SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तलाक करवा दीजिए।' वकील जेठमलानी ने कहा – 'बिल्कुल आपका काम हो जाएगा।' उसने पूछा - 'फीस कितनी होगी?' जेठमलानी ने बताया, 'पाँच हज़ार रुपए।' उस व्यक्ति ने कहा -'जब शादी हुई थी तो पंडित ने पचास रुपए लिए थे और आप तलाक के पांच हज़सा मांग रहे हैं ?' वकील ने कहा - 'सस्ता रोए बार-बार, महँगा रोए एक बार । सस्ते का हाल देख लिया, इतनी जल्दी टूटन में आ गए। अब मैं ऐसा पक्का काम करूँगा कि जिंदगी में कभी जुड़ न पाओगे।' स्वयं को विनोदप्रिय बना लें। आप अपने घर में कितने ही धर्मशास्त्र रखते होंगे। उनके साथ में एकदो चुटकुलों की किताबें भी रख लें ताकि थोड़ा-सा विनोद हो जाए, बोझिलता से मुक्ति मिल जाए। भगवान की तस्वीरों के साथ एक हँसता हुआ चेहरा भी टाँग लो ताकि उसे देखकर ही आपको मुस्कुराहट आ जाए। ___जो मुस्कान ज़िंदगी को ऊर्जा से भर दे वही मुस्कान ज़िंदगी की दौलत है। अपनी ओर से पूरा विवेक रखें कि आपके कारण किसी को ठेस न पहुँचे।आप कभी किसी का अपमान न करें। विनोदप्रिय हों, लेकिन किसी को बेइज़्ज़त न करें, तानाकशी या व्यंग्य न करें। किसी की हँसी न उड़ाएँ। सभी के प्रति अच्छी सोच रखें। आपसे किसी का भला हो सके तो ज़रूर कीजिए, पर किसी का बुरा तो कभी न कीजिए। यह जीवन की बुनियादी बात है - अगर आप किसी का बुरा नहीं करेंगे तो आपके मन का आभामंडल कभी दूषित नहीं होगा। आप स्वयं को तरोताज़ा महसूस करेंगे। बुरा करना तो दूर की बात है, किसी के लिए बुरा सोचिये भी मत। गांधी जी के तीन बंदर कहते हैं – 'बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो' । मेरी ओर से एक बंदर और जोड़ लीजिए-'बुरा मत सोचो'। बुरा सोचोगे तो बुरा कहोगे भी। न बुरा देखा जाएगा और न बुरा सुनना पड़ेगा। हमेशा सबके प्रति सद्भाव से भरे रहें। अगर किसी ने गलती कर दी है तो भगवान से यही प्रार्थना करें – 'हे प्रभो, इसे सद्बुद्धि दें ताकि यह फिर से ऐसी ग़लती न करे।' आपके बच्चे किसी ग़लती को बार-बार दोहरा रहे हैं और आपकी बात नहीं सुन रहे हैं, तो उनके लिए सुबह-सुबह भगवान से प्रार्थना करें कि भगवान् इन्हें सदबुद्धि दे ताकि इनका भविष्य उज्ज्वल हो। अपनी ओर से सभी के लिए सदभाव रखें। आपकी अच्छी प्रार्थना और अच्छी मानसिकता का असर आख़िर आपके बच्चों पर ज़रूर पडेगा। समर्थ गुरु रामदास किसी घर में आहारचर्या के लिए पहुँचे। गृहस्वामिनी अंदर लड़-झगड़ रही थी। उसे गुस्सा आया हुआ था। रामदास ने आहार मांगा – 'नमो नारायण, आहार दीजिए।' उसके हाथ में पौंछा था। उसने उठाकर रामदास पर फैंक दिया। रामदास ने देखा, आज किसी सद्गृहस्थ ने मुझे पौंछा दिया है, ठीक है। पौंछे को लेकर चले गए। उसे धोया, बातियाँ बनाईं। शाम को उन्हीं बातियों से आरती सजाई और प्रार्थना के स्वर में कहा – 'हे प्रभो, जिस तरह पौंछे से बनी ये बातियाँ रोशनी भर रही हैं, उस सद्गृहस्थ महिला का हृदय भी ऐसे ही रोशनी से भर उठे।' UFE Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy