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________________ अपने परिवार और समाज की समस्याओं का समाधान नहीं निकालता तब लगता है कि व्यक्ति खुद ही समस्या बन गया है। जो समाधान के लिए प्रयत्न नहीं करता, वह अपने आप में ही एक समस्या है। इन्सान की वह बुद्धि किस काम की अगर वह समस्या का समाधान न खोज सके? अगर दो इन्सानों ने सोच ही लिया है कि वे विपरीत दिशाओं में ही जाएँगे तो भगवान भी उन्हें एक नहीं कर पाते । वहीं अगर वे निर्णय कर लें कि येन-केन प्रकारेण हमें संधि स्थापित करनी ही है तो सकारात्मक सोच और बेहतर नज़रिया रखने पर सुलभ रास्ता निकल आता है। मेरी शांति, सफलता और आनंद का सबसे बड़ा राज़ यही है कि मैं अपने आपको न केवल अपनी नकारात्मकताओं से मुक्त रखता हूँ वरन् दूसरों की नकारात्मकताओं से भी अप्रभावित रहता हूँ। न किसी से ईर्ष्या रखो और न किसी की निंदा करो। कोई आगे बढ़ रहा हो तो उसे प्रोत्साहन भी दो और उससे प्रेरणा भी लो। दूसरों की अच्छाइयों का सदा सम्मान करो और बराइयों को नज़र अंदाज़ करो। जीवन का यह नज़रिया ही आपको नकारात्मकता से बचाएगा और सदा सकारात्मकता की तरफ़ ले जाता चला जाएगा। शांति, संतोष और प्रगति के लिए एकमात्र मार्ग सकारात्मक और संतुलित सोच ही है। सकारात्मक सोच ही हमें आने वाली विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति देता है। जब कभी भी टूटे हुए समाज को जोड़ना हो, टूटे हुए धर्म को आपस में मिलाना हो, विरोधी वातावरण को शांत करना हो, तो मैं कहूँगा आप एक ही हथियार अपनाएँ और वह है सकारात्मक सोच। जब हर ओर से आदमी हताश और निराश हो जाए तब मुँह लटकाकर हाथ-पर-हाथ रखकर बैठने की बजाय दो मिनट के लिए दिमाग़ को शांत और रिलेक्स कीजिए, मन की स्थिति को सहज और आनंदपूर्ण बनाइए और निर्णय कीजिए कि मैं हर हाल में पॉजिटिव रहूँगा। बस आपकी यह मानसिकता आपको विजेता बनाने के लिए काफ़ी है। सकारात्मक सोच यानी अपनी सोच में दूसरों को स्वीकार करना। बड़े डाँट दें तो यह सोचें कि बड़े नहीं डाँटेगा तो कौन डाँटेगा। छोटों से ग़लती हो जाए तो यह सोचें कि छोटों से ग़लती नहीं होगी तो किससे होगी। आपकी इस तरह होने वाली सकारात्मक सोच ही आपको हर हालात में सहज और प्रसन्न रखेगी। उग्र वातावरण में भी अपनी मानसिकता को स्वस्थ, संतुलित और मधुर बनाए रखना ही व्यक्ति की सकारात्मकता है। दुनिया में ऐसा कौन व्यक्ति है जिसे अपने जीवन में बुरे हालातों या बुरे वातावरण का सामना न करना पड़ता हो । सचिन को भी शिकस्त ख़ानी पड़ती है और धोनी की भी धुनाई होती है। सास की भी शामत आती है और चेयरमैन भी चूक खा जाता है। ग़लती तो किसी से भी हो सकती है। अरे, ग़लती तो दुनिया को बनाने वाले भगवान से भी हो सकती है। संभावना तो हर चीज़ में बनी हुई रहती है। कभी हमसे ग़लती हो जाती है तो कभी सामने वाले से। हमें बुरा मानने की बजाय इंसानी फ़ितरत को समझना चाहिए। ग़लती को स्वाभाविक मानते हुए हमें वातावरण को पुनः सहज और सौम्य बनाने का प्रयास करना चाहिए। यही तो AMEER 119 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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