Book Title: Adhidwipna Nakshani Hakikat
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगतनुं पुस्तक. एमां जंबूद्वीप, लवणसमुद्र,धातकीखंड,कालोदसमुद्र, अनेपुष्कराई द्वीपसंबंधिशाश्वतापदार्थोनुं सविस्तर वर्णन तथा चोवीश दमकें स्थिति आदिक पांत्रीश द्वार प्रमुख __ अनेक प्रकारना बूटा बोलोनो समावेश करेलो . ---- - - एग्रंथ व समस्त निश्चयार्थ जिज्ञासु एवा सम्यग्दृष्टि जनोने वांचवा धारवाना खपमां श्राववा योग्य जाणी. श्रावक, जीमसिंह माणके. नाणजी माया सारु श्रीमुंबापुरीमध्ये. निर्णयसागर नामक मुजालयमां बाळकृष्ण रामचंज घाणेकर पामे मुखित कराव्यु के. शके 1831 संवत् 1965 सने 1909. अ) पुस्तकने छपाववा संबंधी सर्व हक्क छपावनारें पोताने स्वाधीन राख्यो छे. SZINTAS SanCNAGNSTEALLETTE Page #2 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. क्रमांक. पृष्टांक. क्रमांक. पृष्टांक. 1 असंख्याता द्वीपसमुज्नुं प्रमाण.... 1 शए विजयनी बत्रीश नगरीनां नाम.... 60 5 जंबूछीपनां संदेप परिध्यादि. .... 1 30 सीतासीतोदा अने वननुं वर्णन... ६ए 3 अढीवीपमां कया कया पदार्थ . 2 31 जंबूहीपना योजननो शरवालो .... so 4 अढीलीप माहेला शाश्वता पदार्थो 32 तीर्थकर चक्रवर्तीनी उत्पत्ति. .... र एकतालीश बोले संदेपे कह्या..... 233 नीलवंत पर्वत वर्णन..... 5 जंबछीपनी जगतीनुं वर्णन. ... 2034 रम्यक्यौगलिकदेत्र वर्णन. 6 विजयदेवनी राजधानी, वर्णन..... श्ए 35 रुक्मिपर्वत वर्णन.. ....... नरतक्षेत्र वर्णन. ... .... 35 36 हैरण्यवंत यौगलिक क्षेत्र. जरतमां अयोध्यानुं प्रमाण. ..... 36 37 शिखरी पर्वत वर्णन. ..... एवैताढ्य पर्वत वर्णन. ... .... 37 37 बार श्रारानुं स्वरूप. .... 10 उत्तराई जरतवर्णन. .... .... 40 ३ए गंगासिंधुना बिलनुं स्वरूप. 11 चूलहिमवंत पर्वत पद्मप्रहादिक.... 40 40 चंछ सूर्यनुं स्वरूप. ...... 12 गंगा सिंधु तथा प्रपात कुंम. ... 4241 परिधिनो गणित तथा यंत्र. ....' 13. हिमवंत युगलक्षेत्र वर्णन. .... 45 45 गणितपदना हीसाब तथा यंत्र .... 14 महाहिमवंत पर्वत वर्णन. .... 45 43 जीवा गणित अने यंत्र. 15 हरिवर्ष यौगलिक क्षेत्र वर्णन. .... 4 44 इकुकरवानी समजण.... 16 निषेध पर्वत वर्णन. .... 45 धनुपृष्ठ गणित उपाय तथा यंत्र.... 27 नदी, जह, कुंम वर्णन. 46 बाहाकरण विधि तथा यंत्र. .... ए६ 17 महाविदेह देत्र वर्णन. 47 प्रतर करवानी विधि तथायंत्र..... 100 रए गजदंतगिरि वर्णन. ..... 4 घनगणित करवानो विधि. .... 115 20 उत्तरकुरुक्षेत्र वर्णन. .... 55 ४ए घनगणित यंत्र स्थापना. .... 114 1 उत्तरकुरु माहेला अहनुं वर्णन 57 50 इकु प्रमुखना सिझांक. .... 25 जंबू वृत वर्णन. ... 57 51 जिव्हा प्रमुख गणितनी गाथा.... 23 देवकुरुक्षेत्र वर्णन. .... .... 60 55 लवणसमुनो अधिकार. 24 मेरुपर्वत वर्णन. .... .... 61 53 बप्पन्न अंतरछीप वर्णन. 25 जशालादि चार वन- वर्णन .... 62 54 धातकीखंडनुं वर्णन .... 26 तीर्थंकर जन्मानिषेकनी शिला .... 66 55 कालोद समुज्नुं वर्णन. 27 महाविदेहना बत्रीश विजय. .... 66 56 पुष्करा: छीपाधिकार.. 27 वक्षस्कार पर्वत वर्णन.... .... 67 57 बीजा जीप नदी पर्वतादिक. .... १२ए MES 'ता 127 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्टांक. अनुक्रमणिका. क्रमांक. पृष्टांक. क्रमांक. 57 बझाक्षेत्रोनां प्रमाण.... .... 130 तथाविमानोनी लंबाई श्रादिक. 177 एए मनुष्यदेत्रमा पर्वत संख्या. ... 131 2 समुजोना पाणीना स्वाद .... 170 60 मनुष्यदेवथी बाहिर कया पदा. 3 देवोना शरीरना प्रमाणनो यंत्र. 11 र्थ नथी? ते कह्या ...... .... 131 4 त्रायस्त्रिं शकादि देवो तथा वाण 61 नंदीश्वर, रुचक अनेकुंमलकीप. 132 व्यंतरेंजोना चिन्ह, वर्णादिक.... 12 62 अढीछीपमां मनुष्य संख्या. .... 132 5 प्रतरे प्रतरे त्रिखूणादिक, विमा. 173 63 चोवीश दंगकनां नाम. ..... 136, 76 विमानोने श्राधार, चिन्द, पृथ्वी 64 शरीरादिक पांत्रीश छार एमां अ पिम, त्रिखूणादिकविमान संख्या, पबहुत्वधारना अहाणु बोल . 130 किटिबषिदेवोनां श्रायुष्यादि यंत्र.१७५ 65 चोवीश दंडक मांदेला प्रत्येक दं 77 लोकांतिक देवोनुं स्वरूप. ... 177 मके शरीरादिक पांत्रीश धार.... 147 वैमानिक देवोने अवधिज्ञान.... १७ए 66 जवनपति देवोनुं स्वरूप. .... 164 | ए नारकीना आयुष्यनो यंत्र. ..... 10 67 दश निकायनां नामादिकयंत्र .... 165 ए नारकीनो पृथ्वीपिमादिक यंत्रो. 192 6 नवनपति व्यंतर देवीन आयु.... 166 ए नारकीने घनोदध्यादि आधार. १ए ६ए जवनपतिना इंश तथा जवन .... 166 | ए ब प्रकारना पट्योपमनुं स्वरूप. १ए। 70 व्यंतर देवोनुं स्वरूप. | ए३ शो प्रकारना रत्नोना नेद. .... 202 71 ज्योतिषी देवोनुं स्वरूप. .... 167 ए४ कया कया जीव नरकमां जाय. 215 72 ज्योतिषी तथा वैमानिकायु. .... १६ए एए कया मनुष्य कयी गतिमांजाय. 13 73 लोकपालनु थायु तथा प्रतरे प्रतए६ चक्रवर्तिना चौदरत्न स्वरूप. .... 214 रे श्रायु कहेवा माटे उपाय..... 171 ए सिकिशिक्षा स्वरूप पूर्व संख्या. 15 चारे निकायनी अग्रमहीषी तथा ए तीर्थंकरादित्रेवीश पदवीनांनाम.२१५ वैमानिकनो प्रतर संख्या यंत्र .... 174 एए उत्सेधादि अंगुलनुं स्वरूप. .... 16 75 प्रतरे प्रतरे उत्कृष्टायुनो यंत्र .... 175 100 जूदी जूदी योनियोनो विचार.... 17 76 वैमानिकना त्रिखूणादि विमान.... 176 101 उपक्रमादिक आउखानुं स्वरूप. 17 77 सौधर्मेशाने देवीनी उत्पत्ति. .... 177 102 अढारनात्रानां नाम. .... १ए देवोना सर्व प्रकार केटला ..... 177 103 अशुजध्याननां त्रेशठ स्थानक. 120 पुए नवनपतिनां श्राजरण चिन्हादि. 177 104 उपदेश रत्नकोष बहोतेरनेद .... 30 अढीछीपगत चंड सूर्य संख्या.... 170 105 न जाणे न श्रादरे न पाले र ज्योतिषीना विमानवाहक देवो त्यादि अष्टनंगीतुं स्वरूप. .... 124 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवर्डमान स्वामिने नमो नमः अथ // अढीहीपनां नकशानो विचार प्रारंभः // एक राज प्रमाण तिर्बो लोक तेमां असंख्याता दीप थने असंख्याता समुड बे,ते सर्वमां जंबलीप श्राद्यमां श्रने स्वयं रमण समुख अंतमां बे. ए सर्व वीप मली सं ख्याये अढीसागरोपम अर्थात् पच्चीश कोमाकोमी उकार पट्योपमनां जेटलांसमय थाय तेटलां , ते संस्थान थकी एकज श्राकारे अने विस्तार पणे अनेक प्रकारनां ने एटले प्रथम छीपथी प्रथम समुह द्विगुणो ने तेथी बीजो द्वीप बमणो ने तेथी बीजो समुह बमणो ने तेथी त्रीजो बीप बमणो एरीते सर्वे छीपसमुख विस्तारे एकेकथी बमणा बमणा पहोल पणे बे, सुप्रशस्त वस्तुनां जेवां जेवां नाम ले तेवां तेवां नामे ए छीप समुस ने ते वली एकेका नामे करी पण असंख्याता संख्याता ने जेम था मध्यनो जंबृद्धीप ने तेम एज जंबूने नामे बीजा पण असंख्याता बीपबे. ते सर्व दीप श्रने समुज्ने धन्यतर एटले तिर्यकलोकना मध्यवर्ति श्राजंबहीप जे. ते घका दीप समुपनी अपेक्षाये सर्वथकी न्हानो ने एमांजंबू सुदर्शन नामे वृक्ष तेमाटे एनुं जंबू एबुं नाम . ए जगति सहीत प्रमाणांगुले करी एक लाख योजन लांबो पहो सोने, थालीने आकारे, कमलना डोडाने श्राकारे, तेलना पुडला करीये ते जेवा गोल होय तेवा श्राकारे, पूरण चंद्रमाने आकारे, तथा रथना पश्माने श्राकारे गोल बे. एनी त्रणलाख शोलहजार वशे सत्तावीश योजन, त्रणकोश,एकशो अहावीश धनुष्य, तेर अंगुल, पांच यव, एक जू, एक लीख, चार वाल, वली एक वालनां शाठ नाग करीये ते मांहेला सात जाग तथा वली ते शाठीया एक नागनां एकश नाग करीये ते माहेला दशजाग उपर एटली परिधि ने शेष सर्वश्रसंख्याता जंबूलीप चूमीने श्राकारे जाणवा अने असंख्याता कोमा कोनी योजननां साबा पदोला , ए प्रथम जं. ब्रहीप जे जे ते बीजा सर्वे असंख्याता बीप श्रने समुझे करी वीटेलो बे. 'जेम जंष्ट्रीप जगती सहीत एकलाख योजननो ने तेम एने फरतो लवण समुफ डे ते जगती सहीत बे लाख योजननां विस्तार वालो ने तेमज लवण समुज्ने फरतो धा तकी खंड दे ते जगती सहीत चार लाख योजन डे तथा धातकी खंमने फरतो का लोद समुज्जे ते जगती सहीत आठ लाख योजन तथा कालोद समुपने फरतो पु करवर छीपने ते पूरणतो शोल लाख योजन डे परंतु ते मांदेडुं आउलाख योजन प्र Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी दकीगत. माण अछीप मानुष्योत्तर पर्वते करी वींटेढुंबे ते माहे मनुष्यनी वस्ति श्रने बाहे रनो अर्डहीप मनुष्यनी वस्तिथी शून्य माटे पुष्करवर छीपनो अईजाग बढीछी. पनी गणतिमां सीधोडे तेथी एनुं पुष्कराडीप नाम राख्युंडे. एरीते एक लाख योजन जंबुद्धीपनां तथा बे लाख पूर्व श्रने बे लाख पश्चिमनां मली चार लाख योजन लवण समुजनां मेलवतां पांच लाख योजन थया तेनी साथे पूर्व धातकीनां चार अने पश्चिम धातकीनां चार मली श्राठ लाख योजन धातकीखंमनां मेलवतां तेर लाख योजन थया. तथा तेनी साथे पूर्व कालोद समुज्नां थाउलाख अने पश्चिम कालोद समुज्नां श्राठ लाखमली शोल लाख योजन कालोद समुजनां मेलवीये तेवारे जंगणात्रीश लाख योजन थाय तेनी साथे पुष्करवरछीपानांपूर्व पश्चि मनां बाउ बाठ लाख मली शोल लाख योजन मेलवीये तेवारे पीस्तालीश लाख योजन प्रमाण अढीछीप थाय ने तेमा मनुष्यनी वस्ती बे. ए श्रढी छीप प्रमाण मनुष्यक्षेत्रनुं पूर्वोक्त रीते पूर्व पश्चिम विष्कंन पीस्तालीश लाख योजन प्रमाण तेमज दक्षणोत्तर विष्कंन पण पीस्तालीश लाख योजन प्रमा णजे तेमा जे जे शाश्वता पदार्थो रह्याने तेना चित्र था पुस्तकने विषे सामान्य प्रकारे देखाड्याने. तिहां प्रथम पूर्व पश्चिमनां पीस्तालीश लाख योजन श्रावीरीते पूराणाले. पुष्करा छीपना पूर्व अने पश्चिम ए बे बाजुना मानुष्योत्तर पर्वत पासे 'श्रावेला महोटा बे वन मुख ले ते प्रत्येक 116 योजननां बे. .... 23376 पुष्कराकमा बे बाजुनां बेवमा बत्रीश विजय ते प्रत्येक विजयतुं विष्क न १एए। योजननुं तेने बत्रीश विजय साथे गणता सरवाले. .... 633416 पुष्कराईमां शोल वक्षस्कारा पर्वत जे ते प्रत्येक पर्वत बे बे हजार योजननांडे 32000 पुष्कराईनी बार अंतरनदी प्रत्येक पांचसो योजन प्रमाणे गणतां योजन. 6000 पुष्करानां बे मेरुनां बेवन प्रत्येके ४४०ए१६ योजन प्रमाणे गणतां योजन. 35 पुष्करानां मांदेखी बाजुनां समुज तरफनां बे बाजुनां बे वनमुख जगतीनां योजन बाद करतां प्रत्येक 11676 योजन प्रमाणे गणतां योजन. .... 23355 अढीछीपमा एक जंबूछीपनी, बीजी लवण समुज्नी,त्रीजी धातकी खंमनी . अने चोथी कालोद समुनी ए चार जगती पूर्व दिसीनी लने चार जगती पश्चिम दिसीनी एम बेबाजुनी मली जगती आउने अने पुष्कराछीपने फरतो मानुष्योत्तर पर्वत,तेनी जगती जिहां छीपपूरण थायले तिहांले मा. टेते गणी नथी शेष आठ जगती प्रत्येक बारबार योजन प्रमाणे गणतां. ए. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीवीपना नकशानी दकीगत. कालोद समुना एकेकी बाजुनां श्राउ लाख योजन प्रमाणे वे बाजुनां. 1600000 धातकी खंमनां बे बाजुनां चार वनमुखडे तेमांथी एकेका बाजुनां वे बे वन मुखें जगति बाद करतां 19664 योजन संध्या . .... .... 2332 धातकी खमनी बे बाजुनी बत्रीश विजयनां प्रत्येक विजयें (ए६०३)योजन उपर एक योजननां श्राप नाग करीये तेवा त्रख नाग रुंध्या डे. .... 303307 धातकी खंमनां बे बाजुनां शोल वक्षस्कार पर्वत प्रत्येक हजार योजननां . 16000 धातकी खंडनी बार अंतर नदीनांप्रत्येकें अढीसो अढीसो योजन गणतां. 3000 धातकी खंडनां बे बाजुना बे मेरुनीपासे नशाल वननां एकेक बाजुनां 225150 योजन प्रमाणे गणतां योजन. .... 450316 लवण समुष एकेकी वाजुनां बे बे लाख गणतां बे बाजुनां योजन. .... 400000 जंबूछीपनो वनमुख एकेक बाजुनी जगतीनां बार बार योजन बाद करता बाकी श्ए१० योजन प्रमाणे गणतां बे बाजुनां योजन. .... .... 520 जंबुद्धीपनां प्रत्येक एकेकी विजयनां 2212 योजन अने एक योजननां श्राउ नाग करीये तेवा सात नाग उपर एवा शोल विजय. यद्यपि जंबूमा विजयतो बत्रीशडे पण पूर्व पश्चिम श्राश्रयी बेबे विजयनो एकेक जाग गणतां आ ठेकाणे शोल विजय हिसाबमां गणवा एजरीत धा तकीखंडे तथा पूष्कराईमां पण जाणवी. 35406 जंपूछीपनां श्राप वक्षस्कार पर्वत पांच पांचशो योजन प्रमाणे गणतां. .... जंबूछीपनी उ अंतरनदी सवासो सवासो योजन प्रमाणे गणतां योजन...... 750 जंबूछीपनो मेरु तथा नशाल वननां योजन .... .... .... 54000 सरवाले श्रढीछीप संबंधी पूर्व पश्चिमनां योजन. .... .... 4500000 हवे दक्षणोत्तर विष्कंन 450 लाख योजन श्रावी रीते पूराणा बे. पुष्कराई मां बेतरफनां बेश्नुकार पर्वत प्रत्येक गति सूधां श्राप लाखयो० 1600000 कालोदधीनां एकेक बाजुना श्राप श्राप लाख योजन प्रमाणे गणतां. .... 1600000 धातकीखंमना इकुकारपर्वत एकेकी बाजुनां चारलाख योजनजगती सूधांबे. 00000 लवण समुपनी एकेकी बाजुनां बेबे लाख योजन प्रमाणे गणतां..... 40000 दक्षण जरतार्क तथा दक्षण ऐरवत्तार्ड एकेकाना श्शए योजन अने एक योजनना श्रोगणीश नाग करीये ते मांदेला त्रण लाग उपर जे. .... 45 जरतक्षेत्र माहेला वैताढ्यनां पञ्चाश योजन. ऐरवतक्षेत्र मांहेला वैताढ्यनां पञ्चाश योजन. .... 50 H000 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ee अढीप्रीपना नकशानी हकीगत. ददण जरताऊंनी अयोध्यानगरी पोहोल पणे नव योजन ..... उत्तर ऐरवतानी अयोध्यानगरी पोहोल पणे नव योजन बे. उत्तर बाजुनां जरतार्डनां योजन. 23) दक्षण बाजुये ऐरवतानां योजन- ... 237) चुलहेमवंत पर्वत पोहोल पणे योजन. .... 1055) शिखरी पर्वतनां पोहोल पणे योजनः ..... 1053)2 हेमवंत क्षेत्र युगलीयानुं पोहोल पणे योजन. 215) एरन्यवंत क्षेत्र युगलीयानुं पोहोल पणे योजन. 2105) महाहिमवंत पर्वत दक्षणोत्तर पहोल पणे योजन..... .... 4210) रूपी पर्वत दक्षणोत्तर पहोल पणे योजन. 4210) हरिवर्ष क्षेत्र युगलीयानुं दक्षणोत्तर पहोल पणे योजन. G421) रम्यक् क्षेत्र युगलीयानुं दक्षणोत्तर पहोल पणे योजन. 421) निषध पर्वत दक्षणोत्तर पोहोल पणे योजन. ..... .... 16742) नीलवंत पर्वत दक्षणोत्तर पोहोल पणे योजन. ... .... 16742) देव कुरुक्षेत्र युगलीयानुं दहणोत्तर पोहोल पणे योजन .... 11042) उत्तर कुरुक्षेत्र युगलीयानु ददाणोत्तर पोहोल पणे योजन. .... .... 11042) मेरु पर्वतनी दक्षणोत्तर विष्कंन. .... सरवाले अढीछीपनां दक्षणोत्तर योजन संख्या. 4500000 // अथ एकतालीश बोलें अढीहीप व्याख्यान उपदेश // प्रथम श्ष्टदेवने नमस्काररूप मंगलाचरण // ' ॥श्लोक // श्रीवईमानाख्यविभुं यजामि, सुरासुरैःसेवितपादपद्मम् // तस्योपदेशामृतपानपीना, नरा नवाब्धिं विषमं तरंति // 1 // हवे अढीछीपनी व्याख्या करे. जंबूटीपथी मांडीने मानुष्योत्तर पर्वत लगे अढी छीप समयदेत्र कहेवायचे. एमां जे काश् शाश्वता पदार्थ, नित्य पदार्थ, ध्रुवपदार्थ, श्रव स्थितनावे ते संदेपथी एकतालीश बोले करी कहीये बैये. 1 प्रथम बोले खांमुश्रानुं प्रमाण कहेजे. लाख योजननुं जंबूछीपडे तेना. 190) खांडुश्रा थाय, ते श्रावी रीते. प्रथम एक खांमुश्रो जरत क्षेत्रनोजाणवो,तेवाज बे खां 10000 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अदाबीपना नकशानी हकीगत. मुथा चुल्लहेमवंत पर्वतना, तथा चार खांमुथा हेमचंतनामे युगलीयाना देवनां, तथा श्राप खांडुश्रा महाहेमवंत पर्वतना, तथा शोल खांडुआ ह रिवास युगलीयानां देवनां तथा वत्रीश खांमुया निषध पर्वतना. एरीते नरत होत्रीयी मामीने निषध पर्वत लगे वेशव खांडुश्रा थया. तेवाज त्रेशठ खांदुआ ऐरवत दत्रयी मामीने नीलवंत पर्वत लगे थाय श्रने चोश खंडुक प्रमाणे महाविदेह क्षेत्र एम सरवाले मली एकशो नवं खांमुश्रानुं जंबहीप वे. ते एकेको खांडुन (556) योजन अने एक योजननां अंगणीश लाग करीये तेवा न नाग उपर एटला प्रमाणनो जाणवो, तेने एकशो नेवुये गुणतां बराबर एक लाख योजन दहणोत्तर जंब्रहीपनां थाय, तेनी यंत्र स्थापना // खंमुक. क्षेत्रादिकोनां नाम. 64 महाविदेह देवनां खंडुक चोशठ. 1 जरतदेोत्रनो खंडुक एक. 32 नीलवंतपर्वतनां खंडुक वत्रीश. 2 चुहिमवंतपर्वतनां खंमुक बे. 16 रम्यक्त्र युगलीयानुं खंमुक शोल. 4 हेमवंतयुगलीयानुदेव खंडुक चार. 5 रूपीपर्वतनां खंमुक आठ. 7 महादेमवंतपर्वत खंमुक आव. ऐरन्यवंतदेत्रयुगलीयानूखंडक चार. 16 हरिवासयुगल देवनां ग्वमुक शोल. 2 शिवरीपर्वत ग्वंमुक वे. 32 निषधपर्वतमा वमुक पत्री ऐवतदेत्रनो ग्वंसक एक. 2 वीजा बोले योजन प्रमाण कहे. जंबहीपना दक्षण दरवाजाश्री मांडीने चुल्ल हेमवंत पर्वतनां झपजकूट पर्यंत (556) योजन अने व कला प्रमाणे जरतदेव. तथा 1852) योजन ने वारकला प्रमाणे पहोलो हिमवंत पर्वतो. तथा 2155 ) योजन ने पांच कला प्रमाणे पहोलो डेमवंतयुगल ने तथा 4210 ) योजन ने दश कला प्रमाणे पहोवू महाहिमवंत पर्वतले, तथा 1421) योजन अने वे कला प्रमाणे पहोवू हरिवास युगलीयान कंत्र. तथा 16742 ) योजन अने वे कला प्रमाणे पहोलो निषधपर्वत. एज प्रमाणे ऐरवतत्रयी मामीने नीलवंतपर्वत लगे पण म र्यादा जाणवी श्रने निपधपर्वतश्री मांगी नीलवंत पर्वत बगे 33374 ) योजन अने चार कला उपर एटळ महाविदेहक्षेत्र पोहोबुंडे सरवाले उत्तर दक्षिण जंबछोपनां एक लाख योजन थया तेनुं यंत्र. क्षेत्रादिकनां नाम. पोहोलाइ यो कला. क्षेत्रादिकना नाम. पहोलाश्यो कला. .... 6 नीलवंतपर्वत, 16742 .... 5 चुलहेमवंतपर्वत ....... 1052 .... 15 रम्यकत्र युगलीयानुंग४५१ .... ? हेमवंतयुगल क्षेत्र. .... 2105 .... 5 रूपी पर्वत. .... 4210 .... 10 महा हिमवंतपर्वत. .... 4210 .... 10 ऐरन्य वंतयुगल क्षेत्र. 2105 .... 5 जरतक्षेत्र. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीवीपना नकशानी हकीगत.. हरिवर्षयुगलक्षेत्र .... 451 .... 1 शिखरीपर्वत ... 1055 .... 15 निषधपर्वत .... 1645 ..... 2 ऐरवतक्षेत्र .... 516 .... 6 महाविदेहदेत्र .... 33604 .... 4 33157----17 6642---- सरवाले ( 100000) 3 त्रीजे बोले गणीत पद कहे जे. सातसें क्रोड, नेक्रोड, बपन्नलाख, चोराणु हजार, उपर दोढसो योजन कांश्क अधिकुं एटलुं जंबूडीपनुं गणीत पद बे. 4 चोथे बोलें परिधि कहे .त्रणलाख शोख हजार बसें सत्तावीश योजन,त्रण कोश, एकशो अहावीश धनुष्य अने तेर अंगुल जाजेरा एटली जंवृष्टीपनी परिधि जाणवी. तथा पंदरलाख एक्यासी हजार एकसो उंगणचालीश योजन किंचित उणा लवण सी मुनी परिधि जाणवी. तथा एकतालीश लाख दश हजार नवसे ने एकशठ योजन एटली धातकी खंमनी परिधि जाणवी.तथा एकाणु लाख सीतेर हजार बशें पांच योजन कांक विशेषाधिक एटली कालोदधीनी परिधि जाणवी तथा एक कोड बैंतालीश लाख त्रीशहजार बशें उगणपञ्चास योजन एटली अत्यंतर पूष्करानी परिधि जाणवी. ___5 पांचमें बोले पूर्वथी ददण, दक्षणथी पश्चिम, पश्चिमथी उत्तर धार धारनुं अंतर कहे . जंगणाएंसी हजार बावन योजन एक कोश पंदरसें बत्रीश धनुष्य अने त्रण अं गुल एटलो जंबूहीपना दरवाजा दरवाजानो अंतर जाणवो. तथांत्रणलाख, पंचा णुहजार बशें बेंसी योजन ने एक कोश एटलो लवण समुज्नां दरवाजा दरवाजानो अंतर जा णवो तथा दशलाख सत्तावीश हजार सातशे पांत्रीश योजन श्रने त्रण कोश एटटुं धातकी खंगना दरवाजा दरवाजानो अंतर जाणवो. तथा बावीश लाख बाणु हजार बशे बेतालीश योजन अने त्रण कोश एटलो कालोदधीनां दरवाजा दरवाजानो अंतर जा णवो. अने पुष्करानां दरवाजा नथी पण श्राखो पुष्करछीप शोललाख योजननो ते ना दरवाजा ले परंतु अईहीपनां दरवाजा नथी, प्रत्येक बीप समुननी परिधिना योज ननो चोथो नाग करी तेमांथी छारनां बारणानां सामाचार योजन उठा करतां जेटला योजन बाकी रहे तेटर्बु दरवाजा दरवाजानुं अंतर जाणवू. तथा जंछीपनां चार दर वाजानां नाम था प्रमाणे. एक पूर्वे विजय, बीजो दक्षिणे विजयवंत, त्रीजो पश्चिमेज यंत, चोथो उत्तरे अपराजित. ए चार दरवाजाने नामे ए दरवाजाना चार धारपालना पण एहीज नाम , जंबूनो कोट मूलमां पोहोलो बार योजन डे तथा मध्यजागे पोहोलो पाठ योजन अने उपर पोहोलो चार योजन तथा सर्वे दरवाजा श्राव योजन ऊंचा बे श्रने चार योजन पहोल पणे बारणा . एकेक कोरनी बे बाजु बारशा Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. ख. जंक्षीपना दरवाजाने साहामा चारे कोरे दोरी बंट सर्व असंख्याता डीप स मुजनां दरवाजा ले ते सर्वछीप समुमोना दरवाजानां नाम एना एहिज जाणवा. 6 बहे बोले वर्षधरक्षेत्र कहे. एक जरत, बीजो हेमवंत युगलक्षेत्र, त्रीजो हरिवास युगलक्षेत्र, चोथो ऐरवंतक्षेत्र, पांचमो ऐरण्यवंत युगल क्षेत्र, हो रम्यकयुगलक्षेत्र,श्रने सातमो माहाविदेह क्षेत्र ए सात जंबूझीपमा तथा धातकीखममां एथी बमणा चौदवर्ष धर क्षेत्र ने अने पुष्कराईमां पण धातकीनी पेरे चौद वर्षधर सर्व मली अढी ही पमा पांत्रीश वर्षधर देत्र , एनी लंबा पोहोलाश्नां प्रमाण श्रागल कहेशे. ___7 सातमे बोले वर्षधर पर्वत कहे वे एक हेमवंत, बीजो महादेमवंत,त्रीजो निषध, चोथो शिखरी, पांचमो रूपी. बहो नीलवंत, अने सातमो मेरु ए सात जंबहीपमा अने धातकी खंममा ए थकी बमणा चौद ले. ते सर्व जंबुद्धीपना वर्षधर प्रमाणे उंचा ले पण लंबाश्मां चार चार लाख योजन हवे पोहोलपणो कहे. बे हेमवंत श्रने बे शि खरी ए चार पर्वत बे हजार एकसो पांच योजन अने 5 नाग. तथा बे महा हेमवंत भने बे रूपी ए चार पर्वत आठ हजार चारशो एकवीश योजन श्रने 1 नागले. तथा बे निषध अने बे नीलवंत ए चार पर्वत तेत्रीश हजार बशें चोराशी योजन उपर 4 जाग ले. हवे पुष्कराईमां पण जंबूहीपथी बमणा वध्या तेवारे चौद पर्वत थया ते सर्वे संबाश्मां श्राउ लाख योजन प्रमाणे अने पोहोलाश्मा जेटला डे ते कहेले. बे हेम वंत तथा बे शिखरी ए चार पर्वत चार हजार बशें दश योजन अने 10 नाग . त था बे महादेमवंत अने बे रूपी ए चार पर्वत शोल हजार थाठसे बैंतालीश योजन उपर 2) नाग . तथा बे निषध अने बे नीलवंत मली चार पर्वत शमशठ हजार त्रणसे श्रमशठ योजन उपर नाग बे. हवे पांच मेरुनो जंचपणो तथा पहोल पणो कहेले. प्रथम जंबंछीपनो मेरु एक हजार योजन धरतीमा जंडो ने श्रने नवाणुं हजार योजन उपर उंचो सरवाले लाख योजन उंचो ने मेरुना मूलना देग्ला बेहेमाथी समजूतल पृथ्वी एक हजार योजन ऊंची बे. तथा समनूतलथी वली पांचशे योजन ऊंचुं नंदनवन . तथा नंदनवनथी शाडा पाशठ हजार योजन ऊंचुं सोमनस वन तथा सोमनसवनथी बत्रीश हजार योजन उंचुं पंमुक वनडे. एरीते एक लाख योजन उचपणानां थया अने उपर चालीश योज न उंची चूलीका ले ते चोटली सरखी ले ए मेरुनो उंचपणो कह्यो. हवे पोहोलपणो कहे. मूल धरतीमां दशहजार ने नेवं योजन उपर एक योजननां श्रगीयार नाग क रीये तेवा दस नाग एटडं पोहोल पणे. पनी त्यांथी प्रदेशे प्रदेशे घटतां घटतां सम जूतल पागल बराबर दशहजार योजननो पहोल पणे थयो बे. तथा नंदनवन पासे Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. ( एए४ ) योजन अने एक योजननां अगीबार नाग करीये तेवा ब नाग उपर एट लुं पोहोल पणे बे तथा सोमनसवन श्रागस (4272) योजन उपर श्रगीथारीश्रा श्रा नाग एटलो मेरुनो विष्कंन बे. तथा पंडकवन पासें 1000 योजन मेरुनो विष्कंन बे. हवे धातकी खंडनां बे मेरु तथा पुष्कराईनां बेमली चार मेरु प्रत्येके एक हजार योजन धरतीमां अने चोरासी हजार योजन उपर डे, ते मली पंच्यासी हजार योजन जंचपणे वे ए चारे मेरु उपर चूलिका नथी एम अढीछीपमा 35 वर्षधर पर्वत बे. श्राठमे बोले अढीछीप माहेला शाश्वता पर्वतनी संख्या कहे. तिहां प्रथम जंबू छीपनां पर्वतो कहे. सात वर्षधर पर्वत पूर्वे कह्या ते जाणवा अने चोत्रीश वैताढ्य पर्वत बे. ते आवी रीते. एक नरतक्षेत्रनां मध्यनो, बीजो ऐरवत क्षेत्रना मध्यनो, तथा बत्रीश विजय महाविदेहना तेमां बत्रीश वैताढ्य ले. एवं चोत्रीश वैताढ्य थया, तथा चार युगलीयानां खेत्रनी वचमां चार गोल वृत्त वैताढ्य . तथा कुरु क्षेत्रना यमक, सम क, चित्र अने विचित्र ए चार तथा नीलवंतनां बे गजदंता अने निषधनां बे गजदंता मली चार गजदंत पर्वत तथा निषधने हेग्ल पांचकुंमनी वे पासे 100 कंचनगिरि श्रने नीलवंत देवल पांच कुंडनी बे पासे 100 कंचनगिरि , मलीने बसो कंचन गिरि . तथा महाविदेहमा पूर्वपश्चिमनां मली शोल वरकारा पर्वत जे. ए सर्वमली श्६ए पर्वत जंबू छीपमां थया. एथकी बमणा 537 धातकी खंडमां बे. तेनी साथे बे इकुकार नेलीये तेवारे 540 थाय. तथा धातकी खंम प्रमाणे पुष्करानां पण 540 पर्वत जाणवा. तथा लवणसमुरुमां चारदिसिनां वेलंधर अनुवेलंधर देवोनां आठ पर्वत मांहे नेलीये ते वारे सरवाले 1357 शाश्वता पर्वत श्रढीछीपमां बे. ए नवमे बोले अढीहीपनां शाश्वता कूट कहेजेः-तिहां प्रथम जंबहीपमां श्६ए, पर्वत बे, ते उपर जे कूट ले ते कहेले. तेमा 34 वैताढ्य उपर प्रत्येके नव नव कूट ग णतां 306 थया. तथा हिमवंते श्रगीश्रार, महाहेमवंते थाउ,निषधे नव, शिखरीये श्रगी भार, रूपी पर्वते आठ कूट, नीलवंते नव कूट, तथा बे गजदंते नव नव, अने बे ग जदंते सात सात मली चार गजदंताना बत्रीश कूट, तथा शोल वदस्कार पर्वते प्रत्ये के चार चार कूट गणतां 64 थाय तथा मेरु पर्वतनां नवकूट ए रीते सरवाले एकशन पर्वतना 467 कूट थया श्रने यमकादि चार तथा वृत्तवैताढ्य चार एवं श्राप पर्वत उपर कूट नथी तथा धातकी खंडमां एथकी बमणा ए३४ श्रने पुष्कराऊमां पण ए३४, मली 2335, कूट श्रढीछीपमां बे. 10 दशमे बोले चक्रवर्ति जिहां पोतानुं नाम लखे तेने षनकूट कहीये. ते जंबू जीपमा बत्रीश विजयनां नीलवंत पर्वत पासे शोल कूट , तथा निषध पर्वत पासे Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. शोल कूट दे मलीने वत्रीश श्रया. तथा जरतक्षेत्रना हिमवंत पासे एक कूटने श्रो ऐरवत देवना शिखरी पर्वत पासे एक कूटले. एरीते सरवाले चोत्रीश झष नकूट जंबू छीपमां ने अने ए थकी बमणा अभशकूट धातको खंगमां बे तथा अमराव कूट पु कराऊमां ने सरवाले अढीछीपमा 170 षन कूटले. 11 अगीपारमे बोले त्राण खंम साधीने वासुदेव जेने उपाडे तेने कोटी शिक्षा के हीये ते शिवा जंबूद्वीपमा चोत्रीश तथा धातकी खंममा एथको बभणी अमश अने पुष्कळमां पण अडश मली अढीछीपमा 170 कोटी शिवावे. 12 वारमे बोले प्रत्येक वैताढ्य पर्वत दीन तिमिश्रा अने खंम प्रपात एवी वे बेगु फाऊंडे ते जंबछीपमां चोत्रीश वैतादयनी अडशठ गुफा, धातकीमा अडशठ वैताज्य न) एकशो त्रीश अने पुष्करामां पण एकसो बत्रोश मली अढीछोपमा 340 गुफाले. 13 तेरमे बोले बिल्खनो संख्या कहे;-प्रथम जंबूझीपमां नरतक्षेत्रनी गंगा अने सिंधु ए बे नदीनां बहोत्तेर बिस तथा ऐरवत क्षेत्रनी रक्ता अने रक्तवतीनां बहोतेर वित तेमज वत्रीश विजयमां. पण प्रत्येक विजयनी गंगा अने सिंधु ए वे नदीनां बहोतेर गणतां 2304 विल्ब महाविदेहमांडे सरवाले जंबूछीपमा 2447 तथा घातको खममा UGC6 अने पुष्काकमां पण तए सरवाले अढीहीपमा 12240 बिच ने. 14 चौदमे बोले मागधादि तीर्थनी संख्या कहे:-तिहां प्रथम जंहापमा भागध वरदाम अने प्रनास ए त्रण तीर्थ चक्रवर्ति साधेले. तेमां भरतनां त्रण त थ दाद रवाजे समुद्रमां, अने ऐरवतनां त्रण तीर्थ उत्तर दरवाजे समुखमांडे. एवं उथयः तथा पूर्व महाविदेहनी शोल विजय तेमां साहामा साहामी अाठ श्राउ विजय व सीता नदीमा साहामा साहामा त्रण त्रण तीर्थ गणतां शोल त्रिक अडतानीज तार्थ सीता नदीमां अने पश्रिम महाविदेहनी शोल विजय तिहां साहामा साहामी श्राम आठ विजय वच्चे सीतोदा नदीमा साहामा साहामी त्रण त्रण तीर्थ गणतां शाल त्रिक अड तालीश तीर्थ सीतोदा नदी मली उन तीर्थ महाविदेहमा यया तेनो साथे पूर्वोक्त नरत ऐरवतनां मेलवीये तेवारे 102 तीर्थ जंबडीपमांने, तेथी वमणा 204 धातकी खंडनां अने 204 पुष्कराईनां मली अढीछोपमा 510 तार्थ है. 25 पंदरमे बोले खमनी संख्या कहे:-तिहां पांच नरत, पांच ऐरवत, अने पंच महाविदेहने बत्रीश विजये गणतां एकशोने शाठ थानक थाय तेनी साये पूर्वोक्त पांव चरत ने पांच ऐरवतनां दश स्थानक मेलवतां 170 थानक अढीछीपमां थाय ते प्रत्येक थानकमा उ उ खंड तेबारे एकसो सीतेरने आए गुणतां 1020 खंम थया तेमां जंबूमां 204 धातकीमा 407 अने पुष्कराईमा 407 जाणवा. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 अढीछीपना नकशानी हकीगत.. 16 शोलमे बोले ब खममा बत्रीश हजार देश होय. माटे एकंदर देश संख्या कहेजेः-तिहां जंबूछीपमा एक नरत बीजो ऐरवत अने बत्रीश विजय मली चोत्रीश थानक व खंड वाला बे ते प्रत्येक थानकमां 32000 देश गणतां 10700 देश जंबूहीपमां बे तथा 2176000 देश धातकी खंममां बे तथा 2176000 देश पुष्करा कमां बे सरवाले अढीछीपमा 54J0000 देश ने. 17 सत्तरमे बोले ब खंडमां पांच अनार्य खंम अने एक थार्य खंड तिहां आर्य खंग मां अयोध्या नगरी, तेनी संख्या कहेजेः-जंबूमां चोत्रीश अयोध्या, धातकीमां अडशठ अयोध्या अने पुष्कराईमां अडश मली एकसो सीतेर अयोध्या अढोछीपमां अने आर्यखंम पण एकशो सीतेरले. ते आयोध्या नगरी बार योजन लांबी श्रने नव योजन पहोली होय सर्वेनी एज मर्यादा जाणवी. तिहां जे आर्यखंड होय तेमां धर्म होय तीर्थकर, गणधर, चक्री, बलदेव, वासुदेव प्रमुख त्रेशठ शिलाका पुरुष आर्य खममां उपजे, मोद गमन होय अने पांच अनार्यखममां धर्म न होय, सर्व म्लेच होय. .. 17 श्रढारमे बोले कया खंगमा केटला देश होय ते कहेजेः-तिहां उखममां मली 32000 देश होय तेमां पांच अनार्यखममा प्रत्येके 5317 देश होय अने बहा आर्य खंडमां 5320 देश होय तेमां साढा पचीश देश आर्य अने बीजा अनार्य देश जाणवा. ए रीते अढीछीपना सर्वे खंममां देश नी मर्यादा जाणवी. एमां 5317 देश पांव अनार्य खममां लखेलाबे. परंतु 5336 देश गणतां 32000 देशनो हीसाब मले. पण एक प्रतमां तथा एक पट्टमां उपर कहेली रीते लख्युं बे. ते प्रमाणे में पण अहीं लख्युं . १ए उगणीशमे बोले विद्याधर तथा शानियोगीक देवनी श्रेणीयो वैताढ्य दीपकहेतिहां प्रत्येक वैताढ्य दीठ त्रण त्रण कांड तेमां नूमीथी दश योजन प्रथम कांड तेने दक्षण पासे पचाश नगर अने उत्तर पासे साठ नगर विद्याधरनां ने एवी बेबे श्रे णी वैताढ्ये लेवी तेवारे जंबूहीपमां चोत्रीश वैवाढ्यनी अडश श्रेणी, तथा धातकीमां 136 अने पुष्कराईमा 136 मली 340 श्रेणी विद्याधरनी. हवे वैताढ्यनां प्रथम कां मथी वली दश योजन ऊंचो बीजो कांड तिहां दक्षण उत्तर बे पासे अनियोगिक देवोनी बे श्रेणीने तेथी पूर्वोक्तरीते एनी पण 340 श्रेणी अढीछीपमांडे ए बेहुनी श्रेणी एकठी करीये तेवारे 670 श्रेणी अढीछीपमांबे. 20 वीशमे बोले अह संख्या कहेजेः-तिहां प्रथम जंबूझीपमां शोल पहले ते देखाडे प्रथम हेमवंत पर्वते पद्मपहले, बीजो महा हिमवंते महापद्मप्रह, त्रीजो निषधपर्वते तिमिलिअहजे, चोथो शिखरीपर्वते पुंडरिक उहजे, पांचमो रूपीपर्वते महापुमरिक पह ने, हो नीलवंत पर्वते केशरीमहडे, एप्रकारे उ अह तो पर्वतोनी उपरेने. हवे दश प्रह Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. वीजा देखाडेले. तिहां निषधपर्वत उपरथी सीतोदा नदी पृथवी उपर पडे ते प्रथम प्रहथी वीजा, त्रीजा, चोथा अने पांचमां अहमां पडे तिहां पहेलो निषधजह बीजो देवकुरुषह, त्रीजो सुरप्रजाह, चोथो सुलसह अने पांचमो विद्युत्पन्न अह ए पांच अह मूकी पठी आगल चाली माटे ए पांच अह जाणवां. तेमज नीलवंतपर्वत उप रथी सीतानदी धरती उपर पडे ते प्रथम उहथी बीजा, त्रीजा, चोथा, पांचमांमां पमीने श्रागल चाली ते पांच कुंडहनां नाम कहे प्रथम नीलवंतपह, बीजो उत्तरकु रुपह,त्रीजो चंडह, चोथो ऐरवत अह, पांचमो मान्यवंताह एरीते ए दस अह धरती उपर ते पूर्वोक्त उसाथे मेलवतां शोल मह जंबूहीपमाळे अने तेथी बमणा वत्रीश प्रह धातकी खंडमां ने तथा बत्रीश अह पुष्कराम्नां मली अढीछीपमां , अह बे. 21 एकवीशमे बोले प्रहनी देवी देव कहेजेः-प्रथम हेमवंत पर्वते पद्माह बे. एनां मध्यनां एक मुख्य महोटा कमल पाउल बीजा लघु कमलनां उ वलय, तनां 12050120 एटला लघुकमल तेणे वीट्यु थकुं महोटुं कमल ते उपर श्री देवी रहे ए पद्मडह जंडो दस योजन, पहोलो पांचसे योजन अने लांबो एक हजार योजन उपर श्रीदेवी रहे ते नुवनपतिदेवोनी जाति. हवे बीजो मदाहिमवंत पर्वते महा पद्मपहले ते पचाश योजन जंडो, हजार योजन पहोलो अने बे हजार योजन लांबोडे, तेना मध्यना एक मुख्य महोटा कमल पाउल लघु कमलोना वार वलय. तेनां 24100240 एटला लघु कमलें वीट्युडे ते उपर हीदेवीनो निवास. त्रीजो निषध पर्वते तिगिविहले तेनुं मध्यनुं मुख्य कमल चोवीश वलये वीट्युडे तेमां J2NGO एटला लघु कमल तिहां श्रीदवानो निवास एजें एक पल्यामुळे, ए अह दश यो जन जंडो, बे हजार योजन पोहोलो अने चार हजार योजन लांबो. हवे ऐरवतके त्रयी शिखरी पर्वत उपर घुमरिक प्रहवे. ते हिमवंतना पद्मसहनी मर्यादायेने एमां लक्ष्मीदेवीनो निवास एनुं एक पक्ष्यायुने. पांचमो रूपी पर्वते महापुमरिक प्रहढे ते महाहिमवंत पर्वतना महापद्मनहनी मर्यादायें एमां बुद्धिनामे देवीनो निवास एनुं एकपल्यायु. गे नीलवंत पर्वते केशरीअहले ते निषधपर्वतना तिगिविपहनी मर्या दायेने एमां कीर्तिदेवीनो निवास तेनुं एकपदयायु ए उह पर्वतो उपर तेनी देवी उ कही. हवे पृथ्वी उपरनां दश कुंमाह तेमां देवताउनां निवास तथा जे रीते प वत उपरे लक्ष्मी देवीनी संकलना कही तेम देवकुरु उत्तरकुरुमां महोटुं जंबूवृद्धाले ते पण एटलेज लघु जंबूवृदे करी वीटेबुंडे ते आगल लखगुं. एरीते जंबमां देवी तथा दश देवता, धातकीमा एथी बमणा बार देवी ने वीश देवता, पुष्कराकमां पण बार देवीने वीश देवता मली अढीछीपमां अह निवासी त्रीसदेवी अने पञ्चाश देवता जाणवा. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीद्वीपना नकशानी हकीगत. 22 बावीशमे बोले अढोछोपनी नदी कहेजेः-सर्व मली जंबहीपमा 1456000 नदीने. तेमा मूलमांचीद महानदी. तिहां चरतक्षेत्रमां गंगा अने सिंधु, ऐरवतमा रक्ता अने रक्तवति ए चार महानदीनो चौद चौद हजार नदीनो परिवार तथा हेमवंत युग लीयानां देत्रमा रोहिता अने रोहितांसा तथा ऐरण्यवत युगलीयानां क्षेत्रमा रूपकुला अने सुवर्णकुला ए चार महानदी अहावीश अहावीश हजार नदीने परिवारे. एवं श्राप थश्ता हरिवास युगलीयानां क्षेत्रमा हरिकंता अने हरिसलीला तथा रम्यक् युगली यानां खेत्रमा नरकंता अने नारिकता एवं चार महानदी बपन्न बपन्न हजार नदीने परि वारेने एवं वार थश्. तथा पूर्व महाविदेहमां सीता अने पश्चिम महाविदेहमां सीतोदा ए बे महानदीओनो मली 206400 नदीनो परिवारले. एवं चौद महानदी जंबूझीपमा थर तेमां प्रथमनी बार नदीनो हीलाब तो प्रगट अने सीता सीतोदानी संख्या लखेजेः-नीलवंत पर्वतथी नीकलीने पूर्व महाविदेहमां सीतानदी गश्तेणे बे बाजुये आठ श्राम विजय कीधी तेवारे शोल विजयनी गंगा अने सिंधु ए बे वे गणता बत्रीश नदी थ अने उ अंतरनदो जे. एरीते अडत्रीश महा नदी थ ते प्रत्येकनो चौद चौद हजार नदीनो परिवार गणतां 532000 नदी पूर्व महाविदेहनी सीता महानदीमा प डे श्र ने एज प्रमाणे निषध पर्वतयकी सीतोदानदी निकली ते पश्चिम महा विदेहमां ग. ति हां पण अडत्रीश महानदीनो परिवार 532000 नदीनो सरवाले 2064000 नदी थ, तेनी साथे पूर्वोक्त बार महानदीनी परिवार नूत ३ए२००० नदी मेलवीये तेवारे 1556000 नदीयो जंबूछीपमां थाय अने एथकी बमणी धातकी खंठमां २ए१२००० तथा पुष्कराई मां पण 2512000 सरवाले अढीवीपमा 27000 नदो. २३त्रेवीशमे बोले नदीनी लंबाइपोहोलाआदिक कहेजेः-जरतनी बे अने ऐरवतनी बे नदी एवं चार नदी मूले सवाल योजन अने पजी वधती वधती समु. प्रवेसे साडाबाश योजन पोहोली. तथा हेमवंत युगल देवनी बे अने ऐरएयवत युगल देवनी बे एवं चार नदी मूले सामा बार योजन श्रने समप्रवेसे सवामो योजन पोहोली . तथा ह रिवास युगल देवनी बे अने रम्पक युगल क्षेत्रनी बे एवं चार नदी मूले पञ्चीश योजन पहोली श्रने समुद्र प्रवेशे अढोसो योजन पहोलो डे तथा सीता अने सीतोदा ए बे नदी मूले पच्चास योजन पहोली अने समुद्र प्रवेसे डमो विजयमा पमी तिहां पांवशो यो जन पहोशी ने तथा धातकी खंगमां अने पुष्कराकभां पण संख्याये जंबूझीप थकी बमणी बमणी नदी ले तेनी लंबा पहोला पण एज रीते जाणवी. 24 चोवीशेमे बोले जंबूडीपमा देवकुरुक्षेत्रमा एक महोटा जंबूदनी पाबल लघु Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. जंबूवृदनां उ वलय तेनी संख्या एक कोड, वीत लाख, पचाश हजार, एकशोने वीश तेणेकरी जंबूवृद वीट्युडे ते उपर श्रणाढीयो देव वसेजे. एम उत्तरकुरुमा सामली वृक्ष तेनी पण एज रीते मर्यादा तेना उपर गरुल देवतानो निवाश तथा धातकी खंगमां बे देवकुरुले तेमां बे महोटा साल्मली वृक्ष तेनी पाउल बार वलय लघु साटम ली वृक्षनां तेनी संख्या 24100240 एटला साइमली वृद वींट्याने तेना उपर पण गरुन देव रहे. तथा धातकी खंडना बे उतरकुरुमां बे महोटा महा धावमीना वृद ने ते प्रत्येक लघु धावडी वृदनां बार वलये करी वीट्याने तेनी संख्या 24100240 ने तेना उपर सुदर्शन अने प्रीयदर्शन देवनो निवास तथा पुष्कराईनां महाविदे हनांबे देवकुरुमां बेमहोटा साइमली वृदा ते लघु साल्मलीवृदनां चोवीश वलये करी वींट्याले तेनी संख्या 4200HG नी बे ते महोटा वृक्ष उपर गुरुम देवतानो निवास ने तथा पुष्कराईनां उत्तर कुरुमां एक महोटो पद्मवृदडे तेपण चोवीश वलये वीट्यो तेनां उपर पद्मदेवनो निवास, तथा पुष्कराईना पश्चिम महाविदेहनां उत्तरकुरुमां मु ख्य महापद्म वृक्ष पण चोवीश वलये वीट्यो तेनी संख्या पूर्वपरे जाणवी. तेनाउपर पुंग रिक देवनो निवासबे. ए मुख्यवृक्ष सर्वे वेदिका अने वनखंमे सहीत तेनो पीठ पां चशे योजन पोहोलो अने बार योजन ऊंचो ते वृदो उपर देव निवासनां स्थान त था श्री जिन जुवनडे ए सर्व वृद रत्नमय पृथवीकायनां ने शाश्वताबे. 5 पञ्चीशमे बोले जंब्रहीपमां एकेकी विजय वकारा पर्वत लगे पोहोली 2213 // योजन अने नीलवंत पर्वतथी सीतानदी लगे तथा निषध पर्वतथी सीतोदा नदी पर्य त १५६ए योजन अने उपर बे कला एटली लांबी तथा धातकी खंममा एकेकी विजय ए६०३ योजन उपर एक योजननां शोल नाग करीये तेवा उ नाग एटली पोहोली अने शोले विजय 153654 योजन पोहोत्री तथा पुष्कराईनी एकेकी विजय रएए। योजन पोहोली अने शोले विजय 31670 योजन पोहोली बे. 26 बबीशमे बोले जंबूतीपमां महाविदेहनी बार अंतरनदी एकशो पच्चीश योजन पोहोत्री तथा धातकी खंडमां अंतरनदी अढीसो योजन पोहोली डे अने पुष्करा ईमां अंतरनदी पावशे योजन पोहोली जे. 27 सत्तावीशमे बोले जंबूजीपमा वनस्कारा पर्वत 500 योजन ऊंचा अने पोहोला ने तथा धातकी खंडमां वनस्कारा हजार योजन ऊंचा अने पोहोला तथा पुष्करा ईमां वक्षस्कारा बे हजार योजन ऊंचा अने बे हजार योजन पोहोबाडे. 27 असावीशमे बोले जंबूछीपमां दरवाजा अागल पूर्व पश्चिमनुं एके कुं वनमुख ज Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीद्वीपना नकशानी हकीगत. गति सूधां ए३२ योजन- जे अने धातकी खंममा एकेकुं वनमुख 1167 योजन त तथा पुष्कराईमां एकेकुं वनमुख 1960 योजन . शए गणत्रीशमे बोले जंबूछीपमा जमशालवन 2200 योजन लांबु बे तथा धा तकी खंडमां एकेकुं जमशालवन मेरुपर्वतसहित 225157 योजन लांबु अने पु कराईमां एकेकुं नशालवन 44016 योजन लांबुं बे. ___30 त्रीशमे बोले वीश गजदंतगिरिनुं विचार कहेले. तिहां प्रथम जंबूछीपमा निषध पर्वतथी बे गजदंता पर्वत निकल्या ते मेरुपर्वत तरफ चाल्या तेमां प्रथम सोमनस गजदं तो धोलेवणे वे ते अग्निकूणमा वढ्यो बीजो विद्युत्प्रन गजदंतो राते वर्णे ते नैश्त कूणमां वस्यो तथा नीलवंतपर्वतथी बे गजदंता नीकट्या ते मेरुपर्वत तरफ चाल्या तेमां प्रथम गंधमादन गजदंतो पीले वर्णे डे ते वाव्य कूणमां वस्यो, बीजो माल्यवंत गज दंतो नीले वर्णे ते श्शान कूणमां वल्यो; एम चार गजदंता जाणवा. ए चारे गजदंता ३०२०ए योजन ने उ कला लांबा ने अने निषध तथा नीलवंतथी निकल्या तिहां धर तीथी चारसे योजन ऊंचा बे पड़ी वधता वधता मेरुपर्वतनी पासे पांचशे योजन ऊंचा थया बे तथा धांतकी खंगमा पूर्व पश्चिम मलीने बे मेरु पर्वत माटे तिहां श्राप गज दंताने तिहां प्रथम जंबूलीपनी परे बे बे मली चार गजदंता 356227 योजन लांबा अने बीजा बेबे मली चार गजदंता ५६एएए योजन लांबाडे तथा पुष्कराई छीपमा पण बे मेरुले माटे तिहां श्राउ गजदंता तेमां पण आगली तरफनां धातकीनी परे बे बे मली चार गजदंता 1656116 योजन लांबाजे अने पाळली तरफना बीजा बे बे मली चार गजदंता २०४३२१ए योजन लांबा ए सर्वे गजदंता मेरु तरफ जतां प्रथम उचाइमा चारसे चारसे योजन डे अने बेहेडे मेरुनी पासे पांचसे योजन ऊंचाश्मां बे. ___31 एकत्रीशमे बोले श्नुकार पर्वतनो विचार कहे. तिहां प्रथम जंबूद्वीपमा इकु कार पर्वत बिलकुल नथी अने धातको खंगमां बे इतुकारने तेणे वचमां पडीने बेबे जरत अने बे बे ऐरवत कस्या ते लांबपणे चार चार लाख योजन अने जंचा पां चशे योजन तथा पोहोल पणे एक हजार योजन ते उपरे एकेको जिनप्रसाद ने तथा पुष्कराई छीपमां पण बे कुकारले तेणे पण वचमां पमी बे बे जरत श्रने बे बे ऐरवत कस्याडे. ए लांब पणे श्राप आठ लाख योजन अने उंचपणे पांचशे योजन बे तथा पोहोला एकेक हजार योजन डे एना उपर पण एकेकुं श्रीजिनप्रासाद ने अढीछीपनां चित्रामणमां जगतीनां दरबाजा पर्यंत लाल रंग जरेने पण तिहां दरवाजानी जगा राखवी जोश्ये. दरवाजाना अंतर पर्यंत जे. इहां (इनुके०) सेलडी तेनो सांगे जेवो लांबो थाय तेनां सरखा ए पर्वत पण लांबा , माटे एनुं शकुकार एवं नाम ले. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. 37 बत्रीशमे बोले जंबूद्वीपमां नरत क्षेत्र तरफ हिमवंत युगल क्षेत्रमा शब्दापाती वृत्तवैताढ्य अने हरिवासयुगल क्षेत्रमा गंधावती वृत्तवैताढ्य तथा ऐरवत क्षेत्र जणी ऐरण्यवत युगल क्षेत्र तेमां वकटापाती वृत्तवैताढ्य तथा रम्यक् युगल क्षेत्रमा मा व्यवंत वृत्तवैताढ्यजे. ए चार जंबूठीपमां . तथा एथकी बमणा एज नामे धातकी खं डमां श्राउ वृत्तवैताढ्य तथा पुष्कराईमां पण आठ वृत्तवैताढ्य. सरवाले अढीछी पमां वीश वृत्तवैताढ्य ते सर्वे पालाने आकारे गोल. मूल तथा उपरे एकेक हजार योजन पोहोला बे अने जंचा पण एकेक हजार योजन . 33 तेत्रीशमे बोले जंबूछीपनां देवकुरुमा यमक अनेसमक ए बे अने उत्तरकुरुमां चित्र विचित्र ए बेमली चार पर्वत अने धातकी खंगमां ए थकी बमणा श्राप तथा पुष्क राईमां पण आप.सरवाले अढीछीपमां वीश पर्वतले तेसर्वे एकेक हजारयोजन उंचावे. 34 चोत्रीशमे बोले जंबूद्वीपमा निषध पर्वतनी नीचे सीतोदा नदीने बे पासे थश्ने एकसो कंचनगिरिने तथा निलवंत पर्वतने नीचे सीता नदीने बे पासे थश्ने एकशो कंचन गिरि एरीते वशो कंचन गिरि जंबूछीपमांने तेथकी बमणा चारसो कंचनगिरि धातकी खममां तथा चारसो कंचन गिरि पुष्कराई मां सरवाले अढीवीपमा एक हजार कंचन गिरि तेनां उपर तिर्यकर्जनक देवताना निवास ए सर्व पर्वत शो शो योजन ऊंचा. 35 पांत्रीशमे बोले जंबूहीपमा जरतनी दिसाये पहेबु हेमवंत युगल क्षेत्र तथा ऐरव तनी दिसाये पहेलु ऐरण्यवंत युगल क्षेत्रमा त्रीजो पारो वर्तेने त्यांना मनुष्यनुं एक गाउ प्रमाण शरीर डे एक पढ्योपम आयुडे अने चोथ नक्त एकांतरें आमला प्रमाणे थाहार कल्पवृद आपेडे एने पृष्ट करंडक चोशग्ने, अपत्यपालना ए दिवस करे अने अपत्य एटले दीकरा दीकरी जेवारे ओगण्याएंसी दिवसनां थाय तेवारे मातापिता म रण पामीने देवलोकमां जाय. हवे नरत तरफ हरिवास क्षेत्र अने ऐरवत क्षेत्रनी तरफ रम्यक् देत्र ए बे युगलक्षेत्र मध्ये बीजो आरो वर्तेने. ए युगलीयानुं बे गाउ शरीर अने बे पत्यायु 120 पृष्ट करंमी, बहनत, चोस दिवस अपत्य पालना करी माता पिता स्वर्गे जाये. इहां हरिवास क्षेत्रमा उपजेलो वनमाला नामे राजानोजीव युगलोयो हतो तेने वीराशालवीनो जीव किदिवषियो देव थयो तेणे क्रोध वसे ए युगलियाने नरकमां मो कलवा सारु हरिवासयी उपामीने चंपानगरीये मूक्यो भने बे पट्योपमनुं आयु तो डीने ते समयना आयु प्रमाणे आउखुं कलुं तेने राज्ये बेसाडी मद्य मांस कुकर्म शीख वीने नरके मोकदयो एअरुं थयु ए हिरवास देवनां नाव कह्या. हवे श्रा तरफ निषध पर्वतनी नीचे देवकुरुक्षेत्र अने पेहेली तरफ नीलवंत पर्वतनी नीचे उत्तरकुरु क्षेत्र ए बे युगल देत्रमा पहेलो थारो वत्तेजे. ए युगलीयानुं त्रण गाउ शरीर अने त्रणप व्यायु Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत.. 256 पृष्ट करमी उंगण पञ्चास दिवस अपत्य पालना करे, तूवर प्रमाणे कप वृदनो थाहार, अहमनक्त एटले चोथे दिवसे श्राहार करे ए युगलीयानां पुण्य प्रनावे दस जा तना कल्पवृक्ष थाहारादिक सर्व वंबित पूरण करे. ए वृदमां एवो स्वनावजले पण देवता पूरता नथी. ए सर्वे युगल नजिक स्वन्नाव वाला ने एमांक्रोध नथी मात्र ींक बगासी उध्रस करतां एनुं मरण थाय. ए रीते जंबृद्धीपमां युगलीयाना व क्षेत्र तेथी बमणा बार क्षेत्र धातकी खंडमांडे तथा बार पुष्कराईमां, ते सर्वना सरखा जावडे सरखी रीत मर्याद सरवाले अढीहीपमा त्रीश युगलीयानां क्षेत्र. ___36 बत्रीशमे बोले उपन्न अंतरछीपनो विवरो कहेजेः-जंबूछीपमां आपणी तरफ हिम वंत पर्वत अने ऐरवतनी तरफ शिखरी पर्वत ए बे पर्वतें जंबूहीपनां कोट उपरथी पर्वत दी चार चार दाढा नीकली ते विदिसी तरफ वली लवण समुज्नां पाणी थी जंची देखायडे अढी योजन ऊंची तथा आठ हजार चारसे योजन लांबी जे ए आ वे दाढा अधर चाली गश्वे ते एकेकी दाढा उपर सात सात अंतरछोपडे तेवारे आठ दाढानां उपन्न अंतर छीप थया, ए उपर युगलीया मनुष्य वसे तेनुं आठसे धनुष श रीर बे एक पस्योपमनो असंख्यातमो नाग आयुबे. ए युगलीया मरणपामीने जवन पत्यादिक देवोमां जश् उपजे. ए बपन्न अंतरछीपमां त्रीजा आराना बेडा सरखा जा व एटले जेवो नानिराजानो पिता बहो कुलकर हतो ते वखत जे नाव वर्तता हता ते प्रमाणेना नाव सर्वकाले तिहां वर्ते ते नाव फरे नही. . 37 शामत्रीशमे बोले महाविदेह क्षेत्रमा चोथो थारो वर्तेले. पांचसे धनुष शरीर मा न.पूर्वकोटी वर्ष आयु, नित्य आहार तथा जंबूहीपना विदेहमां चार तीर्थंकर, तेमां पूर्व विदेहना वनमुख समीप आठमी पुष्कनवती विजयमां घुमरि किणी नयरी तिहां सीमंधरनामे विहरमान तथा पश्चिम विदेहना वन पासे पच्चीसमी वप्राविजय थ ने विजया नगरी तिहां श्रीयुगमंधर बीजा विहरमान बे, तथा पूर्व विदेहना वनमुख समीप नवमी वनविजय अने सूसीमा नयरी तिहां बाहुस्वामी श्रीजा विहरमान डे तथा पबिमविदेहना वनमुख समीप चोवीसमी नलोना वती विजय ने अयोध्यान गरी तिहां चोथा सुबाहु नामे विहेरमान तीर्थंकरडे, ए रीते जंठोपमा चार तीर्थक रखे तथा धातकी खंममा बे मेरु अने बे महा विदेह तेमां चार तीर्थंकर पूर्व महावि देहमां अने चार तीर्थंकर पश्चिम महाविदेहमां एरीते आठ तीर्थकर ले तथा पुष्करा ईमां पण बे मेरु अने बे महाविदेहले माटे तिहां पण पूर्व विदेहमा चार तीर्थकर भने पश्चिम विदेहमा चार तीर्थकर मली श्राप . सरवाले श्रढीवीपमां वीश विहर मान तीर्थकर जे. जेवीरीते जंबूछीपमा बाग्मी, पच्चीशमी, नवमी अने चोवीशमी विज Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. ये अनुक्रमे चार तीर्थकर तेवीरीते धातकीखंम अने पुष्कराईमां पण विजय अनेन गरी तेटलामीज कहेवी अने तेनां नाम पण तेना तेहीज जाणवा. नरतक्षेत्रमा सत्तरमा श्रीकुंथुनाथ अने अढारमा श्रीअरनाथने अंतराले ए अढी हीप माहेला वीशे तीर्थकरनो जन्म एक समयेज थयलो ने अने श्रीमुनिसुव्रत तथा श्रीन मिनाथ नगवाननां अंतराले एक समयेज ए वीशे तीर्थकरे दीक्षा लीधी हती ते एक हजार वर्ष पर्यंत बद्मस्थावस्थाये दीदा पालीने एक समये वीशे तीर्थंकर केवल ज्ञान पाम्या बे. हमणा ए वीशे जिन केवली ते श्रावती चोवीसीमां सातमा पाठ मा तीर्थकरनी वच्चे एक समयेज वीशे तीर्थकर मोदपुरीये पधारशे. सर्वेने चोरासी चो रासी गणधरडे, चोरासी चोरासी लद पूर्व आयुडे, पांचसे पांचसे धनुष प्रमाणे श रीर मान बे. एकेकाने दश दश लाख केवलीनी संख्याने, शोशो कोडी साधु मुनिराज , सोसो कोमी साधवी. ए प्रकारे वीशे विहरमान जिननां बेक्रोम केवली,बे हजार क्रोम साधु ,अने बे हजार कोम साधवी . ए वीश विजयमां सदा एकेक तीर्थंक रने सहचारी बीजा चोरासी चोरासी तीर्थंकर होय, तेमां एक तो केवलझाने सहीत होय श्रने बाकीनां व्यासीमां को राजा, कोश् युवान, कोश् बालक, एरीते होय, ए सर्वे चोरासी लद पूर्वने आऊखे होय. अने जेवारे चोरासीमो तीर्थंकर मोक्ष सधावे तेवारे त्र्यासीमां तीर्थकरने केवलज्ञान ऊपजे तेवारे ते चोरासीमो कहेवाय. ते वखते वली ए कनो जन्म थाय.एरीते चोरासीनी परंपरा सहचारी श्हां कोई कहेशे जे एक क्षेत्रमा एकथी बीजो तीर्थंकर, चक्रवर्ति, बलदेव, वासुदेव न होय तो एक क्षेत्रमा चोरासी तीर्थंकर केम संनवे? तेनो उत्तर वृद्ध परंपरा वमील एम कहे जे, ए वीश विजयनां शाश्वता नाव एमज पड़ी केवलीगम्य !! श्हां जघन्य काले वीश तीर्थकर होय ते ए केको तीर्थंकर एकेक लक्षपूर्वनो थाय तेवारे बीजा तीर्थकरनो जन्म थाय तथा गर्न मांदे होय. एम चोरासी लद पूर्वना श्रायु मध्ये त्र्यासी तीर्थकर बीजा थाय तेने वीश गुणा करतां 1660 थाय अने मूलना वीश विहरमान होय. सरवाले जघन्य काले 160 तीर्थकर होय अने जेवारे 170 तीर्थंकर उत्कृष्ट विचरता होय तेवारे पांच न रत तथा पांच ऐरवतनां मली दश बाद करता बाकी 160 तीर्थंकर पांच विदेहनी वि जयना ते प्रत्येकने व्यासीये गुणतां 13270 थाय तेनी साये विहरमान 170 नेलीये तेवारे 13450 एटला तीर्थकर उत्कृष्ट काले होय. इति विदेह जिन संख्या विचार स माप्तः अहीं सुधी जंबूहीपनो विचार कह्यो. 37 आमत्रीशमे बोले लवण समुज्नो अधिकार कहेजेः-सर्व मली असंख्याता समु प्रबे, ते सर्वेधुरथी मांडीने नेहेमा पर्यंत हजार हजार योजन उंडाळे अने मात्र एक ल Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G अढीछीपना नकशानी हकीगत.. वण समुछ मात्राये मात्राये जंडो थतो थतो जेवारे जंबलीपथी पंचाणु हजार योजन समुरुमां जश्ये अने धातकी खंमथी पण पंचाणु हजार योजन समुअमां आवीये तिहां मध्यनागे हजार योजन मोडे, ए समुज गोतीर्थ कहीये, आ ठेकाणे हजार योजन जंमो, दश हजार योजन पहोल पणे अने शोल हजार योजन ऊंचो कोटनी परे दग मालो .शोल हजार योजन पाणी उंचो चडेलोडे ते उपर बे गाउनी वेल बे वार एक अहोरात्रमा जंची चढे डे ए पाणी शीरीते उबेले ते कहेजेः पूर्वे वडवामुख, दक्षणे केयूप, पश्चिमे यूप,अने उत्तरे ईश्वर ए चार महोटा पाताल कलशाने ते लाख योजन ऊंचा लाख योजन पेटमा पोहोला अने दश हजार योजन मुख पोहोर्बु, दश हजार योजननी पड़गी, एक हजार योजन कलशनी ठीकरी जाडी . तथा 33333 योजन कलशामां देवल वायुळे अने 33333 योजन मध्यनागे वायु पाणी तथा 33333 योजन उपर पाणी, ते मध्यना वायुने योगे उबले. ए त्रणसे तेत्रीश योजनत्रण ठेकाणे लख्या तेना उपर पण एक योजननो त्रीजो नाग अधिक लेवो. हवे पूर्वनो महोटो कलश अने दक्षणना कलशने वच्चे तथा दहणनाने पश्चिमना कलश वच्चे तथा पश्चिमना ने उत्तरनां कलश वच्चे २१५-२१६-२१७-२१७-२१५-२२०२२१-२२२-२५३-एवी संख्याये ए नव नव पंक्ति लघु पातल कलशनी तेवारे सर्व मली चारे पंक्तिना कलश उज्ज् . ए लघु कलश दश हजार योजन उमा बे. तथा मध्यमां पोहोला पण तेटलाज अने एक हजार योजन- मुखडे, एक हजार योजन पर गी सो सो योजननी करी, 3333 योजन हेग्ल वायु 3333 योजन मध्य नागे वायु अने पाणी , 3333 योजन उपर पाणी बे, ए लघु कलशनी मांदेथी पाणी उ बले ते लवण समुज्नी वच्चो वच्च पाणीनो गोल कोट बंधायले. ___ ए चार महाकलशना अधिष्टाता पूर्वे काल, दक्षणे महाकाल, पश्चिमे वेलंब अने उत्तरे प्रनंजन ए चार देवळे, शोल हजार योजनना दगमालनी उपर बे गाउनी वेल वधे तेने दाबवाने जंबूछीपनी दशा जणी बेतालीश हजार देवता.तथा वेल उपर शाम हजार देवताले तथा धातकीनी दिसाये वेल उपर बहोत्तेर हजार देवता जे. सरवाले वेलंधर अनुवेलंधर एटले दिसाना अने विदिसाना मलीने 174000 देवता बे. हवे ए देवतानां निवास कहेजेः-जंबूछीपना दरवाजाथी चार दिसाये तथा चार वि दिसाये बेतालीश बेतालीश हजार योजनजश्ये तिहां वेलंधर अने अणुवेलंधर नागरा जाना श्राप पर्वतले.तेना नाम कहेले 1 पूर्वे गोथुजपर्वत अने गोथुन देव बे दणे दिग नास पर्वत अने शिव देवता.३ पश्चिमे संखनाल पर्वत अने संख देवता.४ उत्तरे दगसीमी पर्वत, अने माणोसल देवता.५ इशानकोणे कर्कोटक पर्वत अने कर्कोटक देवता, 6 अ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. २ए ग्निकोणे विद्युत्प्रन पर्वत अने कर्दम देवता. नैऋतकोणे कैलाश पर्वत अने कैलाश देवता ज्वाव्यकोणे अरुणप्रन पर्वत अने अरुणप्रन देवता. ए श्राठे पर्वत १०२२)योजन नीचे पहोला अने 424 योजन ऊफेरा उपर पहोला तथा सर्वे 1721 योजन ऊंचा डे तेमां पूर्वादि चार दिसाना अनुक्रमे 1 कनकमय, 2 अंकरत्नमय, 3 रूपामय, स्फाटि कमय जाणवा. तथा चार विदिसाना सर्व रत्नमय. जंबूहीपथी बेतालीश हजार योजन जश्ये ते स्थानके ३०ए योजन उपर पंचाणुश्रा पीस्तालीश जाग एटली जलवृद्धिबे. तथा 442 योजन उपर पंचाणुश्रा दश नाग एटला पर्वत जंमा तथा एदए योजन उपर पंचाणुया चालीश जाग एटला जंबूछीपनणी उघामा देखायजे. तथा ए६३ यो जन उपर पंचाणुबा सीत्तोतेर जाग एटला शिखा नणी उघाडा देखाय. __तथा मेरुपर्वतथकी पश्चिम दरवाजाश्री बार हजार योजन समुरुमां जश्ये तिहां लव पना अधिष्टातानो गौतमहीप सुस्थितदेवनो.ते गौतमहीपने बे पासे जंबूहीपनां बे सूर्यनां बे छीप तथा लवणनी सीखानी आणी तरफनां बे सूर्य तेना बे छीपो. एरी ते चार सूर्यनां चार छीप गौतमहीप पासे. ए गौतमहीप सूधां पांचे छीप बार बार हजार योजन लांबा अने पहोला बे. तथा मेरुपर्वतश्री पूर्वदिसिये जगतीनां दरवाजाथी बार हजार योजन लवणसमु अमां जश्ये तिहां जंबछीपनां बेचंड तथा लवणनी सीखानी श्राणी तरफनां बे चंड एवं चार चंडमाना चार छीपो. एजरीते पश्चिमदिसे सिखानी पेलीतरफ लवणनां बेसूर्य अने धातकीना बसूर्य मली पाठ सूर्यनांबाछीप तथा पूर्व दिसाये शिखानी पेलीतरफ लवणसमुजनां बेचं अने धातकी नांब चंग एरीते श्राप चंजनां श्राप छीपडे.ए लवण समुअमां पांचसे योजननां मत्सले तथा लवणनीसिखामांजेज्योतिष चक्रचाले तेना विमान दिगस्फाटिकरत्ननां लवणाधिकारः ३एउंगणचालीशमे बोले कालोदधिनो विचार कहे. ते कालोदधी प्रथम दरवाजाथी साहामा दरवाजा लगे आठ लाख योजन पोहोलोडे अने एक हजार योजन सुमो बे, गोतीर्थ नथी, वेल नथी, दरवाजेथी पूर्वपश्चिमे बेतालीश हजार योजन जश्ये तिहां कालनामे देव, पश्चिम महाकालदेव, ए बे समुधिष्टायक देवना छीप तथा पश्चिमे बार हजार योजन जश्ये तिहां कालोदधिनां एकवीश सूर्यना एकवीश छीपने, तेमज पूर्वे बार हजार योजन जश्ये तिहां कालोदधिनां एकवीश चंडमाना एकवीश द्वीप ए समुअमां सातसे योजनना शरीर वाला मत्सजे. एना पाणीनो खाद पीवा सरखो ने तथा धातकी खंमना सूर्य चंजना द्वीप सर्वे पाणीथी बे कोश उघाडा . 40 चालीशमे बोले पुष्कराछीपनी वस्तु लखीये बैये. पुष्कराई शोल लाख योजन Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीवीपना नकशानी हकीगत.. पहलो बे, तेना मध्यमां मानुष्योत्तर पर्वत पड्यो तेथी एना बे जाग थया ने. तेमांश्रा गला नागना आठ लाख योजनमां मनुष्यनी वस्ती डे अने पहेली तरफनां श्राप लाख योजनमा सून्यक्षेत्र. ___41 एकतालीशमे बोले मानुष्योत्तर पर्वत बेग सिंहने आकारे, पुष्करछीपनां मध्य नागे वलयाकारे पड्यो , हेपल एक हजारने बावीश योजन पहोलो अने मध्यमां सातसे त्रेवीश योजन पहोलो तथा उपर चारसे चोवीश योजन पहोलो अने जंचो तो वेलंधर पर्वत जेटलो 1721 योजन तथा नूमीमां चोथो नाग जंमोडे.एनी माहेली परिधि 14530224 योजन अने मानुष्योतरथी बाह्य परिधि 14232713 योजन . ए टलीज परिधि सिझ सिलानी पण जाणवी. ए सिक सिला अने अढीछीप बेहु बरो बरखे. ए अढीछीपरूप मनुष्य क्षेत्रमा नव वानांहोय तेना नाम कहेले. 1 नदी, 2 प्रह 3 मेघ,४ गरिव, 5 अग्नी,६ तीर्थंकर, गणधर आदि मनुष्य तेना, 7 जन्म, मरण ए रात्रि दिवस ए नव वानां होय ए प्रमाणे संदेपथी अढीछीपनां नाव जाणवा. .. हवे एज श्रढीपि संबंधि कांशक विशेष विचार कहीये बैयें. एअढीछीपना मध्यमांप्रथम जंबूझीप श्रावेलो, माटे ते जंबुद्धीपनो वली जूदो पट्ट बनाव्यो तेपण ए पुस्तकनी साथडे ए सर्व छीप अने समुफ ते जगतीये करी वींटे ला माटे प्रथम जगतीनो वर्णन करीये बैयें. प्रत्येक प्रत्येक छीपअने समुद्र पद्मवर वेंदिकाये करी सहीत ने अर्थात् सर्वधीप अने समुज्ने चोकफेर पद्मवर वेदिका डे अने सर्व पद्मवरवेदिकाउँने केडे तथा श्रागल बे बाजु वन खंम पण बे. अथ जगती वर्णन. तिहां प्रथम जंबलीप महोटा नगरना गढने आकारे वज्रमय जगतीये करी चारे बाजु वींटेलो. ते कोट आठ योजन ऊंचो तथा बार योजन नीचे धरतीना मूलमां पहोलो. पळी जेम जेम ऊंचाचमीये तेम तेम अनुक्रमे पोहोलानुं विस्तार घटतां घट तां जेवारे एक योजन ऊंचा चीये तेवारे अगीवार योजन पोहोलो थाय, बे योजन चमतां दश योजन पोहोलो थाय, त्रण योजन चमतां नव योजन पोहोलो थाय अने जेवारे चार योजन ऊंचा चमी कोटना मध्यनागने विषे वीये तेवारे आठ योजन पोहोल पणे थाय. एम यावत् पाठ योजन चडीने कोटनी उपर जश्ये तेवारे चार यो जन पोहोल पणे थाय. ए कोट उंचु करेलुं गायनुं पूंबडं तेने आकारे जे. जेम गायनुं पूंब मूलमा जाडुं होय अने पढ़ी उतरतां उतरतां पातलु होय तेम जगती पण धर तीनां मूलमा जाडी अने पनी उपर चडतां चमतां पातली थती ग . Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. ते जगती सर्व प्रदेशे वज्ररत्नमयडे, मणिरत्ननी जीत, वैद्य रत्नमय थांनाडे, लोही ताद रत्नमय खीला , तमांसोना रूपाना पाटीया , आकाशनी पेरेाबी बे, सुकोम लडे, घसीडे, मांजी कोमल करेली, रज रहीत बे, मल रहित , कर्दम रहीत, या आवर्ण रहित शोजा वाली , निरूपघात कांतीवाली बे, उद्योत सहित बे, जोवा योग्य बे, मनोहर शांखने देखवा योग्य जोवावालाने मनोज्ञ बे, प्रतिबिंब जेमां पडे एवी जगती जे. कलश, मंगल, तोरण, विजय, प्रसावणीया, वेदिका, सिंहासण, जरोखा, जाली ए सर्व रत्नमय रमणीक जे. ते जगती उपरे जंबलीपनी पासे एक जालीये करी चोक फेर सर्व दिसे वीटाणी जे एटले हीयारखी बे. ते जाली अर्ड योजन ऊंच पणे बे, पांचसे धनुष्य पहोली जाडपणे बे, सर्व रत्नमय डे, निर्मल बे, सुकुमाल बे, यावत् देखवा योग्य बे, मनोहर , एनुं प्रथम आंकवावं चित्र पहेला पृष्टमां . ते जगती महोटा गवाहोना वलय तेणे करी सर्वदिशिये चारे बाजुये वींटेली . ते सर्वे गोख रत्नमय बे. एकेको गोख बेबे कोश उंच पणे ने अने पांचशे पांचशे धनुष पहोल पणे तथा अर्को कोश लांब पणे बे. आबा निर्मल ले. यावत् प्रति रूप जे. ए गवादनुं चित्र बीजा श्रांकवाडं श्रा पुस्तकना प्रथम पृष्ठ मध्ये आपेलू बे, तिहांथी जोवं. एवा ग क सर्व लवण समुपनी पासे जगतीनां मध्यनागमा चोफेर जाणवा. हवे ते जगातनी उपरली नूमिनां मध्यनागने विषे चोफेर फरति एक महोटी पद्म वरवेदिका देवताउने क्रीमा कर स्थानक . ते उंचपणे अयोजन डे अने पांच शे धनुष्य पहोल पणे जे.जेटमा जगतिनां मध्यनागे परिधि जे ते प्रमाण परिधि पणे डे, सर्व रत्नमय बे, जगनी समान जगती सरखी फरती , तेनी वनरत्नमय नूमि . नूमिनागथी उंचा नीकल्या जे प्रदेश ते सर्व वज्जरत्नमय बे. अरिष्ट रत्ननां मूल पग थालीया , वैडूर्य रत्ननां थांजा , शोना अने रूपानां पगथालीयानां पाटीयां डे, वज्र रत्ननी संधीपूरी, एटले बे पाटीआनो संबंध जोमवो तेने संधी कहीये. वली पश्माने थानके पण संधि समजवी, पाटीयावच्चे जे खीली ते लोहिताद रत्ननी .तिहां नवनवा प्रकारनां मनुष्यनां युग्म शरीर बे. ते मनुष्यनां जोमलानुं रूप नवनवा प्रकारनां मणिरत्नमयजे. तेमज मनुष्यना एकाकी रूप पण . तथा ए रूपना युग्म . तेनां अंकरत्न मय देस बे. ज्योतिरसा रत्नमय वांस माबे अने जमणे बे पासे बांध्या अने वंसनी खीली विशेष रूपानी पाटली वंसनी उपर बे तेना उपरे शोनानी ढांकणी ते उपर वली वज्ररत्ननी निविम ढांकणी नेते उपरे सर्वस्वेतरूपामय बागदन डे एवी पद्मवरवेदिका . - ते पद्मवरवेदिकाये एक सुवर्णनी माला, एक घूघरनी माला, यावत् मोतीनी मा खा, एक कमलनी माला, ते पण सर्व रत्नमय पीला सूवर्णमय दाम समूहे करी तेणे Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. करी सर्वेदिशे सहीत , ते मालाने रक्तसुवर्णना फूमकाने, सोनाने प्रकरे सहीत , नव नवा प्रकारनां मोती अने रत्न तेना हार अने अहहार तेणेकरी शोजित थकी लगा रेक माहोमांहे वेगली रही ले ते पूर्व, पश्चिम, दक्षण अने उत्तरनो मंदमंद वायरो तेणे कंपती थकी, लंबती थकी, जणजणाट प्रमुख शब्द करती थकी, कान अने मनने गम ता एवा शब्दने चोकफेर पूरती थकी शोनती थकी रहे . तथा जिहां जिहां एक युगल तेने स्थानके बीजा पण घणा घोमानां युगल, हाथीनां युगल, मनुष्यनां युगल, किन्न रनामा व्यंतरदेवोनां युगल, किंपुरुषनां युगल. महोरगनां युगल, गांधर्वनां युगल, वृ षननां युगल इत्यादिक सर्व युगल रत्नमय, निर्मल, सुकुमाल, यावत् प्रतिरूप , तेमज ते ते स्थानके घणा घोमानां रूपनी पंक्ति ने ते पण पूर्ववत् यावत् प्रतिरूप ले तेमज वली घोमानां मैथुननां रूप एटले स्त्री सहीत रूप पण तथा ते ते स्थानके घणी पद्मलता, नागवृदनी लता, अशोकवृदनी लता, चंपकवृदनी लता, श्रामृवृदनी लता, जाय विशेष वृदनी लता, मचकुंदलता, श्यामलता प्रमुखले. ते नित्ये फली फूली थकी मंजरे करी सहीत. ते सर्व रत्नमय. यावत् प्रतिरूपले. तथा गमे गमे घणां रत्न मय अक्षतना स्वस्तिक इत्यादि एनो विशेष वर्णन सर्व जीवानिगमादि सूत्रोथी जो. हवे एनुं पद्मवरवेदिका एवं नाम ले तेनुं हेतु कहेजेः-ए वेदिकामां गमे गमे एटले वेदिकाने विषे, वेदिकानां पासाने विषे, वेदिकानां पाटियानां माथाने विषे, वेदिकानां पुटांतरने विषे, पनाने विषे, थानानां पासाने विषे. थांनाने माथे, थांजानां पुटांतरने विषे, खीलीन विषे, खीलीनां मूखने विषे, खीलीनां पाटीयाने विषे, खीलीनां पुटांतरने विषे, खीलीने पासे, खीलीना पासाने स्थानके, खीलीनां पकनांअंतने गमे, एवा एवा स्थानके घणा उत्पल तथा सूर्य विकाशी कमल यावत् लाखपाखमीनां कमल ते सर्व रत्नमयडे महोटा वर्षाकालनां जल राखवानां स्थानक तथा बत्र सरिखा मोहोटा क मल प्रमुख ते सर्व पद्मवरवेदिकाने विषे रत्नमय वे ते सारं पद्मवरदिका एवो नाम ठे - ए शास्वती. ए पद्मवरवेदिकानुं चित्र त्रीजा श्रांकवाद्यं प्रथम पृष्टमां बे. ते पद्मवरवेदिकानी पूर्व पश्चिम दिसाये बे बाजुये वे वनखंग डे ते देशे उंणा बे यो जन अर्थात् अढीसे धनुषे जंणा बे योजन चक्रवाल पणे पोहोला . एटले जगतीनी उपर पांचशे धनुषनी वेदिका पोहोली अने वेदिकानी बाहेरली समुपनी तरफनी बाजुनुं वन बे योजनमा अढीशो धनुष जंणुं ने तथा वेदिकानी जंबूछीपनी तर फनी बाजुनुं वन पण बे योजनमा अढीशो धनुष उणुं बे. ए सरवाले जगती उप रनी नूमी चार योजन पोहोल पणे पूर्वे कही तेटली थ. हवे ते बे बाजुनां वन जगती समान परिधिपणे फरता जे. तेनी कृष्णवर्णे नीली शोना ते वननी मूमीचा Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीवीपना नकशानी हकीगत. ममाना पुमा सरखी सम बे. तथा श्रारीसानो तलो, हथेलीनोतलो, चंद्रमानुं मंमल, सूर्यनुं मंडल, घेटानुं चर्म, वृषजनुं चर्म, वराहनुं चर्म,सिंहनुं चर्म, बाघ, चर्म, गगनुं चर्म, दीपमानुं चर्म, ते समान नूमीनो तलो . तथा ते वनमां नाना प्रकारनां काला, पीला, धोला, राता, नीला एवा मणिरत्ननां तृणजे तेनो मनोज्ञ शब्दडे, मनोज्ञ रूप ने, तिहां चार दिसानो वायरो लागे तेवारे ते तृण मांहोमांहे आफले ने तेना योगे करी तेमांथी बत्रीश राग रागणी आलाप्या जेवा शब्दनी ध्वनी उठेने, जाणे बत्रीशबक नाटक थतो होय, जाणे बत्रीश वाजां वाजतां होय, जाणे गंधर्व देवता राग करताहोय, तेवा शब्द उठे . तथा ते वनने विषे गमे गमे घणी लघु वाव्य, गोलवाव्य ते पुष्करणी, तथा गुंजालिका ते ढांकेली वाव्य, लांबी वाव्य, तेमज एक उले होय तेने पंक्ति कहीये एवी सरनी पंक्ति, तथा एकनुं पाणी बीजामां आवतुं होय तेने सरसर पंक्ती कहीये तथा कूपनी पंक्ति ए सर्व सुकुमाल, रत्नमय तेना कूल, रूपामय कूल कांगडे, वक्रमय पाषा णेकरी तेनां पासा बांध्या, सुवर्णमय तेनां तलीया, वैडूर्यरत्नमय अने स्फाटिकमय तेनां तटना समिपनां प्रदेशने, सुवर्ण अने शुत्ररजतमय तेनी वेलु बे, सुखे प्रवेश करवा योग्यडे, सुखे उतरवा योग्य, नवनवा प्रकारनां रत्ने करी ती िनींत बांधीबे, चोखुणी बे, सरखो तट, अनुक्रमे नमतुं नमतुं जलनुं स्थानकडे, जिहां गंजीर शीतल जल, ते ठेकाणे विसमृनाल नामे नीला कमल तेना पत्रेकरी वली घणा उत्पल, कुमुद, न लिनि कमलजाति, आदिक अनेक जातिना कमल तेणे करी सहीत, ते कमलोने जमरा प्रमुख जोगवे , निर्मल पाणीये करी ते वाव्यो पूरण नरेली , तेने विषे म स, काचबादिक अतिघणा जमे, तथा अनेक पदीयोना युगल मैथुन क्रीमा करे तथा ते प्रत्येक वाव्य पद्मवरवेदिका अने वनखंडेकरी सहीत . केटलीक वाव्य प्रमुखनां मदिराना सरखा पाणी, केटलीकनां वारूणीवर समुजनां सरखा पाणीने, केटलीकनां गोदुग्ध सरखा पाणीने, केटलीकनां घृतसरखा पाणी, के टलीकनां शेलडीनां रस सरखा पाणी, केटलीकनां अमृत सरखा पाणी, केटलीक नां स्वजाविक पाणी समान पाणी, ते वावी जोवा योग्यवे. इत्यादिक ए वावी कूपा दिकनो वर्णन घणोडे ते जीवानिगमादि सूत्रथी जाणवो. तथा फल, फूल, पत्र, आंबा, नीबू, दामीम, जनेरी प्रमुख सर्व पदार्थ ते वनने विषे रत्नमय जाणवा. हवे ते वनने विषे गम गम घणा उत्पाद पर्वत, जिहां व्यंतर प्रमुख देवता क्रिमा करवा निमित्तें आवी नवधारणीय वैक्रिय शरीरे करी क्रीडा करेजे. ते पर्वतने विषे स्फटिक रत्ननां मंझप, तथा मंचक, दगमाल प्रासाद विशेष, स्फटिकना प्रासाद, हीडोला खा ट, पक्षीने बेसवाना गम इत्या दिक सर्व रत्नमय तथा हंस, क्रौच, गुरुड प्रमुखने आ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 अढीछीपना नकशानी हकीगत. कारे जुदा जुदा जातनां अनेक सिंहासन प्रमुखले, एरीते वावडी, तोरण, पुतलीयो. मेहेल ए सर्व रत्नमय . ब ए झतुमां सर्व स्थले देखवायोग्य रमणीक जे. तथा ते वनखंडने विषे गम गम केलीनां घर, लतानां घर, अवस्थान घर, पृछन स्नान करवाना घर, प्रसाधन घर इत्यादिक अनेक जातीनां घर, तेमज घणा जाय श्रा दिक फूलोनां मंगपजे. तथा उत्तम सय्या अने श्राशनने स्थानके पृथ्वी शिलाना पटले, तिहां घणा व्यंतरिक देवो भने देवांगना वसेजे, विश्राम करेडे,सूवेडे, बेसेडे, निषिद्या करे, पासुं पालटेडे, रमे, इडित सुख जोगवे, क्रीमा विनोद करेजे, मैथुन सेवा करेठे पूर्व नवना आचारेला सुकृतथी उपार्जन करेला कल्याणकारी शुजकर्म तेनां शुनविपाक फल जोगवतां थकां प्रत्येके विचरे. एमां एटलुं विशेष जे माहेला पासानां वनखंग मां तृण नथी. तृणविनानो जाणवो. इत्यादिक वन संबंधि संदेप अधिकार कह्यो. अथ धारवर्णनं हवे ए जंबूछीपनां दरवाजानी संख्या कहेडे. एक पूर्व दिसे विजयनामे झार तेनो विजयदेव नामे पोलीउजे. बीजो दक्षण दिसे विजयंत नामे घार ने तेनो विजयंत नामे देवरक्षक बे. त्रीजो पश्चिम दिसे जयंत नामे द्वार के तेनो जयंतनामे देव रक्षक जे. चो थो उत्तर दिसे अपराजित नामे छार तेनो अपराजित नामे देव रक्षक बे. एरीते विजयादि चार अनुत्तर विमानने नामे चार दरवाजानां पण नाम कह्या बे. तिहां मेरूपर्वतने पूर्व दिसे पीस्तालीश हजार योजन जश्ये तेवारे जंबूहीपनी पूर्वदि सीने बेहेडे लवण समुनी पूर्वदिसिनी पश्चिम दिसे सीतामहानदीनी उपरे विजयनामे दरवाजो बे, ते आठ योजन ऊंचो, चार योजन पहोलो, अने चार योजन लांबपणे प्रवेश पणे, तथा बे बाजुये एकेक कोशनी बारसांखनी जीत स्वेतवर्णेले, तेनुं शिखर शोना, बे, तिहां हाथी, मृग, वृषन, अश्व, मनुष्य,मगरमच, पंखी, सर्प, किन्नरनामा व्यंत रदेव, रुरुजीव, गेंमा, चमरीगाय, वनहस्ति, वनलता, पद्मलता प्रमुख चित्रामे करी युक्त बे. थंन उपर उत्तम वेदिका तेणेकरी सहीतबे, विद्याधरना युगलनां श्राकारे करी ते थंन युक्त , हजारोगमे सूर्यनां किरणो थकी पण अधिक प्रकाशवान बे, देदीप्य मान, चकुने जोवा योग्य, सुखकारी फरसबे, सश्रीक रूपले. वज्ररत्नमय तेनुं नूमी नागडे, अरिष्टरत्नमय पगथालीयानां मूल, वैडूर्यरत्नमय थं जबे, सुवर्णेकरी सहीत एवा उत्तम पंचवर्णा मणिरत्न तेणेकरी नूमितल बांध्युंडे, हंस गर्जरत्ननो उंबरो बांध्यो, गोमेद्यरत्ननां नीचला टोडला, श्रने उलालो, लोहीताद रत्नमय बार शाखडे, ज्योतिरसा रत्नमय बारणानां उपरला चांपणा, वैडुर्यरत्नमय Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत.. कमामले, वज्ररत्नमय पाटीयानी सांधि जमीने, लोहीताद रत्नमय बेपाटीया वच्चें खी ती, नवनवा मणीमय चणीयारा , वज्ररत्नमय जोगलबे, अने नोगलनो गम पण वज्ररत्नमय श्रावर्तन पीठिकाने, जिहां उलालो बेशे ते गम जाणवो, अंकरत्नमय छा रना बे पासा, एवा आंतरा रहीत निवम अन्नंग कमाड डे. ते हारने बेहुपासे बेसवाना चोखूणा उँटला, तेनी पासे पण त्रण त्रणनी बपन्न पं क्ति एवा 160 लांबा जेटला, तिहां नाना प्रकारनां मणिरत्नमय सर्पनां रूप, हारने बे पासे लीलाये करी सहीत एवी पुतली, वज्ररत्नमय शिखरने, रूपामय उपरलो पीग्ने, सर्व सुवर्णमय चंजुवाडे, नाना प्रकारनां मणिरत्नमय जालपिंजर गवाद, मणिमय उपर लो वंशजे, लोहितादरत्नमय उपरलो प्रतिवंश, रूपामय नौम, आदसरनां खागा श्रने बीजा पण जे खागा ते सर्व अंकरत्नमय, ज्योतिरसा रत्नमय वंशने वलाने, ज्योतिरसा रत्नमय अनेक खापडे, ते उपरे रूपामय पीउने, ते वच्चे सुवर्णमय पातली होती, ते वच्चे सूक्ष्म तृण समान आबादन ढांकणी रूपडे, ते उपरे वली सर्व स्वेत रूपामय आछादन, अंकरत्नमय पदबाधाडे, सुवर्णमय शिखरडे, ते उपरे सुवर्णमय थूनिकाने, ते हारनो उपरलो नाग सर्व स्वेतदक्षणावर्त संखनो जेम निर्मल दहीना दमबां, गायनुं दूध, समुना फीण, रूपानापूंज, एना सरखो उज्वल पोलनो प्रकाश, तिलकरत्न तथा अईचंड तेणेकरी सहीत एवा अनेक चित्रामण,नाना प्रकारनी रत्नम य मालाये करीने ते हारनां मुख शोनित, बाहेर अने मांहे सुकुमाल, पोल मध्ये सो नानी वेलु पाथरी, तेनुं शुजफरसबे,सधिकरूप डे, जोवा योग्य वे, यावत् प्रतिरूपले. हवे ते विजयनामा छारना बे पाशे बे उंटला तेमां चंदने चर्चित बे बे कलश, ते कलश उत्तम कमल उपरे थाप्या . सुगंधित उत्तम पाणीये करी प्रतिपूरण नस्या बे, ते कलशने बावनां चंदननां गंटा कीधा. गलाने विषे राता सूत्रनां दोरा बांध्या डे, कमलनां ढांकणा, ए कलश प्रमुख सर्व रत्नमय, निर्मलजे. सुकुमाल, यावत् प्र तिरूपडे, महोटा महोटा महेंज कुंजसमान ते कलश कह्या बे. ते छारने बे पासे उँटले बेसवाने स्थानके बे बे नागदंता सरिखा खीला, ते नागदं ताने विषे घणी मोतीनी माला, लंबायमान हेमनी माला,गवादने आकारे रत्ननी माला अने घूघर माल प्रमुख वलगामी, तेणे करी सहीतबे, कांश्क उंचा, सन्मुख निकल्या डे, त्रिला निन्न प्रदेशने विषे रूमीपरे रह्या ,नीचें सर्पनां अर्ड आकार समान,सपार्क संस्थाने संस्थितने, सर्व रत्नमयदे, निर्मलबे, यावत् प्रतिरूपबे, एवा महोटा नागदंता हाथीनां दांत समानने,ते नागदंताने विषे घणा कृष्णसूत्रे बांधी तेमज नीले सूत्रे,लालसूत्रे, पीलेसूत्रे, यावत् स्वेतसूत्रं बांधी एवी लंबायमान फूलनी मालानां समूह वलगाड्याने, ते Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीवीपना नकशानी हकीगत. मालानने सोनानां फूंमकाने, सोनानी पानडीये मंमित, नाना मणिरत्न विविध प्रका रना हार अने अर्बहार तेणे करी सहीत, यावत शोनाये अत्यंत शोजता थका रहे. ते नागदंता उपरे बीजा बे नागदंता ते मोतीनी मालाये करी शोनित तेनो व र्णन पूर्वपरे जाणवो, ते नागदंताने विष घणा रत्नमय शीकाने, ते शीकाने विषे घणी वैडुर्यरत्नमय धूपघटी, ते धूपघटी कृष्णागर, कुंदरुक तेने धूपेकरीने घम घमाय मान गंधने उत्कृष्ट पणे करी मनोहर बे, सुगंध गंधे करी गंधवंत , गंधनी वाती रूप उ दार मनने गमती मनोहर नासिका अने मनने सुख उपजावे एवी गंधे करी ते प्रदे श प्रत्ये सर्व दिसे चोफेर पूरती थकी अत्यंत शोनती थकी यावत् रहे. ते विजयनामे हारने बे पासे बे चोतराने विषे बेठकने विषे बे वे पूतली कही बे, पूतली ललितांग लीलावंत लीलाये सहित रूडे प्रकारे थापी, जले अलंकारे अ लंकृत, ते पूतलीने नवनवा आकारनां वस्त्र, नवनवा प्रकारनी फूलनी माला कंठे पेहेरी, जेनो कटी प्रदेश मुष्टीये ग्राह्य, जेना शिखर सरिखा युगल वृत्ताकारे जंचा पुष्ट मांसे युक्त एवा पयोधरडे, नेत्रनां खूणा राताडे, केश काला, कोमल निर्मल न ला लक्षण सहित प्रशस्त संवस्यो डेमो जेनो एवा मस्तकनां केश, किंचित् अशो कवृक्षने आश्रित शरीर जेनो, मावे हाथे ग्रही अशोकवृदनी शाखा जेणे, किंचित् अर्ड कटाद तेनी चेष्टाये करी देवता प्रमुखने लूसती थकी, चकुने विलोकवे करी माहोमांहे जाणीये खिंसना करती थकी एवी ते पूतली पृथवीकायमयडे, शाश्वते नावे बे, तेनुं चंजमा समान मुखडे, चंद्रमा सरखो मनोहर विलास, अर्धचंमा समान निराम, चंडथकी अधिक सोम्यदर्शन, उदकापातनी पेरे उद्योत करतीने, मेघनी वीजली थकी सूर्य देदीप्यमान ने तेथी पण देदीप्यमान अधिकतर प्रकाश वाली. शोल श्रृंगारने आकार तेणे करी मनोहर वेष , जोवा योग्य , यावत् प्रतिरूप ने,ते पूतली तेजे करी अत्यंत अत्यंत शोनती थकी रहे. ते विजयनामा छारने बे पासे बे उँटलाने विषेबे बेजालीना कटक समूहबे, ते जाल कटक सर्व रत्नमयजे, यावत् प्रतिरूप, तथा ते हारने बे पासेना बे उँटलाने विषे बे बे घंटा कही ते जंबूनंद रत्ननी, वज्र रत्नमय लाल, नाना मणिमय घंटाना पासा, सुवर्णमय सांकल , रूपामय रासडी, ते घंटानो उघस्वर, मेघनां सरिखो स्वर, हंस नां सरिखो खरडे, कौंचनां सरिखो स्वर, तथा बार वाजानां समूहनो स्वर तेने नंदीस्वर कहीये तेना सरखो स्वर अने तेनो सरखो घोष, सिंहना सरखो स्वर, सिंहनांस रखो घोषने, मीठो स्वर, मीठो घोष, नलो स्वर, जला स्वरनो घोष, तेस्थानकनां प्रदेश उदार, मनोज्ञ स्वरबे, कान अने मन तेने सुखनो करनार एवे शब्दे यावत् रहे. Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. विजय हारने वे पासे वे उँटले बे बे वनमाला कहीजे. जेमा पत्र, पुष्प, फल, अंकूरा अने साखा एका गुंथ्यां होय तेने वनमाला कहीये ते वनमाला नाना प्रकारनां फूल, लता, टिसी, अंकूरा तेणे करी सहीत, जमरा प्रमुख जीवे जोगवती थकी सोनाय मान मनोहर, जोवा योग्य, प्रतिरूपडे, ते प्रदेशे गंधे करी पूरती थकी यावत् रहेने, ते विजय हारने बे पासे उटलाने विषे वली बे वे चोखूणा उँटला ते चार योजन लांबा अने पोहोला,बे योजन जाम पणेबे, सर्व वज्र रत्नमय निर्मलबे यावत् प्रतिरूपले ते उँटला उपरे प्रत्येके प्रत्येके प्रासादावतंसक बे, ते चार योजन ऊंचपणेने तथा बे यो जन लांब.पणे अने पहोल पणेने, ते प्रासादावतंसक सन्मुख नीकली सर्व दिसे प्रसार पामेली एवी प्रजा तेणे करी जाणीये कांती खोलाती रहेती नथी? एवाडे,विविध विविध प्रकारनां मणिरत्ननीनांते करी विचित्र, विजय अने विजयंति ध्वजा वायरे करी कंपि तबे, बत्र अने ते उपर बत्र तेणे करीसहीत, ते प्रासादनां शिखर अत्यंत उंचा, श्रा काश तलने उलंघे, ते जुवननी नीते जाली, तेनी शोजाने अर्थे रत्न जड्यांबे, करं मीयामा जडीत रत्न राख्या होय ते जेवा शोन्ने तेवा ते रत्न शोने, मणी अने सुवर्णनां शिखरडे, विकश्वर शतपत्र तथा पौंमरीक कमल तथा तिलक वृद प्रमुख रत्नमय तथा अईचंड इत्या दिकनां स्वरूप हारने विषे डे, नाना प्रकारनी मणिमय माला तेणे करी तेप्रासादनुंछार शोनित, ते प्रासाद मांहे अने बाहेर सुकमाल, तेमां सुवर्णनी वेलु पाथरी, तेनो सुखकारी फरस, सश्रीक मनोहररूप, जोवा योग्य, यावत् प्रतिरूपले. ते प्रत्येके प्रत्येके प्रासादावतंसकने मध्ये घjक सम मनोहर नूमि नागबे,ते जेम मुरज नामा ढोलनो तलो ते समानजे, यावत् मणिये करी उपशो जित, मणिनो गंध वर्ण फरस पूर्वली परे जाणवो, तेमध्ये चंनोदय अने पद्मलता प्रमुखले, यावत् सामलि का नामे वनस्पति प्रमुखनां चित्रामण, ते सर्व सुवर्णमय,निर्मल,यावत् प्रतिरूपले. ते सम मनोहर नूमिनागनां मध्यदेश नागने विषे प्रत्येके प्रत्येके मणिमय विविका चोतरा रूपने, ते एक योजन लांब पणे अने पोहोल पणे, अर्ड योजन जाम पणे, सर्व रत्नमय, यावत् प्रतिरूपले. ते मणिपीविकानी उपर प्रत्येके प्रत्येके सिंहासन बेते सिंहासननां पगथालियानां अधःप्रदेश सुवर्णमय, रूपामय सिंहासनडे, सुवर्णमय पगथालीयाजे, नवनवा रत्नमय पादपीठ, जंबुनंद रत्नमय गात्र,वज्र रत्नमय संधि पूरित,नवनवा रत्नमय सिंहासन-त ली, ते सिंहासन हस्ति, मृग, वृषनादिनां चित्रामणे युक्त, मणिरत्नमय पादपीउने, तेनां उपर कोमल मसरूनुं नूतन सीतल स्पर्शे सहीत सिंहनी केसरा समान एवं Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NUM अढीछीपना नकशानी हकीगत. वस्त्र ढांक्युंजे तथा जला डाम रूप राते वस्त्रे करी पाद पीठ ढांक्याने, तेनो मृगचर्म, रू, पर, माखण अने अर्क समान कोमल फरसले. तथा ते सिंहासन उपरे प्रत्येके प्रत्येके विजयष्य चंदुवा, ते चंडुवा संख, मच कुंद. पाणीनां फूसारा, अमृत, समुज्ना फेण सरखा स्वेतवर्णे डे, ते सर्वे वस्त्र रत्नमय तथा ते विजयकुष्यने मध्यदेश नागे प्रत्येके प्रत्येके वन रत्नमय अंकूस रूप, तेअंकूसने विषे कुंन समान मोतीनी माला, ते माला पासे वली तेथकी थर्ड स्वरूपे कुंन समान मोतीनी मालाये करी सर्व दिसे चोक फेर परिवरी, ते मालाने सोनानां फूंमका, सुव र्णने प्रकरे शोनित, ते प्रासादावतंसक उपरे घणा घाउ आउ मंगलीकडे, तथा छारने वे पासे बे घंटले बेबे तोरण, ते तोरण आगल बे बे पुतली, तथा बे बे नागदंता बे, ते नागदंताने मोतीनी माला लगामी, तेम ते नागदंताने विषे घणीज कृष्णसूत्रे बंध फूलनी मालानां समूह यावत् रहे, तथा ते तोरणने आगल घोमाने आकारे बे वे युग्म, तथा वावीनी पंक्ति, मैथुन ते स्त्रीसहीतरूप, बे वे पद्मलता जे. तथा अक्षत स्वस्तिक, तथा उत्तम कमल उपर चंदने चर्चित कलश थाप्याने, तथा बेबे गंगार कमल उपर थाप्याडे, तेनां मत्तहाथीनां मुख समान आकार बे. ते तोरणने आगले बे श्रारीसाबे, ते श्रारीसानो घर सुवर्णमयडे, वैडूर्य रत्नमय श्रा रीसा कालवानी मूंठी, वज्र रत्नमय हाथो, अनेक मणिमय श्रंखलाये वेष्टित शो नित, अंकरत्नमय खाप एटले रूप जोवानुं गम, तेनी बायाये करी सर्व देखाय, अनुबंध सहीत बे, चंडमंगल सरखा बे, मोटा अर्डकाय समान बे. ते तोरणनी आगल वज्रनी नाजी समान थालवे, ते थाल स्फटिक समान त्रएय वार उड्या शाली मध्यनां तंफुल मूसले करी खांड्या एवा तंफुले करी जस्या थका रहे, ते चोखा अने थाल सर्वे जंबूनंद रत्न मय. मोहोटा मोहोटा रथनां पश्मा समान ते थाल ले. ते तोरणनी बागल बे बे पात्री, ते निर्मल पाणीये करी प्रतिपूरण, अनेक प्रकारना पंचवर्ण फूलेकरी प्रतिपूर्ण समान, तथा बे वे सुप्रतिष्टक नाजन विशेष. ते अनेक प्रकारनां पूजाना उपकरणे करी जयाने, सर्व उषधीये प्रतिपूर्ण तथा बेबे मनोगुलिका पीठिकाडे, तेने घणा सोनामय रूपामय पाटीयाने, ते पाटीयाने विषे घ णा वज्रमय नागदंता, ते नागदंताने विषेघणा रूपामय शीका. ते तोरणनी आगल बेबे आश्चर्यकारी रत्ननां करंमीया, तथा बे बे हयकंग्डे, यावत् बे बे वृषजने श्राकारे तोडला बे, इत्यादिक घणा पदार्थो . तेनुं विशेषे वर्णन जीवानिगमथी जो लेवो. विजय हारने विषे चक्र, मृग, गरुड, बगला, पीब, बत्र, शकुनी पंखी, सिंह, बलद, Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुद्दीपना विजयधारनी पांचमी भूमिनी स्थापना जगतीनी स्थापना तथा विजयादि चार दरवाजानी स्थापना. जगनीनी स्थापना तथा विजयादि चार तथा देवोनी स्थापना. Nr OnlLIC ------EEDOE PAALA 20A 15MAN पार 28 - - - - - Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजयदेवनी राजधानीनी स्थापना M विजयराजधानी नी चारे दिशानाचार वनवंह अने चार/ प्रासादावतंसकनी स्थापना 5 VIII CLODA SIP COM विजयराजधानीना घारनी स्थापना MIMIRIT lamaanaना " YWOWwwwwwwwww Dooooooo वनरवमनामासादावतंसकना मध्यभागनेविषे अशोकादियनरखम ने नामे वसनारा देवोना भद्रासन छेतेनी स्थापना Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यराजधानीना 85 प्रासादावतंसकनी स्थापना. EGA圖色圖@GOG HOTI SAli मूल प्रासादावतंसकनी ईशा 1 नकोणे सुधर्मा सभा AM ने विपे जिनदाढा प्रमुखना डावला रहे तेनी स्थापना. मणि पीठिकानपरे चार शाश्वत जिनप्रतिमा तेनी स्थापना ... Com - - - - Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 10 माणवक नामा चैत्यर्थभः / - - - Aar हि माणि पीलिका Notat सिंहासन सधा सभायें फूलमाला,शीका, नागदंनानी स्थापना शस्थभंडार यो मणिपीठिका लघुमहेद्र ध्वज पुस्तक सभा. अभिषेक समासातरानीस्थापना विजयादिधारना - पुष्करणीवाव्य सिध्धायतन सामान्य जंबूहीपनी स्थापना. पा 28 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. शए स्वेत चउदंता हस्ति ए दस मोहेला एकेकना चिन्हे करी युक्त एकशो ने आठ आठ ध्वजा दे. तेवारे ए दशेना चिन्हे युक्त सर्वमली 100 ध्वजा विजयहारे . विजय हारनी नव नूमिळे. ते मध्यमा पांचमी नूमिने विषे एक मोहोटुं सिंहासन बे, ते सिंहासननी वाव्यकूणे अने उत्तर दिसे तथा इशानकूणे विजय देवतानां चार ह जार सामानिक देव तेना चार हजार नसासन, ते सिंहासननी पूर्व दिसे विजय देवता नी चार अग्रमहीषीना परिवार सहित चार नमासन, तथा अग्निकूणे विजय देव तानी अत्यंतर परखदानां साठ हजार देवता तेनां आठ हजार नप्राशन, तथा द क्षण दिसे विजयदेवतानी मध्य परखदानां दशहजार देवतानां दशहजार नासन, तथा नैरुतकूणे विजयदेवतानी बाहेरली परखदानां बारहजार देवतानां बारहजार जसासन बे, ते मूल सिंहासनथी पश्चिम दिसे विजयदेवतानां सात कटकनां धणीना सात जनासन, तथा सिंहासननी पूर्वादिक चार दिसाये प्रत्येके चार चार हजार जलासन . तेविजयदेवताना आत्मरक्षक देवो शोल हजार, तेना चारेदिसियेमली शोल हजार नसाशन, अवशेष आठ नूमिने विषे प्रत्येके प्रत्येके नमासन कह्या ठे ते सामानिकादिक देवो योग्य सिंहासन परिवार रहित कह्यावे. तथा उपरला पोल उपरे शोल प्रकारनां रत्ने करी शोनित, तथा घणा आठ आठ मं गलीकडे, तथा उपरे घणा कृष्ण चामर ध्वजा , सर्व रत्नमय. तेमज घणा जाति बत्र प्रमुख पूर्वपरे जाणवा. ए विजयनामे छारे विजयनामे देवता महर्डिक,महाकांति नो धणी, महाअनुनावनो धणी, एक पत्योपमने आउखे वसे, तेना चार हजार सा -मानिक देवता, चार अग्रमहीषी परिवार सहीत, त्रण परखदानां देवो, सात कटकनां धणी, शोल हजार आत्मरक्षक देवता प्रमुख बीजा पण घणा विजया राजधानीनां रहेनारा देवता अने देवांगना प्रमुख गकुर पणे देवता संबंधीया नोग नोगवता थ का विचरे डे तेथी ए विजय हारनुं विजय एई शाश्वतुं नाम. . हवे ए विजयनामा छारनां विजयनामे देवतानी विजया नामे राजध्यानी ते एज विजय हारने पूर्व दिशाये तिळ असंख्याता छीप अने समुड मूकी जश्ये तिहां बीजो जंबुद्धीपनामे हीप श्रावे तेमध्ये बार हजार योजन अवगाही जश्ये तिहां ए विजय देवतानी विजया नामे राजधानीले. ते विजयानामे राजधानी बार हजार योजन लांबपणे तथा पहोलपणे अने (30) योजन कांश्क विशेषाधिक एटली तेनी परिधि फरती. ते राजधानी एक प्राकारे एटले गढे करी सर्व दिसे चोक फेर वींटी, ते गढ साडा सामंत्रीश योजन ऊंचो, मूलमां शामाबार योजन पाश्ये पहोलो, मध्यमां सवा उ योजन पहोल पणे ने तथा Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 अढीछीपना नकशानी हकीगत. उपर त्रण योजन अने अऊंगाल पोहोल पणेने एटले मूलमां विस्तार पणेने, मध्ये सांकडो, उपर पातलो, बाहेरे गोल, मध्ये चोखूणो, गायना पूंबने संस्थाने सं स्थित, सर्व सुवर्णमय, निर्मल, यावत् प्रतिरूप, ते गढ नाना प्रकारनां पंचवर्णा कोसीसाये करी शोनित, ते कोसीसा अहगान लांबपणे , पांचसे धनुष पहोल पणे बे, देसोन अर्डकोश जंचपणे बे. विजया राजधानीने एकेकी दिखिये सवासो सवासो बारणाले, एम चारे दिसिनां मली पांचसे दरवाजा. ते प्रत्येक दरवाजो साडीबासठ योजन ऊंच पणेने, सवाएकत्रीश योजन पहोलपणे, सवाएकत्रीश योजन प्रवेश, स्वेतबे, उत्तम सुवर्णमय शिखर निका,तिहां हाथी मृग इत्यादि चित्रामणनो अधिकार सर्व विजय हारनीपरे जाणवो. तथा एकेक छारे सत्तर नूमि ते चंमुथा तथा पद्मलता प्रमुख चित्रामणे करी युक्त, तथा तेने विषे सिंहासन कह्या इत्यादिक तथा बे पासेना बे घंटला तथा बे बे चो खूणा घंटला तथा प्रासादावतंसक इत्यादिक वातो सर्व जीवानिगम सूत्रथी जोवी. विजया राजधानीने पूर्वादि चार दिसाये चार वनखंम ते आवी रीतेः-पूर्व दिशाये थाशोपालव अशोकवन, दक्षण दिसे सडसडो सप्तवर्ण वन, पश्चिम दिसे चंपक वन, अने उत्तरदिसे आम्रवन, ते वनखंम कांशएक जाफेरा बार हजार योजन लांब पणे बे, पांचसे योजन पोहोल पणेने,प्रत्येके प्रत्येके गढे करी सहीत, एनी कृष्णशोना ए म यावत् तिहां घणा व्यंतरिक देव देवांगना विसामो करे इत्यादि सर्व पूर्वपरे कहे, तथा चार वनमां चार प्रासादावतंसक ने तेमां तेवेज नामे चार देवता परिवार सहीत रहे तेमज माहेली नूमीनो वर्णन इत्यादि अधिकार सर्व जीवा निगमसूत्रथी जाणवू. विजया राजधानीनां मध्य देशनागने विषे एक पडथार रूप चोतरोडे. ते बारसो योजन लांबपणे अने पहोल पणेने, ३७एए योजन कांश्क विशेषाधिक फरतो, अ ऊकोश जाडपणे, सर्व जंबूनंद रत्नमय, ते चोतरो एक पद्मवरवेदिका अने वन खंग तेणेकरी सर्व दिसे चोकफेर वींटांणोडे, पद्मवरवेदिकानो वर्णन अने वनखंमनो वर्णन पूर्वपरे जाणवो. ते वनखंम देसोन वे योजन फरतुं परिधिये पहोचुंबे. चोतरा समान फरतुंडे. ते चोतराने चार दिसे चार पगथालीया, पगथालीयाने आगले प्र त्येके प्रत्येके तोरण बे, बत्रातिकत्र जे. ते चोतराना मध्यनागने विषे एक मूल प्रासादावतंसक, ते सामाबाश योजन उंचो, अने सवाएकत्रीश योजन लांबो तथा पहोलो, तेना मध्य नागने विषे वली एक मणिमय पीठिका चोतरोबे, ते मणिपीठिका एक योजन लांबी पहोली, अर्ड यो जन जाड पणे, तेनी उपर एक महोटुं सिंहासन, ते सिंहासननो वर्णन सर्व परि Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. वार सहीत जाणवो. ते मूल प्रासादावतंसक वली बीजा चार प्रासादावतंसके सर्व दिसे चोफेर व्याप्त. ते चार प्रासाद सवा एकत्रीश योजन ऊंचपणे बे, तथा साडा पंदर योजन अने अर्डगाउ लांबा अने पहोला बे, ते एकेको प्रासादावतंसक वली बीजा चार चार प्रासादावतंसके सर्व दिसें चोकफेर व्याप्त. ते प्रासाद साडापंदर योजन अने अईगाउ जंचपणे, तथा पोणा श्रायोजन अने पा गाउ लांबा पहोला.वली ते प्रत्येक प्रासादावतंसक वली बीजा चार चार प्रासादावतंसके सर्व दिसे व्याप्त. ते प्रासाद पोणााठ योजन उपर पा गाउ जंचा, अने साडासातसे धनुषे जंणा चार योजन लांबा अने पहोला , ए सर्व मली न्५ प्रासाद थाय ते आवी रीते. एकतो मध्य प्रासाद, ते चार दिसाये चार प्रासाद ते एकेकानी पळवाडे वली चार चार प्रा साद अने वली ते एकेकानी पाबल चार चार प्रासाद एवं 5 थाय;एनुं पांचमा अां कनुं चित्र या पुस्तकनां त्रीजा पृष्ठमांडे ते जो. हवे ते मूल प्रासादावतंसक थकी ईशान कोणे विजय देवतानी सुधर्मा नामे सजा जे, ते साडा बार योजन लांबी, सवाब योजन पहोली, अने नव योजन ऊंचपणेने, अ नेक यांनाना शश्कमा तेणे करी सहीत, ऊंचा थंच उपरे वन रत्नमय उपरली कुंनी . तिहां प्रधान रचित तोरण अने पुतली, मनोज्ञ संस्थाने संस्थित, वैडूर्य रत्नमय थंज, नव नवा प्रकारनां रत्न सुवर्ण मणि प्रमुखे सहीत निर्मल विस्तार पणे अत्यंत समनिविन थाश्चर्यकारी मनोहर धरती तल, हाथी, मृग, वृषन, अश्व, मनुष्य, मगरम स, पंखी, सर्प, किन्नरदेव, गेंमो, चमरिगाय, वनहस्ति, वनलता, विद्याधरना युगल, पद्मलता प्रमुखनां चित्रामण, सूर्यना सहस्र किरणथी पण अधिक तेजबे, पंचवर्णा घंट अने ध्वजाये करी शोजितने, चंऽथा तथा तोरणे करी सहीत, बावनां चंदन रस सहीत नीद्धं रक्तवर्णे तेना गमे गमे हांथा दीधाडे, स्थानके स्थानके बावना चंदनना कलश मूक्याने, फूलनी मालानां समुदाय, पंचवर्णा रस सहीत सुगंधि फूल तेना गम गमने विषे पूंजने, कृष्णागर कुंदरक प्रमुखनो धूप तेने मघ मघाटे करी मनोहर गंध, अपसराना समुदाये करी ते सना संकीर्णने, देवतानां वाजिन जे मृदंगादिक तेनास्वरे सहीतबे, तेना त्रण दिसिये त्रण छार, ते छार प्रत्येके बे बे योजन ऊंच पणे जे अने एक यो जन पहोल पणे बे, तेटलोज प्रवेश के एटले नींतनुं जामपणुं जाणवू. ते प्रासादनी उपर स्वेत उत्तम सुवर्णनां शिखरजे, यावत् वनमाला पर्यंत हारनुं वर्णन पूर्वपरे जाणवू. ते छारने श्रागल प्रत्येके प्रत्येके मुखमंगपडे, ते सामावार योजन लांब पणे अने सवाब योजन पहोल पणे,कांश्क जाजेरा बे योजन ऊंचपणे, ते मंडप अनेक थंने Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. केरी सहीत, तिहां चंयोदय अने नूनिनागनो वर्णन पूर्वपरे जाणवं, ते प्रत्येक मु ख मंमप उपर आठ आठ मांगलिक बे. ते मुखमंडप श्रागले प्रत्येके प्रत्येके प्रेदाघर मांडवा, ते पण तेटलाज लांबा प होला. ते प्रेक्षाघरना मध्यनागने विषे प्रत्येके चोखूणा वज्र रत्नमय चोतराने, ते चो तराना मध्य जागे मणिपीठिकाने, ते एक योजन लांबी पोहोली अने अर्ड योजन जाडी ते प्रत्येक मणिपीठिका उपरे एकेक सिंहासन बे. तथा ते प्रेदाघर मंडप आगले त्रण दिसे त्रण मणिपछिका कही, ते बे योजन लांबी पोहोली अने एक योजन जामपणे , ते प्रत्येक मणिपीठिका उपरे चैत्यथून ते चैत्यथूनने आगले त्रण दिसिये प्रत्येके मणिपीविका ने, ते प्रत्येक मणिपीविका उ पर चैत्यवृद ने, हवे ते चैत्यवृदने आगले जे त्रण दिसे त्रण मणिपीविका ते प्रत्ये कना उपरे महेंउध्वज, ते हजारो गमे न्हानी ध्वजाए करी सहीत, तेना उपरे श्राप आउ मंगलीकडे, एवं चित्र बहा आंकनुं त्रीजा पृष्टमां जोQ. ते महेंअध्वजने गले त्रण दिसायेंत्रण नंदापुष्करणी , ते साडावार योजन लांबी अने सवा योजन पहोली, दस योजन ऊमीने, ते पुष्करणी प्रत्येके प्रत्येके पद्मवर वे दिकायेकरी तथा वनखंडे करी सहीत,तेप्रत्येक पुष्करणीने त्रण दिसेत्रण पगथालीयावे. - सुधर्मासनाये उ हजार मनोहर चोखूणा उँटला , तेमां पूर्व दिसे बे हजार पश्चि मदिसे बे हजार, दक्षिण दिसे एक हजार अने उत्तर दिसे एक हजार बे, ते उँटलाने विषे घणा सुवर्णमय अने रूपामय पाटीयां बे, ते पाटीयांने विषे घणावज्रमय नागदं ताडे, ते नागदंताने विषे घणा कृष्णादि पांच जातना सूत्रे बद्ध एवी फूलनी मालाना समुदाय बे, ते मालाना सुवर्णना फूमका बे. सुधर्मासनाये उ हजार गोमानशीका सय्यारूप स्थानक लांबा उँटला, तेमां पूर्व दिसे बे हजार, पश्चिमदिसे बे हजार, दजिणदिशे एक हजार, अने उत्तर दिसे एक हजार. ते गोमानसीकाने विष घणा सुवर्ण अने, रूपामय पाटीया बे. यावत् वज्र रत्नमय नागदंताने विषे घणा रजतमय शीकाने, ते शीकाने विष घणी वैडूर्यरत्नमय धूप घटी, ते कृष्णागरु, कुंदरक, लोबान प्रमुखे करी सहीत . - ते सुधर्मासनाना मध्यने विषे एक महोटी मणिपीठिका बे. ते बे योजन लांबी श्र ने पहोली, तथा एक योजन जाड पणे तेनी उपर मानवक नामे चैत्यर्थन, ते सामासात योजन ऊंचो अने अर्डकोश नूमिमां मोजे, अर्डकोश विष्कंन पणेने, ब हांस, उ संधी, स्थानके शोजित, ते माणवकथन उपरे दोढ योजन जश्ये अ ने हेठे दोढ योजन मूकीये तिहां मध्ये साडाचार योजनमा घणा सुवर्ण अने रूपामय Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी दकीगत. 33 पाटीयां, तिहां घणा वज्र रत्नमय नागदंताजे, ते नागदंताने विष रूपामय शीकाने, ते शीकाने विषे वज्रमय गोल वृत्ताकारे दाबडा ते दाबमाने विषे घणा तीर्थंकरनी दाढा तेणेकरी सहीत थका रहे, ते दाढा विजयदेवताने अने बीजा पण घणा व्यंतरिक देव अने देवांगनाने अर्चवा योग्य, वांदवा योग्य, चंदनादिके पूजवा योग्य, वस्त्रादिके सत्कार करवा योग्य, सन्मान एटले बहुमान करवा योग्य, क ल्याण कारी, मंगलकारी देव संबंधी चैत्यनी परे सेवा करवा योग्य, देवता ते दाढा नी सेवा केवल मुक्तिना निमित्तें करे बे. ते माणवक नामा चैत्यर्थचनी पूर्व दिसे एक महोटी मणिपीठिकाडे, ते बे योजन लांबी अने पोहोली, एक योजन जाड पणे , तेनी उपर एक महोटुं सिंहासन बे. __ माणवक चैत्यर्थजनी पश्चिम दिसे एक महोटी मणिपीठिकाडे, ते एक योजन लांबी अने पोहोली, अईयोजन जाड पणेने, तेनी उपर एक महोटी देव शय्याने, ते देव शय्याने ईशानकूणे एक महोटी मणिपीविका बे, ते एक योजन लांबी पोहोली ने, अने अर्ड योजन जाम पणेने, तेजपर एक पूर्वला महेंअध्वजनी अपेक्षाये नाहानो एवो महेंउध्वज, ते शामासातयोजन उंचोडे अने अर्डकोश पोहोल पणे, ते लघु महें ध्वजने पश्चिम दिसे विजयदेवतानो चोप्याल नामे हथीयारनो नंमार बे. ते सुधर्मा सजा थकी शान कूणे एक महोटुं सिहायतन ते सिझनुं देहरुं शामा घार योजन लांब पणे, अने सवाल योजन पोहोल पणे, नव योजन ऊंच पणेने, तेना मध्यत्नागे एक महोटी मणिपीठिकाने, ते बे योजन लांबी पोहोली श्रने एक योजन जाड पणे, ते पीठिका उपरे एक महोटो देवबंदो एटले गंजारोबे, ते वे यो जन लांबो पोहोलो अने एक योजन &च्च पणे बे, ते गंजाराने विषे तीर्थंकरनी एक शोने आठ प्रतिमा, ते उंचपणे तीर्थकरनी काया प्रमाणे एटले लघु सात हाथ प्र माण अने उत्कृष्ट पांचशे धनुष प्रमाणे शरीर वाली एवी प्रतिमा थापी रहे ते न गवंतनी प्रतिमाने पूंठे प्रत्येके प्रत्येके बत्र धारकनी प्रतिमा कही ते लीला सहीत उत्र धरती थकी रहे तथा ते जिनप्रतिमाने वे पासे प्रत्येके प्रत्येके बे चामर धारकनी प्रतिमा ते चामरने लीला सहीत वींजती थकी रहे तथा ते प्रत्येक प्रतिमाने आ गले बे बे नागदेवतानी प्रतिमा, बे वे यक्षदेवतानी प्रतिमा, बे बेलूत देवतानीप्रति मा, बे बे कूमधार देव विशेषनी प्रतिमा एवी आठ प्रतिमा ते विनये करी नमती पगे लागती थकी हाथ जोमती थकी एवीथकी रहे ते प्रतिमा सर्व रत्नमय ते जिनप्रति माने श्रागले 107 घंटबे, 107 चंदने चर्चित कलशने, 107 शृंगार, 107 आरीसा, 107 थाल. 107 पात्री, 107 सुप्रतिष्टक नाजन विशेष, 107 मनोगुलिका पीठ विशे Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 अढीछीपना नकशानी हकीगत. ष, 107 वात करंडक भंगार विशेष, 107 मनोहर रत्न करंगक, 10 हयकंके जाज न, यावत् 107 वृषन कंठक नाजन विशेष, 107 फूलनी चंगेरी, यावत् 107 पूंजणीनी चंगेरी, 107 यावत् फूलना समूह, 107 सुगंधि तेलना डाबमा, 107 धूपकमुखा इत्या दिक पूजानां उपकरण थाप्या थका रहे, ते सिकायतन उपर घणा आठ आठ मंग लीक बे, बत्रातिबत्र , ते सिहायतननां शिखर शोल प्रकारनां रत्ने करी शोनित बे. ते सिकायतनने शानकूणे एक महोटी उपपात सना कही ते विजय देवताने उपजवानुं स्थानक, ते जेवी सौधर्मा सना कही तेवीज ए सना पण जाणवी. ते उपपात सनाने इशानकूणे एक महोटो सहळे ते सामाबार योजन लांबपणे , सवाब योजन पोहोल पणे बे, दश योजन सुमो ने ते पद पद्मवरवेदिका तथा वनखंडे सहीत , ते जेवो नंदा पुष्करणीनो वर्णन सूत्रोमां कह्यो तेवोज शोना श्राश्रयी एy प ण वर्णन जाणवू ते पहने इशानकूणे एक महोटी अनिषेक सनी कही बे, ते जेवी सौधर्मा सना कही तेवी जाणवी तेना मध्यनागे एक महोटी मणिपीठिका , ते एक योजन लांबी पोहोली अने अर्ड योजन जाम पणे, ते मणिपीविका उपरे एक मोहो टो सिंहासन, तेने विष विजय देवताना अनिषेक करवानां नाम थाप्या थका रहेजे. ते अनिषेक सनाने इशानकूणे एक महोटी अलंकार सना कही ते अनिषेक सना सरखी जाणवी. तिहां विजय देवता आनुषण पहेरे डे जिहां विजय देवतानां घणा उत्तम आनुषणनां गम आजुषणे नख्या थकां तिहां थाम्यां थकां रहे. ते अलंकार सनाने इशानकूणे एक महोटी व्यवसाय सनाने, जिहां विजय देवता पुस्तकरत्न वांचेडे ते व्यवसाय सजाअलंकार सना सरखी जाणवी. तिहां विजय देवता, पुस्तकरत्न थाप्युं थकुं रहे, ते पुस्तकरत्ननां अरिष्टरत्नमय पागं बे, रूपामय पाना, रिष्टरत्नमय अदर, राता सुवर्णमय दोरा ने जेणे करी पुस्तक परोश्ये. तथा नवनवी मणिमय गांगिडे, गांठे पार्नु नीकले नही, वैडूर्यरत्नमय स्याहीनो खमीने ते खडी याने राता सुवर्णनी शांकल, ते खडीयानुं अरिष्टमय ढांकणु, ते खमीया मध्ये अ रिष्टरत्नमय स्याही , वज्ररत्नमय लखवानी लेखण, अरिष्टरत्नमय अदर, ते पुस्त कमां केवल धर्मशास्त्र बे, ए सर्व पांचे सजानुं चित्र एकसायेज आलेख्युं . ते व्यवसाय सनाने इशानकूणे एक महोटी नंदापुष्करणी कही ले तेनुं वर्णन 7 हनी पेरे जाणवु ते नंदापुष्करणीने इशानकूणे एक महोटो बलिपीठ ने जिहां बलिपिक मूके ते बलिपीठ उँटलारूप जाणवू ते बे योजन लांबो अने पोहोलो तथा एक योजन जामपणे , आंही सुधी विजय राजधानीनो अधिकार संक्षेपथी पूरण थयो. हवे ए विजय देवता जेवारे उपजे तेवारे श्रीजिनप्रतिमानी पूजा प्रमुख केवा के Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. 35 वा प्रकारनी शुज करणी करेले तेनो अधिकार श्रीजीवानिगम सूत्रमा सविस्तर ल खेलो तिहांथी जाणी लेवो ए जंबूछीपनां प्रथम हारनो अधिकार संदेपथी कह्यो. हवे विजयंत नामा वीजा छारनो अधिकार कहेजेः-मेरु पर्वतने दहण दिसे पीस्ता लीश हजार योजन वेगलूं जंबहीपनी दक्षण दिसिने अंते विजयंत नामे बीजं छार तेनो अधिकार सर्वे विजयहारनी परे जाणवो, परंतु एटबुं विशेष जे एनो अधिकारी विजयंत नामे देवता तेनी राजधानी दक्षण दिसे विजया राज्यधानी जेवी बे. हवे जयंत नामा त्रीजा छारनो अधिकार कहे:-मेरू पर्वतनी पश्चिमदिसे पीस्त लीश हजार योजन वेगवं जंबूहीपने पश्चिम दिसिने अंते सीतोदा महानदीनी उपरे जयंत नामे त्रीजुं हार तेनो अधिकार पण विजयहार सरखो जाणवो. शहां जयंतनामे देवता तेनी राजधानी पश्चिम दिसे विजयराजधानीनां सरखी जाणवी. हवे चोथु अपराजित नामे छार कहेजेः-मेरू पर्वतने उत्तर दिसे पीस्तालीश हजार योजन वेगलुं जंबछीपनी उत्तर दिसीने अंते अपराजितनामे चोथं हार कडं ते वि जयहार सरखं जाणवू इहां अपराजित देवता तेनी राजधानी पूर्वोक्त छीपनी उत्तर दिसे विजयराजधानी सरखी जाणवी. ए चारे दरवाजानां चारे देवतानी राजधानी अहीथी असंख्यातमे जंबूहीपे चार दिसाये जाणवी. ए चारे दरवाजानां स्वामी तथा सामानिक देवता तेनुं आयु एक पट्योपमनुं जाणवू. इति हार वर्णन समाप्त. // श्रथ नरतदेत्र वर्णन प्रारंज // __ हवे ए जंबूछीपमां नरतदेव नामे वर्ष (वास) कया स्थानके ते कडे चुलहेम वंत नामे वर्षधर पर्वत तेथकी दक्षिण दिसे अने दक्षण दिसे जे लवण समुफ तेथकी उ त्तर दिसे तथा पूर्व दिसे जे लवण समुफ तेथ की पश्चिम दिसे अने पश्चिम दिसे जे लवण समुज तेनी पूर्वदिसे ए अवकासने वच्चे जंबूछीपने विषे जरतनामे क्षेत्र जेने विषेशूका वृक्षना ग घणाने तथा बोरमी बावल प्रमुखनां कांटा घणा तथा जंची नीची विष मनूमि घणी ने तथा पुर्गमस्थानक घणा, पर्वत घणाले, नैरवजाप घणा, पाणीना प्रपात घणा, पाणीना निझारणा घणाले, खाम घणीने, गुफा, नदी, अह, रूंख, गुला, गुल्म, नवमालिका प्रमुख पद्मलतादि वेलमी, कोहली, अटवी, उजाम, स्वापद हिंसक जीव व्याघ्रादिक, चोर, तस्कर, स्वदेशथी उपना उपप्रव, परकटकनां करेलां उपज्व, उर्लिद, निदाचरने निदाउर्लन मले, फुकाल, पाखंमी जिनमार्गना उबापक, कृपण, खोनी, सातति, इत्यादिक सर्व वाना जाणवां तथा राजा पण लोकने बहु उःखना देनार, रोग घणा, संक्वेष घणा, वारंवार संदोज, दम, श्राकराकर प्रमुख घणाले. Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 अढीहीपना नकशानी हकीगत. 'ए पूर्व दिसे अने पश्चिम दिसे लांबुबे, उत्तर अने दहणे पहोबुंडे, उत्तर दिसे पढ्यंकने शंस्थाने संस्थित, दक्षण दिसे धनुषना पुग्ला नागने संस्थाने संस्थित तथा विधा पूर्व दक्षण अने पश्चिमे लवण समुज्ने फरश्योडे तथा जे गंगा अने सिंधु ए बे महोटी मदीये करी तथा बैताढ्य पर्वते करी बनागे वेहेचाणो ने एटले एनाउ खंड थया बे. * जंबृहीपनो विष्कल एक लाख योजननो डे तेने एकसोने नेवुमे नागे एटले (526) योजन अने एक योजनना श्रोगणीश नाग करीये एवा ब नाग उपर एटवं विष्कंन पणे जरत क्षेत्र के एनां मध्य जागने विषे वैताढ्य पर्वत ते जरत क्षेत्रने एक दक्ष णाईनरत अने बीजो उत्तरार्क नरत. एवा बे जागे वेचतो थको रह्यो बे. तिहां वैताढ्य पर्वतने दहण दिसे जे लवण समुष तेने उत्तर दिसे, अने पूर्व दिसे जे लवण समु तेने पश्चिमदिसे अने पश्चिमदिसे जे लवण समुज तेने पूर्व दिसे दवा जरत ते पूर्व दिसे पश्चिमदिसे लांबोअने उत्तर दक्षिण दिसे पहोलो अर्ड चंछने श्राकारे बे, पूर्व, ददण अने पश्चिम ए त्रण दिसे लवण समुपने फरश्योरे, गंगा अने सिंधू ए बे महोटी नदी तेणे त्रण नागे वेहेच्यो, ते बशे आडत्रीश योजन अने एक योजननां उंगणीश नाग करीये तेवा त्रण नाग उपर, एटलो पहोलपणे दक्षणार्क जरतने, दद णा जरतने अंते उत्तर दिसे धनुषना पणनी परे जीवावे. ते पूर्वपश्चिम लांबी बे देडे लवण समुज्ने फरसी रही ते जीवा पूर्वपश्चिमे लांबपणे एJAG योजन अने उपर उंगणीसीया बार नाग दे ते जीवानुं धनुपृष्ट दक्षण दिसि. ए७६६ योजन उपर जंगणीसीयो एक नाग कांश्क जाजेरो परिधिपणे कडं बे ए जरतार्डनुं चित्र जोवू हवे दक्षण जरत मांहे अयोध्यानगरीनुं प्रमाण कहे. दहा जरतनां मध्यखंमनी वच्चमां बार योजन लांबी अने नव योजन पोहोली एवी अयोध्या (विनिता) नगरी ते लवण समुपथी अने वैताढ्य पर्वतथी एकशो चौद योजन अने उपर एक योजननां जंगणीश नाग करीये तेवा अगीबार नाग एट ले अांतरे केमके दक्षणाई नरतनां मध्य खंडनो विस्तार बशे अडत्रीश योजन अने त्रण कला तेमांथी अयोध्यानो विस्तार नव योजन काहामीये तेवारे बशे उंगणत्री श योजन अने त्रण कला रहे तेनुं अर्ड करीये तेवारे 114 योजन उपर अगीथार कला थाय तेटली लवणसमुन अने वैताढ्य पर्वतथी वेगली अयोध्या नगरीजाणवी. हवे मागधादि त्रण तीर्थ कया स्थानके वे ते कहे जे. चक्रवर्तिने वसवर्ति जरत, ऐरवत अने बत्रीश विजय मली चोत्रीश देत्र चक्रवर्ति नां बेतेनी जे गंगा, सिंधू तथा रक्ता अने रक्तवती ए चार जरत ऐरवतनी नदी तेने समुत्रमा प्रवेश करतां तथा विजयनी नदीउँने सीतोदा तथा सीतानदी मांहे प्रवेश क Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. 37 रतां एटले जे स्थानके जरत तथा ऐरवतनी नदी समुजमां प्रवेस करे तथा जे स्था नके बत्रीश विजयनी नदी सीतानदी अने सीतोदानदी मांहे प्रवेश करे ते स्थानक विशेष नदी सागर संगम उत्तम स्थानक कहीये तिहां दक्षणाई जरतमा एक पूर्वदि सिये मागध तीर्थडे बीजुं पश्चिम दिसिये प्रनास तीर्थ तथा ए बे तीर्थनां वच्चमा एक वरदाम तीर्थळे. एरीते जरत देत्रमांत्रण तीर्थ डे तेमज ऐरवतमां तथा बत्रीश विजय मां पण प्रत्येके त्रण त्रण त्रीर्थ गणतां सरवाले जंबुद्वीपमां एकशोने बे तीर्थ डे. // श्रथ वैताढ्यपर्वत वर्णन // . हवे जरतदेत्रमा पूर्व पश्चिमे लांबो अने उत्तर ददणे पोहोलो वैताढ्यनामे पर्वत ते पच्चीश योजन ऊंचो ने अने पच्चीश योजननो चोथो नाग सवाउ योजन नूमी माहे डे ए अढीवीपमा एक मेरुवीना वीजा सर्वपर्वत जेटला उंचपणे होय तेनो चोथो नाग धरतीमा होच तथा पञ्चाश योजन पोहोल पणे तेनी बाह पूर्व पश्चिमदिसे 477 यो जन अने उपर एक योजननां श्रोगणीसीया शोल नाग लांबपणे , तेनी जीवा पण उत्तर दिसे 20720 योजन उपर जंगणीसीया बारनाग लांबपणे 2 तथा तेनुं धनुपृष्ट दहण दिसे 10743 योजन उपर उंगणीसीया पंदरनाग परिधिपणे रुचकनामे जे ग्रीवानुं श्राजरण तेवा संस्थाने ए पर्वत सर्व रजतमय रूप्पमयडे अने स्फाटिकनी परे सुकोमल ने यावत् जोतां थकां प्रतिबिंब देखाय माटे प्रतिरूप दे. ते दहण अने उत्तर ए बे पासे बे पद्मवर वेदिकाये करी अने बे वनखंडे करी स दिसे चोकफेर वीट्यो , ते पद्मवरवेदिका अर्क योजन ऊंचपणे अने पांचशे धनुष्य पोहोल पणे . तथा पर्वत जेटली लांब पणे जे अने वनखंम कांश्क जणा बे योजन पोहोल पणे बे. तथा पद्मवरवेदिका जेटला लांबा , तेनी काला वर्णे काली कांति बे. वैताढ्यने पूर्व पश्चिम दिसे वे गुफा ते उत्तर दक्षणे पञ्चाश योजन लांबी, अने पूर्वपश्चिमे मांहेली कोरे पोहोली बार योजन ,आठ योजन ऊंच पणे , तथा आठ योजन उंचा अने चार योजन पोहोला तथा चार योजन प्रवेश एवा दहण अने उत्तरने सन्मुख वज्ररत्नमय निवम एवां वे वारणा तेना कपाटे करी ढांकी ने तथा निरंतर अंध कार अने तिमिश्र तेणेकरी सहीत, चंद्र सूर्यादिकनी ज्योति रहीत मार्ग एवी पश्चि मदिसे तिमिश्रागुफा अने पूर्व दिसे खंडप्रपाता मली बे गुफा तेना विषे कृतमाल अने नृत्यमाल एवे नामे वे देवता एक पल्योपमना आयुवाला वसे तथा ते गुफाने विषे उम गा अने निमगा एवी बे नदी ते त्रण त्रण योजन विस्तारे ते नदी पर्वत मांहेला जे महोटा पाषाण ते मांहेथी निकलीने महोटी नदी जे गंगा सिंधु प्रमुख वे ते मांहे गमन Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 अढीछीपना नकशानी हकीगत. करेने ते बे नदी वचे वैताढ्य पञ्चाश योजन मांहेला पच्चीशमुं अने बबीशमु ए बे यो जननुं श्रांतलं बे. ते गुफानी बेहु बाजुनी नीतने विषे चक्रवर्ति जे थाय ते बेबे साहामा सूर्यमंडल सरखा कांकिणि रत्ननां गणपञ्चाश मामला अजुबाबुं करवा माटे लखेडे ते प्रत्येक मंगल उत्सेधांगुले करी पांचशे धनुष्य- . तथा वली ए गुफा प्रमाणांगुले करी बार योजन पोहोली तथा एकेका मांडलाने वञ्चमां एकेक योजन- आंतरुंडे. तथा मांडलाने नीचे अने उपर सर्व थश्ने आठ योजन गुफा उंचीने. तेमाटे पोहो लपणे बार योजन प्रकाश करे अने मंडलने श्रांतरे एकेक योजन प्रकाश करेजे. त था उंच पणे श्राव योजन प्रकाश करे. ए मांडला बन्ने पासे एकेक योजनने आंतरे गोमुत्रिकाने श्राकारे करतां एक नीते चोवीश मंडल थाय ने बीजी जीते पच्चीश मंडल थाय तेमां सिंधुनदी पासे तिमिश्रा नामे गुफा ते गुफामांहेथी चक्रवर्ति द क्षण मध्य खंमथी उत्तर मध्य खममा प्रवेश करेने अने उत्तर मध्य खंडने साधी त्यांथी पालो वलतां षनकूटने विषे पोतानुं नाम लखीने गंगानदी पासे जे बीजी खंडप्रपा ता नामे गुफा तेमांथी थश्ने दक्षण जरत मांहे पागे वले तथा चक्रवर्ति जिहां सु धी जीवतो होय तिहां सुधी ते गुफाउँनां कमाम उघाडा रहे. हवे पूर्वोक्त वनखंडने बे पासे दश दश योजन ऊंचा जश्ये तिहां बे विद्याधरनी श्रेणी ते दश दश योजन पहोल पणे 2 अने पर्वत जेटली लांब पणे बे ते बे पासे बे पद्मवरवेदिका श्रने बे वनखंडे करी चोकफेर वींटी एनुं लंबा तथा पहोलाइ आदि कनुं वर्णन पूर्वली परे जाणवू तिहां दक्षण दिसीनी जे विद्याधरनी श्रेणी ले तेने विषे विद्याधरोना गगनवबल प्रमुख पच्चास महोटा नगर राजधानी रूपले. अने उत्तर दि सीनी जे विद्याधरनी श्रेणीवे. तेने विषे विद्याधरोनां रथनुपुर चक्रवाल प्रमुख साठ महोटा नगरावास राजधानी रूप एरीते बे श्रेणीनां मली एकसोने दश नगर थाय ते नगरने विषे देशनी राजधानी सहित विद्या धरनां राजा महोटा बलवंत वशे बे. __ वली ते विद्याधरनी श्रेणीना नूमिनाग थकी वैताढ्य पर्वतने वे पासे दश दश यो जन जंचा जश्ये तेवारे श्रानियोगिक देवतानी बे श्रेणी श्रावे ते पण दश दश यो जन पहोली श्रने पर्वत सरखी लांब पणे ते बेहु श्रेणी बने पासे बे पद्मवरवेदिका अने बे वनखंडेकरी वींटी. तेनुं वर्मन पूर्वपरे जाणवू ते नूमिमां घणा व्यंतरिक दे वता अने देवांगना यावत् विचरे. ते श्रेणीने विषे सौधर्मेजना चार लोकपाल तेना श्राजियोगिक एटले श्राज्ञाकारी किंकर देवोना घणा जवन . ते सर्व नवन बाहेर गोलाकारे , मांहे समचतुरस्त्र बे, यावत् अपत्सराना समूदे करी संकीर्ण बे. तेमां जे देवता वसे , तेनुं एक पख्योपमायु बे. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ए अढीहीपना नकशानी हकीगत. वली ते श्रानियोगिक देवोनी श्रेणी थकी पांच पांच योजन ऊंचा जश्ये तिहां वैता व्य पर्वतर्नु शिखरतवू डे ते दश योजन पोहोल पणे अने पर्वत जेटवं लांब पणे ते शिखर तल एक पद्मवरवेदिकाये करी अने एक वनखंडे करी सर्व दिसियेचोक फेर वींटे बुं ते शिखर तलने विषे घणा व्यंतरिक देवता देवांगना नोगनोगवता थका विचरे. वैताढ्य पर्वतने विषे नव कूट एटले शिखर तेना नाम कहेजेः-१ सिहायतनकूट, 2 दहणानरत नामा कूट,३ खंमप्रपात गुफा कूट, 4 मणिजस्कूट, 5 वैताढ्य कूट, 6 पूरणजस्कूट, तिमिश्रागुफा कूट, उत्तराईनरत कूट,ए वैश्रमणकूट, ए नव कूट. तेमां प्रथम सिहायतनकूट सवाब योजन ऊंचपणे . अने मूलमां सवाब योजन पोहोल पणे वचमां कांश्क जंणा पांच योजन पोहोलपणे, उपर कांश्क जाजेरा त्रण योजन पोहोल पणे मूलमा पोहोलो वच्चमां सांकडो श्रने उपर पातलो गायना पूंबने संस्थाने ने सर्व रत्नमय दे ते कृट पद्मवरवेदिका अने वनखंडे करी चोफेर वींट्यं तेना मध्यनागने विपे शाश्वती अरिहंतनी प्रतिमानुं आयतन एटले देहेरंबे, ते एक कोश लांब पणे. अर्डकोश पोहोल पणे अने चौदशे ने चालीश धनुष उंच पणे तेने विषे झपन, चंदानन,वारिषेण अने वर्कमान ए चार नामे तीर्थकरनी एकशोने आठ प्रतिमा. ए प्रथमना सिहायतना कूटनी पश्चिमदिसे बीजो दक्षणाईनरत नामे कूट तेपण सिहायतन कूट जेटलो जंचो पोहोलो ते प्रासादना मध्यन्नागमा एक प्रसादावतंसकडे ते एक कोश उँचो अने अर्डकोश पोहोल पणे तेना मध्यनागमां एक पीविका (चोत रोठे) ते पांचसे धनुष लांबो पोहोलो अने अढीसे धनुष जाड पणेने तेनां उपर एक बेसवार्नु सिंहासन ने ते हजारो गमे नडासनादिके परवमु ए कूटने विषे दक्षणार्ड जरतनामे देवता महाशद्धिवंत एक पक्ष्योपमायुनी स्थितिये वसे तेने चार हजार सा मानिक देव, चार अग्रमहिषी परिवार सहीत, त्रण परषदा, सात कटक, सात कटकनां खामी, चारे दिसीये चार चार हजार जनारहे एका शोल हजार आत्मारदक देवता, दक्षणार्ड नरतक्षेत्रनुं ददाणा राजधानीनु तथा अनेरा पण घणा देवता देवांगनानुं आधिपत्यपणुं पालतो श्रको यावत् विचरे ए नवे कूट सवाठ योजन गंचा जाणवा. नोधैं माणिज्नकूट, पांच वैताट्य कूट अने उहुं पूरणजस्कूट ए त्रण सुवर्णमय ने शेष ब कृट रत्नमय ने तेमां तिमिश्रागुफा कूटमां कृतमाल देवता वसे तथा खंम प्रपातगुफा कूटमां नृतमाल देवता वसेजे एरीते वे कूटनां देवतानां नाम कूटने नामे नथी अने शेष ठ कूटनां देवतानां नाम कूटने नामे जे जे कूटनो नाम तेजनाम तेमांवसनार देवतानो पण होय ए सर्व देव एक पट्यायु वाला जाणवा ए सर्व मेरु पर्वतने दक्षण दिसे तिळ असंख्याता छीप समुझ व्यतिक्रमी जश्ये तिहां बीजो जंबूछीप ने तेने बार Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 40 अढीहीपना नकशानी हकीगत. हजार योजन अवगाहीये तिहां ए सर्व देवोनी राजधानी विजया राजधानी सरखी जाणवी तथा वैताढ्य गिरिकुमार नामे देवता महर्डिक एक पढ्योपमायु वालो हां वसे बे. तेथी ए पर्वतर्नु पण वैताढ्य एबुं नाम शाश्वतुं बे. __ हवे उत्तराई जरतनामे वास क्षेत्र पूर्व पश्चिमे लांबु उत्तर ददणे पोहोळु पल्यं कने संस्थाने संस्थित ते गंगा अने सिंधु ए बे महोटी नदी तेणे करी त्रण जागे वे हेचाणु 230 योजन उपर उंगणीसीया त्रण नाग एटलुं पोहोल पणेने, एनी बाह पूर्व पश्चिम दिसे १७ए योजन उपर उंगणीसीया साडासात जाग एटली लांब पणे बे एनी जीवा पणनी परे उत्तर दिसे 14471 योजन उपर जंगणीसीया ब नाग कांश्क जंणा एटली लांब पणे जे ते जीवानुं धनुपृष्ट दहण दिसे 14520 योजन उपर उंगणीसीया अगीश्रार नाग एटलुं परधि पणे. हवे ए उत्तराईजरतमां षनकूटनामे पर्वत ते कहेजेः-गंगाप्रपातकूमनी पश्चिम दिसे श्रने सिंधुकुंमनी पूर्वदिसे चुनहिमवंत पर्वतना दक्षण पासानां नितंब पासे षन कूट ते आठ योजन धरतीमां लंड पणे, मूलमा श्राप योजन पोहोल पणे, वच्चमां ब योजन पोहोल पणे अने उपर चार योजन पोहोल पणे तथा पागंतरे मूलमां बा र योजन पोहोल पणे मध्यमां आठ योजन पोहोलो अने उपरे चार योजन पोहो बे गायना पूंबने संस्थाने सर्व जंबूनंद रत्नमय श्यामवर्णेले. एमां पूर्वली परे नवन भू ख जे जे तेशास्त्रांतरथी जाणवा यहां षजनामे महर्डिक देवता वसे ते. . तथा एनुं अनेरे जंबूहीपे राजधानीनो स्थानक यावत् पूर्वपरे सर्व कहेवू. ए जरतदेत्रने विषे नरत नामे देवता महा शकिवंत सामानीकादिक देवोये स हीत एक पल्योपमने आउखे वसे तेथी एनुं नरत वर्ष एवं शाश्वतुं नाम. हवे चुर हेमवंत नामे वर्षधर पर्वत कहे:नरत क्षेत्रने उत्तर दिसे जरतदेवनी सीमा रूप ए चुल्ल हेमवंत पर्वत ने ते एकशो योजन जंच पणे अने पच्चीश योजन धरती मांहे. तथा 1052 योजन उपर उंग णीसीया बार जाग एटलो पोहोल पणे बे, तेनी बाहा पूर्व पश्चिमे प्रत्येके 5350 योज न उपर उंगणीसीया साडा पंदर नाग , तेनी जीवा पण उत्तर तरफ पूर्व पश्चिमे लांबी श्वए३२ योजन ऊंगणीसीये अर्धनागे कांश्क जणो एटली लांब पणे तेनुं धनु पृष्ट दक्षणे 2530 योजन उपर उंगणीसीया चार जाग परिधि पणे ए रुचक नामा वस्तुने संस्थाने रह्यो बे, सर्व सुवर्ण मयडे, बे पासे बे पद्मवरवेदिका अने बे वनखंडे करी वींव्योडे ए पर्वत उपर घणा व्यंतरिकदेव देवांगना विचरे , इत्यादि कहेवू. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. 41 ए पर्वतना मध्यनागे एक महोटो पद्मज्ह नामे अहले ते पूर्वपश्चिम लांबपणे एक हजार योजन अने उत्तर ददण पोहोलो पांचशो योजन , दश योजन मोडे, ए प्रहनुं रूपामयतटनेते पह एक पद्मवरवेदिका अने एक वनखंडे करी चोकफेर वींट्यो बे. ते अहना मध्यत्नागे एक महोटं कमल ते एक योजन लांबुं अने पोहोढुंबे तथा अर्स योजन जाडु बे एटले बे कोश पाणी थकी ऊंचुंबे, घने दश योजन जंडं पाणी मांहे बे एम पाणीमां तथा उपर मली साडा दश योजन ऊंचुंबे ते कमल एक जगतीये करी चोकफेर वींटेनु डे ते जगती पाणी उपरे जंबूछीपनी जगतीप्रमाणे जे गवाद गोख पण तेज रीते जाणवा ए कमलनुं वज्ररत्नमय मूलबे, अरिष्टरत्नमय कंद , वैडूर्यरत्न मय नालने, वैड़र्यरत्नमय बाहेरना पत्र, कांक राता सुवर्णमय मांहेली पांखमी ने, रातासुवर्णमय केशराबे, विविध प्रकारनां मणिमय कमलनां बीज जागळे, कनकमय कर्णिका मोडोडे, ते कर्णिका अयोजन लांबी तथा पोहोली, एक कोश ऊंची बे. ते कर्णिकानी उपरली नूमिना मध्यत्नागे एक महोटो जवन, ते एक कोश लांबो, अर्डकोश पोहोलो, चौदशेचालीश धनुष्य उंचो, अनेक सश्कडा गमे यांने करी सहीत, ते जवनने त्रण दिसाये त्रण वारणाने ते प्रत्येक पांचशे धनुष जंचा, अढीशे धनुष गेला बे, स्वेत प्रधान कनकमय थूनिका चोतरो तेणे करी सहीत, यावत् वनमा लो पर्यंत शहां कहेवं. ते नवनना मध्य नागे एक मणिमय पीठिका बे, ते पांचशे ध रोती न बोहोली अने अढीशे धनुष जाडीचे, तेना उपर श्रीदेवीनी सय्या . ते कमलनी प्रथम परिधिये वीजा एकशोने आठ कमल, ते सर्व जंच पणे तथा लांब पणे पूर्वोक्त मूल कमल यी अर्के नागे एटले एक कोश पाणीथी बाहेर ये अने दश योजन पाणीमांहे , मली सवादश योजन ऊंचाने, अर्क योजन लांबा पोहोला , तेनी पण कर्णिका प्रमुख तथा जुवनादिक सर्व ते मूल कमलनी पेरे थर्ड प्रमाण वाला जाणवा. ए. एकशोने आठ कमलने विषे श्रीदेवीना नूषणादिक वस्तु रहे. हवे बीजी प-ि कमलले ते मुल कमलथी वाव्यकूणे, उत्तर दिसिये अने इशान कूणे ए त्रण दिसारे श्रीदेवीनी चार हजार सामानिक देवीना चार हजार कमल तथा पूर्वदिसे श्रीदेवीनी चार महत्तरिका गुरु स्थानीय देवीना चार कमलबे, तथा अग्निकूणे मांहेली परखदानां श्राठ हजार देवतानां आठ हजार कमल, तथा ददणदिसिये वचली मध्य परखदानां दश हजार देवतानां दश हजार कमल तथा नैऋतकूणे बाहे रली परखदानां बार हजार देवतानां बार हजार कमल, तथा पश्चिम दिसे सात क टकना स्वामीनां सात कमल, एरीते ए बीजा वलयमां सरवाले 34011 कमल बे. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीवीपना नकशानी दकीगत.. ___ हवे त्रीजी परिधिनां कमल कहेजेः-त्रीजा वलयनी प्रत्येक दिसाये चार चार हजार कमल गणतां चार दिसाये शोल हजार कमल श्रीदेवीना आत्मरक्षक देवोनां बे. वली ते मूल कमलने चोफेर त्रण बीजा परिक्षेप में, एटले मांदेली, विचली अने बाहिरली एवी त्रण परिधि अर्थात् चोथी, पांचमी अने बही ए त्रण परिधिनां कम लोमां श्रीदेवीनां श्रालियोगिक किंकर देवो रहेने, तेनी संख्या कहे, चोथी मांहेली परिधिमा बत्रीश लाख कमलबे, विचली पांचमी परिधिमां चालीश लाख कमल अने बाहेरली बही परिधिमां अमतालीश लाख कमल, ए त्रण परिधिना एक क रोमने वीश लाख कमल थया तेनी साथे आगली त्रण परिधिनां तथा मुखकमलम लीने 50120 कमल मेलवीये तेवारे सरवाले 12050120 कमल थाय. सर्व कमल जं वृदनी पेठे शाश्वता पृथवीकाय रूपने, परंतु कमलना श्राकारे , माटे कमल कही ने वखाण्या , अने पहेली परिधिना कमलथी बीजी परिधिना कमल अर्क प्रमाण वाला बे, एम आगल पण सर्व परिधिये अर्ड अर्ड प्रमाण वाला कहेवा तथा एप असहने विषे जेम कमलोनो परिवार वखाण्यो तेम बीजा पर्वतोनां सह संबंधी पण एमज परिवार जाणवो. पद्मबहने विषे घणा कमल पद्मबहने आकारे पद्मनह सरि खाने, माटे एनुं पद्मपद एवं शाश्वतुं नाम बे, शहां श्रीनामेदेवी महाशद्धिवंत यार एक पत्योपमना आउखावाली वसे, ए कमलनुं चित्र जोQ. हवे ए अहना बारणां प्रमुख वखाणतो बतो बीजा पर्वतीनां उह संबंधी वक्तव्यता पण सायेज कहेजे. हिमवंत तथा शिखरी ए बे पर्वतो उपर पद्म तथा पुंमरीक ए बे पहने विषे एक पूर्वदिशि, बीजो पश्चिम दिशि, त्रीजो मेरुपर्वतने सन्मुख ए त्रण छार, ते बारणा पण स्वस्वदिशि सहना मानथी, एंशीमे नाग प्रमाणे. ते केम ? तोके-अहनो जे विस्तार पांचसे योजन पूर्व अने पश्चिम दिशिए , ते एंसीमे जागे वहेंचीए तेवारे सवाल योज न श्रावे; तेमाटे पूर्व अने पश्चिमनां बारणां पहने विषे सवाब यो न पहोलांबे. अने मेरुसन्मुख हजार योजन अहजे, ते एंसीनागे वहेंचीए तेवारे सोडावार योजन नागे श्रावे तेमाटे मेरुसन्मुख अहनां बारणा साडाबार योजन पहोला , एम जाणवू. ते कार तोरणसहित तथा तेमांथी नदी नीकली बे, तेणे करी सहित बे. शेष बीजा चार अहने विषे दक्षिण अने उत्तर दिशाए बेबे बारणांबे तेमना मध्ये जे मेरु सामा बारणा ते बारणा स्वदिशि पहना एंसीमे नागेजे. जेम महापद्म तथा महा पुंमरीक ए बे अह मेरुदिशि सन्मुख बे सहस्त्र योजन बे, तेमना लांब पणाने एंसीनागे वेहे चतां पचीश योजन श्रावे, तो जे मेरु सन्मुख बारगुंडे ते पचीश योजननुं बे. अने Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 43 अढीकीपना नकशानी हकीगत. बाहेरनां दक्षिण तथा उत्तर सन्मुख जे बारणा , ते मांदेला मेरु सन्मुख बारणाथी अर्डमाने एटले सामाबार योजन प्रमाणे . वली एरीते तिगिति तथा केशरी अह मेरु दिशि लांबा चार हजार योजन . ते एंसी जागे वहेंचतां पचाश योजन प्रमाणे मेरु सन्मुखनु बारणुं , अने दक्षिण तथा उत्तरनां जे बारणांबे, ते मांहेला बारणा थी अर्ड एटले पचीश योजन प्रमाणना . ए सर्व प्रहना बारणां जे 3 ते तोरण तथा नदीए सहित ने एम जाणवं. __ए पद्मपहनां पूर्व दिसीने तोरणेथी गंगा नामे महोटी नदी नीकली ते पूर्व दिसिस न्मुख पांचशे योजन पर्वत उपर जश्ने गंगावर्तन नामे कूट फरीने पांचशे त्रेवीश यो जन उपर उंगणीसीया सामात्रण जाग एटली दक्षण दिसी साहामी पर्वत उपर जश्ने जेम मोहोटा घमानां मुख माहेथी पाणीनो समूह नीकलतो होय ते सरखो मुक्ता वलीनां हारने संस्थाने कांक जाजेरा शो योजनने प्रपाते पाणीने पडवे करीने हेठी पडे, ए गंगानदी जिहां पडेने, तिहां एक महोटी जीनी प्रणाली, ते जीनी अर्ज योजन लांबी अने सवाल योजन पोहोली, अर्डकोश जामी, मगरमत्सर्नु पसामु मुख ते संस्थाने संस्थित, ए गंगानदी जिहां पडे, तिहां एक गंगा प्रपात एवे नामे कुंमले, ते शाठ योजन लांबो अने पोहोलो तथा १ए० योजन कांश्क काफेरो परिधिबे, दश योजन उमो बे, गोलाकारे बे. अनेक जातना तिहां कमल, ते कुंम एक पद्मवरवेदि का अने एक वनखंग तेणेकरी चोकफेर वींटेढुंबे, ते कुंमने चारे दिसे पगथालीया जे. ते कुंमना मध्यनागे एक महोटो गंगा नामे छीपने, ते आठ योजन लांबो अने पो होलो वृत्ताकारेने, कांश्क काफेरा पच्चीश योजन तेनी परिधिबे, बे कोश पाणी थकी लं चो सर्व वज्ररत्नमय देते छीप एक पद्मवरवेदिका अने वनखंडेकरी चोफेर वींटेलो, ते ना उपरे गंगा नामक देवीने वसवानो जुवन घर ते एककोश लांबो, अर्डकोश पोहो लो थने 1540 धनुष चंचो तेमां गंगादेवीनी सय्याने, माटे एनुं गंगाप्रपात नाम. ते गंगाप्रपातकुंमने दक्षण दिसिने तोरणे थश्ने गंगा महानदी नीकली थकी उत्तरा ईजरतक्षेत्र मांहे श्रावती श्रावती सात हजार नदीये पूराती थकी खंमप्रपाता गु फाने देठे वैताढ्य पर्वतने नेदीने ददगार्ड जरत मांहे श्रावती थकी दक्षणाई नर तनां मध्य नागे जश्ने पूर्वदिसि साहामी वलती थकी चौदहजार नदीये पुराती थ की नीचे जंबूहीपनी जगतीने नेदीने पूर्व दिसे लवण समुअमांहे जले बे. ए गंगानदी जिहांथी वहे तिहांथी मूले सवा उ योजन पोहोली बे अने अर्डकोश मीठे पड़ी बे पासे मात्राये मात्राये वधती थकी समुरुमां जलतां शामीबाश योजन पोहोल पणे थइ अने सवा योजन उंड पणे थइ एटले सर्व नदीउँने मूल थकी मुखे Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 अढीछीपना नकशानी हकीगत. समुखमा नलतां दश गुणो प्रवाह होय तथा पोहोल पणाथी पञ्चाशमो नाग जंम पणे होय गंगानदी बे पासे बे पद्मवर वेदिका अने बे वनखंडे करी वींटी. ए गंगानदीनी पेरेज सिंधुनदीनुं स्वरूप पण जाणी लेवं मात्र ते पद्माहने पश्चिम दिसिने तोरणे नीकली थकी सिंधुश्रावर्त्तन नामा कूटने फरीने ददण दिसा तरफ चा ली थकी सिंधुप्रपातकुंडमां पमी तिहां सिंधुदेवीनो सिंधु नामे हीप जाणवो यावत् तिमिश्रा गुफा नीचे वैताढ्य पर्वत नेदीने पश्चिम दिसी साहामी वली थकी चौदह जार नदीये पुराती लवण समुअमां नली तेनो शेष अधिकार गंगानी परे जाणवो हवे ते पद्मप्रहने उत्तरदिसिने तोरणे रोहितांसा महानदी नकली ते 276 योजन अने जंगणीसीया ब नाग उत्तर दिसि साहामी पर्वत उपर जश्ने कांश्क काफेरा शो योजनने प्रपाते रोहीतांशा प्रपात कुंडमां जश् पडेबे, ते कुंड एकशोने वीश योजन लांवो अने पोहोलो, कांक जणा त्रणसो एंसी योजन परिधि पणे बे, दश योजन जंडो बे, तेना मध्यनागे रोहितांशा नामे छीप, ते शोल योजन लांबो अने पोहोलो बे, बे कोश पाणी थकी उंचो , तिहां रोहितांशा देवीनुं जवन जाणवू इत्यादिकएनो बीजो सर्व अधिकार पूर्वला कुंमनी परे कहेवो. ते रोहितंसा प्रपातकुंडने उत्तर दिसिने तोरणे रोहितंसा नदी नीकली थकी हेमवंत युगलीयानां क्षेत्र मांहे जाती जाती, चौद हजार नदीये पुराती पुराती, शब्दापाती नामे वृत्तवैताढ्य पर्वतने अर्ड योजने पण पोहोती थकी, पश्चिम दिसि साहामी व ली थकी, हेमवंतखेत्रने बे नागे वेचती थकी, अहावीश हजार नदीये पुराती जरा ती नीचेथी जगतीने नेदीने लवण समुछ माहे जले . ए नदीनो मूले प्रवाह सा डाबार योजन पोहोलपणे अने एक कोश ठंड पणे , पढी मात्राये मात्राये बे पासे वधती समुपमाहे पेशतां 125 योजन पोहोल पणे प्रवाह बे, अने अढी योजन ऊंड पणे जे, ए बे पासे बे पद्मवरवेदिका अने वे वन खंडे करी वीटी बे. हवे चुलहेमवंत पर्वत उपर अगीश्रार कूट, तेनांनाम कहेवेः-१ सिकायतनकूट एना उपर सिझनुं देहेरंबे, 2 चूल हेमवंत गिरिकुमार देवकूट, एना उपर ए पर्वतना ए कूटने नामे देवतानो निवास जुवन,३ नरतदेवकूट एना उपर जरतदेवना नरतदेवता नो निवास,४ श्लादेवीकूट,५ गंगादेवीकूट, ६श्रीदेवीकूट, 7 रोहितंसादेवीकूट,सिंधु देवीकूट,ए सुरादेवीकूट, 10 हेमवंतदेवकूट, 11 वैश्रमण लोकपाल देवकूट, पूर्वदिसिना लवण समुप्रने पश्चिम दिसे श्रने चुलहेमवंत नामा कूटने पूर्व दिसे प्रथम सिकायतन कू ट ते पांचशे योजन ऊंचो, मूलमां पांचशो योजन पोहोल पणे, वच्चे ३७५.योजन पोहोल पणे, उपर श्रढीसे योजन पोहोल पणे, गोपुबने संस्थाने, ते कूट पद्मवरवेदिका Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरत क्षेत्र माहेला बरखमनी स्थापना मध्य रखम 2 गंगावं 3/All पर्वत जीवा क्षेत्रफल घन गणित. गधनःपृष्ठ देतात्यदक्षिणोत्तर श्रेणी स्थापना. 17 वैतादयाना नव कूटनी स्थापना HINDIXXIImmIMANIYAANI गाना गालिचाली जापांचजोजन ईचो. दहायो||ROF जनविस्तृतवेत्ताधना त्रीजा खमनी स्थापनादशयोजन नंचो,त्रीशयोजन विस्तृत वैतादयना बीजाखमनी स्थापना. दशयोजनमंचो, पचाशयोजनविस्तृत प्रथम खंम स्थापना. ऊर्ध्वाकार वैतादय स्थापना. - Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PROMOPEN Pre-/ Y : गर चक्रवर्तिवेताढ्यनी गुफाना कपाटनघाडेछ तेनी स्थापना. SINESA ISSPya CATION शिखरीनी दादा an हिमवंतनी दादा चुहिमवंत पर्वत उपर गंगावादि कूटनी स्थापना. एया दाढाने विषे प्रत्येके सात सात अंतर दीपले. 1 meanAmmon Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चुहिमवंत पर्वतनीपासे ऋषभकूट छ जेना नपर चक्रवर्तिपोतार्नु नाम लखे छे तेनी स्थापना. भरतक्षेत्र वैताढ्य पर्वत अने चुत हिमवंत पर्वतनी स्थापना. 23 चुत हिमवंत कूट 11 वेताढ्य mammow अयोध्या Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदेवीना मुरब्यकमलने फिरना वधूकमलना वलयनी स्थापना. पूर्व 25 नका शान का ATRIKAYDE ....3 उत्तर .... 60.000 दक्षिण EMAILY HODAILY पद्मद्रहनेविषे श्रीदेवीना कमलनी स्थापना. 00000 oon. .00003. S इनको दायम पश्चिम - - VILLA - हिमवंत युगल क्षेत्र स्थापना. - 5 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीवीपना नकशानी हकीगत. 45 अने वन खंडे करी चोफेर वीट्यो, तेना उपर सिझनुं देहेरुंडे, तेनुं वर्णन जीवानि गम सूत्रथी जाणवू बीजा दश कूट पण एटलाज लांबा पोहोला अने जंजा जाणवां. ___ एमज चूल्हेमवंतकूटने विषे चूलहेमवंतगिरिकुमार देवनो प्रासादावतंसक प्रमुख तथा तेनी चुलहेमवंत नामे राजधानी असंख्यातमे जंबूहीपे जाणवी शेष थाकता सर्व कूटोनी वक्तव्यतामां पण देवताना प्रासाद सिंहासन, परिवार प्रमुख ते सर्व कहेवा. इहां चुल्लहेमवंतकूट, जरतकूट, हेमवंतकूट वैश्रमणकूट ए चार कूटने विषे देवता जाणवा शेष 3 कूटने विषे देवांगना जाणवी ए पर्वत महाहेमवंत पर्वत आश्रयी लं बाश् आदिकमां लगारेक न्हानोबे, वली चुतहेमवंतनामे देवता एक पख्योपमायुये 3 हांवशेडे. तेथी (चूस के०) लघुहेमवंत पर्वत एवं एनुं शाश्वतुं नाम इति // हवे हेमवंत युगलीयाना देत्रनुं वर्णन कहेडे, चुलहेमवंत वर्षधर पर्वतने उत्तर दिसे ए हेमवंत क्षेत्र, ते 2105 योजन उपर उंगणीसीया पांच नाग एटबुं पोहोल पणेने, एनी बाह 6755 योजन उपर उंगणीसीया त्रण नागबे, तेनी जीवा पण 37674 यो जन उपर उंगणीसीआ पंदर नागडे. एनुं धनुपृष्ठ 3740 योजन उपर उंगणीसीआ दश नाग एटलुं परिधि पणेने, एमां त्रीजा सुखममुखमा श्रारा सरखो सरूप जाणवो. यहां रोहिता नदीनी पश्चिम दिसे अने रोहितांशा नदीनी पूर्व दिसे हेमवंत देवने मध्य नागे शब्दापाती नामे वृत्त वैताढ्य पर्वत बे,ते एक हजार योजन ऊंचो, अढीशो योजन धरतीमा जंडोने, तथा नीचे अने उपर लांबो पोहोलो सर्वत्र सरखो धान न रवाना पालाने संस्थाने, एक हजार योजन लांबो पोहोलो अने 3162 योजन कांश्क जाफेरी एटली परिधि, वेदिका अने वनखंडे करी चारे बाजु वींटेलो तेनी उपर या वत् सिंहासन प्रमुख परिवार सहित जाणवा तथा ए पर्वतनी न्हानी महोटी वाव्यने विषे यावत् बिल्लने विषे शब्दापाती जेवा वर्णवाला एना सरखा अनेक जातीना कम ल ने तेणेकरी तथा इहां स्वाती नामे देवता एक पट्योपमनां आनखावंत, चारहजार सामानीक देवो आदिक सहित थको वसे, यावत् विजय देवनी पेरे राजधानी वा लो , तेथी ए पर्वतनुं शब्दापाती वृत्तवैताढ्य एवं शाश्वतुं नाम . तथा चुल्ल हेमवंत अने महा हेमवंत ए बे वर्षधर पर्वते वे पासे दक्षण उत्तर दिसे ए क्षेत्रने गोपव्युंडे, मर्यादा कीधी, नित्ये सदैव हेम सुवर्ण प्रकाशे, तथा श्हां हेमवंत नामे देवता एक पट्योपमने थानखे वशे तेथी हेमवंत देत्र एवं एनुं शाश्वतुं नामबे. हवे महा हेमवंत नामे वर्षधर पर्वत कहेजेः-हेमवंत क्षेत्रने उत्तर दिसे अने हरिवर्ष क्षेत्रने दक्षण दिसे महाहेमवंत नामे वर्षधर पर्वत,ते बशे योजन ऊंचपणे अने पञ्चाश Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 अढीछीपना नकशानी हकीगत. योजन धरतीमा जंमो, तथा 410 योजन उपर उंगणीसीया दश नाग एटलो पोहोल पणे एनी बाह पूर्व पश्चिम दिसे ए७६ योजन उपर उंगणीसीया साडानव नाग, त था एनी जीवा पण उत्तर दिसि तरफ पूर्व पश्चिमे लांबी बे हेडे लवण समुज्ने फरसी बे, ते 53531 योजन उपर उगणीसीया नाग कांश्क काफेरी, तेनुं धनुपृष्ट ददाण दिसी तरफ ५७२ए३ योजन उपर ओगणीसीया दश नाग परिधि पणेने, ए पर्वत रुच कने संस्थाने संस्थित, सर्व रत्नमय, बे बाजुये बे पद्मवर वेदिकाये करी तथा बे वन खंडे करी वीट्यो घणु सम रमणीक नूमि नागडे, यावत् देवता बेसेडे रहेडे इत्यादि. ते महाहेमवंत पर्वतनां मध्य नागे वच्चोवच्चे महापद्मनामे पह , ते बे हजार यो जन लांबपणे अने एक हजार योजन पोहोलपणे , तथा दश योजन जंडो , तेनुं रूपामय तट , जे रीते पूर्वे पद्मप्रहनी वक्तव्यता कही तेहिज वक्तव्यता यहां पण जाण वी शहां कमलनुं प्रमाण बे योजन- जे, यावत् ते कमल महापद्मसह सरखा ने हां को नामे देवी एक पक्ष्योपमने आउखे वशे जे तेणे करी एनुं महापद्माह एवं शाश्वतुं नाम. ए उहने दक्षण दिसिने तोरणे रोहिता महानदी निकली ते 1605 योजन उपर जंगणीसीथा पांच जाग एटली ददण दिसि साहमी पर्वत उपरे जश्ने महोटा घडाना मुख सरिखे मुक्तावली हारने संस्थाने का एक जाजेरा बशे योजने प्रपात कुंडमां पडे बे, ते जिहांथी पडे, तिहां महोटी जीजी प्रणाली , ते जीनी एक योजन लांब पणे अने शामाबार योजन पोहोल पणे तथा एक कोश जाम पणे बे, महोटा मगरमत्सर्नु जुख विस्तिरण कस्यो होय ते संस्थाने संस्थित , सर्व वज्ररत्नमय दे ते जिहां पडे तिहां रोहित प्रपात नामे कुंमजे, ते एकसो वीश योजन लांबो पोहोलो , अने त्रणसे एंसी योजन कांश्क जंणा परिधि पणे बे, तथा दश योजन ऊंडो बे, तेना मध्यनागे एक रोहिता नामे छीपने, ते शोल योजन लांबो पोहोलो अने कांश्क जाजेरापचाश योजन परिधि पणेने, पाणी थकी बे कोश जंचोने, वज्ररत्नमय , ते दीप पद्मवरवेदिका अने वनखंडे करी वीट्यो, ते छीपने वच्चे एक नवनडे, ते एक कोश लांब पणे डे, इत्यादि. ते रोहीत प्रपात कुंडने दक्षण दिसीने तोरणे रोहिता महानदी नीकली थकी हेमवं त खेत्रमांहे जाती जाती शब्दापाती वृत्तवैताढ्य पर्वतने अर्ड योजने अण पोहोती थकी पूर्वदिसि सन्मुख वलीने हेमवंत देत्र प्रत्ये बे नागे वेहेचती थकी अहावीश ह जार नदीये पूराती थकी नीचे जगतीने नेदी पूर्व दिसे लवण समुजमाहे नली डे. ___ तथा ए अहना उत्तरदिसिने तोरणे हरिकांता महानदी नीकली थकी 1605 योज न उपर उंगणीसीया पांच जाग उत्तर दिसिने सामी पर्वत उपरे जश्ने कांक जाजेरा बशे योजनने प्रपाते हेगे पडे, जिहांथी पडेने, तिहां जीजी बे योजन लांब पणे, प Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. चीश योजन पोहोल पणे अने अर्ड योजन जाड पणे, ते हरिकांत प्रपात नामे कुंडमां पडे ते कुंड 240 योजन लांबो पोहोलो अने एए योजन परिधि पणेठे, तेना मध्यनागे हरिकांता नामे छीपठे, ते बत्रीश योजन लांबो पोहोलो अने एकशो एक योजन परिधि पणे ठे, तथा वे कोश पाणी थकी चंचो , ते पद्मवर वेदिका अने वनखंडे करी वीट्यो. एना मध्यमा जुवन तथा ते हरिकांता प्रपात कुंमनां उत्तर दिसिने तोरणे हरिकांता म हानदी नीकली थकी हरिवर्षदेत्रमांजाती थकी विकटापाती वृत्त वैताढ्य पर्वत प्रत्ये अर्ड योजन अण पोहोती थकी पश्चिम दिसि साहमी वल। थकी हरिवर्ष देत्रने बे नागे वेच ती थकी उपन्न हजार नदीये पूराती थकी नीचे जगतीनेदीने पश्चिम दिसिये लवण समुन मांहे जलेठे ए हरिकांता महानदी प्रहथकी निकलता प्रवाहे पच्चीश योजन पोहोल पणे अर्ड योजन ऊंडपणे पठी मात्राये मात्राये अनुक्रमे योजने योजने एकेक पाशे वीश वीश धनुष करतां बे पाशे चालीश धनुष वधती वधती समुप प्रवेशे अढीशे योजन पोहो लपणे अने पांच योजन ऊंड पणे थश्वे, बे पासे पद्मवरवेदिका तथा वनखंडे वींटी. महा हेमवंत पर्वत उपर पाठ कूट कहेः-एक सिकायतन कूट, बीजो महाहेमवंत कूट, त्रीजो हेमवंत कूट, चोयो रोहितादेवी कूट, पांचमो कोदेवी कूट, ठगे हरिकांता कूट, सातमो हरिवर्ष कूट, श्राठमो वैडूर्य कूट, पूर्वे जेम चूबहेमवंत पर्वतना कूटोनी वक्तव्यता कही तेम इहां पण देवी देवो प्रमुखना निवाश प्रमुख जाणवा ए महा हे मवंत पर्वत जे , ते चूल्हेमवंत पर्वत श्राश्रयी लांब पणे, पहोल पणे, जंचपणे, उंड पणे, परिधि पणे अतिशय महोटो ने, तथा श्हां महाहिमवंतनामे देवता यावत् एक पट्योपमायुनी स्थितिये वशेने, माटे एनुं मदाहिमवंत पर्वत एवू शाश्वतुं नाम. हवे हरिवर्ष युगलीयानां देवनी वक्तव्यता कहेले. निषध पर्वतने दहण दिसे अने महादेमवंत पर्वतने उत्तर दिसे हरिवर्ष नामे युगल देव ते 451 योजन उपर उंगणीसीओ एक नाग एटबुं पहोल पणे. तथा 13361 योजन उपर शाडा उ जाग एटली पूर्व पश्चिम दिसे बाहा, तथा एनी जीवा पण उत्तर दिसीये पूर्वपश्चिम लांबी 1301 योजनउपर साडासत्तर नाग बे, तेनुं धनुपृष्ट दहण दिसीये 4016 योजन उपर चार नाग एटटुं परिधिपणे , एनुं घणुज सम रमणि क नूमि नाग , यावत् मणितृणादिके करी शोजावंतने, इत्यादिक सर्व वात इहां पण कहेवी इहां सुखमा नामे बीजा श्रारानुं अनुनाव सदा सर्वदा वर्ते बे. हां हरिसलिला महानदीने पश्चिम दिसे अने हरिकांता महा नदिने पूर्व दिसिये तथा हरिवर्ष क्षेत्रने मध्यनागे विकटापाती नामे वृत्तवैताढ्य पर्वत बे, तेनुं पोहोल पणु, उंच Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G अढीछीपना नकशानी हकीगत. पणु अने जंमपणु तथा परिधि प्रमुख सर्व पूर्वे कहेला शब्दपाती वृत्तवैताढ्यनी पेरे शहां पण कहेवा परंतु एटलुं विशेष जे ए पर्वतनो अरुणनामे देवता अधिपति तथा शहां विकटापाती सरखा वर्णे करी कमल , तेथी एनुं विकटापाती एवं शाश्वतुं नाम. ए हरिवर्षदेत्रने विषे (हरिके०) सूर्य अने चंडमा कहीये तेथी केटलाएक मनुष्य उगता सूर्य जेवा राते वर्णे रातिकांतिने प्रकाश करे, तथा केटलां एक तिहांना मनु ष्य चंडमा तथा शंखना सरिखां धोले वर्णे , तेमाटे तथा इहां हरिवर्षनामे महर्षि क देवता एक पक्ष्योपमायुये वशेडे, तेथी एनुं हरिवर्ष एवं नाम शाश्वतुं बे. हवे निषध नामा वर्षधर पर्वत कहे. महाविदेह क्षेत्रने दहण दिसे अने हरिववर्षदेत्रने उत्तर दिसे निषध नामे पर्वत,ते चारसे योजन ऊंचपणे, शा योजन नीचो धरतीमां , तथा 16742 योजन उपर बे कला पहोलो , तेनी पूर्वपश्चिम दिसे बाहा 20165 योजन उपर अढी जागळे, तथा लांबपणे तेनी जीवा पण उत्तरदिसे ए४१५६ योजन उपर बे लागले. तथा तेनुं धनु पृष्ट दक्षण दिसे 154346 योजन उपर नव नाग परिधिपणे बे, सर्व तपनीय राता सु वर्णमय बे, बे पासे पद्मवरवेदिका अने वनखंडे करी सहित बे. तेना मध्यनागे एक तिगिडि नामे अह , ति गिडि एटले कमलनो परागाह ते ति गिछि अह. ए चार हजार योजन लांब पणे अने बे हजार योजन पोहोल पणे तथा दश योजन ऊंमो ने, एनुं रूपामय तट बे, चारदिसिये चार त्रिसोपान पगथालिया, एम जे रीते महापद्मपहनी वक्तव्यता पूर्वे कही तेज रीते श्हां पण कहेवी, इहां क मलनुं प्रमाण तेहिज जाणवु यावत् तिहां तिगिडि सरखा घणा कमल , तथा यहां धृतिनामे देवी एक पक्ष्योपमने आउखे वशे बे, तेथी एनुं तिगिनिजह एवं नाम बे. ते तिगिछिपहने दक्षण दिसिने तोरणे हरिसलिला महानदी नीकली थकी 21 योजन उपर एक जाग एटली दक्षण दिसि सामी पर्वत उपरे जश्ने कांश्क जाजेरा चारसे योजनने प्रपाते करी हेवी हरिसलीला कुंडमां पमे, ते कुंमनुं अने छोपर्नु तथा छीपना नवन प्रमुखनुं प्रमाण तेनी वक्तव्यता सर्व हरिकांता नदीनी पेरे जाणवी यावत् हरि वर्ष देत्रने बे नागे वेंचती उपन्न हजार नदीये सहीत थकी नीचे जगती नेदीने पूर्व दिसिनां लवण समुडमांहे नलेडे एनुं प्रवाह, मुख, मुले, पहोलपणुं, उमपएं, ए सर्व हरिकांता नदी प्रमाणेज जाणवु यावत् वेदिका अने वनखंड तेणे करी सहीत जे. ___ हवे ते ति गिनिहने उत्तरदिसिने तोरणे सीतोदा महानदी निकली थकी 41 यो जन उपर एक नाग एटयुं उत्तर साहमी पर्वत उपरे जश्ने कांश्क जाजेरा चारसे योज Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. ए नने प्रपाते हेठी पडेले ए सीतोदा महानदी जिहां थकी पडे तिहां एक महोटी जीजी प्रणाली रूपबे ते चार योजन लांब पणे, पञ्चाश योजन पोहोल पणे अने एक योजन जामपणे महोटा मगर मत्सना मुखने संस्थाने संस्थित ने.सर्व वज्र रत्नमय देते जिहां नीची पमे तिहां महोटो सितोदा प्रपात कुंडले ते चारसे एंसी योजन लांब पणे पोहोल पणे अने 1510 योजन का एक जंणा परिधि पणे डे, यावत् तोरण पर्यंत वक्तव्यता जा णवी ते सीतोदा प्रपात कुंमने मध्य नागे सीतोदा नामे छीपजे, ते चोशठ योजन लां बो पोहोलो अने बशे बे योजन परिधि पणे बे, बे कोश पाणी थकी ऊंचो, सर्व वज्र रत्नमय , तेमज वेदिका, वनखंड नूमिनाग, नवनघर, शयनीय ए सर्व पूर्वपरे जाणवा. ते कुंमने उत्तर दिसिनेतोरणे ए सीतोदा महानदी नीकली थकी, देवकुरु क्षेत्र प्रत्ये श्रावती थकी, बेहु पर्वत प्रत्ये तथा 1 निषध 2 देवकुरु 3 सूरेंज 4 सुलस 5 विद्यु अज ए पांचाहने बे नागे वहेचती थकी ते प्रहमांहे वेहेती थकी, देव कुरु मांहेली चो रासी हजार नदीये पूराती थकी, जमशाल वन मांहे आवती थकी, मेरु पर्वत पासे बेयो जन अण पोहोती थकी, तिहांथी पश्चिमदिसि साहमी वली थकी,नीचे विद्युत्प्रन नामा गजदंता पर्वतने नेदीने मेरुपर्वतने पश्चिम दिसे,पश्चिम महाविदेह क्षेत्रने बे नागे वेहेंचती थकी, एकेकी चक्रवर्तिनी विजय थकी अहावीश अहावीश हजार नदीये पूराती पूराती थकी केमके ए नदीने दक्षण तटे आठ विजय तिहां एकेकी विजये गंगा अने सिंधु एबे बेनदी चौद चौद हजारने परिवारेले तेवारे अहावीश हजारनुं परिवारथयुं तथा उत्तरतटे पण एजरीते एकेकी विजये अहावीश अहावीश हजार नदीने परिवारे एरीते शोल वीज यनीवत्रीश नदी ते प्रत्येकने शौद हजारनो परिवार गणता 4JG000 नदी थश्तेनी साथे 68000 नदी देवकुरुनी मेलवतां 532000 नदी सहीत पूराती थकी, जयंतनामा पश्चि मदिसि संबंधी जंबूटीपनां छारने नीचे जगतीने नेदीने लवण समुहमांहे नलेले ए नदी प्रहमांधी नीकलतांमूलप्रवाहे पच्चाश योजन पोहोल पणे तथा एक योजन ऊंड पणे बे, पढी मात्राये मात्राये अनुक्रमे योजने योजने एकेक बाजुये चालीश चालीश धनुष एरीते बे पासे एंसी धनुषनी वृद्धि वधती वधती मुख मूले समुफ प्रवेशे पांचशे योजन पोहोल पणे अने दश योजन ऊंड पणे थश्वे. बे पासे पद्मवरवेदिका अने वनखमे करीसहीत बे. निषध पर्वत उपर नव कूटने तेनां नाम कहेजेः-एक सिकायतन कूट, बीजो निषध कूट, त्रीजो हरिवर्ष कूट, चोथो पूर्व विदेह कूट, पांचमो हरिसलिला कूट, बहो धृतिकूट, सातमो सीतोदा कूट. आठमो अपर विदेह कूट, नवमो रुचक कूट. जेरीते चूलहिमवंतना कूटनु उंचपणु,पोहोलपणु, परिधिपणु, राजधानी सहीत पूर्वे वर्णव्युं तेरीते शहां जाणवं. निषध पर्वतने विषे घणा कूट निषधने संस्थाने डे, निषधने अत्यंत सहन करे,पूढे स्कंधे Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत.. जार सहे ते निषध वृषन पर्यायांतरे वृषन बलदने संस्थाने संस्थित ने तथा इहां निषध नामे देवता यावत् पट्योपमने आउखे वशे, तेथी एनुं निषध पर्वत एवं शाश्वतुं नाम. श्हां नदी अह अने कुंम आदिकनो कांश्क विशेष कहे बे.. नरत देत्रनेविषे गंगा अने सिंधूनदी ; तथा ऐरवत देत्रनेविषे रक्ता अने रक्तावती नदी बे. ए बाहेर मे रहेली जे चार नदी, ते बाहेरनां जे पद्मपह तथा पुंग रीकनामे उहजे, तेनां पूर्व पश्चिमनां हारनो जे विस्तारडे, ते प्रमाणे सवा योजन पहोल पणे हिमवंत तथा शिखरी पर्वतना शिखरथी नदी वहे . एटले उतरे बे. पूर्वोक्त जे चार नदी, ते पहना बारणाथी पांचसे योजन सुधी पर्वतना शिखर उपर बारणां सन्मुख पूर्व पश्चिम दिशिए जश्ने पनी पोतपोताना वर्तन कूटथी बाहेर ना जरत अने ऐरवत क्षेत्रने सन्मुख वले. ते आवीरीते जे गंगानदी अहना बारणा थी पांचसे योजन सुधी पर्वत उपरे बारणासामी जाय त्यां गंगावर्तन ए नामे पर्वतनुं जे कूट ते थकी बाहेरनुं जे जरत क्षेत्र के तेने सन्मुख वले. एरीते सिंधूनदी पण सिंधू श्रा वर्तन कूटथी जरतदिशि वले, तथा रक्तानदी पांचसे योजन बारणा सन्मुख जश्ने पनी रक्तावर्तन कूटथी ऐरवतदिशिये वले. एम रक्तवती नदी रक्तवत्यावर्तन कूटथी ऐरवत दिशि वले, तो ए नदी नरत तथा ऐरवत सामी वले, ते वारे पर्वतना मध्य जागथी बाहेर श्रावतां पर्वत उपर केटला योजन चाले? ते कः -सवान योजन नदीन मुख ते, पर्वतनो जे विस्तार एक सहस्र बावन योजन,अने बार कला-तेमांहेथी काढीए, तेवारे एक सहस्र बेतालीश योजन उपर सवा सात कला रहे. तेनुं अर्ड पांचसे त्रेवीश योजन अने शाढी त्रण कला काफेरी लाने त्यांहांलगी पर्वतना शिखर उपर नदीवहे. शिखरना बेमाथी मगरमत्सना मुखने श्राकारे, तथा वज्ररत्नमय एवी जे जीजी एनो जीजी सरखो आकार, जीनी एटले परनाल ते मध्ये थश्ने वज्रमय तवं जे हने विषे, एडवो जे नदीना पोतपोताने नामे निपात कुंम, तेने विषे मोतीनी तूटेली सेर तेने सदृश प्रवादे अवविन्न धाराएं करी पके जे. एटले गंगानदी गंगानिपात कुंममां पमेने, अने सिंधूनदी सिंधूनिपात कुंममा पमे. एम नदिने नामे कुंड जाणवा. उहनां वारणानो विस्तार सवार योजन ; तेम नदीप्रवाहमांहे जीनीनो विस्ता पण सवा उ योजन बे. तेमाटे सरखो विस्तार . अने पहनां बारणानो जे पहोल पणे विस्तार ते विस्तारनां पचाशमे नागे जीनी जामी बे. अने ते जाड पणाथी चोगु णी सर्व जीनी लांबी जे. एम सर्व होनी जीजीनुं प्रमाण जाणवू, एटले बाहेरना बे पर्वतने विषे सवा योजन जीनी पहोली ने, अने मध्यना बे पर्वतनी मांहेली दि Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. शिनी जीनी पचीस योजन पहोली जे. अने बाहेरनी दिशिनी जीनी साडावार योजन प्रमाणे बे. तथा महाविदेह क्षेत्रमा मांहेलो जीनी पचास योजन प्रमाणे बे. अने बा हेरनी जे जीजी ते पचीश योजन प्रमाण पोहोली . तथा ए सर्व जीजीउनुंजामप णुळे ते पोतपोताना विस्तारने पचाशमे नागे . अने जामपणाथी चोगणु लांबपणुं. हवे ते कुंम वच्चे जे छीपत्रे, तेनुं प्रमाण कहेले. आठ योजन पोहोलो पाणीमांजे. अने ते पाणी उपर बे कोस उंचो, अने वेदिकाए सहित, एवो नदीनी देवीने वसवानो दीप; तेमाहे जहनी जे श्री, लक्ष्मी प्रमुख देवी तेहना जवन सरखां नवन ते छीपने विषे बे. ते कुंड साठ योजन पहोला बे. अने सवा ब योजन पदोलां वेदिकानां त्रण बार पा तथा दशयोजन उमालेए प्रकारे बीजापण जे कुंम तेहD जे विशेष ले ते कडेले. ___ कुंमनुं पहोलपणुंअने छीपनुं पोहोपणुं तथा वेदिकानुं पहोलपणुं ए त्रण विस्तारते महाविदेह देत्रमांहे बत्रीश विजयनी बत्रीश नदी ते नदीना जे चोशठ कुम, तेनुं तथा तेमांहे जे छीपने तेनु तथा तेनी वेदिका, तेहनां बारणानो विस्तार, ते नरत अने ऐरवतना कुंम सरखो. एटले विदेहना विजयमांदे जे चोसठ कुंड, ते साठ योजन पहोला. तेमध्ये आठ योजन बीपले. तिहां वेदिकानां बारणानो विस्तार सवाब योजन जाणवो.