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________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश द्वार. २४ए इंडिय श्राश्रयी पांचे इंजिय होय. 5 एक गर्नज मनुष्य अने बीजा तिर्यंच ए समुद्घात आश्रयि वेदना, कषाय, म पंचेंजिय, ए बे दमकवाला श्रावी, नव रण, वैक्रिय अने तैजस,ए पांच होय. नपतिनी दशे निकायने विषे उपजे. 10 दृष्टि सम्यक्त्वादिक सम्यक्व, मिथ्यात्व 23 वेदमां पुरुषवेद अने स्त्रीवेद,ए बे होय. . अने मिश्र. ए त्रणे होय. 4 अल्पबहुत्वमा सौधर्म, देवलोकनी दे 11 दर्शन, श्राश्रयी चतुदर्शन, अचकुद वीयोथकी असंख्यात गुणा . र्शन अने अवधिदर्शन, ए त्रण होय. 25 नवनहारमा दशे निकायना वाश 15 प्रथमनां त्रण ज्ञान अने त्रण अज्ञान. अना जवननी संख्या 59200000 .. 13 योग श्राश्रयी नारकीनी पेरे चार मन 26 विरहकाल, जघन्यथी एक समय श्रने ना, चार वचनना अने त्रण कायना उत्कृष्टो चोवीश मुहूर्त्त जाणवो. मलीने ए अगीयार योग होय. गुणगणां श्राश्रयी प्रथमनां चार होय. 14 उपयोगहार श्राश्रयी प्रथमना त्रण शा 27 प्राणहारथाश्रयी एमनेदशे प्राण होय. न, त्रण श्रझान. अने प्रथमनां त्रण द ए संयतीना नांगा नारकीनी पेरे होय. र्शन. ए रीतें नव उपयोग होय. 30 श्रादाराश्री श्रचित्ताहार लिये. 15 जघन्यथी एक समयमां एक, बे, त्रण, 31 उजाहार ने लोमाहार बे थाहार करे. उपजे अने उत्कृष्टपणे संख्याता अथ 32 दश हजार वर्षना आयुष्य वालाने चो वा असंख्याता पण एक समयमां उपजे थत्ते याहारनी श्छा उपजे.पव्योपमना .96 उपजवानी पेरे च्यवनहार पण जाणवू श्रायुष्यवालाने दिवस पृथक्त्वे आहार 17 आयुष्यहार श्राश्रयी, जघन्यथी दश नीश्छा उपजे.एकसागरोपम थायुवाला हजार वर्ष, अने उत्कृष्ट, एक सागरो ने एक हजार वर्षे श्राहारनी श्छा उपजे. पम जाजेलं आयुष्य जाणवू. सागरोपम जाजेरा आयुष्यवालाने ह 17 पर्याप्ति न होय परंतु नाषा अने मन, जार वर्ष जाजरे थाहारनी श्छा उपजे. ए बे पर्याप्ति साथे हो य. तेथी प्रका 33 नवनपति मरीने नवनपति न थाय. रांतरे पांच पण कहेवाय. / | माटे जेटली नवस्थिति होय, तेटलीज रए थाहाराश्री नवनपति देवो बए दि एमनी कायस्थिति पण जाणवी. शिनो आहार लिये . 34 नवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी ने वैमा 20 संझामां एक दीर्घकालिकी संज्ञा होय. निक, ए चारे निकायना देवोनी चार 1 च्यवीने मनुष्य, तिर्यंच पंचेंजिय, पृथ्वी लाख योनि उपजवानी कही . काय, अप्रकाय अने वनस्पति काय, 35 ए देवोना तेरे दमकने विषे बवीश ला ए पांच दंडकने विषे जाय. ख कोमी कुल जाणवां.
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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