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________________ तैयार नहीं हुआ। आज हैरी पॉटर सोने की खान बन गया है और जे.के. रोलिंग ब्रिटेन की महारानी से भी ज़्यादा अमीर है। आदमी चाहे तो अपनी जिंदगी को खंड-खंड कर सकता है और चाहे तो विपदाओं का सामना करते हुए अपनी जिंदगी को सफलता का द्वार बना सकता है। जिस व्यक्ति के पाँव में पहनने को जूते नहीं हैं, वह पडौसी के जूते देखकर मन में खिन्न और द:खी होता है पर मैं कहना चाहँगा कि भाई. मन में खिन्न न हों क्योंकि दुनिया में तो ऐसे हजारों लोग हैं जिनके पाँव तक भी नहीं हैं। माना कि आपके पास ब्रॉडेड जूते या साड़ी नहीं है, पर दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिन्हें पहनने को न जूते है और न ही साड़ी। जीवन में संतोष प्राप्त करने के लिए आप आगे बढ़ चुके लोगों पर नज़र केन्द्रित मत कीजिए, नहीं तो आपको अभाव खलेगा। आप उन्हें देखिए जो भाग्य से वंचित हैं, दुःख और ग़रीबी रेखा से नीचे हैं। कमज़ोर को देखेंगे तो ईश्वर के प्रति शुक्रगुज़ारी का भाव पैदा होगा। अपने से आगे बढ़े हुए लोगों को देखेंगे तो ईर्ष्या और तनाव पैदा होंगे। कुदरत हमें जो देती है हम उसमें सुखी होना सीखें। सुख और दुःख मन की खटपट है। मन सहज है, तो जीवन में सुख है। मन असहज है तो जीवन में दुःख है। सुख और दुःख दोनों ही स्थितियों में सहज रहना जीवन की सबसे बड़ी आत्मविजय है। ____ एक मशहूर संत हुए हैं जाफ़र सादिक़। एक बार किसी आदमी के रुपयों की थैली चोरी हो गई। तो उसे संत पर संदेह हुआ और संत को पकड़ लिया गया। संत ने पूछा – 'थैली में कितने रुपये थे?' उसने बताया, 'एक हजार रुपये।' संत ने बिना किसी ननुनच के अपनी तरफ़ से उसे एक हज़ार रुपये दे दिए, पर कुछ दिनों के बाद जब असली चोर पकड़ा गया, तो रुपयों का मालिक घबराया। वह एक हज़ार रुपये लेकर संत के पास पहुँचा। और उनके चरणों में रुपये रखकर क्षमा प्रार्थना करने लगा। संत मुस्कुराए और मृदुता से बोले, 'भाई, मैं दी हुई चीज़ वापस नहीं लेता।' यह हुई व्यक्ति की सहजता। यानी इसमें भी आनंद और उसमें भी आनंद। प्रभाव में भी आनंद और अभाव में भी आनंद। आप अभाव में भी घबराएँ नहीं। धीरूभाई अंबानी ने ग़रीबी के कारण केवल दसवीं तक की ही पढ़ाई की थी। उन्होंने पेट्रोल पंप पर नौकरी की, पर जब सन् 2002 में उनकी मृत्यु हुई तो इनकी संपत्ति साठ हज़ार करोड़ रुपये थी। बिजली के बल्ब के आविष्कारक थॉमस एडिसन को बचपन में मंदबुद्धि बालक समझा जाता था। वे सिर्फ तीन महीने ही स्कूल गए और बाद में उनकी माँ ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया। वे मानते थे कि असफलता ही इंसान को सफलता के अधिक करीब लाती है। UFE 74 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003860
Book TitleLife ho to Aisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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