अने हिमवंत देवनी बे नदी, हिरण्यवंत देवनी बे नदी, वली बत्रीश विजयनी बार अंतर नदी ए सोल नदीमांजे सोल कुंड, तेनो तथा तेहनां छीपनो तथा तेहनां वेदिकानां द्वारनो विस्तार पहेलानाश्री बमणो जाणवो. एटले ए सोल नदीना कुंम ए कसो वीस योजन पोहोला अने एकुंमनां छीप सोल योजन पहोला . तथा ए सोल कुंझना वेदिकाना बारणानो विस्तार साडावार योजन . वली हरिवर्ष देवनी बे नदी, अने रम्यानी बे नदी-ए चार नदीना चार कुंम, तेहना त्रण विस्तार आश्रीने चोगुणो जाणवो. एटले चशेने चालीश योजन एनां कुंमनो विस्तारले. अने बत्रीश योजन छीपनो विस्तार तथा पचीश योजन वेदिकानां हारनो विस्तार तथा महाविदेहनी वे नदीना बे कुंड, तेहना त्रण विस्तार आश्रीने आग्गुणो जाणवो. ते कहे. चारसे एंसी योजन कुंमनो विस्तार बे. अने छीपनो विस्तार चोसठ योजननो. तथा विदेदनांकुंमनी वेदिकानांबा रणा पचाश योजन पहोलांडे, एम सर्व एका गणीए तो था जंबूछीपमाहे नेवं कुंम थाय. बाहेरनी जे चार नदी, तेमनी गति कहे. चार नदी जे गंगा, सिंधू, रक्ता अने रक्तवती ते पोतपोताना निपात कुंमथी बाहेरना जरत अने ऐरवतने सन्मुख बारणे नी कले. ते केम? तोके-गंगा अने सिंधु ए बे दक्षिणने बारणे जरत सामी नीकले.अने रक्ता तथा रक्तवती ए बे उत्तरने बारणे उत्तरना ऐरवत दिशि नीकले, पण ते जेवारे वैताढ्य लगी आवे, तेवारे ते प्रत्येक नदीने सात सहस्र नदी बीजी मले ने तेना परि Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. वारे परिवरीथकी वैताढ्यनी वच्चे थइने नीकलेले. ते वैताढ्य पर्वत नेदीने नीकन्या पली बाहेरना जरत तथा ऐरवत क्षेत्रना अर्डनागना वचमांथी पूर्व अने पश्चिमदिशि समुन सन्मुख वले एटले जरत क्षेत्र माहे गंगानदी पूर्व दिशए जाय,अने सिंधुनदी पश्चिम दिखि ए जाय तथा ऐरवत मांहे रक्तानदी पूर्वदिशिए जाय अने रक्तवती नदी पश्चिम दिशिए जाय, पण ते चार नदी वैताढ्य पर्वतने नेदीने नीकल्या पनी वली बीजी सात सह स्र नदीए करी सहित थाय सर्व मली चौदसहस्र नदीने परिवार परवरी थकी,जे म पूर्वे वैताढयने नेदी नीकली बे तेनीपरे जगतीने पण नेदीने समुजमाहे जाय . नदीनो विस्तार तथा जंडपणुं कहेले. सर्व नदी ने पहेला नीकलतां कुंडना छार सरखो विस्तार होय अनेअंतने विषे प्रथमनां विस्तारथी दशगुणी विस्तारपणे होय ते आ वीरीते के-नरत तथा ऐरवतनी चार नदी, तेनो प्रथम सवा आयोजन विस्तार बे.अने बेडे समुषमाहेनले तेवारे साडी बासठ योजन थाय-तथा बत्रीश विजयनी चोस नदी बे. तेहनो पण एज श्रादिअंतनो विस्तार बे, तेहना जे चोसठ कुंम , ते बाहेरना कुंड सरखा , ते माटे सरखो विस्तार कह्यो.वली हेमवंत तथा हिरण्यवंतनी चार नदी,अने विजयनी बार अंतरनदी, एवं सोल नदीनोआदिविस्तार साडाबार योजन जे. तो मेए कसो पचीश योजननो विस्तार जाणवो. वली हरिवर्षे तथा रम्यकदेत्रमाहे जे चार न दी बे तेदनो विस्तार पचीश योजन धुरेने. तो अंतने विषे बसें पचास योजन विस्तार थाय . अने विदेह क्षत्रे जे सीता अने सीतोदा बे नदी ले तेहनी प्रथम विस्तार पच्चाश योजननो , तो बेमे पांचसे योजन विस्तार तथा ए सर्वजे मोटी नदी बे, ते विस्तारथी पचासमे नागे उमी , जेम गंगानदी श्रादि विस्तार सवा उ योजन , तेने पञ्चाशे नाग देतां योजननो श्राठमोजाग आवे, तो प्रथम नीकलतां योजनने आपमे नागे जंडी बे, अने मे साडी बासठ योजन विस्तार बे, तेने पचाशे नाग देतां सवा योजन श्रा वे, तेमाटे बेडे सवा योजन मी जाणवी, एम समस्त नदीनो विस्तार जाणवो. हवे पांच क्षेत्रनी नदीनी गति कहे. पांच देवनी जे महानदीने ते पोत पोता ना बारणानी दिशिये पहनो जे विस्तारले, ते काढतां जे पर्वतना विस्तारनुं अर्ड थाय तेटला योजन नदी पर्वतना शिखर उपर वहे. ते केम ? तो के-हेमवंत अने शिखरी नो विस्तार 1055 योजन अने बार कला . तेमांदेथी पहनो विस्तार पांचसे योज न काढीए तेवारे 552 योजन अने बार कला रहे. तेनुं अर्ड 276 योजन अनेक ला थाय. तो पोताना अहकारनां मुखथी पर्वतनां शिखर उपर 276 योजन अनेब कला वहे. अने महाहिमवंत तथा रुक्मी पर्वतने विषे चार नदी 1605 योजन अने पांच कला पर्वतना शिखर उपर चाले, तथा निषध अने नीलवंत संबंधी Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 53 अढीछीपना नकशानी दकीगत. चार नदी 451 योजन अने एक कला पर्वतनां शिखर उपर चाले ए रीते अहनो विस्तार पर्वतनां विस्तार मांडेथी काढी अर्ज करीए तेवारे एवं पूर्वोक्त मान लाने तेवार पठी पर्वतना विस्तारने बेडे जश्ने पोतानी जीनी उपर थश्ने पोतपोताना नि पात कुंढने विषे ते नदी पडे, तथा पोतपोतानी जीजीना पहोलपणाने पचीशमे जागे वृतवैताढ्य तथा मेरु तेने मूकीने जे नदीनुं मुख दक्षण सामुंबे, ते नदी पूर्व समुदिशि तरफ वले अने जे नदीनुं मुख उत्तर सामुं , ते पश्चिम समुअदिशि वले; एटले हेमवंत तथा हिरण्यवंतनी बे नदी वृतवैताढ्यने बे कोस वेगलो मूकी पूर्व तथा पश्चिमदिशिए वले तथा हरिवर्ष अने रम्यकूनी बे नदी चार कोश वृत वै ताढ्यने वेगलो मूकीने पूर्व पश्चिम दिशिए वले. तथा महा विदेहनी बे नदी आठ कोस मेरु पर्वतने वेगलो मूकी पूर्व पश्चिम दिशिए वले. हेमवंत देत्रमाहे रोहितांशा तथा रोहिता एवे नामे बे नदी, ते प्रत्येकनो गंगानदी करतां बमणो परिवारले. एटले अहावीश हजार नदीना परिवारे परिवरि ने तेमज हिर सवंत देवमांहे सुवर्णकुला अने रुप्पकुला एवे नामे बे नदी , ते पण रोहितांसा नदी नी परे अहावीश हजार नदीए परिवरीने, तथा हरिवर्ष देत्रनेविषे हरिकंता अने दरिसलिलानामे बे नदी ते गंगानदीथी चोगणा परिवार वाली . एटले उप्पन हजार नदीए परिवरीजे. तथा ए पूर्वोक्त नदी सदृश रम्यक् देवने विषे नरकंता अने नारी कंता ए नामे बे नदी ते पण एटलीज बप्पन हजार नदीए परिवरी . तथा सी तोदा अने सीता ए बे नदी महाविदेह क्षेत्रमा ने ते एकेकी नदीमांहे पांच लाख बत्री स हजारने आमत्रीश नदी संबंधी पाणी पडे बे. कुरुक्षेत्रने विषे चोराशी हजार नदी उजे. वली अंतर नदी तथा एकेकी विजये गंगा, अने सिंधु ए बे बे महानदी बे, तो सोल विजयमांदे बत्रीश महोटी नदी थ ते प्रत्येक नदीनो परिवार चौद द जारनो गणतां 437000 हजार थाय, तेनी साथे पाबली कुरूक्षेत्रादिकनी 4030 नदी मेलवीए तेवारे 532037 नदीनुं पांणी सीतोदा नदीमांहे नले बे. तथा सी ता मांहे पण एटली नदीनुं पाणी जले . ते माटे बमणी करीए तेवारे 1064076 एटली नदी महा विदेह क्षेत्रमांहे जाणवी. हवे जंबूहीपनी सर्व नदीनी संख्या कहेले बत्रीश विजयनी चोसम नदी, तथा सीतोदा अने सीता ए बे नदी तथा जरतादिकनी गंगा प्रमुख बार नदी ए सर्व एकठी करतां होतेर महोटी नदी जाणवी. अने बत्रीश विजयनी बार अंत्तर नदी ए नेवू मूलगी नदी बे. बाकी बीजी परिवारनी नदी चौद लाखने उप्पन हजार बे. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 अढीलीपना नकशानी हकीगत. हवे महाविदेह देवनी वक्तव्यता कहे . नीलवंत नामा वर्षधर पर्वतने दहणदिसे तथा निषध नामा वर्षधर पर्वतने उत्तर दिसे महाविदेह नामा क्षेत्र 2 ते पल्यंकने संस्थाने संस्थित बे, 3364 योजन उपर चार जाग एटवू पोहोल पणे जे एनी बाद पूर्व पश्चिमे 33767 योजन उपरसात नाग लांब पणे तेनी जीवा पण महाविदेहना मध्य नागने विषे पूर्व पश्चिम दिसे लांबी एक लाख योजन ने एनुं धनुपृष्ट 15213 योजन उपर शोल नाग कांश्क जाजेरा ए टलुं परिधि पणे एकेकी दिसिये बे, एटले जंबूझीपनो 31627 योजन प्रमुख जे पूर्वे परिधि कह्यो, तेनुं अर्ड करीये तेवारे महाविदेहनी एकदिसिनु धनुपृष्ट थाय अने बे दिसिनां धनुपृष्ट एकग करीये तेवारे जंबूछीपनी पूर्ण परिधि थाय एम जाणवू. ___ महाविदेह देत्र चार प्रकारे एक मेरु थकी पूर्वे पूर्व महाविदेह, बीजो मेरु थकी पश्चिमे अपरविदेह, त्रीजो मेरु थकी दहणे देवकुरु क्षेत्र चोथो मेरुथकी उत्तरे उत्तर कुरु क्षेत्र ने. नरत ऐरवत, हेमवंत, हिरण्यवंत, हरिवर्ष, अने रम्यक् ए बए क्षेत्र थकी लांब पणे, पहोल पणे, परिधि पणे करीने घणु विस्तिरण ने एटले घणु महंत महोटुंबे, अथवा बत्रीश विजयने विषे पांचशे धनुषनी कायानां महोटा शरीर वाला मनुष्य, तथा देवकुरु अने उत्तरकुरुने विषेत्रणगाउनां शरीर वाला मनुष्य वसे बे एरीते शरी र श्राश्रयी मनुष्य पण महोटा , तथा महाविदेह नामे देवता महाशकिवंत यावत् एक पख्योपमने आउखे शहां वसे , तेथी एनुं महाविदेह एवं शाश्वतुं नाम . हवे ए महाविदेहमां चार गजदंतगिरिले तेनी वक्तव्यता कहे :१नीलवंत पर्वतने दक्षण दिसिये श्रने मेरुने उत्तर पश्चिमदिसि वच्चे वायुकूणे तथा गंधिलावती विजयने पूर्व दिसे,उत्तरकुरुने पश्चिम दिसे,श्हां गंधमादन नामे गजदंत पर्वत पीले वर्णे बे ३००ए योजन उपर उ नाग लांब पणे तथा नीलवंत पर्वतनी पासे चा रसो योजन ऊंच पणे ,शो योजन ऊंम पणे धरतीमां बे, पांचशे योजन पोहोल पणे बे. पठी मात्राये मात्राये अनुक्रमे उंच पणे तथा जंड पणे वधतो वधतो थको अने पो होल पणानी हाणीये घटतो घटतो थको मेरु पर्वतनी समीपे पांचशे योजन ऊंच पणे तथा सवासो योजन ऊंम पणे धरतीमां ने अंगुलनो असंख्यातमो नाग पोहोल पणे हाथाना दांतने संस्थाने संस्थित बे, सर्व रत्नमय बे, बे पासे बे पद्मवरवेदिका अने बे वनखंडे करी सहीत , यावत् उपरे घणा देवता बेशे , इत्यावि सर्व पूर्वपरे कहेवू. ए गंध मादन पर्वत उपर सात कूट तेना नाम कहे बेः-एक मेरु दिसिये सिकाय तन कूट, तेवार पनी अनुक्रमे नीलवंत सन्मुख बीजो गंधमादनकूट, त्रीजो गंधिलाव ती कूट, चोथो उत्तरकुरु कूट, पांचमो स्फाटिक कूट, बहो लोहितारकूट, सातमो श्र Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. 55 नंद कूट, तिहां सिहायतन कूटने विषे सिझनुं देहेरंबे तथा स्फाटिक कूट अने लोही ताद कूट ए बे कूटने विषे नोगंकरा ने लोगवती ए बे दिक्मारिका देवीनो निवास बे शेष चार कूटने विषे कूटने नामे देवता रहे . ए सर्वे कूट पांचशे योजन उंच पणे बे. ए पर्वतनो गंध ते कोष्ट सुगंधना पुमाने पीसतां, चूर्ण करतां, उकेरतां थकां, जूजू श्रा विखेरतां थकां, नोगवतां, गंधलेता थकां, जेम उत्तम उदार मनोहर गंध नीकले, तेथी पण इष्टतर अति उत्तम गंध ते गंधे करी मद , तथा इहां गंधमादन नामे देवता महाशकिवंत वसे बे, तेथी एनुं गंधमादन एवं शाश्वतुं नाम बे. 2 मेरु पर्वतने शानकूणे, नीलवंत पर्वतने दक्षण दिसे, उत्तरकुरुने पूर्व दिसे, कल नामा विजयने पश्चिम दिसे, माल्यवंत नामे गजदंत पर्वत वैडूर्य रत्नमय नीले वर्णे , ते गंधमादन गजदंता प्रमाणे लांबुं पोहोलुं , शेष अधिकार तेमज जाणवं. __ माल्यवंत गजदंतगिरिना नवकूटनांनाम कहेडे. एक मेरुदिसिये सिकायत्नकूट,तेवार रबी अनुक्रमे नीलवंत पर्वतने सन्मुख बीजो माल्यवंतकूट, त्रीजो उत्तर कुरुकूट, चोथो कन्छकूट, पांचमो सागरकूट, हो रजतकूट, सातमो सीताकूट, पाठमो पूरणजम कूट, नवमो हरिस्सह कूट, ए सर्वे कूट पांचशे योजन ऊंचपणे तिहां सागरकूट अने रजत कूट एबे कूटने विषे सुनोगा अने जोगमालिनी नामे देवी वसे शेष कूटने नामे तिहां वसनारा देवोना पण तेहीज नाम जाणवा. एमां हरिस्सह कूट उपर हरिस्सह राज धानीनो हरिस्सह नामे देव वशे , ए कूट हजार योजन पोहोळु अने हजार योजन उंचुं यमक पर्वतने प्रमाणे डे थने मान्यवंत गजदंत पांचशे योजन पोहोलु डे माटे बे पासे अढीशे अढीशे योजन पर्वतथी बाहेर अधर रडं , ए हरिस्सह देवनी रा जधानी अन्य जंबूद्वीपे चोरासी हजार योजननी लांब पणे पोहोल पणे ले. .. ए माल्यवंत गजदंताने विषे घणा सरिकानामे वनस्पतिना गुल्म, नवमालतीना गु दम, यावत् मगदंतिका वनस्पतिनां गुदम बे ते गुल्म सर्वदा पंचवर्णना फूले फूले ले तथा लूमिने विषे वायरे कंपित एवा अग्रशालाने विष फूलनां पूंज तेने उपचारे करी सही त करे तथा श्हां माल्यवंत देव एक पत्यायुये वशे , माटे एनुं माल्यवंत नाम बे. 3 निषध पर्वतने उत्तर दिसे, मेरु पर्वतने दक्षण पूर्वने वच्चे अग्निकूणे, मंगलावती वि जयने पश्चिम दिसे अने देवकुरुने पूर्व दिसे, सोमनस नामे गजदंत पर्वत स्वेतवर्णेने ते लांबोपोहोलो माल्यवंतनी पेरे जाणवु ए रूप्पमय ने शहां घणा देवता देवांगना कुचेष्टा रहित सौम्य पणे सुमन एटले शोकादि रहीत विचरे , तथा सोमनस नामे महर्डिक देव श्हां वशे ने तेथी ए- सोमनस नाम . एनां उपर सात कूट ले तेनां नाम कहे:एक मेरुनी दिसिथी सिकायतन कूट, तेवार पठी अनुक्रमें निषध पर्वतनी सन्मुख Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 अढीलीपना नकशानी हकीगत. बीजो सोमनस कूट, त्रीजो मंगवलाती कूट, चोथो देवकुरु कूट, पांचमो विमल कूट, बहो कांचन कूट, सातमो वशिष्ट कूट, ए सर्वे कूट पांचशे योजन ऊंच पणे पहोल पणे जे तिहां विमल अने कांचन ए बे कूटने विषे सुवत्सा अने वत्समित्रा ए बे दिकुमा रिका देविनो निवास डे तथा शेष कूटने विषे कूटने नामे देवना निवास जाणवा. 4 तथा निषध पर्वतने उत्तर दिसे अने मेरुने दक्षण पश्चिम वचे नैऋतकूणे, पद्म विजय ने पूर्व दिसे विद्युत्प्रन नामे गजदंत पर्वत सर्व तपनीय राता सुवर्ण मय बे यावत् उपर दे वता वसे इत्यादि सर्व पूर्व परे कहे. एनां नव कूटनां नाम कहे बेः-प्रथम मेरु दिसिये सिकायतन, तेवार पनी अनुक्रमे निषध पर्वतनी सन्मुख बीजो विद्युत्प्रन,त्री जो देव कुरु, चोथो पक्ष्म, पांचमो कनक, हो सौवस्तिक, सातमो सीतोदा, श्राठमो शतजवल, नवमो हरि कूट. तेमां हरि कूट ते पूर्वोक्त हरिस्सह कूटनी पेरे हजार योज न पोहोलो, ऊंचोने, अने शेष श्राठ कूट पांचशे योजन ऊंचा जाणवा तथा कनक कूट अने सौवस्तिक एबे कूटने विषे वारिषेणा अने बलाहिका नामांतरे पुष्पमाला अने अनं दिता दिग्कुमारिका देवी वशेडे, शेष कूटने विषे कूटने नामे देवता जाणवा. तथा ए पर्वत वीजलीनी पेरे रक्तसुवर्णमयपंणा माटे चोफेर श्रवनासे बे, उद्योत करे , कांति करे जे तथा इहां विद्युत्प्रन नामे देवता एक पट्योपमायुये वशे 2 तेथी एनुं विद्युत्प्रन एवं शाश्वतुं नाम . ए चार गजदंत उपर प्रत्येके दिक्मारि देवीनां बेबे कूट कह्या ते अधलोकने विषे वसनारी दिकमारी जाणवी एनां रेवानां नवन गजदंत गिरिने नीचेजे. कुरुदेवनी जे सीतोदा तथा सीतानदी तेहy परवा नीकलवानुं स्थानक जे जीनी तिहांथी 26475 योजन बेपासे मेरुपर्वत साहामां ए चार गजदंत गिरी, ए निषध तथा नीलवंत पर्वतमाहेथी नीकट्याने, हाथीनां दांतने आकारे देखायडे, माटे एने गजदंत गिरी कहिए. अग्नि कूणे सोमनस नामे गजदंतगिरि , तिहांथी धुरमांमीने प्रदक्षणावर्त्त गणतां चार दिशीनेविषे अनुक्रमे चार गजदंत गिरीले. ___ हवे ए महाविदेहने विषे उत्तरकुरु नामे युगलीयानुं देत्र वखाणे बे. मेरु पर्वतने उत्तर दिसे अने नीलवंतनी दक्षण दिसे तथा गंधमादन पर्वतनी पूर्व दिसे अने माल्यवंतनी पश्चिम दिसे श्हां उत्तर कुरुनामे देत्र जे ते पूर्वपश्चिमे लांबो भने उत्त र दक्षणे पोहोलो अर्ड चंडमाने संस्थाने संस्थित डे, 19742 योजन उपर बे नाग एटलो पोहोल पणे डे, एनी जीवा पण ब उत्तर दिसे पूर्वपश्चिमे लांबी, बे दिसाये गज दंता पर्वतने फरसी , ते 53000 योजन लांब पणे , एनुं धनुपृष्ट 60417 योजन उपर बार जाग परिधि पणे बे. ते आवीरीतेः-३०२०ए योजन उपर कला एटर्चा Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीवीपना नकशानी हकीगत. एकेको गजदंत गिरि लांबो बे, तेवा गजदंत गिरिनी वच्चमां ए क्षेत्र अई चंडाकारे , माटे बे गजदंतना लांब पणानां योजन जेवारे एका करिये तेवारे 60417 योजनउ पर वार कला एटबुं कुरुक्षेत्रनो धनुपृष्ट थाय एटले धनुषनो बाहेरलो पुग्नो नाग अ ईचंडाकार- थाय. ए क्षेत्रमा युगलिया मनुष वसे , तिहां सर्वदा पहेला धारा सरखो नाव वर्तेले, तथा ए उत्तरकुरु देत्रमा महाशद्धिवंत उत्तरकुरुनामे देवता एक पक्ष्यायुये वशेने, माटे एनुं उत्तरकुरु एवं शाश्वतुं नाम . उत्तर कुरुने विषे नीलवंत पर्वतना दक्षण दिसिनां चरमांत बेहेमाथी 34 योजन उपर सातीया चार नाग एटली अबाधाये सीता महानदीने एक पूर्वतटे अने बीजो पश्चिम तटे ए बे तटे बे यमक नामे पर्वत बे, ते एक हजार योजन ऊंच पणे तथा अ ढीशे योजन म पणे धरतीमां तथा मूलमां हजार योजन लांब पणे पोहोल पणे , व चमा 350 योजन लांब पणे पोहोल पणे बे, अने उपर पांचशे योजन लांब पणे पोहोल पणे , तथा मूलमा 3162 योजन कांश्क अधिक परिधि पणे बे, मध्यमां 2372 योजन कांश्क जाजेरा परिधि पणे , तथा उपर 1571 योजन कांश्क जाजेरा परिधि पणे , ए रीते मूलमां विस्तिरण ने, वच्चमां सांकमा बे, अने उपर पातला , यमक एटले जोमले जएया नाश्तेने संस्थाने संस्थित ने. एटले बेहु सरखे संस्था ने , सर्व कनक सुवर्णमय ने, प्रत्येके पद्मवरवेदिका अने वनखंडे करी वींट्या बे, ते वेदिका वन खंडनुं वर्णन पूर्वली परे जाणवू तेना उपर बेप्रासादावतंसक बे, ते सामा वाश योजन ऊंचा तथा संवाएकत्रीश योजन लांबा अने पोहोला , तेनो वर्णन विजय देवतानां प्रासादनी परे जाणवो ए पर्वते न्हानी वावी तथा महोटी वावीने विषे यावत् बिस पंक्तिने विषे घणा कमल यमक पर्वत सरिखे वर्णे , तथा श्हां बे यमक नामे देवता महा शहिवंत यावत् देव संबंधि जोग नोगवता थका विचरे में, माटे एनुं यमक पर्वत एवं शाश्वतुं नाम , ए बे देवोनी अनेरे जंबूहीपे जूदी जूद यमका नामे राजधानी, तेनो वर्णन सर्व विजय देवनी परे जाणवो. __ हवे उत्तर कुरुक्षेत्रनां अह कहे. नीलवंत पर्वत थकी 34 योजन अने उपर सातीया चार नाग कांश्क जाजेरा ए टली अबाधाये सीता महानदीनी वच्चमां प्रथम नीलवंतनामे उहजे, ते जेम पद्मपह नो वर्णन कह्यो तेमज एनो वर्णन पण जाणवो ए वे बाजुये पद्मवरवेदिका अने बे व नखंडे सहीत, तिहां नीलवंत नामे नागकुमार देव वसेने. ते नीलवंत अहनी पूर्व अने पश्चिम दिसिये बेहु पासे दश दश योजनने आंतरे म ली वीश कांचन पर्वत बे ते प्रत्येक एकशो योजन ऊंच पणे अने मूलमां एकशो योजन Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एन अढीछीपना नकशानी हकीगत. लांबा पोहोला, तथा वच्चमां पंचोतेर योजन अने नपरे पञ्चाश योजन लांबा पोहो ला , तथा मूलमा 316 योजन, मध्यमां 230 योजन अने उपरे 150 योजन कांश्क अधिक परिधि पणे, तेम ए प्रथम नीलवंतह थकी वली पूर्वोक्त 34 योजननी अबा धाये बीजो उत्तरकुरु मह , वली तेथकी तेटलीज अबाधाये त्रीजो चंड अह ने वली तेथकी तेटलीज अबाधाये चोथो ऐरवत नामे उह बे, वली ते थकी तेटलीज अवा धाये पांचमो माल्यवंत नामे ऽह बे, ए पांच प्रहनी वक्तव्यता सरखी बे, ए पांचे पहनां सो कांचनगिरि उत्तर कुरुमां . ए पहना देवोनी एक पक्ष्योम स्थिति जाणवी. हवे उत्तर कुरुमां जंबू वृद वखाणे बे. नीलवंत पर्वतने दक्षण दिसे तथा मेरु पर्वतने उत्तर दिसे अने माल्यवंत गजदंत गिरिने पश्चिम दिसे तथा सीता महानदीनां पूर्वने तटे, उत्तर कुरु क्षेत्रने विषे जंबू पी व नामे पीठ बे, ते पांचशे योजन लांब पणे पोहोल पणे , तथा 150 योजन कां श्क जाजेरा परिधि पणे डे, ए पीठ मध्य नागे बार योजन जाम पणे बे, एटले जंचपणे बे, पड़ी मात्राये मात्राये अनुक्रमे प्रदेशनी हाणीये घटतुं घटतुं थकुं सर्व चोफेर डेराप्र देशने विषे बेबे गाज चारे दिसिये जंच पणे बे, ए पीठ सर्व जांबुनंद रत्नमय बे, बंधा सरावलाने श्राकारे डे, ते पीठ एक पद्मवरवेदिका अने एक वनखेमे करी चोकफेर वींव्यु बे, ते वेदिका बे कोश उंचा अने एक कोश पोहोला एवा मनोहर चार बारणा ते णे करी सहीत . तेनो वर्णन पूर्वली परे कहेवो, ते पीउने चार दिसेये चार पग था लीया , तेनुं वर्णन यावत् तोरण बत्रातिबत्र पर्यंत पूर्वली परे कहेवो, ते पीउनां मध्य ना गमां वच्चो वच्चे मणिपीठिका बे, ते आठ योजन लांब पणे पोहोल पणे अने चार यो जन जाम पणे एटले उंच पणे बे, ते सर्व मणी मय , ते उपरे जंबू वृक्ष अपर ना म सुदर्शन कह्यो बे, ते नामे वृद बे. ते आठ योजन ऊंचो बे, अर्ड योजन नूमिमां उमो बे, बे योजननो खंध , उ योजननी शाखा , ते वृद मध्य नागें आयोजन लांबु पोहोबुं बे, साडा आठ योजन सर्वांगें उंच पणे कडं बे. ते जंबू सुदर्शन वृदना वज्ररत्न मय मूल , रूपामय प्रतिष्टित दृढ शाखा , अरिष्ट रत्नमय विस्तिरण कंद , वैडूर्य रत्ननो देदीप्यमान खंधळे, उत्तम रूपामय मूलथीज वि स्तिरण शाखा बे, नवा नवा मणि अने रत्न तेनी नवा नवा प्रकारनी शाखा अने प्रशा खा बे, वैद्य रत्ननां पानमा बे, ते पानमाना वीट राता सुवर्णना , जंबूनंद रत्नमय रा ता टीसी, कोमल पत्र अने अंकूरा शुकुमाल , विचित्र मनोहर मणिरत्ननां फल अने सुगंधित फूल डे, ते फूल अने फलने नारे करीने ते वृदनी शाखा नमी डे, गया सहीत Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाप अढीछीपना नकशानी हकीगत. डे, कांति सहीत , सश्रिक , उद्योत सहीत जे, अत्यंत मनने सुख उपजावनार वे. __ एटले जंबूवृदनी मूलने विषे जे जटा ते वज्ररत्नमय बे तथा मूलथी उपर जे कंद बे, ते श्यामवर्ण रत्ननु,तथा जंबूवृदनी माल वैडुर्य रत्न एटले नील वर्ण रत्ननी , तथा महोटी शाखा पीला सोनानी बे, तथा लघु शाखा कांश्क धोला सोनानी , तथा एना पानडा जे ले ते वैर्य रत्न एटले नीला रत्ननां , तथा पत्रनी बीट ते तपनीय सुवर्ण समा न महा तेजवंत बे, तथा जे जे पल्लव एटले नवां जगतां पत्र बे, ते रक्त सुवर्णनां ने, तथा नवा पत्र रूपामय , तथा मध्य नागनी वच्चेनी महोटी माल ते रूपामय बे, तथा फल फूल सर्व रत्नमय बे. तथा वे कोश नूमीमध्ये उमपणे जामो ,तथा थमने विषे अने महोटी शाखाने विषे अने मध्य नागे जे मूल शाखा , तेने विपे बे कोश- पोहोल पणुं बे, तथा आठ कोश थडनी माल लांबी , तथा थडनी शाखा थकी चार दिसिये चार महोटी माल जिहांथी नीकली,तिहांथी पंदर कोश लांबी तथा मध्य नागनी मूलगी लांबी डाल जंची ते चोवीश कोश लांबी ने तिहां चार दिसिनी चार शाखाने विषे श्री देवीना नवन सरखा चार नवन, तथा जे पांचमी महोटी चोवीश कोशनीमालवे, ते उपर श्रीदेवीना जवन सदृश जिनजवन जाणवू तिहां पूर्व दिसिनी शाखानां नवनने विषे जंबूछीपनो अनाहित नामे जे अधिष्टायक देव तेने सुवानी सद्या , तथा शेष जे त्र ण दिसिना त्रण नवन बे, तेने विषे अनाहित देवताने बेसवा योग्य सिंहासन बे. ते जंब सुदर्शन वृक्षनी जे पीठिका ले ते मूलमां अनुक्रमे बारवेदिकाये करीवींटेली बे, ते वेदिकानो वर्णन पूर्वली परे जाणवो, ते मूल जंबूवृदथी अर्ड प्रमाण उंचाश्वा ला एवा बीजा 107 जंबूवृदें करी सर्व दिसे चोकफेर वींटेबुं बे, तेमां अनाहित देवना आनूषणादिक वस्तु रहे, तथा बीजी परिधिये वायुकुंणे, उत्तर दिसे अने इशाण फूणे अनाहित देवताना चार हजार सामानिक देवना चार हजार जंबूवृद , तथा पूर्व दिसे अनाद्वित देवतानी चार अग्रमहीषीना चार जंबूवृक्ष कह्या बे, इत्यादिक सर्व 12057120 जंबूदना पद्मपहनी श्रीदेवीना कमलनी पेरे इहां पण परिवार ने. . ते जंबूवृक्ष एक अत्यंतर बीजु मध्य त्रीजु बाह्य एवा त्रण वनखंड शो शो योजनना तेणे करी सर्व दिसे चोफेर वींट्यु बे, तेमां प्रथम वनखंडनी चारदिसाये पञ्चाश पञ्चाश योजन अवगाही जश्ये तिहां एकेकुं जिनजुवन, एम चारेदिसाना चार नवन एटले चैत्यगृहजे, ते पूर्व दिसिनी शाखा सरखा नवन जाणवा तेमज ते वननी शानादिक चार विदिसिने विषे पञ्चाश पञ्चाश योजन अवगाही जश्ये तिहां प्रत्येक विदिसिये चार चार नंदापुष्करणी , ते प्रत्येके एककोश लांबी, अर्डकोश पोहोली अने पांचशे धनुष जंम) Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60 अढीवीपना नकशानी हकीगत. बे, ते चार चार पुष्करणीनां मध्यमां वच्चोवच्च एकेक प्रासादावतंसक , ते प्रासादा वतंसक बीजी त्रण दिसिनी डालने विषे जेवा नवनडे, तेवा जाणवा. ते जिनजुवन तथा प्रासादनां आठ आंतराने विषे श्रीजिन वने सहीत आठ कूट जाणवा ते प्रत्येक कूटनो बार योजन मूले विस्तार, मध्यमां आठ योजन अने शिखर उपर चार योजन विस्तार , तथा बाठ योजन ऊंचा , एवा श्राप तरुकूट कह्या बे. __ ए जंबू सुदर्शन वृद ते बीजा घणा तिलकवृद, लउकवृद, यावत् राजरुख प्रमुख वृक्ष करी सर्वदिसिये चोफेर वींटेलो, ए वृद उपर घणा श्राप श्राव मंगलिक, तथा कृष्ण, चामर, ध्वजा यावत् नातिन . एनां बार नाम अर्थ सहीत कहेजेः-एक शुनदर्शन माटे सुदर्शन, बीजो अनिष्फल मा टेश्रमोघ, त्रीजो मणिरत्नेकरी बक पीठमाटे सुप्रतिबक, चोथो यशनोधरनार माटे यशो धर,पांचमो जंबूहीपर्नु नाम विस्तारेमाटे विदेहजंबू,बको सोमनस एटले उत्तमवृद जेने देखवाथी केवारे मन पुष्ट नथाय सर्वदा प्रीतिवंत मन थाय, सातमुं शाश्वत नाम माटे नित्य,आठमुं अनादिकालनुं मंमित माटे नित्य मंडित, नवमुं कल्याणकारि उपजवरहीत माटे सुना. दशमो विस्तिरणवृद्ध माटे विशाल, अगीयारमुं सुनिष्पन्नरूप माटे सुजात बारमो एना दर्शनथी शुनमन थाय माटे सुमन, ए वृद उपर जंबूछीपनो धणी श्र नाहत देव एकपट्योपमने थाउखे वसे , माटे एनुं जंबू वृद्ध एवं शाश्वतुं नाम. हवे.ए महाविदेहने विषे देवकुरु नामे युगलीयानुं देत्र वखाणे बे. मेरुने दहण दिसे अने निषध पर्वतने उत्तर दिशिये देवकुरु नामे युगलियान क्षेत्र ते 11742 योजन उपर बे नाग पोहोळु बे ते श्रावी रीतेः-गजदंत गिरिमध्ये मेरुप र्वत थकी दक्षिणदिशिने विषे देवकुरुक्षेत्र, श्रने मेरुथी उत्तर दिशिने विषे उत्तरकुरुदे .ए बे युगलियाना क्षेत्र ते अर्डचंजमाने आकारे रह्यांबे, तिहां महाविदेह क्षेत्रनुं विस्तार तेत्रीश सहस्र बसेने चोरासी योजन अने उपर चार कला. तेमांदेथी मेरुनु विष्कंन दशसहस्र योजन काढिए तेवारे तेविश सहस्र बसेने चोरासी योजन अने उ पर चार कला उगरे तेहy अर्ड करीये तेवारे अगीआर सहस्र आठसेने बेतालीस योजन उपर कला बे थाय एटलो विष्कंन कुरुक्षेत्रनां मध्यनागने विषे जाणवो. एमां चित्रकूट नामे बे पर्वत, ते निषध प्रवर्तनी उत्तरदिसि थकी 34 योजन उ पर सातीया चार नाग अबाधाये सीतोदा नदीने पूर्वे अने पश्चिमे बे तटने विषे.ए बे पर्वत , तेनुं प्रमाण जेम उत्तर कुरुमां बे यमक पर्वत, कयुं तेम जाणवू. तथा ए बे चित्र कूटनी उत्तरदिसि थकी 34 योजन उपर सातीया चार लागनी Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DERA B INMENEPACMNRENCHEMONICINISANSAREEKARANRARTHRIRAIMINARRANTARNATASATASKEBARAHIRISEDICIN merimeHINAHamameranaaranMATRagrwalpaparwarmaraNIRDESEEINORUADRINADIMIRRomanumarma E ne HERE AWATINDIA नवकूटालंकृत निषधपर्वतस्थापना अिधकृपालंकृत मक्षा हिमवेतपर्वत स्थापना A हरियर्ष युगल क्षेत्र. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाविदेह क्षेत्रनी स्थापना नीतर्गत 3 वह नीलवंत पर्वत निषध पर्वतना कूट पासे चंद्र सूर्यनो नदय थाय ने तेनी स्थापना. 11 WWW. Ma MB oA निषध SIN Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ........................0.000000000000000 ............................ नवकूटासकृत माल्यवंत गजट बत्रीश विजयमांदेला वैताढ्य पर्वत || स्थापना. 12 जटेत गिरि स्थापना. ............................ सहस्रांक कूट . 0000000 0000000000000000000000...... जंबुशक्ष शोल विजय माहेबी 4 शोल विजय माहेबी एक विजयनी स्थापना. रक्तवती नदी सिंधनदी नीलवंत पर्वत Kalim | गंगानदी रक्तानदी यवन काचल शा LILAM मनुष्य युगविक उत्तरकुरु स्थापना. || सिंधु नदी ظلال اياز रक्तवत्तीनदी / ATE FILES FELECT FEESEE (राजधा الخلا कहाधिविना जर रक्तानदी गंगा नदी शोख विजय मांहेली एक विजयनी स्थापना. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुवृद व AWARA ............... ....... . . ...! પા. 61 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीवीपना नकशानी हकीगत. अबाधाये प्रथम निषध नामे पहले, तेमज तेथकी तेटली अबाधाये बीजो देव कुरुष ह, त्रीजो सूरप्रनसह चोथो सुलसह अने पांचमो विद्युत्प्रन ए पांचे उह देवकुरु क्षेत्रमांहे सीतोदा नदीनां जाणवा ए सर्वजह पद्मसह सरखा एक हजार योजन लांबा श्रने पांचशे योजन पोहोला अने दश योजन ऊंमा जाणवा तथा प्रत्येक प्रहना एक दहण अने बीजो उत्तर ए बे दिसिनेविषे बे बारणा जाणवा. अने ए पहना जे अधि टायक देव , ते सर्व पोताना पहने नामे जाणवा. ए अहथकी पूर्व अने पश्चिम दिशे दस योजन वेगलाइए एकेक उहना एकेक पासाने विषे दस दस कंचनगिरि बे. ते कंचन गिरि वैताढ्यनां कूट सवाब योजन , तेथी सोलगुणा मोटाबे. एहवा कंचन गिरि जंबू छीपने विषे सर्वे बसे जाणवां ते केम ? देवकुरु तथा उत्तरकुरुना दश हजे, ते एकेक प्रहने बे पासे दश दश गुणतां वीश थाए ते वीशने दशवार गुणतां बसे पूरा थाय. हवे कुलगिरि, यमकपर्वत, पांचजह अने मेरु एनां सात आंतरा कहे. आठसे चोत्रीस योजन उपर एक कलाना सात नाग करीए एहवे एक नागे सहित अगीबार कला एटबुं कुल गिरि, जमकपर्वत, पांच अह तथा मेरुनो प्रत्येके अंतर जाणवू ते केम ? देवकुरुनु विस्तार अगीआर सहस्र बाउसे बेतालीश योजन अने बे कलाडे, ते मांडेथी यमकपर्वत अने पांच छह तेणे रुंधेला जे ब सहस्र योजन , ते काढिए ते वारे अहावनसे बेतालीस योजन अने बेकला वधे तेने सात नागे वेचतां आपसे चो त्रीश योजन श्रावे शेष चार जगरे तेने उंगणीस साथे गणीए तेवारे हुत्तेर कला थाय तेनीसाथे मूलगी बे कला एकठी करता अठोत्तर कला थाय ते वली सात नागे वेचतां जंगणीसी श्रगीआर कलाआवे. वली एक कला उगरे तेहना सात नाग करिए तेवारे एक नाग थावे एटलुं कुल गिरि, जमकपर्वत, पांच मह तथा मेरुनु अंतर जाणवू. तथा ए देवकुरुना पश्चिमाईना मध्यनागे रूपानी पीउनपर शामलीवृदडे, तेना उपर गुरुम देवतानो निवासबे, तेनो वर्णन सर्व जंबूवृदनी पेरे कहेवो. पण एनां बार ना मन कहेवा तथा श्हां देवकुरुनामे देव वशेने, तेथी एनुं देवकुरु एवं शाश्वतुं नाम बे. __ हवे जंबूछीपना मध्यने विषे मेरुपर्वत , तेनुं स्वरूप कहेजेःमेरुपर्वत कनकमय वाटलुं गोलाकारे. नवाणु हजार योजन ऊंच पणे अने एक ह जार योजन नीचे धरतीमा उमपणे, सरवाले एक लाख योजन ऊंचो , तथा मूले धरती मां कंदे १००ए० योजन उपर अगीआरीश्रा दश नाग एटलो पोहोल पणेने, अने धर तीतले दश हजार योजन पोहोल पणेने,पली जंचा जातां मात्राये मात्राये घटतो गयो बे, एटले एक योजन ऊंचो जतां एक योजननोग्यारमो नाग,ग्यार योजने एक योजन, शो Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 अढीकीपना नकशानी हकीगत. योजने नव योजन अने उपर अगीारी एक नाग, हजार योजने नेवं योजन अ ने अगीआरीया दश नाग उपर एरीते पोहोल पणामां घटतो घटतो थको उपरे शि खरने तले एक हजार योजन पोहोल पणे थयो बे. __ एनी परिधि मूलमां३१५१० योजन उपर अगीबारीश्रा त्रण नाग तथा धरती तले समजूतला पाशे 31653 योजन अने उपरे शिखरने नले 3162 योजन कांश्क जाजे रा , ए पर्वत उँधो करेलो गोपुबने संस्थाने संस्थित बे, सर्व रत्नमय बे, एक पद्मवरवे दिका अने एक वनखंड तेणे करी चोफेर वीट्यो बे, एनां त्रण कांगडे, तिहां प्रथम धरतीमां हजार योजननो काम ते माटी, पाषाण, वज्ररत्न तथा काकरा ए चार पदार्थ नो बे, तथा पृथ्वी थकी सोमनसनामा वन सुधी बीजो काम त्रेशठ हजार योजन प्र माण , ते स्फाटिकरत्न, अंकरत्न रूप तथा कांचननो , तथा त्यांथी उपर बत्रीश हजार योजननो त्रीजो काम ते रक्तवर्ण कनकनो , ए मेरुनां त्रण नाग कह्या. ए मेरु पर्वतने विषे चार वन , तेनां नाम कहेडे, एक नशालवन, बीजुं नंदनव न,त्रीजु सोमनस वन, चोथुपंक वन.तिहां प्रथम संनूतलाने स्थाने जमशाल वन डे, तेना चारगजदंत गिरिये तथा सीता अने सीतोदा महानदीये करी आठ जागे वेहेंच्यु थकुंयाउ थया बे,ते नशाल वन मेरु पर्वतने पूर्व पश्चिम दिसे बावीश बावीश हजार योजन लांब पणे बे, अने उत्तर दहणे अढीशे अढीशे योजन पोहोल पणे बे, देवकुरु ने उत्तर कुरु माहे पे, ते वन पद्मवर वेदिका अने वन खंडेकरी चोफेरे वीट्युबे. ___तथा मेरु पर्वतनी पूर्वादि चारे दिसे नशाल वनमां पचाश पचाश योजन अवगा ही जाश्ये तिहां प्रत्येक दिसिये सिहायतन एटले श्री तीर्थंकर नगवाननुं देहेरंबे, ते पचाश योजन लांब पणे, पचीश योजन पोहोल पणे अने बतीश योजन ऊंच पणे बे, ए वा चारे दिसे मली चार सिहायतन , तथा चार विदिसिने विषे पचाश योजन अवगा ही जाश्ये तिहां प्रत्येक विदिसिये चार चार नंदा पुष्करणी शाश्वती वाव्य , तिहांप्र थम श्शान कूणनी चार वाव्यनां नाम कहे, एक पद्मा, बीजी पद्मप्रना, त्रीजी कुमुदा, चो थी कुमुदप्रना ते पुष्करणी पचाश योजन लांब पणे, पचीश योजन पोहोल पणे अने दश योजन ऊंम पणे , वेदिका वन खंडे सहीत , ते चार पुष्करणीनी वच्चे श्शाने नो प्रासादावतंसक डे, ते पांचशे योजन ऊंच पणे अने अढीशे योजन पोहोल पणे . तेमज अग्निकूणे उत्पलगुस्मा, नलिना, उत्पला अने उत्पलोज्वला ए चार वाव्य पू क्ति प्रमाण वाली तेनी वच्चे सौधर्मेनो परिवार सहीत प्रासादावतंसक जाणवो तेम ज नैऋतकूणे भुंगा, गनिन्ना, अंजना अने अंजनप्रजा ए चार वाव्य वचे. पण सौ धर्मेनो परिवार सहीत प्रासादावतंसक जाणवो तथा वायूकूणे श्रीकांता, श्रीचंदा, Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 63 अढीदीपना नकशानी हकीगत. श्रीमहिता अने श्रीनिलया ए चार पुष्करणी वच्चे इशानेछनो प्रासादावतंसक जाणवो तेमज ए नशाल वनमां पूर्वोक्त जे जिन नवन अने प्रसाद कह्या तेना पाठ आं तराने विषे आठ करिकूट हाथीने श्राकारे , ते प्रत्येक कूट पांचशे योजन ऊंच पणे बे,श्रने सवासो योजन धरतीमांबे, ते आठे कूटने नामे आटे कूटना देवता प्रमुखनी राजधानी प्रमुख सर्व कहेवी. ते आठ कूटनां नाम कहे , एक पद्मोत्तर दिग्गज हस्ति कूट बीजो नीलवंत दिग हस्ति कूट, त्रीजो सुहस्ति दिग्रहस्ति कूट, चोथो अंजन गिरि दिग्रह स्ति कूट, पांचमो कुमुद दिग हस्ति कूट, बहो पलास दिग्रहस्ति कूट, सातमो अ वतंसहस्ति कूट, श्राठमो रोचना गिरिदिग हस्ति कूट. ए आठ दिग्गज कूट कह्या. ए नशालवनने विषे मेरुनी चारदिशि ते सीतोदा तथा सीतानां प्रवाहे रंधी , ते माटे पूर्वोक्त जिन जवन जे ले ते नदीनां तट उपरे बे, अने प्रासाद जे ते गज दंतगिरिनी पाशे , अने जिननवन तथा प्रासादनी वच्चें ए आठ करी कूट ने. ते नशाल वन थकी पांचशे योजन ऊंचा जश्ये तिहां बीजो नंदनवन , ते पांचशे योजन चक्रवाल पणे फरतुं पोहोल पणे वलयाकारे मेरु पर्वतने चोफेर वींटीने रडं , तिहां एए५४ योजन उपर अगीआरीया उनाग एटलुं नंदन वन थकी बाहेर मेरु पर्व तनुं पोहोल पणु , तथा ३१४७ए योजन कांश्क जाजेरा एटली परिधि , तथा उa योजन उपर ग्यारीया नाग एक्लो नंदन वन माहे मेरु पर्वत पोहोल पणे , तथा 20316 योजन उपर आठ नाग एटली नंदनवननी माहे मेरुनी परिधिबे, ते नंदनवन पद्मवरवेदिका अने वन खंडे करी वीट्यु , एनी पण चार दिसाये चार सिकायतन न शाल वननी पेरे जाणवा अने चार विदिसिने विषे शोल पुष्करणी जाणवी तेनां नाम कहेजेः-इशान कूणे नंदा. नंदोत्तरा, सुनंदा अने नंदीवईनी. तथा अंनि कूणे नंदिपणा, अमोघा, गोस्तूपा अने सुदर्शना. तथा नैरुतकूणे नमा, विशाला, कुमुदा अने पुमरिकि णि तथा वायू कूणे विजया, विजयंति, जयंति अने अपराजिता. शहां पण चारचार वाव्यनी वच्चे नशाल वननी पेरेज सौधर्म तथा श्शानेंना प्रासादावंतसक जाणवा. ___ तथा नंदनवनमां जिन नवन अने प्रासादनां आठ अांतराने विषे दिकुमारिका नां आठ कूट , ते कहे डे, नंदन वन कूट, मेरु कूट, निषध कूट, हिमवंत कूट,रज त कूट, रुचक कूट, सागरचित्र कूट, वज्र कूट, ए आठ कूट ले. तेमां दिग्रकुमारिकाव से , ते संजूतलथी एक सहस्र योजन ऊंची बे, केमके पांचशे योजन नंदन वन तेना उपर वली पांचशे योजन ऊंचा कूट , एरीते हजार योजन उपर जवन माहे वसे बे, माटे एने जवलोक वासिनी कहीये. तेनां नाम कहें. मेघंकरी, मेघवती, सुमेघा हेममालिनी, सुवत्सा, वत्स मित्रा, वज्रसेना अने बलाहिका ए आप कुमारिका जाणवी Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60 अढीछीपना नकशानी हकीगत.. अने नवमो बलकूटने, ते हजार योजन ऊंचो बे, माटे ते सहस्रांककूट मध्ये गएयुं बे, ते कूट श्शान दिसिना प्रासादथी पण इशान कूणे नंदन वनने बेडेने, ते माव्यवंत गजदंत. ना हरिस्सह कूटने प्रमाणे , इहां पांचशे योजन- पोहोढुं नंदन वन अने पांचशे यो जननां कूट मेरुथी पचाश योजन वेगलांडे, ते माटे शामा चारशे योजन नंदनवन माथे अने पचाश योजन अधर रह्या बे, तेम नवमुं बलकूट तो नंदनवन माथे थोडंरद्यु, अने आकाशे अधर घणुं रद्युबे,ए बलकूट उपर बलनामा देवतानी राजधानी कही जे. __ हवे नंदनवन थकी शामा बाशठ हजार योजन ऊंचा जश्ये तिहां त्रीजु सोमनस वन बे, ते पांचशे योजन चक्रवाल पणे पहोवू मेरुने चोफेर वलयाकारे वींटीने रद्युबे, 4272 योजन उपर अगीबारीश्रा श्राप जाग एटलोमेरु पर्वत बाहेर पोहोल पणेने तथा 13511 योजन उपर ग्यारीश्रा नाग एटलो बाहेर परिधि पणे , 3272 योजन उ पर अगीपारीश्रा था नाग एटलो सोमनस वननी मांदेली कोरे मेरु पोहोल पणे , तथा १०३४ए योजन उपर अगीपारीश्राःत्रण नाग एटलो मांहे परिधि पणे , ए सो मनसवन एक पद्मवरवेदिका अने वनखमे करी चोफेर वींव्युंडे, शहां कूट नथी माटे कूट वर्जीने शेष सिकायतन तथा पुष्करणी अने प्रासादावतंसक सर्वनी वक्तव्यता तेमज नंदनवननी पेरे कहेवी. शहांनी शोल पुष्करणीनां नाम कहेजेः-श्शानकूणे सुमना, सो मनसा, सौमनस्या अने मनोरमा. तथा अग्निकूणे उत्तरकुरु, देवकुरु, वारिषेणा श्रने सरस्वति. तथा नैऋतकूणे विशाला, माघजना, अजयशेना अने रोहिणी. तथा वायुकुं णे जना, नरोत्तरा, सुनना अने नजावति ए नाम जाणवा. शहां कूट नथी. सोमनस वनथकी बत्रीश हजार योजन ऊंचा जश्ये तिहां मेरुपर्वतना शिखरतले पंमक नामे वन, ते ४एव योजन चक्रवाल पणे वलयाकारे मेरुनी चूलीकाने चोफेर वींटीने रस्सु बे, तिहां 3162 योजन जाजेरा मेरुनी बाहिर परिधि . __पंकवनना मध्यनागे वच्चे इहां मेरुपर्वतनी चूलिका चोटली रूप दे, ते चालीश योजन उंच पणे बे, मूलमां बार योजन पोहोल पणे , वच्चमां आठ योजन पोहोल पणे बे, मूलमां शामत्रीश योजन जाजेरा परिधि पणे अने उपर बार योजन जाजेरा परिधि पणे , एक योजन मूल थकी ऊंचा जश्ये तेवारे पोहोल पणे योजननो पांचमो नाग घटे, एम पांच योजने एक योजन घटे, एगोपूबने संस्थाने संस्थित, सर्व वैडूर्य मय नीलीबे, ते चूलीका एक पद्मवरवेदिका अने एक वनखंझे करी चोफेर वींटेली बे, तेना उपरे मध्यनागे एक सिझनगवानुं यायतन एटले घर बे, अर्थात् देहरु बे, ते एक कोश लांब पणे, अईकोश पहोल पणे अने 1540 धनुष उंच पणे बे. ते पंमक वनने विषे पूर्वादि चार दिसाये चार सिहायतन तथा चार विदिसिनी शोल Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 65 अढीहीपना नकशानी हकीगत. पुष्करणीनो तथा चार प्रासादावतंसकनो वर्णन पूर्वला वननी परे यावत् सौधर्म इशाने जना प्रासाद पर्यंत शहां पण जाणवो शहांनी शोल पुष्करणीनां नाम कहे. इशान कूणे पुंड्रा, पुंडप्रना, सुरक्ता अने रक्तवति. तथा अग्निकूणे दीररसा, छुरसा, अमृतरसा अने वारुणी. तथा नैऋत्यकूणे शंखोतरा, शंखा, शंखावत्तरा अने बलादिका तथा वायु कूणे पुष्पोत्तरा, पुष्पवती, सुपुष्पा अने पुष्प मालिनी ए शोल वाव्यनां नाम कह्या. हवे पंमकवननेविषे श्रीतीर्थकरने जन्मानिषेक करवानी शिला केटली , ते कहे बे. तिहां पूर्व दिसिने बेहेडे पांडुसिला , ते उत्तर दहण लांबी पांचसे योजन अने पूर्व पश्चिम अढीसे योजन पोहोल पणे बे, चार योजन जाम पणे सर्व अर्जुन सुव र्णमय दे, अर्कचंडाकारे बे, सिलानी वक्रता चूलिका सादामी, वेदिका अने वनखं में करी चोफेर वींटी, तेना चारे दिसे चार सोपान पगथालीयाडे, यावत् तोरण पर्यंत तथा देवता बेसे वे इत्यादि वर्णन जाणवो. तेना मध्य नागे एक उत्तरदिसि अने वी जो दक्षण दिसि ए वे सिंहासन, ते शिवाना लंबा पोहोलो तथा उंचाश्ने आठ हजारमे नागे , एटले पांचशे धनुष लांब पणे अढीशो धनुष पोहोलपणे अने चार धनुष उंचपणे, तिहां उत्तरदिसिना सिहांसन उपर ते दिसितरफना कलादिक आठ विजयना तीर्थकरनो जन्मानिषेक थाय तथा जे दहण दिसिनुं सिंहासन , ते उ परे ते दिसिना वबादिक आठ विजयना तीर्थकरनो जन्मानिषेक थाय. तथा दक्षण दिसिने नेहेमे पांमुकंबल नामे शिलाने, ते पण अर्जुन सुवर्णमय, ते शिला पांडुशिला प्रमाणे लांबी पोहोली , तेना उपर एकज सिंहासन , तिहां द क्षिणदिशि तरफनां नरतदेत्रमा उत्पन्न थयला तीर्थकरनो जन्मानिपेक थाय ने, के मके जरततेत्रमा एक समये एकज तीर्थंकर उपजे , माटे एकज सिंहासन बे. तथा पश्चिम दिसिने बेहेमे रक्त शिला नामे शिला , ते अर्जुन सुवर्ण मयडे, एनी लं बाइ पोहोलाइ पूर्वली परे जाणवी. तेना उपर वे सिंहासन , तिहां पश्चिम महावि देहमा उत्पन्न थयेला तीर्थंकरोनो जन्मानिपेक थाय बे, ते श्रावी रीते के ददण दि सिना सिंहासन उपर, पद्मादिक आठ विजयना तीर्थंकरोनो जन्मानिपेक थाय अने उत्तरदिसिना सिंहासने, वप्रादिक आठ विजयना तीर्थंकरोनो जन्मानिषेक थाय, तथा चूलिकाने उत्तरदिसे पंझकवनना उत्तरदिसिने नेहेमे रक्तकंबल नामे शिला ने, तेपण अर्जुन सुवर्णमय , तेनो वर्णन पूर्वली परे जाणवो तेना मध्य नागे एक सिंहासन , तिहां ते दिसिमां आवेला ऐरवत देवना तीर्थंकरनो जन्मानिषेक थायडे, कारण के ऐरवतमां पण एक समये एकज तीर्थंकरनो जन्म थाय बे, तेथी एकज सिंहासन Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. उत्तर तरफनी शिला उपर , अने महाविदेहना पूर्व पश्चिमे प्रत्येके एक समये एके की बाजुये बे बे तीर्थंकरनो जन्म थाय, सरवाले चार तीर्थकर एक समये जन्मे, माटे पूर्व पश्चिमनी शिला उपर जन्मानिषेक करवाना बे बे सिंहासन बे, सरवाले मेरुनी चार शिला उपर सिंहासन, हवे मेरुने विषे सर्व सिझायतनादिकनी संख्या कहे. 1 जमशालवने. 2 नंदनवने. 3 सोमनसवने. पांडुकवने. 4 सिकायतन 4. 4 सिकायतन 44 सिहायतन 4.4 4 सिहायतन 4. ४प्रासादावतंसक 4 प्रासादावतंसक 4 ४प्रासादावतंसक. 44 प्रासादावतंसक. १६पुष्करणीवाव्य१६ 16 पुष्करणीवाव्य 16 16 पुष्करणीवाव्य 16 16 पुष्करणी. 16 7 दिसिह स्तिकूट ए कूट. 1 चूलिकाये सिकायतन 4 अनिषेकशिला. मेरु पर्वतनां शोल नाम हेतु सहीत कहे 1 मंदरनामे देवता अधिपतिले माटे मंद रपर्वत 2 मेरु 3 मनने रमे ते माटे मनोरम 4 नबुंडे दर्शन जेनुं तेमाटे सुदर्शन 5 पोतेज रंजादिके करी प्रकाश डे माटे स्वयंप्रन 6 सर्व पर्वत थकी उंचो तथा श्रीतीर्थक रना जन्मानिषेक थाय ने, माटे गिरिराज 7 अनेक प्रकारना रत्ननो समूह एने विषेत्रे माटे रत्नोच्चय - पांसुशिलादिक शिलानो समूह , माटे शिलोच्चय ए मेरु थकी चारे दिसे लोक सरखो समनागे ने माटे लोकनुं मध्य 10 लोकना मध्यपणा माटे लोकनानि 11 अत्यंत निर्मल पणा माटे बाबो 12 सूर्य चंडादिक श्रावर्त प्रदक्षणा करे, माटे सूर्यावर्त 13 सूर्यादिक ग्रह, नक्षत्र अने तारा एनी पूंठे फरेने माटे सूर्यावर्त 14 सर्व पर्व तथकी उत्तम माटे उत्तम 15 मेरुना मध्यवर्ति अष्टप्रदेशिक रुचक थकी दिसि विदिसि नीकली , माटे दिशादि 16 सर्व गिरिमांहे उंच पणे करी मुकुट सरखो माटे अवतंस. श्हां मंदर नामे देवता एक पव्योपमायुये वशेडे, तेथी एनुं मंदर एवँ शाश्वतुं नाम ले. . हवे महाविदेह मांहे बत्रीश विजय , ते वखाणे बे. ___ मेरु पर्वतना जशाल वन थकी पूर्वदिसि अने पश्चिम दिसिने विषे प्रथम बे विजय पठी बे वक्षस्कारा पर्वत वली बे विजय तेवार पड़ी बे अंतरनदी वली बे विजय एम अनुक्रमे एके कि दिसाये शोल विजय तथा आठ वदस्कारा पर्वत अने अंतरनदी थाय तेवारे बे पासाना बत्रीश विशय तथा शोल वक्षस्कार पर्वत अने बार अंतरनदी थाय. हवे बत्रीस विजयतुं पोहोलपणानुं प्रमाण कहेले. तिहां बावीससे बार योजन तथा एक योजनना श्राव नाग करिए तेहवा सात नाग उपर एटलुं एकेका विजयतुं पोहोलपणुं जाणवू. तथा वदस्कार पर्वत शोल , ते एकेको पांचसे योजन पोहोलो . तथाबार अंतरनदी बे,ते एकेकी एकसोने पचीस योजन पोहो Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी दकीगत. ली. हवे ए विजयादिनुं पोहोलपणुं जाणवानो उपाय लखेडे. चउपन्न सहस्र योजन नूमि, मेरु अने नशालवने संधी. तथा चार सहस्र योजन नूमी, वदस्कारा पर्वतोए संधी, तथा सातसेने पचास योजन नूमिना अंतरनदीए रुंध्याने, तथा पांच सहस्र पाठसे चुमालीस योजन नूमी, बे वनमुखे रुंधी ए सर्व योजन एका करिए तेवारे चोसठ सहस्र अने पांचसे चोराणु योजन थाय. तेने एक लद योजन प्रमाण जे जंव हीप , ते मांहेथी काहामीए. तेवारे पांत्रीश सहस्र चारसे ने ब योजन गरे. तेने सोल विजय बे, माटे सोल जागे वेहेंचीए तेवारे बावीससे अने बार योशन लाने अने उपर चनद योजन गरे तेना प्रत्येक योजनना श्राठ नाग करिए तेवारे एकसोने बार जाग थाय. ते सोल नागे वेंचतां पाठीश्रा सात नाग लाने एटले एकेक विज य, परिमाण बावीससे ने बार योजन उपर थाठी सात नाग एटलुं जाणवू. हवे ए विजया दिकनुं लांबपणुं कहे. सोल हजार पांचसेने बाणु योजन उपर बे कला एटबुंए सर्व विजय तथा वदस्कार तथा अंतर नदी ए सर्वनुं प्रत्येक लांबपणुं जाणवू. वली शीतोदा तथा शीताने अंते पूर्व तथा पश्चिम दिशे जे चार वनमुख , तेदनुं पण एटबुंज लांबपणुं जाणQ. हवे वदस्कार पर्वतर्नु उंचपणुं कहे . वदस्कार पर्वत गजदंत गिरिनी पेरे उंचाने, जेम गजदंतगिरि कुल गिरिने समीपे चारसे योजन ऊंचाने, बेहेडे मेरुपर्वतनी पाशे पांचसे योजत उंचाने, तेम ए वक्षस्कार पण कुल मिरिने समीपे चारसे योजन ऊंचा,अने नेहेमे शीतोदा तथा शीताने समीपे पां चसे योजन उंचावे. हवे सोल वक्षस्कार पर्वतनां तथा बार अंतरन दिनां अने बत्रीश विजयनां नाम कहे. ए सर्व मान्यवंत नामे जे गजदंतगिरिजे, ते थकी प्रदक्षिणावर्ते ने. तिहां प्रथम सोल वदस्कारनां नाम कहे. एक चित्रकूट, वीजें वर्मकूट, त्रीजु नलिनीकूट, चोथं एकशेलकूट, पांचमुं त्रिकूट, बहुं वैश्रमणकूट, सातमुंअंजन, आठमुं मातंजन, नवमुं अंकापाती, दशमुं पद्मापाती,श्र गीपारमुं आशीविष, बारमुं सुखावह, तेरमुं चंड, चौदमुं सूर. पंदरमुं नाग अने सोलमुं देव, ए सोल वदस्कार गिरिनां नाम जाणवां. ए एकेका वृदस्कार उपर चार चार कूट तेमां एक तो सिहायतनकूट बीजं ते पर्वतने नामेकूट, त्रीजुं पाबला विजयने नामेकूट, अने चोथु आगला विजयने नामेकूट ए चारकूट सर्व वृदस्काराने विषेचे, तिहां सिका यतनकूट उपर श्रीसिजनुं देहेरं होय अने शेषकूटने विपे तेने नामे देवताना प्रासा दावतंसक बे. ए सर्व पर्वतना अधिपति देवो पण एज नामे जाणवा अने सर्व पर्वत पद्मवरवेदिका तथा वनखंडे करी वींटेला बे, यावत् देवता बेसेडे, इत्यादि सर्व कहे. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 67 अढीहीपना नकशानी हकीगत. हवे बार अंतर नदीनां नाम कहे. - ग्राहावती, उहावती, पंकावती, तप्तजला, मत्तजला, जन्मत्ता, खीरोदा, शीतश्रोता, अंतर्वाहिनी, जम्मिमालिनी, गंजीरमालिनी, फेनमालिनी, ए नामे बार अंतर नदी जाणवी. ते धुरे तथा नेहेमे सर्व नदिढ दशयोजन प्रमाण जंडा एवा जे नीलवंतने नीचे उ कुंम , तथा निषधने नीचे पण ब कुंम बे, ते थकी नीकली एवी ए बार अं तर नदी ते कुंडने नामेज जाणवी. जेम ग्राहावत कुंड थकी ग्राहावती नदी नीकली एरीते सर्व नदीने नामे कूडनां नाम पण जाणवा, अहिंयां नदीनी देवीनुं छीप प्रमु ख जे विशेष प्रकारनी वक्तव्यता , ते सर्व रोहितांशा नदीने परिमाणे जाणवी. ए सर्व अंतरनदी पद्मवर वेदिका अने वनखंमे करी वींटेली . हवे बत्रीश विजयनां नाम कहेले. एक कछ, बीजो सुकब, त्रीजो महाकब, चोथो कलावती, पांचमो आवर्त, हो मंग लावत, सातमो पुष्कलावत, श्राठमो पुष्कलावती, नवमो वत्स, दशमो सुवत्स, अगी आरमो महावत्स, बारमो वत्सावती, तेरमो रम्य, चन्दमो, रम्यक्, पंदरमो रमणिक,सो लमो मंगलावती, सत्तरमो पद्म, अढारमो सुपद्म, जंगणीशमो महापद्म, वीशमो पद्माव ती, एकवीशमो शंख, बावीशमो कुमुद, त्रेवीशमो नलिन, चोवीशमो नलिनावती, पच्ची शमो वप्र, बबीशमो सुवप्र, सत्तावीशमो महावप्र, श्रावीशमो वप्रावती, उंगणत्रीश मो वल्गु, त्रीशमो सुवल्गु, एकत्रीशमो गंधिल अने बत्रीशमो गंधिलावती. __ए कछादिक बत्रीश विजय जे तेमा पूर्व अने पश्चिम दिशि गत जे लांबा वैताढ्य पर्वतबे, तेणे जरत तथा ऐरवतनी पेरे विजयना अर्क कीधां बे, एटले एकेकी विज यना बे बे खंड कीधां बे, वली एकेका विजयने विषे बे बे नदी , तेणे करी उखम कीधां बे, तथा ए प्रत्येक विजयमां नदीनी दिशिये दहणार्ड विजयने विषे दहण नरतनी अयोध्या नगरी सरखं। बत्रीश विजयने विषे बत्रीश नगरी बे. . ए बत्रीश नगरीउनां नाम अनुक्रमे कहेले. . देमा, देमपुरा, अरिष्टा, अरिष्टपुरा, खडी, मंजूषा, षनपुरी, पुंगरिगिणी, सुसीमा, कुंडला, अपरावती, प्रनंकरा, अंकावती, पद्मावती, शुजा, रत्नसंचया, अश्वपुरा, सिंह पुरा, महापुरा, विजयपुरा, अपराजिता, अपरा, अशोका, वीतशोका, विजया, वैजयंती, जयंती, अपराजिता, चक्रपुरा, खड्गपुरा, अवध्या अने बत्रीसमी अयोध्या नगरी जाण वी. ए बत्रीस नगरी ते नदिनी दिशिए जे विजयतुं अर्डने तेमांहे जाणवी. ए प्रत्येक राजधानिमां ते ते विजयने नामे चक्रवर्ति थाय जेम कहविजयनी देमा नामे राज धानीमां कछ चक्रवर्ति थाय तेम सर्व विजयोने विषे जाणी लेवु तथा कळविजयमां Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औMov ONARAYANV HMANAMAVIAVINA ताजासागर जंबुवृतनी पीठिकाने फरनी पद्मवर वेदिका तथा वनखभने प्रासादीनी स्थापना " उत्तर कुरुक्षेत्रना पूर्व जंब वृक्षपीठिका स्थापना मेरु पर्वत उपरनानंदन वननी स्थापना. भद्रसालवना मेरुना सोमनसवननीस्थापना. s पा 68 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - / मेरुपर्वत स्थापना. LAA A ARTISin ZALERA HIR IPL Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - उत्तर + रतकं बलाशिला पांमुकवनने विषे श्री तीर्थकरने जन्माभिषेक करयानी . शिक्षा तथा सिंहासननी स्थापना. 44 पांमकशिजा/A पश्चिम मेरुपर्वतनपर पामुक वन स्थापना. रक्त शिला 43 पांडु शिला पामुफैबला शिक्षा दक्षिणका (क्तकदसायला मुकबलाशिला CIRCUMDIVIDIS रक्तशिला inाना STUDI नवकूटाखंकृतनीवंतपर्वतस्थापना 42 सीताप्रपात कुं. नारिकांनाप्रपान पश्चिम Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रूपीपर्वत शिवरीपर्वत) ऐरण्यवंतयुगलक्षेत्र AWANI नरकाता रम्यक क्षेत्र युगलियार्नु पीपर्वत ANVER माल्यवंत वृत्त / AAMA वैतादय AM नारिकानानदी H नीलवंत पर्वत DINNI IAL एकादशकूटाबंकृत LEONIA शिरवरीपर्वतः पुमरिकद्रह AAAAAAAAAAN DOMoयगाanandy A / षट्रवंडालंकृतऐवत क्षेत्र रक्ताप्रपातकुम रक्तवती प्रपात कुम 2 इषभकट वैतादयपर्वत रखमनपा गुफा खमपात नतिमिस्रा गुफा. राजधाप अष्टकूटालंकृत रूपीपर्वतः Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ए अढीछीपना नकशानी हकीगत. कछ नामे देवता एक पढ्योपमायु वालो वशे , तेम सर्व विजयने विषे ते ते विज यने नामे देवता पण कहेवा. हवे विजयनी नदी कडे. निषध तथा नीलवंतने समीपे जे कुंडले, ते थकी नी कली एवी गंगा अने सिंधु, नामे जे नदी , ते कछादिक आठ विजय तथा पद्मादि क आठ विजय मली शोल विजयने विषे ए बे बे नदी जाणवी. अने शेष वीजा जे वनादिक श्राप विजय तथा वप्रादिक आठ विजय ए शोल विजयने विषे रक्ता अने रक्तवती नामा बे वे नदी बे, ते सर्व नदी वैताढ्य प्रत्ये नेदीने शीतोदा तथा शी तामांहे प्रवेश करे दे. ए कबादिक विजयथी दक्षणावर्त्त गणीये. हवे महाविदेह क्षेत्रने विषेपूर्व तथा पश्चिम दिशिए शीतोदा तथा शीतानदी जगतीने नेदीने ज्यां समुडमांहे मले . त्यां जगतीमांनी दिशि शीतोदा तथा शीता नदीने बन्ने बाजु चार वन मुख तेनुं जगतीनी विवदाविना पहोलपणुं गणत्रीशसेने बावीस योज ननुं शीतोदा तथा शीता नदीने समीपे जाणवू.पली संकोचता संकोचता निषध तथा नील वंतने पाशे वनमुखनुं विस्तार एककला जाणवी. हवे कुल गिरि थकी नदी दिशि जातां वांछित स्थानकने विषे वनमुखनुं विस्तार जाणवानो विधि कहे. निषध तथा नीलवं तने समीपे वनमुखनो विस्तार एक कला तो नदीने समीपे निषध तथा नीलवंत थकी सोल हजार पांचसेने बाणु योजन उपर बे कला जइए तेवारे वनमुखनो विस्तार केटबुं थाय ते जाणवा माटे ए पूर्वोक्त सोल हजार पांचसे ने वाणु योजननी कला करीए ते कला त्रण लाख पंदर हजार बसे ने पचाश थाय, तेने नदीने समीपे वनमुखनुं वि स्तार उगणत्रीससेने बावीश योजन, तेनी साथे गुणीए तेवारे बाणुकोडी अगीबार लाख साठ हजार ने पांचसे थाय, तेने ते देवना विस्तार त्रण लाख पंदर हजार बसे ने पचाश साथे नाग आपीए तेवारे उगणत्रीशसे ने बावीश योजन वनमुखनुं विस्तार थाय. ए प्रकारे ज्यां वांछिए त्यां वनमुखनुं विस्तार लाने. ए प्रत्येक वनमुख पद्मवरवे दिका अने वनखंडे करी वींटेला बे, यावत् देवता बेसे बे. इत्यादि सर्व कहेवं. हवे ए विजयादिकनो विस्तार एकगे करतां लाख योजन पूर्ण थाय ते कहे. पांत्रीस हजार चारसे ने उ योजन एटलो सर्व विजयनो विष्कं न जाणवो. अने वे वन मुखनो विष्कंन अहावनसे ने चुमालीश योजन , सातसेने पचास योजन अंतरनदीन पहोलपणुंडे, अने चोपन हजार योजन मेरु तथा जमशाल वन डे, ते केम के नशाल वनजे , ते मेरुथकी पूर्वदिशि अने पश्चिम दिशि बावीश बावीश हजार योजनबे. ते माटे बे बाजुना चुमालीश हजार योजन थया अने मेरुनो मध्य विस्तार दश हजार यो Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. जन . ए एकग करतां चोपन्न हजार योजन पूरण थाय तथा वक्षस्कार पर्वतर्नु वि स्तार चार हजार योजनडे, ए सर्व एकगे करिए तेवारे लाख योजन पूर्ण थाय जे. हवे अधो लोकमांहे गाम वखाणे... मेरुना समजूतलनी अपेक्षाए मात्राएं मात्राएं जूमी नीची थती जायजे. ते मेरुपर्वत थकी पश्चिमदिशिये बेतालीश हजार योजन नूमिने विषे गया पली त्यां एक हजार यो जन नूमी समजूतलथी उमी, त्यां अधोगामी माणस वसे. समनूतलथी नवसे योज न हेग अने नवसे योजन ऊंचा तिहां सुधी तिर्यो लोक कहीये तथा नवसेथी उंचुं ते उर्फ लोक कहीये श्रने नवसेथी नीचुं ते अधोलोक कहीये. ए महाविदेहनो विचारकह्यो. - जंबूछीपना महाविदेह संबंधि पूर्व पश्चिमनां लद योजन मेलक यंत्र. पूर्वदिसि. पश्चिमदिसि. अंग स्थानकनां नाम. योजनसंख्या |अंग स्थानकनां नाम. योजनसंख्या 1 सीतामुखवनजगतीसहीत.श्ए३२ १ए नशालवन पश्चिमदिसिये.२२००० शाठमी नवमी, विजय. 22122 20 बत्रीशमी, सत्तरमी विजय.२२१५ ३वरकारो पर्वत. 21 वरकारो पर्वत. | 500 सातमी, दशमी विजय. 22122 शएकत्रीशमी अढारमी विजयश्२१२२ ५अंतर नदी. २३/अंतरनदी. . 125 ६बही अगीआरमी विजय-२२१२ २४/त्रीशमी, उगणीशमी विजय.२२१५ वरकारो पर्वत. 25 वरकारो पर्वत. 500 जपांचमी, बारमी विजय. २६/उँगणत्रीशमी, वीशमीविज.२५१५ एअंतर नदी. | 125 २७अंतर नदी. | 125 १०चोथी, तेरमी विजय. 22124 अहावीशमी, एकवीशमी वि.२२१२ ११वकारो पर्वत. 500 एवकारो पर्वत. 500 १२त्रीजी चौदमी विजय. 2215 30 सत्तावीशमी, बावीशमीवि०५१५४ १३अंतर नदी. | 125 31 अंतर नदी. | 125 १४बीजी, पंदरमी विजय. 2154 ३२वीशमी, त्रेवीशमी विजय. 22124 १५/वरकारो पर्वत. 500 ३३/वकारो पर्वत. | 500 १६|पहेली, शोलमी विजयः 2154 ३४/पञ्चीशमी, चोवीशमी विजय.२२१२: 17 नशालवन पूर्वदिसिये. 22000 35 सीतोदा मुखवनजगतीस ए३५ रजमेरुपर्वतर्नु विष्कंन. 10 ३६|सरवाले. 100000 500 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. हवे तीर्थंकर तथा चक्रवर्ति प्रमुख क्या उपजे ते कहेले. श्रा जंबछीपने विषे जघन्य तो चार तीर्थंकर समकाले होय वली उत्कृष्टतो बत्री श विजयना बत्रीश अने जरत तथा ऐरवतना बे मलीने चोत्रीश समकाले होय. तथा वासुदेव, चक्रवर्ति अने बलदेव ए त्रण पुरुष जघन्यतो समकाले प्रत्येके चार चार होय श्रने उत्कृष्टा त्रीश होय. जेवारे चक्रवर्ति होय, तेवारे वासुदेव न होय, अने जेवारे वासुदेव होय, तेवारे चक्रवर्ति नहोय तेमाटे त्रीश समकाले होय, पण चोत्रीश नहीं य, बत्रीश विजय तथा जरत अने ऐरवत मली चोत्रीश देत्र उपजवाना जाणवा. हवे नीलवंत पर्वतनो विचार कहेजेःमहाविदेहने उत्तर दिसे अने रम्यकदेत्र युगलीयानुं तेनी दहण दिसे नीलवंत ना मा वर्षधर पर्वत बे, ते जेम निषध पर्वतनी वक्तव्यता कही तेमज लंबा पोहोलाइ शादिक एमां पण कहेवी अने यहां केशरी नामे उहजे, तेनी दक्षण दिसि थकी सीता महानदी नीकली थकी उत्तरकुरु माहे आवती बे यमक पर्वत तथा पांच पद प्रत्ये बे प्रकारे वेहेंचती थकी एनी वच्चे थश्ने चोरासी हजार नदीये पूराती पूराती नशालवन प्रत्ये श्रावती मेरुपर्वत पासे बे योजन अण पोहोती थकी पूर्वदिसि साहामी वली ते माल्यवंत नामे गजदंत पर्वतने नीचे नेदीने मेरुपर्वतनी पूर्व दिसे पूर्वमहाविदेह क्षेत्रने वे लागे वेहेंचती थकी एकेका चक्रवर्तिना विजयथकी अहावीश अहाबीश हजार नदीये पूराती पूराती 53200 नदीये सहीत थकी विजय नामा जंबूहीपना हारने नीचे जगती नेदीने पूर्व दिसे लवण समुरुमां जले, शेष अधिकार सीतोदा परे जाणवू. हां नारीकांता नदी, केशरी पहनी उत्तर दिसि थकी नीकली तेनुं अधिकार हरि कांता नदीनी पेरे जाणवू पण एटलुं विशेष जे गंधापाती वृत्तवैताढ्य पर्वतने एक योजन श्रण पोहोती थकी पश्चिम साहामी वली थकी समुजमा जले डे, शेष तेमज जाणवू. नीलवंत पर्वतना नव कूटनां नाम कहेजेः-१ सिझायतन कूट 2 नीलवंत कूट 3 पूर्व विदेह कूट 4 सीता कूट 5 कीर्तिदेवी कूट 6 नारीकांता कूट 7 अपर विदेह कूट G रम्यक्कूट ए उपदर्शन कूट ए सर्वकूट पांचशे योजनना जाणवा तथा ए पर्वतनो नीलोवर्ण, नीलीकांति, सर्ववैडूर्यरत्नमय नीलो , अने नीलवंत नामे देवता श्हां ए क पक्ष्योपमायुये वसे , माटे एन नीलवंत एवं शाश्वतुं नाम बे. हवे रम्यक् नामे युगलीयानुं देत्र कहेजेः-नीलवंतने उत्तर दिसे अने रूपी पर्वतने ददण दिसे रम्यक् क्षेत्र तेनुं वर्णन जेम पूर्वे हरिवर्ष युगल देवतुं कडं तेनी प रे जाणवं. तथा नरकांता नदीने पश्चिम दिसे अने नारिकांता नदीने पूर्व दिसेए क्षेत्रमा गंधापाती नामा वृत्तवैताढ्य पर्वतले, तेमां घणा कमल गंधापातीना वर्ण सरिखा रक्त Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ अढीकीपना नकशानी हकीगत. वणे ते उपर पद्मनामे देवता पढ्योपमायु वालो वसे तेमज ए रम्यक् देत्र पण घ णो रम्य मनोहर , तथा रम्यक् नामे देवता वशेडे, तेथी एनुं रम्यक् नाम शाश्वतुंडे. हवे रुक्मि (रूपी) पर्वत कहेजेः-रम्यक्त्र ने उत्तर दिसे अने हिरण्यवंत क्षेत्रने द दण दिसे रुक्मी पर्वत ते महाहिमवंतनी वक्तव्यताये जाणवो. इहां महापुंडरिक नामे अहले तेमांथी नरकांता नामा नदी दक्षण दिसेथी पूर्वोक्त रोहितानी परे पूर्व दिसे जाय ने तथा रूपकुला नदी उत्तर दिसेथी नीकली ते हरिकांतानी पेरे पश्चिम दिसे जायजे. ___ ए रूपी पर्वत उपर श्राप कूट तेनां नाम कदेः -1 सिझायनकूट 2 रुक्मीकूट 3 रम्यक्कूट 4 नरकांता कूट 5 बुझिदेवीकूट 6 रूपकुलाकूट हैरएयवंतकूट 7 मणिकां चनकूट ए सर्व कूट पांचशे पांचशे योजननां ने ए पर्वत रूपामय बे रूपानी पेरे कांती अने रुक्मिनामा देवता पस्योपमनी स्थितिये वशे माटे एनुं रुक्मि एवं शाश्वतुं नाम __ए रुक्मी पर्वतने उत्तर दिसे अने शिखरी पर्वतने दक्षण दिसे हैरण्यवंत नामे युगल क्षेत्र के तेनो अधिकार हेमवंत देवनी पेरे जाणवो. यहां सुवर्णकुला महा नदीने पश्चिम दिसे अने रूप्पकुला महानदीने पूर्व दिसे हैरण्यवंत क्षेत्रने मध्य नागे, माव्यवंत नामे वृत्तवैताढ्य पर्वत ने तेनो वर्णन शब्दापाती वृत्तवैताढ्यनी पेरे जाणवो एना कमल ते मा व्यवंत सरखा प्रनाये माल्यवंत सरखे वर्णेने तथा प्रजास नामे देवता पढ्योपमनी स्थि तिये शहां रहे तेथी तथा हैरएयवंत क्षेत्र ते रुक्मी अने शिखरी पर्वत तेणे करीबे पासे सहीत ने, तथा नित्ये हिरण्य एटले सुवर्णरूप प्रकाशे तथा श्राशनादिके करी नित्ये हिरण्य दीएने, अने श्हां हैरएयवंत नामे देवता वशे तेथी एनुं नाम हैरण्यवंत. हैरण्यवंत देत्रने उत्तर दिसे अने ऐरवतदेत्रने ददण दिसे शिखरी नामे वर्षधर पर्वत बे, तेनो लंबाश् श्रादिक सर्व अधिकार चूल हेमवंत पर्वतनी पेरे जाणवो यहां पुंडरिक नामे अह डे तेमांथी सुवर्णकुला महानदी दक्षण दिसे नीकली ते रोहीतांसानी पेरे पूर्व दिसि समुजमां जाय अने जेम गंगा अने सिंधु ए बे नदी नरत देत्रमा जाय तेम शहां रक्ता अने रक्तवती ए बे नदी ऐवतदेत्र माहे जाय ने तेमां पूर्व दिसिये रक्ता नदी अने पश्चिम दिसिये रक्तावती नदी जाणवी शेषाधिकार सर्व चुन्न हेमवंतनीपेरेजाणवो. शिखरीपर्वतने विषे इग्यारकूट ने तेनां नाम कहेजेः-१ सिकायतन कूट, बीजो शि खरी कूट, त्रीजो हैरण्यवंत कूट, चोथो सुवर्णकूला कूट, पांचमो सूरादेवी कूट, हो रक्तावर्त्तन कूट, सातमो लक्ष्मी कूट, आठमो रक्तावत्यावर्तन कूट, नवमो श्लादेवी कूट, दशमो ऐरवत कूट, अगीश्रारमो तिगिनि कूट ए सर्व कूट पांचशे योजननां जाणवा तथा ए शिखरी पर्वतने विषे घणा कूट शिखरीदने संस्थाने संस्थित , सर्व रत्नम य ने, अने श्हां शिखरी नामे देवता वशे तेथी एनुं शिखरी एवं शाश्वतुं नाम . Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी दकीगत. 3 हवे ऐरवतदेवनी वक्तव्यता कहे . उत्तरदिशिना लवणसमुन्नी दक्षिण दिशे ऐरवत नामे देव , एने विषे तुंग वृद तथा कांटा नरतदेवनी पेरे घणा , तथा एनी बीजी पण सर्व वक्तव्यता नर तदेवनी पेरे जाणवी. परंतु एवं विशेष जे हां ऐरवत नामे चक्रवर्ती जाणवो अ ने जरतदेत्रने विषे नरत नामे चक्रवर्ती कहेवो. तथा श्हां ऐरवत नामे देवता वसे , तेथी एनुं ऐरवत एवं शाश्वतुं नाम . हवे ए जरत अने ऐरवत क्षेत्रने विषे कालचक्रतुं स्वरूप कहे . जरत तथा ऐरवत क्षेत्रमांहे उ आरे करीअवसर्पिणी अने व आरे करी उत्सप्पिणी रूप वार श्रारानुं कालचक्र . ते सदा काल अनादि अनंत पणे अनुक्रमे ब्रमण करे . हवे ए वार श्रारानां नाम कहे. प्रथम सुखम सुखमा, बीजो सुखमा, त्रीजो सु खम मुखमा, चोथो मुखम सुरूमा, पांचमो मुखमा, बहो मुखम मुखमा ए श्रारा बे, ते अवसप्पिणी कालनेविषे अनुक्रमे प्रथम सुखम सुखमाथी गणीये अने उत्सप्पिणी काले अवला गणीये एटले मुखम मुखमाश्री धुर मांडी गणीए. एम बार बारा चडता प डता जाणवा. ए चक्रनी पेठे फिरता आवे माटे एने कालचक्र कहीए. एमां अवस प्पिणी ते घटतो घटतो काल जाणवो अने उत्सर्पिणी ते चढतो चढतो काल जाणवो. हवे ए आराना कालनुं प्रमाण कहे . पहेलो आरो चार कोमाकोमी सागरनो, वी जो आरोत्रण कोमाकोमी सागरनो, त्रीजो आरो बे कोडाकोडी सागरनो, ए त्रण आ राने विपे अनुक्रमे करी मनुष्योनां आयुष्य कहे ः-प्रथम आरे त्रण पथ्योपमनु,तथा बीजे आरे बे पढ्योपम, त्रीजे आरे एक पट्योपमनुं, ए रीते मनुष्यनुं आयुष्य जा ण. हवे शरीरनुं मान कहे . प्रथम आराने विषेत्रण कोश ऊंचा मनुष्यनां शरीर होय, अने बीजे वारे वे कोश, त्रीजे आरे एक कोश, ए शरीरनुं जंचपणुं जाणवू. हवे ए त्रण श्राराने विषे मनुष्योने जे आहारनी श्छा थाय , ते कहे:-पहेला आ राने विपे चोथे दिवसे तुअर प्रमाणे आहारनी वांडा थाय,अने बीजे आरे त्रीजे दिवसे बोर प्रमाणे आहारनी वांठा थाय. तथा जीजे आरे एकांतरे आमला प्रमाणे आहारनी वांगा थाय. हवे शरीरने विषे पांसलीनी संख्या कहे. प्रथम श्रारामांहे बशेने बप्पन्न पिठकरंग एटले पांसली होय, अने वीजे आरे ते पूर्वोक्त पांसली- अर्ड एटले एकशोने यहावीश पांसली होय, तथा त्रीजे आरे वली तेनुं अर्ड एटले चोशठ पांसली होय. हवे ए त्रण श्राराने विपे अपत्य पालना कहे. प्रथम श्राराने विषे युगलने प्रसव्या पठी गणपचास दिवस सुधी अपत्य एटले गेरु युगल तेहनी प्रतिपालना करे, तथा Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 अढीछीपना नकशानी हकीगत. बीजे आरे चोशठ दिवस अपत्यपालना होय, अने त्रीजेआरे उंगणाएंशी दिवससुधी अपत्यपालना जाणवी. तेवार पड़ी ते युगलनां मातपिता मरण पामे. ए त्रण श्राराने विषे निश्चये समस्त पंचेंजी जीव ते सर्व युगलिया जाणवा. ते युगलिक केदेवा ने ? तोके नला मनवाला एटले अल्प कषाय वाला, तथा रूपवंत तथा समचउरंस संस्थान वाला होय तेमाटे सुंदराकार , वली ते युगलिया मनुष्य तथा तिर्यंच ते सर्व पोताना आयु व्यथी उठी आयुष्य प्रमाणे अथवा पोताना आयुष्य प्रमाणेज देवता मांहे जर उपजे. हवे ए त्रण आराने विष युगलियाने मत्तंग प्रमुख दश जातिना कल्पवृक्ष ले ते पानक प्रमुख दश प्रकारना वांबित पदार्थ आपे, ते आवी रीतेः-प्रथम मत्तंग नामे कल्पवृद ते वृद खारेक प्रमुखना रस सरखा मीठा रस थापे, बीजो भुंगनामे कल्पवृद ते थाली तथा वाटली तथा चरु अने कलश प्रमुख नाजन आपे. त्रीजो तुर्यांगनामे कल्पवृक्ष ते महा वाजित्र सहित बत्रीश बहनाटक देखाडे , चोथो ज्योतिरंगनामे जे कल्पवृद ते रात्रिने विषे पण सूर्यनी पेरे प्रकाश करे , तथा पांचमो दीपांग नामे जे कल्पवृक्ष नेते घरने विषे दीवानी परे अजुआबुं करे , तथा बहो चित्रांग नामे जे कल्पवृदबे ते पंचवर्ण अने सुगंधिक फूल, सहस्रदल कमल, मालती प्रमुख आपे, तथा सातमो चित्ररसा नामे जे कल्पवृक्ष ले ते थाहार एटले मनोवांवित मिष्टान्न षट्ररस नोजन आपे, तथा आग्मो मणितांग नामे जे कल्पवृद वे, ते नूषण, बाजरण, मुकुट, मुडिका, हार, कुंडल अने नेजर प्रमुख श्रापे. तथा नवमो गेहाकार नामे जे कल्पवृक्ष , ते सप्तनूमिना, पंच नूमिना तथा त्रिलूमिना मनोहर श्रावास आपे, तथा दशमो अनितांग नामे कल्पवृ द ते नलां वस्त्र तथा देवपुष्य चीर, वरपटकूलादि आसन बेसवा योग्य तथा नमा सन शय्या प्रमुख श्रापे. ए दश जातिना कल्पवृक्ष ते ए पूर्वोक्त वांडित पदार्थ पूरे बे. हवे सर्व आराने विषे सामान्य पणे तिर्यंचनां पण श्रायुष्य कहे . मनुष्यना आयुष्य सरखां गज, हाथी, सिंह अने अष्टापद प्रमुखनां आयुष्य होय. मनुष्यना थायुष्यनो चोथो नाग घोडा अने वेसर प्रमुखनुं आयुष्य जाणवू. तथा बा ली, गाडर अने शीयाल प्रमुख, मनुष्यना आयुष्यने आपमे नागे आयुष्य जाणवू. तथा गाय, नेश, उंट अने गर्दन प्रमुखनुं आयुष्य ते मनुष्यना आयुष्यने पांचमे नागे जाणवू. तथा कूतरा प्रमुखनां श्रायुष्य ते मनुष्यना आयुष्यने दशमे जागे . ए तिर्यंचनां आयुष्य प्रमुख प्राये सर्व श्राराने विषे ए प्रकारे सरखां होय. हवे त्रीजा आराने अंते नव कुलगर, राजनीति अने सर्व संसार व्यवहार तथा जिन धर्म आदि शब्दथी बादर अग्निकाय तथा ज्ञान विज्ञान प्रमुख सर्वनी उत्पत्ति थाय. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीकोपना नकशानी दकीगत. अवसप्पिणी त्रीजा आरानेविषे नेव्याशी पखवामा पाउला जेवारे शेष रहे तेवारे पेहेला तीर्थंकर सिद्धिपद पामे अने चोथा आरानानेव्याशी पखवामा पाउला जेवारे शेष रहे, तेवारे चोवीशमा तीर्थंकर सिछिपद पामे, अने उत्सर्पिणी कालना त्रीजा श्राराना नेव्याशी पखवामा जेवारे जाय, तेवारे पहेला तीर्थकर उपजे, तथा चोथा आराना नेव्याशी पखवामा जेवारे जाय, तेवारे बेटा चोवीशमा तीर्थंकर उपजे. हवे चोथा श्रारानुं स्वरूप कहे बे. बेतालीश सहस्त्र वरसे ऊणो एक कोमाकोमी सागरोपमनो चोथो आरो होय, तेहने विषे मनुष्यनुं श्रायुष्य पूर्वको डि वर्षनुं जाणवू. अने शरीरनुं मान पांचशे धनुष्य जाणवं, हवे पांचमा श्रारानुं स्वरूप कहे . पांचमा श्रारानुं प्रमाण एकवीश सहस्र वरसतुंबे, ते पांचमा आराने विषे सात हा थ उंचा मनुष्य होय, एकशोने त्रीश वरसनुं आयुष्य मनुष्य, होय, तथा पांचमा आ राने अंते जिनधर्मादि पदार्थनो पण अंत एटले नाश थाय. व्यवहार, आचार,नीति,जा ति, ए सर्वनो अंत आक्शे. ए वात सिद्धांतमां कही . तथा केटला बोल विछेद जशे? ते कहे ॥