________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश धार. 251 शण स्पर्शेजिय, कायबल, श्वासोवास अने न्य अंतरमुहूर्त अने उत्कृष्टी असंख्या __ श्रायु, ए चार प्राण होय. ती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी कालनी जा शएनारकीनी पेरे संयतीनाथा नांगाहोय. णवी. बादरपृथिवीकायनी काय स्थिति ३०सचित्तादिकत्रणे प्रकारनो श्राहार लीये. जघन्य अंतरमुहर्त्त अने उत्कृष्टी सि 31 उज अने लोमे करी थाहार लीये. तेर कोमाकोमी सागरोपमनी जाणवी. 32 समय समय थाहारनी श्छा उपजे. 34 सात लाख योनि जाणवी. 33 सूक्ष्म पृथिवीकायनी काय स्थिति जघ 35 बार लाख कोडी कुल जाणवां. 13 हवे तेरमा अपूकायना दंगकने विषे पांत्रीश छार कहे बे. 1 शरीरकार श्राश्रयी औदारिक, तैजस 15 मतिअज्ञान, श्रुतश्रज्ञान अने अचा अने कार्मण, ए त्रण शरीर होय. दर्शन. ए त्रण उपयोग होय. 5 जघन्य अने उत्कृष्टी अवगाहना अंगु 15 एक समयमा असंख्याता जीव उपजे. लनो असंख्यातमो नाग होय. 16 एक समयमा असंख्याता मरण पामे. 3 एक बेवढं संघयण होय. 17 जघन्य अंतरमुहूर्त्त अने उत्कृष्ट सात 4 संज्ञा चार अथवा दश होय. हजार वर्षायु होय. 5 एक हुंम संस्थान पाणीना पोटाने 17 पर्याप्ति, आहार, शरीर, इंजिय श्रने थाकारे होय. | श्वासोवास, ए चार होय. 6 क्रोधादिक चारे कषाय, ए दमके होय. १ए थाहाराश्रयी त्रण, चार, पांच अथ 7 अपर्याप्ताने प्रथमनी चार लेश्या होय, वा उ दिशिनो थाहार लीये. श्रने पर्याप्ताने प्रथमनी कृष्ण, नील ने 20 दीर्घकालादिक कोइ पण संज्ञा न होय. कापोत ए त्रण लेश्या होय, 1 ए दंमकवालाजीव पण पृथिवीकायनी G एक स्पर्शेजियज होय, एकेंजिय माटे. पेरे दश दमकने विषे जाय. ए समुद्घात श्राश्रयी वेदना, कषाय ने 22 एक नारकी वर्जी बाकी त्रेवीश दमक __ मरण ए त्रण समुद्घात होय. ना जीवो अपकायमां श्रावी उपजे. 10 दृष्टिहारमा एकज मिथ्यादृष्टि होय. 23 वेद आश्रयी एकज नपुंसक वेद होय. 11 दर्शनधारमा एक अचकुर्दर्शन होय. 20 अल्प बहुत्वमां पृथ्वीकायथी अपका 12 मति अने श्रुत, ए बे अज्ञान होय. / यिक. जीव अधिक डे. 13 योगछार श्राश्रयीऔदारिक काययोग, 25 अपकायने नवन नथी. औदारिक मिश्रकाययोग अने कार्मण 26 विरहकाल पण नथी. काययोग, ए त्रण योग होय. एकज मिथ्यात्व गुणगणुं लाने.