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________________ पैसे को छूता भी नहीं हूँ, मेरे नाम से कोई अकाउंट भी नहीं है, फिर भी मैं धनवान हूँ। अपने विचारों की बदौलत मैं धनवान हूँ। मेरे पास उच्च विचारों की, सद्विचारों की, सद्भावनाओं की, सदाचार की बहुत बड़ी सम्पदा है। मैं ईश्वर का शुक्रगुज़ार हूँ कि उसने मुझे अपने ज्ञान की नेमत दी, उन्नत मस्तिष्क दिया, जीवन को देखने और जीने की पारदर्शिता दी। __ एक दफ़ा की बात है : कुछ लोगों के साथ बैठकर किसी शास्त्र विशेष का स्वाध्याय कर रहे थे। उसमें एक चेप्टर ऐसा था जिसमें ईश्वर के बारे में काफ़ी कुछ लिखा हुआ था, और एक चेप्टर ऐसा था जिसमें शैतान के बारे में ब्यौरा था। स्वाध्याय के दौरान एक सज्जन ने मुझसे पूछा – ईश्वर की ताक़त ज़्यादा है या शैतान की? मैंने कहा – ईश्वर की। उस महानुभाव ने पुनः पूछा – अगर ईश्वर की ताक़त ज़्यादा है तो शैतान ईश्वर की हर चीज़ को बिगाड़ कैसे देता है ? मैंने निवेदन किया - मेरे भाई, केवल एक बात सोचो कि एक अच्छी मूर्ति बनाने में कितना वक़्त लगता है। उसने कहा – यही कोई छह महीने । मैंने कहा - और उसे तोड़ने में? वह महानुभाव झट से मेरी बात समझ गया और उसके यह बात समझ में आ गई कि किसी की ताक़त का अंदाज़ा बिगाड़ने से नहीं, बनाने से लगता है। जिन संबंधों को बनाने में दस साल लगते हैं, वही संबंध दस मिनट में टूट जाया करते हैं। तोड़ने के लिए बुलडोजर चाहिए, पर जोड़ने के लिए हर हाथ से हाथ मिलाना होता है। दुनिया को ख़त्म करने के लिए पचास परमाणु बम काफ़ी हैं, पर दुनिया को बनाए रखने के लिए, उसको फुलवारी की तरह खिलाए रखने के लिए न जाने कितने ऋषि-मुनि-महर्षि और महान् लोगों ने अपने महान् प्रयत्न और पुरुषार्थ किए होंगे। महान लोगों के वे परुषार्थ ही हमारे लिए महान वरदान साबित हए हैं। ऐसे महान लोगों ने ही हमें प्रेरणा दी है कि तुम बुरे हालातों में भी ख़ुद पर संयम रखो और सबके प्रति सही, सकारात्मक तथा कोमल व्यवहार करो। यही जीवन का धर्म है और यही जीने की कला। भारतीय मनीषियों ने, इस देश के लोगों ने विश्व को जो अनमोल संपदा दी है वह महान् विचारों की, महान् सोच की है। इसीलिए भारत को विश्व का धर्मगुरु' कहा जाता है। मनुष्य का अस्तित्व ही सोच के कारण है। हमारा मस्तिष्क दुनिया का बेहतरीन टापू है। इस डेढ़ किलो के टापू में दुनिया का श्रेष्ठतम ख़ज़ाना भरा पड़ा है। अगर हम अपने मस्तिष्क को विकसित करें, सोचने-समझने की क्षमता को बेहतर बनाएँ तो अनेकानेक जटिल से जटिल काम भी सहजतापूर्वक सम्पन्न किए जा सकते हैं। युद्ध करके जीतने वाले लोगों को स्टेच्यू बनाकर चौराहे पर खड़ा कर दिया जाता है, लेकिन दुनिया को महान् विचार देने वाले लोग मंदिर में आसीन होकर पूजनीय हो जाते हैं । फिर हम उनकी पूजा करने लगते हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर जो ख़ज़ाना गड़ा है उस पर ध्यान दे। हम लोग अपने चेहरे पर, रिश्तों पर, व्यापार पर तो ध्यान देते हैं लेकिन अपनी सोच को नज़र अंदाज कर देते हैं। LIFE 122 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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