गाथा।। सुय सूरि संघ धम्मो, पुवण्हे विजिही अगणि सायं // निव विमलवाहणे सुह, ममंति तझम्म मसण्हे // 1 // दुप्पसहो समणाणं, फग्गुसिरि होश साहुणीणं च // सट्ठो नाइल नामा, सच्चसिरि सावियाणं च // 2 // पुवाए ससाए, विछे होइ चरणधम्म स्स // मनण्हे रायाणं. अवरण्हे जाइतेयस्स ॥३॥इति। तेवार पठी शुं थशे? ते कहे . लवणादि खार तथा अनि अने कालकूटादिविष, तेनी वृष्टितेणे करी पृथ्वी जे जे ते हा हाकार करशे तथा पदी जाति प्रमुखना जे बीज , ते वैताढ्य प्रमुख पर्वतने विषे रहेशे तथा मनुष्य अने तिर्यंचना बीज बे, ते सर्व बिलादि स्थाननेविषे रहे बे. हवे ते बिल वखाणे बे. वैताढ्यना वे पासानेविषे ज्यां घणां माउला , वली गामानां चकनी धारा सरखो प्रवाह ने जेहनो एहवी गंगा अने सिंधु तथा रक्ता अने रक्तवती नामे जे नदी तेहना बे तटने विषे नव नव विल ते गुफा सरखां जाणवा. एटले दक्षिण नरत मांहे बे नदी ना चार तट बे. अने उत्तर जरतमाहे वे नदीना चार तट बे, सर्व मली आठ तट बे, ते एकेक तटे नव नव बिल गणिएं, तेवारे बहोतेर बिल थाय. एम ऐरवतने विषे पण बहोतेर बिल बे, ते सर्व एकग करीएं तो एकशोने चुम्मालीश बिल थाय, हवे हा श्राराने विषे मनुष्यादिकनुं जे स्वरूप मे, ते कहेले. एकवीश सहस्र वरस प्रमाणे पांचमा आरा सरखो जे हो आरो, तेहनेविषे बे हा थ ऊंचा शरीर अने वीश वरस आयुष्यवालां एहवा मनुष्य होय, ते मनुष्य मत्स्यना आ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 76 अढीछीपना नकशानी हकीगत. हार करे तथा माग रूपवाला होय वली निर्दय परिणाम वाला होय, बिलने विषे रहेनासं होय, वली नरक नियंचरूप पुर्गतिने विषे गमन करनारा होय. वलील जा रहित होय, तथा वस्त्र रहित पशुनी पेठे नग्न फरे. तथा कोरवचनना बोल नार होय, तथा ए पिता, ए पुत्र, ए स्त्री, ते ए बहेन, इत्यादि व्यवहार तेने न होय एटले तिर्यंचनी पेरे विवेकरहित होय. तथा उ वरषनी स्त्री गर्न धारण करे, ते पण अतिदुःखे प्रसव करे. वली ते स्त्रीयोने घणां बोरु होय, एवी स्त्री होय. ___ ए पूर्वोक्त आरा तेणे करी अवसर्पिणी काल होय अने तेने विपरीत पणे अवला पाणीएं तेवारे उत्सपिणीकाल थाय. त्यां अवसपिणी ते प्रथम आराथी घटतो काल होय अने उत्सप्पिणी ते प्रथम आराथी चढतो काल होय. ए अवसप्पिणी तथा उ त्सर्पिणीना बार याराना कालचक्रनेविषे वीश कोमाकोमी सागरोपम थाय. हवे शेष देत्रने विषे श्रारानुं सरखापणुं कहे . देवकुरु अने उत्तरकुरु, ए बे देत्रनेविषे अने हरिवर्ष तथा रम्यक् ए बे क्षेत्रनेविषे तथा हेमवंत अने हिरण्यवंत ए बे क्षेत्रने विष तथा पूर्व विदेह अने पश्चिम विदेह देत्र नेविषे ए चार क्षेत्रना युगलने विषे अनुक्रमे करी सदाकाले अवसप्पिणी कालना चार आरानो प्रथम काल जाणवो. ते केम के श्रवसर्पिणी कालनो पेहेलो आरो सुखम सुखमा बे. तेहना धुरनो जेहवो काल होय तेहवो काल सदैव देवकुरु अने उत्तरकुरु, ए बे कुरु देत्रने विषे होय एम बीजा आरानो जेहवो प्रथम काल होय तेहवो सदैव ह रिवर्ष तथा रम्यक् ए वे देत्रनेविषे होय. वली त्रीजा आरानो जेदवो प्रथम काल होय, तेहवो सदैव हेमवंत तथा हिरण्यवंत ए बे क्षेत्रने विषे होय तथा चोथा आ रानो जेवो प्रथम काल होय, तेवो काल महाविदेहक्षेत्रने विषे सदा जाणवो. हवे चंद्रमा अने सूर्यनां चार क्षेत्र कहे जे. जंबछीपने विषे बेचंउमा अने बे सूर्य तेनुं दक्षिण अने उत्तर दिशिनुं जे गमनागमन तेनुं क्षेत्र पांचशे दश योजन उपर एक योजनना एकसहीश्रा अमतालीश जाग जाणवा. हवे चंद्रमा अने सूर्यना मंमलनी संख्या अने प्रमाण कहे . चंजमाना पंदर मांड लां ने अने सूर्यना एकशोने चोराशी मामला , ते एकयोजननां एकशठ नाग करिएं, तेवां बपन्नत्याग प्रमाण चंजनां मांडलांडे, अने श्रमतालीशजाग प्रमाण सूर्यनां मांग लां . ए चं सूर्यना विमाने रोधन करेली नूमि तेने मंगल कहीएं,ते मंगलनी संख्या श्री मंगलना आंतर एकेके उठा जाणवा, एटले चंजमाना मामला पंदरना चउद यां तरा थाय. अने सूर्यना मांडला एकशोने चोराशीना आंतरा एकशोने त्र्याशी थाय. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नापदेवदं लांबपए जंबुद्दीप 4500, मदनापास्त्र लवण मगु 241433 बचणासमुद्र मकर संकाते प्रथम दिने सई वासडले सूर्य ताथ क्षेत्रस्थिति तथा अंधकार केनस्थिति नाव क्षेत्र अभ्यंकर वाडा वाद्यवाहा 255 अंधकार क्षेत्र स्थापना दिनमान मुहूर्त 12 गनिमान मुहूर्त 18 अंधकारच अभ्यंतर बाका R ARAMINARISINGanwarmananewwRTAN तवाणासमुन काधनापत्र बाह्य राहा 14868. बाराधारानी स्थापना MAHARMIRMIRuruwwwvaamwapwo साथमसुक्षमतमारना मानवमकिन 5 // / मान सादहगाजर सुषमसुधार जसुधमाक सागर कोमा 4 देहारेगम गरकोमाका श्रायुः पत्यांच्या पान 17 सरक बमान.३/देही / REprahe जलियुगाना :धमनुपमा KelAPE मान कामाको/ गलिया पक.सागर सुषमारकमा दिहमान महादशा चक्रस्थान भारक सा दुःषमारक SER/JEEDEDIA EPAपना कोडाकानिमान श्रीयुर३०/ शानियादी विहगान प्रचलना अमान कवर्ष देह हरनावहान सागामुघमघमारक अन देहधनुःशन/ सहख ४२ऊन महकोमाकामि वर्ष विर्घ 130/5. आयुनाव पषसहस्य यमदःपर हा दुषमसुषमारकमा SHEOM S462/023 मान भारकच्यमहरम २१मान महा 2 लिदुःषमदुषाघमारकवर्षम ' TOY STALE - - Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौदराजलोकनी स्थापना मनुष्याकारें STORIA THILILIATTAMATTA ON Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - mmmmmmmmmmms HalHANDHIRE IIIIIIIIIIIIIIIIm ARHATHITHIL समुद्रवासी- चार देवतानी स्थापनाः NAHRTilin मनुष्यक्षेत्रेसूचि श्रेणिस्थित . चंद्रसूर्यस्थापना. - - Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्रसूर्य ममस स्थापना च३६ चंद्र चंद्र२ चा बसूर्य सूर्य सूर्य सूर्यसूयीमूर्यासूगीरी चंद्र/२ चंद्र चंद्र अदीदीयगत अंधकारक्षेत्र रसख्या . कर्कसंक्रांते प्रथम दिने सर्वाभ्यंतर मंगले सूर्य तापक्षेत्र स्थापना 333 तापक्षेत्र, लांबपणुजंबुडीपे 55000 लवणसमुद्रे 13314 बायां दिनभान मुहून 18 रात्रिमान मुहूर्त 12 बघता - सूर्यताप संबरासमुद्र रवाज जचुदीप itage ताप अंधकारक्षेत्र अभ्यतरबाद्य नापक्षेत्र अभ्यंतम्बाहा 9586 / बाहेरली बाहा 9586 // वाह्यबाहा 63245.6 अंधकारक्षत्रा - - - पा७७ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीवीपना नकशानीहकीगत. हवे चंडमाना एक मंगलने वीजा मंडलनी वचमां अंतर कहे . पांत्रीश योजन उपर एकसहि त्रीश नाग, वली एकसहिया एक नागना सात नाग करिएं तेवा चार ना ग अधिक, एटवू चंडमाना एक मंडलथी बीजा मंगलनी वचमां अंतरतुं प्रमाण जाण Q. ते जाणवानी परें लखीएं वैयेः-चंजमंडल पंदर डे, ते एकेका, परिमाण जे एकसहि श्रा बप्पन्न नाग ने तेने पंदरमंडल साथे गुणीये तेवारे श्रावशे चालीश नाग थाय, तेने एकश नागे हरतां तेर योजन जपर एकसहिया सुमतालीश नाग थाय, ते मूलगी जे चारना देवनी राशि पांचशे दश योजन उपर एकसहिया अडतालीश नागनी, ते मांहेथी वाद करतां वाकी चारशे सत्ताणुं योजन उपर एक नाग रहे, तेने चौद अांतरे वेहेंचीये तेवारे पांत्रीश योजन आवे. उपर सात योजन वधे, तेना एकसहिया चारशेने सत्तावीश नाग याय, तेनी साथे प्रथमनो उगस्यो एक नाग नेलीए,तेवारे चारशेने अहा वीश नाग थाय, तेने चउद नागे वेहेचतां त्रीश नाग आवे, उपर आठ वधे, ते एकेकाना सात प्रतिनाग कदपीएं तेवारे सात ने आठे गुणतां बप्पन्न थाय, तेने चउदे नाग देतां चार जाग लान्ने, एरीते चंडमाना मंडलनो अांतरो पांत्रीश योजन उपर एकसहिया त्रीश नाग, तथाएकसहिया एक नागना सात नाग करीएं तेवा चार नाग, नधिक थाय हवे सूर्यमंमलनुं अंतर कहे .सूर्यमंडल एकशोने चोराशी . ते एकेकनुं परिमाण एकसहिया अडतालीश नागर्नु , अने चार देत्रनुं परिमाण पांचशे दश योजन उपर एकसहिया अमतालीश नाग , ते मांथी एकशोने चोराशी मंडलना परिमाणना एक सहिया आठ हजार आठशेने वत्रीश नाग थाय, तेना योजन एकशो चुम्मालीश उ पर एकसहिया अडतालीश नाग श्रावे, ते उपली चार देवनी राशिमांथी बाद करतां बाकी त्रणशे ने ठासेठ योजन रहे , तेने एकसोने ज्यासी अंतरे वेचतांबे योजन श्रावे तो एक सूर्यमंमल अने वीजा सूर्यमंडलनी वचमां अंतर बे योजननो डे _ चंद्रमा तथा सूर्य जंबूहीपमाहे तथा लवण समुषमांहे केटला योजन आवे ? ते क हे ः-जंबूहीपमाहे एकशोने एंशी योजन प्रमाण देत्रने विषे पांच मंडल चंउमानां ठे, अने पांसठ मंडल सूर्यनां , तथा लवण समुरुमांहे त्रणसेंने त्रीश योजन प्रमाण दे त्रने विपे दश मंगल चंडमानांबे, अने एकशोने जंगणीश मंगल सूर्यनां , एटले एक सोने एंशी योजन चंउमा अने सूर्य जंबूछीपमांहे श्रावे, अने लवण समुडमांहें त्रण शेने त्रीश योजन चंजमा अने सूर्य जाय. हवे चंडमानुं मंडल अने सूर्य, जे मंगल ने तेनुं परस्पर अंतर कहे . सर्व मंगल मांदेला मध्यना मंगलने विषे रहेछ जे चंद्रमंडल अने सूर्यमंमल तेनुं परस्पर अं तर नवाणुं हजार बशोने चालीश योजननुं सूर्यमंडल अने चंऽमंडलनुं मांहोमांहे अं Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. तर जाणवू. तदनंतर चंद्रमंमलोना प्रतिमंमलने विषे बहोंत्तेर योजन अने एक योज नना एकसठ नाग करिएं, तेवा बावन्न नाग उपर एवी अंतर वृद्धि, अने सूर्यमंग लोमांप्रतिमंडलने विषे पांच योजन अने एक योजनना एकसक नाग करिएं, तेवा पां त्रीश नाग उपर, एटली अंतर वृद्धि. तेमज बाह्य मंडलने विषे रेहेतुं जे चंद्र मंगल अने सूर्यमंडल, तेनुं परस्पर वचमां अंतर एक लद बसेंने साठ योजननुं बे. हवे चंडमाना प्रत्येक मंडलने विषे मुहुर्त गति कहे जे. चंऽमा जेबारे निषध पर्वतने माथे सर्वाच्यंतर मंडले उगे, तेवारे एक मुहर्तमांहे पांच हजार तहोंत्तेर योजन, अने ऊपर एक योजनना तेर हजार सातशोने पचीश नाग करीएं तेवासीत्योतेरसोने चुम्मालीश नाग उपर एटली मुहर्त गति करे. त्यार पड़ी जेवारे बीजे त्रीजे मांडले जाय तेवारे प्रतिमंडले पोणा चार योजननी वृद्धि करीएं. एम मंडल मंग लप्रत्ये मुहुर्त दीप पोणा चार योजन वधारतांजेवारे पंदर मंगल सुधी मुहुर्त गतिएं चं उमा लवण समुडमांहे सर्व बाह्य मामले जगे,तेवारे बावन योजने अधिक करिएं तो एकेक मुहुर्ते पांच हजार एकशोने पचीश योजन उपर एक योजनना तेर हजार सात शेने पचीश नाग करीएं, तेवा ब हजार नवशेने नेवू लाग अधिक जाणवी, एटली बाहे रने मंडले चंडमा एक मुहुर्त्तमांहे गति करे. जे चंजमानी मांहेला मांडलानी मुहुर्तगति, पांच हजारने तहोत्तेर योजन काफेरीक ही तेज सर्वाच्यंतर मांडले सूर्यनी गति बे, परंतु तेमांहे एकशोने अहोतेर योजन सहित करीएं एटली अधिक सूर्यनी मांहेले मंडले मुहुर्त गति जाणवी. एटले जेवारे पांच ह जार तहोंत्तेर मांहे एकशोने अहोतेर नेलीएं. तेवारे पांच हजार बशेने एकावन्न योजन, अने एक योजनना साठ नाग करिएं, तेवा उंगणत्रीश नाग काफेरी सूर्यनी गति जाण वी. अने चंडमानी बाहेरने मंडले जे मुहुर्त गति एकावनशोने पच्चिश योजन कही ने, तेमांहे एकसोने एंशी योजननी वृद्धि करिएं, तेवारे त्रेपनसेंने पांच योजन अने साठी आ पंदर जाग एटली बाहेरने मामले सूर्यनी मुहुर्त गति जाणवी. कांश्क नणा साठी श्रा अढार नाग एटला मांहेना मंगलथी बाहेरने मंडले आवतां प्रत्येक मंडलें सूर्यनी मुहुर्त गतिमाहे वृद्धि जाणवी. हवे सूर्य उदय पामे त्यांथी केटले योजने अस्त थाय? ते कहे बेः-सूर्य जेवारे मांहेने मंडले उदय पामे, तेवारे चोराणुं हजार पांचशेने बबीस योजन उपर साठीया बेतालीश जाग एटला योजनने अांतरे वेगलो सूर्य आयमे, तेवारे दिवस श्रढार मुहुर्त्तनो होय. - हवे मांदेथी बाहेर मंडले श्रावतां केटलो दिवस घटे, ते कहे :--मांहेना मंगल थ की बाहेर यावतांएकेका मंडल प्रत्ये एक मुहूर्त्तना एकसठ नाग करिएं, एवा वे जाग श्र Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीकोपना नकशानी हकीगत. जए ढार मुहर्त्तना दिवसमांथी दिन प्रत्ये घटे एम घटामतां बेहेले एकशोने चोराशीमे मंगले जेवारे सूर्य आवे, तेबारे दिवस, बार मुहर्त्तनो होय, अने रात्रितो ते दिवसथकी विपरीत जाणवी. ते केम? के जेवारे दिवस बार मुहर्तनो होय तेवारे रात्रि अढार मु इतनी कर्कसंक्रांतिथी मकर संक्रांति सुधी जाणवी, अने जेवारे मांहेना मंडलथी सू र्य बाहेर आवे, तेवारे दिवसमांहे मुहर्तना एकसठीश्रा बे नाग घटे, अने जेवारे म कर संक्रांतिथकी धुर मांगीने बाहेरना मंडलथी मांदे आवे, तेवारे मुहर्तना एकस हीया बे लाग दिवसमांहे वधे, अने रात्रिने विषे घटे, ते विपरीत जाण. हवे सूर्य बाहेर मामले श्रावे, तेवारे उदय अस्तनुं अंतर कहे बेः-सूर्य जेवारे बा हेरने एकशोने चोराशीमे मांडले आवे तेवारे वेशठ हजार बशेने त्रेश योजन वे गलो अस्त थाय, कर्कसंक्रांथी धुर मामीने मकर संक्रांति सुधी एकसोने अडशठ योजन प्रति मंमले उठी गति करे. तथा एक चंद्रमाने परिवारे अनिजित् प्रमुख अ घावीश नदात्र अने अंगारक प्रमुख अहाशी ग्रह जाणवा. हवे एक चंडमानी पळवाडे तारानी संख्या कहे बेः-गशठ हजार नवसेंने पंचो तेर कोमाकोडी एटला तारा एक चंडमानी पवाडे जाणवा. ए ताराना बाहृदयपणा थकी क्षेत्र थोडं बे, माटे कोश्क श्राचार्य कोमाकोमीने संज्ञांतर एटले कोडीनुं वीजें नाम कहे , अथवा उत्सेधांगुले जेवारे तारानां विमान लेखवीएं, तेवारे कोडाकोमी नो संजव होय, पनी निश्चयनी वात झानवंत जाणे. हवे ग्रहादिकनी संख्या जाणवानुं करण कहेः-ग्रह, नक्षत्र अने तारा एत्रणनी सं ख्या, एक चंमा आश्री जे कही, ते जे छीप समुज्ने विषे जेटला चंडमानी संख्या होय तेटला चंद्रमानी साथे गुणाकार करिएं, एम करतां जे ग्रहादिक संख्या आवे, तेटलो परिवार जाणवो, ए रीते वांवित छीप समुज्ने विषे ए ग्रहादिकनुं प्रमाण जाणीये. हवे लवण समुप प्रमुखने विषे चंड सूर्यनी संख्या कहे जे. लवण समुज्ने विषे चार चंजमा अने चार सूर्य जाणवा तथा धातकी खंमने विषेबार चंजमा अने बार सूर्य जा णवा. तेवार पनी कालोद समुफतथा पुष्करवर छीप प्रमुखने विषे पूर्वे जे कह्या बे तेणे सहित त्रिगुण जाणवा, ते केम के धातकी खंमने विषे बार चंज तथा बार सूर्य कह्या बे, तेने त्रिगुणा करिएं, तेवारे त्रीश थाय. तेमांदे पहेला जंबूछीपना बे अने लवण स मुजना चार, एवं बनेलीएं, तेवारे बेतालीश सूर्य अने बेतालीश चंद्र कालोद समुडने विषे थाय, हवे ए बेतालीशने त्रिगुणा करिएं, तेवारे एकशोने बबीश थाय. तेनी साथे पूर्वोक्त बे, चार अने बार, एवं अढार नेलीएं, तेवारे एकशोने चुम्मालीश चंज अने एक Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GO अढीवीपना नकशानी हकीगत.. शोने चुम्मालीश सूर्य, पुष्करवर छीपने वीषे थाय , तेनुं अर्धा करीये, तेवारे वहाँ तेर सूर्य अने नहोंत्तेर चंड पुष्करवर छीपना अझनेवीषे जाणवा. हवे चं,सूर्य,ग्रह अने नक्षत्र ज्यां सुधी अढीहीप ने त्यां सुधी यावत् समश्रेणीएं चाले बे, ते सर्वे शीघ्र शीघ्रतर गति वाला , एटले चंडमाथकी सूर्यनी गति उतावली ने. सूर्य थकी ग्रहनी गति उतावली डे, ग्रहथकी नक्षत्रनी गति उतावली , ते चंड सूर्या दिकना देवना प्रमाणथकी केटला वेगला मनुष्यनी दृष्टि गोचर आवे, ते कहे . एकवीश लाख चोत्रीश हजार पांचशेने सामंत्रीश योजन प्रमाण देत्रथी पुष्कराई छीपना म नुष्य ते पूर्वदिशि उदय पामता अने पश्चिम दिशि अस्त पामता एवा सूर्य चंद्रमा प्र त्ये देखे , एटले त्यां तेटला क्षेत्रना वेगला विस्तारथकी देखे बे. हवे मनुष्य देत्रथकी बाहेर चंड सूर्यनो विचार कहे:-मनुष्य देत्रथकी बाहेर चंद्र सूर्यनी संख्या प्रथम कही , तेमज होय. अथवा बीजं करण पण होय, ते उपाय शा स्त्रांतरथकी जाणवो. पण संघयणी प्रमुख ग्रंथने वषे पूर्वोक्त करण वध आदमु , त था मनुष्य देवथी बाहेर जे ज्योतिषी चंछ सूर्यादिक बे, ते अचल एटले स्थिर जाणवा. अने मनुष्य देत्रना चंड सूर्यना विमानश्री तेमना विमान अर्ड प्रमाणे जाणवा. ते पाकी इंटने संस्थाने रह्या , जेम पाकी इंट पोहोल पणाथी लांब पणे बमणी होय अने चोरस होय तेम मनुष्य देत्रथी बाहेरला चंसूर्यमां तापक्षेत्र पञ्चाश ह जार योजन पोहोलपणे अने एक लद योजन लांब पणे होय, तथा मनुष्य देवनी पेरे तिहां चंजमानुं अत्यंत शीतल तेज न होय अने सूर्यनुं अत्यंत उष्ण तेज पण न होय परंतु सम तेजवंत होय // इति // // हवे परिधि प्रमुख आठ बोल कहे बे. // एक तो जंबुद्धीपनी पेठे वाटला देत्रने परिधि कहीये; बीजु वृत्त क्षेत्रनां जे यो जन प्रमाण समचरंस खंड करीये, तेने गणितपद कहीये, त्रीजु बेहेला खंडादिकनुं जे बाण करीये तेने इकु कहीये, चोधुं धनुष्यने याकारे चरत वैताढ्य प्रमुखनी जे पण तेने जीवा कहीये, पांचमुंबई चंद्रमाने आकारे जरत प्रमुख जे क्षेत्र बे, ते ना पुग्ना नागने धनुःपृष्ट कहीये; ग्वं वैताढ्य प्रमुख पर्वत तथा क्षेत्र प्रमुखना ले हेमानुं जे परिमाण करवू तेने वाह कहीये, सातमुं जिहां लांबपणुं तथा पोहोल पणुं सरखं होय, तेने प्रतर कहीये, आठमुं जिहां लांबपणुं, पोहोलपणुं अने जामपणुं, ए त्रणे सरखां होय, तेने घन कहीये ए आठ बोल कह्या // Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. तिहां प्रथम परिधि संबंधि गणित जाणवानो विधि कहे जे. जे गोल थालीना आकारे पदार्थ होय, तेना मध्यनो विस्तार जो दश योजन होय तो ते पदार्थ गोलाकारे फरतो केटला योजन थाय ? एवी रीतनुं जे गणित करवं, तेने परिधि कहिये, ते परिधि करवानो विधि एक जंबूछीपना गणिते करी देखामीये वैये. तेवीज रीते जे जे स्थानके परिधि करवो पडे, ते सर्वत्र स्थानके एमज करवं. जंबूहीपनो विष्कंन एटले मध्य विस्तार एक लाख योजननो, तेनो वर्ग करीये एटले ते अांकने तद्गुणो करीये अर्थात् लाखने लाख गुणो करीये तेवारे (10000000000) दश अज थाय, ते आंकने वली दश गुणो करीये, एटले ए वर्गना श्रांकने आगले एक शून्य आपीये तेवारे दश गुणो थाय, ते श्रांक ( 100000000000 संख्याये एकशो अबज अर्थात् एक खर्व थाय, हवे ए आंकनुं मूल शोधीये ते जेम बशेने उपन्ननुं मूल शोधीये तो शोल शोले बे बपन्ना एटले शोलनो अंक थाय अथवा दश हजारनुं मूल एकशो थाय अथवा बशेने पच्चीशनुं मूल पच्ची पच्चीराम उ पञ्ची सां ए रीते मूलनो अंक पच्चीश थाय, तेम इहां एक खर्वनी संख्यानो जे उपरलो शांक , तेनुं मूल शोधीये, तो केटलुं थाय ? तेनी रीत देखाडे बे. उपरला एक खर्वना आंकनो पहेलो आदिनो श्रांक जे एकमो , तेने धुरनो आं क कहिये अने बहेली शून्य तेने बहेलो आंक कहिये, ते बहेला श्रांक थकी विष म सम करतां धुरना आंक सुधी आवीये तिहां विषम ते / उनी लीटी करवी, श्रने सम ते-श्रावी ग्रामी लीटी करवी. ते था प्रमाणेः-१didobvdobob था प्रमाणे विषम सम कस्या पली जो धुरना आंके विषम एटले (1) आवी उनी लीटी थावे तो धुरनो एकलोज अांक तेने वर्गना आंक साथे शोधीये, अने जो धुरनां बांके सम एटले (-) श्रावी आमी लीटी श्रावे, तो धुरना बे आंकने वर्गने के शोधीये, तो श्रा ठेकाणे धुरना आंके (-) श्रा प्रकारनी सम लीटी आवेली बे, माटे एक धुरनो श्रांक एकमो , अने तेनी पासे बीजो श्रांक शून्यनो , तेथी एक एकमो अने बी जो शून्य ए वे आंकने वर्गना आंक साथे शोधq ते श्रावी रीतेः___ एकमो अने शुन्य मली दशनो अांक थयो, तेने शोधीये तेवारे त्रण त्रिक नवजा य, शेष एकनो आंक रहे ते एकना अांक उपर वली उपरनी राशि मांहेली बे शुन्य चमावीये, तेवारे फरी (100) नो अंक थाय अने उपरलो जे एक एकमो अने अगीबार शुन्य मली बार आंकनी राशि , ते मांहेलो एक एकमो अने त्रण शुन्य मली चार श्रांक गया बाकी ते राशिमाहेली मात्र आठ शुन्य रही. 11 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B अढीछीपना नकशानी हकीगत. हवे एकसोना (100) आंकने नांगवानो विधि कहे बे. पूर्वे जे वर्गनो यांक त्रणनो श्राव्यो बे, तेने एक बाजु स्थापन करी मूकेलो ने ते आंकने बमणो करीये तेवारे बनो श्रांकमो थाय, ते बना आंक साथे उपरला एकशोनां आंकने शोधीये तेवारे उ एकां अने एकनो जाग श्राव्यो माटे बनी नीचे वली एकेका एकनो आंक चांपी मूकीये तेवारे (61) एकशनो अांक थाय, ते उपरली एकशोनी राशिमांथी बाद करीयें तेवारे शेष (37) उंगणचालीशनो श्रांक रहे, अने वर्गना मूलनो आंक जे पूर्वेत्र एनो हतो, तेनी नीचे एकमो मूकाणो, तेवारे एकत्रीशनो श्रांक थयो. हवे शेष जंगणचालीनो श्रांक वध्यो , तेनी नीचे उपरली महोटी राशि मांदेला जे श्राप शुन्य शेष रहेला , तेमांथी बे शुन्य लहीये तेवारे (30) नो श्रांक थाय. अने महीटी राशि मांहेली शेष ब शुन्यो रहे. . पली वर्गनो जे एकत्रीशनो आंक , तेने बमणो करीये तेवारे बाशठनो श्रांक थाय ते बाशग्ना आंक साथे पूर्वोक्त (30) ना आंकने शोधीये, तेवारे बाश बको 372 थाय. अने वली बनो नाग आव्यो डे, माटे का बत्रीशनो अांक नीचे चांपी मूकीये तेवारे 3756 नो अांक थाय, तेने (३ए००) नां आंकमांथी बाद करी ये तेवारे बाकी 144 वधे अने वर्गना मूलनो आंक जे पूर्वे 31 नो हतो, तेनी नीचे हमणानी शोधनो बगमो मूकीये तेवारे 316 नो आंक थाय. . हवे शेष जे 154 नो आंक वध्यो , तेनी नीचे वली जपरली महोटी राशि मां हेली ब शुन्यो शेष रहेली बे, तेमांथी बे शुन्य लही मामीये तेवारे (14400) नो आंक थाय, अने महोटी राशि मांहेली शेष चार शुन्यो रहे. पड़ी वर्गनो आंक 316 नो , तेने बमणो करतां 635 नो अंक थाय, तेनी सा थे 1440 ना आंकने शोधीये, तेवारे (635) उ 1564 अने वली बेनो नाग श्रा व्यो माटे पुए पुए चारनो श्रांक थाय, तेने 1964 ना आंकनी नीचे चांपी मांमीये, तेवारे 11644 नो अंक थाय, ते 14400 ना आंकमांथी बाद करीये, तेवारे बाकी 1756 नो अंक वधे, अने वर्गना मूलनो आंक प्रथम 316 नो हतो, तेनी नीचे ब गमो मूकीये तेवारे 3165 नो आंक थाय. हवे जे शेष 1756 नो अांक वध्यो बे, तेनी नीचे उपरली महोटी राशि मांदेली जे चार शुन्यो शेष रहेली बे, तेमांथी बे शुन्य लहीये, तेवारे 175600 नो श्रांक-था य अने महोटी राशि मांहेली शेष बे शुन्यो रहे. पढी वर्गनो आंक 3165 बे, तेने बमणो करीये तेवारे 6324 नो आंक थाय, ते Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीद्वीपना नकशानी हकीगत. आंकनी साथे 175600 ना आंकने शोधिये, तेवारे 6324 छ 15647 थाय, अने वली बेनो नाग श्राव्यो माटे हुए हुए चारनो अांक थाय. तेने 12647 ना आंकनी नीचे चांपी मांडीये, तेवारे 12644 नो अंक थाय. ते 175600 ना आंकमांथी बाद करीये तेवारे बाकी 45116 नो अांक वघे, अने वर्गना मूलनो अांक प्रथम 3165 नो हतो तेनी नीचे बगडो लखीये, तेवारे 31 622 नो आंक थाय हवे शेष जे भए११६ नो आंक वध्यो ने तेनी नीचे उपरली महोटी राशि मांहेली जे वे शुन्यो शेष रहेली , ते लहिये तेवारे 4711670 नो अंक थाय, अने महो टी राशिमाहेली शेषरहेली शुन्यो सर्वे खपी गइ. पठी वर्गना मूलनो जे 31622 नो अंक , तेने पूर्वली रीते हिगुणो करीये, तेवा रे 3244 नो श्रांक थाय. ते श्रांकनी साथे ४ए११६०० नां श्रांकने शोधीये, ते श्रावी रीते के 63244 सातां 4427 थाय, अने वली सातनो नाग श्राव्यो माटे सातने सात गुणा करीये तो सतियो सतियो उगणपञ्चाशनो श्रांक थाय, ते 442707 ना श्रांकनी नीचे चांपी मांमीये, तेवारे ४४२७१ए नो श्रांक थाय, ते ४ए११६०० ना यांकमांथी बाद करीये, तेवारे वाकी 4471 नो श्रांक वधे, अने वर्गमूलनो प्रथम 31622 नो श्रांकहतो तेनी नीचे सातडानो श्रांक लखीये. तेवारे 31622 नो श्रांक थाय हवे शेष जे 44471 नो श्रांक वध्यो , तेनी आगल श्रांक वधारवा माटे महोटी राशिमांहेली शेष को आंकनी संख्या रही नथी. तेमज वर्ग मूलना आंकनी राशि जे 316227 नी , तेने छिगुणा करीये तो 632454 नो श्रांक थाय, तेनी साथे शो धवामांमीये तो शोधाय पण नही कोनाग पोहोंचे नही. तेमाटे ए योजननी राशि ना एकेका योजनना चार चार कोश करी नाखीये तेंवारे 17374 कोश थाय. तेने वर्गमूलनी जे बमणी करेली 632454 ना आंकनी राशि दे, तेणे करी जाग थापीये तेवारे रखए७३६२ नी संख्यामां त्रण गाजे आवे. शेष 40522 गाउ वधे अने मूलना आंकनी संख्या३१६२२७ योजननी उपर त्रण गाजनी थाय. हवे शेष रहेला 4522 गव्यतिनी संख्याने पण 635454 नां श्रांकनी राशिनो नाग पहोंचे नही माटे ए प्रत्येक गाजना बे हजार धनुष्य प्रमाणे 2044000 धनुष्यनी संख्या करीने तेने 632454 नो नाग आपतां 054112 नी संख्यामां 127 धनु प्य आवे शेष एGU धनुष्यनी संख्या वधे, अने मूलनी राशि 31627 योजननी उपर त्रण गाउ तथा 127 धनुष्य एटली थाय हवे एGO धनुष्यनी संख्याना अंगुल करावा सारु एक धनुष्यना ए६ आंगुले गु Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 अढीछीपना नकशानी हकीगत.. णीये, तेवारे ज्दशए४७ अंगुलनी संख्या थाय तेने 632454 ने नाग देतां 53712 // नी संख्यामां 13 // अंगुल श्रावे, शेष ए१११ए अंगुल वधे अने मूलनी राशि 31627 योजन, त्रण गाउ, 127 धनुष्यनी उपर सामातेर अंगुल थाय. हवे शेष ए१११ए अंगुल वध्या बे, ते प्रत्येक अंगुलना आठ यव थाय ने माटे एने आठे गुणीये तेवारे प्रश्नए५५ यव थाय, तेने 632454 नो नाग देतां एक यव आवे, शेष एधए नो अांक वधे अने मूल राशिनो आंक 316227 योजन, त्रण गाउ 12 धनुष्य, साडातेर अंगुलनी उपर एक यव थाय. हवे शेष एवएत यवनो आंक रह्यो , ते प्रत्येक यवनो आठ युका (जू ) करता 14 युका थाय तेने 635454 ने नांजतां एक युका आवे, शेष १३ए५३० युका वधे, तेने वली आठे गुणीये तेवारे 1916240 लीख थाय तेने 632454 नो नाग देतां एक लीख आवे शेष 43776 लीख उगरे ते प्रत्येक लीखने आठ वालाग्रे गु पता 302 एटला वाल थाय, तेने 635454 नो नाग देतां ३१एर ना आंकमांड वाल श्रावे, शेष अ५५६४ वाल वधे, फरी एक वालाग्रना था रथरेणु थाय माटे एने आये गुणतां 604515 एटला रथरेणु थाय तेने नाग पहोंचे नही माटे एक रथ रेणुना आठ त्रसरेणु थाय ने तेथी त्रसरेणु करवा सारु उपली राशिने श्राठे गुणीये तेवारे ४७३६०ए६ त्रसरेणुनी संख्या थाय तेने पूर्वोक्त 635454 ने नाग देतां 44 27177 नी संख्यामां सात त्रसरेणु आवे. शेष ४०ए० त्रसरेणु वधे ते एक त्रसरेणुने विषे श्राप व्यवहारिक बादर परमाणुआ थाय , माटे ए राशिने यावे गुणतां 3271344 एटला बादर एटले व्यवहारिक परमाणु थाय. तेने 635454 नो नाग देतां 3162270 ना आंकमां पांच बादर परमाणुया आवे, शेष १०ए० एटला बादर परमाणुथा वधे ए जेवारे अनंता सूक्ष्म परमाणु विस्त्रसा परिणामे मला एका थाय ते एक बादर परमाणु कदेवाय , माटे अनंताने नाग को पोहोंचे नही तेथी शेष १०ए०७४ बादर परमाणुने 174 गुणा करीये तेवारे रजए६ एटला एक बादर परमाणुना 174 नाग करीये तेवा नाग थाय तेमांथी त्रीश नागमां रजए७३६२० खंड जाय ते बाद करीये, तो शेष 5256 एटला एक परमाणुना 174 नाग वाला बादर परमाणुना कटकावधे. ते प्रत्येक खंमना वली 632454 कटका क रीये, तो तेवा 5256 कटका उपर आवे एटलो जंबछीपनो परिधि जाणवो, एटले 316227 योजन, त्रण गाज, 127 धनुष्य, साडातेर अंगुल, एक यव, एक यूका, एक लीख, वा लाग्र अने रथरेणु बिल कुल नही परंतु सात त्रसरेणु, पांच बादर परमाणु, तथा एक Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. ԵԱ बादर परमाणुना 174 जाग करीये तेवा त्रीश नाग, तथा ते 174 नाग मांदेला एके काना 632454 जाग करीये तेवा(५२५६) नाग उपर एटलो जंबूछीपनो परिधि जाणवो. हवे उपर लख्या मुजबनी हकीगत सर्वे नीचे अंके करी टांकी देखामीये बैये. 100000 एक लाख योजननो जंबूछीपनो विष्कंन . 100000 एनो वर्ग करवा सारं लाखने लाख गुणो करीये. 10000000000 लाखने लाखे गुणतां दश अजनी संख्या थ. 10. उपला आंकने दश गुणवा सारु दशना आंके गुणीये. 100000000000 दश गुणो करतां एकशो अज एटले एक खर्वनी संख्या थ. 100dobobodoo ए उपरनी राशिने विषम सम भावीरीते करवो. विषम ते उनी लीटी करवी, अने सम ते श्रामी लीटी करवी. हवे ए विषम सम करेली राशिमांथी मूल शोधवानी रीत देखाडे बे. 10 प्रथम दशनोश्रांक उपली राशिमांथी लीधो.बाकी दश शुन्य रही. ए -3 दशमांथीत्रणत्रिक नव गया बाकी एक रह्यो. (6) 100 -1 एक रह्यो तेनी नीचे शेष रहेली दश शुन्य मांहेली बे लीधी. पड़ी त्रणने बमणा करी बनो नाग आपतां उ एकांड थया. 1 जाग श्राव्यो, माटे एकेका एकनाशांकने उनी नीचे चांपी मांढ्यो. बनां आंकनी नीचे एकडो चांपी मामतां एकशठ थया. 61 नो अांक उपरला एकशोमांथी बाद करतां बाकी ३ए रह्या. (६२)३ए० (6 बाकी रहेला जंगणचालीशनी नीचे उपरली राशिमाहेली शेष रहेली श्राप शुन्यमांथी बे शुन्य लीधी तेवारे ३ए०० थया. मूलमांत्रणने नीजे एकमो मांडतां एकत्रीश थया तेने बमणां. 375 करी बाशठनो जाग आपतां बाश बकां 372 थया.. बनो नाग आव्योमाटे उबक बत्रीशनो आंक नीचे चांपी मांड्यो. 3756 बत्रीशनां आंकने नीचे चांपी मांडतां सरवालानी संख्या थ. 144 ते उपरला ३ए ना आंकमांथी बाद करतां बाकी 154 वध्या. (635)14400(5) वधेला 144 नी नीचे शेष रहेली व शुन्यमांथी बे शुन्य लीधी. 1564 316 ने बमणा करी 632 नो जाग आपतां ६३श्फुरश्६४ थया. बेनो नाग आव्यो माटे हुए हुए 4 नोश्रांक नीचे चांपी मांड्यो. 15654 चारना आंकने नीचे चांपी मांडतां सरवालानी संख्या थ. 4 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीकीपना नकशानी हकीगत. 1756 उपरना श्रांकमांथी बाद करतां बाकी 1756 वध्या. .: (6324)175600(2 वधेला 1756 नी उपर शेषनी 4 शुन्यमां बे शुम्य लीधी. मूल शोधवा माटे 3165 ने बमणा करी 6324 नो जागः १२६धत आपतां 6324 पु 15647 थया. 4 बेनो नाग श्राव्यो माटे हुए हुए४ नो आंक नीचे चांपी मांड्यो. 15644 चारना आंकने नीचे चांपी मांगतां सरवालानी संख्या थ. ४ए११६ उपरला आंकमांथी बाद करतां बाकी वध्या ४ए११६. ६३२४४(ए११६००(७ बाकी वधेला भए११६ उपर शेष बेशुन्य रही हती ते लीधी. मूल शोधवा माटे 316 ना आंकने बमणाकरतां 63544 थया. 442707 तेनो नाग थापतां 63244 साती 4427 थया. भए सातनो नाग श्राव्यो माटे सातुं सतियां ४ए ना आंकने नी चे चांपी मांड्यो. ४४२११२ए उंगणपचासना श्रांकने चांपी मांडतां सरवालानी संख्या थर. 1 उपरला ए११६०० ना कमांथी बाद करतां बाकी वध्या. 4 उपला योजननां कोश करवाने अर्थे चारनां श्रांक साथे गुणीये. ६३२४५४)रए३७४(३ चारे गुणतां कोशनी संख्या थर. . २०ए७३६२ मूल शोधवा माटे 31627 नो आंक आव्यो . तेने बमणो करतां 632454 थाय ए के नाग श्रापतां त्रण गाउम १७ए७३६२ गाउ नो आंक गयो४०५२ एटलो आंक बाकी गाउनी राशिमांथी वध्यो. 2000 एना धनुष्य करवा सारं बे हजारना क साथे गुणवो. 632454)204400 बे हजारनां ांक साथे गुणतां 1044000 थया. जए५४१९२) 632454 ने नाग देतां 127 धनुष्यमां ए५४११२ गया. ए बाकी जए धनुष्य वध्या. ए६ एना अंगुल करवाने बन्नु गुणा करवा. ६३५४५४)दशए४७ बन्नुं गुणा करतां एटला अंगुलनी राशि थर. ७५३७१२ए एने 635454) ने नाग देतां साडातेर अंगुलमां शांक जाय ए१११ए एटलो श्रांक शेष अंगुलनी राशिनो उगख्यो Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GH अढीहीपना नकशानी हकीगत. तेना यव करवा सारूं एने आठे गुणीये (६३२४५४)ऽश्तए५२) आठे गुणाकार करतां यवनी राशि थर. 632454) एक यवना नागाकारमा 632454 गया. एभए शेष यवनी राशि रही. 7 तेनी का करवाने आठे गुणाकार करीये, उरए७४) एटली यूकानी राशि थर. 635454) एने 635454) ने नाग देतां एक यूका श्रावे. 137530 शेष 135530 यूकानी राशि रहे. ___तेनी लीख करवाने अर्थे आठ गुणा करीये, 1916240 एटली लीख थाय. 635454) एटली राशिये नागाकार करतां एक लीख आवे. 436 शेष लीखनी राशि वधी. 7 तेना वालाग्र करवाने आग्गुणा करीये. 307 एटली वालाग्रनी राशि थर. 37474 एने 635454) नागे देतां उ वालाग्र श्रावे. 75564 शेष वालाग्रनी राशि वधी. 7 तेना रथरेणु करवाने श्राप गुणा करीये. 604515 एटला रथरेणु थाय तेने नाग पहोंचे नही. 7 माटे एना त्रसरेणु करवा सारु श्रावगुणा करीये. 4036056 एटली त्रसरेणुनी संख्या थाय. 4427177 एने 635454) ने नाग देतां सात त्रसरेणु आवे. 4017 शेष एटली त्रसरेणुनी राशि वधी. 7 एना व्यवहारिक वादर परमाणु करवाने आठे गुणीये. 3571344 एटली व्यवहारिक बादर परमाणुनी राशी थई. 316220 ६३२४५४)नो नाग देतां पांच बादर परमाणुमां ए श्रांक श्रावे. १०ए० एटली बादर परमाणुनी राशि शेष रही. 174 एकेका परमाणुना 174) खंग करवा सारु 174 गुणीये. १एउज्ज६) एटला एकशो चमोतेरीया नाग थया. Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ចុច अढीछीपना नकशानी हकीगत. रए७३६२०) तेने 635454 नो नाग देतां त्रीश नागमा ए श्रांक श्रावे. . 5256 शेष 5256) एकसो चमोतेरीया खंड वध्या. 361 प्रत्येक खंमना 361) कटका करवा सारु 361) गुणीये. रए४१६ (174 तेरीया एक खंमना 361) कटकानी राशी थ. २७ए७३६५) 632454) नाग देतां त्रण जागमां एटला आंक थाव्या. ___54 शेष चोपन कटका रह्या तेने कांश नाग पहोचे नही. योजन. गाज. धनुष्य. अंगुल. यव. यूका. लीख. वालाय. रथरेणु. 3162- 3- 12- 13 // - 1- 1- 1- 6- 0 त्रसरेणु. बादरपरमाणु. एक बादर परमाणुना.एकशो चमोतेरीया शेष. वध्या. ___ 5 17 जाग करीये तेवा एक जागना 361) | 54 | जाग. नागकरीये तेवाजाग 30 __जंबूहीपनी परिधि गणवाना करणनो यंत्र लखीये बैये. विष्कजना योजन. 100000 तद्वर्ग योजनराशि. 10000000000 तेने दशगुणा करवानी राशि. 100000000000 वर्गमूले लब्घयोजननी राशि. 31627 शेष राशि. बेदराशि. 632454 कोश करवाने अर्थे शेष राशिने चार गुणा करता थयेली राशि. 2002 बेदांकनो नाग आपवामां लाधा कोश. शेषराशि. 4050 धनुष्य करवाने अर्थे बे हजारनो गुणाकार करता थयेली राशि. 2044000 बेदांकनो नाग आपवे करी लाधा धनुष्य. 1 शेष राशि अंगुल करवाने अर्थे छन्नुं गुणा करतां थयेली राशि. ज्दशएशन बेदांकनो नाग आपवाथी लाधा अंगुल. 13 // शेष पूर्ण अंगुल राशि रही, Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. नए हवे कमलादिक, छीपादिक, चूलिका, कूट, कंचन गिरि, कुंडादिक, कूटनां मूल, कू टनां शिखर, मेरुपर्वतनां मूल, मेरुनां शिखर, नंदनवननी बाहिर,नंदनवननी मांहेली कोर इत्यादिक स्थानकोनी परिधिनां गणित उपरली रीति प्रमाणे पोते करवां, अथवा गुरु मुखश्री धारवां, अही मात्र ते मांहेलाकेटला एक स्थानकोनां नाम संझेपथी मांमीने तेनी परिधि करवाने अर्थे ते स्थानकोनो विस्कंन तथा ते विस्कंचनो वर्ग, पठे। ते वर्गने दश गुणो करतां जे संख्या आवे, तेनो श्रांक तथा तेनुं मूल शोधता जे टला योजननो अंक लाने, ते आंक तथा जेटला योजन शेष रहे, तेनो श्रांक तेमज शेष रहेला योजनना धनुष्य प्रमुख करीने पनी तेने वर्गनी राशिने शोधतां जे ल ब्धांक आव्यो होय, तेने बमणो करीये, तेवारे जे राशि थाय ते राशिये करीने छेदी ये एटले जांजीये तेने बेदराशि कहीये, ते बेदरा शिनो श्रांक तेनो यंत्र नीचे देखाड्यो , तिहांधी सुझोये जोश्ने गणित करी मेलाववा, जूदा जूदा स्थानकोनी परिधि विष्कंनादिकनो यंत्र, * R aenu 144 Ram 2DDE BP अंकस्थानकोनां नाम, विष्कंन. वर्गनो अंक, दशगुणो अंक, लब्धांक. शेषराशि बेद, 1 कमलादिक. 4 40 160 4 छीपादिक. 64 640 50 5 चूलिका मूल. 1440 4 6 कोशकूट.. 65 6250 २५न कांचन गिरिशिखर 25000 316 कांचन गिरि मूल. 10000 100000 316 144 632 ए कुंमादिक. 14400 144000 37 ३५ए 57 57600 576000 उपज 2436 2516 11 कूट शिखरादिक. 62500 625000 gruo ए० 150 12 कुंमादिक. 40 230400 2304000 257 271 3034 13 कूटमूलादिक. 500 250000 2500000 151 ४३ए 3162 14 मेरुशिखर. 1000 10000000000000 3162 1756 5324 15 मेरुन्नूतल विष्कंन 20000 100 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 31622 ४ए११६ 63244 2500 250 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए अढीकीपना नकशानी हकीगत. श्रा उपरथी एम समजवु के एक योजन विष्कनवालो कोइ वाटलो गोलाकारे प दार्थ होय तेनी त्रण योजन जे लब्धांकना कोगमां मूक्या बे, ते तथा उपर शेष राशि मां एक योजन रह्यो में तेना बेद ब करीये एटले एक योजननो हो नाग उपर एटलो फरतो परिधि थाय, अने बे योजनवाला वाटला पदार्थनी योजन पूरा अने तेनी उप र चार योजनना बारमा नागमां जेटली जगा श्रावे तेटली लेवी. एटलो परिधि जाण बो. ए रीते सर्व स्थानकोने विषे जाणी लेवु. लब्धांकने बमणा करीये तो बेदराशि थाय हवे पूर्वला यंत्रनी रीतेज मेरु पर्वतना नीचला तलीयानी तथा नंदनवनादिकनी नूमि मां योजनोनी जे संख्या कही ने, तेना उपर वली एक योजनना अगीआर नाग क रीये, तेवा नाग प्रत्येक स्थानके आवे बे,माटे ते स्थानकोना विस्कंचना योजनोना श्र गीपारीश्रा नाग करीने परिधीनुं गणित कयुं तेनो यंत्र नीचे लखीये बैये. मूलयोजन तथा एकंदरअगीआरी ते कलानो वर्ग कर चढतो मेरुपर्वत माहेला जूदाजूदा एकयोजनना अश्रा नाग संबंधितां जे श्रांक श्रावे अंक. स्थानकोनां नाम.. गीधारीबानाग कलानी संख्या. तेनी संख्या. नी कला संख्या. 1 मेरुनो नीचेनो तलीयो. १००ए / 191000 . 12321000000 2 नंदनवननीबाहिरनीपरिधि ए५४ 1050 १९एए०२५०००० 3 नंदनवननी मध्यपरिधि. ए५४३ ՍԵսց ए०२२५०००० 4 सोमनसवननी बाहिरपरि. 422 H3000 २०ए000000 5 सोमनसवननी मध्यपरिधि 327 36000 १२ए६०००000 ते वर्गनी कलाने दश वर्ग- मूल का शेष राशि जेट परिधिना योज गुणी करतां जे श्रांक हाडतांजे कला.ली कला रही बेद राशिनी न तथा कला श्रावे तेनी संख्या. लाने तेनो अंक तेनीसंख्या. संख्या. नो अंक. 123210000000 351012 1102500000 ३४६२६ए एस०२२५00000 31144 २०ए0000000 १२ए६००00000 19342 ॥तिपरिधिगणितम् समाप्तम् // उ०२०२४ 3110 शए६३ए 672530 3147 217744 ६शन 20316 141 शएश्५४ 1351131 रए७६३६ शश६४ १०३४ए 3 // आ एकज यंत्रना बे विनाग कीधा // Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. // अथ द्वितीयगणितपदप्रारंजः // हवे हरेक वाटला क्षेत्रना योजन योजन प्रमाण समचतुरस्र खंम करवा, तेने ग णित पद कहीये. ते करवानी रीति कहे . वाटला क्षेत्रनी परिधिनी संख्यानो जेटलो अंक होय, तेने तेज वाटला क्षेत्रनो जे विष्कंन होय तेना चोथा नागना अांक सा थे गुणीये तेवारे तेनुं गणित पद थाय ते एक जंबूझीप आश्रयी देखाडे . जंबुझीपनो परिधि (316227) योजन , तेने एज जंब्रहीपनो विष्कंन एक ला ख योजननो , तेना चोथा नागना पच्चीश हजार योजन थाय. तेनी साथे गुणीये ते वारे 5675000 योजन थाय, अने ते परिधिनी उपर त्रण कोश . तेने पच्चीश हजार साथे गुणतां 75000 कोश थाय. ते चार कोशनो एक योजन करतां 17750 योजन थाय, तथा परिधि एकशो ने अहावीश धनुष्य ने तेने पञ्चीश हजारे गुणतांब त्रीश लाख धनुष्य थाय, ते आठ हजार धनुष्यनो एक योजन गणतां 400 योजन थाय. ए सर्व एका करीये, तेवारे ए०५६ए४१५० योजननी संख्या थाय. हवे परि धि उपर सामातेर अंगुल , तेने पच्चीश हजारे गुणतां 337500 अंगुल थाय. ते एक धनुष्यमां उन्नु अंगुल आवे, माटे एने उन्नु नागे वेचता 3515 धनुष्य थाय.उपर शाठ अंगुल वधे तेना एक कोशमां बे हजार धनुष्य प्रमाणे पोणाबे कोश अने पांत्रीश सो धनुष्य थाय. तथा उपर पन्नर धनुष्य ने ते एकेका धनुष्यना चार चार हाथ करतां शाउ हाथ थाय, तथा उपर शाठ अंगुल वध्या , तेना अढी हाथ थाय, ए सर्व मली पुए०५६ए४१५० योजन उपर पोणा बे कोश अने शाढा बाश हाथ एटर्बुजंबूझीपनुं ग णित पद थाय, ए एकेक योजनना खंडुक करीने जंबूछीपनी जेटली नूमि बे. तेमां थापीये. तो एटला रही शके. एवी रीते बीजा पण वाटला खेत्रना सर्व स्थानके गणित पदना हिसाब करवा, एनो यंत्र नीचे देखाड्यो . ए गणित पदनी यंत्रस्थापना, ल. चढतो परिधिनां विष्कननो गुणाकारकर एक योजनमांसरवाले योजगाजधण् अंगु अंक. योजनादि. चोथोनाग तां राशि थर.अंगुलादि. ननी संख्या. 1 3162 2 5000 7905675000 पूरा योजन. 7905675000 2 कोश-३ 25000 5000 चारगाउयोग 1750 3 धनुष्य.१२७ 25000 30000 आठहजारध. 400 4 अंगुल. 13 // 25000 337500 बन्नुअंगुलनु. 0 1 // 1560 5 एकंदरसंख्या. 17905694150 2 // 15 60 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. // श्रथ तृतीय जीवा करण प्रारंजः // हवे त्रीजो जीवा करण कहे. जेवारे जीवा करीये तेवारे आ वाटवू देत्र जे जंबू छीप एक लाख योजननुं बे, तेना जंगणीशीश्रा जाग करीये, तेवारे (१ए00000) श्रो गणीश लाख कला थाय, तेमांथी दक्षिणा नरतनी इकु कला (4525) ते बाद क रीये, तो (१नएy४५) कला बाकी रहे, तेने चार गुणी करीये, तेवारे ( एरए००) थाय तेने इरकनी कला (4525) ले तेनी साथे गुणीये अथवा ( 175475) कला जे बाकी रही तेने शकुनी कला (4525) ने चोगुणी करीये, तेवारे ( 17100) थाय. तेनी साथे गुणीये, तेवारे (३४३०७०ए७५००) थाय, तेने पूर्वली रीते विषम सम करीने मूल शोधीये, तेवारे (15224) एटलो श्रांक आवे, अने शेष (167324) एटली कला वधे, केम के (15224) अांकने एज ांक साथे गुणीये. तेवारे ३४३०४ए३०२७६ थाय, ते उपरली विषम सम वाली राशिमांश्री बाद करीये, तेवारे शेष (167324) कला वधे. हवे 15224 कलाना योजन करवा सारु ए राशिने जंगणीश जागे वेंचीये, तेवारे एJAG योजननी उपर बार कला थाय, अने 167324, कला व धी बे, तेना धनुष्य प्रमुख करीने पूर्वे जंबछीपनी परिधिनी रीते जो श्रानुं मूल शो धीये, तो बेदकला (370447) आवे, तेनी साथे जागाकार करतां जेटला धनुष्य प्र मुख उपर आवे, ते एJAG योजन अने बार कलानी साथे लेवा एटली दक्षिणा जरतनी जीवा जाणवी. एवीज रीते वैताढ्य प्रमुख सर्व स्थानकोनी जीवा करवी आंहीं मात्र एनो यंत्रज नीचे लख्यो . अने एकज आ दक्षिणार्ड नरतनो हिसाब करी बताव्यो . परंतु वैताढ्या दिकना हिसाब पोतेज करीने मेलववा रए00000 जंगणीश लाख कलानो जंबहीपनो विष्कंन . 4525 तेमांथी दक्षिणाई बरतना इकु कला बाद करवीरजए५४७५)शेष कला रही१२०० तेने 4525) इकुनी कलाने चार गुणी करतां 10100) कला थाय, तेनी साथे गुणवा. ३४३नए५०० एटली गुणाकार करतां कलानी राशि थ. 343GLIL मूल शोधवा सारु विषम सम करीये वैयें. 1 (1 धुरना बांके विषम , माटे धुरना एकज आंकने शोधवो. 2)243 ( एकेका एक गयो बाकी बे रह्या उपर तेतालीश लोधा. Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए३ 16 64 124 25 अढीकीपना नकशानी हकीगत. एक 5 बेनो जाग आपतां श्राप 5 शोल थया. आउनो नाग श्राव्यो माटे श्रावं श्रावं चोशठ चांपी मांड्या. चोशठने चांपी मांमता बशोने चोवीश थया. ते बाद करतां बाकी १ए रह्या नीचे () वे आंक लीधा. 36) 10 (5 उत्रीशनो नाग आपतां त्री पांचुं 170 थया. पांचनो जाग आव्यो माटे पांचुं पांचं पच्चीश चांपी मांड्या. 2725 पच्चीशने चांपी मांगता 1725 थया. 30 ते बाद करतां बाकी त्र्यासी रह्या नीचे (ए) बे श्रांक सीधा 370) 140 (5 त्रणशे सीतेरनो नाग आपतां 370 3 980 थया. .4 बे नो नाग आव्यो माटे कुए हुए चार चांपी मांड्या. 44 चारने चांपी मांगतां 1404 थया. 3704) ए०५७५(५ बाद करतां बाकी ए०५ रह्या. नीचे 75 बे आंक लीधा. अव 3704 नो नाग आपता 3704 47 थया. बेनो नाग आव्यो माटे हुए हुए चार चांपी मांड्या. 44 चारने चांपी मांडतां 80G4 थया.. .37044) 1645170 बाद करतां बाकी १६४ए। रह्या नीचे बे शून्य लीधी. 147176(4)37044 नो नाग आपतां 37044 चोकुं 147176 थया. 16 चारनो नाग थाव्यो माटे चार चोक शोल चांपी मांड्या. 1402776 शोलने चांपी मांगतां 1471776 थया. रए) 167324( बाद करतां शेष कला 167324 रही लाधी कला 175224 152 एना योजन करवा सारु उंगणी आहुं 152 गया. 15)153 (7 बाकी पन्नर रह्या. जपर त्रण लीधा. 155 वली उंगणी आतुं 152 गया. रए)१२४ (0 बाकी 1 रह्यो.तेनो नागन पहोचे माटे लखवी उपर चोवीशलीधा. 194 (6 उंगणी बके 114 गया. 10 बाकी दश कला रही. 6)10 ए रीते 6 योजन उपर दश कला शेष रही. Gooo - एना धनुष्य करवाने आठ हजारे गुणीये. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 / ६००एol अढीछीपना नकशानी हकीगत. Hogavo 6 योजनने श्राप हजारे गुणतां धनुष्य थया. 421 // दश कलाना 421 // धनुष्य उपर अगधी कला वधी. 37044)045221 // सरवाले एकंदर धनुष्य थया. 3704 मूल 15224 ने बमणा करी नाग थापतां एक श्राव्यो. ३४०४४)३३४०७१(ए बाकी 33404 रह्या उपर एक लीधो. 3334032 3044 नवा 3334032 गया. शेष धनुष्य ६७०ए रह्या. उपर शून्य लीधो. ए अंगुल करवाने उन्मुंये गुणवा. 402540 उपली राशिने बएं गुणतां आंक. 60310 उपली राशिने नवे गुणतां आंक. उपली राशिना रहेला धमधा श्रांके गुणतां. 37044)64406 (1 सरवाले एकंदर अंगुल थया. 37047 मूलनी राशीने बमणा करी नाग देतां एक श्राव्यो. 304) 203620 (7 बाकी 273620 रह्या उपर आप लीधा. 2553136 फरी 34044 ने साते गुणतां ए आंक आव्यो. . 143072 शेष अंगुल 143072 रही. ए२६१५ पा आंगुलमां एश्६१५ नो अंक गयो. 5460 शेष अंगुल 50460 राशि रही. ए दक्षिणा; जरतनी जीवा एya) योजन उपर एक योजनना जंगणीश नाग करीये, तेवा बार नाग तथा वली एक योजनना जंगणीशिया 167324 जाग शेष व ध्या बे, तेने छेद कला 3004 नागे वेंचीये, तेवारे 151) धनुष्य अने सवा सतर अंगुल श्रावतां शेष 50460 अंगुल राशि वधे बे, तेने बेद कलानो श्रांक वधारे , माटे नाग पोहोचे नही, तेथी तेना वली यव प्रमुख करीने जे रीते ते नाग पहोचे तेम पहोचामवो अने गणित करी बेवं जोश्ये. हवे ए जेम दक्षिणाई नरतनुं जीवाकरण कगुं, तेम वैताढ्यादिक पर्वतोनी जीवा नुं गणित पण करवं. अहियां सर्वेना जूदां जूदां गणित करता नथी, पण जंबूझीप माहे ला सर्व स्थानकोनी जीवा करवानो यंत्र नीचे लखिये बैये. ते गणित समजी लेवं. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए अढीछीपना नकशानीहकीगत. नव स्थानकने विषे क्षेत्र विष्कंन एक लाख योजन , तेनी एकेक योजननी जंगणीश कला करतां उंगणीश लाख कला थाय तेने विषे नव स्थानकनी जीवाना यंत्रनी स्थापन. - 1500 aane cua - जीवा करवानो योजन प्र जंगणीश नाग विष्कंजमांथी बाइकुकलाने चार क्रम नाम पूर्वक, माण इकु.करतांश्रकुकलादकरतांशेषकला गुणा करतां. दक्षण जरताई. / 2303 4525 रजए५४३५ 1100 वैताढ्य. 5475 204525 10 पूरण नरत. 52612 {0000 एन्ए0000 40000 हिमवंत पर्वत. 30000 130000 120000 हिमवंतयुगलदे 36439 10000 130000 200000 महाहिमवंतप एव 150000 1750000 600000 7 हरिवर्षदेत्र. / 1631519 310000 १५ए0000 1240000 0 निषधपर्वतः 3315735 63000 1270000 2520000 ए महाविदेहमध्य 5000 00000 एए0000 3000000 शेष कला रही तेने चार मूल शोधतां तिबेदरा शिनो मूल र मूलमा लाधी लाधी कलाना योजन गुणी इकु कला साथें शेषरा शिरही " कला तेनो तथा उंगणीशीया गुणतां. तेनो श्रांक. श्रांक. आंक. नागनी कला. 34300500 16732437044 15224 ४२४एल0ए000 ४०१ए ४०७३न्य २०३६ए? 75600000000 ԱՍՍՍՍԵ 2744 224400000000 730436 ए४७४१६ 47370 512400000000 एएएएए 1431642. 1050000000000 १५६ए७५ 2043 102465 १ए७१६०००00000२०७३५०४ 2022 1404136 320080000000065044 35732 २७नए६६ 3610000000000 १ए00000 एन 2070 14471 २४ए३२ 3764 53731 ३ए०१ ए४१५६ 100000 ही जगानी पहोला न होवाथी एक यंत्रना बे नाग उपर अने नीचे कीधा बे. एज प्रमाणे ऐरवत क्षेत्रमा पण जीवानुं कारण जाणवू. इति तृतीय करणम् // Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. हवे चोथु इकु गणित कहेले. श्रा जंब्रहीपने विषे एक देश जे नरत क्षेत्र अथवा ऐरवत क्षेत्र ते चढावेला धनुष्य ने आकारे , तिहां वाणना गमनी वच्चेनुं जे विष्कंन तेने इकु कहीये ते इकुना जेट ला योजन होय तेने योजननो इकु कहीयें, अने ते एकेका योजनना जंगणीश नाग करीने ते जागनो श्रांकडो जेवारें लखीये तेवारें कलानो इकु कहेवाय. जेमके दक्षिणार्ड जरतनो इकु (230) योजननी उपर त्रण कला ने तेने उगणीशना श्रांक साथे गुण ये तेवारे (4525) कला थाय ए कलानो इकु जाणवोएटखे दक्षिण भरत क्षेत्रनी सर एटले बाणनी कला, (4525) थ ते या प्रमाणे:--२३०) योजनने ओगणीशे गुणतां 4522 कला थाय तेनी साथें उपरनी त्रण कला ले ते मेलवीये तेवारे 4525 कला थाय. एरीते नवे स्थानकना योजन- इकु तथा कलाना इकु ते सर्व पाउला यंत्रमा श्रावी गया डे तेमांथी जोश् लेवा. इति चतुर्थ श्रकुगणितं समाप्तम् // हवे पांचमो वैताढ्य प्रमुखनो धनुपृष्ठ एटले पुरानो नाग तेनुं गणित करवानो उपाय कहे . तिहां जे स्थानकनुं धनुःपृष्ठ करवू होय, तेना कुनो जे श्रांक होय, तेने तेटलागुणो करीने वर्ग करीये; पठी ते वर्गने 3 गुणो करीयें तथा जीवानो जे श्रांक होय तेने पण तद्गुणो वर्ग करी पडी ए बेहु वर्गने - करीने तेनुं मूल शोधता जे आंक यावे, तेटलु ते स्थानकनुं धनुःपृष्ठ जाणवू. तेमां प्रथम दक्षिणं जरताना धनुःपृष्ठy गणित करी देखाडे बे. 4525 दक्षिणरताईनी इकु कला 4525 बे. 4525 तेनो वर्ग करवा सारूं तणो करीयें. 22625 जपला आंकने पांच साथे गुणतां संख्या. उपला आंकने बे साथे गुणतां संख्या. 22625 उपला श्रांकने पांचसाथे गुणतां संख्या. 1100 उपला आंकने चार साथे गुणतां संख्या. 20475625 एकंदर इकुकलाना वर्गनी राशि श्रश्. ए राशिने बगुणी करवामाटे बयें गुणवं. 152753750 ए इकुवर्गने गुणो करतां एटली राशि थर. ३४३००एy५०० पूर्वोक्त जीवानी राशिना वर्गनो श्रांक साथे मेलवीये. 34430551250 ए बेहुराशिना सरवालानो अांक थयो. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ug 1-1-1-1-1 -1 16 64 अढीहीपना नकशानी हकीगत. SAU३०र५० एनुं मूल शोधवा सारु विषम सम कर. 1) पहेलो अंक विषम , माटे एकज आंकने शोध्यो. 2) 244 ( शोधतां एकेका एक गयो, बाकी बेरह्या. उपर चुमालीश लीधा. एकनो नाग आव्यो तेने बमणा करी बे अहा शोल थया. पाउनो नाग श्राव्यो, माटे आगे आगे चोशठने चांपी मांड्या. सरवाले बशे चोवीश थया, ते बाद करवा. 36) 2030 (5 बाकी वीश रह्या उपर त्रीश लीधा. 10 अढारने द्विगुणा करी त्रीश पंचां र७० थया. पांचनो नाग श्राव्यो माटे पांच पच्चा पच्चीश चांपी मांड्या. 2025 सरवालो 1725 थयो. 30) २०५ए। (5 ते बाद करतां बाकी 205 रह्या उपर एए लीधा. . 150 - 15 ने द्विगुणा करी 370 पांचु 1750 थया. 25 पांचनो नाग आव्यो माटे पांच पच्चा पचीश चांपी मांड्या. 17525 सरवाले 17525 थया. 3310) 207012 (5 ते बाद करतां 2070 रह्या उपर बार लीधा. 1550 मूलना 2055 ने हिगुणा करी 3710 पंचां 17550 थया. 25 पांचनो नाग आव्यो माटे पांच पच्चा पचीश चांपी मांड्या. 205525 सरवाले रन्५५२५ थया. 37110)2147750(5 बाद करतां बांकी 147 रह्या उपर पच्चास लीधा. 175550 17555 ने बमणा करी पांचे नाग देतां ए राशि श्रावी. 25 पांचनो नाग आव्यो, माटे पंचो पंचो 25 चांपी मांड्या. 2755525 सरवाले 1755525 थया. 371110) 273525 बाद करतां शेष कला रही तेने नाग पोहोचे नही. ए रीते 175555 नो श्रांक श्राव्यो शेष कला श्ए३२२५ वधी तेने 175555 ने ब मणा करिये तेवारे 371990 थाय. तेनो नाग पोहोचे नही माटे पूर्वलीरीते कोशध नुष्यादिक करी नाग पहोचाडवो, ए दक्षिण जरतार्डनुं गणित करी देखाड्युं शेष स्थान कनुं पण एरीते गणित करवू.ए दक्षिण जरता दिक स्थानकना धनुःपृष्ठनो यंत्र नीचे ल ख्योने,तिहां महाविदेहना अनाग पर्यंतजंबूछीपनी परिधिना अनागनुं धनुःपृष्ठावे Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (UR अढीछीपना नकशानी हकीगत. दक्षिण जरता दिक नव स्थानकना धनुःपृष्ठनो यंत्र. 1050000000000 स्थानकोनां कुनी कुना वर्गनी इकुवर्गने गुणो क जीवाना वर्गनी कला नाम. कला. कलानो श्रांक. रतां कला. नो आंक. जरताई. 4525 20475625 12253750 ३४३०००ए७५० वैताट्ये. - 5475 एए७५६२५ २७एज्५३७५० 8:37ՀԱՑԱԾ पूर्ण नरते. 10000 100000000 600000000 75600000000 हिमवंतगिरि 3000 ए000000 5400000000 224400000000 हिमवंतदेत्रे. HएU000000 शएJ00000000 512400000000 महाहिमवं० 150000 22500000000 135000000000 हरिवर्षदेत्रे. 310000 ए६१00000000 576600000000 1971600000... निषधपर्वते. 630000 3969700000000 2381400000000 3200400000000 महाविदेह. एए0000 902500..... 54150000 3610000000000 ब गुणी करेली इकुना व वर्गमूल आण वर्गमूल आण वर्गमूल श्राणलाधेलीकलाना गनी कला तथा जीवाना तां शेषराशि, तां बेदराशि. तां लब्धराशि-योजन तथा क वर्गनी कलानो सरवालो. नो अांक. नो श्रांक. नो श्रांक. लानी संख्या. 34430551250 शए३२२५ 371910 रज्य५५५ ए७६६। 1 ४१६६एए५१२५० 26 40264 204132 20743315 उ६२००000000 262151 55206 276043 १४५श्जर श्श्ए G00000000 56124 एपन्न पए३७४ 25230 // 4 541700000000 एए५१०० 1472240 736070 3710 195000000000 195071 2177154 20577 ५७शए३।१० 25HROO0000006 36 317616 2576300 भ०१६।४ 5571000000000 1567111 4725166 236253 १२४३४६ाए ए०२५000000000४६६ए४३१ 600326 3004163 157213 // 16 // श्रा एकज यंत्र पण पुस्तकमां साहामी बाजु जगा न मलवाथी चालता अनुकमना कोगने नीचें लक्ष लीधा बे. प्रथमना यंत्रोमां पण बे ठेकाणे एमज कमु . इति पंचम धनुःपृष्ठगणितयंत्रं समाप्तम् Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. एए अथ षष्ठ बाहा करण विधि प्रारंजः // हवे बहुं बाहकरण कहे . श्रा ठेकाणे बे धनुःपृष्टनो विश्लेष करीये, तिहां ददि प जरतार्ड अने वैताढ्यपर्वत ए बे धनुष्य , तेमां जे न्हा, धनुष्य होय ते महोटा धनुष्यमांथी काहामीये तेने विश्लेष कहीये,ते काहाडीने पनी जे शेष रहे, तेनुं थर्क करीये तेवारे वैताढ्य तथा हिमवंत प्रमुख पर्वतनी बाद थाय. बाद एटले पर्वतना तथा क्षेत्रना बेमानो विस्तार जाणवो, ते आवी रीतेः दक्षिणाई जरतनुं धनुःपृष्ट (ए७६६) योजननी उपर एक कला , अने वैताढ्य प तनुं धनुःपृष्टः (10743) योजनने पन्नर कला उपर बे, माटे वैताढ्यना धनुःपृष्टनी अ पेक्षाये दक्षिणाईनरतनुं लघु धनुःपृष्ठ कहेवाय, अने वैताढ्य, महा धनुःपृष्ठ कहेवाय, तेवारे महाधनुःपृष्ठनी राशिमांथी लघु धनुःपृष्टनी राशि बाद करीये, तो बाकी (एys) योजन उपर चौद कला रहे, तेनु अर्क करीये तेवारे () योजन उपर सामीशोल कला श्रावे. एटला योजन प्रमाण वैताढ्य पर्वतना बेहु तरफनी प्रत्येक एकेकी बाह जाणवी. एवी रीते हिमवंत महाहिमवंतादिक सर्व पर्वतोनी तथा हिमवंतादिक दे त्रोनी बाहनुं गणित स्वयमेव करी ले. अहिं मात्र एनो यंत्रज लखीये बैये. अथ बाहा करण यंत्रम् बाहा करवाना वैताढ्यादिकनुं जरता दिकनुं बेहुनो विश्लेषतेनुं अर्डकरतां जे स्थानकोनां नाम.महा धनुः पृष्ठ लघु धनुः पृष्ठ. करतां बाकी. श्रांक श्रावे, ते बाह. योजन. कला.योजन. कला. योजन. कला. योजन कला. 1 वैताढ्य पर्वत. 10743 15 ए७६६१ ए७७ 14 16 // 1 जरत देत्र. 14520 11 1743 15 34 15 ए 3 हिमवंतपर्वत. 25530 4 14520 11 1701 15 5350 15 // 4 हिमवंतक्षेत्र. 3740 10 25530 4 13510 6 6755 3 5 महाहिमवंतपर्वत 57273 10 340 10 1553 // ए७६ // 6 हरिवर्षदेत्र. 4016 ५७२ए३ 10 26722 13 133616 // 7 निषधपर्वत. 124346 ए 4016 440330 5 20165 // विदेहाई. 157213 26 // 124346 ए 33767 // 163 13 // // इति पृष्ठ वाहा करण विधियंत्रादि संपूर्णम् // Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 200 अढीछीपना नकशानी हकीगत. . अथ सप्तम प्रतरकरण गणितं. हवे सातमो प्रतर करवानो उपाय कहे जे. जरत क्षेत्र प्रमुखने समचतुरस्र करवां, तेने प्रतर कहीये तिहां प्रथम बेबो खंग जे जरत देत्र के तेना प्रतर करवानो उपाय देखाडे बे. जरतानी इकु साथे जीवा गुणीये, ते गुणतां जे श्रांक श्रावे, तेने चार जागे वहेंची नाखतां चोथा जागमां जे श्रांक श्रावे, तेने तरुणो करीये एटले तेनो वर्गक रीने ते वर्गने दशे गुणीये. एम करतां जे आंक श्रावे, तेनुं मूल शोधिये, ते मूल शोध तां जे श्रांक आवे, ते प्रतिकला जाणवी; पड़ी ते प्रतिकलाने उंगणीश जागे वेंचीये, तेवारे तेनी कला थाय, अने शेष वधे, ते प्रतिकला कहीये. फरी ते कलानी राशिने उगणीश नागे वेंचीये, तेवारे योजननी संख्या थाय. जेम के जरतक्षेत्रनी इकुकला 4525) , तेनी साथे जरतदेवनी जीवा संबंधी कला 175225 ) किंचित् न्यून , तो पण ते सूक्ष्म गणित नथी करता, माटे एटलीज राशि साथे गुणतां 143125 थाय, तेने चारनो जाग श्रापीये, तेवारे 2055351 थाय. शेष एक वधे. पनी ए राशिने एज राशि साथे गुणीने एनो वर्ग करीये, तेवारे ४३ए०५२४३५१एचएए६१ थाय. अने पनी एने दश गुणा करवा सारु एक मिंडं नीचे श्रापीये. तेवारे ४३ए०५२४३५१एएए६१० थाय. तेने विषम सम करी मूल शोधीयते श्रावी रीतेः ४३ए०५२४३५१एएए६१० (६६२६१०३१ए मूल शोधतां ए राशि आवे. 36 (6 तालीशमांथी ब बक त्रीश गया. 12) ए०(६ बाकी सात रह्या उपर नेतुं लीधा. बने बमणा करी बार बकां बहोतेर थया. बनो जाग श्राव्यो माटे बबक बत्रीश चांपी मांड्या. 756 बेहुनो सरवालो श्रापतां 756 गया. 132)3452(2 बाकी चोत्रीश रह्या, उपर बावन लीधा. 264 बाशठने बमणा करी 132 1 264 थया. बेनो नाग श्राव्यो माटे उए कुए चार चांपी मांड्या. 2644 सरवाले 2644 थया, ते बाद करवा. 1354)G043(6 बाकी रह्या उपर 43 लीधा. उए४४ 665 ने बमणा करी 1324 बकां ए४४ थया. बनो जाग आव्यो माटे उबकां बत्रीश चांपी मांड्या. -1 - 1-1 -1 - 1 -1 -1 - 1 72 36 4 36 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 101 अढीछीपना नकशानी हकीगत. जुएश६ सरवाले ए४६ थया ते बाद करवा. 13252)136759(1 बाकी 1367 रह्या उपर एकावन्न लीधा. 13252 6626 पु 13255) एकुं 13255 थया. एकनो नाग श्राव्यो माटे एकेकुं एक चांपी मांड्यो. 132521 सरवाले 132521 गया. १३२५२२)४२३०ए ( बाकी 4230 रह्या, उपर एश सीधा जाग न पहोचे माटे पडी. १३२५५२०)४२३०एसए(३ फरी ४२३०एर नी उपर पुए नो श्रांक लीधो. ३ए७५६६० (665610 ने बमणा करतां 135220 त्रिका ३ए७५६६० थया. त्रणनो नाग आव्यो माटे त्रण त्रिक नव चांपी मांड्या. ३ए७५६६०ए सरवाले ३ए७५६६०ए गया. 1325206) २५५२६०ए६ (1 बाकी 2552670 रह्या उपर बन्नु लीधा. 13255206 6656103 ने बमणा करी 13252206 एकां एटलाज 1 एकनो नाग श्राव्यो माटे एकेकुं एक चांपी मांड्यो. 132522061 सरवाले 132522061 गया. 132522062) ११२१४५०३५१०(ए बाकी 1 45035 रह्या उपर दश लीधा. ११एश्६एए५७ ६६५६१०३१ने बमणा करतां 132522065 नवां ११एश्६एज्५५७ थया. ___1 नवनो नाग श्राव्यो माटे नेवे नेवे र चांपी मांग ११एश्६एज५६६१ सरवाले १९एर 65661 गया. 1325220637) ३४७५१७७४ए (शेष ३४३५१७४ए राशि रही. एने लब्धराशिनो श्रां क ६६५६१०३१ए ले तेने बमणा करतां 1325220630 नो अांक थाय, तेनी साथे जाग पहोचे नही तेने सूक्ष्म गणित नथी माटे एमज पमता मूकवा. अने ६६५६१०३१ए ए लब्ध प्रतर प्रतिकला थर, तेने उंगणीश नागे वेंचीये, तेवारे ३वश्श कलानी उपर प्रतिकला थाय. हवे एना योजन करवा सारु फरी अंगणीश नागे वेंचिये तेवारें ( 173545 ) योजननी उपर बार कला अने उ प्रतिकला तथा ३४७५१७Hए एटली संख्यांनी पूर्वोक्त 1325220637 छेद राशि वाली शेष राशि रही, ए दक्षिणरताना प्रतर करी देखाड्या. तेना यंत्रनी स्थापना नीचे करीये बैये. Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 102 अढीछीपना नकशानी हकीगत. दक्षिण जरतार्थना प्रतर करवानो यंत्र. 1 इकु कला. 4525 2 किंचित् न्यून जीवा कला. 15225 3 इकु कलाने जीवा कला साथे गुणतां. 3143125 4 तेने चार जागे वेंचतां कला... 205535 5 चोथा नागनी कलानो वर्ग करतां ४३ए०५२४३५१एएए६१ 6 तेने दशगुणो करतां ४३ए०५२४३५१एएए६१० 7 ते वर्गनुं मूल शोधता लाधेलो आंक. ६६५६१०३१ए शेष राशि रही. ३४७५१७ए ए बेद राशि. 1325220630 10 लाधेली प्रतिकलाने रए जागे वेंचतां कला. 344226 प्रतिकला. 11 फरी ते कलाना अहेवन करवा १ए नो नाग श्रापतां १३५४ज्य एटला योजननी उपर 12) कला श्रने प्रतिकला जाणवी. हवे वैताढ्य प्रमुख मध्यदेवोना प्रतर करवानो उपाय कहे. जे. लघु जीवानो वर्ग अने महोटी जीवानो वर्ग ए बे वर्गनो शरवालो बांधी एकग करीने तेनुं अर्ड करीये, पड़ी तेनुं मूल शोधिये, ते मूलनो जे श्रांक श्रावे, ते पोताना विस्तार साथे एटले वैता ढ्यादिक पर्वतोना पहोल पणा साथे गुणिये, तेवारे वैताढ्यादिक पर्वतोनो प्रतर थाय. तिहां प्रथम वैताढ्य पर्वतना तलीया संबंधि नूमिका- प्रतरकरण कहे बे. ॥अथ वैताढ्यस्य प्रतरकरणं लिख्यते // दक्षिण जरताईनी लघु जीवानो वर्ग करतां कला. ३४३००ए७५०० वैताढ्यनी गुरु जीवा कहेवाय तेनो वर्ग करतां कला. ४१४ए०ए७५०० ए बन्ने जीवानो सरवालो करतां कला. ՏԱՑԱԾածքն तेनो अर्कलाग करतां कला. एनुं मूल शोधतां लाधेली कला. एए४६५६ शेष राशिनी कला. 353524 बेद राशिनी कला. 35355 ए सामान्यथी विधि कह्यो; परंतु विशेष विधि तो श्रावी रीते , ते पागल सखीये वैये. Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. 103 वैताढ्य पर्वतना दक्षिणना पासानुं जेटलु लांब पणुं बे, तेने जीवा कहीये, ते जी वाना योजनना उगणीशिया जाग करीये, तेने कला कहिये. ते कलानो वर्ग करिये, तेने लघु जीवा वर्ग कहीये, अने ए वैताब्य पर्वतना उत्तरना पासानुं जेटलु लांबपर्यु बे, तेनी कला करीने तेनो वर्ग करिये, ते महोटो जीवा वर्ग कहीये. पली लघु जी वाना वर्गनो श्रांक अने महोटी जीवाना वर्गनो आंक, ए बे श्रांक एका मेलवतां जे आंक श्रावे, तेने बे नागे वेंचीये एटले अर्ध करी नाखीये, तेवारे (३७एएएy५००) एटलो श्रांक श्रावे, पनी तेनुं पुर्वोक्त रीते मूल शोधीये, तेवारे त्रण राशि थाय, तेमां जे श्रांक उगरे तेने शेष राशि कहीये, अने जे आंक नीचे लाने, ते छेद राशि कहे वाय. अने ते छेद राशिनो अर्ध लाने ते लब्धांक राशि कदेवाय, ए त्रण राशिमांथी जे शेष राशिनो आंक (352524) आवशे, तेने बारना आंके अपवर्तना करीये. अप वर्त्तना एटले पार्बु उसरवू चालवं विशेष नाषाये बारने बांके जाग आपीये तेवारे (17377) नो श्रांक श्रावे, ते एक बाजु मांगी राखीये, तथा वली बेद राशिनो श्रांक (377355) बे, तेने पण बारे अपवर्तना करीये, तेवारे (32546 ) श्रावे. ए श्रांक पण एक बाजु मामी राखीये, तथा ए करणी करतां जे कला लब्ध थने, तेनो श्रांक ( 194676) नो बे तेने वैताढ्यनुं पहोलपणुं पच्चास योजन- जे. तेनी साथ गुणाकार करीये, तेवारे (ए७३३७००) नो श्रांक श्रावे, ते पण एक बाजु लखी राखी ये, तथा शेष राशिना श्रांकने बारनो नाग आपतां जे शए३७७ नो श्रांक लाधो , तेने पण वैताढ्य पर्वतना तलीयाना पहोल पणाना पञ्चाश योजन साथे गुणाकार क रीये, तेवारे (15650) थाय ए आंकने प्रथम बेदराशिना आंकने बारे नाग श्रा पतां जे (32446) नो आंक आव्यो , ते के नाग थापीये, तेवारे (45) आंक श्रावे, अने शेष (50) आंक वधता रहे, हवे पीस्तालीशना आंकने पूर्वोक्त ल ब्धराशिने पच्चास गुणी करतां जे (ए७३३७००) नो अांक आव्यो बे, तेनी साथे मे लवीये तेवारे ( ए७३३७४५) थाय एटली शेष कलानी राशि उगरी. तेना योजन क रखाने अर्थे उंगणीशनो जागाकार आपीये, तेवारे (515307) योजन उपर बार कला एटला चोसला एटले समचतुरस्र चोखूणा योजनना खांमवा वैताढ्य पर्वतनी नीच ली तलीयानी नूमिकामांहे थाय जे. हवे वैताढ्य पर्वत उपर दश योजन ऊंचा चढिये, तेवारे पहेली मेखला आवे, ति हां प्रतर गणित केटबुं थाय ? ते कहीये बैये. ए पण वैताढ्य पर्वतनो लघु जीवानो वर्ग तथा महोटी जीवानो वर्ग ए बेढु वर्गने Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104 अढीछीपना नकशानी हकीगत. मेलवी सरवालो करी पछी तेनुं अर्ध करी, ते अर्ध जागमा जे श्रांक श्राव्यो तेनी कर णी करवी एटले मूल शोध. पठी तेनी त्रण राशि कलानी लाधी, त्यां सुधी तो बधो प्रर्वली रीते वर्त्तारो वर्त्तवो. तेवार पनी पहेली मेखलाने विषे एटटुं विशेष कर, के पूर्वे वैताढ्य पर्वतना तलियानी करणीमा शेष राशिने बारे अपवर्तन करतां जे रए४६७६ कला लाधेली , तेने वैताढ्यना तलियानुं पहोलपणुं पचास योजननुं बे, ते नी साथे गुणाकार कीधो हतो ते शहां पहेली मेखलाये वैताढ्य पर्वत त्रीश योजन प होलो बे, माटे ए लब्ध कलाने त्रीशे गुणीये. तेवारे एन्व०२० नो अांक श्रावे,ते एक बाजु मांगी राखीये, अने शेष राशिनी द्वादश अपवर्त्तनाये एटले बारनाांके नाग दे तां जे श्ए७७ नो अांक आव्यो बे, ते आंकने वैताढ्यनी पहेली मेखलाना त्रीश यो जन साथे गुणीये, तेवारे 771310 नो अांक आवे, ते आंकने छेदराशिना आंकने बारे जाग आपतां जे 35446 नो आंक आव्यो , ते के नागाकार आपीये, तेवा रे (27) नो आंक आवे, अने उपर 526 नो आंक वधे. ते वधेलो अांक कांना गाकारमा काम न आवे माटे एमज रदेवा दश्ये. बाकी मात्र सत्तावीशना आंकने पू वोक्त लब्ध कलाने वैताढ्यनी पहेली मेखलाना पहोल पणाना त्रीश योजननी साथे गुणतां जे एवज नो अांक आव्यो , तेनी साथे मेलवीये, तेवारे 540307 नो आंक कलानो थाय, तेना योजन करवाने अर्थे ए आंकने जंगणीशनो नाग श्रापीये, तेवारे (30734) योजन उपर अगियार कला एटला एकेका योजननां समचतुरस्त्र खांडवा वैताढ्य पर्वतनी पहेली मेखलानी नूमिकाये थाय. हवे वैताढ्य पर्वतनी बीजी मेखलाये प्रतर गणित करवानो उपाय कहीये बैये. तिहां पहेली मेखलाये जे करणी करतां रए४६७६ कला लब्धमान हती, ते आंकने शहां बीजी मेखला दश योजननी पहोली बे, माटे दशना श्रांक साथे गुणीये, तेवारे रए४६७६० थाय. ते आंकने एक बाजुये लखी राखीये... पली शेष राशिने बारे जागतां जे ए३७७ नो श्रांक श्राव्यो बे, ते श्रांकने वैता ढ्यनी बीजी मेखलानुं दशयोजन पहोलपणुं बे, तेनी साथे गुणीये. तेवारे 273770 नो श्रांक थाय. ते आंकने वली बेद राशिना आंकने बार जागे वेंचतां जे 32446 नो श्रांक श्रावेलो , ते बांके नागाकार आपीये तेवारे ए नो आंक श्रावे, अने उपर 1756 अंश वधे, ते अंशने जाग पहोंचे नही माटे एमज रदेवा दश्ये. अने नवना श्रांकने पूर्वोक्त लब्ध राशिना आंकने वैताढ्यनी बीजी मेखलाना पोहोलपणाना दश योजन साथे गुणीने जे रए४६७६० कलानो श्रांक आवेलो , तेनी साथे मेलवीये, Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. 205 तेवारे १५४६७६ए कला थाय. पली कलाना योजन करवा सारु ए आंकने गणीशनो नागाकार थापीये, तेवारे 102461 योजननी उपर दश कला थाय, एटला वैताढ्यनी बीजी मेखलाना सम चोरस खांडवा थाय, ए वैताठ्यपर्वतनी बीजी मेखलानु प्रतरग णित कह्यु. ए सर्वना यंत्रनी स्थापना श्रागल करशु. हवे उत्तर नरतानुं प्रतरकरण लखीये बैये. इहां वैताढ्य पर्वतना उत्तरना पासा नी जे जीवा तेनी कला करीने पड़ी तेनो वर्ग करीये, तेने लघु जीवा वर्ग कहीये, अने हिमवंत पर्वतना दक्षिण पासानी लांवपणानी जे जीवा तेनी कला करीने पड़ी तेनो वर्ग करीये, तेने गुरुजीवा वर्ग कहीये. पडी बेहु जीवाना वर्गने एकग करीश रवालो आपतां जे श्रांक श्रावे, तेनुं अर्ड करीये, पड़ी तेनी करणी करी मूल शोधी ये, तेवारे लब्ध कला 241960 आवे. तथा शेष राशि 407150 श्रावे, तथा बेदराशि ४०३ए२० श्रावे, एवी त्रण राशि थाय. हवे शेषराशिनो अंक 407150 , तेने शून्ये करी अपवर्तिये, एटले शेषराशिने बेहडे शून्य अर्थात् मींडंबे, तेने नांजी नाखीये, तेवारे दशक पड्यु. ए नाव जाणवो. अर्थात् दशने के नागाकार कीधो तेवारे 40715 नो श्रांक रह्यो. तथा बेदराशिनो श्रांक 43720 , तेने पण शून्ये अपवर्तिये, तेवारे ४३एर नो अांक रहे. . हवे पूर्वोक्त लब्ध राशिनो श्रांक 241960 , तेने जरतार्डना बाणनी कला एटले पहोल पणानी कला 4525 बे. तेनी साथे गुणीये, तेवारे १०एवज्दए० श्रावे . वली शेषराशिने शून्ये अपवर्तन करीने 40715 नो आंक रह्यो बे, तेने पण नर ताईना पृथुत्व एटले बाणनी कला 4525 नी साथे गुणाकार करीये तेवारे 174235375 नो अांक आवे. हवे ए आंकने बेदराशिना शून्ये अपवर्तेलो जे ४३एए नो श्रांक बे, ए आंके नाग श्रापीये, तेवारे 30 नो अंक लाने, शेष 7031 एट लो श्रांक वधे. ते एमज राखीये अने प्रतिकला 3707 लाधी, ते पूर्वोक्त 4525 पहो लपणानी राशिये गुणाकार करेली प्रतिकलानी राशि १०एवए आंकनी बे, तेनी साथे मेलवीये, तेवारे १०एRG0 एटलो प्रतिकलानो आंक थाय. कारण के, एने पहोलपणाना 230 योजनथी गुणाकार कस्यो होय तो ए कलानी राशि कहेवाय. परंतु था ठेकाणे उत्तरार्ध नरतना योजन 230 ने त्रण कलानी सर्व कला 4525 क रीने तेनी साथे गुणाकार करेलो , माटे एने प्रतिकला कहिये बैये. हवे ए १०एवज जे प्रतिकला थइ तेने उगणीशनो नाग श्रापीये, तेवारे 14 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 206 अढीछीपना नकशानी हकीगत. 5762474 कला थाय, अने उपर अगीयार प्रतिकला उगरे तेना योजन करवा सा रु फरी ए कलानी राशिने उंगणीशनो नागाकार आपीये, तेवारे 3032 योजन बार कला अने अगीयार प्रतिकला थाय एटला एकेका योजनना चोसला खांमवा उत्तराः जरतना जाणवा. इति उत्तर नरताईस्य प्रतरकरण विधिः समाप्तः // हवे हिमवंत पर्वतने तलीये प्रतरनी संख्या करवाने अर्थे वरतारो करवानीरीत लखीये बैये. हिमवंत पर्वतनी दक्षिणने पासे जे उत्तरजरतार्डनो 75600000000 जी वा वर्ग बे, ते लघु जीवा वर्ग जाणवो, अने हिमवंत पर्वतनी उत्तर दिशिये जे 24000000 जीवावर्ग, ते गुरु जीवावर्ग जाणवो. ए बे वर्ग एकठा मेलवीये, ते वारे 300000000000 ए आंक श्रावे, तेनुं अर्ड करीये, तेवारे 150000000000 था य. ए श्रांकने करणी करी मूल शोधिये, तेवारे ३०७शएज लब्धराशि थाय. अने शेष राशि २एएएए६ एटली उगरे, तथा बेदराशि अपए६ थाय. पली शेष राशिनो 25156 नो श्रांक श्राव्यो बे, ते आंकने चारना आंक साथे अपवर्त्तन करीये, एटले चारे नागाकार श्रापीये, तेवारे ६षणा नो अांक आवे, तथा बेदराशिना आंकने चारे अपवर्तन करीये, एटले चारने बांके जागाकार आपीये तेवारे १७३६४ए नो ांक श्रावे. हवे लब्धरा शिनो श्रांक जे ३७ए नो आव्यो ने ते आंकने हिमवंत पर्वतनं पहोलपणुं जे वीश हजार कलारूप में, तेनी साथे गुणीये, तेवारे ४५ए६०००० नो श्रांक आवे, ते एक बाजुये लखी मूकीये. पली शेष राशिने चारे अपवर्तन करतां जे ६४ाए नो श्रांक श्राव्यो बे, ते राशि ने हिमवंत पर्वतना पहोल पणानी वीश हजार कला साथे गुणाकार करीये, तेवारे १२एएएG0000 नो अांक श्रावे, तेने बेदराशिने चारे अपवर्तन करेला १९३६४ए ना आंके जाग आपिये, तेवारे ६६ए नो अांक आवे, अने उपर नए नो आंक शेष रहे, तेने नाग पहोंचे नही माटे ते श्रांक पमतो मूकीने ए ६६एए नो जे आंक ने ते हिमवंत पर्वतना पहोल पणानी वीशहजार कलाये गुणेला लब्धरा शिना ७७४५ए६०००० आंक साथे मेलवीये, तेवारे ७१४५ए६६६७५ नो आंक प्रतिकलारूप थाय, तेनी कला करवा सारु ए आंकने उंगणीशनो नागाकार थापीये, तेवारे 40762457 नो प्रांक उपर नव प्रतिकला वधे, वली ए आंकना योजन करवाने अर्थे फरी जंगणीशे नाग आपीये, चारे २१४५६ए७१ योजननी उपर आठ कला अने नव प्रतिकला. थाय. ए टला एकेक योजनना चोशला खांमवा हिमवंत पर्वतना जाणवा इति // Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. 207 हवे हिमवंत क्षेत्रना प्रतर गणितनो वरतारो कहियें बैये. इहां हिमवंत पर्वतना उत्तर पासानो जे जीवावर्ग ते लघुजीवावर्ग कहीये, अने हिमवंत देवने नेहडे महा हिमवंत पर्वतने अमतो जे जीवावर्ग, ते महोटो जीवावर्ग जाणवो. ए वे वर्ग एकग मेलवीने तेनुं अर्ड करीये, तेवारे 367400000000 एटली कलानो श्रांक श्रावे, तेनुं सम विषम करी करणी करी मूल शोधिये, तेवारे ६०६एएए कलानो ांक लब्धरा शिनो श्रावे, ते एक बाजुये लखी राखीये, अने शेषराशि ७७२३१ए नो अंक रहे, त था बेदराशि 1213517 नो अांक रहे. पली लब्ध राशिनो ६०६एएए नो अांक ने तेने हिमवंतदेवना पोहोलपणानी 4000 कला बाणरूप . तेनी साथे गुणिये तेबारे 2427360000 नो आंक आवे, ते एक बाजु मांडी मूकीये, पठी शेषराशिना आंक ने एके अपवर्तन करीये, तेवारे तेहीज ७७२३१ए नो आंक श्रावे तेने हिमवंतदेवना पहोलपणानी बाण रूप 40000 कला में तेनी साथे गुणीये तेवारे ३०ए।१६०००० नो श्रांक आवे. ते आंकने बेदराशिनो 1213517 नो श्रांक बे, तेने एके अपवर्तन करतां एहीज आंक आवे ते आंके नागाकार आपीये, तेवारे 2544 नो अांक आवे, अने शेष ए७३६ नो आंक रहे तेने नाग पहोंचे नही माटे पडतो मूकीये. पठी ल ब्धराशिना चालीश हजारे गुणेला आंकनी साथे ए 25447 नो अांक मेलवीये, तेवारे 2423544 नो आंक आवे एटली प्रतिकला थर तेनी कला करवा सारु एने उगणीशनो नाग आपीये, तेवारे 127060 कला अने उपर आठ प्र तिकला थाय तेना वली योजन करवा सारु ए आंकने जंगणीशनो नाग आपीये, ते वारे 67253145 योजननी उपर पांच कला अने आठ प्रतिकला एटला योजनना चोसला खांमवा हिमवंत क्षेत्रना थाय. हवे महाहिमवंत पर्वतना प्रतरतुं गणित करवं, तेनो वरतारो लखीये वैये. हिम वंत देवना उत्तरनी पासे जे जीवानो वर्ग ते लघु जीवावर्ग कहीये अने महा हिमवंत पर्वतना बेहडानो जे जीवावर्ग ते गुरु जीवावर्ग कहीये. ते बेहुने एकठा मेलवीने ते नुं अर्ड करीये, तेवारे 1200000000 एटलो आंक थाय तेनुं मूल शोधीये तेवारे लब्धराशि 7355 आवे अने बेदराशिनो आंक 1767710 नो आवे. तथा शेष रा शि 33075 नो आंक आवे, तेने पांत्रीशना श्रांक साथे अपवर्तिये, एटले पांत्रीशे भाग थापीये तेवारे ए६०५ नो आंक आवे. पनी बेदराशिनो आंक 1767710 , ते ने पांत्रीशे अपवर्तिये, तेवारे 50506 नो आंक आवे. Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 200 अढीछीपना नकशानी हकीगत. हवे पूर्वे जे मूल शोधतां G355 नो आंक लब्धराशिनो आव्यो , ते आंकने महा हिमवंत पर्वतना पहोलपणाना बाण रूप एंशी हजार कला , तेनी साथे गु पिये, ते वारे JUDGJ00000 नो अंक थाय. हवे शेष राशिने अपवर्तन करतां जे ए६७५ नो श्रांक श्राव्यो , तेने महाहिमवं त पर्वतनी पृथुत्व रूप आठ हजार कलानी साथे गुणीये, तेवारे 77AG00000 नो आं क थाय, ते आंकने अपवर्तन करेलो जे बेदराशिनो 50506 नो ांक , ते के नागाकार श्रापीये तेवारे 15340 नो आंक आवे, शेष ३१ए६० नो अांक वधे, तेने नाग पोहोचे नही माटे पमतो मूकीये अने 15340 ना बांकने पूर्वे जे एंशीहजार गुणो करेलो लब्धराशिनो SUID00000 नो आंक बे, तेनी साथे मेलविये, तेवारे SO900415340 नो आंक प्रतिकलानो थाय, तेनी कला करवा सारु ए शांकने उंग णीशे जाग आपीये, तेवारे 312145544 एटली कला उपर चार प्रतिकला थाय. वली एना योजन करवा सारु ए कलाना आंकने बीजी वार जंगणीशे नाग आपीये, ते वारे रएएण्६र६ योजन उपर दश कला अने चार प्रतिकला थाय, एटला सम चोरस योजनना खांमवा महा हिमवंत पर्वतना जाणवा. हवें दरिवर्षकेत्र बीजुं नाम हरिवास क्षेत्र तेनुं प्रतर करवानो वरतारो कहीये वैये, महाहिमवंत पर्वतनी उत्तर पासे जे जीवानो वर्ग ते लघु जीवावर्ग कहीये, अने हरिवास क्षेत्रने बेहडे निषध पर्वतने लगतो लांबपणानो जे जीवावर्ग ते गुरु जीवावर्ग कहीये. ए बे जीवावर्गनो सरवालो करी एकगे मेलवीने पनी तेर्नु अर्क करीये ते वारे 151000000000 नो अांक आवे, तेने समविषम करी मूल शोधिये तेवारे वर्ग मूल 122146 लब्धरा शिनो ांक आवे, अने 11064 शेष राशिनो आंक आवे तथा २४५ए एटलो बेदरा शिनो आंक आवे. __ हवे शेषराशिना आंकने चारे अपहरिये तेवारे 27671 नो आंक श्रावे, तेमज डे दराशिना आंकने पण चारे नाग आपीये, तेवारे 614573 नो आंक आवे. हवे मूलनी लब्धराशिना श्रांकने हरिवासदेवना पहोलपणानो बाण 1600 कला रूप ले. तेनी साथे गुणीये तेवारे 19663360000 नो प्रांक श्रावे, तेने एक बाजु मांमी राखीये. - पली शेषराशिना श्रांकने चारे अपवर्तन करतां जे 20671 नो आंक आव्यो बे, तेने हरिवर्ष देवना पहोल पणानी 16000 कला साथे गुणीये, तेवारे 442736000 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीवीपना नकशानी हकीगत. २०ए नो आंक थाय. ए आंकने चारे अपवर्तना करेली बेदराशिना जे 614573 नो श्रांक बे, ते आंके नाग श्रापीये, तेवारे 1203 नो आंक आवे. शेष एए०६७१ नो आंक वधे, तेने नाग पहोंचे नही, माटे एमज रहेवा आपीये. अने 203 ना आंकने एक लाखने शाठ हजारे गुणेला लब्धराशिना श्रांक साथे मेलवीये तेवारे 196663367203 नो आंक प्रतिकलानो थाय, तेनी कला करवाने अर्थे उंगणीशनो नाग आपीये, ते वारे 10350703537 कला थाय, तेना योजन करवा सारु फरी बीजीवार उंगणीशे जाग आपीये तेवारे 5447370 योजननी उपर सात कला थाय. एटला हरिवास देवनी नूमिना एक योजनीया समचतुरस्र खंमुक जाणवा. हवे निषधपर्वतर्नु प्रतर करवानुं गणित कहिये बैये. हरिवासदेत्रने हेडे निष धपर्वतने लगतुं जे लांबपणुं तेनी जीवानो वर्ग ते लघुजीवा वर्ग कहीये, तथा निष धपर्वतनी उत्तरनी पासे मेरुपर्वत तरफ जे निषधनुं लांबपणुं तेनी जीवानो जे वर्ग,ते गुरु जीवावर्ग जाणवो. ए बे जीवावर्गना श्रांकनो सरवालो करी तेनुं अर्ज करीये. ते वारे 256000000000 नो आंक थाय, तेनुं वर्गमूल शोधिये तेवारे 1600104 लब्ध राशि थाय, अने 152514 एटली शेषराशि रहे, तथा 31620 एटली बेद राशि आवे, ए त्रण राशि थ. हवे शेषराशिनो श्रांक मांगीने तेने शोलने आंके अपवर्तिये एटले नागाकार थापीये, तेवारे ए५३२४ नो अांक आवे. तेमज ते बेदराशिना आंकने शोले अपव तिये तेवारे 201013 नो श्रांक श्रावे. पली लब्धराशिनो श्रांक जे 1677104 नो बे, तेने निषध पर्वतना पहोलपणानी 32000 कलानी साथे गुणीये, तेवारे ५१४५ए३२०००० नो अांक आवे, तेने एक बाजु लखी राखीये. हवे शेषराशिने शोलना के अपवर्तन करेलो जे ए५३२४ नो श्रांक बे, तेने निषध पर्वतना पहोलपणानी जे 320000 कला बे, तेनी साथे गुणीये, तेवारे 3050367000 नो थांक आवे, तेने शोले अपवर्तन करेली बेदराशिनो जे 201013 नो अंक जे, ते के नागाकार आपीये, तेवारे १५१७भए नो प्रांक श्रावे. शेष 157263 नो श्रांक वधे, तेने नाग पहोंचे नही माटे पमतो मूकीये, अ ने त्रण लाख वीश हजारे गुणेला लब्धराशिना आंकनी साथे ए १५१७धाए नो आंक मेलविये, तेवारे ५१४५५३४३१७४ए नो अांक प्रतिकलारूप थाय, तेनी कला कर Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 220 अढीछीपना नकशानी हकीगत. . वाने अर्थे ए आंकने जंगणीशनो नागाकार आपिये, तेवारे 2036427 कला नी उपर सत्तर प्रतिकला थाय तेना योजन करवा सारु फरी पण जंगणीशनो नाग आपीये, तेवारे १४२५४६६५६ए योजन उपर सत्तर कला अने सत्तर प्रतिकला था य, एटदुं निषेध पर्वतर्नु प्रतर गणित जाणवू. एटले नूमिना एकेका योजनना सम चतुरस्र खंडूक एटला थाय // इति // हवे विदेहाईवें प्रतर गणित करी देखामिये बैये, निषधपर्वतनो मेरु तरफ जे ले हेमो तेनो जे जीवावर्ग ते लघुजीवावर्ग जाणवो, अने जंबूलीपनी मध्यनो वचमांनो जे अनाग तिहां सुधी जे बाण अथवा जीवा तेनो जे वर्ग ते गुरुजीवावर्ग जाणवो. एबे जीवावर्गने एकग करतांजे यांक आवे, तेनुं अर्ड करीये, तेवारे३४०५२00000000 नो श्रांक श्रावे तेनुं मूल शोधिये, तेवारे 1745317 नो आंक आवे, अने 146 एटली शेष राशि रहे, तथा ३६ए०६३६ एटली बेदराशि श्रावे, ए त्रण राशि थर. हवे शेषरा शिनां आंकने चारे अपवर्तन करीये, तेवारे ३६एए नो श्रांक आवे अने बेदराशिने चारे अपवर्त्तन करीयें, तेवारे ए२६एए नो आंक आवे. __ हवे लब्धराशिनो आंक 1745327 नो , ते झांकने विदेहानुं जे बाण एटले पहोलपणुं तेनी 32007 कला , तेणे करी गुणाकार करीये, तेवारे एए०५०१७६०००० नो अंक आवे, तेने एक बाजुये मांगी राखीये. पठी शेषराशि ने चारे अपवर्तन करतां जे ३६एएए नो आंक श्राव्यो बे, तेने विदेहाना पहोल पणानी 320000 कलानी साथे गुणीये, तेवारे 113100G0000 नो अंक आवे, तेने चारे अपवर्तन करेली बेदरा शिनो जे एश्६एए नो श्रांक , तेणे करी नागाकार आपीये तेवारे 1227 नो श्रांक श्रावे अने उपर 247 नो आंक वधे, तेने जाग पहोंचे नही, माटे तेने पडतो मूकीये, अने 1227 नो जे आंकडे ते पूर्वे अपवर्तन करीने विदेहाईनी लंबाश्नी कला साथे गुणेलो जे लब्धराशिनो आंक ते नी साथे मेलवीये, तेवारे एए०५०२२२७ नो श्रांक प्रतिकलानो थाय. पनी एनी कला करवा सारु जंगणीशे नाग आपिये. तेवारे ३१००ए०४६ एटली कला थाय, उपर पन्नर प्रतिकला वधे, तेना योजन करवाने अर्थे फरी ए आंकने जंगणीशे जाग आपीये, तेवारे 1635737302 योजननी उपर दश कला अने पन्नर प्रतिकला थाय. एटर्बु विदेहानुं प्रतर गणित जाण // हवे ए प्रतरना सरवालानो अवशेष कहे . ए दक्षिणजरताई आदे देश्ने जे क्षेत्रो Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीकीपना नकशानी हकीगत. 121 तथा पर्वतो तेना प्रतरतुं गणवू, एटला चोसला योजनना गणितपदनुं करवू ते व्य वहार मार्गे देखाड्यु, तेमज मेरुथकी उत्तरदिशिये जे ऐरवत क्षेत्र आदे देश्ने क्षेत्रो तथा पर्वतो ने तेनो पण उत्तरविदेहार्ड पर्यंत एज रीते वरतारो वर्तवो, पजी सर्वनो सरवालो एकठो मेलववो अथवा जंब्रहीपना विदेहाई पर्यंत अर्डनागना चोसला यो जनीयां खंम जेनुं गणित उपर करी आव्या छैये, तेने एका करी सरवालो वांधीने पली बमणा करीये, तेवारे “सगसयनज्य” ए गाथामां कहेली संख्या जेटलां प्रतर थाय. ए प्रतर करवाना यंत्रनी स्थापना नीचे करीये बैये. ध प्रतरकरणं. उत्तरत्नरताईस्य 1 हिमवगिरेः 2 हिमवंतदेवस्य 3 लघुजीवावर्गकला. ४१४एलए७५०० 75600000000 224400000000 गुरुजीवा वर्ग कला. 75600000000 224400000000 512400000000 उनयमीलनेकला. १९७०ए०एpoo 300000000000 36000000000 तबलीकरणेकला. 554504G50 150000000000 ३६न्४00000000 वर्गमूललब्धकला. 241960 ६०६एएए शेषराशिः॥ 407950 २५एएए६ ७७२३१ए बेदराशिः // 43720 १२१३एर अपवर्तनांक 10 शून्येनापवर्त्तना. कृतेऽपवर्त्तनेशेषराशिः 40715 ६४७एए कृतेऽपवर्त्तनेदराशिः ४३ए १७३६४ए पृथुत्वकलाः // 4525 20400 00000 तशुणोलब्धराशिः १०एवन्दए००० ७७४५ए६०००० 242360000 पृथुत्वेनशेषांशगुणाः 204235375 १२एएएG0 ३जए७६०००० बेदनागेनलब्धकला. 300 शेष७०३१ ६६एश्शेषजए २५४४शेए७४७३६ तासांबृहनाशिकेत्र. १०एवज ४५५६६६ए 2423544 एकदा ए नागकला॥ ५७६२४तन्प्र 011 ४०७६२४५०प्र०ए १२७७०ए७६०प्रज पुनः १ए नागेयो॥ 3032 क०१२- २१४५६७१का - ६७२५३१४५कन्य प्र०११ प्र०२० प्रत Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 अढीछीपना नकशानी हकीगत. महाहिमवगिरेः४' हरिवर्षदेत्रस्य 5 निषधगिरेः 6 विदेहास्य 512/10000000 150000000000 1971600000000 3200400000000 1050000000000 रए७१६०००00000 3200400000000 3610000000000 1562400000000 3051707000000 5172000000000 620400000000 1200000000 151000000000 256000000000 3405200000000 G355 122146 167104 ३३ए७५ १९०६न्। 15251 147076 1767710 २४५ए ३२१६२ण्ज ३६ए०६५६ 35 4 एज्य 7671 ए५३२४ ३६एरए 50506 614573 201013 एश्६एए G0000 160000 32000 320000 HOJPUJ00000 196663360000 514573NGU0 एए०५०९७६०००० TAGu00004427360000 30503600000 193100G0000 १५३वशेष३ए६० ७२०३शेष.एए०६२ १५१७४एशे१५७२६३ १२श्श्शे षश्म न Sa50415340 17666336703 ५१४५ए३४३१७४ए एए५०२७ ३७२१४ए५५४०४ १३५०७०३५३७३६३२प्र१७. ३१०ए०४६वप्र१५ रएपदरदक०० ५४४७३न्ण्क ०७१५२५४६६५६एक१७ १६३५७३७३श्क०२० प्र०४ | সং प्र०१५ हवे घनगणित गणवानी रीत कहे जे. पूर्वे जे प्रतरगणित कडं ते प्रतरतुं गणित नूमिकानुं गणाय डे, तेहीज प्रतर ग णितनो श्रांक मामीने पर्वतो- घन गणित करीये; केम के, पर्वतनी नूमिकाना त लियां प्रतर गणित जेटलां होय, माटे तेटलो आंक मांझीने ऊंचपणाना बांके गुणी ये, तेवारे तेनुं घनगणित थाय. ए संदेपथी कयुं.. विशेषार्थ तो श्राम , के वैताढ्यने तलीये नूमिका, प्रतर 515307 योजन उपर बार कला एटदुं बे. पहेली मेखला पर्यंत पचास योजन पहोलुं अने दश योजन ऊंचुं बे, माटे ए प्रतरना गणित पदनो आंक तेने दशे गुणाकार करीये, तेवारे 5153076 योजन उपर उ कला एटबुं नूमिकाथी मामीने पहेली मेखला सुधी घनगणित होय. हवे पहेली मेखलाये पर्वत सांकडो ने. केम के, पचास योजन वैताढ्यनी लंबाश्मांधी Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. 123 दश योजन एक पासे मूक्या, अने दश योजन वीजे पासे मूक्या, तेवारे त्रीश योज न वैताढ्य पहोला बे, माटे पहेली मेखलाये पर्वतनुं तलियुं त्रीश योजन , तिहां प्रतर (377304 ) योजन उपर अगीयार कला , अने तिहांथी दश योजन ऊंचा चमिये तिहां सुधी ए पर्वत बेहु पासे सरखो त्रीश योजन पहोलो , माटे प्रतरना आंकने दश योजननी उंचा साथै गुणीये, तेवारे (3073745) योजन उपर पन्नर कला एटवू पहेली मेखलाये घनगणित जाणवू. वली बीजी मेखलाये ए पर्वतना दश योजन उत्तरनी पासे मूकीये, अने दश योजन दक्षिणनी पासे मूकीये, तेवारे वैताढ्य पर्वत दश योजन पहोलो डे, अने बन्ने पासे मथाला पर्यंत पांच योजन ऊंचो , तेमाटे तिहां दश योजन पहोलो ने, तेना प्रतर गणि तनो श्रांक 152461 उपर दश कलानो , तेने जंचपणाना पांच योजन साथे गुणीये, तेवारे 512307 योजन उपर बार कला एटबुं बीजी मेखलाये घनगणित थाय. हवे समस्त वैताढ्य पर्वतनुं धन गणित कहीये बैयें. वैताढ्यनुं प्रतर गणितएर२१५३ योजन उपर चौद कला , ए श्रांकने वैताढ्यनी पच्चीश योजननी उंचार , परंतु तेमां जुदी जुदी त्रण राशिने जुदा जुदा ऊंचाश्ना योजन साये त्रण प्रकारनो पूर्वोक्त रीते गुणाकार करीये, तेवारे सर्व मली एशए योजन उपर चौद कला थाय. हवे हिमवंतपर्वतर्नु घन गणित कहे . हिमवंतने तलीये २१४५६एर योजन श्राव कला अने दश प्रतिकला एवं प्रतरगणित , तेने हिमवंत पर्वतनी एकशो योजननी ऊंचा , तेनी साथे गुणतां (२१४५६ए७१४४) योजननी उपर शोल कला अने वार प्रतिकला एटलो आंक घनगणितनो थाय. महा हिमवंत पर्वतनुं घनगणित कहे , एने तलीये प्रतर गणित 1576726 दश कला अने पांच प्रतिकला , ए पर्वत बेहु पासे सरखो बशे योजन ऊं माटे प्रतर गणितना श्रांकने वशे गुणो करतां 3(173637300 योजन उपर कला एटवू घनगणित थाय एटले योजनना चोसला खंडुक थाय. पर्वतर्नु घनगणित कहे . निषध पर्वतने तले १४२५४६६५६ए योजन उपर एटवं प्रतर गणित , तेने ए पर्वतनी चारशे योजननी ऊंचाइ साथे ग रे (५७०र७६६२ ) योजन उपर अढार कला घनगणितनी थाय. पूर्वोक्त गणित प्रमुख करवाने आलसु होय ते मनुष्यने वास्ते यंत्रोनी स्थापली , तेना उपरथी जो ले, अने जे मनुष्य माह्या निपुणबुझिवाला उद्यमते तो पोतेज गणित करी वर्त्तारो करी लेशे. Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 114 अढीछीपना नकशानी हकीगत. घनगणितनां यंत्रनी स्थापना. घनगणित क.प्रति उच्च उच्चपणा साथें कला. 13545 12 6 प्रतर प्रमाणम्. | त्वम् गुणवं. वैताढ्यनूमौ. 512307 12 0 51530 कलार 10 5153076 / 6 वैताढ्य प्र. मे. 3032 12 19 3073 14 10 30734515 वैताढ्यहि.मे. २१४५६ए७१ 10 12461 0 5 512307 // 12 सकल वैताग 67253145 5 ज एश्२१५३ १४श्री२५ हिमवति. १एएन्दर६ 10 ५२१४५६ए राजार० 100 २१४५६ए७१४।१६।१५ महाहिमवति 54477370 ५१एएन्६र६।१।०५ 200 ३५१७३६३७३०जाप्र१५ निषधे. १५२५४६६५६ए 17 १७१५२५४६६५६ए।१७ 400 ५७०६६एए विदेहाई. 1635737302 10 1 एवं ३एएए३७२ योजनानि // ३एएए३७२७ मेरोरुत्तरतः॥ एर७७४५६ सर्वप्रतराणामेकादयोरपि पार्श्वयोरयमंकः // हितीयप्रकारे ११३७१६६एए / क्रो. ध० 45 अं. 36 न्यनं जवति / पूर्वोक्त गणितपदमिदं ए०५६ए४१५० / को. 13 ह. 623 श्कुप्रमुख सर्वना सिझ थयेला श्रांकनो यंत्र. सिझांकाः। षवः / जीवाः। / धनुःपृष्ठानि.। बाहवः। दहिणजरता. 233 एजार ए७६६ क. 1 वैताढ्ये. হটটাই 207211 10743315 ___416 संपूर्णरते. 5266 14475 १४५श्न११ एश हिमवति. १५७जार श्वएश 25234 535 // 153 हैमवति. 364 3767 / 15 310 6755 // 3 महाहिमवति. उतएवार४ 53732 // 6 ५ए३।१० एक्षण हरिवर्षे. 16315 // 15 ७३ए॥१२३ न्ध०१६॥ 1336 // निषधे. 33157 / 17 ए४१५६५ १५४३४ाए 2016 // 23 विदेहा.. 50000 100000. यो. 15721 // 16073 / 133 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानीहकीगत. 125 प्रतरगणितानि. क. प्र. घनगणितानि वैताढ्य नूमौ. 103545 श६॥ 5123076 50 वि०५१२३ण्डारश१० वि० 2024 307345 / 15 30 वि० ३०७३न्॥१६॥१० 513307 // 12 3032 / 11 सकलवैताट्यग. एशए क 14 २१४५६ए राज१० २१४५६ए७१४४१६। प्रतिकला. 12 67253145 // 5 // 10 १एन्दरदार 54473U003 ३ए१७३६३७३० प्रतिकला 15 14254665617 // 17 ५७०२६६एए 1635733011 इति अष्टप्रकारगणितं समाप्तं // हवे ए जीवाप्रमुख गणितनी संग्रह गाथा कहे ॥योजण सहस्स नवगं,सत्ते वसया हवंति अमयाला // बारसय कला सकला,दाहिण जरहरू जीवा // 2 // दसचेव सहस्सा इंजीवा सत्तय सया वीसाइं॥ बारसय कला जपा, वेय गिरिस्स विनेया // 2 // चउदसय सहस्साशं, सया चत्तारि एग सयरा॥नरहड्डत्तर जीवा, बच्चकला ऊणिया किंचि // 3 // चवीस सहस्सा, नवयसए जोयणाण बत्तीसे // चुहिमवंत जीवा, श्रआयामेणं कलहं च // 4 // सत्तत्तीस सहस्सा, बच्चसया जोयणाण चल सयरा // हेमवयवासजीवा, किंचूणा सोलस कला य // 5 // तेवन्न सहस्सा, नवयसया जोय पाण गतीसा // जीवाय महाहिमवे, अकला चकला य // 6 // एगुत्तरा नवसया, तेवत्तरिमेव जोयण सहस्सा // जीवा सत्तरस कला, अझकला चेव हरिवासे // 7 // चउणव सहस्सा, उप्पन्नहियं सयंकला दोय // जीवा निसहस्सेसे, लवं जीवा वि देखे // // // इति जीवासंग्रहगाथा // नवचेव सहस्साशं, वहाई सयाई सत्तेव // सविसेस कलाचेगा, दाहिणजरहरू धणु पिठं ॥ए॥ दसचेव सहस्साई, सत्तेव सया हवंति तेयाला // धणु पिठं वेय, कलाय पन्नरस हवंति // 10 // सोलस चेव कला ऊ, अहिया हुंति अझनागेणं // बाहावेयसन, अठासीया तहा चउरो // 11 // चउदस य सहस्सा, पंचेव सयाई अगवीसा॥ कारसय कला, धणुपिठं उत्तरक स्सं // 12 // जरहद्धत्तर बाहा, अहारस हुँति जोयण सया॥ बाणज्य जोयणाणिय, अझकला सत्तय कला // 13 // धणु हिमवेकल चउरो, पणवीस सहस्स उसय तीस Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 116 अढीछीपना नकशानी हकीगत. हिया // बाहा सोलह कला, तेवन्न सयाय पन्नहिया // 14 // अमतीस सहस्स स गसय, चत्ताधणुदस कलाय हिमवए // बाहा सत्तसिए, पणपन्नेतिनिय कला // 15 // धणु मह हिमवे दसकल, दोसय तेणउ सहस्स सगवन्ना // बाहा बाणउयसए, बहत्तरे नवकलकं च // 16 // चुलसी सहसासोलस, धणुहरिवासे कला चउकं च // बाहा तेरस हस्सा, तिसयश्गसहा बकल सहा // 17 // निसह धणुनवकलालस्कु, सहसचवीस तिसय बायाला // बाहा पन्नहिसयं, सहस्स वीस्सं उकलअहं // 17 // सोलस सहस्स अडसय, तेसीयासढतेरस कला य // बाहा विदेहमझे, धनुपिहुं परियरस्सकं // 15 // ॥इति धनुःपृष्ठवाहासंग्रहगाथा // लरकहारसरण, ससहस्सा चउस्सया य पणसीया // बार कल विकला, दाहिण नरहरूपयरंतु // 20 // सत्तहियातिनिसया, वार सयस हस्स पंच लरका य // बारसय कला पयरं, वेयगिरिस्त धरणितले // 1 // जोयण ती सं वासे, पढमाए मेहलाइ पयरमिमं // लकतिगतिसयरिसया, चुलसी कार सक ला // 22 // दस जोयण विकंन्ने, बीया मेहलयपरमिमं // लस्कोचनवीस सया, गसहा दस कलाय // 23 // अमसीया अहसया, बत्तीस सहस्स तीस लरका य॥ कलबार विकलिगारस्स, उत्तर नरहरू पयरमिमं // 24 // दोकोडि चउद लरका, सह सा बप्पन्न नवसग सयरा // अहकला, दस विकला, पयरमिमं चुहिमवंते // 25 // हे मवए बकोडी, बावत्तरि लरक सहस तेवन्ना॥पणयालसयं पयरो, पंचकलाअविकला य // 26 // गुणवीसकोडिअडव, न्न लरक अमसहि सहस सयमेयं // चुलसीयंदससय कला, पणविकला पयरुमहहिमवे // 27 // चवन्नं कोडी, लकासीयालतिसयरि सह स्सा // अठसय सतरिसत्तय, कलाज पयर तु हरिवासे // 27 // वायालं को डिसयं, लका चउपन्न सहस बासही // पणसयगुणत्तरकल, अहारस्स निसहपयर मिमं // ए॥ ते सहिं को मिसयं, लरक सगवन्न सहस गुणयाला // तिसय उडुत्तर दसकल, पन्नरसकला विदेहके // 30 // इतिप्रतरप्रमाणसंग्रहगाथा // दस जोयणुसए पुण, तेवीस सहस्सलक गवन्ना // जोयण बावत्तरि ब, कलाय वेयह घणगणियं // 31 // अहसया पणयाला, तीसं लकातिहत्तर सहस्सा // पनरस कलायघणो, दसस्सुए होश बीयम्मि // 3 // सत्तहिया तिन्निसया, बारसय सहस्सा पंच लकाया // अवराय बारसकला, पणुस्स ए होश घणगणियं // 33 // सत्तासीई लका, उणवीसहियाय बिणव सया॥ श्रम गावीसयत्नागा, चउदस वेय घणगणियं // 3 // हिमवंति उसय चउदस, कोमी बप्प न्न लरक सग नई // सहसा चन्याल सयं, सोलस कलबार विकलघणं // 35 // गुणया ल सयासत्तर, कोमी बत्तीस लक सगतीसा // सहसा तिसय अत्तर, बारविकलघण Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. महाहिमवे॥३६॥ बगवन्नसहस अहार,कोमि बासहि लक गुणतीसंसहसानव सयएगु, णसीइनिसहस्स घणगणियं // 37 // इति घनगणितसंग्रहगाथा // इति जंबूद्विपाधिकारः॥ हवे लवणसमुनो अधिकार कहे जे. जेम गाय पाणी पीवाने तलावमा प्रवेश करे, तेवारे तेनी पाउली बाजु उंची होय, अने आगली बाजु नीची होय तेने गोतीर्थ कहीये, तेम लवण समुजमाहे पण एक जंबूछीपनी जगतीथकी अने बीजो पहेली तरफथी लवणसमुनी जगती थकी एम बे पासाथी नीकलीने वचमां पंचाj पंचाएं हजार योजन सुधी पाबली नूमि ऊंची अने आगलीनूमि नीची बे, जगतीथकी लवणसमुपनी दिग्माल तरफ जातां थोडी थोडी जलवृद्धि थतां ज्यां पंचाएं हजार योजन थाय बे, त्यां समनूतलयकी सातशे योजन पाणीनी उंची वृधिबे, अने एक हजार योजन पाणी जंडं बे. नीचे तथा उपर दश हजार योजन पहोली अने मूलथकी सत्तर हजार योजन उंची, एवी लवणसमुनी मध्यमां पाणीनी शिखा , तेनी उपर वे गाउ ऊंची पाणी नी वेल ते एक अहोरात्रमा बे वखत वधे बे. लवणसमुने विषे वचमां पाणीनी मेखलाये चार दिशिने विषे वज्रमय चार पाताल कलशा , ते कलशानी एक हजार योजन ठीकरी जामी ने तथा नीचे अने उपर दश हजार योजन पहोला , अने वचमा एक लाख योजन- पेट पहोलु डे तथा ते कलशा एक लाख योजन नूमिमांहे जंमा . ते चारे पूर्व दिशिथी दक्षिणावर्त्त गणतां एक व डवामुख, वीजो केयूप, त्रीजो यूप, चोथो ईश्वर, ए चार नामे चार कलशा जाणवा. हवे जंबूछीपथकी पंचाऐ हजार योजन जातां लवणसमुना दश हजार योजन विस्तारवाली पाणीनी शिखा आवे, तिहां बे लाख, नेवं हजार योजन विष्कंन ने तेनो वर्ग करी ते वर्गने दशे गुणतां जे राशि आवे. तेनुं मूल शोधीये. तेवारे (ए१७०६०) योजन मध्यपरिधि थाय. तेमांथी चार दिशाना चार कलशे चालीश हजार योजन रुं ध्या बे, ते बाद करतां बाकी (7060) योजन रहे, तेने चारे नागे वहेचतां 1965 योजन थाय, एटबुं एकेकी दिशिना महोटा कलशनुं माहोमांहे अंतर थाय, ते अंतरना योजनमांहे वली एकेकी दिशाये नव नव श्रेणी न्हाना पाताल कलशोनी बे, तेणे (215000 ) योजन रुंध्या , अने (4265 ) योजन ते कलशनी ठीकरीने जामपणे संध्या ने. तिहा प्रथम श्रेणिमा 215 बीजीमां 16 त्रीजोमां 17 एम कके को कलश वधारतां यावत् नवमी श्रेणिमा (253) कलशा बे, ते नव श्रेणिनो सरवालो करतां (रए७१) कलशा एक दिशिना अंतरने विषे , तेवी चार दिशिना कलश मेल Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 227 अढीछीपना नकशानी हकीगत. वीयें, तेवारे (74) कलश थाय. ते प्रत्येकनी टीकरी दश योजन जाडी ने, अने एक शो योजन प्रमाण नीचे तथा उपर पहोला , अने एक हजार योजन नूमिमांहे उं मा . तेटलाज मध्यमां पेटे पहोला . एवा न्हाना कलश ते जे स्थानके महोटा कलशे नूमि रंधी नथी तेवा जलमेखलाना प्रदेशे गमे गमे ए कलशा . महोटा चार पाताल कलशाना अनुक्रमे पूर्व दिशिथी दक्षिणावर्त खेतां एक काल,बीजो महाकाल,त्रीजो वेलंब,अने चोथो प्रनंजन, ए चार नामे चार अधिष्ठायिक देवता . तेनुं एक पक्ष्योपमायु दे.अने बीजा न्हाना कलशना अधिष्ठायिक देवोर्नु अर्मपत्योपमायु . महोटा पातालकलशाने अधोजागे वायु , अने वचला नागमा वायु तथा पाणी बेहु अने उपरला जागमा एकलुं पाणीज . ते वायु एक अहोरात्रमा पाणीने बे वखत दोज पमाडे , तेथी पाणीना वेलनी वृद्धि थाय , जेवारे पाणीना जोरथी कलशा उजराय बे, तेवारे समुज्नुं पाणी वधे , एवो सहेजथी चाल ले. बहेंतालीश हजार नागकुमार देवता ते मांहे पेसती पाणीनी वेलने धरी राखेडे, वली शाब हजार नागकुमार देवता तो उपरनी बे कोशथी उपरांत जे वेल वधे डे, तेने वारी राखे . तथा बहोंतेर हजार नागकुमार देवता ते बाहिरली धातकीखंड मां प्रवेश करती वेलने निवारण करे बे. ए रीते ( 174000) नागकुमार देवो पाणी नी वेलने धरी राखे , माटे ए वेलंधर देवो कहेवाय जे. जंबूछीपनी जगतीथकी पूर्वादि चारे दिशाये (42000) योजन लवणसमुखमांहे जा ता अनुक्रमे पूर्वदिशिये गोथुजनामे आवास पर्वत बे, दक्षिणे दिग्नास नामे आवास प र्वत , पश्चिमे शंख नामे आवास पर्वत , अने उत्तरे दिक्सीम नामे आवास पर्वत बे. ए चारे दिशिना पर्वतोने विषे अनुक्रमे एक गोथूल, बीजो शिवदेव,त्रीजो शंख श्र ने चोथो मणोसिल,ए नामे वेलंधर देवताना राजा एवा नागकुमार देवो रहे बेजे दि शियोने विषे रहे , तेने वेलंधर कहीये अने विदिशियोने विषेरहे तेने अनुवेलंधर कहीये. ईशान प्रमुख चार विदिशिने विषे कर्कोटक, विद्युत्प्रन, कैलास अने अरुणप्रज, एवे नामे चार आवास पर्वत ने तेने विषे अनुक्रमे कर्कोटक, कदम, कैलास अने वि द्युत्प्रन एवे नामे चार वेलंधर देवोना राजा नागकुमार देवता रहे बे. ए वेलंधर अने अनुवेलंधर नामे जे श्रावास पर्वतो जे ते (1725) योजन मूलने विषे पहोला , अने (424) योजन शिखरने विषे पहोला ,तथा (1721) योजन ऊंचा , ते आठे पर्वत सर्व वेदिका अने वनखंम तेणे करी सहित बे, तथा पूर्वदिशिथी अनु Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. १२ए क्रमे सुवर्ण, अंकरत्न, रू', अने स्फाटिकरत्नना गोथूनादिक चार पर्वत , अने वि दिशिने विषे जे चार पर्वत 3 ते रत्नमय जाणवा. ए श्राउ पर्वत जंब्रहीपनी दिशा तरफ एदए योजननी उपर एक योजनना पचाएं जाग करीये, तेवा चालीश नाग अधिक एटला पाणीनी उपर देखाय , अने मां ली लवण समुपनी शिखानी दिशिथी जोतां ए६३ योजननी उपर एकयोजनना पंचा णुं नाग करीये, तेवा (33) जाग जेटला पाणीनी उपर देखाय बे. लवणसमुन मध्ये पंचाएं हजार योजने जतां सातशे योजननी जलवृद्धिबे. तो बहेंतालीश हजार योजन जश्ये, त्यां वेलंधर पर्वत , ते स्थानके केटली जलवृद्धि होय ? ते जाणवानी रीति बतावे . श्राहींयां प्रथम श्रेणि पंचाणुं हजारनी, बीजी सातशेनी, अनेत्रीजी श्रेणी बेहेतालीश हजारनी, एवी अांकनी त्रण श्रेणि मांगीये, ए त्रण श्रांकनी राशि मांड्या पळी ते राशि “एणमजिस ए" गाथाना विधिये ग णीये, ते आवी रीते के वचमांनी जे सातशेनी श्रेणि तेने डेली बहेंतालीश हजारनी श्रेणीये गुणीये, तेवारे बे क्रोम ने चोराणुं लाख थाय. पठी पहेली श्रेणी जे पंचाएं हजारनी , तेनी साथे जाग वेहेंचीये, तेवारे त्रणशे ने नव योजन उपर एक योज नना पंचाणुं नाग करीये, तेवा पीस्तालीश लाग आवे, ए रीते संनूतले जंबूहीपे जो तां बहेंतालीश हजार योजने एटली जलवृद्धि होय. अने पंचाएं हजार योजने एक हजार योजन लवण समुख जंडो ने, तो बहेताली श हजार योजने केटलो जंमो ? तेनुं गणित आवीरीते करवू, के बहेंतालीश हजार योजनने हजारने के गुणीये, तेवारे चारकोमीने वीश लाख थाय. तेने पंचाएं ह जार नागे वेहेंचीये, तेवारे चारशे ने बहेंतालीश योजन उपर एक योजनना पंचाएं जाग करीये, तेवा दश नाग श्रावे. एटलो समुफ जंडो , पठी जलवृद्धि तथा उमपणुं ए बे एकगं करीये तेवारे सातशे ने एकावन्न योजन उपर एक योजनना पंचाणुं नाग करिये, तेवा पंचावन नाग थाय, ते सतरशे ने एकवीश योजन वेलंधर पर्वतर्नु उंचप [ डे, तेमांहेथी बाद करीये तेवारे नवशे उंगणोतेर योजन, श्रने उपर पंचाणुा चा लीश लाग रहे. एटलो जंबूहीपथी जतां वेलंधर पर्वत पाणीथी उंचो बे. हवे त्यां पर्वतनो विस्तार केटलो ? ते आणवानो विधि कहे . जलवृद्धि अने उमपणुं ए बे सातशे एकावन योजन उपर पंचाणुया पंचावन नाग , ते सर्वना पं चाणुश्रा नाग करीये, तेवारे एकोतेर हजारने चारशे नाग थाय, पठी “विचारफुगविसे सो” ए करण गाथाये करतां पर्वतनो मूल विस्तार एक हजार ने बावीश योजन , Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 120 अढीछीपना नकशानी हकीगत. श्रने शिखर विस्तार चारशे ने चोवीश योजन , ते अधिका मांडेथी नवं काढतां बाकी पांचशे ने अहाणुं रहे, ते पर्वत, सत्तरशे ने एकवीश योजन ऊंचपणुं , तेनी साथे नाग वेहेंचतां नाग पहोचे नही, ते माटे एकोतेर हजार ने चारशे एटली जल वृद्धि, तथा उमपणानां पंचाणुश्रा नाग , तेने पांचशे ने अहाणुं साथे गुणीये, तेवारे चा र क्रोम बबीश लाख सत्ताएं हजार ने बशे थाय, तेने पर्वतना ऊंचपणाना सत्तरशे ने एकवीश योजन साथे नाग वेहेंचीये, तेवारे चोवीश हजार आठशे ने नव आवे, शेष नवशे ने अगीयार वधे. ते माटे ते चोवीश हजार आठशे ने नव जे , तेमांदे एक ने लीये. पठी पंचाएं जागे वेहेंचीये, तेवारे वशे ने एकशठ योजन उपर पंचाणुआ पं दर नाग आवे. हवे पर्वतनो मूल विस्तार एक हजार ने बावीश योजन . तेमांदेथी जेवारे ए बशे एकशठ योजन, अने पंचाणुश्रा पन्नर नाग काढीये, तेवारे सातशो ने साठ योजन उपर पंचाणुया एंशी नाग रहे, एटलो पर्वतनो विस्तार जाणवो. हवे मांदेली दिशिये जलनी वृद्धि आणवाने अर्थे ए पर्वतना विस्तारनो आंक जे सातशे शाठ योजन उपर पंचाणुथा एंशी जाग , तेने पंचाणुये गुणीये, तेवारे बहोते र हजार बशे ने एंशी एटला पंचाणुया नाग थाय. पड़ी एक पंचाएं हजारनी बीजी सातशेनी, अने त्रीजी बहोंतेर हजार बशे ने एंशीनी, एवा आंकनी त्रण राशि मांमिये तेमां वचेंनी जे सातशेनी श्रेणी , तेनी साथे जेवारे लेहली श्रेणी गुणीये, तेवारे पांच को ड पांच लाख ने बन्न हजार एटला प्रतिनंग थाय. पठी जे पहेली राशि पंचाशी हजा रनी , तेना प्रतिनंग करवा माटे तेने पंचाणुये गुणीये, तेवारे नेवु लाख ने पचीश हजार थाय. एटला प्रतिनंगे उपरना प्रतिनंगनी राशी वेहेंचीये, तेवारे योजन पांच आवे, शेष पांच हजार चारशे ने एकोतेर वधे. तेने पंचाणुं नागे वेहेचतां सत्तावन्न कला आवे, शेष बप्पन गरे, ते माटे एक नेलीये तेवारे कला अहावन्न थाय, एटले पां च योजन उपर अठावन्न कला एटली मांहेली दिशिये जलवृद्धि डे, ते जलथकी पर्वतर्नु चंचपणुं नवशे उंगणोतेर योजनने उपर पंचाणुआ चालीश नाग , तेमांहेथी पांच यो जन ने अहावन्न नाग बाद करीये, तेवारे नवशे त्रेश योजव उपर पंचाणुआ सत्त्योतेर / नाग होय. एटला लवण समुनी शिखा दि शिथी जोतां वेलंधर पर्वत उंचा . तथा ए श्राउ पर्वतना मूलने विषेत्रण हजार बशे ने बत्रीश योजननो परिधि ,अने शिखरने विषे तेरशेने चौद योजननो परिधि,हवे माहोमांहेते पर्वतनो अांतरो श्राणवानो विधि कहे. जंबू छीपनी जगतीथकी बहेंतालीश हजार पांचशे ने अगीयार योजन लवण समु अमांहे गया पड़ी पर्वतना विष्कंजर्नु मध्य , त्यां समुपनुं वृत्तविष्कंन एक लाख पं Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. चाशी हजार ने बावीश योजन , तेनो परिधि पांच लाख पंचाशी हजार ने एकाएं योजन थाय, ते मांडेथी आठ वेलंधरनो विष्कंन आठ हजार एकसो ने बहोंतेर योजन बाद करिये, तेवारे पांच लाख होंतेर हजार नवशे ने पन्नर योजन बाकी रहे; तेने श्रा नागे वेहेंचीये, तेवारे बहोंतेर हजार एकशो ने चउद योजन उपर एक योजनना तेर नाग करिये, तेवा श्राउ नाग एटबुं प्रत्येक वेलंधर पर्वतने वचे अंतर जाणवू // 21 // हवे उप्पन्न अंतरछीपनी विवदा करे . हेमवंत पर्वतना बन्ने माने विषे समुअमांहे बेबे दाढा विदिशिने विषे नीकली बे, ते प्रत्येक दाढाने विषे सात सात अंतरछीप, ते अंतरछीपमांहे पहेला चार अंतरछीप जगतीथकी त्रण योजन पूर , तो तेनो विस्तार पण एकेक अंतरछीप नो त्रणशे योजन प्रमाणे जाणवो. बीजुं चतुष्क जगतीथकी चारशे योजन पूर बे, तो तेनो विस्तार पण चारशे योजन बे, एम सर्वने विषे एकशो योजननी वृद्धि करतां सातमुं अंतरछीपनुं चतुष्क जगतीथकी नवशे योजन पूर , ते एकेकानो विस्तार पण नवशे योजन प्रमाण बे. ते यंत्रथी जाणवो. हवे ए अंतरछीप, पाणी उपर केटला ऊंचा ? ते कहे . अंतरछीपनुं पहेलु चतुष्क ते बाहेर जंबूछीपनी दिशाये अढी योजन उपर पंचाj था वीश नाग एटबुं पाणीथी उपर उंचं जाणवू, बीजा अंतरछीपोनां न चतुष्क बढी योजन उपर पंचाणुश्रा नेवू नाग पाणीथी उंचा जाणवा, अने लवणसमुज्नी शिखानी दिशिये बे कोश प्रमाण सर्वछीपनो प्रकाश जाणवो. ते यंत्रमांहे लख्यो // 13 // हवे अंतरछीपना नाम कहे बे. सर्व अंतरछीप, वेदिका अने वनखंडे करी मंमित जाणवा. अंतरछीपना पहेला च तुष्कने विषे ईशान कूणथी दक्षिणावर्त्त गणतां एक रुचक, बीजुं जासिक, त्रीजुं वैषा णिक, चोथु लांगुलिक ए चार नाम अनुक्रमे जाणवां. अंतरछीपना बीजा चतुष्कने विषे हयकर्ण, गजकर्ण, गोकर्ण अने शत्कुलीकर्ण, एवां नाम जाणवां.त्रीजा चतुष्कने विषे आदर्शमुख, मेंढमुख, अयोमुख, अने गोमुख, एवे नामे चार छीप . चोथा चतुष्कने विषे हयमुख, गजमुख, हरिमुख अने व्याघ्रमुख, एवां चार नामे चार छीप ने. अने श्रश्वकर्ण, सिंहकर्ण, अकर्ण अने कर्णप्रवावरण, एवे नामे पांचमा चतुष्कने विषे अंतरहीप जाणवा. उदकामुख, मेघमुख, विद्युन्मुख अने विद्युदंत. एवे नामे उ का चतुष्कना अंतरछीप ने. सातमा चतुष्कनेविष घनदंत, लष्टदंत, गूढदंत, अने सि कदंत, एवां चार नाम जाणवां. ए अहावीश अंतरछीपना नाम कह्यां. Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीलीपना नकशानी हकीगत. हवे अंतरछीपनो परिधि कहेले. पहेला चतुष्कने विषे नवशे ने उंगण पचास यो जननो परिधि , पळीना बचतुष्कने विषे प्रत्येके त्रणसो ने सोल योजननी वृद्धिक रीये // यथा // सोलुत्तर तिसयजुय, सपढम परिहिं वरावर चउकं // पढमे नवगुणवन्ना, साबीए बारपण सही // 1 // तश्ए पनरिकारसि, चउबए पुणअढार सगणग्या // जो यण बावीस सया, तेरहिया पंचम चउकं // 2 // पणवीस गुणतीसा, बठे चरमेडवी स पणयाला // परिहीअंतरदीवा, सत्तचउकाण नायबा // 3 // 17 // ए पूर्वोक्त प्रकारे वली शीखरी पर्वतने विषे पण ईशानकूण प्रमुख चार विदिशि ने विषे चार दाढा , श्रने ककेकी दाढाये सात सात अंतरछीप, तेवारे चार दा ढाना थहावीश थाय. ए रीते हेमवंत तथा शिखरीना एका गणतां सर्व मलीने छ प्पन्न अंतरछीप जाणवा. ए सर्व उप्पन्न अंतरछीपने विषे युगल मनुष्य रहे . तेनुं पक्ष्योपमने असंख्यातमे जागे आयुष्य जाणवू. ते युगलीयाना श्रावशे धनुष्यनां उंचां शरीर ,वली तेनां शरीरने विषे चोसठ पांसली बेवली थाहारनी श्छा एकांतरे उपजे डे,श्रने उंगण्याएंशी दिवसलगे अपत्य पालनकरेजे. ___ मेरुपर्वतथकी पश्चिम दिशिने विषे जगतीथकी बार हजार योजन लवणसमुरुमांहे सुस्थित एवे नामे जे लवणसमुनो स्वामी देव , तेनो गौतम एवे नामे एक छीपले. ते गौतमहीपनी बन्ने बाजु जंबलीपना बे सूर्य अने लवणसमुना बे सूर्य, तेना बेबे द्वीप जाणवा. एटले वचमां गौतमहीप, अने बन्ने पासे बे बे सूर्यठीप . __जगतीथकी छीपनुं वेगलाश्पणुं अने छीपनो माहोमांहे अंतर तथा छीपनो वि स्तार ते बार हजार योजन जाणवो. वली ए प्रकारेज पूर्वदिशिने विषे जगतीयकी बार हजार योजन लवणसमुरुमांहे बे चंद्रमा जंबूहीपना अने बे चंद्रमा लवणसमु जना. ए रीते चार चंद्रमाना चार छीप जे. ए प्रकारे बाहेरथकी धातकीखंडने विषे तथा मंदरपर्वतथकी पूर्वपश्चिम दिशे लवणसमुनी जगतीथकी बार हजार योजन लवण समुनमांदे शिखानीदिशि फरे तिहां बे चंद्रमा लवण समुज्ना, अने उ चंडमा धातकीखंडना, ए रीते श्राप चंउमा ना छीप पूर्वदिशिये बे, तथा बे सूर्य लवणसमुजना, अने उ सूर्य धातकीखंडना ए वं आठ सूर्यना छीप पश्चिम दिशे . ए चंडमा अने सूर्यना द्वीप पाणी उपर केटला जे ? ते कहे बे. ए पूर्वे कह्या जे चंडमा अने सूर्यना द्वीप ते जंबूझीप तथा धातकीखंडनी.दिशिक्षी जोतां साडी अध्याशी योजन उपरे पंचाणुया चालीश नाग एटला पाणीथी उपर बे, Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीवीपना नकशानी हकीगत. ते जाणवाने अर्थे प्रथमनी पेरे श्रांकनी त्रण राशि मांमीये. एक पंचाएं हजार, बी जी सातशे, अने त्रीजी चोवीश हजार, सुलजपणा माटे बिंदु टालीने वच्चेंनी राशि, बेहेली राशि साथें गुणतां सोल हजार ने आठसो थाय, तेने पहेली राशिना पंचाएं हजार , तेना बिंदु टालतां पंचाएं नागे वेहेंचीये, तेवारे एकसो बोतेर योजन उपर पंचाणुश्रा एंशी जाग श्रावे. एटली लवणसमुनी शिखादिशिये जलवृधिबे. तेनुं श्र ई अठ्याशी योजन थाय जे. तेनी साथे पाणीथकी बाहेरनी चाइनाबे कोश नेलीये, तेवारे साडी अठ्याशी योजन उपर पंचाणुा चालीश जाग. एटला जंबूलीप तथा धातकीखंडनी दिशिथी जोतां पाणी उपर बीप . वली माहेनी लवण शिखानी दि शाथकी जोतां बन्ने बाजुये बे कोश पाणीथकी सर्व छीप जंचा . हवे छीपनो परि धि कहे // उक्तं च // सगतीस सहस्स नवसय, मयाल परिहिं जलापुकोस बहिं॥ उच्चा अंतो जोयण, अडसी पण नउथ चत्तंसा // 1 // हवे ते चंछ सूर्य द्वीपमांहे प्रासादनां प्रमाण कहे .. .. ए चंड सूर्यछीपने विष कुलगिरिना प्रासाद सरखा सामीबासठ योजन ऊंचा, अने सवाएकत्रीश योजन पहोला, एवा रमवा योग्य पोतपोताना प्रजु एटले खामी जे सुस्थि तदेव तथा चंद्र सूर्य, तेमना प्रासाद बे, तथा ए सर्व चंजसूर्य प्रमुख जे ज्योतिषीयोनां विमान ते स्फाटिक रत्ननां बे. तथा लवणसमुज्ने विषे जे ज्योतिषी, तेनां विमान दगपाटन जे स्फाटिकरत्न तेनां , ते विमानने संयोगें लवणसमुज्नो पाणी फाटे जे, ए रत्ननो जातिगुणज बे. वली ते रत्ननी कांति जंची लवण शिखाने विषे पण प्रकाश करे . लवणसमुज्ने विषे चार चंद्रमा, चार सूर्य त्रणशे ने बावन ग्रह, एकशो ने बार नक्षत्र, अने बे लाख समसठ हजार ने नवशे एटली तारानी कोडाकोडी जाणवी.ल वणसमुनो परिधि पन्नर लाख एक्याशी हजार एकसो ने उंगणचालीश योजन जा णवो. समुजनी जगतीना हार घारनुं अंतर, त्रण लाख पंचाऐ हजार बशे ने सवाएंशी योजन .हवेलवणसमुनुं प्रतरघन करवानी गाथा लखे // दससहस रहियविकर, श्रहंदस सहस संजुरं तेण // गणियाय मजा परिही, पयरो लवणस्सिमो हो // 1 // नव नवयं कोमिसया, गसही कोमिसत्तरस लरका // पन्नरसहसाय श्मो, घणोसवे स त्तर सहस्स गुणो // 2 // सो सोलको मिकोडी, तिणवश्लकागुणचत्त सहसाया // नव सय कोमीपन्नर, कोमी पन्नास लरकाय // 3 // इति लवणसमुसाधिकारः // __ हवे धातकीखंड नामा बीजा छीपनो अधिकार वखाणे . लवणसमुनी जगतीथकी बाहेर वलयने श्राकारे चार लाख योजन पहोलो ए Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 124 अढीहीपना नकशानी दकीगत. वो बीजो धातकीखंम नामे छीप , ते धातकीखंझ, इककार नामे जे बे पर्वत तेणे बे-जागे वेहेंच्यो बे, एटले एक पूर्व धातकीखंम. अने बीजो पश्चिम धातकीखंग. ए बे जाग जाणवा. हवे ते इककार पर्वत दक्षिण दिशे, अने उत्तरदिशिये, लांबा ने. व ली एक हजार योजन मूलने विषे, अने शिखरने विषे सरखा पदोला . तथा पांच शें योजन ऊंचा . लवणसमुनी जगतीना दक्षिण उत्तरदिशिना वैजयंत, अपराजि न एवे नामे जे बारणां बे, तेमांथी षु एटले बाणने आकारे चार लाख योजन धा तकी खंडना विस्तार सुधी लांबा निकल्या बे, एवा ते पर्वतो जे. हवे धातकीना बे खंगने विष कुलगिरि तथा क्षेत्र वखाणे बे. धातकी खंडना पूर्व अने पश्चिम दिशाना एकेका खंमने विषेब कुलगिरि जाणवा अने सात सात देव जाणवां. ते जेम गाडीनां पश्डांने विषे, वच्चेंनी नानिथकी आरा ना श्रांतरा होय, तेम जंबूमीप अने लवण समुज्जे, ते नाजि सरखा बे.अने धातकी खंडमांहे जे खुकार तथा कुलगिरि प्रमुख पर्वत बे,ते श्रारा सरखा , अने क्षेत्र जे जे ते आराना विवर एटलेश्रांतरासरखा. वली ते कुलगिरि श्ककार मूलनेविषेशनेहडाने विषेसरखा पहोला वली वासदेत्र जेबे,ते लवणसमुपथकी मामीने पिहुल पिहुलतरने. हवे धातकीखंगमाहे जे पदार्थ जंबूहीप माहेला पदार्थ सरखा बे, ते कहे . धातकी खंडने विषे जे उह, कुंडनुं उमपणुं तथा मेरुपर्वत टालीने कुल गिरि. गयदं तगिरि, वक्षस्कार, यमल गिरि, कांचनगिरि अने वैताढ्य प्रमुख पर्वतर्नु उंचपणुं, तथा सुमेरुपर्वत वर्जिने वैताढ्यनो विस्तार अने बीजा वैताढ्य प्रमुख वृत्त पर्वतनो विस्तार ते सर्व पहेला कह्या , तेना सरखो जाणवो, एटले जंबूझीपनी पेरे जाणवो. हवे धातकीखंडने विषे बे मेरु , ते वखाणे बे. धातकीखंझना जे बे मेरु पर्वत , ते जंब्रहीपना मेरु सरखा जाणवा. पण एटलं विशेष बे के, जंबूहीपना मेरुनी नूमिथी पांचशे योजन उपर चमिये, त्यां नंदनवन बे; तेथकी उपर साडीबासठ हजार योजन चडीये. तेवारे सौमनस्य वन बे, त्यांथकी ब त्रीश हजार योजन ऊंचुं पांडुक वन बे, अने धातकीखंमना मेरुनु एटलुं विशेष जे नूमिथकी पांचशे योजन ऊंचुं नंदनवन , ते थकी साडीपंचावन हजार योजन ऊं चे चडीये, त्यां सौमनस्य वन डे, त्यांची अघ्यावीश हजार योजन ऊंचा चडीये, त्यां पांडुक वन , ए चोराशी हजार योजन थया. अने एक हजार योजन नूमिमांहे जंमा बे, एम सर्व मली पंचाशी हजार योजन ऊंचा बे. तथा नव हजार ने पांचशें योजन मूलमां नीचे विस्तार बे, अनेनव हजार ने चारशें Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 जंबुद्धीप स्थापना सूर्य ममता 5जानरयंत्र + योजन३१३८१५ वाहेरममलपति जगती अाजयी क्षेत्रों/प्रतिमममदमि / पश्चिमी दमुग्रेसवाशादा करप्रसार सूर्य मकरसंक्रांतिदिनमाना भ्यंतरमंगल तपयमदिनेसा कर्क संक्रांतिपय रममवेसूर्य ताप क्षेत्रस्थापना - પાલ-૪ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'लवण समुद्र अने धातकी खमनी स्थापनाः लव समुद्र पातालकलश स्थापना. ANDRI -NAR Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OHOW पाताल कलासरच्या स्थापना लवण समुद्रगत लवण समुद्र अने तदन्तर गत वेलंधरावास पवर्त स्थापना. Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પા 125 TANDAN MMIMIRI लपण समुप्रगत सूर्यचं प्राकृति स्थापना AAVITIANIN धातकीखने विषे ईस्कुकारपर्वत स्थापना. I हरिचर्ष युगल क्षेत्र 0 वृनवैनाढ्य महा हेमवंत पर्वत. 0 तृतवैतादयः हमवंत त्रि हेमवंतपर्वत भरत दोत्र Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. 125 योजन नूतल विस्तार , तथा नव हजार ने साडा त्रणशे योजन नंदनवननो वि स्तार जाणवो, त्रण हजार ने आठशे योजन सौमनस्य वननो विस्तार जाणवो, अने एक हजार योजन शिखानो विस्तार जाणवो. हवे वांवित स्थानकने विषे विस्तार आणवानो विधि आवी रीते केः-नूतलनुं पहो लपणुं नव हजार ने चारशे योजन , तेमांथी शिखरनुं पहोलपणुं एक हजार योजन काढीये, तो बाकी आठ हजार ने चारशे योजन रहे. ते नूतलथकी उंचुं चोराशीद जार योजन , तेनी साथे नाग आपतां, नाग पहोंचे नहीं. तेमाटे पाठ हजार चारशेने दशगुणा करिये. तेवारे चोराशी हजार थाय, ते उंचपणाना चोराशी हजार योजन साथे गुणीये, तेवारे एक योजननो दशमो नाग थावे. तो नूतलथकी जेवारे एक योजन ऊंचे चडीये, तेवारे विष्कंनमांहे एक योजनना दश नाग मांहेलो एक नाग घटे अने उतरतां वधे, एम प्रथमनी पेरे जाणQ. प्रथम जंबूहीपने विषे जे नदी, प्रपातकुंभ, कुंडमांहेला छीप, वनमुख, प्रह, लां वा पर्वत तथा कमल, एटला पदार्थनो विस्तार तथा नदीनुं उमपणुं, वली अहनुं लां बपणुं जे का, तेथी था धातकीखंमने विषे बमणुं जाणवू. हवे नशालवन, परिमाण कहे . एक लाख सात हजार श्रावशे ने उगण्याएंशी योजन मेरुपर्वतथकी पूर्व पश्चिम दि शाये लांबपणे नशालवन डे, एने जेवारे अध्याशीनागे वेहेंचीये, तेवारेबारशे ने बबी श योजन कांश्क कणा आवे; एटर्बु मेरुथकी नशालवन उत्तर तथा दक्षिण दिशा पहो ढुंबे. कुरुदेवनी जीवा बे लाख त्रेवीश हजार एकशो ने अहावन योजन जेटली जाणवी. हवे गयदंत गिरि वखाणे बे. पूर्व अने पश्चिम दिशाना बेहु धातकीखंमने विषे बाहेरनी दिशाये धातकीखमनी जगतीना पासाना चार गयदंत गिरि बे. ते पांच लाख उंगणोतेर हजार बशे ने 3 गणसाठ योजन लांबा जाणवा. अने बीजा जंबलीपनी जगतीनी दिशाना मांहेलाचा र गयदंत गिरि जे , ते त्रण लाख बप्पन हजार बशे ने सत्तावीश योजन लांबा जा णवा. तथा एक बाहेरनो गयदंतगिरि, अने एक मांडेनो गजदंतगिरि. ए बन्ने एक ग करीये, तेवारे कुरुक्षेत्रनुं धनुःपृष्ठ थाय, तेनुं प्रमाण नव लाख पच्चीश हजार चार शे ने ज्याशी योजन थाय. एटलुं धातकीखंमने विषे कुरुक्षेत्रनुं धनुःपृष्ट जाणवू // 23 // हवे वदस्कार अंतर नदी प्रमुखनां प्रमाण कहे . कुल गिरि तथा गजदंतनां प्रमाण कयां अने तेथकी अन्य जे वहस्कार, अंतरन Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126 अढीछीपना नकशानी हकीगत.. दी विजय, अने वनमुख तेनो विस्तार ते क्षेत्रना अनुमाने करी जाणवो. एटले पूर्व धातकी खंम तथा पश्चिमधातकी खंमर्नु बन्ने खुकार दिशिये जेवू देत्रनुं लांबपणुं ; ते वक्षस्कारादिकनुं पण लांबपणुं जाणवू. तथा पूर्व धातकीखंमनां सात देत्र, अने पश्चिम धातकीखंडनां सात क्षेत्र, ते चार लाख योजन लांबां जाणवां. हवे वासक्षेत्रना विजयनो विस्तार कहे जे. क्षेत्रना शांक जे एक, चार, सोल ने चोशव ए एनी साथे धवांक गणीये, पछी बशेने बार जागे वेहेंचीये, तेवारे वासदेत्रनो सर्वत्र आदि, मध्य अने अंत्यनो विस्तार होय . हवे धातकी खंमना ध्रुवांक कहे जे. प्रथम क्षेत्रना चउद लाख बे हजार बशे ने सत्ताएं एटला ध्रुवांक जाणवा. तथा मध्यदेवना बबीश लाख समसठ हजार बसो ने आठ ध्रुवांक जाणवा. तथा अंतदे त्रना ध्रुवांक ३५३११ए जाणवा. __ अंहीयां प्रथम देवना ध्रुवांक जे चौद लाख बे हजार बशे ने सत्ताणुं बे, श्रने क्षेत्र नो आंक एक बे, माटे एके गुणीये, तेवारे तेहीज क श्रावे. तेने बशे ने बार नागे वेहेंचतां 3 हजार उसो ने चौद योजन जाकेरा, एटलो जरत तथा ऐरवतनो आदि विस्तार जाणवो. अने बार हजार पांचशे ने एक्याशी योजन काफेरो मध्य विस्तार बे, तथा अढार हजार पांचशे ने सुमतालीश योजन कारो अंत्यविस्तार बे. हेमवंतने ऐरण्यवतनो आदिविस्तार बवीश हजार चारशे ने अहवन योजन जाके रो बे, मध्य विस्तार पचास हजार त्रणशे ने चोवीश योजन जाफेरो अने अंत्यविस्तार चम्मोतेर हजार, एकसो ने नेवू योजन जाफेरो जे ए सर्व चारे गुणतां चौगुणा थया. हरिवर्ष अने रम्यक क्षेत्रनो आदि विस्तार एक लाख पांच हजार आठशे ने तेत्रीश योजन जाफेरो, अने मध्य विस्तार बे लाख एक हजार बशे ने अहाणुं योजन जा फेरो बे, तथा अंत्यविस्तार बे लाख, बन्नं हजार, सातशे ने वेशठ योजन जाफेरो बे. विदेहनो आदिविस्तार चार लाख, त्रेवीश हजार,त्रणशे ने चोत्रीश योजन जाकेरो बे, अने मध्य विस्तार आठ लाख, पांच हजार एकसो ने चोराणुं योजन जाफेरो बे, तथा अंत्यविस्तार अगियार लाख सत्याशी हजार ने चोपन्न योजन जाफेरो बे, ए रीते ए चार स्थानकनो श्रादि, मध्य तथा अंत्यनो विस्तार कह्यो. ए ध्रुवांक चोशगंके गुण्या. __ अहीयां श्रादि ध्रुवांक चौद लाख. बे हजार, बशे ने सत्ताणुं योजन जाफेरा बे. तेने एक, चार, सोल, चोसठनी साथे गणीये, पडी बन्ने ने बार नागे वेहेंचतां यथोक्त मान लाने. अने मध्यध्रुवांक बबीश लाख, सडसठ हजार, बशे ने श्राप बे. तेने एक, चार Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. सोल ने चोसठ साथे गुणीने पढ़ी बशे बार नागे वेहेंचतां पूर्वोक्त मध्य विस्तार लाने, तथा अंत्यनो विस्तार (3535115) बे, तेने एक, चार, सोल, अने चोसठसाथे गणीये, पनी बशे ने बार नागे वेहेंचतां पूर्वोक्त देत्रनो अंत्यविस्तार आवे. अने उपर जे योजन रहे, तेनी कला करी बशे ने बार जागे वेहेंचीये, तेटर्बु उपर श्रावे. तेमाटे जाफराबे. हवे विजय, परिमाण कहेजे. अंतरनदीये पन्नरशे योजन संध्या,वहस्कारे श्राप हजार योजन रुंध्या बे, मेरुथकी पूर्व पश्चिमे जशालवने तथा मेरुपर्वते बे लाख पच्चीशहजार एकसो ने अहावन्न योजन संध्या ने, वनमुखे अगिधार हजार बशे ने अठ्याशी योजन संध्या , ए सर्व एका क रिये, तो बे लाख, तालीश हजार, त्रणशे ने बेतालीश योजन थाय. ते धातकीखंमनो विस्तार चार लाख योजननो .ते माहेथी काढीये,तेवारे एक लाख,त्रेपन हजार ठशे ने चो पन योजन बाकी रहे-तेने सोल विजय बे. माटे सोल नागे वेहेंचीये, तेवारे नवहजार शे नेत्रण योजन उपर सोलहीया उनाग श्रावे. एटवू एकेका विजयतुं प्रमाण पहोलपणे. ए नदी, गिरि, वन अने विजय ए सर्वनां प्रमाण जेवारे एकगं करिये, खंडना तेवारे चार लाख योजन, धातकीखंडनो विस्तार पूर्ण थाय, अने ए धातकी खंडना बत्रीश विजयनां नाम प्रथम नरतदेवनां सरखां कछादिक जाणवां. हवे नगरी अने वृद वखाणे बे. 'ए धातकी खंमने विषे नगरी अने वृक्ष ते पहेला जंबूहीपने विषे जे रीते कयां, ते रीते जाणवां, परंतु एटलुं विशेष डे के जे पूर्व अने पश्चिमना बेहु खंमने विषे बे उ त्तर कुरुदेवमांहे धातकीने महाधातकी एवे नामे जे बे वृक्ष , ते बे वृदने विषे सु दर्शन अने प्रियदर्शन एवे नामे बे देवता अनुक्रमे वसे बे, अने बे देवकुरुक्षेत्रने वि षे तो जंबछीपनी पेरे गरुम देवताने वसवायोग्य बे शाल्मली वृद बे. हवे धातकी खंमना त्रण परिधि कहे . प्रथम कही जे ध्रुवांकनी त्रण राशि तेनी साथे एक लाख अध्योतेर हजार आठशे नेबे हेंतालीश. एटला योजन मेलवीये, तेवारे अनुक्रमे धातकी खंडना त्रणे परिधिनुं परिमा ण थाय, ते यंत्रथी समजवू. हवे ए ध्रुवांक केवी रीते नीपजे ? तेनो विधि ग्रंथातरथी कहे जे // यमुक्तं॥श्हवासहराजंबू, सेलगुण विचराचसुधारा॥कित्तं फुसंति लरको, अडसय रिसहस बियाला // 1 // तणूणलवणपरिहि, धायश्संडस्सा धुवरासी॥गिरि पितुणा तम्मा , परिहीसमऊ धुवरासी॥॥अंतस्स विजा परिही, गिरिविकर रहिय यं तधुवरासी॥ गिरिविचरेण मिलियं,परिहिंतिगणुकमेण नवे ॥३॥इतिधातकी खंडाधिकारः Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 अढीवीपना नकशानी हकीगत.. हवे कालोद समुनो चोथो अधिकार कहे बे. कालोदधि नामे जे समुअ ते धातकीखंडनी जगती बाहेर वलयने आकारे बे,ते सर्वत्र हजार योजन जंडो ने एटले गोतीर्थनी परे नथी. वली एमां पाणीनी हानी वृद्धि थती नथी. ते कालोद समुज्ने विषे लवणसमुज्ना सुस्थितदेव सरखा काल, अने महाकाल नामे जे बे देवता तेने रहेवायोग्य पूर्व अने पश्चिम दिशानेविषे गौतमद्वीपसरखा बे छीपो. लवण समुनी पेरे धातकी खंडनी जगतीथकी बार हजार योजन कालोद समुन मांहे पूर्व दिशानेविषे धातकीखंडना बार चंजमाना बार डीप डे, अने पश्चिम दिशाने विषे बार सूर्यना बार छीप, तथा कालोदनी जगतीथकी कालोद समुडमांहे बार हजार योजने पूर्व दिशाने विषे कालोदधिना बहेंतालीश चंडमाना बहेंतालीश द्वीप बे,अने प श्चिम दिशाये बहेंतालीश सूर्यना बहेंतालीश छीप .तेसर्व छीप बाहेरनी दिशाये सर्वत्र जोतां पाणीथकी उपर बे कोश उंचा बे, तथा एकाएं लाख सत्योतेर हजार बशे ने पांच योजन कालोद समुजनो परिधि जाणवो. अने बावीश लाख बाणुं हजार बशे ने बहेंता लीश योजन अने उपर त्रण कोश एटवू जगतीना हार घारनुं अंतर जाणवू // हवे पांचमो पुष्करदल छीपनो अधिकार कहे. कालोद समुनी जगतीथी बाहेर वलयने आकारे सोल लाख योजन पहोलो पुष्कर छीप डे, ते पुष्कर छीपनुं अर्फ आठ लाख योजन , त्यांथकी बाहेरनी दिशाये जगतीनी पेरे वलय सरखो मानुष्योत्तर एवे नामे पर्वत , ते वेलंधरगिरिने माने जे. मूलने विषे एक हजार बावीश योजन, अने शिखरने विष चारशे ने चोवीश योजन पहोलो बे, अने सत्तरशे एकवीश योजन उँचो बे. वली जेम सिंह बेसे, तेवारे श्रागले नागे उँचो होय, अने पाबले नागे नी चो होय, तेम मानुष्योत्तर पण माहेनी दिशाये उंचो बे, अने बाहेरनी दिशाये नी चो ढाल मांहे . वली निषध पर्वतने वर्णे मानुषोत्तर पण राता सुवर्णनो बे. __ हवे त्यां क्षेत्र अने पर्वतनां स्वरूप वखाणे डे. जेम जरतादिक क्षेत्र अने हेमवंत प्रमुख पर्वत तेनां संस्थान जे आकार विशेष धा तकीखंमने विषे कह्यां . एटले त्यां जेम चक्रना आरा अने विवर सरखा , तेमज ए पुष्करवर छीपने विषे पण जाणवा. धातकीखना नशाल वनथकी पुष्कराईनुं जमशाल वन ते लांबपणे अने पहोलपणे बमणुं जाणवू. तो मेरुनी पूर्व पश्चिम दिशा ये जशालवननो धातकी खंडने विषे विस्तार एक लाख सात हजार आठशे ने जंग एयाएंशी योजनबे. तेने बमणो करीये, तेवारे बे लाख पन्नर हजार सातशे ने अहावन यो जन थाय. ने एने जेवारे अठ्याशी जागे वेहेंचीये, तेवारे बे हजार चारशे एकावन्न Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीधीपना नकशानी हकीगत. योजन उपर एक योजनना अघ्याशी नाग करीये. तेवा सित्तेर नाग एटलो मेरु थ की दक्षिण उत्तर दिशाना नऊशाल वननो विस्तार पुष्कराईने विषे जाणवो. तथा पुष्कराईना बे मेरु अने श्खुकार पर्वत तेनो विस्तार धातकीखंड सरखो जाणवो. हवे बाहेरना चार गजदंता वखाणे . ए पुष्कराईने विषे मानुषोत्तर पर्वतनी दिशाये बाहेरना चार गजदंतगिरि जे , ते वीश लाख, तालीश हजार, बशे ने जंगणीश योजन लांबा ने. कालोद समुनी जग तीनी दिशाना मांहेला चार गजदंतगिरि जे , ते सोल लाख, बबीश हजार एकशो ने सोल योजन एटला लांबा . तथा चार लाख, बत्रीश हजार, नवशे ने सोल योजन एटली कुरुक्षेत्रनी जीवा बे. वली सत्तर लाख, सात हजार, सातशे ने चनद उपर एक योजनना बशे बार नाग करिये, तेवा आठ नाग एटलो कुरुक्षेत्रनो विस्तार जा णवो. त्रणशे. तेत्रीश योजन उपर एक योजननो त्रीजो जाग एटर्बु कंचनगिरिनुं मा होमांहे अंतर जाणवू. बे लाख, चालीश हजार, नवशे ने उंगणसाठ योजन उपर सा तीयो एक नाग एटबुं कुल गिरि, जमक अने जहनुं मांहोमांहे अंतर जाणवू. तथा उ त्रीश लाख,उंगणोतेर हजार,त्रणरों ने पांत्रीश योजन एटलुं कुरुक्षेत्रनुं धनुःपृष्ठ जाणवू. हवे शेष नदी तथा पर्वतनां परिमाण कहे जे. शेष बीजां देत्र, नदी अने अह प्रमुखनुं प्रमाण ते जेम जंबूछीपथकी कोश्क बम णा, कोश्क सरखा, इत्यादि धातकी खंमने विषे जेम कह्या बे, ते अहिंयां पुष्करा ऊने विषे पण कोश्क धातकीखमयी बमणा, कोश्क धातकीखंग सरखा पण जाणवा. एटले जे जंबूहीप सरखा धातकीखंममांहे बे, ते धातकीखंम सरखा पुष्कराईमांदे बे, अने जे जंबलीपथकी धातकीखममांहे बमणा कह्या बे, ते पुष्कराईने विषे धात कीखंमथकी बमणा जाणवा // हवे धातकीखंडने विषे दीर्घ वैताढ्य जंबूहीप सरखा वखाणे 2 // यथा // कंचण यमसुरकुरु नग, वेयडा चेव वह दीहाय // विरकंनबाहस मु, स्सएणजह जंबूदीवुच्चा // 1 // पुष्कराईने विषे तो दीर्घ वैताढ्यनो विस्तार बशें योजन कह्यो बे // यथा // उवेहो वेयढाणं, जोयणा तु उसय कोसा // पण विसं उच्चिड्डो, दोचेव सयाई विछिन्ना // 2 // अहिंयां निश्चयनी वात तो ज्ञानी जाणे. पुष्कराई क्षेत्रनो ध्रुवांक कहे . अध्याशी लाख, चउद हजार, नवशे ने एकवीश एटला योजन श्रादिदेवना ध्रुवांकनी राशि जाणवी. ते सर्व प्रथमनी पेरे देवना श्रांक साथे गणीये. पली बशे ने बार नागे वेहेंचतां परिमाण लच्यमान थाय. एक को रमी, ते लाख, चुम्मालीश हजार, सातशे ने त्रेतालीशयोजन. एटली पुष्करवरछीपना 17 Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 130 अढीछीपना नकशानी हकीगत.. मध्यदेवनी ध्रुवांकराशि जाणवी. एक करोड, आडत्रीश लाख, चम्मोतेर हजार, पांचशे ने पांशठ, एटली पुष्कराना अंत्यदेवनी ध्रुवांकराशि जाणवी. हवे ए ध्रुवांक जाणवा नी पेरे लखीये वैये ॥यथा॥ पुरकरदलं मिनसुया, र धायश्संडा उ उगुण वासहरा // खित्तं फुसंति लकति,पणवन्न सहस्स उसय चुलसी // 1 // तेणूणा कालोयहि,परीही इहपढ महो धुवरासी॥ दीव मद्य परिही, गिरिपीढ़णोय मजि धुवो // 2 // नरखित्त अंतपरि ही, गिरिपिढ़णाय अंत धुवरासि // पुवंचगणणहरणो, खित्तपमाणं नवे पयमं // 3 // हवे अनुक्रमे देत्रप्रमाण विवरीने लखीये बैये. पुष्कराईने विषे नरत ऐरवतना आदिध्रुवांक अध्याशी लाख, चउद हजार, नवशे ने एकवीश तेने एक साथे गुणीये, ते वारे तेहीज श्रांक श्रावे, तेने बशे ने बार नागे वेहेंचीये, तेवारे एकतालीश ह जार, पांचशे ने उंगण्याएंशी योजन लन्यमान थाय. उपर एकशो ने तहोंतेर योजन वधे, ते एक योजनना बशें बार नाग करी, तेने बशें ने बार नागे वेहेंचीये, तेवारे उपर बशें ने बारीया एकशो ने तहोंतेर नाग श्रावे, एटलो प्रथम विस्तार . तेमज त्रेपन हजार, पांचशे ने बार योजन उपर बशें बारीया, एकशो ने नवाणुं नाग, एट लो मध्य विस्तार जाणवो. पांसठ हजार चारशें ने बेतालीश योजन उपर बशे ने बा रीया तेर नाग, एटलो अंत्यविस्तार जाणवो. हेमवंत ऐरण्यवंतनो आदि विस्तार एक लाख, बासठ हजार,त्रणरों ने जंगणीशयोजन उपर बशे ने बारीया बप्पन नाग बे, अने मध्य विस्तार बे लाख, चउद हजार ने ए कावन योजन उपर बशें बारीया एकसो ने साठ नाग , तथा अंत्यनो विस्तार बे लाख, एकसठ हजार, सातशे ने चोराशी योजन उपर बशें ने बारीया बावन नाग . हरिवर्ष तथा रम्यक्नो श्रादिविस्तार बलाख, पांसठ हजार, बशें ने सत्योतेर योजन उपर बशें ने बारीया बार नाग , अने मध्य विस्तार आठ लाख, बप्पन हजार, बशें ने सात योजन उपर बशे ने बारीया चार जाग , तथा अंत्य विस्तार, दश लाख,सुमता लीश हजार, एकशो ने बत्रीश योजन उपर, बशें ने बारीया बशे ने श्राप नाग ले. विदेह क्षेत्रनो श्रादिविस्तार, बबीश लाख,एकसठ हजार, एकशो ने आठ योजन उ पर बशें ने बारीया अमतालीश नाग बे, अने मध्य विस्तार चोत्रीश लाख, चोवीशह जार, आठशे ने अध्यावीश योजन उपर बशें ने बारीया सोल जाग , तथा अंत्यविस्ता र एकतालीश लाख, अध्याशी हजार, पांचशे ने बेतालीश योजन उपर बशें ने बा रीया एकशो ने बन्नु नाग जे. ए गुणांक, क्षेत्रांक अने ध्रुवांक, ते सर्व यंत्रथी जाणवा. हवे प्रथमनी पेरे नदी, गिरि अने वनमुख, परिमाण काढीने शेष रहे, तेने सोल Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. 131 मे जागे एक विजय, परिमाण जंगणीश हजार, सातशें ने सवाचोराणुं योजन थाय. तथा ए पुष्कराई छीपने विषे, बाहेरनी दिशाये जेनां पाणी वहे , एवी जे नदी तेनी नजीक को समुज नथी, तेमाटे मानुषोत्तरने हेठे मूलमा पेसे बे. ____ए पुष्कराईने विषे बन्ने उत्तर कुरुक्षेत्रमाहे पद्म अने महापद्म एवे नामे बे वृद बे, तेने विषे पद्म तथा पुंमरीक एवे नामे बे देवता रहे डे, श्रने देव कुरुक्षेत्रने विषे तो जंबूछीपनी पेरे गरुमदेवने वसवायोग्य बे शाल्मलीनां वृदो . ___ पुष्करार्क क्षेत्रने विषे पूर्व पश्चिम दिशाना बन्ने खंगमांहे बे हजार योजन पहो ला एवा बे कूट कह्या बे, ते कूटनां स्थानक गीतार्थ ज्ञानवंत होय ते जाणे. हवे मनुष्यदेवमांहे सर्व पर्वतनी संख्या कहे जे.. एक मेरु, उ कुलगिरि, चार गजदंता, सोल वनस्कार, चोत्रीश लांबा वैताढ्य, चार वृत्त वैताढ्य, चार यमलगिरि, अने बशे कांचन गिरि. ए सर्व मली बशे ने उंगण्योतेर पर्वत जंबूद्वीपमाहे जाणवा. अने श्राउ पर्वत लवणसमुषमांहे बे, बीजा धातकीखंग मांहे जंबूहीपना बर्श ने उंगण्योतेरने बमणा करीने बे खुकार पर्वत नेलीये, तेवारे पांचशे ने चालीश थाय. अने त्रीजा पुष्कराईने विषे पण पांचशे ने चालीश पर्वत जाणवा. एम तेरशो ने सत्तावन पर्वत सर्व मलीने मनुष्य क्षेत्रमाहे जाणवा, तेमां पांच मेरुपर्वत विना सर्व पर्वतो उंचपणाने चोथे जागे नूमिमांहे जाणवा. अने मानु षोत्तर पर्वत पण एज रीते जंचपणांने चोथे नागे नूमिमांहे बे. पुष्करा: छीपना श्रादि, मध्य श्रने अंत्यना त्रण परिधि कहे बे. प्रथम जे ध्रुवांकनी श्रेणी कही बे, तेमाहेत्रण लाख, पंचावन हजार, बशे ने चोराशी एटला योजन जेवारे त्रणे परिधिमांहे मेलवीये, तेवारे अनुक्रमे पुष्कराईना त्रण परिधि होय, ते संख्या यंत्रथकी जाणवी // उक्तं च // अडाश्दीव 3 समु, द रूव तप्परिहिं जोय णिग कोमी॥बायाल लक तीसं,सहसा दोसय गुणवन्ना ॥१॥सोलस कोमी लरका, नव को डिसयातिको डि ग लरक // पणवीस सहस्सासे, गणियपयं पुणसु करणेहिं // 2 // हवे मनुष्यदेत्र बाहेर जे पदार्थ न होय, ते कहे . नदी, अह, मेघ, मेघनो गर्जारव, बादर अग्नि काय, तीर्थकर, बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती अने बीजा पण सामान्य मनुष्य तेना जन्म अने मरण तथा मुहूर्त, प्रहर, दिवस, चं सूर्यनां परिवेष, विजली, चय, अपचय अने उपराग, एटला पदार्थ पी स्तालीश लाख योजन प्रमाण मनुष्यदेत्रमाहे होय. पण बाहेर न होय. एवं नरदे त्रना वनावनुं विशेष जाणवू // इति पंचमोऽधिकारः // 5 // Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 132 अढीछीपना नकशानी हकीगत. हवे पुष्करा दिकना पर्वत प्रमुखने विषे जिनजिवन बे, ते कहे बे. प्रथम कह्या जे धातकीखंग तेने विषे बे श्खुकार, अने बे श्खुकार पुष्कराना, ते चारे खुकार पर्वतने विषे प्रत्येके चार कूट बे. तेमांहे बेबा सिजकूटने विषे चार प वते एकेक जिननवन बे, बधां मली चार जिनजवन दे. अने मानुषोत्तर पर्वतना चार कूटनी उपर चार जिननवन , ते जिननवन कुलगिरिना जिननवनने परिमाणे प चास योजन लांबां, पञ्चीश योजन पहोला अने उनीश योजन ऊंचां जाणवां. हवे नंदीश्वर, कुंडल श्रने रुचकहीपनेविषे जिननवन कहे बे. एकसो योजन लांबा अने पचास योजन पहोला तथा बहोंतेर योजन ऊंचा अने चार बारणे सहित एवां आठमा नंदीश्वरछीपने विषे बावन जिननवन , तथा कुंभ लहीपनेविषे कुंडलने आकारे जे मध्य गिरि , तेने कुंडल गिरि कहे , तेनी चार दि शाने विषे एवाज प्रकारना चार जिनजवन जाणवां. एम रुचकछीपने विषे पण चार जिननवन बे, ए सर्व साठे जिननवन ते चार बारणानां बे. अढीछीपने विषे गर्नज मनुष्य संख्याये केटलां ले ? ते कहे बे. सात क्रोड कोमाकोमी कोमी, बाणुं लाख कोडाकोडी कोमी,अहयावीश हजार कोमा कोडी कोडी, एकशो कोमाकोडी कोमी, बाशठ कोमाकोडी कोडी, एकावन लाख कोमा कोडी, बहेंतालीश हजार कोमाकोमी, बशे कोडाकोमी, तालीश कोडाकोडी,सामत्री श लाख कोडी, जंगणसाठ हजार कोमी, त्रणशे कोडी, चोपन कोडी, उंगणचालीश लाख, पच्चास हजार, त्रणशे ने त्रीश, एटले आंके स्त्री पुरुषनी संख्या जाणवी. एटले सात कोड, बाणुं लाख, अध्यावीश हजार, एकशो ने बासठ कोमाकोमी कोमी, तथा एकावन लाख, बहेंतालीश हजार, उशे ने तालीश कोडाकोमी, तथा सा डत्रीशलाख, उंगणशाप हजार, त्रणशे ने चोपन कोमी, तेनी उपर उंगणचालीश लाख, पच्चास हजार त्रणशे ने उनीश, एटला अांक स्त्री पुरुषना एका साथे जाणवा. एटले जए२७१६२,५१४२६४३,३७५७३५४,३५५०३३६, ए जंगणत्रीश ांकनी संख्या जाणवी. ___ ए आंकना श्रध्यावीश नाग करीये, तेवारे एक नागमां शशए५७७, 2326522, ए७११ए, पुणएरश्६, ए अध्यावीश आंक श्रावे, एटले अध्यावीश लाख कोमाको मी कोमी, जंगणत्रीश हजार कोडाकोडी कोडी, पांचशे कोडाकोडी कोमी, सत्योतेर कोमाकोमी कोडी, तथा त्रेवीश लाख कोडाकोडी, बबीश हजार कोमाकोडी, पांचशे को माकोमी, बावीश कोमाकोमी, सत्ताणुं लाख कोमी, सत्त्योतेर हजार कोमी, एकशो को मी अने जंगणीश कोमी, तेनी उपर उंगण्याएंशी लाख, शहाणुं हजार, बशे ने बबीश, Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अदीबीपस्थापना धातकी वंम स्थापना. महाविदेह महाविदेह i ANAND SANA हिरण्यवत एरवता इख कारण बीजीऐवत महाविदह "महाविदह 'महाविदेह - - - Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुक्र स्थान प्रासाद प्रतिमा का स्थान प्रासाद || प्रतिमा सोधर्म 1200000 576000000 // 5 // मेरु 85 / / 10200 ईशान 280....||504000.00 20 गजदंतगिरि // 2400 सनत्कुमार 1200000 216..... वरकारा पर्वत महेंद्र 8.0000 144000000 / 100 / कांचन गिरि ||1000120000 ब्रह्म 400000 72000000 विचित्रपवत // 5 600 बातक 50.00 चित्रपर्वत / / 40000 7200000 यमका चल || 10 1200 सहस्त्रार वर्षधर पर्वत 3. 1600 अानत | 16.00 || || श्खु कार पर्वत / / 4 / / 480 प्रागत | 200 / / 36000 / / 20 / / वृत्तवैताढय / 20 2400 यारण्य ___150 | 27000 १७०मा दीर्घवैतादयः / / 170 अच्युत 150 ... || 4 || दिग्गजकूट // 40 || 48 प्रथमत्रिक 13320 जंब्या दिवृक्ष ||1170 170400 द्वितीयत्रिक 12840 कुम 38. 456.. त्रितीय त्रिका 7. महान दिकुंक एवं मनुष्य से चैत्य संरच्या शाश्वत जिन प्रासाद संरव्या यंत्र. पंचानुत्तर हद चैत्य . 48. | एवमूई लोके ||8497023 ||152944476/ एवंत्रिभुवने ||85700282 1542583608 8368 मनुष्य क्षेत्रथीबाहेरनाचैत्यो नी संरव्या मानुषोत्तर पर्वत नंदीश्वर हीप रुचक द्वीप कुंमलहीप H - स्थान | एचमोलीका 77200000 13896000000 वायुकु. 9600000 1728000000 | दिशाकु.७६००००० स्तनितकु.७६००००० 1368000000 उदधिकु./७६ 00000 1368000000 अग्निकु. 7600000 हीपकु. 7600000 1368000000 प्रासाद विद्युत्कु. 7600000 ||सुवर्णकु.७२००००० नागकुमार 8400000 असुरकुमार 6400000 1368000000 |1368000000 1368000.00 | 1296000000 2512000000 1152000000 प्रतिमा. data - Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदीसरकल्प: AA WA - || नंदीसरदीप स्थापना. // - Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SITIVIMAIRAL (DEK - - - कुंमलद्वीप स्थापनाः प्रासाद प्रासाद - प्रासाद - HALIVE - - - पार 133 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. 133 एटला श्रांक अध्यावीशमा जागमा आवे, उपर श्राफ्नो श्रांक वधे. एटली संख्याये पुरुष जाणवा. एटले २२ए एटली कोमाकोमी कोमी, अने 2356522 एटली को डाकोडी तथा ए७७११ए एटली कोमी तेनी उपर एएश्२६ एटला पुरुष जाणवा. हवे पुरुषथी सत्तावीश गुणी स्त्री , माटे ए श्रांकने सत्तावीश गुणो करीये, तेवारे ७६३एज्५५, 2016120, 372234, एए५२१०२ ए गणत्रीश ओक आवे, तेटली संख्याये स्त्री जाणवी. एटले सात कोड कोडाकोमी कोमी, त्रेशठ लाख कोमाकोडी कोमी, हाणुं हजार कोडाकोमी कोमी, पांचशे कोडाकोमी कोडी, पंचाशी कोमाको डी कोडी, तथा अध्यावीश लाख कोडाकोडी, शोल हजार कोडाकोडी, एकशो कोडाको डी, वीश कोडाकोडी, तथा जंगणचालीश लाख कोडी, बासी हजार कोडी, बशे कोडी, चोत्रीश कोडी, उपर उंगणसाठ लाख, बावन हजार, एकशो ने बे. एटले आंके स्त्री जाणवी. अर्थात् (76377575) एटली कोडाकोडी कोडी, तथा (2016120) एट ली कोडाकोडी, तथा (३ए७२२३४) एटली कोडी तेनी उपर (एए५२१०२) एटले यां के स्त्री . ए स्त्रीना आंकनी साथे पूर्वोक्त पुरुषना श्रांकनी संख्यानो अांक तथा जेथ घ्यावीशे जाग आपतां उपर था वध्या बे, ते सर्व एका मेलवीये, तेवारे पूर्वोक्त गणत्रीश श्रांक पूर्ण थाय. एटला बांके गर्भज मनुष्य . ए प्रकारे गर्भज मनुष्य पूर्वोक्त आंक जेटला होय परंतु ांक न्हाना महोटा न होय, तेमां पुरुषथी स्त्री सत्तावीश गुणी अधिक होय. अल्पबहुत्वमा पुरुषथकी स्त्री संख्यातगुणी अधिक कही बे. इहां पूर्वोक्त आंकने अध्यावीशे नाग श्रापतां उपर आपनो श्रांक वधे बे, पण सत्यावी श वधता नथी ते वात गीतार्थगम्य जाणवी. तेनो निर्णय गीतार्थ करी आपे. वली अल्पबहुत्वना अहाणुं हार जोतां सर्वथी थोडा गर्जज मनुष्य कह्यां , ते संख्याती कोडाकोमी प्रमाण पूर्वोक्त गणत्रीश बांके संख्या जाणवी. ___ यहां केटलाएक एम कहे जे के उगणत्रीश के गनज मनुष्य , ते आंक खरे खरा ले परंतु तेमां कालविशेषे न्हाना महोटा श्रांक लेवा जोश्ये. जेम बे एकडाये अगीयारनो आंक थाय अने बे नवडाये नवाणुं श्रांक पण थाय. तेम श्रीअजितनाथ जीना वखतमां मनुष्यनी संख्या घणी होय तेवारे महोटा आंक लेवा अने बहा था राने विषे माणस खल्प होय तेवारे न्हाना आंक लेवा, एवी रीते केटलाक श्रीजिन शासनना रहस्यना अननिझपणाथी कहे . ते असत्य कहे जे. जेमाटे पंचांगीने वि पे एटलाज श्रांक कह्या ते न्हाना महोटा केम थाय ? जे कारणे श्रीअनुयोगहार सूत्रमध्ये कडंडे केः- जेवारे जघन्यथी मनुष्य होय, ते Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134 अढीहीपना नकशानी हकीगत.. वारे एकडानो श्रांक मांमी तेने बन्नु वार बमणो करीये, तेवारे जे आंक श्रावे ते श्रां क प्रमाण मनुष्य . अथवा एकनो वर्ग न होय अने बेनो वर्ग चार थाय, ए प्रथम वर्ग कहेवाय. चारनो वर्ग शोल थाय ए बीजो वर्ग. शोलनो वर्ग बशे बप्पन थाय, ते त्रीजो वर्ग. तेनो वर्ग 65536 थाय ते चोथो वर्ग. तेनो वर्ग ४२एवएशए६ थाय ते पांचमो वर्ग. तेनो वर्ग 1744674402551616 ए हो वर्ग. इहां पांचमो वर्ग हा वर्ग साथे गणतां पूर्वोक्त आंक आवे ते आंकप्रमाणे गनज मनुष्य बे. __ हवे ए पूर्वोक्त गणत्रीश श्रांकप्रमाणे जे गनज मनुष्यनी संख्या कही, ते सर्व मनुष्य जो अढीछीपमां विचरता लहीये, तो समाश् शके नही. केम के अढीछीपनी नूमि पीस्तालीश लाख योजन प्रमाण बे. तेनी परिधि १५२३०२४ए योजन एक गाउ 1766 धनुष्य उपर चार अंगुल बे. अने अढीछीपनुं गणितपद करीये, तो पीस्ताली श लाख विष्कंननो चोथो नाग सवा अगीयार लाख योजन थाय, तेने पूर्वोक्त परिधि ना योजन साथे गणीये, तो १६००ए०३०६१ए४४५ योजन, त्रण गाज, र धनुष्य थाय. ए सर्व प्रमाणांगुले योजन जाणवा. ते एक प्रमाणांगुल योजन मनुष्य संबंधी दश लाख योजन थाय, तेनी रीत बतावे बे. उक्तं च // अंगुलसप्ततिकायां // सहस्समाणे चनरं, सजोयणे दीह पिहल नावा णं // हुँति परुप्परगणणे, लरका दस जोयणाण फुडं // 1 // एक प्रमाणांगुल योजन बे, ते उत्सेधांगुल सहस्रगुणुं जाणवू. तो एक जोयण चउरत्र प्रमाणांगुले , ते सह स्रगणुं लांबु अने सहस्रगणुं पहोर्बु होय, तेवारे सहस्रने सहस्रगणुं करतां माणसना दश लाख योजन स्फुट एटले प्रगट थाय. हवे एक योजननूमिना प्रमाणांगुल 52YD00000 एटले अहावन हजार को डी, नवशे कोमी, बासी कोमी, उपर चालीश लाख थाय. ते आवी रीते केः- एक योजन नूमिनां आठ हजार धनुष्य थाय. तेने एक धनुष्यना उन्नु अंगुले गुणतां 76000 थाय, ते समचउरत्र योजन , माटे तमुणा करीये तेवारे पूर्वोक्त एन्एत 24000000 प्रमाणांगुल थाय. तेने पूर्वोक्त अढीवीप संबंधी गणितपदना जेटला यो जन कह्या , तेनी साथे गुणीये तेवारे ए४४२५१०४ए६७१२ए ए ए७६ एटला प्रमाणांगुल गणितपदना जे योजन, गाज, धनुष्य तथा अंगुल कह्या तेना थाय. ___ एवं एक समचउरत्र प्रमाणांगुल ते मनुष्यना हजार आंगुल लांबुं अने हजार शां गुल पहोवू समचउरस्र जाणवू. माटे हजारने हजार गुणुं करतां दश लाख उच्छेद अं गुल थाय, तेने एक समचउरस्त्र हाथनी चोवीशांगुलने चोवीशे गुणतां 576 आंगुल Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. 135 थाय. ते शांगले नाग आपीये, तेवारे 1736 हाथ लाने. शेष 64 अंगुल वधे. हवे ते पूर्वोक्त गणितपदना अंगुलने सत्तरशे ने बत्रीश हाथे गुणीये, तेवारे १६३७७१एन१२२४६७०११७१७४३नए२१११३६ एटला हाथ जोद अंगुले थाय. तथा चोशठनो श्रांक वध्यो . ते गणितपदना अंगुल साथे चोशठ गुणो करी 576 नागे वहेंचतां १०४ए१६७३शएसए१०५शएन्एन्श्श् हाथ थाय. शेष Yएर वधे. हवे ए हाथनी राशि पूर्वोक्त मूलहाथनी राशि मध्ये प्रदेपिये, तेवारे १६३७ए४३एएएएएएए७१०एए एटला हाथ थाय. ते सर्व गणितपदना उछेद थांगुले हाथ जाणवा. था बे पानाना गणित तपास्या नथी. - हवे ए सर्व त्रीश ओक बे, ते पीस्तालीश लाख योजन मनुष्य क्षेत्र , माटे पी स्तालीश लाखने जागे वहेंचीये, तेवारे एक जागे ३६३ए३२३५३३एएएएएएU३० एटला श्रावे. शेष १०७एए एटला श्रांक वधे, तेने नाग पहोंचे नही. हवे पीस्तालीश लाख योजनमां पण वीश लाख समुनी नूमि , श्रने पञ्चीश लाख छीपनी नूमि बे, तिहां समुज्नी नूमिमां माणसनी वस्ती नथी. मात्र अंतरछीप ने ते स्वल्प डे तेनी विवदा करता नथी. ते माटे समुनी नूमि रहित मात्र छीपनी पच्चीश लाख योजन नूमि , तेने एक नागमां श्रावेली पूर्वोक्त हाथनी राशि साथे गुणतां एएएए एएएएएएएएएए000000 एटली राशि श्रावे. ए पण उंगण त्रीश श्रांक , ते पूर्वोक्त सातकोमी इत्यादि गर्भज मनुष्यना गणत्रीश आंकनी रा शिने वहेंची थापतां एकेका माणसने नागे एकेक हाथ नूमिनाग श्रावे जे तेमां सु वाय बेसाय नही. तेमज पर्वत, नदी, अह, वन, अटवी प्रमुख माणस विनानी नूमि पण घणी बूटी पडेली देखाय बे अने अल्पमात्र नूमिमध्ये मनुष्य रहे डे माटे पूर्वो क्त संख्याना मनुष्य एटली नूमिमां समाश् शके नही? एवी शंका उत्पन्न थाय. हवे पूर्वोक्त शंकानुं समाधान करे ले. जे माटे श्रीवीतरागना वचनमा कांश पण संदे ह नथी. जे उंगणत्रीश श्रांक प्रमाण गर्भज मनुष्य कह्यां . ते सदा सर्वदा काल एट लांज बे, पण उडां अधिकां नथी. यहां समाधान था बे, केः-पुरुषथी स्त्री सत्त्यावीश गुणी अधिक बे. श्रने गर्भ धारण करनारी पण तेज थने तेना गनमा उत्कृष्टथी नवलाखनी संख्याये पण गर्भज मनुष्य होय . अने जघन्य मध्यम पण होय डे पण स्त्रीनी राशि महोटी ले तेथी तेना गर्णमां गनज मनुष्योनी महोटी संख्या सर्वदा रही शके एवो निर्धार जे माटे घणा जीव गर्जमां होवा जोश्ये. अने खल्पजीव गर्ज बाहेर होवाथी तेटला जीव पृथ्वीमां सुखथी रही शके जे. एम कहेवाथी जैनक्रियानो Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 136 अढीकीपना नकशानी हकीगत.. लोप न थाय. पड़ी केवली कहे ते सत्य जाणवू. पण गोखवू, चिंतववं, अने पूq. एy नाम त्रिपक्षीविद्या कहेवाय. जगतमां त्रिपदी विद्यानी कहेवत ने तेथी सांशयिक वातोनुं समाधान थाय // इति श्रढीवीप मनुष्य संख्याप्रमाणं समाप्तम् // ॥अथ चोवीश दंडक उपर पांत्रीश बोल उतारवानो थोकडो प्रारंजिये बैये॥ . समस्त संसारीजीव, चारगतिमा रहेला चोवीश दंडकोने विषे परिज्रमण . करे . ते चोवीश दंगकनां नाम कहे . 1 प्रथम सात नारकीनो एक दंडक, ते साते नारकीनां नाम तथा गोत्र नीचे प्रमाणे बे. नाम. 1 धमा. 2 वंसा. 3 सैला. 4 अंजणा. 5 रिहा. 6 मघा. 7 माघवती. गोत्र.रत्नप्रना, शर्करप्रना.वालुकप्रना. पंकप्रना.धूमप्रना. तमःप्रना. तमस्तमःप्रना. // 11 त्यार पली दश जुवनपतिदेवोना जे दश दंगकतेमां नाम लखिये बैये // 1 असुरकुमार निकायनो दंडक. नागकुमार निकायनो दंडक. .. 3 सुवर्णकुमार निकायनो दंडक. 4 विद्युत्कुमार निकायनो दमक. 5 अग्निकुमार निकायनो दंडक. 6 छीपकुमार निकायनो दंडक. उदधिकुमार निकायनो दंगक. दिशिकुमार निकायनो दंगक. ए वायुकुमार निकायनो दंगक. 10 स्तनितकुमार निकायनो दंगक. 12 बारमो पृथिवीकायनो दंगक, तेनां मूल नाम ब. ते लखिये जैये. 1 सुना. 2 सुधा. 3 वालुया. 4 मणसिल. 5 शर्करा. 6 खरपुढवी. // हवे ए पृथिवीकायना नेद कहे // 1 स्फाटिकरत्न 2 मणिरत्न. 3 परवालां. 4 रागरत्न. 5 हिंगलो. 6 हरताल. 7 मणसिल. पारो. ए सोनुं. 10 रूपुं. 11 त्रांबु. 25 लोढुं. 13 जसत. 14 शीसु. 15 कथिर. 16 खडीमाटी 17 हरमजी वानी. १७.श्ररणेटो पाषाण. १ए पलेवोपाषाण. 20 अबरखनी जाति. 1 तूरी माटीनी जाति. 22 खारी माटीनी जाति. 23 माटीनी सर्व जाति. 24 पाषाणनी सर्व जाति. 25 सुरमानी जाति. 26 अंजननी जाति. 7 खूणनी जाति. इत्या दि पृथिवीकायना असंख्य नेद जाणवा. 13 तेरमो अपकायनो दंडक, तेना नेद कहे . 1 जमीन, पाणी. 5 आकाशनुं पाणी. 3 गरनुं पाणी. हिमनुं पाणी.. 5 रोयडानुं पाणी. 6 नीलीवनस्पति उपर पाणीना बिं. 7 मांकनुं पाणी. घनोदधि. Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश प्रार. 14 चौदमो तेउकायनो दमक बे. तेना नेद कहे बे. 1 अंगारानो अग्नि. 5 ज्वालानो अग्नि. 3 जासडनो अग्नि. 4 उल्कापातनो अग्नि. 5 कणियानो अग्नि. 6 विजलीनो अग्नि. ___ 15 पंदरमो वाउकायनो दंडक , तेना नेद कहे जे. 1 उद्धामकवायु. 2 मंदवायु. 3 औत्कलिकवायु. 4 मांडलिकवायु. 5 मुखशुशवायु. 6 गुंजवायु. 7 घनवात. तनुवात. 16 शोलमो वनस्पतिकायनो दंडक , तेनी मूलजाति पांच , ते कहे . 1 गुन्डा. 5 गुमा. 3 वलया. 4 वबी. 5 पतिरण. - हवे एना बे नेद कहे बे. 1 जे एक शरीरमां अनंता जीव होय, ते साधारण वनस्पति. 5 जे एक शरीरमां एक जीव होय, ते प्रत्येक वनस्पति. ए रीते एना पण नेदानुन्नेद असंख्य बेः ____17 सत्तरमो बैंपियनो दंडक , तेना नेद कहे बे. . 1 शंख. 2 कोडा. 3 गंमोला. 4 जलो. 5 अलसीयां 6 लारीयां. 7 मेहरी. क्रमिया. ए पाणीना पूरा. - 17 अढारमो त्री प्रियनो दमक , तेना नेद कहे . 1 कानखजुरा. 2 मांकड. 3 जू. 4 कीमियो. 5 उद्देही. 6 मंकोडा ईल. Gघीमेल. ए सावा. 10 गोकीमा. 11 गद्दहीयां. 12 विष्टाना कीडा. 13 गोबरना कीडा. 14 धनेडियां. 15 कंथुश्रा. 16 गोपालिक. 17 इंजगोप. रए जंगणीशमो चौरिंजियनो दंडक , तेना नेद कहे जे. १वींली. 2 ढंकण. 3 मरा.४ चमरी. 5 टीमी. 6 माखी. 7 डांस. मबर. ए पतंगिया. 10 कंसारी. 11 कोश्वामा. 20 वीशमो तिर्यंच पंचेंजियनो दमक , तेना नेद कहे . 1 जलचर. 2 स्थलचर. 3 खेचर. 4 उरःपरिसर्प, 5 जुजपरिसर्प. ए पांच गर्मज तिर्यच अने एज पांच संमूर्बिम तिर्यंच पंचेंजिय एम सर्व दश नेदें थाय. 1 एकवीशमो मनुष्यनो दंडक , तेना नेद कहे . 15 पंदर कर्मनूमिदेवना. 30 त्रीश अकर्मनूमिकेत्रना. 56 बप्पन अंतरहीप ', ना. ए सर्व मली एकशो ने एक क्षेत्रवासी होवाथी एटलाज नेदो थया. 18 Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 137 चोवीश दंडकें पांत्रीश द्वार. 22 बावीशमो व्यंतरदेवोनो दमक डे, ते बे प्रकारे बे. तिहां एक व्यंतर निकाय, तेना आठ नेद बे. 1 पिशाच. 5 जूत. 3 यद. 4 राक्षस. 5 किन्नर. 6 किंपुरुष. 7 महोरग. 7 गंधर्व. बीजी वाणव्यंतरनिकाय, तेना पण आठ नेद . 1 अणपनि.२ पणपनि.३ हृसिवादी. नूतवादी.५ कंदी.६ महाकंदी. कोहंड. पतंग. 23 त्रेवीशमो ज्योतिषी देवोनो दंडक, पांच प्रकारे बे. १चं. 2 सूर्य. 3 ग्रह. 4 नदात्र. 5 तारा. 24 चोवीशमो वैमानिक देवोनो दंडक, तेना मूल बे नेद जे. 1 एक कल्प एटले श्राचारवाला देवो, ते बार देवलोकना नेदे करी बार प्रकारे बे, ते बार देवलोकनां नाम कहिये बैये. 1 सौधर्म देवलोक. 2 ईशान देवलोक. 3 सनत्कुमार देवलोक. 4 माहेंज देवलोक. 5 ब्रह्मदेवलोक. 6 लांतक देवलोक. 7 महाशुक्र देवलोक. सहस्रार देवलोक. ए श्रानंत देवलोक. 10 प्राणत देवलोक.११ श्रारण देवलोक. अच्युत देवलोक. 2 बीजा कल्पातीत एटले जेने विषे स्वामी सेवक संबंध नथी एवा देवो तेनां मूल बे प्रकार डे. एक नव ग्रैवेयकवासी, बीजा पांच अनुत्तरविमानवासी. तेमा प्रथम नवप्रैवेयकनां नाम कहे . 1 सुदर्शन. 5 सुप्रतिवक. 3 मनोरम. 5 सर्वतोजक. , 5 विशाल. 6 सुमनस. सोमनस. प्रितिकर. ए आदित्य. हवे पांच अनुत्तर विमानना नाम कहे . 1 विजय. 2 विजयंत. 3 जयंत. 4 अपराजित. 5 सर्वार्थसिक. __ए रीते ए चोवीश दंडकनां नेद सहित नाम कह्यां. हवे ए प्रत्येक दंगके पांत्रीश द्वार कहेशे, तेनां नाम लखीये बैये. तिहां पहेढुं शरीरहार पांच प्रकारे ने तेनां नाम कहे जे. 1 औदारिक शरीर. 5 वैक्रिय शरीर. 3 श्राहारकशरीर.४ तैजस शरीर. 5 कार्मणशरीर श्वीजुश्रवगाहनधार,ते प्रत्येक दंगके जघन्य तथा उत्कृष्ट ए बेनेदे शरीर-प्रमाण कहेवू. ३त्रीजुं संघयणधार ते ब प्रकारे बे. 1 वज्रषजनाराच संघयण. 2 शषजनाराच संघयण. 3 नाराच संघयण. 4 अर्कनारोच संघयण. 5 कीलिका संघयण. 6 वहुं संघयण. Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दंडके पांत्रीश द्वार. २३ए 4 चोथु संज्ञाधार, दश प्रकारे बे. तेनां नाम कहे जे. 1 श्राहारसंझा. जयसंझा. 3 मैथुनसंझा. 4 परिग्रहसंज्ञा. 5 क्रोधसंझा. 6 मानसंझा. मायासंझा. लोजसंझा. ए लोकसंझा. 10 उघसंझा. तथा नीचे लखेली व संज्ञा साथे मेलवतां शोल प्रकार पण थाय बे. तेनां नाम कहे जे. 1 सुखसंज्ञा. 2 फुःखसंझा. 3 मोहसंझा. 4 पुगंडासंझा. 5 शोकसंझा. 6 धर्मसंझा 5 पांचमुं संस्थानछार प्रकारे . तेनां नाम कहे डे. 1 समचतुरस्र संस्थान. 2 निगोहपरिमंगल संस्थान. 3 सादि संस्थान. 4 कुब्ज संस्थान. 5 वामन संस्थान. 6 हुंडक संस्थान. थाही पंचेंजियनां संस्थान कहे जे. 1 स्पर्शेजियनुं नाना प्रकारचें संस्थान बे. 2 रसेंपियनुं खुरपा सरखं संस्थान बे. 3 घ्राणेजियतुं श्रचंता वृदना सरखं संस्थान . 4 चकुरिंजियनुं मसूरनी दाल सरखं अर्ड चंडाकारे संस्थान बे. 5 श्रोत्रेजियतुं कल्पवृदना फूल सरखं संस्थान बे. 6 ब्वं कषाय छारते 1 क्रोध. 2 मान. 3 माया. अने 4 लोन. ए चार प्रकारे , सातमुं लेश्याहार उ प्रकारे जे. 1 कृष्णलेश्या. श्नीललेश्या. 3 कापोतलेश्या. 4 तेजोलेश्या. 5 पद्मलेश्या. 6 शुक्ललेश्या. बाउमुं इंडियछार, पांच प्रकारे बे. 1 स्पर्शेजिय. 2 रसेंडिय. 3 घ्राणे जिय.४ चक्कुरिंजिय. 5 श्रोजिय. ए नवमुं समुद्घात छार सात प्रकारे . 1 वेदना समुद्घात. 5 कषाय समुद्घात, 3 मरण समुद्घात. 4 वैक्रिय समुद्घात. 5 तैजससमुद्घात. 6 श्राहारक समुद्घात. केवलि समुद्घात. 10 दशमुं दृष्टिहार. 1 सम्यकदृष्टि. 2 मिथ्यादृष्टि. 3 मिश्रदृष्टि. ए त्रण प्रकारे बे. 11 अगीयारमुं दर्शनहार, चार प्रकारे बे. 1 चतुर्दर्शन, 5 अचकुर्दर्शन. 3 अवधिदर्शन. 4 केवलदर्शन. 12 बारमुं ज्ञानहार आठ प्रकारे जे. 1 मतिज्ञान. श्रुतझान. 3 अवधिज्ञान. 4 मनः पर्यवज्ञान. 5 केवलज्ञान. 6 मतिश्रझान. श्रुतधान. विनंगझान. ए रीते पांच ज्ञान ने त्रण अज्ञान मली, आठ प्रकारे ज्ञानहार बे. 13 तेरमुं योगधार पन्नर प्रकारे . 1 सत्यमनोयोग. 5 असत्यमनोयोग. 3 सत्यामृषामनोयोग. 4 श्रसत्यामृषामनोयोग Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 140 चोवीश दंडकें पांत्रीश द्वार. 5 सत्यवचनयोग.६ असत्यवचनयोग. 7 सत्यामृषावचनयोग.ज्यसत्यामृषावचनयोग. ए औदारिक काययोग. 10 औदारिकमिश्र काययोग. 11 वैक्रियकाययोग. 12 वैक्रियमिश्र काययोग 13 आहारक काययोग. 14 थाहारकमिश्र काययोग. 15 कार्मण काययोग. एवं पन्नर योग जाणवा. चौदमुं उपयोगधार. ते पांच ज्ञान, तथा त्रण अज्ञान अने चार दर्शन मली,बार प्रकारे . 1 मतिज्ञान. 2 श्रुतज्ञान. 3 अवधिज्ञान. 4 मनःपर्यवज्ञान. 5 केवलज्ञान 6 मतिअज्ञान. श्रुतअज्ञान. विनंगशान. ए चकुर्दर्शन. 10 अचकुर्दर्शन, 11 अवधिदर्शन. 15 केवलदर्शन. 15 पन्नरमुं उपपात घार ते प्रत्येक दंगकने विषे एक समयमा केटला जीव श्रावी उपजे? तेनी जघन्य तथा उत्कष्टथी संख्या कहेवानुं हार. 16 सोलमुं च्यवनहार ते प्रत्येक दंगकने विषे एक समयमां केटला जीव च्यवे, तेनी जघन्य तथा उत्कृष्टथी संख्या कहेवानुं छार. 17 सत्तरमुं आयुष्य ते चार गतिश्राश्री चार प्रकारे ले. तेमां कया कया दमके केटबुं आयुष्य ? तेनुं प्रमाण कहेवार्नु छार. 10 अढारमुं पर्याप्तिनुं धार ब प्रकारे . 1 आहारपर्याप्ति. शरीरपर्याप्ति. ३.जियपर्याप्ति. .. 4 श्वासोढ़ासपर्याप्ति. 5 नाषापर्याप्ति. 6 मनःपर्याप्ति. १ए जंगणीशमुं दिग्ाहार छार उ प्रकारे . 1 श्रधोदिशि श्राहार. 2 ऊर्ध्व दिशि आहार. 3 पूर्वदिशि थाहार. 4 पश्चिम दिशि थाहार. 5 दक्षिण दिशि श्राहार, 6 उत्तरदिशि थाहार. 20 वीशमुं संज्ञा घार त्रण प्रकारे बे. 1 दीर्घकालिकी संज्ञा. 2 हितोपदेशिकी संज्ञा. 3 दृष्टिवादोपदे शिकी संज्ञा. एकवीशमुंगतिहार ते कयामकनो जीव मरीने कया कया दंडकमां जाय?ते कहेवानुंहार. बावीशमुं श्रागति ते कया दंगकने विषे कया दमकना जीव,श्रावी उपजे? ते कहेवानुं द्वार. 23 त्रेवीशमुं वेद हार. 1 पुरुषवेद. 2 स्त्रीवेद. 3 नपुंसकवेद. ए त्रण प्रकारे बे. 24 चोवीशमुं अल्पाबहुत्वनुं द्वार. शहाणुं प्रकारे जे. ते प्रकार कहे . 1 सर्वथकी थोमा गर्नज मनुष्यसंख्याती कोडाकोडी प्रमाण बे, तेमाटे अल्प ले. 2 तेथकी मनुष्यनी स्त्री संख्यातगुणी अधिक बे, एटले सत्त्यावीश गुणी . ए बे बोल मली अढीछीपमाहेला एकशो ने एक क्षेत्रना मनुष्यनी संख्या कहे . Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दमकें पांत्रीश धार. 141 (एश१६२५१५२६४३३७५७३५४३ए५०३३६ ) एटले सात कोड कोडा कोडीकोडी, बाणुं लाख कोडाकोडीकोडी, श्रघ्यावीश हजार कोडाकोडीकोडी, एकशो कोडा कोडी कोडी, बाशठ कोडाकोडी कोडी, एकावन लाख कोडाकोडी, बहेंतालीश ह जार कोडाकोडी, शो कोडाकोडी, तालीश कोडाकोडी, साडत्रीश लाख कोडी, उंगणशाठ हजार कोडी, त्रणशे कोडी, चोपन कोडी, उंगणचालीश लाख, पचास हजार, त्रपशे ने बत्रीश. एटली संख्याये मनुष्य . तेना अव्यावीश नाग करी ये, तेमां एक नाग जेटला पुरुष बे, अने सत्यावीश नाग जेटली स्त्री बे. 3 तेथकी बादर तेउकायपर्याप्ता असंख्यातगुणा एक आवलिकाना समयनो वर्ग करी तेने कांईक न्यून श्रावलिकाना समयसाथे गुणतां जेटला समय थाय, तेटला . 4 तेथकी अनुत्तर विमानवासी देवो असंख्यात गुणा . क्षेत्र पट्योपमने असंख्यात मे नागे जेटला आकाशप्रदेश होय तेटला . 5 तेथकी उपरला त्रण ग्रैवेयकना देवता संख्यात गुणा जे. विमान घणा ने माटे. 6 तेथकी मध्य त्रण ग्रैवेयकना देवो संख्यात गुणा . 7 तेथकी नीचला त्रण ग्रैवेयकना देवो संख्यात गुणा बे. ज तेथकी अच्युतदेवलोकना देवता संख्यात गुणा बे.. ए तेथकी धारएयदेवलोकना देवो संख्यात गुणा बे. 10 तेथकी प्राणात देवलोकना देवो संख्यात गुणा डे. 11 तेथकी थानत देवलोकना देवो संख्यात गुणा बे. 12 तेथकी सातमी नरकपृथिवीना नारकी असंख्यात गुणा बे. घनीकृत लोकनी एक श्रेणिना असंख्याता जागमां जेटला आकाश प्रदेशनी राशि , तेटली संख्याये . 13 तेथकी बही नरकपृथिवीना नारकी असंख्यात गुणा , केम के नरकावासा घणा बे, तथा उत्कृष्ट पापी जीवोथकी हीनपापी जीवो घणा होय ते शहां उपजे. 14 तेथकी सहस्रार देवलोकना देवो असंख्यात गुणा . 15 तेथकी महाशुक्र देवलोकना देवता असंख्यात गुणा , तिहां विमान घणां ने माटे. 16 तेथकी पांचमी नरकपृथिवीना नारकी असंख्यात गुणा जे. 17 तेथकी लांतकदेवलोकना देवता असंख्यात गुणा बे. 17 तेथकी चोथी नरकपृथिवीना नारकी असंख्यात गुणा बे. १ए तेथकी ब्रह्मदेवलोकना देवो असंख्यात गुणा . 20 तेथकी त्रीजी नरकपृथिवीना नारकी असंख्यात गुणा बे. Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 242 चोवीश दमकें पांत्रीश द्वार. 1 तेथकी माहेंजदेवलोकना देवता असंख्यात गुणा बे. 25 तेथकी सनत्कुमार देवलोकना देवता असंख्यात गुणा . 23 तेथकी बीजी शर्करप्रना नरक पृथिवीना नारकी असंख्यात गुणा बे. बारमा बो लथी मामीने श्रा त्रेवीशमा बोल पर्यंतना बार बोलमां प्रत्येके सर्व घनीकृत लोक नी एक श्रेणीने असंख्यातमे जागे जेटला आकाश प्रदेश होय, ते प्रमाणे ने अने एकेकथी असंख्यात गुणा कह्या बे. कारण के असंख्याताना असंख्याता नेद ने तेमाटे एमां विरोधता समजवी नहीं. 24 तेथकी संमूर्छिम मनुष्य असंख्यात गुणा बे. अंगुल प्रमाण देत्र प्रदेश रासिसंबं धी त्रीजा वर्ग मूलने प्रथम वर्ग मूलसाथे गुणतां जे प्रदेश थाय तेटला बे. 25 तेथकी शानदेवलोकना देवता असंख्यातगुणा बे. अंगुल मात्र आकाश क्षेत्रनी प्रदेशराशि संबंधी बीजो वर्ग मूल तेने त्रीजा वर्ग मूल साथे गुणतां जेटला प्रदे श थाय, तेटली घनीकृत लोकनी एक प्रदेशनी श्रेणियो लेवी, तेने विषे जेटला आकाश प्रदेश होय, तेटला ईशानदेवलोकना देवता बे. 26 तेथकी ईशानदेवलोकनी वसनारी देवीयो संख्यातगुणी अधिक ,वत्रीश गुणी माटे 27 तेथकी सौधर्मदेवलोकना देवता संख्यातगुणा बे, केम के तिहां विमान घणां बे, अने वली दक्षिण दिशिये कृष्णपदी जीव घणा ने माटे. . 20 तेथकी सौधर्म देवलोकवासी देवी, बत्रीश गुणी बे, माटे संख्यातगुणी बे. शए तेथकी जवनपति देवता असंख्यात गुणा बे. कारण के एक अंगुलमात्र आकाश देवनी प्रदेशराशि संबंधी प्रथम वर्गमूल तेने त्रीजा वर्गमूल साथे गुणतांजे प्रदे शराशि थाय, तेटली घनीकृत लोकनी एकप्रादेशिक श्रेणिउने विषे जेटला आका शप्रदेश होय तेटला . इहां यद्यपि प्रदेश असंख्याता ने तथापि असत्कल्पनाये 256 कल्पीये तेनो प्रथम वर्ग मूल 16 थाय, बीजो वर्गमूल चार थाय अनेत्री जो वर्गमूल बे थाय माटे शोलने बे साथे गणीये तेवारे बत्रीश थाय. 30 तेथकी नवनपतिनी देवीयो बत्रीश गुणी , माटे संख्यातगुणी बे. 31 तेथकी पहेला रत्नप्रजा नामा नरकपृथ्वीना नारकी असंख्यात गुणा बे, अंगुल प्रमा ण आकाशदेवनी प्रदेशराशि संबंधी प्रथमवर्ग मूल तेने बीजा वर्गमूलनी साथे ग पतां जे प्रदेश थाय, तावत् प्रमाण श्रेणियोमा जे श्राकाश प्रदेश थाय तेटला . 35 तेथकी खेचर पंचेंप्रिय तिर्यंचयोनिया पुरुष असंख्यात गुणा बे, जेमाटे एकप्रदेशीप्र तरना असंख्यातमा जागमांअसंख्याती आकाश प्रदेशनीश्रेणिगत प्रदेश प्रमाण बे. Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश धार. 243 33 तेथकी खेचर पंचेंजिय तिर्यंच योनिनी स्त्रीयो त्रिगुणी बे. माटे संख्यात गुणी बे. 34 तेथकी स्थलचर पंचेंजिय योनिया पुरुष संख्यात गुणा बे जेमाटे एक बृहत्प्रतरना असंख्यातमा जागमा जे आकाश प्रदेशनी असंख्याती श्रेणी , तेटली श्रेणीमां __ जेटला आकाश प्रदेश बे, तावत् प्रमाण ए जीवो बे.. 35 तेथकी स्थलचर पंचेंजिय तिर्यंचयोनि संबंधी स्त्रीयो त्रिगुणी बे, संख्यातगुणी जाणवी. 36 तेथकी जलचर पंचेंजिय तिर्यंचयोनिया पुरुष संख्यात गुणा बे, जे माटे अतिप्र नूत एक प्रतरना असंख्यातमा जागमा असंख्य श्राकाश प्रदेशनी श्रेणीगत जेट ला श्राकाश प्रदेश डे, तावत् प्रमाण जे. 37 तेथकी जलचर पंचेंद्रिय तिर्यंच योनिवाली स्त्रीयो त्रिगुणी बे, माटे संख्यातगुणी 30 तेथकी व्यंतरनिकायना देवो संख्यातगुणा बे, संख्यात कोडाकोडी योजन प्रमाण एक प्रतरने विषे जेटला सूचीरूप खंड थाय, तावत् प्रमाण बे. ३ए तेथकी व्यंतरदेवीयो संख्यातगुणी बे, बत्रीश गुणी माटे. 40 तेथकी ज्योतिषी देवता संख्यातगुणा बे, एक प्रतरने विषे बशे बप्पन अंगुल प्र ___माण एक सूचीरूप खंड एवा जेटला खंड थाय तेटली संख्याये बे. 41 तेथकी ज्यौतिषिक देवीयो बत्रीश गुणी बे माटे संख्यात गुणी कडेवी. 45 तेथकी खेचर पंचेंजिय तिर्यंचयोनिया नपुंसक संख्यात गुणा बे. 43 तेथकी स्थलचर पंचेंजितिर्यंचयोनिया नपुंसक संख्यात गुणा बे. 44 तेथकी जलचर पंचेंजिय तिर्यंचयोनिया नपुंसक संख्यात गुणा बे. 45 तेथकी चौरिंजिय पर्याप्ता संख्यातगुणा जे. एक प्रतरने विषे जेटला एक अंगुल ना संख्यातमा जाग प्रमाणवाला जेटला मुचीखंड थाय, तेटला . 46 तेथकी सर्व पंचेंजिय पर्याप्ता विशेषाधिक बे. 47 तेथकी बेंडिय पर्याप्ता विशेषाधिक बे. 47 तेथकी त्रीप्रिय पर्याप्ता विशेषाधिक बे. भए तेथकी पंचेंजिय अपर्याप्ता विशेषाधिक बे. एक प्रतरमां अंगुलना असंख्यातमा जाग प्रमाण जेटला सूची खंग थाय, तेटला . 50 तेथकी चौरिंजिय अपर्याप्ता विशेषाधिक बे. 51 तेथकी त्रीजिय अपर्याप्ता विशेषाधिक बे. 55 तेथकी बेंघिय अपर्याता विशेषाधिक . 53 तेथकी प्रत्येक शरीरवाला बादर वनस्पतिकायिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा बे. Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 144 चोवीश दंडकें पांत्रीश धार. एक प्रचूत प्रतरमा अंगुलना असंख्यातमा नागप्रमाण जेटला सूचीखंमथायतेटला. 54 तेथकी बादरनिगोद पर्याप्ता अनंतकायनां शरीर असंख्यात गुणां जे. जे माटे सं ख्याता प्रतरमा एक अंगुलना असंख्याता जाग जेवमा जेटला सूचीखंड समार शके, तेटला खंड प्रमाण . 55 तेथकी बादर पृथ्वीकायिया पर्याप्ता जीव असंख्यात गुणा बे, जेमाटे प्रचूत संख्याता प्रतरमध्ये अंगुलना असंख्यात नाग मात्र सूचीखंग जेटला समाश् शके तेटला डे. 56 तेथकी बादर अप्रकायिया पर्याप्ता असंख्यात गुणा बे.जेमाटे अत्यंत प्रत्त संख्याता __ प्रतर मध्ये अंगुलना असंख्य नागमात्र जेटला सूचीखंड समाश् शके, तेटला . 57 तेथकी बादरवायुकायिया पर्याप्ता जीव असंख्यात गुणा बे, घनीकृत लोकना श्र संख्याता प्रतरने विषे जेटला आकाश प्रदेश में तेटला प्रदेश प्रमाण . 57 तेथकी बादर तेउकायिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा बे, जेमाटे असंख्याता लो काकाश प्रदेश राशि प्रमाण बे. एए तेथकी प्रत्येक शरीरवाला बादर वनस्पतिकायिया अपर्याप्ता जीव असंख्यात गुणाले. 60 तेथकी बार निगोदीया अपर्याप्ताना शरीर असंख्यात गुणा बे. 61 तेथकी बादर पृथ्वीका यिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा बे. 62 तेथकी बादर अप्रकायिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा . . 63 तेथकी बादर वायुका यिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा बे. 64 तेथकी सूक्ष्म तेउकायिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा बे. सर्वलोक व्यापी माटे. 65 तेथकी सूक्ष्मपृथ्वीका यिया अपर्याप्ता विशेषाधिक जे. 66 तेथकी सूक्ष्मअपकायिया अपर्याप्ता विशेषाधिक . 67 तेथकी सूदमवायुकायिया अपर्याप्ता विशेषाधिक बे. 67 तेथकी सूक्ष्म तेउकायिया पर्याप्ता संख्यात गुणा . इहां ए सूक्ष्म मध्ये खनावे ज अपर्याप्ताथी पर्याप्ता घणा बे माटे. ६ए तेथकी सूदम पृथ्वीका यिया पर्याप्ता विशेषाधिक . 70 तेथकी सूक्ष्म अपकायिया पर्याप्ता विशेषाधिक बे. 71 तेथकी सूदम वाजका यिया पर्याप्ता विशेषाधिक बे. 72 तेथकी सूक्ष्म निगोदनां शरीर अपर्याप्ता असंख्यात गुणां बे. 73 तेथकी सूक्ष्म निगोदनां शरीर पर्याप्ता संख्यात गुणां जे. तेथकी अव्यसिझिया जीव अनंतगुणा बे.जघन्ययुक्त चोथा अनंता जेटला ले माटे. Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दमकें पांत्रीश द्वार. 245 75 तेथकी पमिवार प्रतिपत्ति सम्यग्दृष्टि जीव अनंतगुणा बे. 76 तेथकी सिद्धना जीव अनंतगुणा बे. मध्यमयुक्त पांचमा अनंता जेटला , माटे. 77 तेथकी बादर वनस्पतिका यिया पर्याप्ता जीव अनंतगुणा जे. जेमाटे एक निगोदने __ अनंतमे जागे सिक, एवाअसंख्याता निगोद पर्याप्ता बादर वनस्पतिमांहे ,माटे, उ तेथकी बादर पर्याप्ता जीव विशेषाधिक जे. बादर पर्याप्ता पृथिव्यादिक प्रदेपवा थकी. पुए तेथकी बादर वनस्पतिका यिया अपर्याप्ता असंख्यातगुणा बे, जेमाटे एकेक बादर निगोद पर्याप्तानी निश्राये असंख्याता अपर्याप्ता निश्छे होय, ते माटे. 7 तेथकी बादर अपर्याप्ता विशेषाधिक बे, बादर अपर्याप्ता पृथिव्यादिक प्रदेपवाथकी. 71 तेथकी सर्वपर्याप्ता बादर जीव विशेषाधिक वे. 2 तेथकी सूदमवनस्पतिकायिया अपर्याप्ता असंख्यात गुणा बे, केम के बादर जीवो ___ थी सूक्ष्म घणा ने अने वली सर्व लोकव्यापी जे माटे. 3 तेथकी सूदम अपर्याप्ता विशेषाधिक जे. केम के सूक्ष्म अपर्याता पृथिव्यादिकने तेमां प्रदेपवाथकी विशेषाधिक थाय. 4 तेथकी सूदमपर्याप्ता वनस्पतिकायिया जीव संख्यातगुणा , केम के सूदमपर्याप्ता ___ मांहे सूक्ष्म अपर्याप्ता खनावे सदैव संख्यात गुणा प्राप्त होय, माटे. 5 तेथकीसर्व सूदमपर्याप्ताजीवविशेषाधिकडे.सूक्ष्मपर्याप्ता पृथिव्यादिकसाथे नेलवाथी. 6 तेथकी सर्व पर्याप्ता अपर्याप्ता सूक्ष्मजीव विशेषाधिक बे. छ तेथकी जव्यसिद्धिक नव्यजीव विशेषाधिक जे जेमाटे जघन्ययुक्त अनंता प्रमाण अजव्य जीवो ने तेने टालीने बीजा सर्व नव्यजीवो ने ते माटे, तेथकी निगोदना जीव विशेषाधिक , जे जणी निगोदना जीव टाली बीजां सर्व जीव असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाणज , माटे. पए तेथकी वनस्पतिना जीव विशेषाधिक डे, निगोदमां प्रत्येक वनस्पति प्रदेपवाथकी. ए० तेथकी एकेंजियजीव विशेषाधिक .वनस्पतिमां वली पृथिव्यादिकना प्रक्षेपवाथकी. ए१ तेथकी तिर्यंचयोनिया विशेषाधिक डे, बेंछियादिकना नेलवाथकी. ए तेथकी मिथ्यादृष्टि विशेषाधिक बे, ए जीव चारे गतिमां लाने, माटे. ए३ तेथकी अविरति जीव विशेषाधिक बे, अविरति सम्यग्दृष्टि जीव एमां जलवाथकी. एव तेथकी सकषायिजीव विशेषाधिक डे, देशविरत्यादिना जलवाथकी. (एए तेथकी बद्मस्थ जीव विशेषाधिक बे, उपशांत मोही पण एमांजल्याते थकी. ए६ तेथकी सयोगी विशेषाधिक , सयोगी केवलीना जलवा थकी. Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 146 चोवीश दमकें पांत्रीश द्वार. ए तेथकी सर्व संसारी जीव विशेषाधिक बे, एमां अयोगी केवली पण नख्या. ए तेथकी सर्वजीव विशेषाधिकडे,एमां सिझनाजीव पण नल्या.इतिअल्पबहुत्वसमाप्त। 25 पच्चीशमुं नवन द्वार. ते प्रत्येक दंगकने विषे नवन कहेवानुं हार जाणवं. 26 बबीशमुं विरहकालद्वार. एटले अमुक दंगके जघन्य तथा उत्कृष्टथी अमुक काल पर्यंत को जीव मरे नहीं अथवा उपजे नही, ते विचार कहेवानुं छार. 27 सत्त्यावीशमुं चउद गुणगणानुं छार. चौद प्रकारे बे.. 1 मिथ्यात्व. 5 सास्वादन 3 मिश्र गुणगणुं. 4 अविरतिसम्यग्दृष्टि. 5 देश विरति. 6 प्रमत्त. अप्रमत्त. अपूर्वकरण. ए अनिवृत्ति. 10 सूदमसंपराय. 11 उपशांतमोह. 12 वीणमोह. 13 सयोगीकेवली. 14 अयोगी केवली. 27 अध्यावीशमुं प्राणहार दश प्रकारे बे. 1 स्पर्शेडिय 2 रसेंजिय. 3 घ्राणेंडिय. 4 चकुरिंजिय. 5 श्रोत्रंडिय. 6 कायबल. 7 वचनबल. मनोबल. ए श्वाशोलास. 10 श्रायु. __ ए गणत्रीशमुं संयतिहार, त्रिनंगी पूर्वक श्राउ प्रकारे बे. 1 संयती, व्रती, 3 पञ्चरकाणी, 4 पंडिया, 5 संवुमा, 6 जगरा, धम्मिया, धम्म विवसाश्या. 1 असंयति, अवती, 3 अपच्चरकाणी. 4 बाला. ____5 असंवुमा, 6 च्युता, अधम्मिया, अधम्म विवंसाश्या. 1 संयतासंयती, 2 व्रतावती, 3 पच्चरकाणापच्चरकाणी. 4 बालापंमिया. 5 संकुंमाअसंबुंडा, 6 च्युताजगरा, 7 धम्माधम्मीया, उधम्माधम्म विवसाश्या. 30 त्रीशमुं आहारहार, त्रण प्रकारे . 1 सचित्ताहार. 2 श्रचित्ताहार. 3 कवलाहार. 31 एकत्रीशमुंआहारजातिनो हार त्रण प्रकारे अ.१ उजाहार.श्लोमाहार.३ कवलाहार. 35 बत्रीशमु थाहारनी श्वानुं छार. ते प्रत्येक दंमकवालाने जघन्य तथा उत्कृष्टथी केटले काले आहार लेवानी श्छा थाय? तेनो विवरो कहेवो, ते श्राहार इलाहार. 33 तेत्रीशमुं काय स्थितिनुं धार. ते प्रत्येक दंडकवालाने पोतानी कायाने विषे अनुक्र मे पुनः पुनः उपज, केटली वार थाय? तेना कालनुं प्रमाण कहे. 34 चोत्रीशमुं योनिझार, ते चोराशी लाख नेदे प्रसिक बे. 35 पांत्रीशमुं कुलको डिछार, ते प्रत्येक दमकमां केटला लाख कुलकोमि बे ? एम के देवानुं छार. ए रीते पांत्रीश छारनां नाम कह्यां. Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दमके पांत्रीश द्वार. 240 हवे पूर्वोक्त चोवीश दंडकमांना प्रत्येक दंगके ए पांत्रीश छार कहिये बैये. 1 तिहां प्रथम सात नारकीना दंगके पांत्रीश द्वार कहे . 1 वैक्रिय, तैजस ने कार्मण, ए त्रण श| ग, वैक्रियमिश्रकाययोग तथा कार्मण रीर होय. __काययोग मलीने अगीयार योग होय. 2 अवगाहना जवधारणीय शरीर जघन्य 14 उपयोग प्रथमना त्रण झान, त्रण थ श्री मांडी उत्कृष्ठ पांचशे धनुष्य होय त ज्ञान अने चकुरादिक त्रण दर्शन सर्व था उत्तर वैक्रिय शरीर तेथी बमणुंहोय. मलीने नव होय. तेमां जघन्यथी साडा पन्नर धनुष्य ने 15 उपपात एक समयमां जघन्यथी एक, बार अंगुल अने उत्कृष्टुं एक हजार ध बे, त्रण, जीव उपजे अने उत्कृष्टथी सं नुष्य होय. उपजतां नवाधारणीय अंगुल ख्याता असंख्याता जीव पण उपजे. नो असंख्यातमो नाग होय अने उत्तर 16 उपपातनी परे च्यवनहार पण समज वैक्रिय अंगुलनो संख्यातमो नाग होय. वं. एटले जेम उपजे, तेम चवे. 3 नारकीने संघयण नथी. असंघयणी डे. 17 श्रायुष्य जघन्ययी दश हजार वर्ष, उ 4 संज्ञा श्राश्रयी संज्ञा, दश पण होय, स्कृष्ट तेत्रीश सागरोपम जाणवू. अथवा शोल होय. 17 पर्याप्ति होय, परंतु नाषा अने मन 5 नारकीने हुँडसंस्थान होय. एबे पर्याप्ति साथेज उपजे, तेथी प्रका 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. संतरे पांच पर्याप्ति पण कहेवाय. नारकीने कृष्ण, नील अने कापोत, ए १ए आहार, दिशिनो लिये . त्रण लेश्या होय. 20 दीर्घकालिकी संज्ञा एकज होय. इंडियो पांचे होय. 21 चवीने गर्नज मनुष्य तथा गर्जज ति ए वेदना, कषाय, मरण अने वैक्रिय ए यच ए बे दंडकमां आवे.. चार समुद्घात होय. 2 तिर्यंच पंचेणिय तथा गर्नज मनुष्य ए 10 सम्यत्तवादिक त्रणे दृष्टि होय. सम्य दंडकना जीवो नारकीमां श्रावी उपजे. क्व, मिश्र अने मिथ्यात्व. श्वेदहारमा नारकीनेएकनपुंसकवेदहोय. 11 चतुर्दर्शन, अचकुर्दर्शन श्रने अवधि 24 अल्प बहुत्वमां सर्वथकी थोमा, सात दर्शन, ए त्रण दर्शन होय. मी नरकपृथ्वीना नारकी जाणवा. प १श्मत्यादि त्रण ज्ञान तथा त्रण अज्ञानहोय. बी अल्पपापना सेवनार घणा माटे 13 मनना चार योग, वचनना चार योग, तेथकी बठीना असंख्यातगुणाधिक, तथा कायना त्रण योग, वैक्रियकाययो तेथकी पांचमीना असंख्यात गुणाधि Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 247 चोवीश दंडकें पांत्रीश धार. क. तेथकी चोथीना असंख्यातगुणा अपञ्चकाणी, बाला, असंवुमा, च्युता, धिक, तेथकी त्रीजीना असंख्यातगु अधार्मिक अने अधर्मव्यवसायिका, ए णाधिक, तेथकी बीजीना असंख्यात था नांगा होय. गुणाधिक. तेथकी पहेलीना असंख्या 30 श्राहारहारमा नारकी जीवो एकजथ तगुणाधिक जाणवा, | चेत आहार लिये. 25 नवनहाराश्री साते नरक पृथिवी 31 थाहार जातिना छारमा नारकीने जे ना मली, जंगणपचास प्रतर अने चो जाहार अने लोमाहार. ए बे रीते श्रा राशी लाख नरकावासा जाणवा. हार लेवान होय. 26 बबीशमा विरहकाल छारमा जघन्य ए 32 थाहारनी श्वा श्राश्रयी साते नरक क समय अने उत्कृष्टो महिनानो वि पृथ्वीना नारकीने जघन्यथी एक सम रह जाणवो. प्रथम नरके जघन्य एक ये अने उत्कृष्टी अंतर मुहर्ते उपजे. समय उत्कृष्ट चोवीश मुहर्त्त, बीजीमा 33 काय स्थितियाश्री जेटली नवस्थिति. सात दिवस, त्रीजीमां पंदर दिवस,चो होय, तेटलो काल काय स्थिति पण थीमां एक मास, पांचमीमां बे मास, जाणवी. कारण के नरकनो जीव मरी बहीमा चार मास, अने सातमीमां ने फरी नरकमां न जाय. मास. तथा जघन्यथी सर्वमां एक समय. 34 योनिद्वार श्राश्रयी नारकी जीवोनी 27 गुणगणा प्रथमना चार लाने. चार लाख योनि उपजवानी जाणवी. 27 नारकीने दश प्राण जाणवां. 35 कुलकोमीछार श्राश्रयी नारकी जीवो शए संयतिहार श्राश्री असंयती, अवती, ना पच्चीश लाख कोडी कुल जाणवां. ए नरकाश्री पांत्रीशधारनो विचार कह्यो. 11 हवे दश जवन पतिना दश दंडकने विषे पांत्रीश द्वार कहे . 1 शरीरधार श्राश्रयी, वैक्रिय तेजस ने 3 संघयण आश्रयी देवोने कोइ पण सं कार्मण, ए त्रण शरीर होय. घयण नथी असंघयणी माटे. 5 श्रवगाहनाधार श्राश्रय उपजतां वख 4 संज्ञा आश्रयी दश अथवा शोल होय. त, अंगुलनो असंख्यातमो नाग शरीर 5 संस्थानथाश्रयी देवोने एकज समच होय. पनी उत्कृष्ट, सात हाथy शरीर तुरस्त्र संस्थान होय. होय. अने उत्तरवैक्रिय करे तो एक 6 कषायाश्रयी क्रोधादिकचारे कषायहोय. लाख योजन सुधी करे. | 7 लेश्या श्राश्रयी कृष्ण, नील, कापोत श्रने तेजो, ए चार लेश्या होय. Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश द्वार. २४ए इंडिय श्राश्रयी पांचे इंजिय होय. 5 एक गर्नज मनुष्य अने बीजा तिर्यंच ए समुद्घात आश्रयि वेदना, कषाय, म पंचेंजिय, ए बे दमकवाला श्रावी, नव रण, वैक्रिय अने तैजस,ए पांच होय. नपतिनी दशे निकायने विषे उपजे. 10 दृष्टि सम्यक्त्वादिक सम्यक्व, मिथ्यात्व 23 वेदमां पुरुषवेद अने स्त्रीवेद,ए बे होय. . अने मिश्र. ए त्रणे होय. 4 अल्पबहुत्वमा सौधर्म, देवलोकनी दे 11 दर्शन, श्राश्रयी चतुदर्शन, अचकुद वीयोथकी असंख्यात गुणा . र्शन अने अवधिदर्शन, ए त्रण होय. 25 नवनहारमा दशे निकायना वाश 15 प्रथमनां त्रण ज्ञान अने त्रण अज्ञान. अना जवननी संख्या 59200000 .. 13 योग श्राश्रयी नारकीनी पेरे चार मन 26 विरहकाल, जघन्यथी एक समय श्रने ना, चार वचनना अने त्रण कायना उत्कृष्टो चोवीश मुहूर्त्त जाणवो. मलीने ए अगीयार योग होय. गुणगणां श्राश्रयी प्रथमनां चार होय. 14 उपयोगहार श्राश्रयी प्रथमना त्रण शा 27 प्राणहारथाश्रयी एमनेदशे प्राण होय. न, त्रण श्रझान. अने प्रथमनां त्रण द ए संयतीना नांगा नारकीनी पेरे होय. र्शन. ए रीतें नव उपयोग होय. 30 श्रादाराश्री श्रचित्ताहार लिये. 15 जघन्यथी एक समयमां एक, बे, त्रण, 31 उजाहार ने लोमाहार बे थाहार करे. उपजे अने उत्कृष्टपणे संख्याता अथ 32 दश हजार वर्षना आयुष्य वालाने चो वा असंख्याता पण एक समयमां उपजे थत्ते याहारनी श्छा उपजे.पव्योपमना .96 उपजवानी पेरे च्यवनहार पण जाणवू श्रायुष्यवालाने दिवस पृथक्त्वे आहार 17 आयुष्यहार श्राश्रयी, जघन्यथी दश नीश्छा उपजे.एकसागरोपम थायुवाला हजार वर्ष, अने उत्कृष्ट, एक सागरो ने एक हजार वर्षे श्राहारनी श्छा उपजे. पम जाजेलं आयुष्य जाणवू. सागरोपम जाजेरा आयुष्यवालाने ह 17 पर्याप्ति न होय परंतु नाषा अने मन, जार वर्ष जाजरे थाहारनी श्छा उपजे. ए बे पर्याप्ति साथे हो य. तेथी प्रका 33 नवनपति मरीने नवनपति न थाय. रांतरे पांच पण कहेवाय. / | माटे जेटली नवस्थिति होय, तेटलीज रए थाहाराश्री नवनपति देवो बए दि एमनी कायस्थिति पण जाणवी. शिनो आहार लिये . 34 नवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी ने वैमा 20 संझामां एक दीर्घकालिकी संज्ञा होय. निक, ए चारे निकायना देवोनी चार 1 च्यवीने मनुष्य, तिर्यंच पंचेंजिय, पृथ्वी लाख योनि उपजवानी कही . काय, अप्रकाय अने वनस्पति काय, 35 ए देवोना तेरे दमकने विषे बवीश ला ए पांच दंडकने विषे जाय. ख कोमी कुल जाणवां. Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 150 चोवीश दंडकें पात्रीश घार. 15 हवे बारमा पृथ्वी कायना दमकने विषे पांत्रीश छार कहे जे. 1 औदारिक, तैजस अने कार्मण, ए त्र 17 जघन्य, अंतरमुहूर्त अने उत्कृष्ट बावी ण शरीर होय. श हजार वर्षनं आयुष्य जाणवू. 2 अवगाहना जघन्य तथा उत्कृष्टी अं 1 सुनानुं हजार वर्ष. __ गुलनो असंख्यातमो नाग होय. . | 2 सुधारों बार हजार वर्षे. 3 एक बेवहुं संघयण होय. 3 वालुका- चौद हजार वर्ष. 4 संझा, थाहार, नय, मैथुन अने परि 4 मण सिलनुं शोल हजार वर्ष, ग्रह, ए चार अथवा दश होय. 5 शर्करानु अढार हजार वर्ष. 5 एक हुंमक संस्थान मसूरने श्राकारे . 6 खरपुढवीनुं बावीश हजार वर्ष. 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. आहार, शरीर, इंजिय अने श्वासोवा 7 अपर्याप्ताने प्रथमनी चार वेश्यायो हो स. ए चार पर्याप्ति होय. .. य अने पर्याप्ताने कृष्ण, नील ने कापो १ए थाहारहारथाश्रयीत्रण, चार, पांच त, ए त्रण लेश्या होय. अथवा उ दिशिनो आहार लिये. इंडियघारे एक स्पर्शेजियज होय. २०त्रण संझामांहेली कोइ पण संझा ए ए समुद्घात द्वार श्राश्रयी वेदन, कषाय दंमके न होय. ने मरण, ए त्रण समुद्घात होय. 1 पृथिवीकाय मरीने.पांच स्थावरना पांच 10 दृष्टि श्राश्रयी एक मिथ्यादृष्टि होय. दंक तथा विकलेंजियना त्रण दंगक, 11 दर्शन श्राश्रयी एक अचकुदर्शन होय. पंचेंजियतिर्यंचनो दंडक अने मनुष्यनो 25 ज्ञानछार श्राश्रयी मतिश्रज्ञान अने दमक, ए दश दंडकमां जश् उपजे. श्रुतअज्ञान, ए बे अज्ञान होय. 22 नारकी वर्जीने बाकी त्रेवीशे दमकना 23 औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रका जीव, पृथिवीकायमां श्रावी उपजे. ययोग अने कार्मणकाययोग, ए त्रण 53 एकज नपुंसक वेद होय. परंतु स्त्रीश्र योग होय. मन अने वचन एने नथी. ने पुरुष ए बे वेद एमां नथी. 14 मतिअज्ञान, श्रुतश्रज्ञान अने अचक्कु 24 अल्पबहुत्वमा त्रीजियथकी पृथिवीका दर्शन, ए त्रण उपयोग होय. यिया जीव अधिक बे. 15 उपपात हार श्राश्रयी एक समयमा 25 जुवनहारे पृथिवीकायमा जवन नथी. __ असंख्याता पृथिवीकाय जीव उपजे. 26 ए दमकने विषे विरहकाल पण नथी. 16 एक समयमां असंख्यात जीव च्यवे. 27 ए दंडकने विषे एकज मिथ्यात्व गुण | गणुं लाने केम के सर्व मिथ्यादृष्टि डे. Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश धार. 251 शण स्पर्शेजिय, कायबल, श्वासोवास अने न्य अंतरमुहूर्त अने उत्कृष्टी असंख्या __ श्रायु, ए चार प्राण होय. ती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी कालनी जा शएनारकीनी पेरे संयतीनाथा नांगाहोय. णवी. बादरपृथिवीकायनी काय स्थिति ३०सचित्तादिकत्रणे प्रकारनो श्राहार लीये. जघन्य अंतरमुहर्त्त अने उत्कृष्टी सि 31 उज अने लोमे करी थाहार लीये. तेर कोमाकोमी सागरोपमनी जाणवी. 32 समय समय थाहारनी श्छा उपजे. 34 सात लाख योनि जाणवी. 33 सूक्ष्म पृथिवीकायनी काय स्थिति जघ 35 बार लाख कोडी कुल जाणवां. 13 हवे तेरमा अपूकायना दंगकने विषे पांत्रीश छार कहे बे. 1 शरीरकार श्राश्रयी औदारिक, तैजस 15 मतिअज्ञान, श्रुतश्रज्ञान अने अचा अने कार्मण, ए त्रण शरीर होय. दर्शन. ए त्रण उपयोग होय. 5 जघन्य अने उत्कृष्टी अवगाहना अंगु 15 एक समयमा असंख्याता जीव उपजे. लनो असंख्यातमो नाग होय. 16 एक समयमा असंख्याता मरण पामे. 3 एक बेवढं संघयण होय. 17 जघन्य अंतरमुहूर्त्त अने उत्कृष्ट सात 4 संज्ञा चार अथवा दश होय. हजार वर्षायु होय. 5 एक हुंम संस्थान पाणीना पोटाने 17 पर्याप्ति, आहार, शरीर, इंजिय श्रने थाकारे होय. | श्वासोवास, ए चार होय. 6 क्रोधादिक चारे कषाय, ए दमके होय. १ए थाहाराश्रयी त्रण, चार, पांच अथ 7 अपर्याप्ताने प्रथमनी चार लेश्या होय, वा उ दिशिनो थाहार लीये. श्रने पर्याप्ताने प्रथमनी कृष्ण, नील ने 20 दीर्घकालादिक कोइ पण संज्ञा न होय. कापोत ए त्रण लेश्या होय, 1 ए दंमकवालाजीव पण पृथिवीकायनी G एक स्पर्शेजियज होय, एकेंजिय माटे. पेरे दश दमकने विषे जाय. ए समुद्घात श्राश्रयी वेदना, कषाय ने 22 एक नारकी वर्जी बाकी त्रेवीश दमक __ मरण ए त्रण समुद्घात होय. ना जीवो अपकायमां श्रावी उपजे. 10 दृष्टिहारमा एकज मिथ्यादृष्टि होय. 23 वेद आश्रयी एकज नपुंसक वेद होय. 11 दर्शनधारमा एक अचकुर्दर्शन होय. 20 अल्प बहुत्वमां पृथ्वीकायथी अपका 12 मति अने श्रुत, ए बे अज्ञान होय. / यिक. जीव अधिक डे. 13 योगछार श्राश्रयीऔदारिक काययोग, 25 अपकायने नवन नथी. औदारिक मिश्रकाययोग अने कार्मण 26 विरहकाल पण नथी. काययोग, ए त्रण योग होय. एकज मिथ्यात्व गुणगणुं लाने. Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 चोवीश दमकें पांत्रीश धार. 27 पृथिवीकायनी पेरे चार प्राण होय. 32 समय समय आहारनी श्छा उपजे. शएसंयतीना आठ जांगा,नारकी पेरेजाणवा. 33 काय स्थिति पृथिविकायनी पेरे जाणवी. ३सचित्तादिकत्रणे प्रकारनो आहार लीये. 34 सात लाख जीवायोनि जाणवी. 31 ज अने लोमे करी आहार लीये. 35 सात लाख कोडी कुल जाणवां. 14 हवे तेउकायना दमके पांत्रीश धार कहे जे. 1 शरीर श्राश्रयी औदारिक, तैजस अने 17 प्रथमनी चार पर्याप्ति होय. कार्मण, ए त्रण शरीर होय. १ए आहार श्राश्रयी त्रण, चार, पांच अ 2 जघन्य तथा उत्कृष्टी अवगाहना अं थवा ब दिशिनो आहार लीये. गुलनो असंख्यातमो नाग होय. 20 दीर्घ कालादिक त्रणे संज्ञारहित होय. 3 एकज व संघयण होय. 1 मरीने पांच स्थावर, त्रण विकलेंजिय 4 संझा चार अथवा दश होय. / अने एक तिर्यंच, पंचेंजियनो दंडक में 5 हुँझ संस्थान सूश्नी आणीने आकारे. लीने नवदमकने विषे जाय. 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. 22 एमां दश दंडकना जीवो आवी उपजे. 7 कृष्ण, नील ने कापोत, त्रण लेश्या होय. 23 एमां एकज नपुंसक वेद होय. G एक स्पर्शेजिय होय. 24 अल्पबहुत्व अहाणुं बोलमां कडं बे. ए प्रथमनी त्रण समुद्घात होय. 25 नुवन ए दंडकमा नथी. 10 एकज मिथ्यादृष्टि होय. 26 विरहकाल नथी. निरंतर उपजे . 11 एकज अचकुर्दर्शन होय. 7 एकज मिथ्यात्व गुणगणुं लाने. 12 मति अने श्रुत, ए बे अज्ञान होय. 27 स्पर्शे प्रिय, कायबल, श्वासोवास अने 13 औदारिक काययोग, औदारिक मिश्र श्रायु, ए चार प्राण होयः / काययोग अने कार्मणकाययोग, एत्र श्एसंयतीना नारकीनी पेरे आठ जांगा होय. ण योग होय. ३०सचित्तादिक त्रणे प्रकारनो आहार लीये. 14 प्रथमनां बे अज्ञान अने अचतुर्दर्शन 31 उज अने लोमे करी आहार लीये. एत्रण उपयोग होय. 32 समय समय आहारनी श्वा उपजे, 25 एक समयमा असंख्याता जीव उपजे. 33 काय स्थिति पृथिवीकायनी पेरे जाणवी. 16 एक समयमा असंख्याता जीव च्यवे. 34 सात लाख योनि उपजवानी बे. 27 जघन्य अंतरमुहर्त अने उत्कृष्ट त्रण 35 त्रण लाख कोमी कुल जाणवां. अहोरा त्रिनुं आयुष्य होय. Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश धार. 253 15 हवे पन्नरमा वायुकायना दमके पांत्रीश द्वार कहे जे. 1 औदारिक, वैक्रिय, तैजस अने कार्म| त्रण हजार वर्षायु होय. ण, ए चार शरीर होय. प्रथमनी चार पर्याप्ति होय. 2 जघन्योत्कृष्ट अवगाहना अंगुलनो अ १ए त्रण, चार, पांच अथवा ब दिशिनो संख्यातमो नाग होय. पण आहार लीये. 3 एकज बेवहुं संघयण होय. 20 दीर्घकालादिकी त्रणे संझा रहित होय. 4 संज्ञा चार अथवा दश होय. 1 तेउकायनी पेरे नव दमकने विषे जाय. 5 हुँमसंस्थान,ध्वजा ने पताकाने श्राकारे. 22 पांच स्थावर, त्रण विकलेंजिय, पंचेंडि 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. __ य तिर्यंच अने मनुष्य, ए दश दंगक कृष्ण,नील ने कापोत,एत्रण लेश्या होय. वाला जीवो एमां आवी उपजे. एक स्पर्शेजिय होय. 23 वेदहारे एक नपुंसक वेद होय. ए प्रथमना चार समुद्रघात होय. 24 अल्पबहुत्वछारमा अपकायथकी वायु 10 एकज मिथ्यादृष्टि होय. ____ कायिया जीव अधिक बे. 11 एकज अचतुर्दर्शन होय. 25 ए दंडके नवन नथी. 15 मति अने श्रुत, ए बे अज्ञान होय. 26 विरहकाल नथी. 13 औदारिककाययोग, औदारिक मिश्र 27 एकज मिथ्यात्व गुणगणुं लाने. काययोग, वैक्रियकाययोग, वैक्रियमि 27 तेउकायनी पेरे चार प्राण होय. श्र काययोग अने कार्मणकाययोग. ए ए नारकीनी पेरे संयतीना आठ बोल बे. पांच योग होय. 30 सचित्तादिक त्रण प्रकारनो आहार लीये. 14 प्रथमनां बे अज्ञान अने एक अचहु 31 उज अने लोमे करी आहार लीये. दर्शन, ए त्रण उपयोग होय. 32 समय समय आहारनी श्छा उपजे. 15 एक समयमां असंख्याता उपजे. 33 कायस्थिति पृथिवीकायनी पेरे जाणवी. 16 एक समयमा असंख्याता च्यवे. 34 सात लाख जीवा योनि बे. 17 जघन्यथी अंतरमुहर्त अने उत्कृष्टुं 35 बार लाख कोमी कुल जाणवां. 16 हवे सोलमा वनस्पतिकायना दंडके पांत्रीश द्वार कहे . 1 औदारिक, तैजस श्रने कार्मण, एत्र रनी अवगाहना जाणवी. ण शरीर होय. 3 एकज जेवहुं संघयण होय. 5 जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो नाग उ 4 संझा चार अथवा दश होय. स्कृष्टी एक हजार योजन प्रमाण शरी 5 टुंडसंस्थान नाना प्रकारना श्राकारनुं. Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 254 चोवीश दंडकें पांत्रीश द्वार 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. तिर्यंच पंचेंजियनो अने एक मनुष्यनो. 7 कृष्ण, नील, कापोत अने तेजो. ए चार ए रीते दश दंडकने विषे जइ उपजे. लेश्या अपर्याप्ताने होय, अने पर्याप्ताने 22 नारकी वर्जिने बाकी त्रेवीश दंडकवा - पहेली त्रण लेश्या होय. ला जीवो, ए दंडकमां श्रावी उपजे. G एक स्पर्शेजियज होय. . 23 एक नपुंसक वेद होय. ए प्रथमना त्रण समुद्घात होय. 24 अल्पबहुत्वमां वायुकायथी वनस्पति 10 एकज मिथ्यादृष्टि होय. कायिया जीव अधिक बे. 11 एकज अचकुर्दर्शन होय. 25 नवन नथी. 12 मति अने श्रुत, ए बे अज्ञान होय. 26 विरहकाल नथी. 13 औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रका 27 एकज मिथ्यात्व गुणगणुं लाने. ययोग अने कार्मणकाययोग, ए त्रण 27 तेउकायनी पेरे चार प्राण होय. योग होय. शए संयतीना श्राप नेद नारकीनी पेरे. . . 14 तेउकायनी पेरे त्रण उपयोग होय. ३सचित्तादिकत्रण प्रकारनो श्राहार लीये. 15 एक समयमां अनंता जीव उपजे. |31 उज अने लोमे करी आहार लीये. 16 एक समयमां अनंता जीव च्यवे. 32 समय समय हारनी श्वा उपजे. 17 जघन्य अंतर मुहुर्त अने उत्कृष्ट दश 33 काय स्थिति प्रत्येक वनस्पति आश्रयी हजार वर्षायु होय. असंख्याती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी 17 प्रथमनी चार पर्याप्ति होय. होय अने अनंतकाय आश्रयी अनंती रए त्रण, चार, पांच अथवा उदिशिनो उत्सर्पिणी ने अवसर्पिणी होय. थाहार लीये. 34 प्रत्येकनी दश लाख अने साधारणनी 20 दीर्घकालादिक संझा रहित होय. चौदलाख मली चोवीश लाखयोनि बे. 1 पांच स्थावरना,त्रण विकलेंजियना,एक 35 अव्यावीश लाख कोडी कुल जाणवां, 17 हवे सत्तरमा बे इंडियना दंडके पांत्रीश द्वार कहे बे.. 1 औदारिक, तैजस ने कार्मण, ए त्रण 5 एकज ढुंडसंस्थान जाणवू. शरीर होय. 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. 2 अवगाहना जघन्य अंगुलनो असंख्यात 7 कृष्ण, नील अने कापोत, ए त्रण लेश्या. मो नाग उत्कृष्टी बार योजन होय. स्पर्शे प्रिय अने रसेंजिय,ए बे इंडियहोय. 3 एकज वहुं संघयण होय. | ए प्रथमना त्रण समुदघात होय. 4 संझा चार अथवा दश होय. | 10 सम्यक् अने मिथ्या, ए बे दृष्टि होय. Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 155 चोबीश दमके पात्रीश धार. 11 एकज चतुर्दर्शन होय. 1 वनस्पतिनी परे दश दमकमां जश् उपजे. 12 अपर्याप्तावस्थाये कोइएकने मति अने 22 दश दंगकना जीव एमां श्रावी उपजे. श्रुत ए बे ज्ञान होय अने एज बे अ 23 एक नपुंसक वेद होय. झान पण होय, तथा पर्याप्तावस्थाये 24 अल्पबहुत्वमां पंचेंजिय तिर्यंचथकी बे तो बे अझानज होय. ज्यि जीव अधिक होय. 13 औदारिककाययोग, औदारिक मिश्र 25 नवन नथी. काययोग, कार्मणकाययोग अने अस 26 जघन्य एक समय अने उत्कृष्टो एक त्यअमृषा वचनयोग,ए चार योग होय. मुहुर्त विरहकाल होय. 14 कोशएक अपर्याप्ताने प्रथमनां बेझान, 27 एमां मिथ्यात्व अने सास्वादन ए बे बे अज्ञान अने अचकुर्दर्शन. ए पांच गुण गणां लाने. उपयोग होय, अने पर्याप्ताने बे शान 2G स्पर्शेजिय,रसें प्रिय,वचनबल, कायबल, होय, माटे त्रज उपयोग होय. श्वासोवास अने श्रायु. ए उ प्राण होय१५ एक समयमा जघन्य, एक, बेत्रण जी श्ए संयतीना आप नेद नारकीनी पेरे. व उपजे अने उत्कृष्टथी संख्याता अथ 30 सचित्तादिकत्रणे प्रकारनोआहार लीये. वा असंख्याता जीव आवी उपजे. 31 उजादिक त्रणे प्रकारे आहार लीये. 16 उपजवानी पेरे मरण पण जाणी लेवु. 32 जघन्य एक समय अने उत्कृष्टथी अं 17 श्रायुष्य श्राश्रयी जघन्य अंतर मुहुर्त तरमुहुर्ते थाहारनी श्वा उपजे. अने उत्कृष्टथी बार वर्षायु होय. 33 काय स्थिति संख्याता वर्षनी जाणवी. 17 मनःपर्याप्ति वर्जीने पांच पर्याप्ति होय. 34 बे लाख योनि जाणवी. रए उ दिशिनो आहार लीये. 35 सात लाख कोडी कुल जाणवां. 20 एक हितोपदेशिकी संज्ञा होय. ... 17 हवे अढारमा त्री प्रियना दमके पांत्रीश द्वार कहे . 1 औदारिक, तैजस अने कार्मण. ए 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. त्रण शरीर होय. | कृष्ण, नील अने कापोत. ए त्रण 2 जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो नाग लेश्या होय. अने उत्कृष्टी त्रण गाउनी अवगाहना. | 7 स्पर्शे प्रिय रसेंजिय श्रने प्राणेजिय, ए 3 एकज व संघयण होय. त्रण इंजियो होय. 4 संज्ञा चार अथवा दश होय. | ए प्रथमना त्रण समुद्घात होय. 5 एकज हुंडसंस्थान जाणवू. ..|10 सम्यक् अने मिथ्या, ए बे दृष्टि होय. Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 256 चोवीश दमकें पांत्रीश धार. 11 एकज चतुर्दर्शन होय. 24 अल्पबहुत्वमां बेंजियथकी तेंजियजीव 15 ज्ञान हींजियनी पेरे जाणी लेवु. - अधिक होय. 13 औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रका 25 नवन नथी. ययोग, कार्मणकाययोग, अने असत्य 26 जघन्य एक समय ने उत्कृष्टो एक मु अमृषा वचनयोग, ए चार योग होय. हर्त्त विरहकाल होय. 14 हींजियनी पेरे उपयोग जाणवा. प्रथमना बे गुणगणां लाने. 15 हींजियनी पेरे उपपात जाणवा.. स्पर्शेजिय, रसें जिय, घ्राणेंजिय, वचन 16 उपपातनी पेरे च्यवन पण जाणवू. बल, कायबल, श्वासोबास अने आयु, 17 जघन्य अंतरमुहुर्त अने उत्कृष्टुं उंगण ए सात प्राण होय. पचास दिवसायु जाणवू. ए संयतीना आठ नंग, नारकीनी पेरे. 17 मनःपर्याप्ति वर्जीने पांच पर्याप्ति होय. 30 सचित्तादिक त्रणेप्रकारनोपाहारलीये. रए ब दिशिनो आहार लीये. 31 उजादिक त्रणे प्रकारे आहार लीये. . . 20 एक हितोपदेशिकी संज्ञा होय. 32 जघन्य एक समय अने उत्कृष्टथी एक वनस्पतिनी पेरे दश दमकमांजर उपजे. अंतरमुहर्ते श्राहारनी श्छा उपजे. श्श्दश दंमकवाला जीवो एमां श्रावी उपजे. 33 काय स्थिति संख्यातादिवसनी जाणवी. 23 एक नपुंसक वेद होय. 34 बे लाख योनि बे... 35 आठ लाख कोमि कुल जाणवां. रए हवे उंगणीशमा चरिंजियना दमके पांत्रीश द्वार कहे जे. 1 औदारिक, तैजस अने कार्मण, एत्र 10 सम्यक् अने मिथ्या, ए बे दृष्टि होय. ण शरीर होय. 21 चा ने अचछु, ए बे दर्शन होय. 2 जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो नाग श्र 12 ज्ञान, हींजियनी पेरे जाणी लेवं. ने उत्कृष्टी चार गाउनी अवगाहना. 13 औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रका 3 एकज बेवढं संघयण होय. ययोग, कार्मणकाययोग श्रने असत्य 4 संज्ञा चार अथवा दश होय. | अमृषावचनयोग ए चार योग होय. 5 एकज हुंडसंस्थान जाणवं. 14 अपर्याप्ता लगे कोश्कने प्रथमनां बे 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. झान, बे अज्ञान अने बे दर्शन. ए बउ 7 कृष्ण, नील ने कापोत ए त्रण वेश्या. पयोग होय, अने पर्याप्ताने प्रथमनां स्पर्श,रस, घ्राणनेचकु,एचार इंजियोहोय. बे ज्ञान विना चार उपयोग होय. ए प्रथमना त्रण समुद्घात होय. 15 छींजियनी पेरे उपपात जाणवो.' Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश द्वार. 157 .16 उपपातनी पेरे च्यवन पण जाणवू. 7 प्रथमनां बेज गुणागणां लाने. 17 जघन्य अंतरमुहर्त्त, उत्कृष्टुं मासायु. 27 स्पर्षे जिय, रसेजिय, घ्राणेंजिय, चक्षु 27 मनःपर्याप्ति वर्जीने पांच पर्याप्ति होय रिंजिय, वचनबल, कायबल, श्वासोत्रा १ए उ दिशिनो आहार लीये. | स अने आयु. ए आठ प्राण होय.' 20 एक हितोपदेशिकी संज्ञा होय. ए संयतीना आठ नंग नारकीनी पेरे बे. 21 वनस्पतिनी पेरे दश दंडकमां जाय. ३०सचित्तादिक त्रणे प्रकारनो आहारलीये. 22 एमां दश दंमकवालाजीवो श्रावी उपजे. 31 उजादिक त्रणे प्रकारे आहार लीये. 23 एक नपुंसक वेद होय. 32 जघन्य एक समय अने उत्कृष्ट एक 24 अल्पबहुंत्वमा ज्योतिषी देवोथकी चौ अंतर मुहर्ते आहारनी श्छा उपजे. ___ रिंजिय जीव अधिक होय. 33 काय स्थिति संख्याता मासनी जाणवी. 25 नवन नथी. 34 बे लाख योनि . 26 जघन्य एक समय श्रमे उत्कृष्टो एक 35 नव लाख कोडी कुल जाणवां.. मुहूर्त्त विरहकाल होय. 20 हवे वीशमा पंचेंजिय तिर्यंचना दंझके पांत्रीश द्वार कहे . .. 1 संमूर्जिमने औदारिक, तैजस अने का उरःपरिसर्पनुं योजनपृथक्त्व, जुज प मण. ए त्रण शरीर होय. तथा गर्नज रिसर्पनुं गाउपृथक्त्व जाणवू. ने औदारिक, वैक्रिय, तैजस अने का 3 संमूर्छिमने एकज अवतुं संघयण होय. मण, ए चार शरीर होय. / श्रने गर्नजने बए संघयण होय. 2 जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो नाग 4 संज्ञा चार अथवा दश होय. अने उत्कृष्टो एक हजार योजन शरी 5 संमूर्छिमने एक हुंमसंस्थान अने ग र, तेमां गर्नज जलचरनुं हजार योज नजने उ ए संस्थान होय. ननु, स्थलचरनुं ब गठ, खेचरनुं धनुष्य 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. पृथक्त्व, उरःपरिसर्पनुं हजार योजन 7 संमूर्जिमने प्रथमनी त्रण लेश्या होय. अने नुजपरिसर्पनुं गाउ पृथक्त्व. तेमज अने गर्नजने बए लेश्या होय. उत्तर वैक्रियशरीर करे, तो नवशे यो इंजिय पांचे होय. जन प्रमाण जाणवू. तथा संमूर्बिममां ए संमूर्छिमने प्रथमना त्रण समुद्घात हो जलचरनु एक हजार योजन, स्थलचर य अने गर्नजने पांच समुद्घात होय. मुंगाउ पृथक्त्व, खेचरनुं धनुष्यपृथक्त्व, 10 सम्यक्त्वादिक त्रणे दृष्टि हाय. Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 चोवीश दंडकें पांत्रीश द्वार. 11 चक्षुर्दर्शन, अचगुर्दर्शन अने अवधि 3 खेचरनुं बहोतेर हजार वर्षायु. दर्शन, ए त्रण दर्शन होय. उरःपरिसर्पनुं पूर्वकोमी वर्षायु. 15 प्रथमनां त्रण झान अने त्रण अज्ञान 5 जुजपरिसर्पनुं पूर्वकोमी वर्षायु. मली ज्ञान होय. 17 संमूर्छिमने मनपर्याप्ति वर्जी बाकीनी पां 13 संमूर्छिमने औदारिककाययोग, औ च पर्याप्ति अने गर्नजने ब पर्याप्ति होय. दारिक मिश्रकाययोग, कार्मणकाययोग १ए उ दिशिनो आहार लीये. अने असत्यअमृषावचनयोग. ए चार 20 दीर्घकालादिकी त्रणे संज्ञा होय. योग होय. तथा गर्नजने मनना चार, 21 संमर्जिम.तिर्यंच तो एक ज्योतिषी तथा वचनना चार अने औदारिककाय बीजा वैमानिक,ए बे दंडक वर्जिने बाकी योग, औदारिक मिश्रकाय योग, वैकि नाबावीश दंडकमांजा जपजे अने गर्न यकाय योग, वैक्रिय मिश्रकाय योग, का जतिर्यंचतो चोवीश दंडकमांजइ उपजे. मणकाय योग. ए तेर योग होय. संमर्बिममां दश दंमकवाला जीवो. 14 संमूमिमा कोइएकने अपर्याप्तावस्था यावी उपजे अने गर्नजमां चोवीशे ये चौरिंजियनी पेरे उपयोग होय दंडकना जीवो श्रावी उपजे. अने पर्याप्तावस्थाये चार होय, ने ग 3 संममिने एक नपुंसकवेद होय अने नजने नारकाना पर नव उपयोग. गर्नजने त्रणे वेद होय. 15. हींडियनी पेरे उपपात जाणवो. अल्पबहत्त्वमां चौरिंजियजीवथकी पंचें 16 उपपातनी पेरे मरण जाणवं. जिय तिर्यंच जीव अधिक . 17 जघन्य अंतरमुहुर्त श्रायु होय अने उ 25 नवन नथी. स्कृष्टुं त्रण पथ्योपमायु होय. तेमां ग 26 संमूर्जिमने जघन्य एक समय अने जज तिर्यंचवें श्रायु आ प्रमाणे बे. उत्कृष्टो चोवीशमुहुर्त, तथा गर्नजने 1 जलचरनु पूर्वकोटि वर्षायु जाणवू, जघन्य एक समय अने उत्कृष्टो बार 5 खेचरनुं पट्योपमनो असंख्य नाग. मुहर्त विरहकाल जाणवो. 3 स्थलचरनुं त्रण पटयोपमायु. 7 संमूर्बिममां प्रथमनां बे गुणगणां 4 उरःपरिसर्प- पूर्वकोमी वर्षायु. लाने अने गर्जजमां प्रथमनां पांच गु 5 जुजपरिसर्पनुं पूर्वकोमी वर्षायु.संमू एगणां लाने. र्छिम पंचेंजिय तिर्यंचनुं श्रायु कहे जे. 27 संमूर्जिमने मन विना नव प्राण होय 1 जलचर- पूर्वकोमी वर्षायु. अने गर्नजने दशे प्राण होय. . 5 स्थलचरनुं चोराशी हजार वर्षायु. २ए संमूर्बिममा संयतीना आठ जंग ना Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश द्वार. १५ए . रकीनी पेरे होय अने गर्नजमां संयती जघन्य, एक अंतरमुहूर्ते अने उत्कृष्टी तथा असंयतासंयती, ए बे नंग होय. बहनक्तं आहारनी श्छा उपजे. 30 सचित्तादिक त्रणे प्रकारनो आहारलीये. 33 काय स्थिति सात श्राउ नवनी जाणवी. 31 जादिक त्रणे प्रकारे आहार लीये. 34 चार लाख योनि जाणवी. 32 संमूर्छिमने जघन्य एक समय अने उ 35 सामी त्रेपन लाख कोमी कुल जाणवां. स्कृष्टथी एक अंतरमुहूत्र्ते तथा गर्नजने ___51 हवे एकवीशमा मनुष्यना दंगकें पांत्रीश द्वार कहे बे. 1 संमूर्बिमने औदारिक, तैजस अने का 13 संमूर्जिमने औदारिककाययोग, औदा मण, ए त्रण शरीर होय अने गर्नजने रिकमिश्रकाययोग अने कार्मणकाययो पांचे शरीर होय. ग, ए त्रण योग होय अने गर्नजने प 2 जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो नाग नरे योग होय. अने उत्कृष्टी त्रण गाउनी अवगाहना. 24 संमूर्बिमने प्रथमना बे अझान अने प्र 3 संमूर्जिमने एक बेववं संघयण होय थमनां बे दर्शन,ए चार उपयोग होय अने गर्नजने बए संघयण होय. अने गर्नजने बारे उपयोग होय. . 4 संज्ञा चार, दश अने शोल होय. 15 संमूर्छिमने विषे एक समयमा असंख्या 5 संमूर्जिमने एक हुंमसंस्थान. अने ग ता जीव उपजे.ते सर्व मिथ्यादृष्टि जाण नजने ब संस्थान होय. . वा अने गर्नजने विषे जघन्यथी एक, 6 केवली अने क्षीणमोही विना बाकी , त्रण तथा उत्कृष्टा संख्याता उपजे. ना सर्व मनुष्यने चारे कषोय होय. 16 उपजवानी पेरे च्यवन पण जाणवं. उ गर्नजने ब लेश्या अने संमूर्बिमने 17 जघन्य अंतरमुहर्त अने उत्कृष्टं त्रण प्रथमनी त्रण लेश्या होय. पक्ष्योपमायु जाणवू. इंजिय पांचे होय. 27 संमूर्छिमने प्रथमनी चार पर्याप्ति श्रने ए संमूर्छिमने प्रथमी त्रण समुद्घात होय गर्नजने सर्वे बए पर्याति होय. __ अने गर्नजने साते समुद्घात होय. १ए उ दिशिनो थाहार लीये. 10 सम्यक्त्वादिक त्रणे दृष्टि होय. दीर्घकालादिकी त्रणे संज्ञा होय. 11 चक्कुआदिक चारे दर्शन होय. 1 संमूर्बिम मरीने वनस्पतिनी पेरे दश 15 गर्जजने पांच ज्ञान अने त्रण श्राइन,ए दंडकमां जाय अने गर्नज मरीने चो आवे ज्ञान लाने, अने संमूर्जिमने प्र वीशे दमकमां जाय. थमनां बे ज्ञान, अने बे अज्ञान होय. 22 संमूर्बिममां पृथिवी, थपू, वनस्पति, Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 160 चोवीश दंडकें पांत्रीश धार त्रण विकलेंजिय, तिथंच अने मनुष्य, विना आठ अथवा सात प्राण होय, ए श्राप दमकवाला जीवो श्रावी उप श्रने गर्नजने दशे प्राण होय. जे. अने गर्नजमां तो तेज श्रने वाज, संमूर्जिमने संयतीना आठ जंग नार ए बे दंमक वर्जीने शेष बावीश दमक कीनी पेरे होय, अने गर्नजने विषे सं ना जीवो श्रावी उपजे. . यतीना चोवीश जंग सर्व प्रकारे लाने. 23 संमूर्छिमने एक नपुंसक वेद होय थ ३०सचित्तादिक त्रणेप्रकारना आहार लीये. ने गर्नजने त्रणे वेद होय. 31 उजादिक त्रण प्रकारे आहार लीये. 24 अल्पबहुत्वमा गर्नज मनुष्य, संख्याये 32 संमूर्बिमने जघन्य एक समय अने उ सर्वदंगकथकी स्वल्प बे. स्कृष्टयी एक अंतरमुहूर्ते अने गर्नजने 25 एमनां जवन नथी. जघन्य एक अंतरमुहर्ते अने उत्कृष्ट 26 विरहकाल तिर्यंच पंचेंजियनी पेरे बे. थी अहमनक्तं आहारनी श्छा उपजे. संमूर्बिममा एकज मिथ्यात्व गुणगणुं ला 33 काय स्थिति सात आठ जवनी जाणवी. ने अने गर्नजमां चउदे गुणगणां लाने. 34 चौद लाख योनि जाणवी.' 20 संमूर्जिमने मनोबल अने वचनबल 35 बार लाख कोमी कुल जाणवां. 22 हवे बावीशमा व्यंतर देशोना दमकें पांत्रीश द्वार कहे बे. 1 वैक्रिय, तैजस अने कार्मण, ए त्रण 10 सम्यक्त्वादिक त्रणे दृष्टि होय. शरीर होय. 11 प्रथमनांत्रण दर्शन होय. 2 उपजता जघन्यथी अंगुलनो असंख्या 12 प्रथमनां त्रण ज्ञान तथा त्रण अज्ञान तमो नाग अने उत्कृष्टी सात हाथनी मलीन होय. श्रवगाहना होय तथा उत्तरवैक्रिय करे 13 मनना चार, वचनना चार तथा वैक्रिय तो जघन्यथी अंगुलनोसंख्यातमो नाग काययोग, वैक्रियमिश्रकाययोग अने अने उत्कृष्ठ एक लाख योजन जाणवो. कामर्ण काययोग.ए अगीयारयोग होय. 3 संघयण रहितहोय असंघयणी ने माटे. 14 नारकीनी पेरे नव उपयोग होय. 4 संज्ञा चार, दश, शोल, होय. . 15 एकसमये जघन्यथी एक, बे,त्रण अने 5 एक समचतुरस्त्र संस्थान जाणवू. उत्कृष्टा संख्याता असंख्याता उपजे. 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. 26 उपपातनी पेरे च्यवन पण जाणवू. 7 तेजो पर्यंत प्रथमनी चार लेश्या होय. 17 जघन्य दश हजारवर्ष अने उत्कृष्टुं ए पांचे इंजिय होय. क पख्योपमायु जाणवू. .. ए प्रथमना पांच समुद्घात होय. (17 पर्याप्ति बहोय परंतु नाषा अने मन सा Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश धार. 261 थे उपजे माटे पांच पर्याप्ति पण कहिये. 27 प्रथमना चारें गुणगणां लाने. १ए ब दिशिनो आहार लीये प्राण श्राश्रयी दशे प्राण होय. 20 एक दीर्घकालिकी संज्ञा होय. शए संयतीना श्राप जंग त्रीजे प्रकारे लान्ने. 1 पृथिवी, अपू, वनस्पति,तिर्यंच पंचेंघिय 30 एकज श्रचित्ताहार लीये. अने मनुष्य ए पांच दंडकमां जश् उपजे. 31 ज अने लोमे करी आहार लीये. 22 गर्नज तिर्यंच श्रने गर्नज मनुष्य. एबे 32 दशहजार वर्षायुवालाने चोथजक्ते श्रा __दंडकवाला जीवो एमां आवी उपजे. हारनी श्छा अने पथ्योपमायुवालाने 23 पुरुष श्रने स्त्री, ए बे वेद होय. दिवल प्रथक्त्वे आहार श्छा उपजे. 24 अल्पबहुत्वमा जलचर पंचेंजिय तिर्य 33 काय स्थिति जवस्थिति जेटली जाण चिणीथकी एजीव संख्यातगुणा जे. अ वी. ए मरीने फरीदेव गतिमां न उपजे. थवा नारकीथकी अधिक बे. 34 चारे निकायनी 4 लाखयोनि जाणवी. 25 एमनां जवन असंख्यातां . 35 कुलकोडी पण चारे निकायनी साज 26 जघन्य एक समय श्रने उत्कृष्टो चोवी नवनपतिना दंडकमां कही जे. श मुहूर्त विरहकाल जाणवो. 23 हवे त्रेवीशमा ज्योतिषीदेवोना दंगकें पांत्रीश छार कहे . 1 वैक्रिय, तैजस अने कार्मण. ए त्रण 13 व्यंतरनी पेरे अगीयार योग होय. शरीर होय. 14 नारकीनी पेरे नव उपयोग होय. 2 जघन्य तथा उत्कृष्टावगाहना व्यंतर 15 व्यंतरदेवोनी पेरे उपपात जाणवो. देवोनी पेरे जाणवी. 16 उपपातनी पेरे च्यवन पण जाणवू. 3 संघयण रहित ने असंघयणी . 17 जघन्य एक पख्योपमनो आठमो नाग 4 संज्ञा, चार, दश, शोल होय. | अने उत्कृष्टुं एक पल्योपम एक लाख 5 एक समचतुरस्र संस्थान जाणवू. | वर्षे अधिक एटबुं आयु जाणवू. 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. 17 पर्याप्ति न होय परंतु नाषा अने मन 7 एकज तेजोलेश्या होय. साथे लेतां पांच पर्याप्ति पण कहिये. G पांचे इंजियो होय. १ए ब दिशिनो थाहार लीये. ए प्रथमना पांच समुद्घात होय. 20 एक दीर्घकालिकी संज्ञा होय. 10 सम्यक्त्वादिक त्रणे दृष्टि होय. 21 व्यंतरनी पेरे पांच दमकमां जश् उपजे. 11 चतुरादि त्रण दर्शन होय. . 22 व्यंतरनी पेरे बे दमकना जीवो एमां 15 प्रथमनां त्रण ज्ञान अने त्रण अज्ञान. श्रावी उपजे. Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162 चोवीश दंडकें पांत्रीश द्वार. 23 पुरुषवेद अने स्त्रीवेद, ए बे वेद होय. २ए संयतीना श्राव जंग त्रीजे प्रकारे लाने. व अल्पबहुत्वमां व्यंतरिकदेवोथकी ज्यो 30 एक अचित्ताहार लीये. तिषी देवो अधिक बे. 31 उज अने लोमे करी आहार लीये, 25 एमनां जवन असंख्यातां बे. 3 जघन्योत्कृष्ट दिवस पृथक्त्वे आहार 26 जघन्य एक समय भने उत्कृष्टो चोवी नी श्छा उपजे. श मुहर्त पर्यंत विरहकाल जाणवो.३३ ज्योतिषी मरी फरी ज्योतिषी न थाय. 27 प्रथमना चारे गुणगणां लाने. |34 योनिद्वार बझा देवोनुं साथे कहेवाणुंडे. 27 एमने दशे प्राण होय. (35 कुलकोमी घार पण साथे कहेवाणुं . 24 चोवीशमा वैमानिक देवोना दमकें पांत्रीश घार कहे . . 1 वैक्रिय तैजस अने कार्मण,एत्रण शरीर. होय अने पांच अनुत्तर विमानवासी 2 जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो नाग थ देवो,बझा सम्यकदृष्टि ,माटे तेमने तो ने उत्कृष्टी सात हाथनी अवगाहना प्रथमनां त्रण ज्ञान अने त्रण दर्शन म तथा उत्तर वैक्रिय शरीर करे तो जघन्य ली ब उपयोग होय. अंगुलनो संख्यातमो नाग अने उत्कृष्ट 25 जघन्यथी एक समयमा एक, बे, त्रण लाख योजन सुधी ते बारमा देवलोक उपजे अने उत्कृष्टथी तो श्रापमा देव सुधीना देवो करें, उपरांतना न करे. लोक पर्यंत संख्याता असंख्याता पण 3 संघयण रहित ने असंघयणी बे. उपजे. परंतु नवमा देवलोकथी मांगी 4 संझा चार, दश, शोल होय. ने सर्वार्थ सिझनामा पांचमा अनुत्तर 5 एकज समचतुरस्र संस्थान जाणवू. विमान पर्यंत संख्याताज उपजे, कारण 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. के, त्यां मात्र मनुष्यमांधीज श्रावी उ 7 तेजो,पद्मश्रने शुक्ल ए त्रण लेश्या होय. पजे जे अने फरी च्यवे, तेवारे पण म इंजियघार श्राश्रयी पांचे इंजिय होय. नुष्यमांज जाय, बीजे क्यांहि न जाय. ए प्रथमना पांच समुद्घात होय. 16 उपपातनी पेरे च्यवन पण जाणी लेवु. 10 सम्यक्त्वादिक त्रणे दृष्टि होय. 17 जघन्य एक पढ्योपम अने उत्कृष्ट ते 11 चतुरादि त्रण दशेन होय. / त्रीश सागरोपमायु जाणवू. 15 प्रथमनांत्रण झान, त्रणव ज्ञान होय. 27 पर्याप्ति होय पण नाषा अने मन 13 व्यंतरनी पेरे अगीयार योग होय. ए बे पर्याप्ति एके वखत साथेज उपजे 14 बार देवलोक अने नव ग्रैवेयकना दे जे तेथी पांच पर्याप्ति पण कहिये. वोने विषे नारकीनी पेरे नव उपयोग १ए उ दिशिनो आहार लिये. Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 263 चोवीश दमकें पांत्रीश द्वार. 20 एक दीर्घकालिकी संझा होय. ए अगीयारमा तथा बारमा देवलोके 1 पदेला अने बीजा देवलोकना देवो म संख्याता वर्षनो विरहकाल जाणवो. रीने पृथिवीकायनी पेरे पांच दमकमां 10 ग्रैवेयकना पहेला त्रिकनेविषे संख्या जर उपजे अने त्रीजाथी श्रापमा सुधी ता शेकडा वर्षनो विरह जाणवो. ब देवलोकना देवो गर्नज तीर्यच अने 11 बीजा मध्यम ते वचला त्रिकने विषे गर्नज मनुष्यमां श्रावी उपजे. / संख्याता हजार वर्षनो विरह जाणवो. 22 आठमा देवलोक सुधी गर्जज तिर्यंच 12 त्रीजा उपरला त्रिकने विषेसंख्याता अने गर्नज मनुष्य, ए बे दमकना जी लाख वर्षनो विरहकाल बे. वो जाय अने उपरांतना देवलोकोमा 13 विजयादि चार अनुत्तर विमाने प तो एक गर्नज मनुष्य आवी उपजे. | व्योपमनो असंख्यातातमो नाग 23 पहेला अने बीजा देवलोकने विषे पु विरह काल जाणवो.. रुष तथा स्त्री, ए बे वेद होय अने ज 14 पांचमा सर्वार्थ सिझविमाने पल्यो परांतना देवोमा एकज पुरुष वेद होय. पमनो संख्यातमो नाग विरह बे. 24 श्रदपबहुत्वमा बादर अग्निकायिया जी 27 गुणगणां घार श्री बे नेद . वोथकी वैमानिक देवो अधिक . 1 बार देवलोक अने नव ग्रैवेयकना दे 25 नवन (Hए०५३ ) बे पाथडा 62 . वोमां प्रथमना चारे गुणगणां लाने. 26 जघन्य सर्व स्थानके एक समय अने पांच अनुत्तरविमानना सर्व देवोम उत्कृष्ठो पस्योपमनो संख्यातमो नाग एकज चोथु गुणगणुं लाने. विरहकाल जाणवो. तिहां जुदे जुदे 27 वैमानिक देवोमां दशे प्राण होब. स्थानके उत्कृष्टो विरह या प्रमाणे. शए संयतिना थाम्बोल त्रीजा प्रकारे लाने. 1 पहेला बीजा देवलोके चोवीश मुहर्त. 30 एकज अचित्त थाहार लीये. २त्रीजा देवलोकें नव दिवसवीशमुहर्त. 31 ज अने लोमे करी आहार लीये. 3 चोथा देवलोके बार दिवस दशमुहर्त्तः 32 श्राहारनी श्छा था प्रमाणे उपजे. 4 पाचमां देवलोकेसाडी बावीश दिवस. 1 एक पट्योपमायुवाला देवोने बे दिव 5 बहा देवलोके पीस्तालीश दिवस. | सथी मांडीने नव दिवस पर्यंते श्रा 6 सातमा देवलोके एंशी दिवस. हारनी श्बा उपजे. 7 आठमा देवलोके एकशो दिवस. / जेनुं एकसागरोपमायु होय, तेने एक 7 नवमा तथा दशमा देवलोके संख्या हजारवर्षे श्राहारनी श्छा उपजे. ता महीनानो विरहकाल जाणवो. 3 एक सागरोपम उपरांत जेटला सा Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 164 चोवीश दंडकें पांत्रीश कार. गरोपमनुं आयु होय तेटला हजार 35 चारे निकायना देवो संबंधी तेरे दंडक वर्षे आहारनी श्छा उपजे. मां बीश लाख कोडी कुल जाणवां. 