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हमारी विचारधाराएँ और सोच ही जीवन का मूल आधार है। व्यक्ति जैसा सोचेगा, वैसा ही नज़रिया रखेगा। जैसा नज़रिया होगा वैसा ही हम शब्दों का उपयोग करेंगे। जैसे शब्द बोलेंगे वैसा ही हमारा व्यवहार होगा। जैसा व्यवहार होगा, वैसी ही आदतें बनेंगी। जैसी हमारी आदतें होंगी वैसा ही हमारा चरित्र होगा। अगर हमें अपना चरित्र बेहतर बनाना है तो हमें अपनी आदतें सुधारनी होंगी। आदतों को सुधारने के लिए व्यवहार बेहतर बनाना होगा। बेहतर व्यवहार के लिए अपनी वाणी और शब्दों को बेहतर बनाना होगा । शब्दों बेहतर बनाने के लिए नज़रिए को बेहतर बनाने की ज़रूरत है। नज़रिए को बेहतर बनाने के लिए सोच बेहतर बनाना होगा। यानी कुल मिलाकर बेहतर सोच से शुरुआत हो । अच्छी सोच = अच्छा जीवन । बुरी सोच = बुरा जीवन |
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गाँधी जी ने तीन बंदरों के माध्यम से कहा था - 'बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो और बुरा मत सुनो। ' गाँधी के तीन बंदर हैं, पर चन्द्रप्रभ के चार बंदर हैं। मेरा चौथा बंदर कहता है : 'बुरा मत सोचो।' अगर सोच बुरी नहीं है तो आदमी न तो बुरा देखेगा, न बुरा बोलेगा और न ही बुरा सुनेगा। बुरी सोच ही आँख, कान और ज़ुबान को बुरा बनाते हैं। निश्चय ही वह आदमी धरती का देवता है जो अपने मन और इंद्रियों को कभी बुरा नहीं करता । शैतान और देवता में काम का कम और सोच का अंतर ज़्यादा है। जिसकी सोच बुरी वह शैतान, जिसकी सोच अच्छी वह दिव्य और महान् ।
पुरानी क़िताबों में देवताओं का ख़ूब ज़िक्र आता है, कम ही लोग ऐसे होंगे जिन्होंने अपने जीवन में देवताओं के दर्शन किए हों। मुझे भी अपने जीवन में दो-चार दफ़ा उन देवताओं के दर्शन का सौभाग्य और आनंद मिला है। पर मैं बता देना चाहता हूँ कि मैंने ऐसे अनेक देवताओं के दर्शन किए हैं जो इंसानी रूप में हम सब लोगों के बीच रहते हैं । ये दिखने में साधारण इंसान ही होते हैं पर इनकी वाणी, इनका व्यवहार, इनकी उदारता, इनकी शांति, इनकी मिठास और विनम्रता इतनी ग़ज़ब की है कि उन्हें देखकर जी हुलस आता है। ऐसे देवताओं के पाँव छूने की इच्छा होती है। निश्चय ही ऐसे धीर-वीर- गम्भीर लोगों के कारण ही यह धरती बहुरत्न वसुंधरा कहलाती है ।
मैं तो कहूँगा आप अपने मंदिर में ऐसी तस्वीर ज़रूर लगवाएँ जहाँ प्रतीकात्मक रूप में चार बंदर हों । इनमें एक अंगुली कान में हो, दूसरे की अंगुली आँख पर हो, तीसरे की अंगुली मुँह पर हो और चौथे की अंगुली दिमाग़ पर हो । संबोधि-धाम में मैंने ऐसे चार बंदर बनवाए हैं ताकि लोगों को प्रेरणा मिल सके कि सोचो मगर बुरा मत सोचो, देखो मगर बुरा मत देखो, बोलो मगर बुरा मत बोलो, सुनो मगर बुरा मत सुनो। ऐसा करना जीवन का बहुत बड़ा धर्म है, बहुत बड़ी सामायिक है, परमात्मा की पूजा है। इसे मैं कहता हैं द वे ऑफ लाइफ, द आर्ट ऑफ लिविंग । जीने की कला यही है कि आप अच्छी सोच रखते हैं । आपकी निर्मल सोच और विचारधारा से बढ़कर अन्य कोई ईश्वर की पूजा नहीं है। आप अपने जीवन का
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बना
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