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मन के कमजोर होने को हम मन की कमजोरी ही न समझें। मन की कमजोरी सारे जीवन की कमजोरी है। कमजोर मन के द्वारा जीवन में कामयाबी हासिल नहीं की जा सकती। अगर व्यक्ति का शरीर दुर्बल है तो वह व्यक्ति चल नहीं पाता, पर जिसका मन कमजोर है उस आदमी का अपनी जिंदगी में किसी भी चीज़ पर जोर चल नहीं पाता। जीवन में सबसे ज़्यादा सबलता और खूबसूरती अपने मन की चाहिए। मन ही इंसान का बल है और मन ही उसका बलराम । इंसान का मन यदि तनावमुक्त, एकाग्र, शांतिमय और प्रज्ञामय है तो जीवन के विकास में मन से बड़ा और कोई उपयोगी तत्व नहीं हो सकता।
ऑलम्पिक गेम्स में कई तरह के खेल होते हैं, अलग-अलग देशों के खिलाड़ी उसमें भाग लेते हैं। सबकी अपनी तैयारी होती है, सबकी अपनी आर्ट होती है, लेकिन जीत उसी की हुआ करती है जिसमें जीतने का पूरा जज़्बा होता है। जीतने वाले लोग अलग नहीं होते, उनके जीतने का तरीका अलग होता है। सैंकड़ों लोगों में वही खिलाड़ी स्वर्णपदक विजेता बन पाता है,जो पूरी तैयारी करके आता है, ख़ुद पर जिसका विश्वास होता है, छोटे से छोटे और बड़े से बड़े विपरीत क्षण में भी जो धैर्य और श्रेष्ठ बुद्धि से काम लेता है। जीवन में सदा याद रखिए कि मज़बूत मन ही जीवन की समस्त सफलताओं का आधार हुआ करता है। कुश्ती लड़ने वाले दो पहलवान ताकत के लिहाज़ से बराबर ही होते हैं, पर दोनों में से जिसने जीत हासिल की है, निश्चित तौर पर उसके मन में जीतने का जज़्बा बुलंद रहा।
मन का स्वस्थ, सुमधुर और लक्ष्य के प्रति निष्ठाशील होना जीवन की सबसे बड़ी ताक़त है। एक बार, बादशाह बनने के बाद किसी ने हसन से पूछा, 'आपके पास न तो काफी धन था और न सेना, फिर भी आप सल्तान कैसे हो गए?'हसन ने जवाब दिया. 'मित्रों के प्रति सच्चा प्रेम. दश्मनों के प्रति भी उदारता. सबके प्रति सद्भाव और स्वयं पर तथा ईश्वर के प्रति आस्था, क्या सुल्तान बनने के लिए ये चार गुण काफी नहीं हैं ?'
हसन यानी मैं और आप। जीवन में अगर किसी भी पहलू में आप कमज़ोर हैं तो पहले अपने मन को दुरुस्त कीजिए। चाहे विद्यार्जन हो या व्यापार, काम हो या केरियर, संबंध हो या साधना हर हाल में मन की स्वस्थता और आनंद-दशा पहली आवश्यकता है।
आदमी का मन ही उसके वर्तमान का निर्माण करता है और उसकी मनःस्थिति ही उसके भविष्य की आधारशिला होती है। आप मनःस्थिति को गौण मत समझिए। हमारी मानसिकता ही हमारे कल की नींव है। व्यक्ति के भीतर जितना उत्साह और उमंग होगी, उसके जीवन में उतनी ही सफलता और मधुरता होगी। इसलिए दनिया के हर व्यक्ति के भीतर यह विश्वास कायम हो जाना चाहिए कि वह अपने-आप में इस पृथ्वीग्रह की एक महती आवश्यकता है। ज्यों-ज्यों व्यक्ति अपनी आवश्यकता और उपयोगिता समझेगा, त्यों-त्यों वह अपने जीवन और व्यक्तित्व को और अधिक बेहतर, और अधिक सुन्दर और अधिक महान् बनाने के लिए प्रयत्नशील होगा।
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