4 सर्वार्थसिक विमाने तेत्रीश सागरो एरीते चोवीश दंडक मांहेला प्रत्येक दं पमायु 2 माटे तेने तेत्रीश हजार डकने विषेपांत्रीश हारनो विचार संदेपथी वर्षे आहारनी श्छा उपजे. लख्यो अने ए सबंधि देव नरकादिकोनां प्र 33 वैमानिक देवोनी कायस्थिति तो एम तरे प्रतरे जूदां जूदांश्रायु तथा शरीरनी श्रव नी जवस्थिति जेटली जाणवी. मरीने गाहना प्रमुख अनेक वातो विस्तारे समज वैमानिकमां पागा उपजता नथी. वामां श्राववा माटे श्रागल तेना खुलासा 34 चारेनिकायना देवोनी 4 लाख योनिजे. पूर्वक यंत्रो दाखल करेला बे, ते जोश्खेवा. तिहां चार निकायनां देवोमा प्रथम नवनपति देवोनी वक्तव्यता कहे . एक लाख एंशी हजार योजन रत्नप्रजानो पृथ्वीपिंग डे, तेमा एक हजार योजन उपर मूकी आपीये अने एक हजार योजन तलीये मूकी श्रापीये, बाकी बचेंना 177 योजननो पिंम तेमांहे यथायोग्य पणे दश जातिना नवनपति देवतानां जवन ले. जवन एटले देवतानी काया प्रमाण महामंडप समान आवास जाणवा. ते बाहेर वाटला गोलाकारे अने मांहे चोखूणां तथा तलीयामां कमलना मोमा सरखां बे. ते जवनमध्ये जे न्हानामां न्हानां जवन बे, ते जंबूहीप प्रमाण एक लाख योजन लांबां पहोलां बे. अने जे मध्यमजवन बे, ते संख्याता कोटि योजन प्रमाण , तथा जे अत्यंत महोटां नवन डे, ते असंख्याता कोटाकोटि योजन प्रमाण बे. ते महोटा एकेका जवनमा असंख्य देवोनो निवास बे. मेरुमध्यवर्ती जे आठ रुचक प्रदेश , तिहाथी अर्कोथर्ड बे खंग करीये, एक द क्षिण दिशिनुं अर्ड अने बीजुं उत्तरदिशिनुं अई. एवा बे जागे वहेंचतां एकेक निका यनो एक दक्षिण दिशिनो इं अने बीजो उत्तरदिशिनो इंज जूदा जूदा गणतां दश नि कायना वीश इं . ते दशनिकायमा पहेला निकायनुं नाम असुरकुमार निकाय बे, केम के वैमानिक देवोने सुर कहीये, ते वैमानिक ए नही माटे एने असुर कहीये, तथा बालकनी पेरे क्रीडाना करनार माटे कुमार कहीये. तेमनुं आयु या प्रमाणे जे, ते कहे . 1 दक्षिण दिशिनो अधिपति असुरकुमारनो राजा चमरेंज,तेनुं उत्कृष्टायु एक सागरोपम. 2 उत्तरदिशिनो अधिपति बली असुरकुमारो राजा, तेनुं उत्कृष्टायु सागरोपम काकेलं. 3 चमरेंजनी देवी- उत्कृष्टायु साडा त्रण पस्योपम जाणवू. Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दंडके पांत्रीश बार. 165 4 बलीउ देवीनु उत्कृष्ठायु सामचार पढ्योपम जाणवू. 5 शेष दक्षिणदिशिनाधरणे प्रमुख नव सोनुं उत्कृष्टायुप्रत्येके दोढ पख्योपम जाणवू. 6 उत्तरदिशिना नूतानंदें प्रमुख नवसोनुं उत्कृष्टायु देशे जणाबे पढ्योपम जाणवू. 7 धरणेश प्रमुख नव इंसोनी देवीनु उत्कृष्टायु अर्ड पट्योपम जाणवू. लूतानंदें प्रमुख नव इंडोनी देवीनु उत्कृष्टायु देशोन एक पख्योपम जाणवू. ए ए सर्वनुं जघन्यायु दश हजार वर्षनुं जाणवू. अने जघन्यथी उपरांत उत्कृष्टथी नीचुं ज्यां सुधी उत्कृष्ट पूर्ण न थाय, त्यांसुधीनुं सर्व मध्यमायु कहे. एम ए दशे निकायनां नाम तथा प्रत्येक निकायना दक्षिण उत्तरदिशिना बेबे इंडोनां नाम तथा दक्षिण उत्त रना नेदे करी प्रतिनिकायना नवननी संख्या तथा ते देवोसंबंधी पोतपोताना निकाय जेथकी उलखाय तेवां चिन्द, तेमना बालरणोने विषे होय जे ते चिन्ह तथा तेमना शरीरना वर्ण, तथा वस्त्रना वर्ण, तथा ते इंशोना सामानिक देवो जे असरखी शकिना धणी होय ते प्रत्येक इंजने केटला होय ? तेनी संख्या तथा प्रत्येक इंजना श्रात्मरक्षक देवोनी संख्या तथा कटकना देवो इत्यादिक वातो सर्व नीचे लखेला यंत्रोथी जाणवी. जवनपतिनी दशनिकायनां चिन्ह तथा वर्ण, वस्त्रवर्ण, अने सामानीक देव, तथा श्रात्मरक्षक देवोनी संख्यानो यंत्र. निकायनां निकाय निकाय श निकायना दक्षिण उत्तरश्रे दक्षणश्रेणि उत्तरश्रेणि नाम. चिन्ह. रीरवर्ण. वस्त्रवर्ण. णिसामा णिसामा ना श्रात्मर नाथात्मर __निकदेव. निकदेव. क्षकदेवता.क्षकदेव. असुरकुमार, चूमामणि कृष्णवर्ण. रक्तवर्ण. | 64000 60000 256000 240000 नागकुमार. फणी धवलवर्ण. नीलवर्ण. 6000 6000 24000 Y0000 सुवर्णकुमार. गरुम. कनकवर्ण. धवलवस्त्र. 6000 6000 24000 24000 विद्युत्कुमार. वज्र. रक्तवर्ण. नीलांवस्त्र. 6000, 6000 24000 24000 अग्निकुमार. कलश. रक्तवर्ण. नीलांवस्त्र. 6000 6000 24000 24000 छीपकुमार. सिंह. रक्तवर्ण. नीलांवस्त्र. 6000 6000 24000 14000 उदधिकुमार, अश्व. धवलवर्ण. नीलांवस्त्र. 6000 6000 14000 14000 दिशिकुमार. हाथी. रक्तवर्ण. धवलांवस्त्र 600 6000 24000 14000 वायुकुमार. मकर. नीलवर्ण. संध्यराग. 6000 6000 24000 24000 स्तनितकुमार. वर्धमान, कनकवर्ण. धवलांवस्त्र 6000 6000 | 24000 24000 Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 166 चोवीश दंडकें पांत्रीश धार. जवनपति श्रने व्यंतर देव तथा तेमनी देवीयोनां जे जघन्य उत्कृष्टायु तेनो यंत्र. इंडोनां नाम. देवोर्नु जघन्यायु.देवोनुं उत्कृष्टायु. देवीनुं जघन्यायु. देवीन उत्कृष्ठायु. दक्षिण चमरेंज. दश हजार वर्ष, एक सागरोपम. दश सहस्र वर्ष. 3 // पटयोपम. उत्तरश्रेणि बलीउ.दश हजार वर्ष.१ सागर जाकेरु. दश सहस्र वर्ष. 4 // पट्योपम. दक्षिण ए निकाय दश हजार वर्ष, दोम पस्योपमनु. दश सहस्र वर्ष. अर्ड पक्ष्योपमk. उत्तर नव निकाय दश हजार वर्ष. बे पट्यदेशे उंणो. दश सहस्र वर्ष. एकपल्यदेशेऊj व्यंतर. दश हजार वर्ष. एक पक्ष्योपम. दश सहस्र वर्षे. पक्ष्योपम. वाणव्यंतर. दश हजार वर्ष. एक पट्योपम. दश सहस्त्र वर्ष. अर्ज पढ्योपम. दशजवनपतिना तथा दक्षिणोत्तरेजनां नाम तथा दक्षिण उत्तर नवन संख्यानो यंत्र. दश निकायनां दक्षिणेजना उत्तरेजना दक्षिणेजजव उत्तरेंउजवन उन्नयमलीन नाम. नाम. | नाम. न संख्या. संख्या. वन संख्या.'' असुरकुमार. चमरेंड. बलीं. 30000003000000 64 लाखनवन, नागकुमार. धरणे.. नूतानंदें. 4400000 40000004 लाखनवन, सुवर्णकुमार. वेणुदेव. वेणुदाली. 3000000 3400000 2 लाखनवन. विद्युत्कुमार. हरिकांत. हरिशिख. H000000 3600000 6 लाखनवन. अग्निकुमार. अग्निशिख. अग्निमाणव. | 1000000 360000076 लाखनवन. छीपकुमार. पूर्णेन. वशिष्ठंड... 4000000 3600000 76 लाखनवन. उदधिकुमार. जलकांत. जलप्रन.. 4000000 3600000 76 लाखनवन. दिशिकुमार. अमितगति. अमितवाहन. 4000000 3600000. 6 लाखनवन. पवनकुमार. वेलंबक. प्रनंजन. 0000000 4600000 ए६ लाखनवन. स्तनितकुमार. घोष. 4000000 36000006 लाखनवन. शरवाले संख्या. 40600000 36600000 200000. हवे व्यंतरदेवोनी वक्तव्यता कहे . रत्नप्रजा पृथ्वीनी उपर मूकेलो जे एकहजार योजननो रत्नमयकांड, तेमांथी एक शो योजन नीचेंना तथा शो योजन उपरना मूकीने वचला आठशे योजननी नूमि कामध्ये व्यंतरदेवोनां महारमणीय असंख्यातां नगर , तेमां रह्यां थकां व्यंतरिक देवो वरप्रधान तरुणीयोनां गीत गानना अने वाजित्रो वजाववाना शब्द सांजलवे क री प्रमुदित थया थका गत कालने पण जाणता नथी. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश घार. 167 ते व्यंतरदेवोना श्राप निकाय , तेनो पण दक्षिण श्रेणि श्रने उत्तर श्रेणिना प्र त्येके एकेक इंउ गणतां श्राप निकायना शोल इंसो . ते व्यंतरोनां नगर, उत्कृष्टां महोटां ते जंबूलीप जेवमां लांबां पहोला बे, श्रने घ णां न्हानां , ते जरतक्षेत्र जेवमां (556) योजनने उ कला प्रमाण बे. तथा मध्य म विमान ते महाविदेह समान (3364) योजननी जपर उगणीया चार नाग जेव मा बे, ते आठ व्यंतर निकायनां नाम तथा तेमना इंडोनां नाम तेमज चिन्ह प्रमु ख पूर्वोक्त नवनपतिनी पेठे सर्व वातो नीचेना यंत्रथी जो लेवी. हवे जेम व्यंतर देवोना आवनिकाय कह्या तेम वली रत्नप्रजाना उपरलां एकशो योजनना मिमांहे दश योजन नीचे तलीये मूकीये अने दश योजन उपर मुकीये,शेष एंशी योजन पृथ्वीपिंडमांहे बीजा वाणव्यंतरना आठ निकाय डे, एटले मेरुमध्यवर्ती गोस्तनने श्राकारे आठ रुचक प्रदेशथी नीचे दश योजन मूकीने नीचला एंशी योजनमा श्राप निकायना दक्षिण दिशि अने उत्तरदिशिना नेदे करी बेबे इंसो बे, तेमनां नाम तथा निकायनां नाम आदिक चिन्ह वर्ण प्रमुख सर्व, नीचला यंत्रोथकी जाणवां. __ इहां व्यंतरना शोल तथा वाणव्यंतरना शोल मली बत्रीश इंछ व्यंतर देवोना अ ने वीश नवनपतिना. तेमज यद्यपि सूर्य अने चंड असंख्याना इंस, तथापि जा तिनी अपेदाये एक न एक सूर्य, ए बे इंड ज्योतिषीना सेवा अने पहेलां देवलोकथी आठमा 6. सुधी एकेक इंज, अने नवमा दशमा ए बे देवलोक नो एक, तथा अगीयारमा, बारमा, ए वे देवलोकनो एक, मली बार देवलोकना द श इंज गणतां सरवाले चोशठ इंछ संख्याये जाणवा. - वली एटलं विशेष ने जे, ज्योतिषी अने व्यंतर, ए बे निकायने विषे इंजोना लोक पाल तथा गुरुस्थानीया जे त्रयस्त्रिंशदेवता, ते नथी. हवे व्यंतर देव देवीयोनुं जघन्योत्कृष्टायु कहे . व्यंतर अने वाणव्यंतरना देवो तथा देवीयोनुं जघन्यायु दश हजार वर्ष जाणवू, अने देवोनुं उत्कृष्टायु संपूर्ण एक पट्योपमनुं जाणवू. तथा देवीयोनुं उत्कृष्टायु अर्ज पत्योपमनुं जाणवू. अने श्री ही धृति, कीर्ति, बुद्धि अने लक्ष्मी, एब देवीयोनुं जे एक पख्योपमायु कह्यु बे, ते देवीयो नवनपतिनी बे, पण व्यंतरनी नथी. व्यंतरना था युना यंत्रनी स्थापना नीचे करीये बैये, तेथी तेनुं आयु जाणवं. Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 167 चोवीश दमकें पांत्रीश धार. श्राव जातिना व्यंतरदेवी संबंधि प्रतिनेद कहे . पिशाचनाप्रकार.५१ 1 कूष्मांक 1 पटक 2 जोष 3 श्रान्हिक 4 काल 5 महाकाल 6 मोद श्रामोद ताल पिशाच. ए पिखरपिशाच 10 अधस्ता रक 11 देव 15 महादेव 13 उनिक 14 वनपिशाच 15. नूतनाप्रकार. एशसुरूप 1 प्रतिरूप 2 श्वेतलऽ 3 जूतोत्तम 4 स्कंदिक 5 अति पातकना 6 महावेग प्रतिवेग आकाशवेग ए. यदनाप्रकार. 13 3 पूर्णनन माणिना 2 श्वेतन 3 हरिजन 4 सुमनोज 5 | व्यतिपाकला 6 सुजज 7 सर्वतोना - मनुष्यनज ए धनाधि पति 10 धनहार 11 सुपयद 12 यदोत्तम 13. राक्षसनाप्रकार. 74 जीम 1 महालीम 2 विघ्नविनायक 3 जलराक्षस 4 रुदराद स 5 ब्रह्मराक्षस 6 दत्तराक्षस . किन्नरनाप्रकार. 105 किंनर 1 किंपुरुष र किंपुरुषोत्तम 3 हृदयंगम 4 रूपशाली 5 श्र निंदतई 6 किंनरोत्तम मनोरम रतिप्रिय ए रतिश्रेष्ठ 10 / किंपुरुषनाप्रकार 106 पुरुष 1 सत्पुरुषः महापुरुष 3 पुरुषवृषन 4 पुरुषोत्तम 5 अ तिपुरुष 6 माहादेव 7 मरुत - मेरुकांत ए नाखत 10 महोरगनाप्रकार 107 जुजंग 1 जोगशाली 5 महाकाय 3 अतिकाय 4 स्कंधशाली 5. | मनोरम ६.माहावेग महेश्वद मेरुंकांत ए नाखत 10 गंधर्वनाप्रकार. 12 जहाहा 1 हूहू 2 तुंबरु३ नारद४ 3 ३६०००भूतवादक 6 कादंब 7 महाकादंब ज रैवत ए विश्वावसु 10 गीतरति 11 गीतयशा 15 हवे ज्योतिषी देवोनी वक्तव्यता कहे जे. मेरुमध्य रुचकथकी नवशे योजन उपर अने नवशे योजन नीचे मली श्रढारशें योजन प्रमाण तिर्यक् लोक . तिहां समनूतला पृथ्वीथकी ए योजन उपरांत ए कशो ने दश योजनमांहे ज्योतिषचक रहे , ते केवी रीते? तो के प्रथम समजूत ल थकी ए० योजने तारानां विमान ने G00 योजने सूर्यनुं विमान बे, अने GO योजने चंडमानुं विमान चाले , G योजने नत्रनां विमान चाले , G योज ने बुधनुं विमान चाले डे, ए१ योजने शुक्रनुं विमान चाले जे. एव योजने बृहस्प तिनो तारो चाले , ए योजने मंगलनुं विमान चाले , अने ए०० योजने शनिनुं विमान चाले जे. एम 110 योजनमा ज्योतिषचक्र चार चाले बे. 1 ज्योतिषीयोनां विमान मेरुपर्वतथकी 1151 योजन उरहां एटलां पूर मनुष्य Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. .. १६ए लोकमांहें चरे ,लमे अने ११५१नुं योजन अलीकथी उरहां एटले चारे दिशाये लोक ना हमाथकी 1121 योजनमांदेली कोरे अलोकनी अबाधायेज्योतिषचक्र स्थिर रहे. हवे सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र अने तारा, ए पांच जातिना ज्योतिषी देव देवीयोनुं ज घन्योत्कृष्टायु कहे बे. ते ज्योतिषी देवो अढी छीपमाहे जेटला , ते सर्व चर ,अने अढीवीपथी बाहिर जे असंख्याता द्वीप समुड बे, तेमां जेटला ज्योतिषीदेवो बे, ते सर्व स्थिर जाणवा.ए चर तथा स्थिर, बेहु प्रकारना ज्योतिषी देव तथादेवीनुं आयु कहे 1 चंद्रमानुं तथा चंद्रमाना विमानवासी देवोनुं उत्कृष्टायु एक पल्योपम एक लाख वर्षे अधिक तथा तेमनी देवीयो- अर्बपल्योपम पच्चास हजार वर्षे अधिक जाणवं. 5 सूर्य तथा तेना विमानवासी देवोनुं उत्कृष्टायु एक पक्ष्योपम एक हजारवर्षे अ धिक तथा तेमनी देवीयोनुं आयु पांचशे वर्षे अधिक अपव्योपम जाणवू. 3 ग्रह तथा ग्रहना विमानवासी देवोनुं उत्कृष्टायु संपूर्ण एक पक्ष्योपम जाणवू तथा तेमनी देवीयोनुं उत्कृष्टायु अर्डपल्योमनुं जाणवू. 4 नक्षत्र तथा नक्षत्रना विमानवासी देवोन उत्कृष्टायु अर्डपल्योपम अने तेमनी . देवीयोनुं आयु एक पख्योपमनो चोथो नाग जाणवू. . 5 तारा तथा ताराना विमानवासी देवो, उत्कृष्टायु पथ्योपमनो चोथो नाग कांश्क जाजेलं अने तेमनी देवीयो, एक पट्योपमनो श्राठमो नाग विशेषाधिक जाणवू. 6 जघन्यायुमां चंजमा अने सूर्य,ए बेतोड ,तथा ग्रह नक्षत्र अने तारा,ए त्रण वि मानना धणी ने तेमनुं आयु जघन्य मध्यम न होय परंतु उत्कृष्टज होय, तेथी चं जना विमानवासी देव तथा देवीयो एक युगल तथा सूर्यना विमानवासी देव तथा देवीयो ए बीजुं युगल, तथा ग्रहना विमानवासी देव तथा देवीयो. ए त्रीजुं युगल,तथा नक्षत्रना विमानवासी देव तथा देवीयो.ए चोथु युगल. ए चार युगलनुं जघन्यायु पट्योपमनो चोथो.जाग तथा ताराना विमानवासी देव तथा देवीयो. ए पांचमुं युगल बे,तेनुं श्रायु पस्योपमनो आठमो नाग जाणवू एना यंत्रो श्रागल श्रावशे हवे वैमानिकदेवोर्नु जघन्य तथा उत्कृष्टायु कहे . 1 सौधर्मदेवलोकने देहला तेरमे प्रतरें उत्कृष्टायु बे सागरोपमनं जाणवु अने जघ न्यथी तो सर्व तेरे प्रतरे एक पक्ष्योपमायु जाणवू. 2 ईशान देवलोके उत्कृष्ट बे सागरोपम पट्योपमना असंख्यातमे जागे अधिक अ ने जघन्यथी पढ्योपमने असंख्यातमे नागे अधिक, एक पख्योपम जाणवू. 3 सनत्कुमारे उत्कृष्ट सात सागरोपम अने जघन्य बे सागरोपम जाणवू. Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 170 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. " 4 माहेंडें उत्कृष्टधी पथ्योपमना असंख्यातमे जागे अधिक सात सागरोपम अने जघन्यथी बे सागरोपम जाजेलं जाणवं. 5 ब्रह्मदेवलोके उत्कृष्ट दश सागरोपम अने जघन्यथी सात सागरोपम. 6 लांतक देवलोके उत्कृष्ट चौद सागरोपम, अने जघन्यथी दश सागरोपम. 7 शुक्रदेवलोके उत्कृष्ट सत्तर सागरोपम. अने जघन्यथी चौद सागरोपम. सहस्रारे उत्कृष्ट अढार सागरोपम अने जघन्य सत्तर सागरोपम. ए आनत देवलोके उत्कृष्ट उंगणीश सागरोपम अने जघन्यथी अढार सागरोपम. 10 प्राणत देवलोके उत्कृष्ट वीश सागरोपम अने जघन्यथी उंगणीश सागरोपम. 11 श्रारण देवलोके उत्कृष्ट एकवीश सागरोपम अने जघन्यश्री वीश सागरोपम. 12 अच्युत देवलोके उत्कृष्ट बावीश सागरोपम अने जघन्यथी एकवीश सागरोपम. 13 पली नवग्रैवेयके प्रत्येक एकका ग्रैवेयके जघन्य उत्कृष्ट बेहुमां अच्युतदेवलो कथी एकेक सागरोपमनी वृद्धि करीये, तेवारे नवमा ग्रैवेयके उत्कृष्टा एकवीश सागर अने जघन्यथी त्रीश सागरोपमायु थाय. 14 पांच अनुत्तर विमानमांदेला पहेला विजयादि चार विमाने उत्कृष्ट तेत्रीश सा गर अने जघन्य एकत्रीश सागरायु कयुबे, अने पांचमा सर्वार्थसिक विमाने तो अजघन्योत्कृष्ट तेत्रीश सागरोपमायु , एमां वध घट नश्री. हवे वैमानिक देवीयोनुं जघन्य उत्कृष्ट श्रायु कहे जे. वैमानिक देवीयोनी उत्पत्ति मात्र प्रथमना सौधर्म अने ईशान ए वे देवलोकमांज बे, ते देवीयो बे प्रकारनी ने एक तो परिग्रहीता ते परणेली कुलांगना सरखी जाणवी श्रने बीजी अपरिग्रहीता ते वेश्या सरखी जाणवी, ए देववेश्या कहेवाय. 1 तिहां सौधर्मदेवलोके परिग्रहीता अपरिग्रहीता ए बेहुनु जघन्यायु एक पट्यो पम बे, अने ईशान देवलोके बेहुनुं जघन्यायु एक पक्ष्योपम जाजेलं जाणवू. 2 सौधर्म देवलोके परिग्रहीता देवीयो, उत्कृष्टायु सात पक्ष्योपम , तथा अपरि ग्रहीतानुं उत्कृष्टायु पच्चास पस्योपम , तेमज ईशानदेवलोके परिग्रहीतानुं उ स्कृष्टायु नव पट्योपम डे अने अपरिग्रहीतानुं पञ्चावन पर्दयोपम बे. हवे चारे निकायना देवो संबंधि इंसोनी सर्व अंतेउरमा प्रधान मुख्य पट्टराणी स रखी जे देवीयो, तेने अग्रमहीषी कहीये, ते कया कया इंजने केटली केटली होय ? 1 जवनपतिनी पहेली निकायना चमरेंड तथा बलीउने प्रत्येके पांच पांच होय. Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 271 2 नवनपतिनी नागकुमारादिक नव निकायना धरणी अने जूतानंदें श्रादिक अढार इंडोने प्रत्येके बब अग्रमहीषी होय. 3 व्यंतर देवोना काल महाकालादिक बत्रीश इंडोनेप्रत्येके चार चार अग्रमहीषीहोय 5 ज्योतिषीना इंस जे चंडमा अने सूर्य, तेने प्रत्येके चार चार अग्रमहीषीयो होय. 5 सौधर्म तथा ईशान,ए बे देवलोकना इस्रोने प्रत्येके श्राप आठ अग्रमहीषीयोहोय. 6 बे देवलोकथी उपरांतना देवलोकमां देवीयोनी बत्पत्ति नथी माटे तिहांना इंस तथा तिहांना निवासी देवोने जेवारे विषय सेववानी वांबा थाय, तेवारे सौधर्म ईशानवासी अपरिग्रहीता देवीयो यथायोग्य पणे तेमने उपनोगमा श्रावे. हवे वैमानिक देवोनुं प्रतरे प्रतरे जूएंजूई आयु कहेवा माटे प्रतरसंख्या कडेले. तिहां जेम घरनी उपर जूदा जूदा चार पांच मजला होय, तेम पहेला अने बीजा देव लोकनी उपराउपर तेर नूमिरूप तेर मजला , तेने प्रतर कहीये. ते आवी रीते केःबे देवलोक मल्यां वलयाकारे जे. तिहां पूर्वमहाविदेह अने पश्चिम महाविदेहनी उपर श्रावेली देवलोकसंबंधी नूमिनी वचमाहेश्रवलयाकार खंमथकी एक दक्षिण दिशिखंग अने बीजो उत्तर दिशिखंग, एवा बे खंड अर्कोअर्स करीये, तेनां दक्षिण दिशिखंडना अवलयाकार खग प्रतर सौधर्मेजना अने उत्तरदिशिना अवलयाकार खंड प्रतर 6 शानेंना जाणवा. एम बीजा पण वलयाकार देवलोकना युगलमां एज व्यवस्था क रवी. एटले त्रीजा, चोथा, देवलोकना मट्या वलयाकार बार प्रतर , तेमां दक्षिण दिशि सनत्कुमारनी अने उत्तरदिशि माहेंजनी जाणवी. पांचमे उ प्रतर, बहे पांच प्र तर, सातमे चार प्रतर, आठमे चार प्रतर, नवमा दशमा मली बेहुना चार प्रतर, अ गीयारमा बारमाना चार प्रतर, तथा नव ग्रैवेयके प्रत्येक एकेक प्रतर गणतां नवप्रतर , अने पांच अनुत्तरविमाननो एकज प्रतर जे. एम सर्व मली ऊर्ध्वलोके बासठ प्रतर बे. हवे ए प्रत्येक प्रतरे जघन्य उत्कृष्ट आयुष्य जाणवां, माटे प्रथम सौधर्मदेवलोके उ पाय कहे . सौधर्मदेवलोके उत्कृष्टी स्थिति बे सागरोपमनी ने अने प्रतर तेर बे, माटे एक सागरना तेर नाग करी प्रतरे प्रतरे एकेका सागरोपमे एकेको नाग श्रापीये, ते एवी रीते के तेरैया बे सागरोपमना बबीश नाग थाय, तेने प्रतरे प्रतरे वहेंचीये, तो प हेला प्रतरे तेरैया बे लाग श्रावे, तेटर्बु पहेला प्रतरे उत्कृष्टायु जाणवू. पली बीजे प्रत रे बे साथे गुणीये, तेवारे बीजे प्रतरे चार जाग, श्रीजे त्रणथी गुणीये तेवारे ब नाग, एम यावत् तेरमे प्रतरे बेहु सागरना बबीशे जाग पूर्ण थाय. तिहां उत्कृष्टी स्थिति बे सागरोपम पूर्ण थाय. एम ईशानदेवलोके पण प्रतरे प्रतरे एज जाग जोजेरा कहेवा. Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 172 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. यावत् तेरमे प्रतरे बे सागरोपम जाजेरा कहेवा. अने जघन्य तो सौधर्म देवलोकना तेरे प्रतरे एक पल्योपम पूर्ण श्रायु जाणवू. अने ईशान देवलोके जघन्यथी एक पल्यो पम उपर पढ्योपमनो असंख्यातमो नाग अधिक एटली स्थिति प्रतरे प्रतरे कहेवी. हवे इंजना लोकपालोनुं श्रायु कहे . सघला इंजना लोकपाल पोतपोताना देव लोकना बेहला प्रतरे इंजना विमाननी फरता चारे दिशाये चार लोकपाल रहे, ते लोकपाल पोतपोताना विमानना धणी , तथापि तेमनुं श्रायु या प्रमाणे बे. सौधर्मे ना सोम अने यम ए बे लोकपाल, उत्कृष्टायु एक पख्योपमनी उपर एक पटयोपमना त्रण नाग मांहेलो एक नाग जाणवू. अने वरुणर्नु देशे जणां बे पट्योप मायु जाणवू तथा वैश्रमण- उत्कृष्टायु बे पत्योपम पूर्ण जाणवू. ईशानेज्ना सोम तथा यमर्नु उत्कृष्टायु एक पक्ष्योपमनी उपर एक पट्योपमना त्रण नाग करीये, तेवा बे जाग जाणवा. तथा वरुण- आयु बे पढ्योपम पूर्ण जाणवू. अने कुबेरनुं बे पट्योपमनी उपर एक पक्ष्योपमना त्रण नाग करीये तेवू एक नाग जाणवू, तथा सौधर्मेजना पुत्र सरखा अपत्य देवो, आयु एक पक्ष्योपम जाणवू. हवे सनत्कुमारादि देवलोके प्रतरे प्रतरे उत्कृष्ट जघन्य स्थिति जाणवा नणी उपाय कहे . जेम के सौधर्मदेवलोके उत्कृष्टी स्थिति बे सागरोपम ने अने सनत्कुमार देवलोके उ त्कृष्टी स्थिति सात सागरोपम डे, तेमांथी बे सागरोपम काहाढीये, बाकी पांच साग रोपम रहे, तेने सनत्कुमारना बार प्रतर जे. तेनो नाग पहोंचे नही, माटे एकेक साग रना बार बार नाग करीये, तेवारे पांच सागरना शाप नाग थाय, तेने बार नागे वहें चतां एकेक प्रतरे पांच पांच जाग आवे, तिहां पहेले प्रतरे एक आंक बे, माटे पांच एकां पांच नाग श्रावे. तेनी साथे सौधर्म देवलोकनी उत्कृष्ठी स्थिति बेसागरोपमबे,ते नेलीये,तेवारे पहेले प्रतरे बे सागरोपमनी उपर बारश्या पांच जाग आयु जाणवू. बीजे प्रतरे बे श्रांक बे तो पांच 5 दश नाग बारश्या आवे,तेवारे बे सागरोपम उपर दशना गायु जाणवू, त्रीजे प्रतरे त्रण आंक , तो पांच त्रिक पन्नर जाग आवे, तेमां बार जागर्नु एक सागरोपम थाय. उपर त्रण नाग वधे, तेनी साथे बे सागरोपम नेलतांत्रण सागरने बारश्या त्रण नागायु जे. एम यावत् बारमे प्रतरे सात सागरोपम उत्कृष्टा यु थाय. अने जघन्य स्थिति तो बारे प्रतरे सनत्कुमार देवलोकनी बे सागरोपमनी जा णवी. तेमज चोथा माहेंज देवलोके प्रतरे प्रतरे सनत्कुमार देवलोकथी साधिक स्थि ति कहेवी. ए प्रमाणे पांचमा ब्रह्म श्रादिक देवलोके पण प्रतरे प्रतरे आयुः जाणवा, माटे एज उपाय करवो, ए सर्वना यंत्रोनी स्थापना आगल करी , ते जोवू. Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 173 बार देवलोक. नव ग्रैवेयक, अने पांच अनुत्तरविमान. एटलां स्थानक एक बीजानी उपर केवी रीते ले ? ते देखाडनारो तथा ते प्रत्येक स्थानके जघन्य उत्कृष्टायु दर्शावनारो यंत्र. बीजा विजयंत विमाने.. जघन्यायु सागर एकत्रीश. | अने उत्कृष्ट सागर तेत्रीश. पहेला विजय विमाने. नवमा श्रादित्य ग्रैवेयके. थाउमा प्रीतिकर ग्रैवेयके. सातमा सौमनस्य ग्रैबेयके. बहा सुमनस ग्रैवेयके. पांचमा विशाल ग्रैवेयके. चोथा सर्वतोन ग्रैवेयके. त्रीजा मनोरम ग्रैवेयके. बीजा शुनकर ग्रैवेयके. पहेला सुदर्शन ग्रैवेयके. बारमा अच्युत देवलोके. अगीयारमा श्रारण्यदेवलोके. दशमा प्राणतदेवलोके. नवमा थानतदेवलोके. आठमा सहस्रार देवलोके. सातमा शुक्रदेवलोके. बहा लांतक देवलोके. पांचमा ब्रह्मदेवलोके. चोथा माहेंज देवलोके. त्रीजा सनत्कुमार देवलोके. बीजा ईशान देवलोके. पहेला सौधर्म देवलोके / त्रीजा जयंत विमाने सर्वार्थ सिफिविमाने. जघन्य सागर एकत्रीश अने अजघन्योत्कृष्ट तेत्रीश उत्कृष्ट सागर तेत्रीश. सागरोपमायु . चोथा अपराजित विमाने. जघन्य सागर 30 ए उत्कृष्ट सागर 31 जघन्य सागर ए उत्कृष्ट सागर 30 जघन्य सागर / 7 उत्कृष्ट सागर ए जघन्य सागर 27 6 उत्कृष्ट सागर जघन्य सागर 26 5 उत्कृष्ट सागर 27 जघन्य सागर 25 4 उत्कृष्ट सागर 26 जघन्य सागर 24 3 उत्कृष्ट सागर 25 जघन्य सागर 23 2 उत्कृष्ट सागर 24 जघन्य सागर 32 1 उत्कृष्ट सागर 23 जघन्य सागर 1 12 उत्कृष्ट सागर 22 जघन्य सागर 20 11 उत्कृष्ट सागर 21 जघन्य सागर ९ए 10 उत्कृष्ट सागर 20 जघन्य सागर र ए उत्कृष्ट सागर रए जघन्य सागर 17 उत्कृष्ट सागर र जघन्य सागर 14 उत्कृष्ट सागर 17 जघन्य सागर 10 6 उत्कृष्ट सागर 14 जघन्य सागर 7 5 उत्कृष्ट सागर 10 जघन्य साधिकसागर 2 4 उत्कृष्ट साधिक सागर जघन्य सागर 3 उत्कृष्ट सागर 7 जघन्य साधिकपल्योपमर 5 उत्कृष्ट साधिक सागर जघन्य एक पक्ष्योपम. / 1 उत्कृष्ट सागर 2 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 174 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. ज्योतिषीदेवोना जघन्य उत्कृष्टायुनो यंत्र. चंडजत्कृष्टा. एक पत्य एकजघन्य पल्य चंजदेवी उत्कृअपत्य पच्चा जघप्यपट्य च लक्षवर्षाधिक.चतुर्थ जाग. टायु सहवर्षाधिक तुर्थ नाग. सूर्यउत्कृष्टायु.एक पट्य सह जघन्यपल्य सूर्यदेवी उत्कृअपत्य पांच जघन्यपल्य च स्र वर्षाधिक. चोथो नाग. ष्टायु. सोवर्षाधिक. तुर्थ जाग. ग्रहउत्कृष्टायु, एकपक्ष्योपमः - जघन्यपल्य ग्रहदेवी उत्कृथर्ड पट्योपम जघन्यपत्य च चोथो लाग. टायु. // तुर्थ नाग.. नक्षत्र उत्कृ अर्धपत्योपम. जघन्यपल्य नत्रदेवी उपल्यनो चोथो जघन्यपल्य च ष्टायु. चोथो नाग. त्कृष्टायु. नाग. तुर्थ नाग. ताराणामुत्कृ पख्य चतुर्थ जघन्यपल्या तारादेवी उ पख्य अष्टम ना जघन्यपत्य ज ___ष्टायु. जाग साधिक. ष्टम नाग. त्कृष्टायु. ग साधिक. नागसाधिक. सौधर्म अने ईशानदेवलोके परिग्रहिता अपरिग्रहिता देवीना चारे निकायना देवोनी आयुनो यंत्र. अग्र महिषीनुं यंत्र सौधर्मपरिण्देवी श्रा० जघन्य पल्योपम. 1 उत्कृष्ट पट्योग सौधर्मेज. अग्रमहिषीन ईशानपरिग्देवी आ जघन्य पदयोग्जाजेलं. उत्कृष्ट पट्योग एईशानें. अग्रमहिषी सौधर्मपरिण्देवी आ जघन्य पत्योपम. 1 उत्कृष्ट पट्यो०५० ज्योतिषीश अग्रमहिषी। शानपरिदेवी श्रा० जघन्य पक्ष्योज्जाजेरु.उत्कृष्ट पट्यो५५व्यंतरें३ अग्रमहिषी। सौधर्मझने श्रायुष्यमांदे केटली देवी थाय? तेहनी संख्या नागकु०१७ अग्रमहिषी६ कहे. बे करोग, पंच्चासी लाख, एकोतेर हजार, चारशेने अबली. अग्रमहिषीय छावीश कीडी उपर सत्तावनलाख चौदहजार बशेने पच्चासी चामरेंड. अग्रमहिषीय एटली देवी सौधर्म इंजना एक जन्मने विषे चवे. हवे सौधर्मदेवलोक प्रमुखने विषे प्रतरनी संख्या कहे जे. 13 सौधर्म श्रने ईशान बे देवलोक प्रतरतेर. 4 सहस्रार देवलोके चार प्रतर. 15 सनकुमार श्रने माहेंजए बेनाबार प्रतर 4 आणत अने प्राणत बेना चार प्रतर. 6 ब्रह्मदेवलोके ब प्रतर. ४ारण अने अच्युत एबेनाचार प्रतर. 5 लांतक देवलोके पांच प्रतर. ए नवग्रैवेयके मली नव प्रतर. 4 शुक्रदेवलोके चार प्रतर. | 1 अनुत्तरविमाने एक प्रतर. ' एम सर्व मली ऊर्ध्वलोकने विषे 65 प्रतर , ते कह्या. Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 175 प्रतर. र 4 mmmmm देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. ___ सौधर्मादि देवलोके प्रत्येक प्रतरे उत्कृष्टायु दर्शावनारो यंत्र. त्यां प्रथम सौधर्म अने ईशान, ए बे देवलोके प्रतर तेर जे तेह आयु लखिये जैये. 56 ए | 10 11 सागर. एक सागरना तेरीया जाग. 46 10 12 1 3 5719 बेदांक. 13 13 13 13 13 | 13 | 13 | 13 | 13 | 13 | 13 13 / सनत्कुमार अने माहेंड, ए बे देवलोके प्रतर बार , तेहने विषे श्रायु. प्रतर. 1 2 3 4 5 6 7 | ए 10 11 12 सागर. 22 3 3 4 4 4 55 6 6 7 बारैया नाग. बेदांक. 12 12 12 12 12 12 12 12 12 12 12 / ब्रह्मदेवलोके उ प्रतरे श्रायुःप्रमाणं. लांतकदेवलोके पांच प्रतरे आयुःप्रमाणं // प्रतर. 3 4 5 6 प्रतर. 1 2 3 4 5 सागर.. 700 ए ए 10 सागर. 10 11 12 13 14 चैया नाग. 030 पांचीयाजाग.४ 32 10 बेदांक. 60 6 0 बेदांक. 5 555 शुक्रदेवलोके चार प्रतरे श्रायुःप्रमाणं. सहस्रार देवलोके चार प्रतरे श्रायुःप्रमाणं. प्रतर. सागर. | 14 15 16 17 सागर. | 17 17 17 चोथीया जाग. चोथीयाजाग. बेदांक. ylylylol बेदांक. आणत अने प्राणतना चार प्रतरे आयुर्मान, आरण अने अच्युते चार प्रतरे आयु. 1 2 3 4 प्रतर. सागर. 17 १ए २ए 20 सागर. चोथीयाजाग. 010 चोथीयानाग. बेदांक. 40 | बेदांक. MDur my mu प्रतर प्र / प्रतर. ou nao con Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सागर. जाग. 276 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. . नव ग्रैवेयके नव प्रतरे श्रायुःप्रमाण. पांच अनुत्तर विमाने श्रायु. प्रतर. | 1 2 3 4 5 ६|3|प्रतर. 23 24 25 26 27 २ज शए 30 31 सागर. | 0 0 0 0 0 0 0 0 0 नाग. बेदांक. J000000000 बेदांक. वैमानिक देवोमां बाशठ प्रतर बे, ते एकेका प्रतरना मध्यनागने विषे एकेक इंड क विमान जे एम सर्व बाशठ प्रतरे बाश इंसक विमान बे. हवे पहेला प्रतरना उस नामे वाटला अकविमानथकी चारे दिशाये बाश बा शठ विमानोनी पंक्ति निकली ने अने बीजा प्रतरना इंधक विमानथकी पूर्वादि चारे दिशाये एकशठ एकशठ विमानोनी पंक्ति नीकली जे. एम प्रतरे प्रतरे चारे दिशानी पंक्तिये पंक्तिये प्रत्येके एकेकु विमान घटामतां जश्ये, तेवारे बेहले बाशरमे प्रतरे अ नुत्तर विमाने इंजक विमानथकी चारे दिशाये चार पंक्ति एकेका विमाननी थ. हवे मध्यनुं विमान वाटवू होय ते पड़ी चारे दिशाये पंक्तिनुं पहेवू एकेकुं विमान त्रिखूणुं होय, पढ़ी चोखूणुं होय, पबी वली वाटतुं होय, पढी वली त्रिखूएं, वली चौ खूणुं होय, पली वाटर्बु होय. ए रीते त्रण प्रकारनां विमानो पंक्तिमां बे. श्रने ए चार पंक्तियोना अांतराने वच्चे जे विमानो बे ते जेम रायणना फूल बूटां बूटां विखरेला जेम तेम पड्यां होय, तेनी पेठे नंदावर्त, स्वस्तिक प्रमुख विविध सं स्थानवालां पुष्पावकीर्ण विमानो बे. तेनी पंक्तियो नथी. सघला वाटला गोल विमानने एक बारणुं होय श्रने त्रिखणा विमानने त्रण बा रणां होय. तथा चोखूणा विमानने चार बारणां होय. पदेला प्रतरना चारे दिशि संबंधि पंक्तिगत एकेकू विमान देवजी नेतेमज बेबे विमान नाग समुउनी चारे दिशाये बे, चार चार विमान यह बीपनी चारे दिशाये बे, तथा आठ श्राप विमान जूतसमुनी चारे दिशाये बे, शोल शोल विमान, स्वयं रमण नामा छीपनी चारे दिशिने विषे जे. तथा एकत्रीश एकत्रीश विमान स्वयंजूरमण समुज्नी चारे दिशाये जे. एम मेलवतां एक दिशानां बाशठ थाय अने चारे दिशानां थाय. तेनी साथे वच्चमानुं इंधक विमान मेलवीये तेवारे श्वए विमान थाय. चोखूणा विमानने चारे दिशाये कांगरा विनानो सादो गढ होय तेने वेदिका कहिये. अने वाटेला विमानने कांगरा सहित कोट होय तथा त्रिखूणीया विमानने तोजे दि Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 177 शाये वाटलां विमान होय ते दिशाये वेदिका एटले कांगरां विनानो कोट होय अने बाकीनी सर्व दिशाये कांगरां सहित कोट होय. श्रावलिकागत विमानोने मांहोमांहे अंतर असंख्याता योजननुं ने श्रने पुष्पाव कीर्णने मांहोमांहे संख्याता तथा असंख्याता योजन- पण अंतर . सौधर्म तथा ईशान, ए बे देवलोकना तेर प्रतर बे. तेमां प्रथम प्रतरनी चार दि शिनी पंक्तिनां विमान श्Yए थाय. तेने मुख्य विमान कहीये. अने बेहला तेरमा प्र तरनी चार दिशिनां पंक्तिगत विमान 201 थाय. तेने नूमि कहिये. ए बेहुने एकगं करतां 450 थाय. तेने समास कहीये. पठी एy अर्ब करीने बेहला तेरमा प्रतर सा थे गुणीये तो श्ए२५ पंक्तिगत विमाननी संख्या थाय. एम सघला देवलोकने विषे ग णित करतां वांवित देवलोकना पंक्तिगत विमानोनी संख्या थाय. हवे जेम सौधर्म तथा ईशान मली बे देवलोकनां पंक्तिगत विमान २ए२५ थया. शेष एएए०७५ पुष्पावकीर्ण विमान जाणवां. सर्व मली 6000000 विमान बे. ते सम जवामां श्राववा माटे सर्व देवलोकोनां वाटलां, त्रिखूणां, तथा चोखूणां अने पुष्पाव कीर्ण विमान संबंधि गणतरीनो यंत्र या पुस्तकमां दाखल कस्यो ने तेजोवो. हवे वैमानिक देवोने विषे प्रत्येक देवलोके विमाननी संख्या कहे जे. देवलोकनां नाम. विमान संख्या. देवलोकनां नाम. विमान संख्या. सौधर्म देवलोके. बत्रीश लाख. सहस्रार देवलोके. हजार. ईशान देवलोके. अहावीश लाख. आणत प्राणत देवलोके. चारसो विमान. सनत्कुमार देवलोके. बार लाख. श्रारण अच्युत देवलोके. त्रणसो विमान. माहेंज देवलोके. आठ लाख. प्रैवेयकना हेठिमत्रिके. एकसो अगियार. ब्रह्मदेवलोके. चार लाख. प्रैवेयकना मध्यमत्रिके. एकसो सात. लांतक देवलोके. पच्चास हजार. |वेयकना उवरिमत्रिके. एकसो विमान. शुक्र देवलोके. चालीश हजार. पांचेअनुत्तर विमाने मली पांच विमान. सर्व मली ऊर्ध्वलोके GUए०२३ विमानो के. ए विमान अत्यंत सुरनिगंध वाला माखणनी पेरे सुकुमार श्रने सुखकारी फरस वाला तथा उद्योतवंत मनोहर एवी दे वोनी पोतानी कांतिये करीने बिराजमान . लोकपालनां विमान बार लाख योजन लांबां पहोलां देवलोकना प्रत्तरमाहे जिहां इंशोनां निजकल्प अवतंसक विमान ,तेनी चारदिशिने विषे चार लोकपालनां विमान बे. जवनपतिना वीशे इंज जंबूलीपने नत्र अने मेरुपर्वतने दंमनी पेठे करवा समर्थ डे. Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. " सौधर्म देवलोके अपरिग्रहीता देवीयोनां 3 लाख विमान बे, ते देववेश्या कहेवाय बे, तेमां पण जे त्रीजा देवलोकनी निश्राये डे, ते त्रीजे देवलोकेज जाय. ईशान देवलोके अपरिग्रहीता देवीयोनां चार लाख विमान बे, तेमां पण जे चोथा प्रमुख देवलोकना देवताउँने जोगयोग्य , ते चोथे देवलोकेज जाय. बधा देवो केटला प्रकारना ? ते कहे . 1 पोते सर्वचारनिकायनामोजाणवा. 5 इंझोना शरीरनी रक्षा करनारा देवो ते 2 सामानिकदेव जे इंजसरखी झहिना अंगरक्षक श्रात्मरक्षक देवो जाणवा.. धणी होय तेने कहेवा. 6 चारलोकपालना देवो ते सोम, यम, वरु 3 इंजसरखी झछिना धणी होय इंजने गुरु ण अने कुबेर ए चार जाणवा. स्थानीयासलाह पूबवा योग्य,सर्वने पूज 7 सात प्रकारना कटकना देवो. नीय जे देवो तेने तायत्रिंशक देवोकहीये 7 प्रजाना देवो. 4 इंडोनी बाह्य अन्यंतर अने मध्य एवी ए श्रानियोगिक ते किंकर देवो. त्रण पर्षदाना देवो. 10 कैदिबषिक देवो. . ए दश जातिना देवो नवनपति, व्यंतर तथा वैमानिकमां बे. नवनपतिनी दश निकायनां आजरण उपर चिन्ह तथा शरीरना वर्ण. दश निकायनां असुर नाग कु सुवर्ण विद्यु अग्नि छीप कुउदधि दिशि वायु स्तनित नाम. कुमार मार. कुमार. त्कुमार कुमारमार. कुमार कुमार कुमार कुमार. श्रारण उपर चूमा गरुम वज्र. पूर्ण कसिंह. घोमो हाथी मछ. वर्षमा चिन्ह. मणि. पंखी. लश. | नसन वस्त्र वर्ण. - रातां नीलां उज्वज्ल नीला नीला नीला नीलां उज्ज्व संध्या उज्ज्वल शरीर वर्ण. कालो गौर. कनक रक्तवर्ण रक्त. रक्त. गौर. कनक नीलो कनक. कटकना देवो सात प्रकारना , ते कहे . पहेला गंधर्वानीक बीजा नटानीत्रीजुं घोचोथु हापाचमुंरपाला सातमुं वृषजनु गांधर्वदेवो ते मृदंगक ते नाटक मानुं क थीनुं कथनुं क | कटक तथा पा धर जाणवा. करनार. टक. टक. टक. कटक. मानुं कटक . ___ एमां प्रथमनां न कटक सर्व सोने होय अने सातमं वृषनन कटक वैमानिक दे वोने होय तथा अधोनिवासी जे जवनति अने व्यंतर देवो ने तेने सातमुं महिषर्नु कटक होय. एम साते प्रकार- कटक सर्व सोने होय. Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. ए अढीवीप समुप्रने विषे चंद्रमा तथा सूर्य केटला ने ? तेनी संख्या कहे . 1 जंबूद्वीपमा बे सूर्य अने बे चंड. अने धातकीखंमना बार मली अढार मे 2 लवण समुषमा चार सूर्य ने चार चंज लवीये, तेवारे 144 थाय, तेमां अच्छीपे 3 धातकी खंममां बार चंड़ ने बार सूर्य. 72 चंड अने 72 सूर्य श्रावे. 4 कालोद समुअमां धातकी खंमना बारने सर्व मेलवतां जंबूछीपना बे, लवण समु त्रिगुणा करतां त्रीश थाय तेमां जंबूही अना चार, धातकीखंमना बार, कालोद स पने लवण समुन्ना बन्नेलीये,तेवारे बेहें मुखना बेहेंतालीश अने पुष्कराईना बहों तालीश चंड अने बेहेंतालीश सूर्य थाय. तेर मली 132 चंड अने 132 सूर्य थाय. 5 पुष्करवर छीपमांधातकी खंमना बेहेंता अढीछीपमा सूर्यनीपंक्ति बे तथा चंडमानी लीने त्रिगुणा करतां 156 थाय तेनी सा पंक्ति बे एकेक पंक्तिमाएकेकने आंतरेबाश थे जंबूहीपना बे, लवण समुज्ना चार गशठ सूर्य तथा बगश गश चंछ . 1 ज्योतिषीनां महा रमणिक स्फाटिकरत्नम 2 तेथकी सूर्य शीघ्र चाले. ... य विमान, अर्का को फलने आकारे . 3 तेथकी ग्रह शीघ्र चाले. 2 ते विमान व्यंतरना नगरोथकी असं 4 तेथकी नक्षत्र शीघ्र चाले. ___ ख्यात गुणां बे. 5 तेथकी तारा शीघ्र चाले. 3 लवण समुज्मा ज्योतिषीनां विमान पा हवे ए ज्योतिषीनी शक्ति कहे . पीने फामी नाखे एवा दिगस्फाटिक र 1 सर्वथकी तारानी खटप शकि. - त्नमय ने तेथी लवण शिखामांथी चा 5 तेथकी नदत्रनी झछि अधिक . . ल्या जता बाधा थती नथी. 3 तेथकी ग्रहनी महोटी कि बे. हवे ज्योतिषीनी शीघ्रशीघ्रतरगति कहे. 4 तेथकी सूर्यनी महोटी शकि.. 1 सर्वथकी थोडो चंजमा चाले. 5 तेथकी चंजमानी महीटी शकि. हवे चंद्रसूर्यादिक ज्योतिषीना विमानवाहक देनोनी संख्या कहे जे. १चंड विमान वाहक शोलहजार देवो . जे ते बराबर सरखे चोथे नागे एकेकी 2 सूर्य विमान वाहक शोलहजार देवो . दिशिये जूदे जूदे रूपे वहे , तेमां चंड 3 ग्रह विमान वाहक आठ हजार देवो बे. माना पूर्व दिशाये सिंहने रूपे तथा दक्षि 4 नदात्र विमान वाहक चार हजार देवो . णदिशे हाथीने रूपे, पश्चिमदिशिये वृष 5 ताराना विमान वाहक बे हजार देवो . जने रूपे अने उत्तरदिशिये अश्वने रूपे 6 ए पांचे ज्योतिषीयोना जे विमान वाहक शार चार हजार किंकर देवो वहे . Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 270 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो.. 1 एक चंजमानी पळवाडे श्रधाशी ग्रह,श्र नी हे चार अंगुल बेटे चाले . तिहां हावीश नक्षत्र, ६६ए७५ एटली कोमा राहु बे प्रकारे ने एक नित्यराहु अने बी कोमी तारा, एटलो परिवार चाले. जो पर्वराहु बे, ते पर्वराहु जघन्यथील 2 राहुनुं विमान काबु डे सर्वदा चंउमा महीने चंड विमानने ग्रहण करे . ज्योतिषी देवोना विमानोनी लंबा पहोलाइ तथा उंचपणानो यंत्र. मनुष्य क्षेत्र मांदेला मनुष्यक्षेत्रथी बाहि मनुष्यदेवथी बा ज्योतिषी विमानोनी लंबाईप विमानोनुं उच्चपरला विमानोनी लंबा हिरला विमानोनुं देवोना प्र होलाइ एक योजन ए॒ योजनना एक पहोला योजनना उच्चपणुं योजनना कार.नाएकशहिया नाग शहिया जाग. एकशहिया नाग. एकशहिया नाग. 1 चंजमा.बप्पन जाग. अहावीश जाग.अहावीश नाग. चौद नाग. 2 सूर्य. अमतालीश नाग. चोवीश नाग. चोवीश नाग. बार नाग. 3 ग्रह. बे गाज. एक. गाउ. एक गाज. अई गाउ.. 4 नदात्र. एक गाज. श्रम गाज. अर्ड गाउ. गाउनो चोथो ना. 5 तारा. थर्ड गाउ. गाउनोचोथोना.गाउनो चोथो नाग. गाउनो श्रापमोग ज्योतिषीनां विमानो समजूतलथकी केटलां ऊंचा डे ? तेना यंत्रनी स्थापना.. समनूतला० तारा. सूर्य. चंड. नदात्र. बुध, शुक्र. बृहस्पति. मंगल. शनि. पृथ्वी थकी. To 100004 | | Gए न्ए नए | ए00 सर्व नदत्रमा सर्वथकी हेठे चरणी नक्षत्र चाले ने अने स्वाति नक्षत्र उपर चाले तथा सर्वथी बाहिर मूल नक्षत्र चाले ने अने सर्वनी वचाले अनिजित्नदात्र चाले . केटला एक समुज संबंधी पाणीना स्वाद तथा तेमां रहेला मत्स्योना __ अल्प बहुत्व अने ते मत्स्यना शरीर माननो यंत्र समुजनां वारुणिव. दीरवर घृतवर लवण कालोद पुष्करव स्वयंजूरम बाकीअसं नाम. र समुन.समुन. समुन. समुज.धिसमुज.र समुज.ण समुज.ख्याता स० पाणी. मदिरास दीरफुध चोखाधु बुणनो मधनो मेहy मेहनुं श्कुरस जे नो स्वाद. मान. नो स्वाद तनोस्वाद स्वाद. | स्वाद- पाणी. पाणी.. वो स्वाद. मत्स्यसंग अल्प. अल्प. अल्प. बहु. बहु. अल्प. बहु. अल्प. मत्स्यदेह तुबदेह अल्पदेह तुब देह 500 | 900ोटोदेह 1000 तुबदेह. मान. मान. मान. मान. योजन. योजन. | मान. योजन. मान. Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. हवे वैमानिक देवोना शरीरनुं प्रमाण,तेमना श्रायु उपर कहे जे. जेम के सौधर्म तथा ईशान देवलोके बे सागरोपम उत्कृष्टायु ने तेमनुं शरीर सात हाथ प्रमाण बे. तो सन कुमार तथा माहें सात सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति मे. तेमांथी पूर्वोक्त बे सागरोपम काढीये,तेवारे शेष पांच सागरोपम रहे, तेमांथी पण वलीत्रण सागरोपमायु वालानुं श रीर मान कहे जे माटे बीजो पण एक आंकडो करीये, तेवारे शेष चार आंक रहे. तिहां सौधर्म तथा ईशान देवलोकना देवोनुं शरीर सात हाथर्नु , तेमांथी उ हाथ पूरा राखीये बाकी एक हाथना अगीयार जाग करीये, ते माहेला चार जाग काहाढी लश्ये. बाकी सात नाग पमता मूकीये तेवारे सनत्कुमार तथा माहेंज देवलोकना त्र ण सागरोपमायुवाला देवोनुं ब हाथ पूरा अने तेनी उपर एक हाथना श्रगीयार जाग करीये तेवारे चार नाग, एटवू देहमान थाय. एम आयुष्य- एकेको सागरोपम वधा रतां शरीरना मानमांथी एक हाथनो अगीयारियो एकेको नाग घटामतां संपूर्ण सात सागरोपम श्रायुवाला देवोर्नु पूरुं ब हाथ देहमान थाय. __तथा ब्रह्मदेवलोके अने लांतकदेवलोके चौद सागरोपमनी उत्कृष्टी स्थिति . तेमां थी त्रीजा चोथा देवलोकनाथआठ सागरवाला देवोनुं आयु कहेवू ,माटे श्राप काहा ढी नाखीये शेष न ांक रहे. हवे एक हाथना अगीयार नाग करीये, तेमांथी पांच नाग पमता मूकीयेबाकी नाग राखीये,तेवारे पांचमा, बहादेवलोकना आठ सागरो पम श्रायुवाला देवोनुं पांच हाथनीउपर एक हाथना अगीधारीया नाग एटवू देहमान जाणवू.ए रीते सर्व देवलोकोनेविषे वर्त्तारो करवो,एनो यंत्र नीचे लखेलो ते जोश लेवो. सामान्यपणे जवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी, अने सौधर्म, ईशान, पर्यंत सात हाथ शरीर जे. उपरांत सनत्कुमारथी मांमी बारमो अच्युतदेवलोक तथा नवौवेयक अने पंचानुत्तरे ज्यां जेटला सागरोपमायु बे, त्यां आ प्रमाणे शरीनुं मान कहे. सागर. 1 2 3 4 5 6 6 ए 10 11 12 13 14 15 16 हस्त. 77 6 6 6 6 6 5 5 5 5 5 5 5 4 4 जाग. 0 0 4 3 2 1 0 6 5 4 3 2 1 0 3 11111111 11 11 11 11 11 11 11 11 11 11 11 11 सागर. 10 10 १ए 20 21 22 23 24 25 26 27 2 ए 30 31 32 33 हस्त. जाग. 103 2 1 0 77 6 54 3 1 1 0 1 0 बेदांक. 11 11 11 11 11 11 11 11 11 11 11 11 11 11 11 11 11 बेदांक. 4 4 3 3 3 3 3 5 5 5 5 5 5 5 5 1 1 Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. सर्व इंशोना सामानिक देवो, गुरुस्थानीया तायत्रिंशक देवो, आत्मरक्षक देवो, लोकपाल तथा पर्षदानी संख्या, कटकना प्रकार कटकाधिपनी संख्यानो यंत्र. ס इंडोनां नाम सामानिकदेव ताय श्रात्मरक्ष. लोकपा. पर्षदा. अनीक. अनीकाधि. चमरेंड. 64000 33 256000 60000 33 240000 धरणे प्रमुख र 6000 33 2000 व्यंतरेंड बत्रीश. 4000 16000 चंजसूर्य 2. 4000 16000 सौधर्मे. 1000 336000 ईशाने. ឬ០០០០ 320000 सनत्कुमारेंज. হuU श्G 000 माहें. 30000 200000 ब्रह्मेज. 60000 240000 लांतकेंज. 50000 200000 शुक्रे. Y0000 160000 सहस्रारेंज. 30000 120000 श्रानतप्राणत. 20000 ឬ០០០០ श्रारण अच्युत. 10000 |33 40000 cccc oceaa سع سع سع سع سع سع سع سع سع سع سع سع سع سع ס ס ס ס ס ס ס ס |aaaaaaaaaaaaaaa ס ס ס ס ס व्यंतर तथा वाणव्यंतर देवोना दक्षिण उत्तर इंश तथा चिन्ह श्रने शरीरना वर्ण. वाणव्यंतरदक्षिणेज. उत्तरेंज. व्यंतरनि दक्षिणेज. उत्तरेज. चिन्ह. वर्ण. अणपन्नी. सन्निहित सन्मान. पिशाच. काल. माहाकाल. कदंबवृद. कालेवणे. पणपन्नी. धाता. विधाता. चूत. सुरूप. प्रतिरूप. शूलसवृदा. कालेवणे. ऋषिवादी इषि. इषिपाल. यद. पूर्णजन. मणिन. वमवृद. कालेवणे. नूतवादी. ईश्वर. महेश्वर. रावस. नीम. माहानीम.खरूंग. धवलवणे कंदी. सुवच. विशाल. किन्नर. किन्नर. किंपुरुष. अशोकवृद. नीलवणे. महाकंदी हास्य. हास्यरति.किंपुरुष. सुपुरुष. महापुरुष. चंपकवृद. धवलवणे कोहंग. श्वेत. महाश्वेत. महोरग. अतिकाय महाकाय. नागवृद. . कालेवणे. पूवक. पूवक. प्लवकपति. गंधर्व. गीतरति. गीतयश. टीबरुवृक्ष. कालेवणे. Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . प्रत्येक देवलोके प्रतरे प्रतरे चतुरस्र प्रमुख जूदी जूदी जातना विमानोनी संख्यानो यंत्र. . . सौधर्मईशाने प्रतर. 1 / 3 / 3 4 5 6 7 ए| 10 11 12 | 13 सर्वसंख्या . त्र्यंश विमान. 4 4 0 0 0 76 6 6 12 12 12 6 6 एज्ज , चतुरस्त्र विमान. 74 0 0 76 76 76 72 72 72 60 60 67 एश वृत्त विमान. जर 1 1 77 77 77 73 73/ 73 6 6 ६ए 65 ए६५ सर्व संख्या. २४ए२४५२४१२३७२३३शएश्श्५२२१२१७२१३ 20 205 201, एश्य सनत्कुमार माहें प्रतर. 1 2 3 4 5 6 7 | |ए। 10 11 12 सर्वसंख्या . त्र्यंश विमान. 67 64 64 64 60 60 6056 56 56 52 55 712 चतुरस्र विमान. 64 64 64 60 60 6056 56 56 52 52 52 ६ए६ वृत्त विमान. 65 65 61 61 61 57 57 57 53 53 53 भए ६ए सर्व विमान संख्या रए 173 १७ए 15 171 177 173167165 / 161157 153 1100 ब्रह्मदेवलोकेप्रतर. 1 2 3 4 5 6 सर्वसं शुक्रदेव० प्र० 1 2 3 4 सर्वसंख्या. त्र्यंश विमान. 52 4 4 4 4 44 शन्ध त्र्यंश विमान. 36 36 3232 135 चतुरस्र विमान. धन ज ज 444444 276 चतुरस्रविमान- 36 32 32 32 132 वृत्त विमान. भए ए 45 45 45 41 4 वृत्त विमान. | 33 33 33 ए| 127 सर्व विमानसंख्या. १४ए 145141130 133 १२ए 34 सर्व विमानसं० 105 101 ए ए३ ३ए६ लांतकदेवलोके प्रण 1 |2|3||5 सर्वसंसहस्रारदे० प्र० 1 2 3 4 सर्वसंख्या. त्र्यंश विमान. 444040 40 36 200 त्र्यंश विमान. 32 श श चतुरस्त्र विमान. 40 40/4036/36 १एर चतुरस्त्रविमान. ज ज ज 24 17 वृत्त विमान. 41 4137 37 37 193 वृत्त विमान. ए ए 25 १०ज सर्व विमानसंख्या. 1251211171931 // 55 सर्व विमानसंग ए ए 332 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 173 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAT थानत, प्राणत दे० प्र. त्र्यंश विमान. चतुरस्र विमान. वृत्त विमान. सर्वविमानसंख्या. ग्रैवेयकपहेलात्रिके प्र० त्र्यंश विमान. चतुरस्र विमान. वृत्तविमान. सर्व विमानसंख्या. ग्रैवेयकमध्यत्रिके प्रतर. त्र्यंश विमान. चतुरस्रविमान. वृत्त विमान. सर्व विमानसंख्या. 123.4 सर्वसंख्या-अरणअनेअच्युतदे. 1 2 3 4 सर्वसंख्या. 24 25 24 0 ए व्यंश विमान. 2020 26, 26 2 24 25 20 20 चतुरस्र विमान. 2016 16 16 67 25 1 1 25 वृत्त विमान. 17 17 17 13 64 73 665 61 260 सर्व विमानसंख्या. 57 53 ए 45 4 1 2 3 सर्वसंख्या. अवेयक परिमत्रिके प्र.१ 2 3 सर्वसंख्या. 16 12 12 ४०व्यं श विमान. G|44 16 12 12 12 36 चतुरस्त्र विमान. 4|44 12 13 13 ए 35 वृत्त विमान. |41 3 33 111 सर्व विमानसंख्या. 17 13 ए ३ए सर्वसंख्या.| पंचानुत्तरविमाने प्रतर. / 1 सर्वसंख्या. 12 त्र्यंश विमान. चतुरस्र विमान. वृत्त विमान. 25 1 5 / सर्व विमानसंख्या. राज 4 देवाधिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 24 वैमानिकमा प्रत्येक देवलोके वाटलां, त्रिखूणों, चौखूणां अने पुष्पावकीर्ण विमानोनी संख्यानो यंत्र. देवलो सौधर्म ईशान सनत्कुण्मांहें ब्रह्म लांतके शुक्र.सहस्रा.भा.प्रा.आ.अधोमध्य उप० पंचा सर्व संख्या. वाटलां० 2 | 230 52 | 170 20 173 | २१ज 17 / 64 35 23 14 1 / खुणां. ए४ | ४ए। 355 | 356 र 200 | 136 116 / ए २४०|शज 16 / / श्य चोखूणां 6 | 46 34 | 34 276 192 132 107 / 60 36 4 1 0 / 264 Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रातो. 600 धोलो. धोलो. Joo Goo EE. Goo 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 वैमानिक देवोनां चिन्द तथा मुख्य विमानतुं नाम तथा विमानोना वर्ण अने विमानोनुं जंचपणुं . * तथा पृथ्विपिंग ते कया देवलोके केटलो उंचपणे जे ? तथा तेमनां विमान शेने आधारे रह्यां बे ? तेनो यंत्रः . देवलोकनाम शेनेथाधारेंरह्या. चिन्ह. विमान पृश्विपिंग उंचपणुं. विमान वर्ण. | कालो. नीलो. रातो. पीलो. धोलो. सौधर्मदेवलोक. घनोदधि आधारे.मृगर्नु. सर्वतोज 500 | कालो. नीलो. | रातो पीलो. धोलो. शानदेवलोक घनोदधि आधारे.महिष. विमल. / VI00 कालो. नीलो. रातो. पीलो. धोलो. सनत्कुमारदेव. घनवात आधारे. वाराह. मनोरम. 2600 नीलो. पीलो. धोलो. माहेंजदेवलोक.घनवात आधारे.सिंह. प्रियंगम. 2600 600 नीलो. पीलो. ब्रह्म देवलोक. घनवात आधारे.बकरो. कामग. 2500 पीलो. लांतकदेवलोक घनोदधि घनवात देडको. नंदावर्त्त. 2500 पीलो. 'शुक्र देवलोक. घनोदधि घनवात.अश्व. श्रीवत्स. 2400 पीलो. सहस्रारदेवलो. घनोदधि धनवात.हाथी. सौमनस्य. 2400 ថ០០ आनतदेवलोक आकाशने आधारे सर्प. पुष्पकवि 2300 ए० प्राणतदेवलोक आकाशने श्राधारे गेंमो. 2300 . आरणदेवलोक आकाशने आधारे वृषन. पालक. 2300 ए०० अच्युतदेवलोक आकाशने आधारेमृगविशे. 2300 ए० नवग्रैवेयक. आकाशने श्राधारे 0 / 2200 1000 पंचानुत्तरविमा-श्राकाशने आधारे / 100 110000 धोलो. 1 एक लवण समुषमां जंबूझीप सरखा चोवीशखंड समाय. 1 जेवा विमानोना वर्ण तेवाज ते विमानोनी ध्व 2 धातकी खंडमां जंबूहीप सरखा 144 खंड समाय. | जाऊना वर्ण पण जाणी लेवा. 3 कालोद समुपमां जंबूहीप सरखा 672 खंड समाय. | नवनपति, व्यंतर अने ज्योतिषी देवोना विमा 4 पुष्कराईमां जंबूझीप सरखा श्वन्ध खंग समाय. नो को कालां, को नीलां, को पीलां, कोश -5 श्राखा पुष्कराईमां जंबूद्वीप सरखा 11904 खंड समाय. रातां अने कोश् श्वेत एम विविध वर्ण वालांडे. देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. OD Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 1 सौधर्म ईशान देवलोके दक्षिण दिशिना / पूर्वपश्चिमे जे श्रावलिकागत त्रिंशचतुरस्त्र विमानोनी पंक्ति ते दक्षिणेजनी जाणवी. विमान, ते बेहु इंडोनां अर्कोअर्ड डे. श्उत्तरदिशिना विमानोनी पंक्ति उत्तरेंनी. 5 पूर्वपश्चिमे जे वचला मध्यनां इंकवृत्त 3 पूर्व अने पश्चिम दिशाये जे श्रावलिकाग विमान बे, ते सर्व दक्षिणेजना बे. त वाटलां विमान , ते सर्व दक्षिणेजनां. 6 पुष्पावकीर्ण विमान अर्कोथर्ड जे. वैमानिकदेवोमा प्रत्येकदेवलोके विमानोनीसंख्याश्राणवामाटे मुख नूमिसमासादिनोयंत्र देवलोक नाम. सौधर्मेशान. सनत्कुमाहें ब्रह्म देवलोक. लांतकदेवलोक. शुक्रदेवलोक मुख. 14 नूमि. 153 10 // समास. 250 350 रएन तदई. 175 13 प्रतरे गुणवाना. श्रावली संख्या. शएश्य 1100 एज्य पुष्पावकीर्ण. एएए०७५ एएएए एए१६६ भए४१५ ३ए६०४ सर्वसंख्या. / 6000000 2000000 00000 50000 Y0000 सहस्रार दे पानत प्रा आरण अधो ग्रैवेमध्य ग्रैवेऊवं ग्रैवे पंञ्चानु ऊर्ध्वलोके स वलोक. पत. / च्युत. यकत्रिक. यकत्रिक. यकत्रिक. त्तर. 4 संख्या. 7 . 41 २४ए 17 24 201 125 105 ए३ 234 225 . एए ३ए६ 3B 166 Peanumaal w.coach 67 51 37 254 127 You U६दन 332 २६न 204 उ०७४ 13 ए६ 3 2 61 वज्रए 6000 400 300 191 107 100 5 ए०२३ हवे नवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी थने पहेला बीजा देवलोकना देवो कायाये करी सं जोग सेवे . मनुष्यनी पेठे जोगवे , परंतु मनुष्यने, स्त्रीनी सेवा करतां वीर्य खरे एटले कामथी निवृत्ति पामे अने देवताने वीर्य होय नही,माटे अतृप्ताज होय. जेवारे क्यारेक मन निवर्ते, तेवारेज संजोग न होय, नहींकां अतृप्ता थका सर्वदा जोग लोगवताज रहे. Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. (01 त्रीजा चोथा देवलोकना देवो मुख, हाथ, नख, स्तन प्रमुखना फरसे संजोग सुख पामे. पांचमा बहा देवलोकना देवो देवांगनानां रूप देखी संजोगसुख पामे. सातमा थाठमादेवलोकनादेवो देवांगनाना गीत,हास्यना शब्द सांजलीनेसंजोगसुखपामे उपरांत आणतादि चार देवलोकना देवता तो पोताने स्थानके रह्या थकाजजे देवांगनानी मनमां चिंतवणा करे, तेवारे ते देवी पण पोताने स्थानकें बेठी नलीबुरी कामचेष्टा मनमा धरतीनोग माटे सावधान थाय,तेवारे ते देवो तिहांज रह्या मनःसंकल्पे सुरत सुख पामे. नवग्रैवेयक तथा अनुतरविमानवासी देवोने विषयविकार अल्प , तेश्री ते कोश रीते देवांगनाने सेवता नथी तथापि तेमने सुख बीजा देवोथी पण अनंतगुणुं बे. सौधर्म तथा ईशान देवलोकनी देवि कया देवलोकवालाने केटला आयुवाली नोग मां आवे? तथा ते देवोने जोगनी श्छा केवी रीते पूर्ण थाय ? तेनो यंत्र, जवनपति,व्यंतर अने ज्योतिषी देवो सर्व काय सेवी.अने वैमानिक देवोनो यंत्राप्यो. सौधर्म. 1 पट्यो 1 काय नोग सेवी. ईशान. शपल्यो र काय लोग सेवी, सनत्कु० 3 पक्ष्योग १०फरसजोग सेवी. माहेंज. ४पल्योप०१५ फरसजोग सेवी. ब्रह्मदेव. 5 पट्यो २०रूपदेखी जोगसेवी.लांतक. ६पल्योप०२५ रूपदेखी जोग सेवी. शुक्रलोक. पट्यो 30 शब्दनोग सेवी. सहस्रा, जपव्योप०३५ शब्दसंजोग सेवी. आनत. एपल्यो ४०मनेकरी,मनसेवी. प्राणत. 10 पट्योप०४५ मनेकरी नोग सेवी. श्रारण. 11 पट्योग५० मनेकरीनोण्मनसे.अच्युत.१शपठ्योप०५५ मनेकरी जोग सेवी. सौधर्म तथा ईशान देवलोकनी देवीयोनुं गमनागमन कया कया देवलोक सुधी ने. तेनो ___ यंत्र तथा त्रण प्रकारना किदिबषीया देवोनुं आयु अने उत्पत्ति स्थाननो यंत्र. सौधर्मदेवलोकनी. / 1-2-3-4 किल्बिषी देवोनुं आयुष्य. उत्पत्तिस्थान. देवीनुं गमनागमन. ५-६-७-जकिल्बिषी देवोन-पत्य.३ ईशान देवलोकनी. 1--3-4 किल्बिषी देवोर्नु.सागर.३ सनत्कु० माहेंजनीचे. देवीनुं गमनागमन. ५-६--किटिबषी देवोनु.सागर.१३ ब्रह्मलांतकनी नीचे. हवे किब्बषीया देवोनो अधिकार कहे . ए देवो अशुजकर्मना उदयथी देवतामांहे चंगाल सरखा जाणवा, तेमनां स्थानक कहे बे. 1 जे देवो सौधर्म तथा ईशान देवलोकने तले वसे , तेनुं त्रण पक्ष्योपमायुं बे. 2 जे देवो सनत्कुमार देवलोकने तले वसे बे, तेनुं त्रण सागरोपम श्रायु . 3 जे देवो लांतक देवलोकने अधोजागे वसे , तेनुं तेर सागरोपमायु . Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. हवे वैमानिक देवोनां शरीरना वर्ण कहे बे. 1 सौधर्मशान ए बे देवलोकना देवोनां शरीर सुवर्ण सरखी कांतिवालां . २त्रीजा चोथा अने पांचमा देवलोकना देवोनां शरीरनी कांति कमलना केसराजेवी. 3 बहा लांतक श्रादिक सर्व देवोनां शरीर एक बीजाथी उत्तरोत्तर उज्ज्वल उज्ज्व लतर अने उज्ज्वलतम शरीरवाला जाणवा. __हवे लोकांतिक देवोनुं खरूप कहे . श्रा जंब्रहीपथकी असंख्याता द्वीप समुद्र उलंघीये, तेवारे अरुणवर नामा द्वीप नी वेदिकाना बेहेमाथी अरुणवर नामा समुजमां बेहेतालीश हजार योजन जश्ये, तिहां पाणीनी उपरना तलीयाथी उंचो अपकायमय महांधकाररूप तमस्काय निकल्यो बे, ते अगीयारसो योजन सुधी नीत सरखो थश्ने पनी तीर्थो विस्तार पामतो पामतो सौध र्मादि चार देवलोकने आवरी उँचो ब्रह्मदेवलोकना अरिष्टनामात्रीजा प्रतरे जश् रह्यो बे. हवे पांचमा देवलोकनो जे बीजो प्रतर जे तेना अरिष्ठनामा विमाननी चारे दि शाये सचित्त पृथ्वीमय बेबे कृष्णराजियो बे, . एम चारे दिशिनी आठ कृष्णराजि नाटकना अखामाने आकारे बे, ते आठे कृष्ण राजिना श्राप थांतरामां आठ विमान बे. अने नवमुं कृष्णराजिनी वचमां मध्यनागे विमान . ए नव विमानवासी देवो ते ब्रह्मलोकना समीपे वसे, माटे लोकांतिक देवो कहेवाय अथवा वचला मध्यनागना विमानवासी देवता सर्व एकावतारी माटे लो कशब्दे संसार, तेने अंते थया, माटे लोकांतिक देव कहेवाय बे. बीजा आठ विमानमां वसनारा देवता एकांते एकावतारी न होय पण नवमा वि मानना देवो एकांते एकावतारीज होय, ए नव प्रकारना लोकांतिक देवो. पांचमा देव लोकने बेहडे वसे , तेमनुं श्राप सागरोपमायु दे. तेमना विमानोनां नाम तथा पो तानॉ नाम अने जेमने जेटला देवोनो परिवार , तेनी संख्या नीचे लखीये बैये. विमाननांनामदेवोनां नाम.परिवार संख्या.५ चंज्ञानवि० गईतोय देव. सात हजारदेव 1 अर्चि वि० सारखत देव.सातशे देवो. 6 सूर्याजवि तुषित देव. सातहजारदेवो 2 अर्चिमाली आदित्य देव.सातशे देवो. 7 शुक्रानवि श्रव्याबाधदेव नवशे देवो. 3 वैरोचन. वन्दि देव. चौदशे देवो. सुप्रतिष्ठान. आग्नेय देव. नवशे देवो. 4 प्रनंकर. वरुण देव. चौदशे देवो. ए रिष्ठाजवि० रिष्टाल देव. नवशे देवोपरि. हवे पीस्तालीश लाख योजनना त्रण पदार्थ , तेनां नाम कहे . . 1 सीमंतनामे नरकावासो.५ मनुष्यवेत्र बढीछीपप्रमाण.३ उडुविमान. सिझशिला. Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. नए ___ हवे त्रण पदार्थ एक लाख योजनना बे, ते कहे ने, 1 अपश्हाणो सातमा नरकनो नरकावासो, 5 सर्वार्थसिद्ध विमान, अने 3 जंबूझीप. हवे देवता कहेवा होय? तेनुं स्वरूप कहे बे. 1 सर्व देवता शुजकर्मना उदयथी केश, हाम, मांस, दाढी मूंबना रोमनी वृद्धि, नख, रुधिर, वसा, चरबी, चाममी, मूत्र, विष्टा, एणे करी रहित निर्मल होय अने कर्पूर, कस्तूरीना सुगंध सरखो मुखनो निःश्वास होय, रजःप्रखेदादिक उ पलेप रहित, कास श्वासादिक रोग रहित निरुज होय. तेजवंत शरीर होय. 2 उपजती वेलाये शालिन प्रमुखना पितानी पेठे अंतरमुहूर्त्तमांहे पर्याप्ति पूरी करी पनी तरुण पुरुष सरखा निरंतर होय. 3 उपजतांज शरीरने विषे सर्व आजूषण पहेस्यां थकां उपजे. 4 सदा यौवनावस्था रहे, पण क्यारे वृद्धावस्था न श्रावे. 5 समचतुरस्र संस्थान होय. 6 आंख मटकावे नही निरंतर उघामी रहे. 7 फूलनी माला पहेरेली कुमलाय नही. 7 चार आंगुल धरतीथी उंचा चाले. हवे जे कारणे देवोने मनुष्यलोकमां आवतुं पडे, ते कारणो कहे . 1 श्रीतीर्थकरना पांच कल्याणिके आवे. महाषीश्वरनी तपस्याना प्रनावे श्रावे. 3 जन्मांतरना स्नेहथी श्हां श्रावे. 4 संगमानी पेठे क्रोधथी हां आवे. 5 शीलना प्रनावे आवे, सुजना शेगणी माटे आव्या तेनी पेठे जाणवू. हवे देवता इहां कारण विना शामाटे न श्रावे ? ते कहे . 1 देवांगनाना प्रेममा मग्न रह्या ने माटे. 2 विषयसुखमा घणा शासक्त माटे. 3 मनुष्यने आधीन रहेवानुं काम नथी. 4 श्हां जेवारे मनुष्य, तिर्यंचनां कलेवर घणामुवेलांहोय,तेवारे पांचशे योजन गंध उंचो जाय अशुन गंधजाणे माटे नावे, हवे वैमानिक देवोना अवधिज्ञाननी स्थिति कहे . . 1 सौधर्मदेवलोकना देवता तीळ असंख्याता छीप समुज देखे अने उपरला देवता तेथी घणा असंख्याता द्वीप समुत्र देखे.अने उंचं पोताना विमाननी चूलिका ध्वजा सुधी देखे. हवे नीचे क्यांसुधी देखे ? ते कहे . 1 पहेला बे देवलोकवाला पहेली नरक लगे देखे. 5 त्रीजा चोथावाला बीजी नरक लगे. 3 ब्रह्मांतक वाला त्रीजी नरक लगे देखे. 4 शुक्रसहस्रार वाला चोथी नरक लगे देखे. 5 श्राणतादि चारवाला पांचमी नरक लगे देखे. 6 ब ग्रैवेयकना देवो बहीनरक लगे देखे. 7 उपरला त्रण अवेयक सातमी लगे देखे. 7 अनुत्तरना देवो कांश्क जणुं लोकनाल देखे Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ए देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यत्रो. हवे सामान्यथी शेष देवोनो अवधि कहे . 1 जे सागरोपमथी किंचित् न्युन आउखावाला एवा नवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी दे वता ले ते अवधिझाने करी संख्याता योजन पर्यंत देखे. 2 अर्ब सागरोपमथी वधता आउखावाला देवता असंख्याता योजन पर्यंत देखे. 3 जघन्यथी दश हजार वर्षायुवाला एवा जवनपति व्यंतर पच्चीश योजन लगे देखे. 4 नवनपति व्यंतर देवो ऊंचुं घणुं देखे, सौधर्म देवलोक सुधी देखे. 5 वैमानिक देवो नी चुं घणुं देखे. 6 नारकी अने ज्योतिषी तीहूं घणुं देखे. 7 मनुष्य तिर्यंचने अनेकरीते अव घि ज्ञान होय. श्हां सुधी देवोनुं श्रायु तथा शरीरमान प्रमुख केटलि एक वातो कही. हवे नारकी जीवोना आयु प्रमुख कहेवा माटे प्रथम आयु कहे . सामान्यथी जघन्योत्कृष्टायु साते नरकनुं प्रथम पांत्रीशकारना अधिकारे कहेवाणु बे, अने इहां पाथडे पाथडे प्रथम उत्कृष्टायु कहे बे. रत्नप्रजाना तेर पाथमा मांदेला पहेले पाथडे नेवं हजार वर्ष, बीजाने विषे नेवं लाख वर्ष, त्रीजाने विषे एक पूर्वकोटि वर्ष, चोथाने विषे एक सागरोपमना दश जाग करीये तेवो एक जागायु अने पांचमाने विषे वे नाग एम पाथडे पाथडे एकेक जाग वधारतां यावत् तेरमे पाथमे संपूर्ण एक सागरोपम उत्कृष्टायु थाय बे, अने जघन्यायु तो पहेले पाथडे दश हजार वर्ष, बीजे पाथमे दशलाख वर्ष, त्रीजे नेवं लाख वर्ष, चोथे पाथमे एक पूर्वकोटि वर्ष, पांचमे एक सागरोपमना दश नाग करीये तेवो एक नाग पनी पाथडे पाथडे एकेको नाग वधारतां यावत् तेरमे पाथमे एक सागरना दशैय्या नवजाग आयु थाय. हवे बीजी नरकपृथ्वीश्रादिकमां उत्कृष्टी श्रायुःस्थिति प्राणवाने अर्थे उपाय कहे बे. शर्करप्रजाने विषे उत्कृष्टी स्थिति त्रण सागरोपम , तेमांथी रत्नप्रजाने विषे उत्कृ ष्टी स्थिति एक सागरोपमनी ते काढीये, तेवारे शेष बे सागरोपम रहे, ते बे साग रोपमने शर्करप्रनाना अगीयार प्रतरे जागापीये,तेवारे एक नागमा एक सागरोपम ना अगीयारीया बे नागावे, ते बेने वांबित प्रतर साथे गुणीये, तेवारे प्रथम प्रतरे एकनी साथे गुएयां थकां बे जागज श्रावे. तेनी साथे वली रत्नप्रजा पृथ्वीने विषे उत्कृ ष्टी स्थिति एक सागरोपमनी देते नेलीये, तेवारे प्रथम प्रतरे एक सागरोपमनी उपर एक सागरोपमना अगीयार जाग करीये, तेवा बे नाग श्रावे. एटली शर्करप्रजानाप्र थम प्रतरे उत्कृष्टी श्रायुःस्थिति जाणवी, पनी प्रतरे प्रतरे बेबे नाग वधारतां यावत् Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 21 श्रगीयारमे प्रतरे पूर्ण त्रण सागरोपम श्रायु थाय, अने पहेला प्रतरनी उत्कृष्टी स्थि ति तेटलीज बीजे प्रतरे जघन्य स्थिति होय. एम सर्व प्रतरे कहे. एमज त्रीजी वालुकाप्रनाने विषे सात सागरोपम उत्कृष्टायु बे, तेमांथी शर्करप्रजा ना त्रण सागरोपम काढीये, शेष चार सागरोपम रहे. ते त्रीजी पृथ्वीना नव प्रतर बे, तेनी साथे वहेंचीये, तेवारे एक नागमां एक सागरोपमना नव नाग करीये, तेवा चार जाग श्रावे. तेनी साथे शर्करप्रनानी उत्कृष्ट स्थितिना त्रण सागरोपम मेलवीये, एटवू प्रथम प्रतरे उत्कृष्ठायु होय, तेम बीजे प्रतरे त्रण सागरोपमनी उपर श्राप नाग थायु होय यावत् नवमे प्रतरे सात सागरोपमायु पूर्ण थाय,श्रने जघन्यायुपूर्वली रीते कहेg. प्रत्येक नरके प्रतरे प्रतरे जघन्योत्कृष्टायु जाणवानो यंत्र. रत्नप्रजाप्रतर. 1 2 3 4 5 6 7 ए 10 जघन्यसागर. दशस. दशला नेबुला पूर्वको 0 0 0 0 0 0 दशैयाजाग. 0 0 0 उत्कृष्टसाग. नेवंस. नेबुला पूर्वको 0000 दशैयाजाग. 0 0 0 1 2 3 शर्करप्रनाप्र० 1 2 जघन्यसागर. 1 2 जघन्य. 12 अग्यारियाना / 7 ए उत्कृष्ट. 33 उत्कृष्टसागर. 1 अग्यारियाना 2 वासुप्रनाप्रण जघन्यसागर. 3 / 6 6 जघन नवैयाजाग... 0 | 15 त्रा. उत्कृष्टसागर. नवैयाजाग. 161 50 त्रा. पंकप्रजाप्रत जघन्यसागर. 7 ए ए जघन्य 10 11 15 सातैयाजाग. 514 पांच-१४ उत्कृष्टसागर. 7 ए ए 10 उत्कृष्ट 12.15 14 सातैया नाग. 3 514 पांचै०२४१ 3 | 0 / तमस्तक apna Face Dr Mor Mor mom DRD Dur my ~20 ~ w mo ng bom now box MA3D303 PM 7r Bommr Mor MuS3ur Poem D Dm Dr.wor mp3rMDP Famac accucc cax xcc * * * * 2 o_u_pi_ar aor D 2/ur ID 2 * 7 Porn P my ow or P . n er . e rs or not to be n: ~ ~ ~ 2m . or . www * Pr Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रए देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो.. हवे साते नरके मली चोराशी लाख नरकावासा बेते सर्व मांहेली बाजुये गोल बे, बा हेर चोखुणा , हेठे धरतीनुं तलीयुं पाषाणनी धार सरखं बे, ते अत्यंत पुगंधमय . हवे ए नरकावासार्नु आयाम, विष्कंन अने उंचपणुं कहे जे. सर्व साते पृथिवी सं बंधि नरकावासा त्रण त्रण हजार योजन ऊंचपणे बे. तेमा एक हजार योजन नीचे बे, अने एक हजार योजन वचमा पहोला . तथा एक हजार योजन उपर पृथ्वी पिंड बे, तेमज पहोला अने लांबा असंख्याता योजन . मात्र रत्नप्रनाने पहेले पा थमे सीमंतो नरकावासो , ते पीस्तालीश लाख योजन लांबो पहोलो डे अने सा तगी नरकनो अपश्हाणो इंडक नरकावासो एक लाख योजन लांबो पहोलो . . हवे पाथमानुं मांहोमांहे अंतर कहे. रत्नप्रना पृथिवीये 17000 योजन पृथ्वीपिंग बे, तेमांथी एकेक हजार योजन नीचे उपरथी काढीये, बाकी 29000 रहे, तेमांथी तेर पाथमानी जंचाश्ना 3000 योजन काढीये बाकी 130 योजन रहे, ते तेर पाथडाना आंतरा बार थाय, तेनी साथे वहेंचीये तेवारे एक नागमा 19503 योजन नी उपर एक योजनना बार जाग करीये, तेवा चार नाग आवे, एटवू पहेली नरक ना प्रतरे प्रतरे अंतर , एमज बीजी नरक प्रमुखने विषे आंतरानुं गणित करवं. ___ पहेली नरकना बार आंतरामा पहेलो तथा हलो ए बे आंतरा शून्य से अने शेष दश ांतरामां जुवनपति देवोनी दश निकाय बे, पण बीजी श्रादिक नरक पृथि वीना श्रांतरा सर्व शून्य जाणवा. एना यंत्रोनी स्थापना नीचे करी डे ते जोश मेवी. हवे साते नरकना प्रत्येक प्रतर मांहेला मध्यना वचला इंडक नरकावासाथी चार दिशाये चार श्रेणि अने चार विदिशाये चार श्रेणि एम आठ श्रेणि नरकावासानी निकली , तिहां पहेले पाथडे प्रत्येक चार दिशानी एकेक श्रेणिमां जंगणपच्चास नर कावासा ने अने चार विदिशानी प्रत्येक श्रेणिमां अडतालीश नरकावासा . पळी पाथ डे पाथमे एकेक नरकावासो घटाडतां यावत् सातमी नरके उंगणपञ्चासमे प्रतरे चारे दि शानी पंक्तिमा एकेक नरकावासो डे अने विदिशानी पंक्तिमां नरकावासो नथी तेनी साथे एक मध्यने इंजक नरकावासो मेलवीये, तेवारे सातमी नरके पांच नरकावासा . रत्नप्रजा पृथ्वीने पहेले पाथमे चारे दिशिना रए६ अने चार विदिशाना रए तथा एक वचमांनो मेलवतां ३ए पंक्तिगत नरकावासा थाय. पनी बीजे पाथडे चार दि शिना चार अने चार विदिशिना चार मली आउ घटे, तेवारे 371 थाय. एम त्रीजा आदिकमा श्राप आउ घटावतां यावत् गणपच्चासमे प्रतरे पांच नरकावासा पंक्तिगत रहे, शेष्य नरकावासा सर्व पुष्पावकीर्ण जाणवा. अथवा श्रावलिकागत नरकावासा Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 253 जाणवानो उपाय कहे . पहेली नरकना पहेला पाथमाना नरकावासाने मुख्य क हीये अने पहेली नरके तेर पाथमा , माटे तेरमा पाथमाना नरकावासाने नूमिक हीये, ए बेनो शरवालो करी तेनुं अर्ड करी वांबित प्रतरे गुणीये, तेवारे ते प्रतरना पंक्तिगत नरकावासानी संख्या आवे. एना यंत्रो दाखल करेला बे, ते जो लेवा. __रत्नप्रनाने पहेले कांगे रत्न घणां बे, माटे एनुं रत्नप्रना गोत्र कहीये, बीजी शर्क राये कांकरा घणा , त्रीजी वालुकाये वेलु एटले रेती घणी बे, चोथी पंकप्रनाये का दव घणो डे, पांचमी धूमाये धूम्र घणो बे, बही तमःप्रजाये अंधकार घणो बे, अने सातमी तमस्तमःप्रनाये अंधकारनुं बहुलपणुं , एम साते नरकना गुण निष्पन्न गोत्र बे. ए सात नरक संबंधि गोत्रना हेतु जाणवा. सात नरकनां नाम, गोत्र, नरकावासानी संख्या, प्रतरसंख्या, पृथ्वीपिंग, सामान्य थी जघन्य उत्कृष्टायु, तेमज देहमान, अवधिज्ञाननुं देत्र, एक नारकी उपना .. पली बीजो नारकी केटले काले उपजे, तेनो विरहाकाल ए सर्वनो यंत्र. साते नारकीनांसात नारकीनां नरकावासानी प्रतरसंपनरकनुं उंचपणुं सामान्ये ज .. नाम. गोत्र. संख्या. पाथमा. पृथ्वीपिंग. घन्यायु. रत्नप्रना. 3000000 10000 दश हजारवर्ष. वंशा. शर्करप्रना. 2500000 132000 एक सागर. शैला. वालुकप्रजा. 1500000 12000 त्रण सागर. अंजणा. पंकप्रना. 1000000 120000 सात सागर. धूमप्रजा. 300000 11000 दश सागर. तमःप्रत्ना. ՍՍՍՍԱ 196000 सत्तर सागर. माघवती. तमस्तमप्रना, 10 बावीश सागर. सामान्येउत्कृ सामान्य देहमा उत्कृष्ट वैक्रिय उत्कृष्ट अवधि जघन्य विरउत्कृष्ट विरह टायु. न धनुष्य. - देहमान. ज्ञानके० दे० हकाल. | काल एक सागर. धड अं० ६ध० १५॥अं 12 गाज.४ एक समय. चोवीशमुहर्त्त त्रण सागर. ध.१५॥ अं. 12 ध० 3 // गाउ. 3 // एक समय. सात दिवस. सात सागर. ध०३१॥ ध० 62 // गाउ. 3 एक समय. पन्नर दिवस. दश सागर. ध० 6 // ध० 125 गाज. // एक समय.एक मास. सत्तर सागर. ध० 125 ध० 250 गाज.२ एक समय बे मास. बावीश सार. ध० 250 ध० 500 गाज. 9 // एक समय चार मास. तेत्रीश सागर.ध० 500 ध० 1000 गाज. 1 एक समय. मास. घम्मा . रिहा. मघा. 51 / Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. साते नरकमा गणपञ्चास प्रतरे दिशि अने विदिशि संबंधी नरकावासानी पंक्तिनी संख्यानो तथा एकंदर पंक्तिगत नरकावासानी संख्यानो यंत्र. प्रतर. 1 2 3 4 5 6 7 ए / 10 / 21 विशि. | Hए 44746 45 4443 424140 विदिशि. 46454443 42414035 30 सर्वसं० 30 31 373 365 357 ३४ए 341 333 325 317 ३०ए 15 / 13 | 14 15 16 17 / 17 १ए 20 / 1 / 22 / 23 / 24 3037 36 35 34 | 33 33 31 30 / ए 33 33 31 ए| | 2726 25 But | PU31 giu gin gay ga qua ngu| BAI H9 sgk g3 | Luu 3 // | 25 24 23 2 1 | 20 ए 17 व० 2413 / 22 2 20 ए 17 17 15 14 सर्व. एएए 11 173 / 165 157 १४ए 241 133 125 117 १०ए | 4| 46 / 47 4 Samaya 17/ H 4 12 / 11 / 10 ए 7 7 6 5 5 3 2 1 0 11 / ए३ | 5 | 7 | 6 | 61 53 - 45) 37/ ए 1 13 / सात नरक पृथिवीमां श्रावलिकागत नरकावासानी संख्या प्राणवा माटें मुख, नूमि समासादिक करणनो यंत्र तथा पुष्पावकीर्ण नरकावासानी संख्या पृथिवी. 1 रत्नप्र०५ शर्करा 3 वाबु पंकप्रण्५ धूमप्र०६ तमःप्र०७ तमस्त० सर्वसं० मुखानि. ३ए 275 रए 125 ६ए / ए ३ए नमयः / श्ए३ 205 133 7 37 13 समास. 62 भए 330 202 106 42 समासा 341 245 165/ 11 53 / 1 रए प्रतराः ४ए पंक्तिगत. 4433, २६एए 145/ 0, 265 63 ए६५३ पुष्पाव० | 2995567 2497305/1498515 ९९९२९३|शएए७३५ एएए३५ शरवाले. 3000000 2500000 1500000 1000000300000 एएएए 5 ३ए। 8390347 8400000 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज बनारकीना पृथ्वीपिंगमांथी नीचें तथा उपरना एकेक हजार योजन न्युन करवा अने सातमी नरक, पृथ्वीये सामी बावन हजार योजन नीचें अने सामी बावन हजार योजन उपर मूकीये. तेवारें बाकी - त्रण हजार योजन रहे. तेमां एकज पाथडो बे.शेष ब नरक पृथ्वी संबंधि पाथमाना आंतरानो यंत्र. . नरकनां नाम. रत्नप्रजा. शर्करप्रना. वावुकप्रना. पंकप्रना. धूमप्रना: तमःप्रजा. तमस्तःप्रजा 'पृथ्वीपिंड. 10000 132000 12000 120000 11000 196000 10000 विसहस्रो करतां 1700 26000 11000 196000 194000 3000 प्रतरसंख्या. प्रतर- उंचपएं. 3000 3000 3000 3000 3000 3000 3000 पाथमा पृ० पिंड 300 33000 2000 1000 15000 एooo 3000 शेष पाविना पृ० १३ए एए०० 101000 105000 105000 पाथडानी संख्या. प्रतरांतर मान. 19534 . एsod 1375 16166,6 25250 525 प्रत्येक नरक पृथिवीयें श्रावलिकागत वाटला नरकावासानी तथा त्रिखूणा अने चौखूणा नरकावासानी तथा बूटा पुष्पावकीर्ण नरकावासानी संख्यानो यंत्र. अने वचलो इंडक नरकावासो गोल होय पली पंक्तिमा पहेलो त्रिखूणो, चौखूणो पड़ी वाटलो एम श्रावलिकाना बेहेडा सुधी कहे. नरकनाम. घम्मा, 1 वंशा, 2 शेला. 3 अंजणा. 4 रिहा. 5 मघा. ६माघ 7 आवलिकागत. वाटला. 1453 न्य 477 त्रिखूणा. 15 ए४ 25 100 ज 4 3332 चोखणा. 147 ए नए 232 ज 200 3200 सर्वसंख्या. 4433 श्६ए १४न्य 7 265 63 5 ए६५३ पुष्पावकीर्ण. एएए५६७ वए७३०५/ १४एज्५१५ एएएए३ शएए७३५ एएए३२० ঢBU383 सर्वसंख्या . / 300000 2500000 1500000 100000 300000 एएएएए 5 100000 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 223 Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 296 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. पहेली रत्नप्रना नारकी संबंधि 170000 योजन पृथिवीमिमांहे नारकीना तेर पाथडा त्रण त्रण हजार योजननां उंचा एक बीजानी उपर बे, तेनी वचमा केटबुं के टटुं एकेका प्रतरनी मांहोमांहे अंतर ? तथा जवनपति देवोनी दश निकाय कया कया प्रतरना अंतरमा ने! अने कयुं अंतर शून्य डे ? तथा नीचेंना हजार योजन शून्य ने अने उपरना हजार योजनमां व्यंतर तथा वाणव्यंतर देवोनी निकाय कया कया स्थानके ? ते देखाडवानो यंत्र. उत्तरश्रेणि. पिंड योजन प्रमाण. / दक्षिणश्रेणि. रत्नप्रजा बीजी उत्तरश्रेणि. 