SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अढीकोपना नकशानी दकीगत. अवसप्पिणी त्रीजा आरानेविषे नेव्याशी पखवामा पाउला जेवारे शेष रहे तेवारे पेहेला तीर्थंकर सिद्धिपद पामे अने चोथा आरानानेव्याशी पखवामा पाउला जेवारे शेष रहे, तेवारे चोवीशमा तीर्थंकर सिछिपद पामे, अने उत्सर्पिणी कालना त्रीजा श्राराना नेव्याशी पखवामा जेवारे जाय, तेवारे पहेला तीर्थकर उपजे, तथा चोथा आराना नेव्याशी पखवामा जेवारे जाय, तेवारे बेटा चोवीशमा तीर्थंकर उपजे. हवे चोथा श्रारानुं स्वरूप कहे बे. बेतालीश सहस्त्र वरसे ऊणो एक कोमाकोमी सागरोपमनो चोथो आरो होय, तेहने विषे मनुष्यनुं श्रायुष्य पूर्वको डि वर्षनुं जाणवू. अने शरीरनुं मान पांचशे धनुष्य जाणवं, हवे पांचमा श्रारानुं स्वरूप कहे . पांचमा श्रारानुं प्रमाण एकवीश सहस्र वरसतुंबे, ते पांचमा आराने विषे सात हा थ उंचा मनुष्य होय, एकशोने त्रीश वरसनुं आयुष्य मनुष्य, होय, तथा पांचमा आ राने अंते जिनधर्मादि पदार्थनो पण अंत एटले नाश थाय. व्यवहार, आचार,नीति,जा ति, ए सर्वनो अंत आक्शे. ए वात सिद्धांतमां कही . तथा केटला बोल विछेद जशे? ते कहे ॥गाथा।। सुय सूरि संघ धम्मो, पुवण्हे विजिही अगणि सायं // निव विमलवाहणे सुह, ममंति तझम्म मसण्हे // 1 // दुप्पसहो समणाणं, फग्गुसिरि होश साहुणीणं च // सट्ठो नाइल नामा, सच्चसिरि सावियाणं च // 2 // पुवाए ससाए, विछे होइ चरणधम्म स्स // मनण्हे रायाणं. अवरण्हे जाइतेयस्स ॥३॥इति। तेवार पठी शुं थशे? ते कहे . लवणादि खार तथा अनि अने कालकूटादिविष, तेनी वृष्टितेणे करी पृथ्वी जे जे ते हा हाकार करशे तथा पदी जाति प्रमुखना जे बीज , ते वैताढ्य प्रमुख पर्वतने विषे रहेशे तथा मनुष्य अने तिर्यंचना बीज बे, ते सर्व बिलादि स्थाननेविषे रहे बे. हवे ते बिल वखाणे बे. वैताढ्यना वे पासानेविषे ज्यां घणां माउला , वली गामानां चकनी धारा सरखो प्रवाह ने जेहनो एहवी गंगा अने सिंधु तथा रक्ता अने रक्तवती नामे जे नदी तेहना बे तटने विषे नव नव विल ते गुफा सरखां जाणवा. एटले दक्षिण नरत मांहे बे नदी ना चार तट बे. अने उत्तर जरतमाहे वे नदीना चार तट बे, सर्व मली आठ तट बे, ते एकेक तटे नव नव बिल गणिएं, तेवारे बहोतेर बिल थाय. एम ऐरवतने विषे पण बहोतेर बिल बे, ते सर्व एकग करीएं तो एकशोने चुम्मालीश बिल थाय, हवे हा श्राराने विषे मनुष्यादिकनुं जे स्वरूप मे, ते कहेले. एकवीश सहस्र वरस प्रमाणे पांचमा आरा सरखो जे हो आरो, तेहनेविषे बे हा थ ऊंचा शरीर अने वीश वरस आयुष्यवालां एहवा मनुष्य होय, ते मनुष्य मत्स्यना आ
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy