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लीजिए कि मन को कभी ख़राब नहीं करूँगा, जीभ को कभी ख़ारी नहीं करूँगा और आँख को लाल नहीं होने दूंगा। मन से बुरा न सोचना, आँखों से आग बबूला न होना और जीभ से कड़वा न बोलना, जीवन की यह सबसे बड़ी सामायिक है।
जो मीठा बोलता है, आँखों से मुस्कुराता है उसके वचन किसी भी धर्म से कम नहीं होते। धर्म का आचरण और क्या है ? मिठास भरी बोली बोलने से किसी का मन नहीं दुखता, यह अहिंसा है। प्रकृति का नियम है, जो हम देते हैं वही वापस लौटता है। जैसे बीज हम बोते हैं, वैसे ही फल मिलते हैं। इसलिए कभी भी ऐसे बीज मत बोओ जिनकी फसल काटते वक़्त हमें काँटों से गुज़रना पड़े। जो दूसरों के साथ बेहतर ढंग से पेश आते हैं उनके साथ दूसरे भी बेहतर ढंग से पेश आएँगे। किसी की निंदा, आलोचना, उपहास मत कीजिए, अच्छा बोलिए, मधुर व्यवहार कीजिए, अच्छी सोच और अच्छा नज़रिया रखिए। जीवन को जीने का यह अद्भुत रूप है। आप चाहे जिस वातावरण में रहें, पर गिलास को हमेशा भरा हुआ देखिए। जीवन में एक ही नज़रिया रखिए कि मैं गिलास को आधा ख़ाली नहीं, आधा भरा हुआ देखूगा । हमेशा अच्छाइयों को देखना, अच्छाइयों का सम्मान करना ही सकारात्मक सोच है।
हमारी सोच और हमारी विचारधारा ही हमारे जीवन का प्रेरक तत्त्व है। स्मरण रखें कि कोई भी विचार बेकार और अर्थहीन नहीं होता। हर विचार, हर सोच, हमारे जीवन में बीज का काम करता है। हमारी सोच दो प्रकार की होती है, पॉज़िटिव और निगेटिव। आज आप जो दुनिया देख रहे हैं वह सब इन्सान की महान् सोच का परिणाम है। आज जो विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ कार, मोबाइल, टी.वी., मोटर साइकिल, सुपर सोनिक जेट विमान या चंद्र-मंगल की यात्राएँ की जा रही हैं - वह सब क्रिएटिव और महान् सोच का परिणाम है। छोटी सोच को लेकर तो व्यक्ति अपनी सास के दिल को भी नहीं जीत सकता फिर वह चन्द्रलोक की यात्रा कैसे कर सकेगा? ___ छोटी सोच को लेकर बहू को भी अपना नहीं बना सकते फिर आप पड़ोसी पर अपना जादू कैसे चला सकेंगे? छोटी सोच के कारण जब हम अपने घर को ही बिखेर रहे हैं तब लीडर बनकर समाज को कैसे ठीक कर पाएँगे? जो संत लोग समाज को तोड़ा करते हैं वे संत नहीं, असंत होते हैं । जो शांति की स्थापना करे वह संत, जो अशांति फैलाए वह असंत। जो लोगों के दिलों को जोड़ने का पवित्र कार्य किया करते हैं, वे ही समाज के सच्चे संत कहलाने के अधिकारी हैं। टूटे परिवार जुड़ें, टूटे समाज जुड़े, भाई-भाई को तोड़ने वाले लोग अगर धरती पर हैं तो उन्हें कंस कहा जाएगा। जहाँ भाइयों को जोड़ने की अलख जगाई जाएगी, उन्हें राम और कृष्ण पुकारा जाएगा। कंस को किसी ने नहीं देखा, राम और कृष्ण के बारे में हमने सुना है, लेकिन वे सब प्रतीक हैं, सुंदर प्रतीक हैं जो हमारे जीवन के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
तोड़ना कोई कला नहीं है, इसे तो कोई शकुनि या मंथरा भी कर सकते हैं । तोड़ने में कौन-सी महानता
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