हो या रहीम, नेल्सन हो या नोबेल, गाँधी हो या गोर्बाचोव, मीरा हो या महादेवी, अमिताभ हो या अम्बानी, पर एक बात तय है कि कोई भी व्यक्ति अगर अपने जीवन में ऊँचाइयों को उपलब्ध हुआ है तो मान कर चलें कि उस हर व्यक्ति ने अपने जीवन में ऊँचाइयों को पाने के लिए न केवल प्राणपण से मेहनत की होगी वरन् सफलता को पाने के कोई-न-कोई मापदण्ड, कोई-न-कोई आधार अवश्य चयन किए होंगे।
सफलता के रास्ते पर चलने का पहला बुनियादी उसूल है : जीवन में कड़ी मेहनत कीजिए। मेहनत को अपनी इज़्ज़त बनाइए, अपनी प्रार्थना बनाइए । मेहनत में ही अपनी सफलता और समृद्धि के रहस्य ढूँढ़िए । हक़ीकत तो यह है कि दुनिया में किसी भी इंसान को ईश्वर ने आलस्य का जीवन जीनेके लिए नहीं बनाया है । ईश्वर ने हर व्यक्ति को जीवन में कुछ बनने के लिए, कुछ कर गुज़रने के लिए बनाया है । यदि आदमी आलस्य का जीवन जिएगा तो मानकर चलें कि वह आदमी सेकेंड क्लास की ज़िंदगी जीने के लिए मज़बूर ना हुआ है। नम्बर 1 की ज़िंदगी, सबके बीच सम्मान, समृद्धि की जिंदगी आदमी तभी जी सकता है जब कोई व्यक्ति अपनी ओर से सफलता को पाने की पहली क़ीमत चुकाए और वह क़ीमत है कड़ी मेहनत । अगर आप कड़ी मेहनत के लिए तैयार नहीं हैं तो फिर ग़रीबी का जीवन जीने के लिए तैयार रहिए। यदि आप कड़ी मेहनत करने को तैयार हैं तो दुनिया में कोई विद्यार्थी ऐसा नहीं है जो सप्लीमेन्ट्री से पास हो; कोई व्यापारी ऐसा नहीं है कि दुकान खोले और सामने कोई ग्राहक नज़र न आए; कोई कर्मचारी अपने केरियर-निर्माण के लिए पहल करे और अधिकारी न बन पाए, ऐसा कभी संभव नहीं है ।
कीड़ी को कण के लिए मेहनत करनी पड़ती है और हाथी को मण के लिए। ज़रा किसी रास्ते पर चलती चींटी को देखिए । अपने अगल-बगल से गुज़र रही चींटी को देखिए और उसकी कड़ी मेहनत को समझिए तो आपको पता चलेगा कि कीड़ी का पेट केवल एक कण से भरता है, पर वह एक कण पाने के लिए भी कितनी मेहनत करती है । आलसी लोग केवल मोहल्लों और चौपालों में बैठकर ताश के पत्ते खेलने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते । वे ज़िंदगी में ग़रीब हैं, ग़रीब थे और ग़रीब बने रहेंगे। वे मन से ग़रीब हैं इसलिए वे केवल ताश के पत्ते खेलकर अपने वक़्त को गुज़ार रहे हैं। वे नहीं जानते कि वे वक़्त को नहीं गुजार रहे हैं, वरन् वक़्त
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