________________ 247 चोवीश दंडकें पांत्रीश धार. क. तेथकी चोथीना असंख्यातगुणा अपञ्चकाणी, बाला, असंवुमा, च्युता, धिक, तेथकी त्रीजीना असंख्यातगु अधार्मिक अने अधर्मव्यवसायिका, ए णाधिक, तेथकी बीजीना असंख्यात था नांगा होय. गुणाधिक. तेथकी पहेलीना असंख्या 30 श्राहारहारमा नारकी जीवो एकजथ तगुणाधिक जाणवा, | चेत आहार लिये. 25 नवनहाराश्री साते नरक पृथिवी 31 थाहार जातिना छारमा नारकीने जे ना मली, जंगणपचास प्रतर अने चो जाहार अने लोमाहार. ए बे रीते श्रा राशी लाख नरकावासा जाणवा. हार लेवान होय. 26 बबीशमा विरहकाल छारमा जघन्य ए 32 थाहारनी श्वा श्राश्रयी साते नरक क समय अने उत्कृष्टो महिनानो वि पृथ्वीना नारकीने जघन्यथी एक सम रह जाणवो. प्रथम नरके जघन्य एक ये अने उत्कृष्टी अंतर मुहर्ते उपजे. समय उत्कृष्ट चोवीश मुहर्त्त, बीजीमा 33 काय स्थितियाश्री जेटली नवस्थिति. सात दिवस, त्रीजीमां पंदर दिवस,चो होय, तेटलो काल काय स्थिति पण थीमां एक मास, पांचमीमां बे मास, जाणवी. कारण के नरकनो जीव मरी बहीमा चार मास, अने सातमीमां ने फरी नरकमां न जाय. मास. तथा जघन्यथी सर्वमां एक समय. 34 योनिद्वार श्राश्रयी नारकी जीवोनी 27 गुणगणा प्रथमना चार लाने. चार लाख योनि उपजवानी जाणवी. 27 नारकीने दश प्राण जाणवां. 35 कुलकोमीछार श्राश्रयी नारकी जीवो शए संयतिहार श्राश्री असंयती, अवती, ना पच्चीश लाख कोडी कुल जाणवां. ए नरकाश्री पांत्रीशधारनो विचार कह्यो. 11 हवे दश जवन पतिना दश दंडकने विषे पांत्रीश द्वार कहे . 1 शरीरधार श्राश्रयी, वैक्रिय तेजस ने 3 संघयण आश्रयी देवोने कोइ पण सं कार्मण, ए त्रण शरीर होय. घयण नथी असंघयणी माटे. 5 श्रवगाहनाधार श्राश्रय उपजतां वख 4 संज्ञा आश्रयी दश अथवा शोल होय. त, अंगुलनो असंख्यातमो नाग शरीर 5 संस्थानथाश्रयी देवोने एकज समच होय. पनी उत्कृष्ट, सात हाथy शरीर तुरस्त्र संस्थान होय. होय. अने उत्तरवैक्रिय करे तो एक 6 कषायाश्रयी क्रोधादिकचारे कषायहोय. लाख योजन सुधी करे. | 7 लेश्या श्राश्रयी कृष्ण, नील, कापोत श्रने तेजो, ए चार लेश्या होय.