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________________ 76 अढीछीपना नकशानी हकीगत. हार करे तथा माग रूपवाला होय वली निर्दय परिणाम वाला होय, बिलने विषे रहेनासं होय, वली नरक नियंचरूप पुर्गतिने विषे गमन करनारा होय. वलील जा रहित होय, तथा वस्त्र रहित पशुनी पेठे नग्न फरे. तथा कोरवचनना बोल नार होय, तथा ए पिता, ए पुत्र, ए स्त्री, ते ए बहेन, इत्यादि व्यवहार तेने न होय एटले तिर्यंचनी पेरे विवेकरहित होय. तथा उ वरषनी स्त्री गर्न धारण करे, ते पण अतिदुःखे प्रसव करे. वली ते स्त्रीयोने घणां बोरु होय, एवी स्त्री होय. ___ ए पूर्वोक्त आरा तेणे करी अवसर्पिणी काल होय अने तेने विपरीत पणे अवला पाणीएं तेवारे उत्सपिणीकाल थाय. त्यां अवसपिणी ते प्रथम आराथी घटतो काल होय अने उत्सप्पिणी ते प्रथम आराथी चढतो काल होय. ए अवसप्पिणी तथा उ त्सर्पिणीना बार याराना कालचक्रनेविषे वीश कोमाकोमी सागरोपम थाय. हवे शेष देत्रने विषे श्रारानुं सरखापणुं कहे . देवकुरु अने उत्तरकुरु, ए बे देत्रनेविषे अने हरिवर्ष तथा रम्यक् ए बे क्षेत्रनेविषे तथा हेमवंत अने हिरण्यवंत ए बे क्षेत्रने विष तथा पूर्व विदेह अने पश्चिम विदेह देत्र नेविषे ए चार क्षेत्रना युगलने विषे अनुक्रमे करी सदाकाले अवसप्पिणी कालना चार आरानो प्रथम काल जाणवो. ते केम के श्रवसर्पिणी कालनो पेहेलो आरो सुखम सुखमा बे. तेहना धुरनो जेहवो काल होय तेहवो काल सदैव देवकुरु अने उत्तरकुरु, ए बे कुरु देत्रने विषे होय एम बीजा आरानो जेहवो प्रथम काल होय तेहवो सदैव ह रिवर्ष तथा रम्यक् ए वे देत्रनेविषे होय. वली त्रीजा आरानो जेदवो प्रथम काल होय, तेहवो सदैव हेमवंत तथा हिरण्यवंत ए बे क्षेत्रने विषे होय तथा चोथा आ रानो जेवो प्रथम काल होय, तेवो काल महाविदेहक्षेत्रने विषे सदा जाणवो. हवे चंद्रमा अने सूर्यनां चार क्षेत्र कहे जे. जंबछीपने विषे बेचंउमा अने बे सूर्य तेनुं दक्षिण अने उत्तर दिशिनुं जे गमनागमन तेनुं क्षेत्र पांचशे दश योजन उपर एक योजनना एकसहीश्रा अमतालीश जाग जाणवा. हवे चंद्रमा अने सूर्यना मंमलनी संख्या अने प्रमाण कहे . चंजमाना पंदर मांड लां ने अने सूर्यना एकशोने चोराशी मामला , ते एकयोजननां एकशठ नाग करिएं, तेवां बपन्नत्याग प्रमाण चंजनां मांडलांडे, अने श्रमतालीशजाग प्रमाण सूर्यनां मांग लां . ए चं सूर्यना विमाने रोधन करेली नूमि तेने मंगल कहीएं,ते मंगलनी संख्या श्री मंगलना आंतर एकेके उठा जाणवा, एटले चंजमाना मामला पंदरना चउद यां तरा थाय. अने सूर्यना मांडला एकशोने चोराशीना आंतरा एकशोने त्र्याशी थाय.
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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