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________________ पहुँचते हैं तो पचास में से चालीस काम निपट चुके होते हैं। कामों की सूची बनाना कार्यशैली का ही एक चरण है। यह कुल्हाड़ी को धार देने की तरह है। कार्ययोजना बनाना या करने वाले कामों की सूची तैयार करना कोई मामूली बात नहीं है। मुझे कहीं पढ़ने को मिला कि एक अमेरिकी करोड़पति चार्ल्स स्क्वैल ने एक विशेष सलाहकार को 25000 डॉलर देकर जीवन की सफलता का राज़ बताने को कहा। सलाहकार ने जो सलाह दी। वह यह थी कि अपने दिन की शुरुआत किए जाने वाले कामों की सूची से करें और बहुत से मामूली कामों में से कुछ अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्यों को प्राथमिकता दें। यानी यह सलाह पच्चीस हजार डॉलर की है। __ लोग कहते हैं 'वर्क इज वर्शिप।' मैं कहूँगा, 'वर्क एज वर्शिप।' लोग कहते हैं : कार्य ही प्रार्थना और पूजा है। मैं कहूँगा कि कार्य भी हम ऐसे करें जैसे कोई प्रार्थना की जाती है। हर काम परमात्मा को समर्पित किये जाने वाले प्रसाद का ही पुष्प है। योजनाबद्ध तरीके से अपने कार्यों को सम्पादित करने वाला व्यक्ति दस दिन के कार्यों को दो दिन में निपटा लेता है। बिना किसी योजना के कामों को करने वाला व्यक्ति दो दिन के काम को भी दस दिन में नहीं निपटा पाता। ___ कार्यशैली को व्यवस्थित करने के लिए ध्यान रखें कि कभी भी किसी कार्य को छोटा न समझें। कभी यह बात मन में न लाएँ कि घर का पाखाना कोई हरिजन आएगा तो वही साफ़ करेगा। काम कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। छोटी-बड़ी तो मानसिकता होती है। चाहे पाख़ाना साफ़ करना हो या पंडरपुर की यात्रा करनी हो, काम तो काम ही होता है। सुबह स्नान से पूर्व बिना किसी संकोच के अपना पाख़ाना साफ कर लें। इससे हमारे मन में पलने वाला अहंकार भी टूटेगा। 'मैं बडा हैं' यह अभिमान भी टूटेगा। मूल्य छोटे-बड़े का नहीं होता, मूल्य भी हमारी विनम्रता और मानसिकता का ही होता है। अहंकार और अहंकार की अस्मिता ये दोनों जब तक नहीं टूटते तब तक व्यक्ति बेहतर नशैली का मालिक नहीं बन सकता। ज़रा कृष्ण को याद कीजिए जिन्होंने अश्वमेघ यज्ञ में अतिथियों के पाँव धोने और उनकी जूठी पत्तलें उठाने का जिम्मा अपने ऊपर लिया। कृष्ण की यह निरभिमानता ही उन्हें 'पूज्य' बनाती है। ज़िंदगी में किसी भी काम को छोटा मत समझो। हम काम से भी प्यार करना सीखें। जिस व्यक्ति को छोटे-से-छोटा काम करना भी अच्छा लग सकता है, वह हर हालत में स्वस्थ, स्वावलम्बी और श्रेष्ठ जीवन का स्वामी होता है। अगर एक घंटे की ख़ुशी चाहिए तो जहाँ बैठे हैं, वहीं एक झपकी ले लें। अगर एक दिन की ख़ुशी चाहते हो तो जहाँ नौकरी करते हैं वहाँ से छुट्टी ले लें। पूरे दिन ही मस्ती मारें। एक सप्ताह की ख़ुशी चाहते हो तो घर-परिवार की झंझट छोड़कर किसी हिल UFE Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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