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________________ फँसा रहता है। बाहर से तो लगता है कि वह मंदिर जा रहा है, सामायिक कर रहा है लेकिन पता नहीं चित्त में कितनी उधेड़बुन चलती रहती है। न तो दान देने से स्वर्ग मिलता है और न ही चोरी करने से नरक, बल्कि अपने मन के शुभ और अशुभ परिणामों के अनुसार व्यक्ति स्वर्ग या नरक का अधिकारी बनता है। हम सभी अपने मन को देखें कि वहाँ कैसी उधेड़बुन चल रही है। चिंता घुन है और चिंतन धुन । जैसे घुन गेहूँ को भीतर-ही-भीतर खोखला कर देती है, वैसे ही चिंता जिसे लग जाती है वह उसे चिता के रास्ते ले जाती है। चिंता और चिता में मात्र एक बिंदी का फ़र्क है लेकिन चिता तो एक बार ही जलाती है और चिंता जीवनभर जलाती रहती है। एक बार मरना आसान है लेकिन रोज़-रोज़ का मरना और जलना व्यक्ति के लिए आत्मघातक है। कोई भूतकाल की बातों को लेकर चिंतित है तो किसी को भविष्य की बातों की चिंता है। चिंता से उबरना है तो अपने वर्तमान-जीवन के मालिक बनिए, इसी का आनंद लीजिए। जो बीत गया सो बीत गया। क्या आप बीते हुए समय को लौटा सकते हैं? हाँ, और जो आया नहीं है उसके लिए भी कैसी चिंता! जो कल दिखाएगा वह उसकी व्यवस्था भी देगा। जिसने चोंच दी है वह चुग्गा भी देगा। जिसे न किसी बात की चिंता है, न किसी बात की चाह और न किसी बात का डर है उसे ही रात में चैन की नींद आएगी। वह सहज जीएगा और सहज सोएगा। कहते हैं: चाह गई चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह । जिनको कछु न चाहिए, ते शाहन के शाह ॥ जिसकी कोई तलब नहीं, तड़फ नहीं, लालसा नहीं, वही तो जीवन का बादशाह है। जो आया नहीं उसके बारे में क्या सोचना? जब आएगा, तब सोचेंगे, सामना करेंगे। लोग प्रायः मुझसे पूछते हैं, 'आपको चिंता नहीं सताती।' तब मैं कहा करता हूँ – “चिंता सताती थी, लेकिन जब से जीवन की समझ विकसित हुई, जीवन की समझ मिली तब से चिंता गायब हो गई।' और यही समझ अगर आप अपने जीवन से जोड़ लें तो आपके पास से भी चिंता का टेम्प्रेचर डाउन हो सकता है। सौ प्रतिशत नहीं तो अस्सी प्रतिशत तो आप चिंताओं से मुक्त हो ही सकते हैं। आप जानते हैं बच्चा बाद में जन्मता है उसके पहले माँ का आँचल दूध से भर जाता है। वह विधाता सारी व्यवस्थाएँ करता है। आप कल के लिए बहुत-सा जमा करके रखते हो, लेकिन अगर उसने कल ही न दिया तो! उसे अगर कल देना होगा तो कल की व्यवस्था भी देगा। मेरे परिचित एक सरकारी अधिकारी हैं, उनकी सेवा-निवृत्ति छह माह बाद होने वाली थी। इसी बीच दीपावली आ गई, चूँकि बड़े अधिकारी थे, सो हर वर्ष की तरह इस बार भी उन्हें लोगों ने उपहार और मिठाइयाँ दी थीं। वे खाना खा रहे थे, उनकी निगाहें उपहार और मिठाइयों के ढेर पर गई और अचानक उदास हो गए। पत्नी ने उदासी का कारण पूछा तो कहने लगे कि अभी तो वह अफसर हैं लेकिन अगली दीपावली के पहले ही रिटायर हो जाएँगे तब भी क्या लोग इसी तरह मिठाइयाँ और CTFEA 11 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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