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________________ लोगों को निभाना, सब लोगों की मान-मानकर और सब लोगों को मना-मनाकर चलना, केवल औरों को ख़ुश करने के लिए, औरों के दिल में हमारी छवि खराब न हो केवल इसलिए हम बार-बार अपने साथ, अपनी शांति के साथ समझौता करते रहते हैं, बार-बार अपने आपको गिरवी रखते रहते हैं। हमारी इस तरह की मानसिक उलझन और ऊहापोह से ही ज़िंदगी बोझिल बनती है, हम टेंसन में आते हैं, हम चिंता और आतंक के साए में जीते हैं। जिंदगी ज़रूर एक समझौते का नाम है। जिंदगी में ग़मों के साथ समझौता करना पड़ता है। हम चाहे जितने समझौते कर लें, पर एक मूल्य, एक लक्ष्य, एक दीपशिखा हमारी आँखों में, हमारे रग-रग में रहनी चाहिए और वह है शांति। ____ मंदिर जा पाएँ या न जा पाएँ, पर शांति अवश्य रखें । व्रत-अनुष्ठान कर पाएँ या न कर पाएँ, पर शांति ज़रूर रखें। साधना के लिए बैठ पाएँ या न बैठ पाएँ, पर शांति का विवेक अवश्य रखें। क्या खाया, क्या पिया, कहाँ गए, क्या किया – इन सब चीज़ों से ज़्यादा मूल्यवान है हमारी शांति। व्यर्थ की माथापच्चियों से, व्यर्थ के छातीकूटों से अपने आपको दूर रखें। व्यर्थ के बोझों को अपने साथ मत ढोओ। उन निमित्तों से अपने आपको निरपेक्ष रखें जो कि हमारी शांति को बार-बार कुंठित कर देते हैं, खंडित कर देते हैं, फिर चाहे वे बच्चे-बीवी भी क्यों न हों। बच्चा किसे प्यारा नहीं होता, सभी को बच्चे प्यारे हैं। मुझे भी प्यारे हैं, आपको भी प्यारे हैं, इसीलिए तो भगवान का भी बाल-रूप स्वीकार किया है, हम बालरूप की पूजा करते हैं। पत्नी भी सबको अच्छी लगती है। कौन कहेगा कि उसे अपनी पत्नी बुरी लगती है। अगर बुरी लगती तो तुम कभी के बाबाजी बन गए होते, पत्नी तो सबको अच्छी लगती है। ऐसे ही हर पत्नी को उसका पति प्रिय होता है। पर यह पति-पत्नी और बच्चों के बीच जो छातीकूटा होता है, वो अच्छा नहीं लगता। हर महिला में चार कमियाँ होती हैं और हर पुरुष में भी। अब न तो महिला सीता जैसी है जो सब कुछ मौनपूर्वक झेल ले और धरती में समा जाए।और न ही पुरुष राम की तरह है जिसमें कोई दोष ही न हो। बहिनो! ज़रा ध्यान रखो कि आपका पति कोई संत नहीं है, जो सब कुछ झेलता जाए। हम सब यहाँ पर इंसान के रूप में जन्मे हैं और दुनिया का कोई भी इंसान दूध का धुला नहीं होता। इसलिए कमियों पर झल्लाते रहने की बजाए जो है, जैसा है, उसी में ख़ुश होना सीखिए। अगर व्यक्ति या वातावरण बोझिल या दूषित है तो 'रोना' रोते रहने की बजाय प्रेमपूर्वक अपनी श्रेष्ठ बुद्धि का इस्तेमाल कीजिए और अपनी शांति, अपनी मुस्कान, अपनी मिठास और अपने मीठे व्यवहार से व्यक्ति और वातावरण को बेहतर और अनुरूप बनाने का प्रयत्न कीजिए। मैं तो कहूँगा कि आपके पति या आपकी पत्नी का नाम चाहे जो हो, पर आज मैं एक नये पति से, एक नयी पत्नी से आपकी मुलाकात करवा देता हूँ। मैंने भी कभी इससे मुलाकात की है। उसका नाम है – शांतिचंद / शांतिदेवी। अगर आप महिला हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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