________________ 150 चोवीश दंडकें पात्रीश घार. 15 हवे बारमा पृथ्वी कायना दमकने विषे पांत्रीश छार कहे जे. 1 औदारिक, तैजस अने कार्मण, ए त्र 17 जघन्य, अंतरमुहूर्त अने उत्कृष्ट बावी ण शरीर होय. श हजार वर्षनं आयुष्य जाणवू. 2 अवगाहना जघन्य तथा उत्कृष्टी अं 1 सुनानुं हजार वर्ष. __ गुलनो असंख्यातमो नाग होय. . | 2 सुधारों बार हजार वर्षे. 3 एक बेवहुं संघयण होय. 3 वालुका- चौद हजार वर्ष. 4 संझा, थाहार, नय, मैथुन अने परि 4 मण सिलनुं शोल हजार वर्ष, ग्रह, ए चार अथवा दश होय. 5 शर्करानु अढार हजार वर्ष. 5 एक हुंमक संस्थान मसूरने श्राकारे . 6 खरपुढवीनुं बावीश हजार वर्ष. 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. आहार, शरीर, इंजिय अने श्वासोवा 7 अपर्याप्ताने प्रथमनी चार वेश्यायो हो स. ए चार पर्याप्ति होय. .. य अने पर्याप्ताने कृष्ण, नील ने कापो १ए थाहारहारथाश्रयीत्रण, चार, पांच त, ए त्रण लेश्या होय. अथवा उ दिशिनो आहार लिये. इंडियघारे एक स्पर्शेजियज होय. २०त्रण संझामांहेली कोइ पण संझा ए ए समुद्घात द्वार श्राश्रयी वेदन, कषाय दंमके न होय. ने मरण, ए त्रण समुद्घात होय. 1 पृथिवीकाय मरीने.पांच स्थावरना पांच 10 दृष्टि श्राश्रयी एक मिथ्यादृष्टि होय. दंक तथा विकलेंजियना त्रण दंगक, 11 दर्शन श्राश्रयी एक अचकुदर्शन होय. पंचेंजियतिर्यंचनो दंडक अने मनुष्यनो 25 ज्ञानछार श्राश्रयी मतिश्रज्ञान अने दमक, ए दश दंडकमां जश् उपजे. श्रुतअज्ञान, ए बे अज्ञान होय. 22 नारकी वर्जीने बाकी त्रेवीशे दमकना 23 औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रका जीव, पृथिवीकायमां श्रावी उपजे. ययोग अने कार्मणकाययोग, ए त्रण 53 एकज नपुंसक वेद होय. परंतु स्त्रीश्र योग होय. मन अने वचन एने नथी. ने पुरुष ए बे वेद एमां नथी. 14 मतिअज्ञान, श्रुतश्रज्ञान अने अचक्कु 24 अल्पबहुत्वमा त्रीजियथकी पृथिवीका दर्शन, ए त्रण उपयोग होय. यिया जीव अधिक बे. 15 उपपात हार श्राश्रयी एक समयमा 25 जुवनहारे पृथिवीकायमा जवन नथी. __ असंख्याता पृथिवीकाय जीव उपजे. 26 ए दमकने विषे विरहकाल पण नथी. 16 एक समयमां असंख्यात जीव च्यवे. 27 ए दंडकने विषे एकज मिथ्यात्व गुण | गणुं लाने केम के सर्व मिथ्यादृष्टि डे.