10 योजन मृतपिंड. पहेली दक्षिणश्रेणि रत्नप्रना. सुवछ आदिक आठ इंच. श्रणपन्नीयादिकवाणव्यं. सन्निहित आदि आठ इंज. शून्यपिम बे. 10 योजन मृतपिंड. शून्यपिंड डे.. माहाकालादि श्राप इंज. 0 योजनपिशाचव्यंतर. कालेंप्रमुख श्राप इंज.. शून्यपिम डे. 100 योजननो पिंड. शून्य पिंड बे. पहेलो पाथडो उंचो . 3000 योजन प्रमाण उंचो. एमां नरकावासा बे. पहेलु प्रतरांतर मान. 19503,4 योजनमां. एटलामां आकाश शून्य . बीजो पाथडो जंचो . 3000 योजन प्रमाण. एमां नरकावासा . असुरकुमार निकाय बली. 195734 श्रांतरामां. असुरकुमार निकाय चमरेंज. त्रीजो पाथमो. 3000 योजन प्रमाण. एमां नरकावासा बे. नागकुमार निकायजुतानंदेंज. 115735 आंतरामां. नागकुमार निकायधरणीं. चोथो पाथडो. 3000 योजन प्रमाण. एमां नरकवासा बे. सुवर्णकुमार वेणुदाली. 11573,5 आंतरामां. सुवर्णकुमारनिकायवेणुदेवेंज पांचमो पाथमो. 3000 योजन प्रमाण. एमां नरकवासा . विद्युत्कुमार निकाय हरिशि० 115034 अांतरामां. विद्युत्कुमार निकायहरिकांतें. ठो पाथमो. 3000 योजन प्रमाण. एमां नरकावासा बे. अग्निकुमारनि.अग्निमाणवेंज 11503,4 आंतरामां. अग्निकुमारनिण्श्रग्निशिखें. सातमो पाथडो. 3000 योजन प्रमाण. एमां नरकावासा . छीपकुमार निकाय विशिष्टेज 11573,4 आंतरामां. छीपकुमारनिकाय पूर्णे. आग्मो पाथडो. 3000 योजन प्रमाण. एमां नरकावासा डे. उदधिकुमारनिकायजलप्रग्नें० 11573,3 श्रांतरामां. उदधिकुमारनि० जलकांतें. नवमो पाथडो. 3000 योजन प्रमाण. एमां नरकावासा बे. Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रए देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. दिशिकुनिश्रमितवाहनें. 11573,4 श्रांतरामां. दिशिकुमार निकायअमितें दशमो पाथडो. 300 योजन प्रमाण. एमां नरकावासा . पवनकुमारनि० प्रनंजनें. 11573,4 आंतरामां. पवनकुमार निकायवेलंबकेंज. अगियारमो पाथडो. 3000 योजन प्रमाण. एमां नरकावासा . स्तनितकुमार निकाय घोड़, 11573,5 अांतरामां. स्तनितकुमार निण्महाघोर्षे बारमो पाथमो. 3000 योजन प्रमाण- एमां नरकावासा . ए श्रांतरामां शून्य बे. 11573,4 श्रांतरामां. ए अांतरो शून्य बे. तेरमो पाथडो. 3000 योजन प्रमाण. एमां नरकावासा . अधो नाग. 1000 योजन प्रमाण. नरकावासा रहित बे. सर्वसंख्या. 170000 योजन... रत्नप्रजानो पिंड प्रमाण बे. हवे नारकीमा प्रतरें प्रतरें 5 जूई उत्कृष्ट देहमान कहे बे. . रत्नप्रजाना प्रथम प्रतरें उत्कृष्ट देहमान त्रण हाथर्नु बे, अने तेरमे प्रतरें सात धनु ष्य त्रण हाथ ने उ अंगुल , तेमांथी पहेलो प्रतरना त्रण हाथ काढीयें, तेवारें शेष सात धनुष्य ने आंगुल रहे. ते सात धनुष्यना अहावीश हाथ थाय. तेने तेर प्रतर मांथी प्रथमनो प्रतर एक मूकी शेष बारने बांके वहेंचीये, तेवारें एक नागमां बे हाथ श्रावतां बार उचोवीश हाथ जाय, बाकी चार हाथ रहे. तेनां बन्नु अंगुल थाय तेनी साथे प्रथमनी अंगुल उपर बे, ते मेल वियें, तेवारें 102 अंगुल थाय, तेने बार ने थकि वहेंचतां एक नागमां साडाबाउ अंगुल आवे, तेवारें बे हाथ ने सामाश्राप अंगुलनी वृद्धि करतां बीजो पांच हाथ ने सामाआठ अंगुल देहमान थाय. एम प्रतरें प्रतरें बे हाथने सामाआठ आंगुल वधारतां यावत् तेरमे प्रतरें सात धनुष्यनी उपर त्रण हाथ ने अंगुल देहमान थाय. फरी तेटर्बुज देहमाए बीजा नरकना प्रथम प्र तरें कहे. वली शर्कराने अगीयारमे प्रतरें एथी बमणुं देहमान थवानुं बे, माटें ज स्कृष्टामांथी जघन्य देहमान काढीयें, एटले पोणा श्राप धनुष्य ने उ अंगुल वधे, तेना अंगुल करीयें, तो 750 थाय, ते शर्कराना अगियार प्रतरमांथी पहेला प्रतरतुं आयु कहेवाणुं माटे तेने पडतुं मूकी बाकी दश प्रतरें वहेचीये तेवारे पंचोतेर अंगुल एक नागमांथावे तेना त्रण हाथ ने त्रण अंगुल थाय, तेटबुं प्रत्येक प्रतरें देहमान वधारतां अगीयारमे प्रतरें साडा पन्नर धनुष्य ने बार अंगुल देहमान थाय, तेटवू देहमान वली त्रीजी नरकने प्रतरे आणीने पड़ी तेज करण करवू एम सर्व नरकपृथ्वीयें करतां देह प्रमाण थाय. ते सर्व नीचेंना यंत्रथी जो लेजो. Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रए देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो.. ..... रत्नप्रनादिक प्रत्येक पृथ्वीना जूदा जूदा प्रतरे शरीरना प्रमाणनो यंत्र. 1 रत्नप्रना. प्रतर. 2 3 4 5 6 7 | ए | 10 | 11 / 12 / 13 धनुष्य. 1 1 2 3 3 4 4 5 6 6 7 7 by ny 3m अंगुल. 17 1 // mur 10 // 3 11 // 20 // 13 | 2 शर्करप्रना. 4 5 6 7 / ए 10 10 11 12 13 14 14 |oor प्रतर. धनुष्य. 20 am DP / . | / र५ प (U अंगुल. 3 वाबुकप्रजा. 4 पंकप्रजा. प्र० 1 2 3 4 5 6 7 | ए प्र० 1 2 3 4 5 6 | ध० 15 17 १ए 13 25 27 ए३१/ध० 31 36 41 46 55 57 65 |500 अंग 11 अं०.१५ // 3 // 17 13 // ए 10 अं० 0 (20116 15 750 5 धूमप्रना. 6 तमःप्रना. तमस्तणप्रना. | 23 3 प्रण | ए३ 10 // ध० 125 र 250 धन 031 0 15 हवे ए साते नरक पृथ्वी शेने श्राधारें रहेली ने ते कहे . नारकीना मध्यमां वच्चे . घनोदधिनो पिंगवीश हजार योजन , अने घनवात, तनुवात तथा आकाश असंख्याता योजननो पिंक बे, तेमां धनवातथी असंख्यातगुणो तनुवात डे, अने तनुवातथी असं ख्यातगुणो थाकाशनो पिंम बे. घनोदधि, घनवात उपर प्रतिष्ठित बे, घनवात तनुवा त उपर प्रतिष्ठित , तनुवात श्राकाश उपर प्रतिष्ठित ने श्राकाश को उपर प्रतिष्ठित नथी. ए घनोदध्यादिक चार वलयें करी सर्व पृथ्वीयो वीटेली , ते अनुक्रमें मध्य जागथी चारे दिशायें चारे वलय प्रदेशे प्रदेशे घटतां घटतां यावत् श्राप थापणी Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. २एए पृथ्वीने बेहडे बेक घणाजवल्प थया थका वलयाकारे वींटी रह्या बे त्या सर्व नरक पृथ्वी योने बेहडे केटला केटलायोजननां वलय रह्यां बे, तेना यंत्र, तथा साते नरक पृथिवी ने ली कस्या थकां नातिन्त्र आकार ने,एटले उपर न्हा बत्र तेनी नीचे महोटुं बत्र, तेनी नींचे महोटुं एम हेवली हेग्ली नरक महोटीमहोटी . वीश हजार योजन घनोदधिनो पिंग कह्यो, अने असंख्याता योजन घनवातादिकनो पिंक कह्यो. ते सर्व नरकनी वचाले होय,पढी अनुक्रमे प्रदेशे प्रदेशे घटतो घटतो बेहडे या यंत्रमा लख्या प्रमाणे वलय होय. नरक. घनोदधिवलयप्रमाण. घनवातवलय. तनुवातवलयप्रमाण. त्रणेनोसरवालो नरक गाउत्रै गाउना गाउन श्रांक. योजन गाउ. याजाग योजन. गाज. योजन. गाज. त्र.नागयोजन-गाउ. याजाग. . . or ܘ an as mo i wo w3333 or mp Mom D mr m amwamm 14 14 ܘ r - owo ܘ ܘ - रत्नप्रजा पृथ्वीना 170000 पिंममा पहेलो खरकांम 16000 योजन के बीजो पंकब हुलकांम 7000 योजन , त्रीजो जलबहुलकांम 50000 योजन . थने बीजी सर्व पृथ्वी पृथ्विकायमय जाणवी. साते नरक पृथ्वी घनोदधि, घनवात, तनुवातने वलये करी वीटली , माटे श्रआयाम विष्कंने करी चारे दिशाये अलोकने फरसे नही. चारे दिशाये बेहलो तनुवात वलय अलोकने फरशे डे माटे. तथा नारकीने वेदनानुं ख रूप जैनप्रबोध पुस्तक तथा सूयगमांग सूत्र तथा संघयणादि ग्रंथोमां बपायुं . हवे श्रा पुस्कमां देव नारकियादिकनां श्रायु तथा द्वीपसमुजनां प्रमाण सर्व पक्ष्यो पम श्रने सागरोपमे करी कह्यां ,माटे पस्योपम अने सागरोपमनुं स्वरूप लखीये बैये. ते पल्योपम तथा सागरोपम एकेका त्रण प्रकारना बादर तथा त्रण प्रकारना सू क्ष्म मली प्रकारे बे. तेमां बादर को काममा नथी श्रावता परंतु सूक्ष्म काममा आवे . पल्य एटखे जेमां धान्य जरीये तेनी जेने उपमा जे तेने पस्योपम कहीये.ते अथवा जेणे करी कालादिकनां प्रमाण मवीये उपमीजे, तेने पढ्योपम कहीये. ते Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 200 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. एक उकार पल्योपम बीजो अझ पल्योपम अने त्रीजो क्षेत्रपक्ष्योपम, एवात्रण प्रका रे जे. ते उझरादिक एकेको वली एक सूक्ष्म अने बीजो बादर एवा बे बे नेदे बे. हवे पव्यनुं प्रमाण कहे जे. उत्सेधांगुले एक योजननो कूवो वाटलो गोलाकारे जा णवो, ते लांबपणे तथा पहोलपणे अने जंडपणे सर्वत्र एक योजन प्रमाण कहेवो तेनो परिधि त्रण योजन अने एक योजननाब नाग करीये, तेवो एक नाग ऊपर थाय. ते कूवो देवकुरु उत्तरकुरु नामे जे युगलियानां क्षेत्र , तिहां जघन्य एक बेत्रण दिवसना उत्कृष्टथी सात दिवसना जन्मेला गामराना रोम अंगुल प्रमाण लेवा, ते रो मना प्रथम श्राप कटका करीये वली ते एकेका कटकाना श्राप श्राप कटका करतां 64 कटका थाय. त्रीजी वार आठ खंग करतां 512 थाय. चोथी वार आठ खंग कर तां ४०ए६ थाय. पांचमी वार आठ खंग करतां 376 थाय. बही वार श्राप खंग करतां श्६२१४४ थाय. सातमी वार श्राप खंग करतां 207155 थाय. .. ए वीश लाख सत्ताणुं हजार एकशो ने बावन खंग थया, ते सर्व बादर खंग थया तेणे करी पूर्वोक्त पालो संपूर्ण गंशीने एवो नरवो के ते अग्निथी बले नही, वायराथी रोमखंग उडे नही, गंगानदीनो प्रवाह उपरथी चाख्यो जाय तो पण तेने ताणी शके नही, चक्रवत्ती, कटक उपर चाव्यु जाय, तो पण ध्रसके नही. एवो ते कूवो लरी ने पळी ते मांदेथी अकेक समये अकेक केश खंम कादाडतां थकां जेटले काले ते पालो खाली थाय, तेटलो बादर उकार पट्योपमनो संख्याता समय प्रमाण काल हो य, जे जणी ते खंड संख्याताज होय, माटे संख्यातो काल कह्यो, ए बादर उकार प ख्योपम जे कह्यो ते मात्र सूक्ष्म उकार पव्योपमनुं स्वरूप समजाववामांज उपयोगी होय. परंतु बीजा कशामां पण काम आवे नही. हवे प्रर्वे जे वालाग्रखंडे पथ्य नस्यो बे, ते बादर एकेक खंमना असंख्याता सूक्ष्म खंग कल्पिये, ते एवा कल्पीये, के जे एक खंडनो वली बीजो खंड केवली केवल झाने करी पण कल्पी न शके, सतेजवंत नेत्रनो धणी जे जालीमांदेथी सूक्ष्म पुजल सूर्यना तेजे करी देखे, तेनो असंख्यातमो नाग अथवा बादर पर्याप्त पृथिवी कायिया जीवनुं जेतुं सूक्ष्म शरीर होय, तेवडे खंडे करी पूर्वोक्त कूवो जरीये, ते एकेको खंड समय समय काहाडतां असंख्याता समय लागे, अर्थात् संख्याता वर्षनी कोटिये करी ते कूप खाली थाय तेने सूदम उझार पक्ष्योपम कहीये. तेवा दश कोमाकोमी पढ्यो पमे एक सूक्ष्म उकार सागरोपम थाय. तेवा अढी सागरोपमना जेटला समय थाय तेटले प्रमाणे असंख्याता द्वीप समुह बे. ए सूक्ष्म उझार पक्ष्योपम कह्यां. Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो, 201 तथा तेहीज योजन प्रमाण पख्य बादर वाला जस्यो, ते मध्येथी शो शो वर्षे एकेक केशखंड काहामतां, ते पट्य संख्याता वर्षनी कोमी प्रमाण काले निर्लेप थाय, तेवारे बादर अशा पट्योपम संख्याता वर्ष प्रमाण थाय. वली तेहीज खंडना पूर्वोक्त रीतें असंख्याता खंड कल्पी ते कल्पना खंड शो शो वर्षे एकेक कहाडतां जेवारे ते पक्ष्य निर्लेप थाय, तेवारें सूक्ष्म अशापट्योपम असं ख्याता वर्षनी कोमी प्रमाण थाय. तेवा दश कोमाकोडी सूक्ष्म अझापल्योपमें एक सूदम बहा सागरोपम थाय. तेवा वली दश कोमाकोमी सागरोपमें एक अवसप्पिणी काल थाय. वली तेवा दश कोमाकोमी सागरोपमें एक उत्सर्पिणी काल थाय. ए अव सप्पिणं। तथा उत्सर्पिणीना बेहु काल मली वीश कोडाकोडी सागरोपमें एक काल चक्र थाय. ए सूदम अकापट्योपम अने सागरोपमें करी देवता, नारकी, मनुष्य अने तिर्यंचना आयुर्नु मान तथा कर्मस्थितिमान तथा काय स्थितिमान तथा नवसिथितिनां कालमानादिक मवीयें,ए चोथु सूक्ष्म अझापल्योपम कडं, एटले ए सूक्ष्म अशासागरोप मना अनंता पुजलपरावर्ते अतीत असा तथा अनंता पुजलपरावर्ते अनागत अझा थाय. तिहां अनागत अहानी अनंतता ने अने अतीत अमानुं आदि नथी, तेथी बेहुने समानपणुं . अन्य श्राचार्य वली एम कहे जे के, जो पण समयादिके करी अनागत अझा हीयमान , तो पण अनागत असानो क्ष्य नथी थतो, ते माटे अतीत अझा थकी अनागत अझा अनंतगुणी बे. सांप्रत बे प्रकारना क्षेत्र पढ्योपमनुं निरूपण करीये वैये. ते पूर्वोक्त बादर वालाय खंडे करी जस्यो जे पट्य ते मध्ये कल्पना करेला वालाग्रे स्पा जे आकाशप्रदेश ते माहेथी एकेक आकाश प्रदेश समय समय काहामतांजेवारे सर्व वाला स्पष्ट थयेला एवा सर्व आकाश प्रदेश निर्लेप थाय, तेवारे असंख्याती उत्सर्पिणी अने असंख्याती अवसर्पिणी कालप्रमाण एक बादर देवपट्योपम थाय. हवे ते पख्यना सूक्ष्म एकेका वालाग्रने स्पा आकाश प्रदेश तथा अणस्पा एवा समस्त आकाशप्रदेशने समय समय काहाडतां जेवारे ते पस्य निर्लेप थाय, ते वारे पूर्वोक्त बादरक्षेत्र पस्योपमना कालमानथकी असंख्यातगुणुं असंख्याती उत्सर्पि णीने अवसर्पिणी प्रमाण सूक्ष्म क्षेत्र पस्योपमनुं कालमान थाय.तेवा दश कोडाकोमी सूदम क्षेत्रपक्ष्योपमे एक सूक्ष्म क्षेत्र सागरोपम थाय, एणे करी त्रसादिक जीवन परिमाण करवू, एटले दृष्टिवादने विषे अव्य प्रमाण चिंतवीये तथा पृथिव्यादिक एके जिय प्रसांत जीवनुं परिमाण करीये, तेने विषे एनुं प्रयोजन बे. 25 Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 202 सोप्रकारना रत्नोना नेद, __अही शिष्य पूजे जे के, जो स्पष्ट, अस्पष्ट, ननःप्रदेश सूदम क्षेत्र पस्योपमे करीने ग्रहण करीये बैये, तो वालाग्रोनुं शुं प्रयोजन ? यथोक्त पदयांतरगत ननःप्रदेशाप हारमात्रथीज सामान्यपणे कहे उचित ? तत्र गुरु कहे , के ए सत्य जे. किंतु सूक्ष्म क्षेत्र पस्योपमे करी दृष्टिवादने विषे अव्य मवीये बैये, ने केटलाएक यथोक्त वालाग्र स्पष्ट नजःप्रदेशे करी मविये बैये, माटे दृष्टिवादोक्त अव्यमानोपयोगीपणा थकी वालाग्र प्ररूपण प्रयोजनवाझुं बे. ___एम सूदम पक्ष्योपम शास्त्रने विष उपयोगी होय अने त्रण बादर पढ्योपम कह्यां, ते सूक्ष्मनुं स्वरूप समजाववा माटेज जाणवां. श्रहींयां घणुं तो सूक्ष्म श्रद्धापक्ष्योप मनुं प्रयोजन , ते अझापल्योपमे करी वीश कोमाकोडी सागरोपमर्नु कालचक्र थाय, तेवा अनंते कालचकें एक पुजलपरावर्त्त थाय, एवा अनंत पुजलपरावर्ते अतीत असा अतिक्रम्या ते नणी एने विषे पुजलपरावर्त एवी संज्ञा करीये // इति // हवे पृथ्वीने विषे सो प्रकारनां जे रत्नो कडेवाय , तेना नेदो कहे . 1 तेमां प्रथम जुवननात्रण नेद ,ते कहे . 11 देवजुवन,श्मनुष्यजुवन,३नागजुवन. 2 बीजा स्थानना त्रण नेद बे,ते कहे . 1 मनुष्यस्थान, 2 देवस्थान,३ नारकीस्थान. 3 त्रीजा नूमिना त्रण नेद डे, ते कहे . 1 उत्तम, 2 नीच, 3 सम. 4 चोथा पुरुषना त्रण नेद , ते कहे . 1 उत्तम, 2 मध्यम, 3 अधम. 5 पांचमा पदार्थना त्रण नेद , ते कहे , 1 धातु, 5 मूल, 3 जीव. 6 हा पुरुषार्थना चार नेद , ते कहे . 1 धर्म, 5 अर्थ, 3 काम, 4 मोद. 7 सातमा राजवंशीना बत्रीश नेद बे, ते कहे . 1 सूर्य, 2 सोमवंश, 3 यादव, 4 कदंब, 5 परमार, 6 श्वाकु, 7 चहुआण, 7 मोरी, ए शिलार, 10 सिंधव, 11 विं दक, 15 चाउडा, 13 प्रतिहार, 14 ढुंजक, 15 रागेम, 16 शक, 17 करपाल, १७क रंड, रए चंचिस, 20 गोहिल, 1 मकुयाणक, 22 पौलक, 23 राजपाल, 24 धान्य पाल, 25 अनंग, 26 निकुल, 27 दधिकर, 27 कोल, श्ए तुर, 30 दधिपक, 31 हल, 32 हरिय, 33 सेल्हार, 34 डोडीया. 35 नाडिया. 36 कुलवरकुल. श्रापमा राज्यनां सात अंग , तेनां नाम कहे .1 स्वामी, अमात्य, ३जनपद, 4 नंमार, 5 उर्ग एटले गढ, 6 बल, 7 मित्रांग. ___ए नवमा राजगुणना बन्नु नेद बे, ते कहे . 1 वंश, 2 विनय, 3 विजय, 4 विवे क, 5 विद्या, 6 विचार 7 सदाचार, G विस्तार, ए परिछेद, 10 अनुग्रह, 11 सदा Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोप्रकारना रत्नोना नेद. 203 ग्रह, 15 यश, 13 सदोदित, 14 सर्वसह, 15 धर्मबल, 16 सत्य, 17 शौच, 17 सन्मान, १ए संस्थान, 20 समाधान, 21 सौख्य, 25 सौजन्य, 23 सौलाग्य, 24 रूप, 25 स्वरूप, 26 सागत्य, 27 विजाग, 27 संयोग, शए वियोग, 30 सत्त्व, 31 संपूर्णत्व, 32 सकलत्व, 33 प्रसन्नत्व, 34 सलजात्व, 35 पालकत्व, 36 पांमित्य, 37 प्रणय, 37 प्रसरण, ३ए प्रमाण, 40 प्रताप, 41 प्रमोद, 42 प्रारंन, 43 प्रजा वच्छेद, 44 संग्रह, 45 विग्रह, 46 पुष्टि, 4 तुष्टि, 4 प्रीति, ४ए प्राप्ति, 50 प्रशं सा, 51 प्रतिष्ठा, 55 प्रतिज्ञा, 53 स्थैर्य, 54 धैर्य, 55 शौर्य, 56 गांजीर्य, 57 चा तुर्य, 57 बुद्धि, ५ए बल, 60 अध्यद, 61 विबोध, 62 वृद्धि, 63 सिकि, 64 का ति, 65 कीर्ति, 66 स्फूर्ति, 67 व्युत्पत्ति, 67 वात्सल्य, ६ए मांगल्य, 70 महोत्सव, 71 मंत्र, 72 रसिकत्व, 73 नावुकत्व, 74 समृद्धित्व, 75 गुरुत्व, 76 शक्ति, नु क्ति, 7 युक्ति, पुए अयुक्ति, 70 अशक्ति, 1 अनुक्रम, 2 अनिमान, 73 वदान्य, 4 कारुण्य, जय दाक्षिण्य, ज्६ वर्तन, G स्पर्शन, 7 रसन, ए घाण, ए श्रवण. ए? मर्यादा, ए मंगन, ए३ उदय, एव उदात्त, ए५ उत्साह, ए६ उत्तमत्व गुण. 10 दशमा राजपात्रना बत्रीश नेद , ते कहे . 1 धर्मपात्र, 5 काम, 3 विनोद, 4 विद्या, 5 विलास, 6 विन्यास, 7 ज्ञान, क्रीमा, ए हास्य, 10 श्रृंगार, 11 वीर, 15 स्नेह, 13 जगन्मान्य, 14 मंत्री, 15 संधि, 16 महत्तम, 17 अमात्य, 17 प्रधान, १ए अध्यद, 20 सेनापात्र, 21 नागर, 22 पुष्प, 13 मान्य, 24 पदस्थ, 25 देशी, 26 राझी, 27 कुलपुत्रिका,२७ पुन,शए वेश्या, 30 दासी, 31 दास, 32 श्रानिचारिक, १गीयारमा राजविनोदना बत्रीश नेद , ते कहे . 1 गीत, विनोद.३ लि खित, 4 शिक्षा, 5 वक्तृत्व. 6 कवित्व, 7 शास्त्र, शस्त्र, ए युक, 10 नियुक, 11 गणित, 15 गज, 13 तुरग, 14 पक्षी, 15 आखेटक, 16 द्यूत, 17 जलयंत्र, 17 मंत्र, १ए महोत्सव, 20 फल, 21 पुष्प, 22 कला, 23 गुण, 24 प्रहेलिका, 25 चित्र, 26 क्षेत्र, 27 खेलन, 27 वित्तमूत्र, श्ए नृत्य, 30 श्रवण, 31 कर, 35 बुद्धि, 33 विद्या, 34 रथ, 35 कथा, 36 कलत्र. 12 बारमा श्रास्थानना अढार नेदो बे, ते कहे . 1 मन, 2 श्रापूहित, 3 स्निग्ध, 4 मंत्री, 5 महत्तम, 6 अमात्य, 7 प्रधान, बुद्धिमुख, ए उजयमुख, 10 श्राग्रायक, 11 सांग्रामिक, 12 देश्य, 13 पुरुषधर्म, 14 पुरुषविज्ञान, 15 पुरुषराज, 16 पुरुषकर्म, 17 पात्र, 10 विनोदपात्र. ति अष्ठादशः नेदाः समाप्ताः // 13 तेरमा राजविद्याना चार नेद ,ते कहे .1 श्रान्विक्षिकी,श्चर्या, ३वार्ता, दंडनीति. Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 204 सोप्रकारना रत्नोना नेद. 24 चौदमा राजनीतिना चार नेद बे, ते कहे . 1 साम, दाम, 3 नेद, 4 दंड, 15 पन्नरमा श्रायुधना बत्रीश नेद , ते कहे . 1 चक्र, 2 धनु, 3 धनुष्य, 4 वज्र, 5 अंकुश, 6 बुरिका, 7 तोमर, कुंत, ए शूल, 10 त्रिशूल, 11 शक्ति, 12 पा श, 13 मुजर, 14 गुलिका, 15 मुसटी, 16 बुंढी, 17 गदा, 17 शंकु, १ए पर्नु, 20 पट्टीश, 21 रिष्ट, 22 करण, 23 यकपन, 24 हल, 25 मुशल, 26 मुह लिका, 27 कर्तरी, 27 करपत्र, ए तरवार, 30 कोदाली 31 जुफोट, 32 गोफण, 33 डाई, 34 मबस, 35 हडश्व, अने 36 शस्त्र. 16 शोलमा शास्त्रना सत्त्यावीश नेद बे, ते कहे .1 शब्दशास्त्र, अलंकारशास्त्र, 3 तर्कशास्त्र, 4 आगम, 5 गणित शास्त्र, 6 कल्प, 7 कला, शिदा, ए विनोद, 10 विज्ञान, 19 मंत्र, 12 सामुजिक, 13 शकुन, 14 चिकित्सा, 15 सत्काव्य, 16 मोद, 17 धर्म, 10 अर्थ, १ए वास्तुशास्त्र, 20 प्रवरतर, 1 महानामकोश, 22 सुविद्या, 23 बंद, 24 खप्नशास्त्र, 25 नवरसयुक्तकाव्य, 26 नाद्य, 27 धीनादिशास्त्र. 17 सत्तरमा तत्त्वना बावन नेद बे, ते कहे . 1 पृथ्वी, 2 अप, 3 तेज, 4 वायु, 5 श्राकाश, 6 शब्द, रूप, रस, ए स्पर्श, 10 गंध, 11 घ्राण, 12 चतु, 13 श्रोत्र, 25 त्वक्, 15 पाणि, 16 पाद, 17 गुद, 17 उपस्थान, १ए बुझि, 20 अलंकार, 1 प्रकृति, 25 पुरुषरक्त, 23 मांस, 24 मेद, 25 मजा, 26 शुक्र, 27 अस्थि, 27 वातरस, शए गंध; 30 स्पर्श, 31 घ्राण, 32 चढु, 33 पित्त, 34 कफ, 35 मल, 36 काम, 37 क्रोध, 37 लोल, ३ए जय, 40 मोह, 41 मात्सर्य, 42 राग, 43 नि यति, 44 काल, 45 विद्या, 46 युफविद्या, 4 माया, 4 शक्ति, ४ए नाद, 50 बिंछु, 51 कला, 55 ईश्वर शिवतत्त्व. 17 अढारमी कलाना बहोतेर नेद बे, ते कहे . 1 वाद्य, 2 नृत्य, 3 गणित, 4 पठित, 5 लिखित, 6 लेख्य, 7 वक्तृत्व, कथा, ए वंचन, 10 नाटक, 11 बंद, 15 अलंकार, 13 दर्शन, 14 अनिधान, 15 धातुकर्म, 16 अर्थमान, 17 वाद, 17 वृद्धि, १ए शोच, 20 मंत्र, 1 विनोद, 22 विचार, 23 नेपथ्य, 24 विलास, 25 शस्त्रक म, 26 नीति, 27 शकुन, 20 गीत, श्ए चित्र, 30 संयोग, 31 हस्तलाघव, 32 सूत्र, 33 कुसुम, 34 अजाल, 35 स्नेह, 36 पान, 37 आहार, 30 विहार, ३ए सौजाग्य, 40 प्रयोग, 41 गंधवाद, 42 वस्तु, 43 रत्न, 44 पात्र, 45 वैद्य, 46 देशनाषित, 47 विजय, 47 वाणिज्य, ४ए आयुध, 50 युक, 51 नियुक, 55 वर्तन, 53 हस्ती, 54 तुरग, 55 पक्षी, 56 नारी, 57 नूमिलेप, 57 दंतकाष्ठ, एए इष्टिका, 60 पाषाण, Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोप्रकारना रत्नोना नेद. 205 61 हास्य, 62 उत्तर, 63 प्रत्युत्तर, 64 शरीर, 65 शास्त्र, 66 ताल, 67 ढोल, 67 मृ दंग, ६ए विणा, so वांसली, 1 नेरी, पलितविनाश, रए योगणीशमा विज्ञान हेतुना चोराशी नेद , ते कहे . 1 तत्त्वज्ञान, 2 चर्म विज्ञान, 3 कर्म विज्ञान, 4 लदमीयोग, 5 शंख, 6 दंत, 7 गुटिका, रसायन, ए वचन, 10 कवित्व, 11 यंत्र, 12 मंत्र, 13 तंत्र, 14 मदन, 15 नेपथ्य, 16 ख्यंतक, 17 इष्टि का, 17 लेख्य, १ए सूत्र, 20 चित्र, 1 कर्मरंग, 22 शुचिकर्म, 23 शकुन, 24 ब्रह्मकर, 25 नैर्मल्य, 26 गंधयुक्ति, श आराम, शिल्प, श्ए काव्य, 30 कांस्य, 31 काष्ठ, 32 कुंन, 33 .लोह, 34 पत्र, 35 वंश्य, 36 नख, 37 दशन, 30 प्रासाद, ३ए धातु, 40 विनूषण, 41 स्वरोदय, 45 द्यूत, 43 अध्यात्म, 44 अग्रि, 45 विद्वेषण, 46 उच्चाटन, 57 स्तंजन, 4 मोहन, भए वशीकरण, 50 वस्तु, 51 स्वयंजु, 55 हस्ति शिक्षा, 53 अश्वशिक्षा, 54 पदी, 55 स्त्री, 56 काम, 57 चक्र, 50 वज्रीकरण,पए पशुपालन, 60 कृषी, 61 वाणिज्य, 62 लक्षण, 63 कालमानविधि, 64 श्रासन विधि, 65 शास्त्रबंध, 66 नियुद्धकरण, 67 आखेटक, 67 कुतुहल, ६ए केश, 7 पुष्प, 71 इंजजाल, 72 विनोद, 73 सौनाग्य, 74 प्रयोग, 75 शौच, 76 शान, 77 शेय, प्रीति, sए आयु, 70 चाटु, 71 व्यापार, 72 धारणा, 73 हेय, 4 उपादेय. 20 वीशमा देशसंख्या ते चारे दिशामा थने चोराशीनेदे , ते कहे . तेमां पूर्व दिशामा 1 गौम, 2 कान्यकुब्ज, 3 कलिंग, 4 गोल, 5 अंग, 6 कुरंग, 7 बंगाल, G अराच्य, ए वरेंड, 10 वामन, 11 गंगापार, 15 अंतर्वेदी, 13 मागध, 14 मध्य कुरु, 15 माहल, 16 कामरूप, 17 ऊज, 17 पुंइ, १ए वोडास, 20 अग्नि, 1 मालव, 22 पांचाल, 23 जालंधर, 24 शूरसेन, 25 लोहितपात. पश्चिम दिशामां. 26 काबेल, 27 वालंज, 27 सौराष्ट्र, शए कुंकुम, 30 लामप्री, 31 अर्बुद, 32 मेवान, 33 अवंति, 34 नागणित, 35 किरात, 36 शकट, 37 सौवीर, 37 कोंकण, उत्तर दिशिमां. ३ए गुर्जर, 40 सिंधु, 41 केकाण, 42 नेपाल, 43 लाट, 44 नोट, 45 तुरक, 46 तायक, 4 बर्बर, 40 वर्जुर, ४ए कीर, 50 काश्मीर, 51 हिमालय, 52 लोहपुर. 53 श्रीकाष्ठ. दक्षिण दिशिमां. 54 मलय, 55 सिंहल, 56 कोशल, 57 पामल, 57 आंध्र, एए वंध्व, 60 कर्कट, 61 अविन, 65 श्रीपर्वत, 63 वैदर्न, 64 धाराजराला, 65 तापीतट, 66 माहाराष्ट्र, 67 श्राजीरदेश, 60 नर्मदातट, ६ए छीपदेश. 21 एकवीशमा स्थानना बत्रीश नेदो बे, ते कहे . 1 स्वर्ग, 5 मृत्यु, 3 पाताल, 4 तनु, 5 विद्या, 6 वास्तु, 7 विनोद, वाद, ए गीत, 10 वाद्य, 11 नृत्य, 15 Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोप्रकारना रनोना नेद. रूप, १३.धर्म, 14 अर्थ, 15 काम, 16 मोद, 17 देश, 17 काल, र यात्रा, 20 सम य, 21 पुरुष, 22 स्त्री, 23 गज, 24 तुरंगम, 25 पदी, 26 रत्न, 27 पान, 17 श्रा हार, ए शय्या 30 व्यापार, 31 वस्तु, 32 विज्ञान लक्षण, 22 बावीशमा गृहना चोवीश जेदो बे, ते कहे . 1 प्रासाद, 2 हh, 3 श्राय तन, 4 गृह, 5 कोश, 6 कोष्ठागार, 7 पानीयगृह, 7 शौचगृह, ए शाला, 10 माल्य, 11 मठ, 15 सत्रागार, 13 श्रृंगारस्थान, 14 धर्मस्थान, 15 विनोदस्थान, 16 मंदिर, 17 हस्तिशाला, 10 वीशमंडप, १ए माहानस, 20 नोजनशाला, 21 गुप्तस्थान, 25 श्रादिस्थान, 23 अर्धस्थान, 24 राजांगण. 23 त्रेवीशमा मंगल वस्तुना एक शो आठ नेदो , ते कहे . 1 ब्रह्मा, विष्णु, 3 माहेश्वर, 5 वीतराग, 5 स्कंद, 6 श्रादित्य, 7 लोकपाल, अग्नि, ए श्रमर, 10 सागर, 11 पर्वत, 12 गगन, 13 ग्रहण, 14 गांधर्व, 15 चंद्र, 16 विनायक, 17 ज्यो तिक, 17 तीर्थ, १ए हिज, 20 धर्मशास्त्र, 21 वेदशास्त्र, 22 वेद, 23 पद्म, 24 प यंक, 25 कौस्तुन, 26 कांचन, 27 रौप्य, 27 ताम्र, शए घृत, 30 मधु, 31 सि कांत, 32 चंदन, 33 श्वेत, 34 वस्त्र, 35 वेश्या, 36 गोरोचन, 37 मृत्तिका, 37 गो मय, ३ए शस्त्र, 40 अंजन, 41 रत्न, 45 मनसिल, 43 मोदक, 43 शंख, 45 त्रि यंगु, 46 वचा, 4 श्वेतपुष्प, 4 सर्षव, ४ए दधि, 50 पूर्वा; 51 अक्षत, 52 उदं बर, 53 थाम्र, 54 नत्र, 55 वाजित्र, 56 दर्ज, 57 हस्ती, 57 बीज, एए मुक्ता फल, 60 खंजरीट, 61 वृषन, 62 राजहंस, 3 कन्या, 64 दर्पण, 65 दीप, 66 अं कुश, 67 तुरंगम, 67 हीत, 65 वेणु, 70 वीणाध्वनि, 31 नूमि, 72 सिंह, 73 मय, 14 स्वस्तिक, 75 तोरण, 76 कुंज, 17 चामर, वत्स, पुए गो, Go श्रार्ड, 71 मांस, 2 स्त्री, 73 पुरुषयुग्म, ध वाहन, ज्य प्रधान, न्६ विद्या, G वि नय, तुष्टि, नए पुष्टि, ए प्रसाद, ए१ उहोच, ए२ मदिरा, ए३ सत्य, ए४ पूर्ण पात्र, एए आर्डशाक, ए६ पिष्फलपत्र, ए श्रीवृद, ए७ तालवृद, ए पूजा, 100 निधि, 101 गौरी, 102 गंगा, 103 सरस्वती, 104 नर्मदा, 105 यमुना, 106 सिकि, 207 प्रीति, 207 कीति. ए सर्व मांगलिक वस्तु जाणवी. .24 चोवीशमा दानना त्रण नेद बे. ते कहे . 1 अजय, 2 अव्य, 3 परोपकार. 25 पच्चीशमा यशना पांच नेद , ते कहे . 1 जन्मकृत प्रताप यश, कीर्तिः 3 पराकमयश, 4 रूपयश, 5 सदाचारमा प्रवर्तन करवं ते यश. .. 26 बबीशमा कीर्त्तिना सात प्रकार , ते कहे . 1 दानकीर्ति, 2 पुण्यकीर्ति, Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोप्रकारना रत्नोना नेद. 10 1 3 विठजानकीर्ति, 4 नवकृतकाव्यकीर्ति,५ श्रावर्तनकीर्ति, 6 शौर्यकीर्ति, यशःकीर्तिः 7 सत्यावीशमा रसना नवनेद बे, ते कहे . 1 श्रृंगाररस, र हास्यरस, 3 करुणा रस, 4 रौषरस. 5 वीररस, 6 नयानकरस, 7 बीजत्सरस, 7 अनुतरस, ए शांतरस. 27 अध्यावीशमा जावना उगणपच्चास नेदो बे, ते कहे . 1 रति, 5 हास्य, 3 शोक, 4 क्रोध, 5 उत्साह, 6 जय, 7 जुगुप्सा, 7 विस्मय, ए स्तंचन, 10 खेद, 11 खर, 15 नेद, 13 रोमांच, 14 वेपथु, 15 वैवर्ण्य, 16 अश्रु, 17 प्रलाप, 17 निर्वेद, १ए ग्लानि-२० शंका, 1 आश्रम, 22 आलस्य, 23 देशचिंता 24 मोह, 25 धृति, 26 स्मृति, क्रीमा, 27 चपलता, ए जमत. 30 हर्ष, 31 अवश, 32 विषाद, 33 असुख, 34 वर्ग, 35 अपस्मार, 36 निजा, 37 स्वप्न, 30 विबोध, ३ए अमर्ष, 40 उग्रता, 41 उन्माद, 42 मति 43 व्याधि, 44 विरक्त, 45 वितर्क, 46 त्रास, 47 सूमरण, माया, ४ए लोज. शएगणत्रीशमा अलिनयना चार नेद कहे वे.श्यांगिक,श्वाचक, 3 सात्विक,४ अहार्य: 30 त्रीशमा वृत्तिना चार नेद कहे . 1 जारती, 2 सात्वती,३ कौशिकी, 4 अरनही. ___31 एकत्रीशमा माहान्पुरुषना चार नेदो बे, ते कहे जे. 1 धीरोझत, 5 धीरोदात्त, 3 धीरललित, 4 धीरशांत. 35 वत्रीशमा नायकना चार लेदो ले. ते कहे जे. 1 दक्षिण, 2 अनुकूल, 3 शठ, भ्रष्ट. 33 तेत्रीशमा नायकना गुण बत्रीश प्रकारना , ते कहे . 1 कुलीन, शीलवा न्, 3 नयस्थ, ४शौचवान्, 5 प्रियंवद, 6 प्रीतिमान्, 7 सुनग, विनयवान्, ए कीर्ति मान्, 10 त्यागी, 11 विवेकी, 15 श्रृंगारवान्, 13 अनिमानी, 14 श्लाघ्यवान्, 15 स मुज्ज्वलवेष, 16 सकलकला कुशल, 17 प्रिय, रसत्यवान्, 'एअवदान्य, 20 वजन, 21 सुगंधप्रिय, 22 सुवृत्त, 23 मंत्रवान्, 24 क्लेशसह, 25 प्रस्तावप्रकाशक 26 पंमित, 27 उत्तम सत्व, 27 धार्मिक, शए महोत्साही, 30 गुणग्राही, 31 दमी, 35 प्रानाविक. 34 चोत्रीशमा माहानायिकाना त्रण नेद कहे . 1 स्वकीया, 2 परकीया, 3 पणांगना. वाग्नद्दालंकारमा नायिकाना चार नेद कह्या .अनूढा,श्स्वकीया,३परकीया,पणांगना. ____35 पांत्रीशमा नायिकाना आउनेह कहे . 1 वासकसजा, विरहोत्कंमिता,३खं मिता, विप्रलब्धा,५ प्रोषितजर्तृका,६ कलहांतरिता, अनिसारिका, स्वाधीननर्तृका. 36 बत्रीशमा वली पण नायिकाना गुणो एकत्रीश प्रकारना , ते कहे बे. 1 कुलजा, 2 सुनगा, 3 सुरूपा, 4 सुसत्त्वा, 5 सुवेषा, 6 सुविनीता, सुरतप्रवीणा, सुख प्रिया,ए विजोगिनी,१० विचक्षणा,११ प्रियजाषिणी, 12 प्रसन्नमुखी, १३पीनस्तनी, 14 रसिका, Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ចុចចំ सोप्रकारना रत्नोना नेद. 15 लजान्विता, 16 लक्षणयुता, 17 पवितझा, 17 गीतझा, १ए विद्याशा, 20 नृत्या, 1 सुकुमारशरीरा, 22 सुगंधप्रिया 23 चारुनेत्रा, 24 नातिमानिनी, 25 मधुरवाच्या,२६ स्नेहवती, 57 विमर्षवती, 27 सत्यवती, श्ए शीलवती, 30 प्रज्ञावती, 31 गुणान्विता. 37 सामनीशमा सौख्यकरणना चार नेद बे, ते कहे . 1 अन्यासकरण, 2 श्र जिमान, 3 संप्रियकरण, 4 विषयकरण. .37 आडत्रीशमा सौख्यना त्रण प्रकार बे, ते कहे . 1 शांगिक, वाचक,३मानसिक. ३ए उंगणचालीशमा शौचना दश नेदो बे, ते कहे . 1 मुखशौच, 2 स्नान, 3 मृत्तिका, 4 स्कंध, 5 कदा, 6 श्मश्रु, 7 जल, 7 नख, ए अनल, 10 सत्यशौच. 40 चालीशमा कामना बे नेद , ते कहे . 1 स्वानाविक, 2 कृत्रिम.. 41 एकतालीशमा कामावस्थाना दश नेदो , ते कहे . 1 श्रमिलापता,श्स्मृति,३ गुणोत्कीर्तन, 4 उठेग, 5 प्रलाप, 6 उन्माद, व्याधि, 7 जडता, ए मरण, १०चिंता. वली कामना बाण, को ठेकाणे पांच दे कहेला बे, ते कहे . 1 संगम, 5 विगम, 3 हर्ष, 4 मोह, 5 मरणाधिक.. वली पण कामना पांच बाण कहेला , ते कहे . 1 संमोहन, 2 उत्पादन, 3 तापन, 4 शोषण, 5 मरण. 42 बहेंतालीशमा मूर्खना आठ प्रकार बे, ते कहे . 1 निर्लक, 5 शठ, 3 क्वी ब, 4 निघृण, 5 व्यसनी, 6 अतिनोगी, 7 गर्वित, निष्ठर. ___43 तालीशमा नागरिक जननां चोवीश करण , ते कहे . 1 विषयसुखनो उर मो जुदो राखे. 2 कायचिंतानुं स्थानक राखे, 3 पाणीनुं स्थानक, 4 रसोश्नुं स्थानक, 5 नेपथ्यनुं गृह राखे, 6 नेपथ्यनां उपकरण घणां राखे, 7 घरनां उपकरण घणां राखे, 7 शस्त्र घणां राखे, ए श्रासन घणा प्रकारनां राखे. 10 रम्यपणुं, 11 माल्यादि जोगनुं राखर्बु, 12 बेसवा उठवानुं गुप्तस्थान राखे, 13 प्रजातमा विराम लेवा माटे स्थान रा खे, 14 मध्यान्हने विषे नोजन करवा स्थान राखे, 15 बानुं नंमारनुं स्थानक राखे, 16 निरंतर विद्यानो अन्यास करे, 17 कुलोचित मार्गवर्तन करे, 10 प्रदोषने विषे गीतविनोद करे, १ए सुरतोपचार करे, 20 क्यारेक उद्यानमां गमन करे, 1 कदाचित् देत्रनिरीक्षण करे, 25 निरंतर गृहकार्यमां रहे, 23 जोंगमां व्याप्त रहे श्वविजक्तस्थान. 44 चुम्मालीशमा रूपना त्रण नेद , ते कहे . 1 संपूर्ण लक्षणावयव, 2 अ संपूर्ण लक्षणावयव, 3 निर्लक्षणावयव.. 45 पीस्तालीशमा स्वनावना त्रण नेद 1 मुग्धस्वजाव, श्मुग्धचतुरस्वजाव,३ चतुरस्वनाव. Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सो प्रकारना रत्नोना नेद. २०ए 46 बहेंतालीशमा पार्थिवना दश प्रकारे प्रमोद बे, ते एक श्लोके करी कहे जे. ज्ञाने दाने बले राज्ये, विनोदे वैरिसंग्रहे // शौर्ये धर्मे च सौख्ये च,प्रमोदा दशधा स्मृता // 1 // ___47 सुमतालीशमो चार प्रकारनो बोध कहे :- 1 बालसंस्कारप्रबोध, 5 प्रज्ञाप्र बोध, 3 शास्त्रप्रबोध, 4 तत्त्वनिश्चयप्रबोध. 4 श्रडतालीशमी चार प्रकारनी बुद्धि कहे बेः- 1 उत्पातिकी, 2 विनयकी, 3 कार्मिकी, 4 पारिणामिकी. ४ए उगणपञ्चाशमी बुजिना श्राप प्रकारे गुण , ते कहे . 1 शुश्रुषा, 5 श्रवण, 3 ग्रहण, 4 धारणा, 5 ऊह, 6 श्रापोह, 7 अर्थ, - विज्ञान. 50 पञ्चाशमा गांधर्वना चार प्रकार कहे H-1 स्वरगत, तालगत,३ पदगत,अवधानगत. 51 एकावन्नमा त्रण प्रकारना महागीत कहे बेः-१ महागीति, 2 उपगीत,३अनुगीति. ____52 बावन्नमा गीतना बत्रीश गुण , ते कहे बेः- 1 सुखर, 2 सुताल, 3 सुपद,। शुभ, 5 ललित, 6 सुसंबंध, सुप्रमेय, सुराग, ए सुरस, 10 सुसंगित, 11 सुहर्ष, . 15 सुग्रह, 13 श्लिष्य 14 क्रमष्य, 15 सुवर्ण, 16 सुगम, 17 सुरक्त, 17 संपूर्ण, 1 // सालंकार, 20 सुनाषाघ, 1 सुसंधिष्ठ, 22 सव्युत्पन्न, 23 मधुर, 24 स्फुट, 25 अग्रा म्य, 26 प्रसन्न, 27 कुंचितकंपित, 27 समयोचित, ए विद्या, 30 संगत, 31 प्रथम स्थित, 32 खस्थ, 33 एक, 34 अनुत, 35 विलंबितमध्य, 36 उक्त प्रमाण. ___53 हवे त्रेपन्नमा नृत्यना बे प्रकार बे, ते कहे . 1 लास्य, 2 तांगव, 54 चोपन्नमा काव्यना शोल प्रकार कहे .1 समय, 2 प्रतिना, 3 अभ्यास विद्या, 4 जाति, 5 गीति, 6 रीति, 7 वृत्ति, 7 वाच्य, ए वाचक, 10 बंद, 11 अलंकार, 15 गुण, 13 दोष, 14 रस, 15 नाव, 16 अनिनय. ___55 पञ्चावन्नमा वत्क्रत्वना दश प्रकार कहे . 1 परिनावित, सत्य, 3 मधुर, 4 सार्थक, 5 परिस्फुट, 6 परिमित, 7 मनोहर, चित्र, ए प्रसन्न, 10 नावानुगत. 56 बपन्नमा नाषाना प्रकरो , ते कहे . 1 संस्कृत, 2 प्राकृत, 3 अपभ्रंशी, 4 पैशाची, 5 मागधी, 6 शौरसेनी. 57 सत्तावन्नमा पांडित्यना पांच जेदो बे, ते कहे . 1 वक्तृत्व, 5 वादित्व, 3 क वित्व, 4 आयामत्व, 5 गमत्व. ___57 अहावन्नमा वादना चोविश नेद कहे . 1 उत्पत्ति, 2 समा, 3 अयति, 4 सजा, 5 वाद, 6. पद, प्रतिपदा, प्रमाण, ए प्रजेद, 10 प्रसन्न, 11 प्रत्युत्तर, 15 27 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 सो प्रकारना रत्नोना नेद. दूषण, 13 नूषण, 14 उपन्यास, 15 अनुमोद, 16 आदेश, 17 निर्णय, 17 ग्रंथनिश्च य, १ए निश्चय, 20 स्थान, 1 अर्थांतर, 22 समता, 23 जय, 24 पराजय. एए उंगणशाहमा दर्शनना नेदो बे, ते कहे . 1 माहेश्वरदर्शन, 5 ब्राह्मद र्शन, 3 सांख्यदर्शन, 4 बौधदर्शन, 5 जैनदर्शन, 6 चार्वाकदर्शन. .60 साउमा माहेश्वर दर्शनना पांच नेद , ते कहे जे. 1 विशेष, 2 शिवधर्म, 3 पाशुपत्त, 4 कालमुख, 5 महावतिक पर्यंत, हवे तेनाज बीजी रीते पांच दे कहे . अयोविशेष शिवधर्म, 1 शैव, 2 पाशुप त, 3 फलमुख, 4 महावत, 5 ब्रह्मचर्य.. 61 एकसहमा ब्राह्मणना लक्षण दश प्रकारे कहे . 1 प्रमाण, 2 संस्कार, 3 क म, 4 वर्तन, 5 ब्रह्मचारी, 6 गृहस्थ, वान, प्रस्थ, ए यति, 10 ब्रह्मपर्यंत. 62 बासहमा सांख्य शास्त्रना चारनेद कहे . 1 तत्व, प्रमाण, ३प्रकार,४ सर्वात्मा. 63 त्रेसहमा बौधमतना दश नेद बे, ते कहे . 1 सौगत, श् सर्वद,३परिगत, वि हार, 5 प्रमाण, 6 प्रज्नेद, प्रमोद, शौर्य, ए त्रिकयोगाचार,रण्यआध्यात्मिकमोक्षपर्यंत. 64 चोसहमा जैनमतना सात प्रकार दे, ते कहे . 1 सर्वज्ञ, 2 धर्म, 3 तत्त्वार्थ, 4 प्रमाण, 5 प्रतिना, 6 नेद, सिकपर्यंत. 65 पांसहमा चार्वाकना चार नेद , ते कहे जे. 1 तत्त्वार्थ, 5 प्रमाण,३ प्रनेद,प्रमोद. 66 बासठमा विचारना चोवीश नेद बे, ते कहे . 1 विद्या, 2 विज्ञान,३विनोद, 4 कला, 5 कवित्व, 6 वक्तृत्व, 7 गीत, नृत्य, ए वाद्य, 10 देश, 11 काल, 15 पा त्र, 13 प्रमेय, 14 पर्याय, 15 जय, 16 रस, 17 वाद, 10 अभिनय, १ए धर्म, 20 अर्थ, 21 काम, 22 मोद, 23 प्रमाण, 24 लोकवादपर्यंत. 67 समसमा गुरुत्वना दश नेद , ते कहे 1 वंश, 2 ज्ञान, 3 पद, 4 शौर्य, 5 सत्त्व, 6 दान, 7 बल, ज जय, ए संतान, 10 स्वगुण.. 67 श्रमसहमा चरितना चार नेद कहे . 1 मानवचरित, 2 दानवचरित, 3 वी रविलासचरित, 4 गुणप्रख्यापन चरित.. ६ए उंगण्योतेरमा राज्यपालनना पांच नेदो , ते कहे . 1 धर्मपालन, 2 राज्य पालन, 3 नूमिपालन, 4 प्रजापालन, 5 नीतिपालन. ___ 30 सित्तेरमा उत्तमपणाना सात नेदो बे, ते कहे . 1 वय, 2 कुल, 3 शील, 4 रूप, 5 पद, 6 ज्ञान, 7 प्रयोग. 71 एकोतेरमा शक्तिना नव नेद , ते कहे . 1 ज्ञानशक्ति, 2 धर्मशक्ति,३ दान Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सो प्रकारना रत्नोना बेद. 11 शक्ति, मंत्रशक्ति,५ कामशक्ति, 6 अर्थशक्ति, युद्धशक्ति, व्यायामशक्ति,एदेशशक्ति. 72 बदोंतेरमा अहंकारना आठ प्रकार , ते कहे . 1 ज्ञान अहंकार, 2 दान अहंकार, 3 बल अहंकार,धर्म अहंकार, 5 काम अहंकार, 6 अव्य अहंकार, 7 शत्रु मारण अहंकार, समारंन अहंकार. ___73 त्रहोंतेरमा वात्सल्यना चार नेद , ते कहे . 1 देववात्सल्य, 2 ससुरुवात्स व्य, 3 मित्रवात्सल्य, 4 वहन पुरुष वा पदाथर्नु स्नेहनेलीधे वात्सल्य. 4 चम्मोतेरमा प्राप्तिना श्राप नेदो बे, ते कहे बे. 1 ज्ञानप्राप्ति, 2 धर्मप्राप्ति. 3 बलप्राप्ति, 4 कामप्राप्ति,५ विज्ञानप्राप्ति, 6 पात्रसंग्रहप्राप्ति, 7 सर्वार्थ, 7 राज्यप्राप्ति. ___पंच्चोतेरमा शौर्यना चोवीश नेद बे, ते कहे . 1 स्नानशौर्य, 2 मनःशौर्य, 3 शब्दशौर्य, 4 प्रताप, 5 उदय, 6 प्रतिना, 7 तेज, ज्ञान, ए संग्राम, 10 जय, 11 साहस, 12 प्रतिपन्न, 13 शरणागत, 14 प्रमोद, 15 प्रबोध, 16 श्राझा, 17 उद्यम, 17 अर्थ, रए आचार, 20 बल, 1 कीर्ति, 22 लक्षण, 23 व्रत, 24 श्रापदाशौर्य. 76 तेरमा बलना दश प्रकार कहे . 1 वाग्बल, 2 कायबल,बुझिबल, स्थान बल, 5 सुहृद्दल, 6 शकुनबल, 7 देवताबल, धनबल, ए मंत्रबल,१० सैन्यबल.. 7 सत्त्योतेरमा आज्ञाना दश नेद .ते कहे . 1 ज्ञान. 2 आगम. 3 प्रताप. 4 ऐश्वर्य, 5 वाक, 6 परिश्रम, निघा, ज रति. श्रोतेरमा संग्रहना नव नेदबे, ते कहे .1 ज्ञानसंग्रह, पात्रसंग्रह,३मित्रसंग्रह. 4 पत्नियोगसंग्रह, 5 बलसंग्रह, 6 जयसंग्रह, धर्मसंग्रह, 7 श्रुतसंग्रह, ए गुणसंग्रह. ___ए जंगण्याएंशीमा परिछेदना पांचनेद बे, ते कहे . 1 अलक्षित, 2 लक्षित, 3 मानसिक, 4 वाचक, 5 कार्मण. Go एंशीमा प्रजुत्वना पांच नेद , ते कहे . 1 ज्ञानप्रजुत्व, 2 अक्षयप्रजुत्व, 3 शौर्यप्रजुत्व, 4 स्थापनाप्रजुत्व, 5 प्रदानप्रजुत्व.. 1 एक्याशीमा लब्धिना आप नेद ले ते कहे . 1 अणिमा, 2 मणिमा, 3 ग रिमा, 4 लघिमा, 5 ईशित्व, 6 वशित्व, 7 प्राप्ति, प्राकाम्य. ____ ब्यासीमा दिव्यना दश नेद बे, ते कहे . 1 जल, 2 अग्नि, 3 घट, 4 कोश, 5 विष, 6 माष, 7 तांडुल, 7 फल, ए तुल, 10 सुतस्पर्श. 3 त्र्याशीमा अपराधना दश नेद , ते कहे . 1 अनंग, श्नृपवध,३स्त्रीवध४ वर्ण संकर,५परस्त्रीगमन, 6 चौर्य, पतिविनानो गर्न, दंडपारुष्य,ए वाक्य, 10 गर्नपातन, Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 74 चोराशीमा उत्तमकारिगरना उ नेद ,ते कहे . 1 श्रारामिक, 2 मणिकार, 3 स्वर्णकार, 4 कांस्यघाटक, 5 दारुकृत्; 6 कुंचकार. ___5 पंचाशीमा मध्यम कारिगर पुरुषोना नेद ,ते कहे . 1 लूहरा, 2 सलाट, 3 कमिया, 4 यंत्रवाहकशोमिक, 5 तंतुवायी, 6 हजाम. 76 गशीमा अधम कारिगर पुरुषोना ब द बे, ते कहे .1 धोबी, 5 चमार, 3 नट, 4 चरट, 5 खारवा, 6 कैवर्तक ते निल्स. ___ सत्याशीमा उत्तम प्रकृतिवाला कारिगरना ब दो बे ते कहे . 1 हजाम, 5 सोनी, 3 खत्री, 4 कांस्यघमनार, 5 सुतार, 6 कुंजार. ___ अध्याशीमा मध्यम प्रकृतिवाला कारिगरना उनेद ,ते कहे . 1 श्रारामिक एटले माली, 2 मणियार, 3 दरजी, 4 कृक, 5 चितारो, 6 पालखी जपामनार जोई. नए नेवाशीमा अधमप्रकृतिवाला कारिगरना ब नेद डे, ते कहे . 1 चमार 2 मधपामनार, 3 नट, 4 जिल्ल, 5 बुहार, 6 पाराधि. ए- नेवुमा नारुना नव नेद बे, ते कहे . 1 घांची, 2 मोची, 3 घांडा, 4 धोबी, 5 बुहार, 6 दरजी, 7 माळी, 6 निल, ए गोवाल. ए नव नारुकना नाम जाणवा. ___ए१ एकाणुमा कारुना नव नेद , ते कहे . 1 कांदविक, 2 कौटुंबिक, 3 कुंनार 4 सोनी, 5 माली, 6 तंबोली, 7 हजाम, 7 काबिक, ए गांधर्व घायक. एए बाणुमा शब्दना पांच नेदो बे, ते कहे . 1 वीणानो शब्द, 2 सतारनो शब्द, 3 वंशशब्द, 4 मादलनोशब्द, 5 करतालनो शब्द. ए३ त्र्याणुमा धान्यना त्रण नेद जे. ते कहे. 1 शीर्शक, 2 शंबा, 3 घंटक. ए४चोराणुमा शाकना चार नेद ,ते कहे . 1 कंद शाखा, 2 पत्र, 3 पुष्प, फल. एएपंचाणुमा मांसना त्रण नेद बे, ते कहे .1 जलचरमांस श्थलचरमांस,खेचरमांस. ए६ बन्नुमा रसना बजेद, ते कहे ,आम्ल, 2 मधुर, ३तीदण, 4 कषाय, 5 कटु. गाथा प्रास्ताविक . आहारनिमित्तेएणं,बेसाए घर माग // धम्मालाजंतु जा जाण ई, दवलानं विमग्गिय // 1 // माणगएणं मुणिणा, पडिया तिण तहिं // हिरणाणं तु कोमी, वेसाए अळ तया॥ इति माहानिशीथे // साकादिवेसणासत्ती, नंदीसेणे मु णीसरे // जीविए सागिहे श्रासी, दसणं पडिबोहिलं. इति शतरत्नसंग्रहः समाप्तः // हवे वासुदेव, तीर्थकर अने चक्रवर्ती तथा बलदेव ए चार पदवीवाला जीवो देवता तथा नारकीथी ओव्या उपजे पण मनुष्यमांथी आवे नही. 1 चक्रवर्ती तथा बलदेव, ए बेहु चारे निकायना देवोमांश्री वी उपजे. Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 213 2 तीर्थंकर तथा वासुदेव, ए बेहु वैमानिक देवोमांथी श्रावी उपजे. 3 चक्रवर्तीना जे पांच मनुष्य रत्न , ते सातमी नरक, तेउकाय,वायुकाय, तिर्यंच अने मनु प्य तथा अनुत्तर विमान, एटला स्थानकथी श्राव्यान होय, शेषस्थानकथी आव्या होय. 4 तथा हाथी अने अश्व, ए बे तिर्यंचपंचेंजिय रत्न , अने सात एकें जिय रत्न डे एमनी उत्पत्ति यथासंजवपणे जाणवी. कया जीव नरकें जाय? कयो जीव कयी नरकें जाय? बाहय श्राश्रयी विशेष कहेजे. संझिपंचेंजिय पर्याता संख्या 1 असंही पंचेंजिय तिर्यंच 1 व्याल सर्प प्रमुख. ता वर्षायुवाला एवा मनुष्य ' पहेली नरक सुधी जाय. दाढाल सिंह वाघ प्रमुख. अने तिर्यंच मरी नरकें जाय गर्नजजुजपरिसर्प,गोह,नो३ गृध्र पक्षी प्रमुख. तेना आचरण कहे . लीयादि बीजीसुधीजाय.४ जलचर मत्स्य प्रमुख. 1 मिथ्यात्वी जीव.. ३गर्नजपंखीत्रीजीनरकेंजाय एटला जातिना जीव प्राय 2 महा आरंज करनार. 4 सिंह प्रमुख चौपद जीव घणुं करी नरकथी श्रावे अने 3 घणा परिग्रहमां आसक्त. चोथी नरक सुधी जाय. पाला पण मरीने नरकेंज जा 4 घणो लोजी होय 5 गर्जजजरःपरिसर्प पांचमी य, परंतु तेनो नियम नही. 5 शुन्नक्रिया रहित होय. नरक सुधी जाय. केम के कोश को जीव नरक 6 पापरुचि जीव होय. 6 स्त्रीरत्न बही नरकें जाय. थी श्राव्या पढ़ी जातिस्मर उ रोपरिणामी होय. गर्नजमनुष्य, गर्नजमत्स्य णोदिसामग्रीयें समकित पा G कृतघ्नपृष्ठ परिणाम वालो. उत्कृष्ट सातमी नरकें जाय. मीने शुजगतिमां पण जाय. संख्याता आयु वाला मनुष्य मरीने चारे गतिमां जाय, परंतु वज्रषजनाराच संघय एवाला को कोश् मनुष्य पांचमी सिद्धगतिमां पण जाय बे, ते कहे बे. 1 मनुष्यजाति सामान्यथी जघन्य एक बेर तापसादिलिंगे एक समये. अने उत्कृष्टां 17 एक समयमां सीजे. अ३ साधुलिंगे एकसमये. 10 ने विशेषथी वेद आश्रयी था प्रमाणे सीजे. हवे जघन्य मध्यम अने उत्कृष्ट अवगाह 2 स्त्रीलिंगे वीश सीजे. | ना श्राश्रयी मोद जवान कहे जे. 3 नपुंसलिंगे दस सीजे. 1 लघु बे हाथनी अवगाहनाये. 4 4 पुरुषलिंगे 100 सीजे. 2 मध्यम अवगाहनाये. 17 हवे ग्रहस्थादिक लिंग आश्रयी एक सम३ उत्कृष्ट पांचशे धनुष्यनी अवगाहनाये 5 यमा केटला सीजे ते ? कहे जे. 1 ऊर्ध्वलोक मेरुचूलिका नंदनवन प्रमु०४ 1 गृहस्थलिंगें एक समये. 42 अधोलोक ते अधोग्रामादिकथी. 15 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 114 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो.. 3 तिर्यक् लोकधी एक समये. 1710 अप्रकायथी श्राव्या. 1 समुज्जलमांथी एक समये. 211 वनस्पतिथी श्राव्या. 2 शेष अह नदी प्रमुखमांथी. . 312 तिर्यंचपंचेंजिय पुरुषथी आव्या. हवे कर गतिमांथी श्रावेला मनुष्य एक स 13 तिर्यंच स्त्रीथी श्राव्या. मये केटला मोदें जाय ? ते कहे . 14 मनुष्य पुरुषथी श्राव्या. 1 नरकगतिथी श्राव्या. 2015 मनुष्य स्त्रीथी श्राव्या. शतिर्यंच गतिथी आव्या. 2016 जुवनपतिनी प्रत्येक निकायथी. 3 मनुष्यगतिथी आव्या. 2017 जुवनपतिनी देवीथी श्राव्या. 4 देवगतिथी श्राव्या. 10027 व्यंतर देवोथी श्राव्या. 5 रत्नप्रनाथी श्राव्या. १०१ए व्यंतर देवीथी आव्या. 6 शर्करप्रनाथी श्राव्या.. 1020 ज्योतिषी देवोथी आल्या. 7 वालुकाप्रनाथी श्राव्या. 101 ज्योतिषी देवीथी श्राव्या. पंकप्रनाथी श्राव्या. 422 वैमानिक देवोथी श्राव्या. ए पृथ्वीकायथी आव्या. 423 वैमानिक देवीथी आव्या. 2- BBBBBBBBB चक्रवर्तीना चौद रत्ननां नाम तथा लंबाश् थादिक प्रमाण तथा तेनाथी थतां काम. एकेंजिय. प्रमाण. जे कार्य करे ते कहे जे. पंचेंजिय शुं कार्य करे. वासुदेव देहमान. चक्ररत्न. वामप्रमाण. वैरीनुमस्तक छेदे. पुरोहित. शांतिकर्मकरे चक्ररत्न. साते जे बत्ररत्न. वामप्रमाण. म्लेबनामेघनो निरोध.अश्वरत्न.महापराक्रमी धनुष्यर काले उ दंगरत्न. वामप्रमाण. वांकीनूमिने समीकरे, गजरत्न. महापराक्रमी खगरत्न. त्पन्न थ चर्मरत्न. बेहाथप्रमाणशाली प्रमुखने उत्पन्न सेनापति चारखंड जिते कौस्तुन. या होय, खड्गरत्न. बत्रीशअंगुल संग्राममांशक्तिवंतहो गृहपति घरयोग्यकाम गदारत्न. ते काल कांगिणी.चारअं.लांबु. वैताढ्यनी जीतेमांडला वार्त्तिक. नदीना पुल. वनमाल ना पुरुष मणिरत्न. चारअं.लांबु. बारयोजन उद्योत करे.स्त्रीरत्न. महारूपवंत. शंखरत्न. प्रमाण. - ए एकेकुं रत्न एक हजार यकदेवोयें अधिष्टित होय, अने बे हजार देवो चक्रवर्तीनी बे बाहुये अधिष्टित होय सर्व मली शोल हजार देवो चक्रवर्तीनी सेवा करे. एमांच करत्न, खड्गरत्न, बत्ररत्न अने दंगरत्न. ए चार श्रायुधशालामां उपजे. तथा मणिरत्न, सुवर्णकांगिणीरत्न अने चर्मरत्न, ए त्रण नंमारमा उपजे. अने हस्ती तथा अश्व ए बे वैताढ्य पर्वतमां उपजे, जंबूहीपमां जघन्यथी चार चक्रवर्ती होय, तेवारें बपन्न रत्न Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 15 होय श्रने उत्कृष्टथी श्रहावीश विजयना तथा एक जरतनो श्रने एक ऐरवतनो मली त्रीश चक्रवर्ती होय, तेवारे 420 रत्न होय. हवे सिझशिक्षा, स्वरूप कहे . हवे पूर्वनुं प्रमाण कहे बे. 1 सर्वार्थसिक विमानश्री बार योजन ऊंची. चोराशी लाखने चोराशी लाखे गुणतां 2 कोश्क आचार्य कहे , के सर्वार्थसिक 70560000000000 एटलो आंक आवे ते विमानथी बार योजन लोकनो बेहमो. टला वर्षनी एक पूर्वमा संख्या जाणवी. 3 पीस्तालीश लाख योजन लांबी पहोली. निगोदनुं स्वरूप कहे जे. 4 अढीवीपमा पिस्तालीश लाख योजन 1 जे गोलाकारे निगोदनो समुदाय, तेने प्रमाण मनुष्यनी वस्ति ने अने जे मो गोलो कहीये. तेवा असंख्याता गोला द जाय , ते पण मनुष्यज जाय बे, चौद राजलोकमां बे. ते सर्व समश्रेणीये जाय बे, माटे जे 2 एकेक गोलामां असंख्याती निगोद . स्थलथी जाय तेज स्थले जश तिहां सि 3 एकेका निगोदमां अनंता जीव जाणवा. कशिलामा रहे. - हवे वनस्पतिने विषे अनंतकायनो सं 5 वच्चमां श्राप योजन जामी जे. नव कहे बे. 6 बेहडे माखीनी पांख सरखी पातली बे. 1 सर्व जातिनी वनस्पतिनो प्रथम जगतो 7 वर्णे अर्जुन सोना सरखी . - अंकूरो अनंतकाय होय. 7 स्फटिक रत्ननी पेरे निर्मल उज्ज्वल . 2 पड़ी ते अंकूरो वधतो वधतो प्रत्येक रू ए उत्तान उत्राकारे बे. अथवा घृतथी नरे पे अथवा साधारण रूपे थाय. ली जेवी कचोली होय, तेवे आकारे बे. हवे एकेजियपणुं कोण जीव पामे? ते कहे जे. 10 सिझशिलानी ऊपर एक योजन बेहडे 1 जेने मैथुननी श्छा घणी होय. लोकनो अंत बे. तिहां एक कोशनो उ 5 जेमा अझानपणुं होय. हो नाग 333 धनुष्यनी उपर बत्रीश अं 3 जे घणो बीकण होय. गुलमां सर्व सिझना अनंताजीव रह्या . 4 अशाता आवे थके घणो कायर होय. श्रथ त्रेवीश पदवीनां नाम. 1 चक्ररत्न. 5 खड्गरत्न. ए गाथापतिरत्न. 13 गजरत्न. २त्ररत्न. 6 मणिरत्न. 10 वार्धिकरत्न. 14 स्त्रीरत्न. 3 दंगरत्न. कांगणीरत्न. 11 पुरोहितरत्न. 15 तीर्थंकरपदवी. 4 चर्मरत्न. सेनापतिरत्न. 12 अश्वरत्न. 16 चक्रवर्ती पदवी. Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 17 वासुदेव पदवी. १ए केवली पदवी. 1 श्रावक पदवी. 23 मंडलीक पदवी. 27 बलदेव पदवी. 20 साधु पदवी. 22 समकित पदवी. हवे कयीगतिथी निकल्या जीवो, ए त्रेवीश मांदेली कयी पदवी पामे ? ते कहे बे. 1 पदेली नरकना निकल्या जीव, एकेंजी रत्ननी सात पदवी न पामे बाकी शोल पामे. 2 बीजा नरकना निकल्या जीव, एक चक्रवर्ति पदवी वर्जिने बाकी पन्नर पदवी पामे. 3 त्रीजी नरकना निकल्या जीव, वासुदेव बलदेव ए बे टाली बाकी तेर पदवी पामे. 4 चोथा नरकना निकल्या जीव, एक तीर्थंकर वर्जी बाकी बार पदवी पामे. 5 पांचमा नरकना निकट्या जीव, केवली वर्जी बाकी अगीयार पदवी पामे. 6 बहा नरकना निकल्या जीव एक साधु टाली बाकी दश पदवी पामे. सातमा नरकना निकल्या जीव. हस्तिरत्न, अश्वरत्न. समकेत ए त्रण पदवी पामे. नवनपति, वाणव्यंतर अने ज्योतिषी ए त्रण निकायमांथी निकलेला जीव, एक वासुदेव बीजो तीर्थकर ए बे पदवी न पामे शेष एकवीश पदवी पामे.. ए पृथिवी, अप, वनस्पति, पंचेंजियतिर्यंच अने मनुष्य ए पांचमांश्री निकल्या जीवो, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव अने तीर्थंकर ए चार वर्जी शेष अंगणीश पदवी पामे. 20 बेंडी, तेंडी अने चौरिंखी ए त्रण विकलेंडी मांदेथी निकल्या जीवो चार उत्तम पुरुष अने पांचमी केवलीनी पदवी टाली शेष अढार पदवी पामे. 11 अग्नि अने वायुकायमांथी निकट्या जीवो सात एकेंजीरत्न श्राठमो हस्तिरत्न श्र ने नवमो अश्वरत्न ए नव पदवी पामे. 15 सौधर्म तथा ईशान देवलोकना निकल्या जीव सर्व त्रेवीश पदवी पामें. 13 त्रीजाश्री पाउमा देवलोकना निकल्या जीव,सात एकेंजी टाली शेष शोल पदवी पामे. 24 नवमा देवलोकथी मांडी नवग्रैवेयक पर्यंतना निकल्या जीवो, सात एकेंजीरत्न श्रा मुं हस्तिरत्न अने नवमुं अश्वरत्न वर्जी शेष चौद पदवी पामे. 15 पांच अनुत्तरश्री श्रावेला जीवो चौदरत्न तथा वासुदेव टाली शेष पाठ पदवी पामे. हवे विमान प्रमुख पदार्थ जे श्रांगुले करी|३ शरीरने उत्सेधांगुले करी मापीये. मवीये, ते कहे . | हवे ए आंगुलना प्रमाण कहे . 1 घर, कूवा, तलाव प्रमुख जे वस्तु ते 1 सर्वथी पहेलां सूक्ष्म परमाणुं कहीये. सर्व आत्मांगुले करी मापीये. एवा अनंता सूक्ष्म परमाणुये एक बादर 2 पृथ्वी, पर्वत विमान प्रमुख जे ते सर्व | परमाणु कहीये. पदार्थो प्रमाणांगुले करी मापीये. 3 श्राव बादर परमाणुये जे सूर्यना तापे Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 217 जाली प्रमुखमां नजरे देखाय,एवा कणी 3 गोबरना गणामां जेटली जातिना जीव याने ऊर्ध्वरेणु अथवा रथरेणु कहीये. श्रावी उपजे,ते सर्व एक योनिना जाणवा 4 था ऊर्ध्वरेणुये एक त्रसरेणु थाय. हवे पांत्रीश छारमा प्रत्येक दंगके जीवोना 5 आठ त्रसरेणुये देवकुरु देवना युगली कुलनी संख्या कही ,तेनो शरवालो करीये, या मनुष्य संबंधी एक मोवालानी अ तेवारे १ए७५000000 थाय. यद्यपि उपज णी थाय, तेने वालाग्र कहीये. वानी योनि एकज बे पण तेमां कमी की 6 आठ वालाग्रे एक लीख थाय. डा प्रमुख घणां कुल आवी उपजे बे. 7 आठ लीखे एक यूका थाय. जाउ यूकाये एक यव थाय. हवे जूदी जूदी योनिनां स्वरूप कहे बे. ए श्राप यवे एक उत्सेधांगुल थाय. 1 देवता एकेजिय,नारकीने संवृत योनि. 10 ब उत्सेधांगुले एक पग थाय. 2 विकलेजिय, संमूर्बिमपंचेंजियतिर्यंच 11 बे पगे एक विलस एटले वेत थाय. ___ अने मनुष्यने विवृत योनि होय. . 15 बे विलसे एक हाथ थाय. 3 गर्नज पंचेंजिय तिर्यच तथा मनुष्यने 13 चार हाथे एक धनुष्य थाय. मिश्र ते संवृत, निवृत, बेह योनिहोय. 14 बे हजार धनुष्ये एक कोश थाय. 4 देवता, नारकीने अचित्त योनि होय. 15 चार कोशे एक योजन थाय. ५गर्नज तिर्यंच तथा मनुष्यने मिश्रयोनि ___ हवे प्रमाणादि अंगुल कहे . बाकी सर्व जीवने सचित्तादित्रण योनि. 1 चारशे उत्सेधांगुले एक प्रमाणांगुल थाय. 7 नारकीने शीत ऊष्ण ए वे योनि बे. 2 बे उत्सेधांगुले श्रीमहावीर जगवाननु 7 देवता श्रने गर्नज तिर्यंच पंचेंडीय त 13 था मनुष्यने मिश्र योनि होय. एक आत्मांगुल कहेवाय. ३श्रीशषजदेवजीश्रनेजरतचक्रवर्ती-शरीर. . ए पृथ्वी, अप, वायु, वनस्पति तथा संमू 120 प्रमाणांगुल प्रमाण जाणवं. " र्छिम तिर्यंच अने मनुष्यने त्रण योनि. हवे सर्व जीवोने उपजवानी योनि चोराशी / 10 तेउकायने एकज ऊष्ण योनि होय. लाख,ते सर्व प्रथम पांत्रीश छारमांकहेली . / हवे मनुष्यने योनि विशेष कहेले. " 1 शंखावर्ता योनिमां पुत्र मरण पामे. बे, अहीं तेनुं स्वरूप लखीये ढ़ये. शंखावर्त्ता योनि स्त्रीरत्ननेज होय. 1 जे जीवोनी उपजती वखते वर्ण, गंध, 3 कूर्मोन्नत योनि ते काचबाना पुरानी पेठे रस, स्पर्श एक बीजाना परस्पर सरखा जंची होय पेट वधे नही, ए योनिमांश होय, तेवा सर्व जीवोनी एकज योनिजे. रिहंत, चक्रवर्ती, वासुदेव,बलदेव उपजे. 2 उपजवाना स्थानकने पण योनि कहिये. 4 वंशना पान बेनेलां करीये एवे आकारे 28 Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. जे योनि होय ते त्रीजी वंसीपत्ता योनि काले उदय श्रावे, तेनी वचमांनो काल कहीये. एमां शेष सामान्य मनुष्य उपजे. ते अबाधाकाल कहेवाय. हवे आयुसंबंधि विशेष कहे . 5 अंतसमये आयु पूर्ण थये जीव एक स - मय प्रमाण जुगति करे अथवा चार 1 बांधवानी वेलाये बंधकाल आयु कहीये. : 2 श्रायु बांध्या पठी जेटलो काल वचमां, | पांच समय प्रमाणनी वक्रगति करे. उदय न श्रावे, तेने अबाधाकाल कहीये. हवे ए बेहु गातमा निश्चय व्यवहारनये क 3 आयु पूर्ण थाय ते अंतसमयायु कहीये. री परजवर्नु आउखु उदय श्रावे अने 4 घणो काल जोगववा योग्य वायुने सर्व परजवनो आहार होय ते कहे . प्रदेशे उदेरी स्वल्पकाल जोगववा योग्य 1 जुगतिमा पहेले समये परजवतुं श्राज करे समकाले जोगवे तेनेअपवर्तनकहीये खुं अने परजवनो आहार उदय श्रावे. 5 जेटला कालखें बांध्युं तेटलोज जोगवे 2 वक्रगतिमां बीजे समये परजवनुं श्राउ तेने अनपवर्तन श्रायु कहीये. खं उदय आवे, अने एक समयनी वक्र गतिमां बीजे समये आहार करे, ६जे कारणे करी श्रायु घटे,तेउपक्रमश्रायुजे. 7 को कारणे श्रायु न घटे ते निरुपक्रमायु.२ युब 3 बे समयनी वक्रगतिमां त्रीजे समये श्रा हवे बंधकाल जे जीवने जेटलो होय, तेकहे . हार हार करे. एक समय अणाहारी होय. 1 देवता, नारकी, असंख्याता वर्षायुवाला , ९०४त्रण समयनी वक्रगतिमां चोथे समये - श्राहार करे. बे समय अनाहारी होय. युगलीया मनुष्य तिर्यंच ए सर्व उ मास , आयु रहे, तेवारे परनवनुं श्राउखु बांधे. 5 05 चार समयनी वक्रगतिमां पांचमे समये 2 संख्याता वर्षायु वाला एवा तिर्यंच मनु / - आहार करे.त्रण समय अनाहारी होय. ष्य निरुपक्रमायु वाला ते त्रीजो नाग 1 6 एक समयनी वक्रगतिमां बेहु * समय श्राय बाकीरहे तेवारे परजवनं श्रायबांधे. आहार लाया 3 सोपक्रम आयु वाला मनुष्य तिर्यंच हवे श्रायु श्राश्रयी कहे . त्रीजा जागथी उद्धं शेषायु रहे थके अजे आयु बांधवा समये यथायोग्य ढीवु थवा नवमो नाग, अथवा सत्तावीशमो बांध्य, ते देशकाल अध्यवसाय श्राश्रयी नाग अथवा अंतर्मुहूर्त श्रायु शेष रहे, घटे, तेने अपवर्तनायु कहीये. तेवारे परजवनुं श्रायु बांधे.. जे श्राउ पहेलु घणुं निकाचितबंधे के 4 श्राउखानो जेटलो नाग बाकी रहे थके री बांध्यु, ते अवश्य जोगवqज जोश्ये नवा आउखानो बंध पडे, पडी जेटले तेने अनपवर्तन श्रायु कहीये. . ए जे उत्तम पुरुष जेवा के चक्रवर्ती च Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. शए. मशरीरी तेज नवे मोद जावा वाला सी खाई मरे ते निमित्त मरण कहीये एवा मनुष्य, तेमज देवता तथा नारकी 3 जुख तृषाथी मरे, अथवा घणो आहार अने युगलीया मनुष्य तथा तिर्यंच ए करवाथी मरे ते आहार मरण कहीये. सर्वनुं निरुपक्रम आज होय. शूलीथी, विषमवेदनाथी, पेट दुःखवा 10 जे अध्यवसाये अथवा विष प्रमुखे करी थी मरे ते वेदना सरण कहीये. आउखु घटे, ते अध्यवसाय प्रमुख उ 5 पेटमां कटारीमारी मरे पाणीमांहे पड़ी पक्रम कहीये, अने ए उपक्रमथी विप मरे, ते पराघात मरण कहीये. रीत ते अनुपक्रम कहीये. 6 विषकन्या फरसथी मरे, सर्प विबी प्रमु हवे सात प्रकारे आयु घटे, ते कारण कहे जे. खना मसवाथीमरे तेफरस मरणकहीये. 1 राग द्वेषथी तथा स्त्रीना स्नेहथी मरे ते 7 घणा श्वासोवास श्राव्याथी मरे थोडा अध्यवसाय मरण कहीये. श्वासोवास आव्याथी मरे, ते आणपा 2 ताजणा प्रमुख शस्त्रथी मरे.अथवा फां ण मरण कहीये, हवे कुबेरदत्तासाधवीये बालकनी पागल श्रढार नात्रां पोतानां गायां, तेनां नाम कहे बे. प्रथम बालकनी साथे उ सगपण कहे बे. हारो काको थयो ते महारा काकानो व 1 पोतानी माताना उदरमांथी ए बालकनो ली ए बाप थाय माटे महारो दादो थयो. ' जन्म थयो बे माटे जाइ थयो. 5 वली पहेला महारी शोक्यनो ए दोकरो 2 नाश्नो दीकरो थाय माटे नत्रीजो थयो हतो माटे महारो दिकरो पण थाय. ३धणीनो न्हानो नाश्थाय माटे देवरथयो. 6 महारी सासुनो धणी थाय बे ते माटे म 4 शोकनो जएयो ने माटे दीकरो थयो. हारो ससरो पण थाय. 5 बापनो नाश् थाय, माटे काको थयो. हवे कुबेरदत्ता गणिकानी साथे नातरां शोकनादीकरानो दीकरोमाटे पौत्रो थयो केवी रीते थाय ? ते लखीये बैये. हवे कुबेरदत्त नाईनीसाथे नात्रांथयांतेकहे 1 एनी कुखे जन्मी बुं माटे माता थाय. 1 बेहु जण एकज माताना उदरथी उपना 2 महारा धणीनी माता थाय माटे सासूने. बैये ते माटे महारो जाइ कहेवाय. 3 महारा नाश्नी स्त्री थायमाटे जोजावे. 2 फरी महारी मातानो ए धणी थयो ते 4 महाराज रनी स्त्री थाय ते शोक्य कही. __ माटे महारो बाप कहेवाय. 5 महारा काकानीमाताथायतेदादी कहीये 3 एनी साथे हुँ परणी माटे ज र थाय. 6 महारी शोक्यनो दीकरो ते महरो पण 4 ए पालणांमा पोढेलो डोकरो महारा ध दीकरो थयो, तेनी ए स्त्री . ए सगपण णीनो नाश् थाय जे तेथी ते डोकरो म गणतां महारी वहू पण थाय, Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 220 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. - ए अढार नात्रां कुबेरदत्ता साधवीये एकला पोता श्राश्री पालाणमां पोहोटेला ला करानी श्रागल गाइ संनलाव्यां एवा कुबेरसेना वेश्या तथा ते साधवीनो ना जेने पोते परणी हती, ते तथा तेना वीर्यथी जे बालक उत्पन्न थयो जे जेनी पासे साधवी पोते उत्नी रहीने हालरमा गाय , ते मली चारे जणना प्रत्येके एकेकना अढार अढार नात्रां परस्पर एक बीजानी साथे संबंधे थाय, तेवारे सर्व मली बहोतेर नात्रां थाय. ॥अथ अशुनध्यानना त्रेशन स्थानक, दृष्टांत सहित कहे . // 1 अज्ञान ध्याननी ऊपर, मासतुषनो दृष्टांत जाणवो. 2 अनाचार ध्याननी ऊपर, पुत्रने अर्थे चिंताना करनार कोंकण साधुनो दृष्टांत. 3 कुदर्शन ध्याननी ऊपर, नंदमणियार श्रेष्ठीनो तथा सोमिलब्राह्मणनो दृष्टांत. 4 क्रोधध्याननी ऊपर, कुलवालक, मंखलीपुत्र, पालक तथा नमुचिनो दृष्टांत. 5 मान ध्याने बाहुबलीनो दृष्टांत. 6 मायाध्याने मल्लिनाथनो दृष्टांत. लोनध्याननी उपर केसरीया लामु वहोरनार, साधुनो दृष्टांत. राग ध्याननी ऊपर त्रण दृष्टांत कहे . तेमां कामरागनी ऊपर मणिरथराजा जे मयणरेहा सतीनी ऊपर मोहित थयो तेनो दृष्टांत. तथा स्नेहरागनी ऊपर जानु मंत्री अने सरस्वतीनो दृष्टांत अने दृष्टिरागनी उपर गोष्टामाहिलनो दृष्टांत. ए वेषध्याननी ऊपर धर्मरुचि नंदनावमनो दृष्टांत. 10 मोहध्याननी ऊपर बलदेव, विष्णु, तथा सशंजवसूरिनो दृष्टांत. 11 श्वाध्याने कपिलकेवलीनो दृष्टांत. 15 मिथ्यात्वध्याने जमालीनो दृष्टांत. 13 मूर्बाध्याने कनककेतुनो दृष्टांत. 14 शंकाध्याने आषाढाचार्यनो दृष्टांत. 15 कांदा ध्याननी ऊपर मरीचि तथा कपिलादिकनो दृष्टांत. 16 गृहिध्याननी ऊपर महरामंगू ने कंडरिकनो दृष्टांत. 17 आशाध्याननी ऊपर मूलदेव अने निषूणशर्म ब्राह्मणना संबलनो दृष्टांत. 17 तृष्णाध्याननी ऊपर अंगारदाहकनो दृष्टांत. रए दुधाध्याननी उपर संप्रतिराजानो जीव कुमकनो दृष्टांत, 20 पंथध्याननी ऊपर पोतनपुर मार्गगवेषक वल्कचीरीनो दृष्टांत. 1 पंथे चालवाना ध्याननी ऊपर वरधणु तथा ब्रह्मदत्तनो दृष्टांत. 22 निता ध्याने चौदपूर्वधर दृष्टांत. 3 नियाणाध्याने संनूतिज्ञषि प्रौपदी दृष्टांत. श्व स्नेह ध्याननी ऊपर मरुदेवीमाता तथा अन्नकजीनी मातानो दृष्टांत. 25 कामध्याननी ऊपर हासा, प्रहासा, लोनित कुमारनंदीनो दृष्टांत. . Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. शश 26 कलुषध्याननी ऊपर उदायिनराजा प्रति अनिची कुमारनो दृष्टांत.. 27 कलहध्याननी ऊपर महाशतक श्रावक तथा रेवती श्राविकानो दृष्टांत. शज युद्धध्यान उपर कूणिक अने चेटकना दृष्टांत.एनियुकध्याने जरत बाहुबलीनो दृष्टांत 30 संगध्याने लवदेव नागिलानो दृष्टांत. 31 संग्रहध्यान उपर मम्मण दृष्टांत. 32 व्यवहारध्याननी ऊपर राज कुलिपुत्रने अर्थे बेहु शोक्योनो दृष्टांत. 33 क्रय विक्रयध्याननी ऊपर लोननंदनो दृष्टांत. 34 अनर्थ दंग ध्याननी ऊपर वैपायनशषि प्रति साम्ब प्रद्युम्नादिकनो दृष्टांत. 35 आजोग ध्याननी ऊपर प्रसन्नचंदनो दृष्टांत जेने जाणतां व्रत वीसख्यां. 36 श्राणाईल ध्याने सणाविल साधुनी बहेने वधतुं तेल लीधुं ते शण थयानो दृष्टांत. 37 वैरध्यानी ऊपर फरशुराम तथा सुनूमादिकनो दृष्टांत. 3- वियवध्याननी ऊपर नंदराजानुं राज्यलेवा वांबनार चाणाक्यनो दृष्टांत जाणवो. ३ए हिंसाध्याननी ऊपर, कूपनिक्षिप्त कालसूरियानो दृष्टांत जाणवो. 40 हास्यध्याननी ऊपर चंबरौनाचार्ये शिष्यने दीक्षा दीधी, तेनो दृष्टांत जाणवो. 41 प्रहास्याध्याने चंप्रद्योतने वारतज्ञरुषीश्वरने निमित्त कहीने वांद्यो, ते दृष्टांत. 42 पठसंध्यानी ऊपर मरुनूति प्रत्ये कमनी पेठे दृष्टांत जाणवो. 43 फरुसध्याननी ऊपर ब्रह्मदत्त प्रते चुतणीनो अथवा युगबाहु प्रत्ये मणिरथनो दृष्टांत. 44 जयध्याने गजसुकुमालनो विनाश करनार सोमिलने जय उपनो ए दृष्टांतजाणवो. 45 अप्रशंसाध्याने सकमाखना मुखथकी वररुचिये पोतानी अप्रशंसानुं ध्यान की, ते दृष्टांत अथवा रथिके पोतानुं विज्ञान कोश्याने देखाड्युं ते दृष्टांत. 46 परनिंदाना ध्यान ऊपर कुरंगरु मुनि निंदाना करनारा चार दपकनो दृष्टांत. 47 परग्रह ध्यान ऊपर सजासमद गोष्टामाहिल उर्बलिकापुष्पग्रे रह्यो, ए दृष्टांत. 40 परिग्रह ध्याननी ऊपर मुनिपति प्रत्ये कुंचिक श्रावकनो दृष्टांत Yए परपरिवादध्याननी ऊपर सुनमा सती प्रत्ये तेनी सासु नणंदनो दृष्टांत. 50 परदूषणध्याननी ऊपर दमयंतीने डाकिणीना कलंक चढाव्यानो दृष्टांत. 51 आरंजध्याननी ऊपर ढंढणा कुमार पूर्वजव राजाधिकारीनो दृष्टांत. 55 समारंजध्याने मनमांहे कीईक शोक्यना दीकरा- मरण चितवनारा सुसढनो दृष्टांत. 53 पापानुमोदनध्याननी ऊपर तंडुलमत्स्य अंतरमुहूर्त अनुमोदन करे ते दृष्टांत. 54 अरिजाणध्यान ऊपर वापीनो उद्यान नंदमणियारे चिंतव्यो तेनो दृष्टांत. 55 असमाधिमरणध्याननी ऊपर स्कंदसूरिनो दृष्टांत. Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 222 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 56 कर्मोदय पच्चयं ध्याननी ऊपर मरणवेलाये विष्णु श्रेणिका दिकनी पेरे दृष्टांत, 57 शझिगारवध्याननी ऊपर दशानन राजानो दृष्टांत. 57 रसगारवध्याननी ऊपर सुबुधि प्रधान प्रत्ये जितशत्रु राजानी पेठे दृष्टांत. एए शांतागारव ध्याननी ऊपर शशीराजानी पेठे दृष्टांत. 60 अविरमणध्याननी ऊपर नृगुपुरोहितना बेहुकुमर श्राश्रयी दृष्टांत जाणवो. 61 अमुत्तिमरण ध्याननी ऊपर ब्रह्मदत्तनो पूर्वजव संजूत यतिनो दृष्टांत. 65 रूपध्याननी ऊपर चंदप्रद्योते पटलित अंगारवतीना रूपनो दृष्टांत. // उपदेश रत्नकोश प्रारंजः॥ 20 गुणवंत पुरुषनो उपकार करवो. 1 सर्वदा जीवदया पालवी. 1 उपकारकरीबीजाआगलप्रकाशवोनही. 2 इंजियोने कुमार्गे प्रवर्तववी नही. 22 पुःखमांरूडा माणसनेवालंबन थापq. 3 इंडियोने धर्ममार्गे प्रवर्ताववी. 23 महोटुं संकट श्रावी पडे तो पण कोश 4 निरंतर धर्मपूर्वक सत्यवचन बोलवू. नी आगल हाथ मांझवो नही. 5 शील खंडन करवू नही. 24 कोइ आपणने प्रार्थना करे तो उति 6 कुशीलीयानो संसर्ग करवो नही केमके शक्तिये प्रार्थनानो नंग न करवो. जेवी संगति होय तेवी बुद्धि पण थाय. 25 पोतामां घणा गुण होय तो पण पोता 7 गुरुनु वचन लोपवू नही. नी प्रशंसा स्वमुखे करवी नही. जेम गुरु कहे, तेमज प्रवर्तवं. 26 उर्जन माणसनी निंदा करवी नही.. ए मार्गमां चपलपणे चालवू नही. जेनो जेवो स्वजाव होय ते मूके नही. 10 नीची दृष्टिराखी जीवयत्नकरतां चालवं. 2 पोताना धर्ममार्गे चालीये.. ११पोतानेकुलयोग्यव्यानुसारेवेशपरवो. श्ए घणी हास्य मस्करी न करवी. 12 वांकीदृष्टिये कोश्नी साहामुंजोवू नही. 30 हास्य न करवाथी गुरुता पामीये. 13 पोतानी जिव्हा संवरी राखवी. 31 वैरीनो विश्वास करवो नही. 14 बालपंपाल एटले यत् यत्नबोलवू. 32 जे आपणा उपर विश्वास राखे, तेनी 15 अविचारित कार्य न करवुविचारीकरवू साथे कोरीते विश्वासघात न करवो. १६पोतानाकुलनोरुमो श्राचारलोपवो नही. 33 कोश्नो करेलो उपकार वीसारवो नही. 17 पारका मर्म बोलवा नही केमके तेरोष्यो 34 गुणवंत उपर राचीये प्रशंसा करीये. थको पोते मरे अथवा आपणने मारे. 35 निःस्नेही ऊपर स्नेह न करवो. परंतु 27 कोश्ने कूडं थाल देवू नही. मध्यस्थ पणे रहे. रए कोश्ने आक्रोश वचन कही शाप नदेवो 36 पात्रनि परीक्षा करी सुपात्रने दान देवं. Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 223 सन्मान करवू, केम के सत्पुरुषनो श्रा 55 सर्वको प्रत्ये सरस सकोमल श्रने थो कलिकालयां त्रोटो . - डुं धर्मसंयुक्त वचन बोलवू. 37 लोक निंदा करे ते काम न कर केम 53 पोताना शत्रु अनेमित्रनोविनय करवो. के जु बोलवू,चोरी करवी, परदारा से 54 पोतानी संपत्ति माफक दान देवू. ववी, एथी लोकमां कलंक चढे अने प 55 पारका गुण शील होय ते बोलवा. पण रजवे नरके जq पडे. माटे ते न करवं. अवगुण न बोलवा. ए मंत्रविना पण 30 पोतानुं साहस सत्त्व जोमवू नही. जो महोटुं वशीकरण डे एम जाणवू. __पोतामां सत्त्व होय तो सर्व कारज थाय. 56 प्रस्तावे बोलवू पण अप्रस्तावे न बो ३ए व्यसननी उपर मोहित न था. लवू केमके प्रस्तावे बोल सर्वने गमे. 40 लक्ष्मीदय थाय तो पण थोडामाथी यथा 57 घणा माणसमांहे जे उर्जन होय तेनुं योग्य दान श्रापq ए धीरपुरुषy खड्ग बहुमान करवं.. धारा समान व्रत जाणवू. 57 पोताना प्रियनुं विशेष उपकार करवो. 41 कोश्नीसाथे घणो स्नेह न करवो जेटलो ५ए गुणवंतनी पूजा करवी. स्नेह करीये तेटलो फुःखदायी थाय. 60 बीजानी पासे मंत्र आलोच न करवो. 42 अजीष्ट उपर प्रति दिवस रोष न करवो. 61 पारके घेर एकला न जq. 53 को साथे क्लेश न करवो. 65 स्त्रीये पतिव्रता धर्म पालवो. 44 अन्यायथी लक्ष्मी उपार्जवी नही. 63 जेनी साथे अत्यंत प्रीति करवा वांबी 45 कुवास कुगकुर वास न करवो. ये तो तेने घेर जमवं. 46 बालकने प्रियवचने बोलावq. 64 ते मित्रने श्रापणे घेर जमामवो. 47 वैरीने मधुरवचने बोलाववो जेथी ते सु 65 मित्रने वस्त्रादिकनुं दान श्रापq. ख पामे तो श्रापणी साथे कलह न करे. 66 मित्र जे वस्तु थापे, ते लेवी. 47 घणी लक्ष्मी होय तो पण ते बपोरनी 67 पोतानी वात मित्र आगल कहेवी. बाया सरखी जाणी अहंकार न करवो. 60 मित्रनी वात पोते पण पूडवी, एम क Yए लदमी न होय तो विषवाद न करवो. रवाथी तेनी साथे प्रीति दृढ थाय. सर्वदा समजावे रहेवाथी संताप न थाय. ६ए कोर्नु अपमान करवू नही. ५०सेवकनां वखाण तेनां मुख आगल करवां. 70 पोताना गुणनो गर्व न करवो. 51 पुत्रनां वखाण तेनी पाबल करवां पण 71 गर्व करवायी गुणहीन थश्ये. तेनां मुख आगल न करवा. 72 बहुरत्ना वसुंधरा ने माटे पृथ्वीमा वि चित्र आश्चर्य देखी विस्मय पामतुं नही. Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 224 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो.. 73 महोटुं कार्य आरंजीने पनी न्हानुं क 75 सर्वजीवने पोता सरखा जाणी कोइने रीये तो लोकमां हांसी थाय. उहवीये नही राग रोष आणीये नही. 4 न्हानुं कार्य प्रारंजीने पड़ी तेने महीटुं 76 एप्रमाणे वर्तनारो पुरुष क्यारे पुःखीन करीये तो लोकमांहे प्रशंसा थाय. / थाय आवटे कमें छेदी मोद जाय इति // ॥अथ अष्टनंगी प्रारंजः॥ 1 सुदेव, सुगुरु अने सुधर्म, ए त्रण तत्त्वनुं स्वरूप न जाणे अने साधुधर्म तथा श्रावक धर्म ए बे मांहेलो को धर्म न श्रादरे अने पच्चरकाण जिनमत अनुष्ठान न पाले ए प्रथम नांगो जाणवो एनो स्वामी सकल लोकवासी मिथ्यात्वी जाणवो. 2 जिनतत्त्व न जाणे अने साधु धर्म तथा श्रावक धर्म आदरे अने अज्ञानकष्ट मास दमणादिक पञ्चरकाण पाले ए बीजो जांगो बाल तपस्वी तापसादिकनो जाणवो. 3 ज्ञानतत्व न जाणे अने बेहु धर्ममांहेलो एक धर्म श्रादरे पण यथास्थित साधुधर्म मार्ग न पाले प्रतीत न आणे ए न जाणे, न आदरे अने न पाले, एवो त्रीजो नां गो सर्व पासघा, कुशीलीया, संशक्त इत्यादिक जव्य तथा अजव्यादिकनो जाणवो. 4 जिनमत स्वरूप न जाणे तथा वली साधु धर्म आदरे वली यथाबंद पणे साधु मार्गने पाले ए न जाणे,आदरे अने पाले एवो चोथो नांगो उत्सूत्र प्ररूपक अगीतार्थनो ने. 5 धर्मना स्वरूपने जाणे, पण नियमना जयने लीधे बेहु धर्म मांहेलो एके धर्म न थादरे अने व्रत पच्चरकाण पण पाले नही ए जाणे, न आदरे, अने न पाले एवो पांचमो नांगो श्रेणिक, सात्यकी अने श्रीकृष्ण प्रमुख सम्य दृष्टियोनो जाणवो 6 धर्मना स्वरूपने जाणे पण बेहुमांहेलो एके धर्म श्रादरे नही, परंतु नववाम सहित शील प्रमुख पाले ए हो नांगो अनुत्तर विमानवासी देवादिकनो जाणवो. 7 जिनधर्मना स्वरूपने विशद रीते जाणे अने बेहु धर्ममांहेला एक धर्मने आदरे परंतु निसावरणीय कर्मोदये करी पाली शके नही सातमो नांगो संविज्ञपदीनो जाणवो. जिनधर्ममां अत्यंत कुशल थको धर्मस्वरूपने जाणे अने आदरे तेमज जिनोक्तधर्म यथास्थित पणे पाले ए जाणे, आदरे अने पाले एवो श्रापमो नांगो साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविका रूप चतुर्विध श्रीसंघनो जाणवो. ए श्रावनांगामा प्रथमना चार जांगा मिथ्यादृष्टीना जाणवा अने पाउला चार नांगा सम्यक्दृष्टिनांडे तेमांपांचमो बहो नांगो अविरति सम्यकदृष्टीनो अने सातमो नांगो देश विरतिनो जाणवो तथााउमो नांगो देशविरति अने सर्व विरति बेहुनो जाणवो ॥इति।