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________________ २ए देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यत्रो. हवे सामान्यथी शेष देवोनो अवधि कहे . 1 जे सागरोपमथी किंचित् न्युन आउखावाला एवा नवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी दे वता ले ते अवधिझाने करी संख्याता योजन पर्यंत देखे. 2 अर्ब सागरोपमथी वधता आउखावाला देवता असंख्याता योजन पर्यंत देखे. 3 जघन्यथी दश हजार वर्षायुवाला एवा जवनपति व्यंतर पच्चीश योजन लगे देखे. 4 नवनपति व्यंतर देवो ऊंचुं घणुं देखे, सौधर्म देवलोक सुधी देखे. 5 वैमानिक देवो नी चुं घणुं देखे. 6 नारकी अने ज्योतिषी तीहूं घणुं देखे. 7 मनुष्य तिर्यंचने अनेकरीते अव घि ज्ञान होय. श्हां सुधी देवोनुं श्रायु तथा शरीरमान प्रमुख केटलि एक वातो कही. हवे नारकी जीवोना आयु प्रमुख कहेवा माटे प्रथम आयु कहे . सामान्यथी जघन्योत्कृष्टायु साते नरकनुं प्रथम पांत्रीशकारना अधिकारे कहेवाणु बे, अने इहां पाथडे पाथडे प्रथम उत्कृष्टायु कहे बे. रत्नप्रजाना तेर पाथमा मांदेला पहेले पाथडे नेवं हजार वर्ष, बीजाने विषे नेवं लाख वर्ष, त्रीजाने विषे एक पूर्वकोटि वर्ष, चोथाने विषे एक सागरोपमना दश जाग करीये तेवो एक जागायु अने पांचमाने विषे वे नाग एम पाथडे पाथडे एकेक जाग वधारतां यावत् तेरमे पाथमे संपूर्ण एक सागरोपम उत्कृष्टायु थाय बे, अने जघन्यायु तो पहेले पाथडे दश हजार वर्ष, बीजे पाथमे दशलाख वर्ष, त्रीजे नेवं लाख वर्ष, चोथे पाथमे एक पूर्वकोटि वर्ष, पांचमे एक सागरोपमना दश नाग करीये तेवो एक नाग पनी पाथडे पाथडे एकेको नाग वधारतां यावत् तेरमे पाथमे एक सागरना दशैय्या नवजाग आयु थाय. हवे बीजी नरकपृथ्वीश्रादिकमां उत्कृष्टी श्रायुःस्थिति प्राणवाने अर्थे उपाय कहे बे. शर्करप्रजाने विषे उत्कृष्टी स्थिति त्रण सागरोपम , तेमांथी रत्नप्रजाने विषे उत्कृ ष्टी स्थिति एक सागरोपमनी ते काढीये, तेवारे शेष बे सागरोपम रहे, ते बे साग रोपमने शर्करप्रनाना अगीयार प्रतरे जागापीये,तेवारे एक नागमा एक सागरोपम ना अगीयारीया बे नागावे, ते बेने वांबित प्रतर साथे गुणीये, तेवारे प्रथम प्रतरे एकनी साथे गुएयां थकां बे जागज श्रावे. तेनी साथे वली रत्नप्रजा पृथ्वीने विषे उत्कृ ष्टी स्थिति एक सागरोपमनी देते नेलीये, तेवारे प्रथम प्रतरे एक सागरोपमनी उपर एक सागरोपमना अगीयार जाग करीये, तेवा बे नाग श्रावे. एटली शर्करप्रजानाप्र थम प्रतरे उत्कृष्टी श्रायुःस्थिति जाणवी, पनी प्रतरे प्रतरे बेबे नाग वधारतां यावत्
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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