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उसने कहा – प्रभु, सच बात यह है कि हम दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। पूरी कॉलेज में मैंने पाया कि यह लड़का जितना सुशील और सुन्दर भावदशा का है, उसकी तुलना में पूरी कॉलेज में इससे सुन्दर लड़का मुझे नहीं मिल पाया। इसलिए मैंने इससे शादी कर ली। हक़ीकत यह है कि मैंने इसकी सूरत से नहीं बल्कि इसकी सीरत से शादी की है। व्यक्ति चेहरे का कुरूप हो सकता है, मगर जिसका दिल, जिसकी भावदशाएँ, जिसकी मानसिकता निर्मल और महान् होती है, वही व्यक्ति जीवन में श्रेष्ठ हुआ करता है।
संयोगवश उसी समय उसके पति भी आ गए। मैंने उनसे पूछ ही लिया कि आपको इतनी सुन्दर पत्नी मिली, निश्चय ही आपकी क़िस्मत बहुत अच्छी थी, पर क्या कभी आपको अपने आप पर आत्मग्लानि महसूस नहीं हुई ? उस व्यक्ति ने कहा - 'जब मैं छोटा था तो मुझे बहुत आत्मग्लानि महसूस होती थी। उस समय मेरे लिए कालू नाम सुनकर मुझे बड़ी ठेस पहुँचती थी, पर मैंने बचपन में ही यह संकल्प ले लिया था कि मैं भले ही कुदरत के घर से अभावग्रस्त क्यों न रहूँ, पर मैं अपनी जिंदगी में इतने सुन्दर विचारों का, इतने सुंदर स्वभाव का मालिक बनूँगा, अपने व्यक्तित्व और केरियर को इतना सुन्दर बनाऊँगा कि जिसके चलते मेरी यह कुरूपता अर्थहीन हो जाए। गुरुदेव, जब से मैंने अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के प्रयत्न किए। मेरे प्रयत्न रंग ले आए। आज मैं पूरे शहर में एक सफल डॉक्टर के रूप में माना जाता हूँ। यह सब चेहरे के कारण नहीं बल्कि मेरी नेक नीयत के कारण है।' आपके पति का रंग काला है तो चलेगा, मगर काला स्वभाव नहीं चलेगा। रंग गोरा हो, पर मानसिकता काली हो, तो यह घाटे का सौदा है। रंग गोरा है तो गुमान मत कीजिएगा। गोरा तो चूना भी होता है, एक चम्मच मुँह में रखो तो पता चल जाएगा। रंग काला है तो ख़ुद को हीन मत समझिएगा। काली तो कस्तूरी भी होती है, पर वह जहाँ भी रहती है पूरे क्षेत्र को ख़ुशबू से महका देती है।
रंग की बात छोड़िए, और ढंग की बात उठाइए । ढंग से उठिए, ढंग से बैठिए । ढंग से खाइए, ढंग से पहनिए । ढंग से सोइए, ढंग से जगिए । ढंग से बोलिए, ढंग से पेश आइए । ढंग से काम कीजिए, ढंग से प्रार्थना कीजिए। कार्य चाहे पढाई का हो या लिखाई का. चंदे का हो या धंधे का. मिटिंग का हो या कम्पोजिंग का. अकाउंटेट का हो या मैनेजमेंट का हर किसी को ढंग से कीजिए, हर काम को ढंग से करना ही आपके व्यक्तित्व और आपके कर्तृत्व की पहचान बन जाए।
सलीके का मज़ाक अच्छा, क़रीने की हँसी अच्छी।
अजी, जो दिल को भा जाए, वही बस दिल्लगी अच्छी। सुबह उठते ही अपने भीतर उत्साहभाव का संचार करें। ज़िंदगी में अगर कोई आदमी चुनौती दे दे तो चुनौती झेले। उस चुनौती को पार लगाते हुए कैसे आत्मसमर्थ हुआ जाता है, उसके प्रयत्न अपने जीवन में शुरू कर दें। सफलता, समृद्धि या आनंद जीवन के ढेर सारे लक्ष्य हो सकते हैं, पर पहले अपने मनोबल को मज़बूत करें। काम करने का तरीक़ा बेहतर बनाएँ। अपनी सोच और नज़रिए को सकारात्मक बनाएँ। इस
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