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________________ आप बहू हों या सास, पुत्र हों या जंवाई, ग्राहक हों या व्यापारी, विद्यार्थी हों या राजनेता – अपने व्यवहार को इतना शालीन बनाइए कि सभी आपको याद रख सकें। लोग आपको राजा के रूप में जान सकें। ऐसी पहचान आपके व्यवहार से ही आएगी। मुझे मेरे एक अज़ीज़ ने बताया कि वे उनके किसी मित्र के साथ पूना लड़की देखने गए । यहाँ उनका मित्र बहुत सम्पन्न है सो आठ-दस लोगों को हवाई जहाज़ से ले गया। पूना में उनका अच्छा स्वागत हुआ। वे लोग भी बहुत अधिक संपन्न थे। एकदम राजसी वैभव। लड़की भी देखी, सुन्दर थी। तत्पश्चात् भोज का आयोजन हुआ। काफ़ी वेटर और वैरायटी का खाना था। नौकर और वेटर मेहमानों को खाना परोस रहे थे, खिला रहे थे। भोजन संपन्न हुआ और वे वापसी की तैयारी करने लगे कि मेज़बान ने कहा कि अगर कुछ आश्वासन दे दें तो....! मेरे मित्र ने कहा घर जाकर ज़वाब देता है। हम लोग पुनः वायुयान में सवार हो गए। तब रास्ते में मैंने मेरे अज़ीज़ ने पूछा – सब कुछ तो अच्छा था, लड़की भी सुन्दर थी, फिर 'हाँ' क्यों नहीं किया, क्या टालने वाला ज़वाब देकर आ गए?' उन्होंने कहा, 'सब कुछ अच्छा था, लेकिन जिस घर में मेहमानों का स्वागत-सत्कार घर के लोग ही नहीं करें, भोजन नौकर परोसें और खिलायें उस घर की लड़की लाकर क्या करूँगा। तुम जानते हो संपन्नता मेरे यहाँ भी कम नहीं है फिर भी मैं चाहूँगा कि बहू अपने हाथ से भोजन परोसे और घर के सभी लोगों को स्नेह से खिलाये। मैं जब लड़की देखने जाता हूँ तो धन-सम्पत्ति बाद में देखता हूँ, पहले उस परिवार के संस्कार और व्यवहार देखता हूँ। जैसा व्यवहार वे लोग करेंगे इसी के अनुसार लड़की के संस्कार होंगे।' आपके चेहरे का क्या रंग है, इस पर न जाइए, काले हैं तो मन में हीनभावना न लाएँ और गोरे हैं तो रंग का गुमान न करें। गोरा और काला रंग तो प्रकृति प्रदत्त है इसमें आपका कोई रोल नहीं है। चेहरे को रंग देना कुदरत का करिश्मा है, लेकिन जीवन को ढंग देना आपका ही कार्य है। आप चेहरे के रंग को तो नहीं बदल सकते, पर अपने जीने के ढंग को तो बदल ही सकते हैं। हमारे राष्ट्रपति अब्दुल कलाम कोई गोरे नहीं हैं, पर महान् वैज्ञानिक और देश का गौरव हैं । अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति लिंकन भी सांवले ही थे, यूनानी संत और दार्शनिक सुकरात का चेहरा चेचक के दागों से भरा था, रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि मलिक मोहम्मद जायसी एक ही आँख से देख पाते थे, प्रसिद्ध फिल्मी गायक और संगीतकार राजेन्द्र जैन भी नेत्रहीन हैं। जिनके भजनों को आज हम प्यार से गाते और गुनगुनाते हैं वे सूरदास भी, नेत्रहीन ही थे। सभी विकलांगों की आदर्श हेलन केलर जन्मजात अंधी, गूंगी और बहरी थी। किसी भी प्रकार की शारीरिक विकलांगता या कमी व्यक्ति के विकास में बाधक नहीं बनती।इस कमी को ही अपनी शक्ति बना लीजिए। स्मरण रखिये रंग-रूप-सौन्दर्य थोड़े समय तक ही अच्छे लगते हैं, शेष तो गुण ही सदा काम आते हैं । मैं एक अरबपति घर में मेहमान था। उनके यहाँदो बहुएँ थीं । सास-ससुर दोनों डाइनिंग टेबल पर खाना खा रहे थे। एक बहू खाना बना रही थी और दूसरी उनके पास खड़ी हुई भोजन परोस रही थी, उन्हें खाना खिला रही थी।घर में बहुत से नौकर-चाकर भी थे फिर भी खाना बहुएँ ही बना रही थीं। सब्जी नौकर सुधार सकता है, आटा बाई GUFER 101 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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